राजनीति ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत पर प्रभाव

ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत पर प्रभाव

अमेरिका में दिनांक 20 जनवरी 2025 को नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा ली गई शपथ के उपरांत ट्रम्प प्रशासन आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण फैसले बहुत तेज गति से ले रहा है। इससे विश्व के कई देश प्रभावित हो रहे हैं एवं कई देशों को तो यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि अंततः आगे आने वाले समय में इन फैसलों का प्रभाव इन देशों पर किस प्रकार होगा।  ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को बढ़ा रहा है क्योंकि इन देशों द्वारा अमेरिका से आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है।  अमेरिका में उपभोक्ता आधारित उत्पादों का आयात अधिक मात्रा में होता है और अब अमेरिका चाहता है कि इन उत्पादों का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ हो ताकि इन उत्पादों का अमेरिका में आयात कम हो सके। दक्षिण कोरीया, जापान, कनाडा, मेक्सिको आदि जैसे देशों की अर्थव्यवस्था केवल कुछ क्षेत्रों पर ही टिकी हुई है अतः इन देशों पर अमेरिका में बदल रही नीतियों का अधिक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। जबकि भारत एक विविध प्रकार की बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है, अतः भारत को कुछ क्षेत्रों में यदि नुक्सान होगा तो कुछ क्षेत्रों में लाभ भी होने की प्रबल सम्भावना है। संभवत: अमेरिका ने भी अब यह एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि भारत के कृषि क्षेत्र को टैरिफ युद्ध से बाहर रखा जा सकता है, क्योंकि भारत के किसानों पर इसका प्रभाव विपरीत रूप से पड़ता है। और, भारत यह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगा कि भारत के किसानों को नुक्सान हो। डेरी उत्पाद एवं समुद्रीय उत्पादों में भी आवश्यक खाने पीने की वस्तुएं शामिल हैं। भारत अपने देश में इन उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्देश्य से इन उत्पादों के आयात पर टैरिफ लगाता है, ताकि अन्य देश सस्ते दामों पर इन उत्पादों को भारत के बाजार में डम्प नहीं कर सकें। साथ ही, भारत में मिडल क्लास की मात्रा में वृद्धि अभी हाल के कुछ वर्षों में प्रारम्भ हुई है अतः यह वर्ग देश में उत्पादित सस्ती वस्तुओं पर अधिक निर्भर है, यदि इन्हें आयातित महंगी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती हैं तो वह इन्हें सहन नहीं कर सकता है। अतः यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को सस्ते उत्पाद उपलब्ध करवाए। अन्यथा, यह वर्ग एक बार पुनः गरीबी रेखा के नीचे आ जाएगा। भारत ने मुद्रा स्फीति को भी कूटनीति के आधार पर नियंत्रण में रखने में सफलता प्राप्त की है। रूस, ईरान, अमेरिका, इजराईल, चीन, अरब समूह आदि देशों के साथ अच्छे सम्बंध रखकर विदेशी व्यापार करने में सफलता प्राप्त की है। जहां से भी जो वस्तु सस्ती मिलती है भारत उस देश से उस वस्तु का आयात करता है। इसी नीति पर चलते हुए, कच्चे तेल के आयात के मामले में भी भारत ने विभिन्न देशों से भारी मात्रा में छूट प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है और ईंधन के दाम भारत में पिछले लम्बे समय से स्थिर बनाए रखने में सफलता मिली है।  अमेरिका द्वारा चीन, कनाडा एवं मेक्सिको पर लगाए गए टैरिफ के बढ़ाने के पश्चात इन देशों द्वारा भी अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर टैरिफ लगा दिए जाने के उपरांत अब विभिन्न देशों के बीच व्यापार युद्ध एक सच्चाई बनता जा रहा है। परंतु, क्या इसका असर भारत के विदेशी व्यापार पर भी पड़ने जा रहा है अथवा  क्या कुछ ऐसे क्षेत्र भी ढूढे जा सकते हैं जिनमें भारत लाभप्रद स्थिति में आ सकता है। जैसे, अपैरल (सिले हुए कपड़े) एवं नान अपैरल टेक्सटायल का मेक्सिको से अमेरिका को निर्यात प्रतिवर्ष लगभग 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहता है और मेक्सिको का अमेरिका को निर्यात के मामले में 8वां स्थान है। अमेरिका द्वारा मेक्सिको से आयात पर टैरिफ लगाए जाने के बाद टेक्सटायल से सम्बंधित उत्पाद अमेरिका में महंगे होने लगेंगे अतः इन उत्पादों का आयात अब अन्य देशों से किया जाएगा। मेक्सिको अमेरिका को 250 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कॉटन अपैरल का निर्यात करता है एवं 150 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नान कॉटन अपैरल का निर्यात करता है। कॉटन अपैरल के आयात के लिए अब अमेरिकी व्यापारी भारत की ओर देखने लगे हैं एवं इस संदर्भ में भारत के निर्यातकों के पास पूछताछ की मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। इन परिस्थितियों के बीच, टेक्स्टायल उद्योग के साथ ही, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, इंजीयरिंग क्षेत्र एवं श्रम आधारित उद्योग जैसे क्षेत्रों में भी भारत को लाभ हो सकता है।      यदि अमेरिका अपने देश में हो रहे उत्पादों के आयात पर टैरिफ में लगातार वृद्धि करता है तो यह उत्पाद अमेरिका में बहुत महंगे हो जाएंगे और इससे अमेरिकी नागरिकों पर मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। क्या अमेरिकी नागरिक इस व्यवस्था को लम्बे समय तक सहन कर पाएंगे। उदाहरण के तौर पर फार्मा क्षेत्र में भारत से जेनेरिक्स दवाईयों का निर्यात भारी मात्रा में होता है। यदि अमेरिका भारत के उत्पादों पर टैरिफ लगाता है तो इससे अधिक नुक्सान तो अमेरिकी नागरिकों को ही होने जा रहा है। भारत से आयात की जा रही सस्ती दवाएं अमेरिका में बहुत महंगी हो जाएंगी। इससे अंततः अमेरिकी नागरिकों के बीच असंतोष फैल सकता है। अतः अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन के लिए टैरिफ को लम्बे समय तक बढ़ाते जाने की अपनी सीमाएं हैं।  अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र एवं सबसे बड़ा विकसित देश है और इस नाते अन्य देशों के प्रति अमेरिका की जवाबदारी भी है। टैरिफ बढ़ाए जाने के सम्बंध में इक तरफा कार्यवाही अमेरिका की अन्य देशों के साथ सौदेबाजी की क्षमता तो बढ़ा सकती है परंतु यह कूटनीति लम्बे समय तक काम नहीं आ सकती है। अमेरिकी नागरिकों के साथ साथ अन्य देशों में भी असंतोष फैलेगा। कोई भी व्यापारी नहीं चाहता कि नीतियों में अस्थिरता बनी रहे। इसका सीधा सीधा असर विश्व के समस्त स्टॉक मार्केट पर विपरीत रूप से पड़ता हुआ दिखाई भी दे रहा है। यदि यह स्टॉक मार्केट के अतिरिक्त अन्य बाजारों एवं नागरिकों के बीच में भी फैला तो मंदी की सम्भावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। अमेरिका के साथ साथ अन्य कई देश भी मंदी की चपेट में आए बिना नहीं रह पाएंगे। अर्थात, इस प्रकार की नीतियों से विश्व के कई देश विपरीत रूप में प्रभावित होंगे।  अमेरिका को भी टैरिफ के संदर्भ में इस बात पर एक बार पुनः विचार करना होगा कि विकसित देशों पर तो टैरिफ लगाया जा सकता है क्योंकि अमेरिका एवं इन विकसित देशों में परिस्थितियां लगभग समान है। परंतु विकासशील देशों जैसे भारत आदि में भिन्न परिस्थितियों के बीच तुलनात्मक रूप से अधिक परेशानियों का सामना करते हुए विनिर्माण क्षेत्र में कार्य हो रहा है, अतः विकसित देशों एवं विकासशील देशों को एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है। विकासशील देशों ने तो अभी हाल ही में विकास की राह पर चलना शुरू किया है और इन देशों को अपने करोड़ों नागरिकों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना है। इनके लिए विकसित देश बनने में अभी लम्बा समय लगना है। अतः विकसित देशों को इन देशों को विशेष दर्जा देकर इनकी आर्थिक मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। अमेरिका को विकसित देश बनने में 100 वर्ष से अधिक का समय लग गया है और फिर विकासशील देशों के साथ इनकी प्रतिस्पर्धा कैसे हो सकती है। विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने का अधिकार है, अतः विकासशील देश तो टैरिफ लगा सकते हैं परंतु विकसित देशों को इस संदर्भ में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।  प्रहलाद सबनानी 

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– ललित गर्ग  –टेक्नोलॉजी विकास एवं उससे जुड़े नये-नये उपकरण आधुनिक जीवनशैली को भले ही बहुत आसान कर दिया हो लेकिन इसके अनियंत्रित उपयोग से…

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ट्रम्प प्रशासन अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के हो रहे आयात पर टैरिफ की दरों को लगातार बढ़ाते जाने की घोषणा कर रहा है क्योंकि ट्रम्प प्रशासन के अनुसार इन देशों द्वारा अमेरिका से किए जा रहे विभिन्न उत्पादों के आयात पर ये देश अधिक मात्रा में टैरिफ लगाते हैं। चीन, कनाडा एवं मेक्सिको से अमेरिका में होने वाले विभिन्न उत्पादों के आयात पर तो टैरिफ को बढ़ा भी दिया गया है। इसी प्रकार भारत के मामले में भी ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि भारत, अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है अतः अमेरिका भी भारत से आयात किए जा रहे कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत का टैरिफ लगाएगा। इस संदर्भ में हालांकि केवल भारत का नाम नहीं लिया गया है बल्कि “टिट फोर टेट” एवं “रेसिप्रोकल” आधार पर कर लगाने की बात की जा रही है और यह समस्त देशों से अमेरिका में हो रहे आयात पर लागू किया जा सकता है एवं इसके लागू होने की दिनांक भी 2 अप्रेल 2025 तय कर दी गई है। इस प्रकार की नित नई घोषणाओं का असर अमेरिका सहित विभिन्न देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर स्पष्टतः दिखाई दे रहा है एवं शेयर बाजारों में डर का माहौल बन गया है। भारत ने वर्ष 2024 में अमेरिका को लगभग 74,000 करोड़ रुपए की दवाईयों का निर्यात किया है। 62,000 करोड़ रुपए के टेलिकॉम उपकरणों का निर्यात क्या है, 48,000 करोड़ रुपए के पर्ल एवं प्रेशस स्टोन का निर्यात किया है, 37,000 करोड़ रुपए के पेट्रोलीयम उत्पादों का निर्यात किया है, 30,000 करोड़ रुपए के स्वर्ण एवं प्रेशस मेटल का निर्यात किया है, 26,000 करोड़ रुपए की कपास का निर्यात किया है, 25,000 करोड़ रुपए के इस्पात एवं अल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात किया है, 23,000 करोड़ रुपए सूती कपड़े का निर्यात का किया है, 23,000 करोड़ रुपए की इलेक्ट्रिकल मशीनरी का निर्यात किया है एवं 22,000 करोड़ रुपए के समुद्रीय उत्पादों का निर्यात किया है। इस प्रकार, विदेशी व्यापार के मामले में अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा साझीदार है। अमेरिका अपने देश में विभिन्न वस्तुओं के आयात पर टैरिफ लगा रहा है क्योंकि अमेरिका को ट्रम्प प्रशासन एक बार पुनः वैभवशाली बनाना चाहते हैं परंतु इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है। अमेरिकी बैंकों के बीच किए गए एक सर्वे में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि अमेरिका में विभिन्न उत्पादों के आयात पर टैरिफ इसी प्रकार बढ़ाते जाते रहे तो अमेरिका में आर्थिक मंदी की सम्भावना बढ़कर 40 प्रतिशत के ऊपर पहुंच सकती है, जो हाल ही में जे पी मोर्गन द्वारा 31 प्रतिशत एवं गोल्डमैन सैचस 24 प्रतिशत बताई गई थी। इसके साथ ही, ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी निर्णयों की घोषणा में भी एकरूपता नहीं है। कभी किसी देश पर टैरिफ बढ़ाने के घोषणा की जा रही है तो कभी इसे वापिस ले लिया जा रहा है, तो कभी इसके लागू किए जाने के समय में परिवर्तन किया जा रहा है, तो कभी इसे लागू करने की अवधि बढ़ा दी जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी पूंजी बाजार में सधे हुए निर्णय होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं इससे पूंजी बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों का आत्मविश्वास टूट रहा है। और, अंततः इस सबका असर भारत सहित अन्य देशों के पूंजी (शेयर) बाजार पर पड़ता हुआ भी दिखाई दे रहा है।  हालांकि, ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ को बढ़ाए जाने सम्बंधी लिए जा रहे निर्णयों का भारत के लिए स्वर्णिम अवसर भी बन सकता है। क्योंकि, भारतीय जब भी दबाव में आते हैं तब तब वे अपने लिए बेहतर उपलब्धियां हासिल कर लेते हैं। इतिहास इसका गवाह है, कोविड महामारी के खंडकाल में भी भारत ने दबाव में कई उपलब्धयां हासिल की थीं। भारत ने कोविड के खंडकाल में 100 से अधिक देशों को कोविड बीमारी से सम्बंधित दवाईयां एवं टीके निर्यात करने में सफलता हासिल की थी।  विदेशी व्यापार के मामले में चीन, कनाडा एवं मेक्सिको अमेरिका के बहुत महत्वपूर्ण भागीदार हैं। वर्ष 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, उक्त तीनों देश लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार प्रतिवर्ष अमेरिका के साथ करते हैं। इसके बावजूद अमेरिका ने उक्त तीनों के साथ व्यापार युद्ध प्रारम्भ कर दिया है। भारत के साथ अमेरिका का केवल 11,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही व्यापार था। अब ट्रम्प प्रशासन की अन्य देशों से यह अपेक्षा है कि वे अमेरिकी उत्पादों के आयात पर टैरिफ कम करे अथवा अमेरिका भी इन देशों से हो रहे विभिन्न उत्पादों पर उसी दर से टैरिफ वसूल करेगा, जिस दर पर ये देश अमेरिका से आयातित उत्पादों पर वसूलते हैं। यह सही है कि भारत अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर अधिक टैरिफ लगाता है क्योंकि भारत अपने किसानों और व्यापारियों को बचाना चाहता है। भारत में कृषि क्षेत्र के उत्पादों पर 25 से 100 प्रतिशत तक आयात कर लगाया जाता है जबकि कृषि क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य उत्पादों पर कर की मात्रा बहुत कम हैं। भारत ने विनिर्माण एवं अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ा ली है परंतु कृषि क्षेत्र में अभी भी अपनी उत्पादकता बढ़ाना है। हाल ही के समय में भारत ने कई उत्पादों के आयात पर टैरिफ की दर घटाई भी है।  भारत के साथ दूसरी समस्या यह भी है कि यदि भारत आयातित उत्पादों पर टैरिफ कम करता है तो भारत में इन उत्पादों के आयात बढ़ेंगे और भारत को अधिक अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता पड़ेगी इससे भारतीय रुपये का और अधिक अवमूल्यन होगा तथा भारत में मुद्रा स्फीति का दबाव बढ़ेगा। विदेशी निवेश भी कम होने लगेगा और अंततः भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी। भारत में सप्लाई चैन पर दबाव भी बढ़ेगा। इन समस्त समस्याओं का हल है कि भारत अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करे। परंतु, अन्य देश चाहते हैं कि द्विपक्षीय समझौतों में कृषि क्षेत्र को भी शामिल किया जाय, इसका रास्ता आपसी चर्चा में निकाला जा सकता है। अमेरिका एवं ब्रिटेन के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौते सम्पन्न करने की चर्चा तेज गति से चल रही है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान यह घोषणा की गई थी कि भारत और अमेरिका के बीच विदेशी व्यापार को 50,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के स्तर पर लाए जाने के प्रयास किए जाएंगे। इस सम्बंध में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर तेजी से काम चल रहा है।  दूसरे, अब भारत को उद्योग एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ानी होगी। हर क्षेत्र में लागत कम करनी होगी ताकि भारत में उत्पादित वस्तुएं विश्व के अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में खाड़ी हो सकें। भारत में रिश्वतखोरी की लागत को भी समाप्त करना होगा। भारत में निचले स्तर पर घूसखोरी की लागत बहुत अधिक है। भूमि, पूंजी, श्रम, संगठन एवं तकनीकि की लागत कम करनी होगी। कुल मिलाकर व्यवहार की लागत को भी कम करना होगा। भारतीय उद्योगों को अन्य देशों के उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना ही इस समस्या का हल है ताकि भारतीय उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद अन्य देशों के साथ विशेष रूप से गुणवत्ता एवं लागत के मामले में प्रतिस्पर्धा कर सकें। निजी क्षेत्र को लगातार प्रोत्साहन देना होगा ताकि निजी क्षेत्र का निवेश उद्योग के क्षेत्र में बढ़ सके। आज भारत में पूंजीगत खर्चे केवल केंद्र सरकार द्वारा ही बहुत अधिक मात्रा में किए जा रहे हैं। आज देश में हजारों टाटा, बिरला, अडानी एवं अम्बानी चाहिए। केवल कुछ भारतीय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से अब काम चलने वाला नहीं हैं। भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनाने का समय अब आ गया है। तीसरे, मेक इन इंडिया ट्रम्प के टैरिफ युद्ध का सही जवाब है। आज भारत को सही अर्थों में “आत्मनिर्भर भारत” बनाए जाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत के लिए केवल अमेरिका ही विदेशी व्यापार के मामले में सब कुछ नहीं होना चाहिए, भारत को अपने लिए नित नए बाजारों की तलाश भी करनी होगी। एक ही देश पर अत्यधिक निर्भरता उचित नहीं है। स्वदेशी उद्योगों को भी बढ़ावा देना ही होगा। प्रहलाद सबनानी 

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