जल जीवन मिशन
Updated: April 4, 2025
डॉ. नीरज भारद्वाज जल बचाने का हम सभी को अपने जीवन में मिशन बनाना होगा वरना आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा संकट हम…
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बढ़ती अर्थव्यवस्था: क्या सबको मिल रहा है फायदा?
Updated: April 4, 2025
प्रो. महेश चंद गुप्ता भारत की अर्थव्यवस्था में आय की असमानता एक गंभीर विषय बन गई है। इससे समाज और राष्ट्र का आर्थिक विकास प्रभावित…
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महाराणा सांगा के मायने
Updated: April 4, 2025
वीरेंद्र सिंह परिहार महाराणा सांगा में दृढ़ निश्चय, सैन्य कुशलता और उच्चकोटि की नेतृत्व क्षमता थी, जो किसी अन्य राजा में नहीं मिलती । राणा ने अज्ञातवास…
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मन की शुद्धता से प्रसन्न होती हैं महागौरी
Updated: April 4, 2025
दुर्गा अष्टमी डॉ घनश्याम बादल व्रत, उपवास और पूजा-पाठ हिंदू धर्म की पहचान हैं । उसकी यह विशेषता उसे अन्य धर्मों से विशिष्ट बनाती है…
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रामनवमी: मर्यादा, न्याय और धर्म की विजय का पर्व
Updated: April 4, 2025
रामनवमी (6 अप्रैल) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलभगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में समूचे भारतवर्ष में प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को…
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चिंताजनक है वनों पर अतिक्रमण
Updated: April 4, 2025
वन क्षेत्र संकट में हैं। इन पर अतिक्रमण हो रहा है, यह केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है। पाठकों को बताता चलूं कि केंद्रीय…
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भारतीय जनता पार्टी : स्थापना दिवस 6 अप्रेल पर विशेष
Updated: April 4, 2025
शून्य से शिखर का सफर मनोज कुमार व्यक्ति या संस्था जब शिखर पर होता है तब उसकी विजयगाथा गायी जाती है और यह स्वाभाविक भी…
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इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू (अध्याय – 13)
Updated: April 9, 2025
(डिस्कवरी ऑफ इंडिया की डिस्कवरी) पुस्तक से … डॉ. राकेश कुमार आर्य वेदों को लेकर भारतीय ऋषियों की मान्यता रही है कि यह सृष्टि प्रारंभ…
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वक्फ संशोधन बिल 2024: पारदर्शिता और जवाबदेही की ओर एक क्रांतिकारी कदम
Updated: April 3, 2025
भ्रष्टाचार पर लगाम और पारदर्शिता की नई पहल” वक्फ संशोधन बिल 2024 लोकसभा में पारित हुआ, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और…
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जल और ऊर्जा: मितव्ययिता के साथ विवेकपूर्ण उपयोग जरूरी
Updated: April 3, 2025
वर्तमान में अप्रैल का महीना चल रहा है और अभी से ठीक-ठाक गर्मी पड़ने लगी है।अभी से ही उत्तर भारत गर्मी का सामना करने लगा…
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चंडिका स्थान: यहां गिरी थी सती की बांयीं आंख
Updated: April 3, 2025
कुमार कृष्णन देश में 52 शक्तिपीठ हैं, सभी शक्तिपीठों में देवी मां के शरीर का एक हिस्सा गिरा था। जिसके कारण यहां मंदिर स्थापित हुए। ऐसा ही एक शक्तिपीठ बिहार के मुंगेर जिले से करीब चार किलोमीटर दूर है। यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी यह मंदिर को चंडिका स्थान और श्मशान चंडी के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार मंदिर में आने वाले श्रृद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है। इस स्थान को लेकर लोगों का कहना है कि यहां आंखो से संबंधित हर रोग का इलाज होता है। जी हां, यहां खास काजल मिलता है जिसे आंखों में लगाने से व्यक्ति के आंख से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। वैसे तो यहां भारी संख्या में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में यहां भक्तों का सैलाब आ पड़ता है। चूंकि मंदिर के पूर्व और पश्चिम में श्मशान है और मंदिर गंगा किनारे स्थित है। जिसके कारण यहां तांत्रिक तंत्र सिद्धियों के लिए आते हैं। नवरात्र को समय मंदिर का महत्व और भी अधिक हो जाता है। सुबह के समय मंदिर में तीन बजे देवी का पूजन शुरु होता है और शाम के समय भी श्रृंगार पूजन किया जाता है। इस कारण नवरात्र के दौरान कई विभिन्न जगहों से साधक तंत्र सिद्धि के लिए भी जमा होते हैं। चंडिका स्थान में नवरात्र के अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन सबसे अधिक संख्या में भक्तों का यहां जमावड़ा होता है।सिद्धि-पीठ होने के कारण, चंडिका स्थान को सबसे पवित्र और पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। यह गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर जैसा ही महत्वपूर्ण है। चंडिका स्थान के मुख्य पुजारी नंदन बाबा बताते हैं कि चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। नवरात्र के दौरान सुबह तीन बजे से माता की पूजा शुरू हो जाती है। संध्या में श्रृंगार पूजन होता है। अष्टमी के दिन यहां विशेष पूजा होती है। इस दिन माता का भव्य शृंगार होता है। यहां आने वाले लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। श्रृद्धालुओं का मानना है कि यहां देवी के दरबार में हाजिरी लगाने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। मंदिर प्रांगण में काल भैरव, शिव परिवार और बहुत सारे हिंदू देवी- देवताओं के मंदिर हैं। भगवान शिव जब राजा दक्ष की पुत्री सती के जलते हुए शरीर को लेकर जब भ्रमण कर रहे थे, तब सती की बाईं आंख यहां गिरी थी। इस कारण यह 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। इसके अलावा इस मंदिर को महाभारत काल से जोड़ा जाता है। कर्ण मां चंडिका के परम भक्त थे। वह हर रोज़ मां के सामने खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूदकर अपनी जान देते थे और मां प्रसन्न होकर उन्हें जीवनदान दे देती थी और उसके साथ सवा मन सोना भी देती थी। कर्ण सारा सोना मुंगेर के कर्ण चौरा पर ले जाकर बांट देते। इस बात का पता जब उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के पड़ा तब वे वहां पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से पूरा दृश्य देखा। एक दिन वह कर्ण से पहले मंदिर गए ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर स्वयं खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूद गए। मां ने उन्हें जीवित कर दिया। वह तीन बार कड़ाही में कूदे और तीन बार मां ने उन्हें जीवनदान दिया। जब वह चौथी बार कूदने लगे तो मां ने उन्हें रोक दिया और मनचाहा वरदान मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने मां से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। मां ने भक्त की इच्छा पूरी करने के बाद कड़ाही को उलटा दिया और स्वयं उसके अंदर अंतर्ध्यान हो गई। आज भी मंदिर में कड़ाही उलटी हुई है। उसके अंदर मां की उपासना होती है। मंदिर में पूजन से पहले विक्रमादित्य का नाम लिया जाता है, फिर मां चंडिका का। नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ अन्य दिनों की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है।नवरात्र अष्टमी के दिन यहां खास पूजा होती है।यहां के पुजारी ने बताया कि मुंगेर-खगड़िया जिला का एप्रोच पथ जब से बना है तब से नवरात्र में गंगा पार खगड़िया, बेगूसराय जिला के श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। श्रद्धालुओं ने बताया कि मां शक्तिपीठ चंडिका स्थान का बहुत बड़ा महत्व है और कई साल से मां की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। मां से जो भी मांगते हैं मां पूरी करती है। तंत्र साधना में इसका स्थान असम के कामाख्या मंदिर के जैसा है। पहले इसे एक बहुत छोटा प्रवेश द्वार था लेकिन 20 वीं शताब्दी में, इसका प्रवेश द्वार बड़े में बदल दिया गया था। चंडिका स्थान का विकास 40-50 साल पहले राय बहादुर केदार नाथ गोयनका ने किया था, फिर से वर्ष 1991 में श्याम सुंदर भंगड़ ने किया था। आईटीसी ने भी सामाजिक दायित्व के तहत मंदिर परिसर को विकसित किया। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार नवरात्रि, माँ दुर्गा को समर्पित नौ रातों का पर्व है। यह आध्यात्मिक जागरूकता, भक्ति और आंतरिक परिवर्तन का दिव्य अवसर है। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जो विभिन्न गुणों और ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे शरीर, मन और आत्मा को प्रभावित करते हैं। चंडी माता का आक्रामक पहलू है। चंडी तब अस्तित्व में आती है जब सभी मानवीय और दैवीय प्रयास विफल हो जाते हैं। मानव प्रयास की एक सीमा होती है और दैवीय प्रयास की भी एक सीमा होती है। चंडी की कहानी दुर्गासप्तशती पुस्तक में वर्णित है , जिसमें ब्रह्मांडीय मां की महिमा का वर्णन किया गया है। कहानी देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध से शुरू होती है। देवताओं ने राक्षसों को कड़ी टक्कर दी और राक्षसों को स्वर्ग से निकाल दिया गया। ब्रह्मांड का पूरा संतुलन गड़बड़ा गया। शांति और सद्भाव के बजाय अराजकता और संघर्ष दिन का क्रम था। पूर्ण मनोबल की स्थिति में, देवता गए और त्रिदेवों को अपनी व्यथा सुनाई, जिनका प्रतिनिधित्व ब्रह्मा, निर्माता, विष्णु, संरक्षक और शिव, संहारक ने किया। जब तीनों देव देवों की पीड़ा सुन रहे थे, तो वे क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से एक रूप, एक आकृति प्रकट हुई। वह चंडी थी, जिसे दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा का जन्म प्रत्येक देव के तेज से हुआ था और वह सभी ब्रह्मांडीय शक्तियों के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करती है। सिद्ध शक्तिपीठ स्थल चंडिका स्थान के सौंदर्यीकरण की योजना को सरकारी मंजूरी मिल गयी है। पर्यटन विभाग 4.18 करोड़ की लागत से चंडिका स्थान का सौंदर्यीकरण करा रहा है। इसके तहत श्रद्धालुओं के ठहरने के धर्मशाला, मल्टीपरपस हॉल, मुख्यद्वार से गर्भगृह तक पाथ वे का निर्माण कराया जाना है। मुख्य प्रवेश द्वार को बड़ा और आकर्षक बनाया जाएगा। इसके अलावा मंदिर का चाहरदीवारी का भी निर्माण होगा।वहीं सुरक्षा के उद्देश्य से मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाएगा। मंदिर परिसर को पूरी तरह समतल बनाकर भक्तगण को बैठने के लिए पेड़ के नीचे बेंच लगाया जाएगा। इसके अलावा मंदिर परिसर में हाई मास्ट लाइट, पाथ वे, दवा के साथ फस्ट एड कक्ष तथा मंदिर से पानी की निकासी और वर्षा जल संरक्षित करने के लिए ड्रेनेज चैनल और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाएगा। कुमार कृष्णन
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दुनिया भर के आधे प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को बंट रहे खाने में न्यूट्रिएंट की कमी
Updated: April 3, 2025
पुनीत उपाध्याय यूनेस्को ने विद्यार्थियों को परोसे जाने वाले भोजन यानि मिड-डे-मील में न्यूट्रिएंट की कमी पर चिंता जताते हुए स्वस्थ और अधिक पौष्टिक खाद्य…
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