दिल्ली विधानसभा चुनाव – ’’आप’’ की झाड़ू ने ’’आप’’ को ही साफ कर दिया
Updated: February 10, 2025
रामस्वरूप रावतसरे दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी में आम आदमी पार्टी हवा हो गई। वो आम आदमी पार्टी जो लगातार दो चुनावों में…
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दिल्ली में भाजपा की जीत और आप की हार के सियासी मायने
Updated: February 10, 2025
कमलेश पांडेय दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में विगत 12 वर्षों से सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ की हार और प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा की अप्रत्याशित जीत के सियासी मायने दिलचस्प हैं। इसके राजनीतिक असर भी दूरगामी होंगे क्योंकि एक तरफ जहां भाजपा की जीत से केंद्र में सत्तारूढ़ ‘एनडीए’ की एकजुटता मजबूत होगी, वहीं देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन में बिखराव को बढ़ावा मिलेगा। ऐसा इसलिए कि इंडिया गठबंधन की अगुवा पार्टी कांग्रेस ने दिल्ली में अपने पूर्व गठबंधन सहयोगी ‘आप’, जो दिल्ली में लंबे समय से सत्तारूढ़ थी, को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे कांग्रेस ने आप से जहां अपना पुराना सियासी हिसाब-किताब बराबर कर लिया है, वहीं अपनी खोई राजनीतिक जमीन हासिल करने का शिलान्यास भी कर चुकी है। वहीं, अब उसमें इस बात की भी नई उम्मीद जगी है कि 2030 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जब भाजपा से उसका सीधा मुकाबला होगा तो उसकी स्थिति और मजबूत होगी और उसका खोया जनाधार पुनः वापस लौट जाएगा। बता दें कि 2010 के दशक के शुरुआती सालों में पूर्व नौकरशाह अरविंद केजरीवाल समेत ‘आप’ के कतिपय प्रमुख नेताओं के द्वारा लोकप्रिय समाजसेवी अन्ना हजारे को आगे करके ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नामक एनजीओ के तत्वावधान में कांग्रेस की तत्कालीन डबल इंजन सरकार यानी मनमोहन सिंह सरकार और शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ जो भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चलाई गई, उससे 2013 में दिल्ली में 15 वर्षों से सत्तारूढ़ शीला दीक्षित सरकार और 2014 में केंद्र में 10 वर्षों से सत्तारूढ़ मनमोहन सिंह सरकार का सफाया हो गया था। राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि चूंकि इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का भी गुप्त समर्थन हासिल था, इसलिए यह आंदोलन काफी सफल रहा। हालांकि एनजीओ के बैनर तले शुरू हुए इस आंदोलन की देशव्यापी लोकप्रियता से उत्साहित समाजसेवियों ने जब आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ का गठन करके दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी भागीदारी जताई तो आरएसएस और भाजपा ने इससे दूरी बना ली। लेकिन तब तक अन्ना हजारे की आड़ में अरविंद केजरीवाल ने अपनी सामाजिक आभा इतनी चमका ली थी कि उनकी नवगठित पार्टी ‘आप’ ने कांग्रेस की पूरी और बीजेपी की कुछ कुछ राजनीतिक जमीन हड़प ली। यदि गौर किया जाए तो 2013 में जब आप ने धर्मनिरपेक्षता की आड़ में उसी कांग्रेस के सहयोग से भाजपा विरोधी गठबंधन सरकार का गठन किया, जिसका विरोध करके वह चुनाव जीती थी और त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आई थी। कांग्रेस की इस एक मात्र भूल ने 2015 के मध्यावधि चुनाव में जहां उसका सफाया कर दिया, वहीं आप की ओर मुस्लिम मतदाताओं के बढ़े रुझान से उसे रिकॉर्ड जीत मिली। क्योंकि भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति देने के नाम पर दलितों, पिछड़ों और सवर्णों के अलावा पूर्वांचलियों और पहाड़ियों के साथ-साथ दिल्ली के पंजाबियों-बनियों ने भी आप का साथ दिया। इससे भाजपा भी भौंचक्की रह गई क्योंकि 2014 में ही उसने पीएम मोदी के नेतृत्व में देश फतह किया था। हालांकि, उसके बाद से ही तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह को संतुलित करने की जो भाजपा के गुजराती-मराठी लॉबी की अंदरूनी राजनीति शुरू हुई, उससे पूर्वांचलियों में भाजपा की साख गिरी और आप को मजबूती मिली। वहीं, 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आप की लोकप्रियता थोड़ी कम हुई, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले काफी ज्यादा रही। इसके बाद जब आप ने पंजाब में कांग्रेस को, दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा को जबरदस्त शिकस्त दी तो कांग्रेस किंकर्तव्यविमूढ़, लेकिन भाजपा चौकन्नी हो गई। क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने यूपी, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में भी अपने पांव पसारने शुरू कर दिए। उन्होंने 2023 में आप को राष्ट्रीय पार्टी का तमगा भी दिलवा दिया। कांग्रेस, भाजपा और जनता पार्टी/जनता दल जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के बाद आप एक ऐसी पहली क्षेत्रीय पार्टी बनी जिसने एक के बाद दूसरे राज्य यानी दिल्ली के बाद पंजाब में भी अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार बना ली। इससे दूरदर्शी भाजपा नेतृत्व सजग हो गया और उसने दिल्ली के उपराज्यपाल के माध्यम से आप सरकार को घेरने की रणनीति बनाई, क्योंकि अरविंद केजरीवाल हर बात में उपराज्यपाल और प्रधानमंत्री को ही निशाना बनाते रहते थे। इस बीच लोकसभा चुनाव 2024 के पहले कांग्रेस के नेतृत्व में बने देशव्यापी इंडिया गठबंधन से जब आप की आंखमिचौली शुरू हुई, तो दिल्ली में कांग्रेस-आप में 4:3 का समझौता हो गया, जबकि पंजाब में दोनों में दोस्ताना मुकाबला हुआ। इसमें कांग्रेस ने आप को धो दिया और पंजाब में आप से दोगुनी सीट जीत ली। तभी यह तय हो गया कि आप को यदि अपनी राजनीतिक जमीन बचानी है तो कांग्रेस से दूर जाना होगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह हुआ तो जरूर, लेकिन यहां भी आप का दांव उलटा पड़ गया। दरअसल, आप एक ऐसी पार्टी के रूप में उभर रही थी, जो भाजपा और कांग्रेस से इतर सभी व्यवहारिक मुद्दों में स्पष्ट नजरिया रख रही थी। लेकिन जब से वह भाजपा के निशाने पर आई, उसकी भी रीति-नीति बदल गई। उससे टक्कर लेने के लिए वह जिन थैलीशाहों की शरण में गई, वही आप को ले डूबे। शराब घोटाला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जब तक आप बिजली-पानी फ्री देने, स्कूल-अस्पताल को सुधारने आदि पर फोकस किया, तबतक लोकप्रिय बनी रही। लेकिन कोरोना काल की अवैध वसूली और अपनी कतिपय क्षेत्रवादी व अभद्र नीति से जहां वह जनता में अलोकप्रिय हुई, वहीं नीतिगत शराब घोटाले ने उसकी सरकार को ही जेल में डाल दिया। आप सरकार के मुख्यमंत्री की जेल यात्रा और पूर्व उपमुख्यमंत्री की जेल यात्रा तो महज एक बानगी रही, उसके अन्य मंत्री व सांसद भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए और बमुश्किल जमानत पर रिहा हुए। उधर भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के शीशमहल, वायु प्रदूषण, यमुना जल प्रदूषण, दिल्ली के कुछ इलाकों के नारकीय हालात आदि पर इतना फोकस किया कि लोगों को यह महसूस हुआ कि दिल्ली में आप की सरकार के रहते दिल्ली का अब और विकास नहीं हो सकता। इससे पहले भी दिल्ली के विकास का सारा श्रेय शीला दीक्षित सरकार को जाता है। वहीं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आप को दिल्ली के लिए ‘आपदा’ (आप-दा) करार दे दिया, क्योंकि यह सरकार विभिन्न महत्वपूर्ण केंद्रीय योजनाओं को दिल्ली में लागू ही नहीं होने देती थी। वहीं, कानून-व्यवस्था पर केंद्र सरकार को घेरती रहती थी, क्योंकि दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के अंतर्गत होता है। हालांकि, जब भाजपा ने आरएसएस के सहयोग से आप को दिल्ली की गली-कूची में घेरना शुरू किया, तब स्थिति बदलती। छठ पूजा के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की सोच भी उनपर भारी पड़ी। कांग्रेस के खिलाफ सपा, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना यूटीबी आदि का समर्थन भी आप को भारी पड़ा, क्योंकि इनकी पहचान मुस्लिम परस्त और देशद्रोही पार्टी की बनती जा रही है। वहीं, दिल्ली के दंगों को, शाहीन बाग जैसे धरनों और किसान आंदोलन जैसे महानगर विरोधी आंदोलनों को प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन देना भी अरविंद केजरीवाल की राजनीति को भारी पड़ी। सच कहूं तो सियासी शिल्पकार भाजपा ने दिल्ली के राजनीतिक दंश को दूर करने के लिए एक सुनियोजित रणनीति अपनाई, जिसमें हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक के अनुभवों को पिरोया। किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना, वोट करना लोगों को अपील कर गया। वहीं, आप और कांग्रेस की तरह ही फ्रीबीज की बौछार करना भाजपा के लिए शुभ कारक रहा। क्योंकि लोगों ने मोदी की गारंटी को अहमियत दी। वहीं, बजट 2025-26 में मध्यम वर्ग को जो भारी कर राहत मिली, उससे बीजेपी के पक्ष में एक नई लहर पैदा हो गई। हालांकि, इस चुनाव में मध्यम वर्ग के मुद्दों पर प्रारम्भिक फोकस अरविंद केजरीवाल ने ही किया, लेकिन मतदान के ऐन मौके पर केंद्रीय बजट बाजीगरी दिखलाकर मोदी मैदान मार ले गए और आप हाथ मलती रह गई। दिल्ली की इस अप्रत्याशित जीत का फायदा एनडीए गठबंधन को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी मिलेगा। वहीं, कांग्रेस यदि समझदारी दिखाकर इंडिया गठबंधन को पुनः मजबूत बनाती है तो वहां भी कांटे की टक्कर होगी, अन्यथा नहीं। क्योंकि वहां पर भी नवगठित जनसुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर के रुख पर यह निर्भर करेगा कि एनडीए या इंडिया गठबंधन में किसका पलड़ा भारी होगा।
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राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण का गठन हो।
Updated: February 10, 2025
रामाशीष प्रकृति के पंचभूतों में से एक जल, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक परम आवश्यक अवयव है। विज्ञान,प्रौद्योगिकी और औद्योगिक क्षेत्र के विकास और उन्नयन हेतु जल एक अत्यावश्यक संसाधन है। समकालीन मानवीय प्रवृत्ति में जल की हर बूंद से धन बनाने का लोभ बढ़ता जा रहा है। आज हमारी नदियों के सामने दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं: १. एक निर्मलता की, और २. अविरलता की। ये दोनों एक दूसरे से संबद्ध हैं। अविरलता के अभाव में नदियों की निर्मलता संभव नहीं है । नदियां हमें पानी ही नहीं देतीं अपितु वे हमारी समग्र जीवन प्रणाली की रीढ़ हैं। जैव विविधता, मिट्टी-रेत , जल और अविरल प्रवाह ये सब मिल कर ही किसी नदी की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। नदी को स्वयं को साफ कर लेने का सामर्थ्य भी यही देते हैं। जितना महत्व प्राणियों के शरीर में ऑक्सीजन का है, उतना ही नदी के लिए इन सूक्ष्म से लेकर विशाल धाराओं के जाल का है। जैव- विविधता नदियों के लिए प्राणवायु के समान है,जो इनके जल को शुद्ध करके ऑक्सीजन से भरते हैं इसलिए नदी में कम से कम इतना पानी हो कि हम कह सकें नदी में जीवटता है, परंतु बिजली, सिंचाई, पेयजल और आबादियों को बाढ़ से बचाने के नाम पर नदियों के रास्तों और किनारों पर अनेक अवरोध खड़े कर दिए गए हैं जिससे नदी में उचित न्यूनतम प्रवाह, जिसे पर्यावरणीय प्रवाह या ई-फ्लो कहते हैं, नहीं बचा है। पर्यावरणीय प्रवाह के अभाव में नदी के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक जलीय जीवों जैसे मछलियां, घड़ियाल, डॉलफिन आदि के साथ ही जलीय वनस्पति के जीवन पर खतरा पैदा हो रहा है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने 12 वर्षों के शोध के बाद अभी हाल में गंगाजल को विशिष्ट बनाने वाले तीन तत्व खोजे हैं जो अविरल बहती गंगा को स्वच्छ करते रहते हैं। पहला है गंगा के पानी में घुली प्रचुर ऑक्सीजन। यह प्रति लीटर 20 मिमी तक होती है। दूसरा तत्व है गोमुख से हरिद्वार तक गंगा के मार्ग में पड़ने वाली वनस्पतियों से उत्पन्न रसायन टरपीन एवं तीसरा तत्व है दूषित जीवाणुओं को नष्ट करने वाला बैक्टीरियोफाज। ये तीनों तत्व गंगा की तलहटी में भारी मात्रा में मिले हैं। इन तत्त्वों के संपर्क में आकर पानी अपने आप निर्मल हो जाता है। प्रवाह धीमा होने और मार्ग में अवरोध होने से यह क्षमता कम होती जाती है। …
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बेटी नहीं बचाओगे, तो बहू कहाँ से लाओगे?
Updated: February 10, 2025
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम ने बेटे को प्राथमिकता देने के मुद्दे पर सफलतापूर्वक जागरूकता बढ़ाई है, लेकिन अपर्याप्त कार्यान्वयन और निगरानी के कारण, यह…
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आखिर दिल्ली में क्यों ढ़हा ‘आप’ का किला?
Updated: February 10, 2025
– योगेश कुमार गोयलदिल्ली में आम आदमी पार्टी का किला बुरी तरह ढ़ह गया है। आतिशी को छोड़कर पार्टी के लगभग तमाम दिग्गज नेता चुनाव…
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गिग वर्कर्स को पेंशन: सरकार की एक बड़ी और नायाब पहल!
Updated: February 10, 2025
सुनील कुमार महला भारत सरकार ‘गिग वर्कर्स’ को एक बड़ा तोहफा देने जा रही है। पाठकों को बताता चलूं कि गिग वर्कर को एक ऐसे…
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‘आप’ का दिल्ली में अपराजेय होने का टूटा भ्रम
Updated: February 10, 2025
डॉ. रमेश ठाकुर लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में जनता जर्नादन ही सर्वोपरि होती है पर ये बात एकाध बंपर जीत करने के बाद सियासी दल…
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टल गया नीतीश कुमार के पाला बदलने का खतरा
Updated: February 10, 2025
कुमार कृष्णन क़रीब तीन दशकों से दिल्ली में चुनावी जीत का इंतज़ार कर रही भारतीय जनता पार्टी का वनवास खत्म हुआ और दिल्ली की सत्ता…
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आखिर तीसरे मोर्चे के सियासी तीरंदाजों का राजनीतिक भविष्य अब क्या होगा? देखना दिलचस्प!
Updated: February 10, 2025
कमलेश पांडेय दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान भाजपा और कांग्रेस विरोधी क्षेत्रीय दलों ने जो पारस्परिक एकजुटता दिखाई, उससे भी यहां पिछले 12 वर्षों…
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दिल्ली में भाजपा ने जीत की नई इबारत लिखी
Updated: February 10, 2025
-ः ललित गर्ग:- दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए न केवल 27 साल के वनवास को खत्म करने…
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बांग्लादेशी घुसपैठिए और देश की राजधानी दिल्ली
Updated: February 6, 2025
देश के राजनीतिक लोग जिस प्रकार वोट और तुष्टिकरण की राजनीति के माध्यम से अपनी सत्ता को स्थाई बनाने का घृणास्पद कार्य करते जा रहे…
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हर बुजदिल हिंदू मुसलमान है : कहना कितना सही ?
Updated: February 6, 2025
सामान्यतया जब भी किसी हिंदू युवा को मुसलमानों या इस्लामिक आतंकवाद पर या मुस्लिम फंडामेंटलिज्म पर बोलना होता है तो यह बात सुनने को अक्सर…
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