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फैसला: लघुकथा नहीं, संवेदना का साहसी दस्तावेज़

— डॉ. अमित तिवारी, समीक्षक एवं साहित्यकार

“मैंने जो देखा, महसूस किया, और भीतर जिया — उसे ही इन पन्नों पर उतार दिया।” डॉ. सत्यवान सौरभ की यही पंक्ति उनके लघुकथा संग्रह “फैसला” की आत्मा बनकर उभरती है। जब समकालीन हिंदी साहित्य में लघुकथा को महज़ लघुता का पर्याय मान लिया गया है, ऐसे समय में यह संग्रह उस परंपरा को पुनर्जीवित करता है जहाँ कम शब्दों में गहरी बात कही जाती है—बिना शोर, बिना बनावट, लेकिन पूरे आत्मबल और सामाजिक विवेक के साथ।

सामाजिक यथार्थ का निर्भीक दर्पण

“फैसला” की लघुकथाएँ समाज के उन दबे-छुपे सवालों को उठाती हैं, जिन पर आमतौर पर साहित्य मौन रहता है—बुज़ुर्गों की उपेक्षा, स्त्रियों की चुप्पी, रिश्तों की खोखली होती परिभाषा, बच्चों में नैतिक शिक्षा का ह्रास, और शिक्षित समाज की संवेदनहीनता। ‘थाली’, ‘चुप्पी’, ‘वसीयत’, ‘माफ़ करना माँ’, ‘गूंगा टीवी’ जैसी लघुकथाएँ पाठक को भीतर से झकझोरती हैं।

लेखक किसी आदर्श दुनिया की कल्पना नहीं करते, बल्कि उसी दुनिया को हमारे सामने लाते हैं जिसमें हम जीते हैं—फर्क बस इतना है कि उन्होंने ‘देखा’ नहीं, ‘महसूस’ किया है, और यह अंतर ही उनकी रचनात्मकता को विशिष्ट बनाता है।

शैली और भाषा: सरलता में गहराई

डॉ. सौरभ की भाषा सौंदर्य का नहीं, सच्चाई का औज़ार है। उनकी शैली में कोई शब्दाडंबर नहीं, कोई भाषाई चमत्कार नहीं, फिर भी हर कहानी के अंत में एक ऐसा वाक्य होता है जो सीधे हृदय में उतरता है—जैसे कि:

“बीमारी नहीं मारती बेटा, बेबसी मारती है।”

“हर अंत, एक ‘फैसला’ मांगता है।”

ऐसे वाक्य महज़ पंक्तियाँ नहीं, बल्कि संवेदना के हस्ताक्षर हैं। यह शैली पाठक को पढ़ने की नहीं, महसूस करने की प्रक्रिया से जोड़ती है।

पात्र: हमारे बीच के लोग

इन कहानियों के पात्र कोई नायक-नायिका नहीं हैं—वे माँ हैं, बहू हैं, बूढ़े हैं, बच्चे हैं, शिक्षक हैं, बेटे हैं। ये सब हमारे घरों, पड़ोस, मोहल्लों से उठे हैं। हर पात्र का संघर्ष निजी होते हुए भी सामूहिक है। कहानी ‘दूसरा बच्चा’ में रीना का आत्मनिर्णय, ‘पुरानी किताब’ में एक दादा की अधूरी प्रेमकथा, ‘कोचिंग’ में एक माँ का विश्वास—ये सब सामाजिक विमर्श के निजी छोर हैं।

स्त्री पात्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं—वे ‘अबला’ नहीं, बल्कि चुप प्रतिरोध की साक्षात मूर्ति हैं। ‘चुप्पी’ में बहू का अंतिम संवाद मानो हर चुप महिला की चीख बन जाता है।

लघुकथा की कसौटी पर खरा

“फैसला” की लघुकथाएँ उस अनुशासन का पालन करती हैं, जो एक सच्चे लघुकथाकार को परिभाषित करता है—संक्षिप्तता, स्पष्टता, और प्रहारक क्षमता। हर कथा में आरंभ, मध्य और अंत का संतुलन है, और अंत में एक ऐसा मोड़ जो पाठक को सोचने पर विवश करता है।

नैतिकता और विचारशीलता की पुनर्स्थापना

इस संग्रह की खूबी यह है कि यह नैतिक उपदेश नहीं देता, पर हर कहानी अपने पीछे एक नैतिक प्रश्न छोड़ जाती है। लेखक का उद्देश्य कोई उपदेश देना नहीं, बल्कि पाठक के भीतर सवाल खड़े करना है। हर कथा के बाद पाठक थोड़ी देर ठहरता है—कभी आत्मग्लानि में, कभी सोच में, कभी सिर्फ चुप होकर।

समकालीन संदर्भों में प्रासंगिक

डॉ. सत्यवान सौरभ समसामयिक संदर्भों को भी कहानियों में निपुणता से पिरोते हैं—‘कोचिंग’, ‘गूंगा टीवी’, ‘NGO और वृद्धावस्था’, ‘किताबों का महत्व’, ‘संवेदना की कमी’—हर कहानी आज के समाज की पहचान कराती है।

 यह संग्रह क्यों अनिवार्य है?

“फैसला” केवल लघुकथाओं का संग्रह नहीं है, यह एक लेखक की संवेदना, उसकी सामाजिक ज़िम्मेदारी और उसके आत्म-संघर्ष का दस्तावेज़ है। यह संग्रह बताता है कि लेखन, अगर सच्चा हो, तो वह समाज को आईना दिखाने का सबसे सशक्त माध्यम बन सकता है। हर कहानी हमें कुछ ‘फैसला’ करने पर मजबूर करती है—अपने भीतर, अपने रिश्तों में, अपने समाज को लेकर। डॉ. सत्यवान सौरभ का यह कार्य हिंदी लघुकथा साहित्य में एक मील का पत्थर है, जो भावुकता, विवेक और सामाजिक चेतना का संतुलित समागम है।

यह संग्रह पढ़ा नहीं, जिया जाना चाहिए।

लेखक परिचय:

डॉ. अमित तिवारी

आलोचक, शिक्षाविद् और समकालीन साहित्य के गहन पाठक। हिंदी आलोचना में सक्रिय योगदान, विशेष रुचि—लघुकथा, स्त्री विमर्श और सामाजिक यथार्थ।

पुस्तक परिचय: “फैसला” — आधुनिक लघुकथा संग्रह

लेखक: डॉ. सत्यवान सौरभ

कॉपीराइट: © 2025 – सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित

प्रथम संस्करण: 2025

आईएसबीएन: 978-6-9433-0749-9

प्रकाशक: आर.के. फीचर्स, प्रज्ञांनशाला (पंजीकृत), भिवानी, हरियाणा

मूल्य: ₹250/-

पृष्ठ संख्या: (यह जोड़ना लाभकारी होगा, कृपया बताएं)

भाषा: हिंदी

शैली: समकालीन सामाजिक लघुकथाएँ

प्रारूप: प्रिंट संस्करण (Paperback)

प्रकार: कथा-संग्रह (Laghukatha Anthology)

ईरान और इजरायल के तीव्र होते युद्ध से बढ़ते खतरे

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– ललित गर्ग –
हिंसा, युद्ध, आतंकवाद, आर्थिक प्रतिस्पर्धा से त्रस्त दुनिया में क्या अब शांति एवं अमन की संभावनाओं पर विराम लग गया है? क्या शांतिपूर्ण नये विश्व की संरचना अब दिवास्वप्न है? रूस और यूक्रेन के लम्बे युद्ध के बाद इजराइल और ईरान का युद्ध विश्व के लिये महाविनाश की टंकार है। इस युद्ध के खतरे बढ़ते ही जा रहे हैं। अब तक के नौ दिनों के युद्ध में ईरान और इजरायल में सैकड़ों की मौत, हजारों घायल, अरबों का नुकसान, दुनिया में अनिश्चिंतता एवं भय का माहौल, तेल की बढ़ती कीमतों से महंगाई बढ़ने की आशंका ने समूची दुनिया को डरा रखा है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गंभीर नुकसान पहुंचा है, लेकिन नष्ट नहीं किया गया है। अमेरिका और इजराइल का मानना है कि ईरान ने परमाणु बम बनाने की क्षमता हासिल कर ली है और अगर अब उसे नहीं रोका गया, तो खतरा पूरी दुनिया को होगा। इजराइल इसी खतरे को मिटाने की बात कहकर ईरान पर तीव्र से तीव्रत्तर हमले कर रहा है और ईरान भी जबावी हमलों में इजरायल में तबाही मचा रखी है। युद्ध भले ही इन दो देशों के बीच हो रहा है, लेकिन उसका प्रभाव समूची दुनिया पर हो रहा है। इस संघर्ष को रोकना आवश्यक है, भले ही अमेरिका अभी तक मैदान में नहीं उतरा और यूरोप अपनी तरफ से कोशिश कर रहा है। इस युद्ध को रोकने के लिये बातचीत ही एकमात्र रास्ता है।
ईरान और इजरायल संघर्ष की वजह से दुनिया में अनिश्चिंतता एवं अस्थिरता के बादल मंडरा रहे हैं। विशेषतः तेल के दाम आसमान छूने लगे हैं। पिछले दिनों क्रूड ऑयल के दाम में एक ही दिन में पिछले तीन साल की सबसे बड़ी तेजी देखी गयी है। दोनों देश एक-दूसरे के ऊपर मिसाइलों से हमला कर रहे हैं, परमाणु युद्ध की आशंकाएं उग्र होती जा रही है। दोनों देशों के बीच फिलहाल इस युद्ध के रुकने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। तेल की बढ़ती कीमतों ने भारत समेत दुनियाभर के लिए संकट पैदा कर दिया है। क्रूड ऑयल की ग्लोबल डिमांड का 2 प्रतिशत ईरान से आता है। यहां के खरग द्वीप से करीब 90 प्रतिशत तेल बाहर भेजा जाता है। सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि क्रूड शिपमेंट में कमी आई है। पूर्ण युद्ध की स्थिति में ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। इससे होकर दुनिया की 20 प्रतिशत नेचुरल गैस और एक तिहाई तेल ट्रांसपोर्ट होता है। यह रूट बाधित हुआ तो कच्चे तेल में 20 प्रतिशत तक उछाल आ सकता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के अनुसार इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई से आने वाला कच्चा तेल, जो होर्मुज से होकर गुजरता है, भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का लगभग 45-50 प्रतिशत है। एक तथ्य यह भी है कि ईरान भी जानबूझकर तेल की कीमतों को आसमान छूने के लिए मजबूर करके ट्रम्प प्रशासन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है और पश्चिमी देशों में मुद्रास्फीति बढ़ा सकता है।
ईरान और इजरायल के युद्ध के जटिलतर एवं घातक होते जाने के ही संकेत मिल रहे हैं। इजरायल चाहता है कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो और अयातुल्ला अली खामेनेई के शासन का अंत हो। हालांकि इस बात की गारंटी डॉनल्ड ट्रंप या नेतन्याहू में से कोई नहीं ले सकता कि खामेनेई को हटाने से समस्या का समाधान हो जाएगा। यह कैसे कहा जा सकता है कि नई सत्ता को परमाणु ताकत बनने में कोई दिलचस्पी नहीं होगी, वह भी जब उसके पास अमेरिका और इजरायल के हिसाब से जरूरी साधन मौजूद हैं। इन हवाई हमलों से या जमीन पर सीधी लड़ाई लड़कर भले ही ईरान के इन्फ्रास्ट्रक्चर को खत्म कर दिया जाये, लेकिन ईरान के उस तकनीकी ज्ञान को कैसे खत्म किया जा सकता है, जो ईरानी वैज्ञानिकों ने बरसों की मेहनत से हासिल की है। ऐसे में विदेशी दबाव में हुआ बदलाव ईरान को और ज्यादा कट्टरता की ओर ही ले जायेगा। ऐसे में अमेरिका या इजराइल के हमलों से ईरान में आमूल-चूल परिवर्तन होना संभव प्रतीत नहीं होता। हकीकत में यह काम ईरानी जनता पर छोड़ना चाहिए, बदलाव की मांग वहां से उठनी चाहिए। ईरान के लोग भी अपनी हुकूमत के खिलाफ है, भीतर-ही-भीतर आक्रोश है, इसे आंदोलन का रूप देकर ईरान में सत्ता परिवर्तन का माहौल बनाना चाहिए। यही ईरान के लिये बेहतरी का रास्ता है, क्योंकि परमाणु हथियार बनाने की जिद्द में बहुत सारे संसाधनों को बर्बाद कर दिया है। इराक, लीबिया, सीरिया – कई उदाहरण हैं, जहां पश्चिमी ताकतों ने अपने हिसाब से बदलाव लाने के प्रयास किये, लेकिन इनमें से कहीं भी नतीजा मन-मुताबिक एवं सफल-सार्थक नहीं रहा। ये देश आज भी अस्थिर हैं। तेहरान को लेकर कोई भी दुस्साहस ईरान को भी इन्हीं मुल्कों की श्रेणी में ला सकता है। ऐसी स्थितियों में कैसे बदलाव की आशा की जा सकती है?
अमेरिका हो या इजरायल, ईरान या दुनिया की अन्य महाशक्तियों उनकी तरफ से ऐसी कोई पहल होती हुई नहीं दिख रही है, जिससे लगे कि वे यह संघर्ष टालना चाहते हैं। इजराइल का कहना है कि वह ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को खत्म करने के लक्ष्य को हासिल होने तक युद्ध नहीं रोकेगा, लेकिन क्या ऐसा संभव है? ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची का कहना है कि कोई भी बातचीत इजराइली हमले रुकने के बाद ही होगी। दोनों देशों की जिद्द एवं अकड से प्रतीत नहीं होता कि शांति एवं युद्ध विराम का रास्ता संभव है। ईरान निश्चित रूप से दोषी है, दुनिया में अशांति का बड़ा कारण भी है। क्योंकि उसने अपने परमाणु-शक्ति के अपने प्रयासों को इस हद तक आक्रामक रूप से छिपाया कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को भी कहना पड़ा कि ईरान अपने परमाणु अप्रसार दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है। वैसे, इजराइल ने पिछले 15 वर्षों में कई बार ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर निशाना साधा है, लेकिन हर बार वह या तो अमेरिकी दबाव में या अपनी सैन्य क्षमताओं पर संदेह के कारण अंतिम समय पर पीछे हट गया था। सवाल यह भी है कि इस संघर्ष का इराक, लेबनान, सीरिया और यमन पर क्या असर होगा, क्योंकि वहां पर ईरान एक लंबे समय से अपना प्रभाव जमाए हुए है और सशस्त्र उग्रवादियों एवं आतंकवादियों को पोषित करता आया है। हिजबुल्ला की रीढ़ तोड़ने से इस परिदृश्य में बदलाव की शुरुआत पहले ही हो चुकी है और लेबनान-सीरिया में पहले ही इसका लाभ मिल चुका है, जहां नए, बहुलतावादी नेताओं ने सत्ता संभाली है। ईरान के प्रभाव-क्षेत्र से इराक का पलायन भी वहां के लोगों के बीच व्यापक रूप से लोकप्रिय रहा है।
ईरान की जनता अपने शासकों के प्रति नाराज है। वह सत्ता परिवर्तन चाहती है, इसलिये इजराइल से युद्ध में जनता का समर्थन नगण्य है। इसका फायदा इजरायल को मिल रहा है, इसी कारण इजरायल ईरान के शीर्ष मिलिट्री अधिकरियों की सटीक लोकेशन खोजकर उन्हें मार गिराने में सफल हो पायी है। इससे मालूम होता है कि कितने ईरानी अधिकारी इजराइल के लिए काम करने के लिए तैयार हैं, क्योंकि वे अपनी सरकार को नापसंद करते हैं। बावजूद इसके अगर इजराइल अपने प्रयास में विफल हो जाता है और तमाम चोटें खाने के बावजूद ईरान परमाणु हथियार बनाने में सक्षम हो जाता है तो इससे क्षेत्र पहले से कहीं अधिक अस्थिर हो जाएगा। तेल संकट भी बढ़ेगा और संभवतः ईरान अमेरिका-समर्थक अरब शासनों पर हमला करने के लिए प्रेरित हो सकता है। तब अमेरिका के पास इस लड़ाई में कूदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। ऐसी स्थितियां दुनिया के लिये अधिक घातक होगी, दुनिया में युद्ध के गहराते संकटों से मुक्ति का कोई तो रास्ता निकलना ही चाहिए।

सदियों पुराना है भारत में योग का इतिहास

  • योगेश कुमार गोयल
    दुनियाभर के 170 से भी ज्यादा देश प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाते हैं और योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने का संकल्प लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखे गए प्रस्ताव के जवाब में 11 दिसंबर 2014 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना की थी और वैश्विक स्तर पर पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था। इस वर्ष पूरी दुनिया ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग’ थीम के साथ 11वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रही है। प्रतिवर्ष यह दिवस मनाने का उद्देश्य योग को एक ऐसे आंदोलन के रूप में बढ़ावा देना है, जो व्यक्ति की तन्यकता को उन्नत करता है और समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए कल्याण को बढ़ावा देता है। वैसे तो योग को विश्व स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सतत प्रयासों के चलते वर्ष 2015 में अपनाया गया था किंतु भारत में योग का इतिहास सदियों पुराना है। माना जाता रहा है कि पृथ्वी पर सभ्यता की शुरुआत से ही योग किया जा रहा है लेकिन साक्ष्यों की बात करें तो योग करीब पांच हजार वर्ष पुरानी भारतीय परंपरा है। करीब 2700 ईसा पूर्व वैदिक काल में और उसके बाद पतंजलि काल तक योग की मौजूदगी के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं।
    महर्षि पतंजलि ने अभ्यास तथा वैराग्य द्वारा मन की वृत्तियों पर नियंत्रण करने को ही योग बताया था। हिंदू धर्म शास्त्रों में भी योग का व्यापक उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही अद्वेतानुभूति योग कहलाता है। इसी प्रकार भगवद्गीता बोध में वर्णित है कि दुःख-सुख, पाप-पुण्य, शत्रु-मित्र, शीत-उष्ण आदि द्वंदों से अतीतय मुक्त होकर सर्वत्र समभाव से व्यवहार करना ही योग है। भारत में योग को निरोगी रहने की करीब पांच हजार वर्ष पुरानी मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक पद्धति के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो भारतीयों की जीवनचर्या का अहम हिस्सा है। सही मायनों में योग भारत के पास प्रकृति प्रदत्त ऐसी अमूल्य धरोहर है, जिसका भारत सदियों से शारीरिक और मानसिक लाभ उठाता रहा है, लेकिन कालांतर में इस दुर्लभ धरोहर की अनदेखी का ही नतीजा है कि लोग तरह-तरह की बीमारियों के मकड़जाल में जकड़ते गए। वैसे तो स्वामी विवेकानंद ने भी अपने शिकागो सम्मेलन के भाषण में सम्पूर्ण विश्व को योग का संदेश दिया था लेकिन कुछ वर्षों पूर्व योग गुरु स्वामी रामदेव द्वारा योग विद्या को घर-घर तक पहुंचाने के बाद ही इसका व्यापक प्रचार-प्रसार संभव हो सका और आमजन योग की ओर आकर्षित होते गए। देखते ही देखते कई देशों में लोगों ने इसे अपनाना शुरू किया। आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में योग का महत्व कई गुना बढ़ गया है।
    योग न केवल कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित होता है बल्कि मानसिक तनाव को खत्म कर आत्मिक शांति भी प्रदान करता है। दरअसल यह एक ऐसी साधना, ऐसी दवा है, जो बिना किसी लागत के शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों का इलाज करने में सक्षम है। यह मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ाकर दिनभर शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। यही कारण है कि अब युवा एरोबिक्स व जिम छोड़कर योग अपनाने लगे हैं। माना गया है कि योग तथा प्राणायाम से जीवनभर दवाओं से भी ठीक न होने मधुमेह रोग का भी इलाज संभव है। यह वजन घटाने में भी सहायक माना गया है। योग की इन्हीं महत्ताओं को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा से आह्वान किया था कि दुनियाभर में प्रतिवर्ष योग दिवस मनाया जाए ताकि प्रकृति प्रदत्त भारत की इस अमूल्य पद्धति का लाभ पूरी दुनिया उठा सके। यह भारत के बेहद गर्व भरी उपलब्धि रही कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव के महज तीन माह के भीतर 177 देशों ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव पर स्वीकृति की मोहर लगा दी, जिसके उपरांत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 11 दिसम्बर 2014 को घोषणा कर दी गई कि प्रतिवर्ष 21 जून का दिन दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
    अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए 21 जून का ही दिन निर्धारित किए जाने की भी खास वजह रही। दरअसल यह दिन उत्तरी गोलार्ध का पूरे कैलेंडर वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। इस दिन की तिथि को ग्रीष्म संक्रांति के साथ मेल खाने के लिए बनाया गया था, जो उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है और प्रकाश और स्वास्थ्य का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति के नजरिये से देखें तो ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है तथा यह समय आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त करने में लाभकारी माना गया है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी योग के महत्व को स्वीकारने लगा है। इसलिए स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी है कि योग को अपनी दिनचर्या का अटूट हिस्सा बनाया जाए। बहरहाल, योग केवल एक व्यायाम नहीं है बल्कि यह शरीर और मन के साथ-साथ स्वयं को सशक्त बनाने का एक बेहतरीन तरीका है।

योग-क्रांति से नये मानव एवं नये विश्व की संरचना संभव

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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस, 21 जून, 2025 पर विशेष
– ललित गर्ग –

हिंसा, युद्ध, आतंकवाद, आर्थिक प्रतिस्पर्धा के दौर में दुनिया शांति एवं अमन चाहती है और इसका सशक्त माध्यम है योग। इंसान से इंसान को जोड़ने, शांति का जीवन जीने एवं स्वस्थ जीवन के लिये भारतीय योग के महत्व को दुनिया ने स्वीकारा है। योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है, यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का आधार है, संयम और अहिंसा प्रदान करने वाला तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है। योग के व्यापक मानवहितकारी महत्व के कारण ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिये गये अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद सर्वप्रथम इसे 21 जून 2015 को पूरे विश्व में मनाया गया। इस वर्ष 11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने योग दिवस की थीम ‘योगा फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ’ रखी है। इसे आसान भाषा में समझें तो ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योगा’ है। इसका मतलब है कि जिस तरह से पृथ्वी एक है ठीक उसी प्रकार से हमारा स्वास्थ्य भी एकमात्र है, जिसे हमें दुरुस्त रखने की जरूरत है। इसी से नये मानव एवं नये विश्व की संरचना संभव है।
आज जबकि मनुष्य जीवन अनेक असाध्य बीमारियों से जूझ रहा है, ऐसे जटिल स्वास्थ्य-संकट के दौर में इस थीम का मुख्य उद्देश्य है कि हमें हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करनी चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य एकमात्र ऐसी चीज है, जिसके सहारे आप अपना स्वस्थ जीवन जीते हुए न केवल परिवार, समाज, राष्ट्र बल्कि विश्व के लिये एक ऊर्जा, एक शक्ति एवं एक गति बन सकते हो। प्रधानमंत्री मोदी ने योग को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने वाली जीवनशैली के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने समाज के सभी वर्गों में योग की पहुंच बढ़ाने और स्वस्थ, खुशहाल और अधिक सामंजस्यपूर्ण विश्व के निर्माण के लिए योग को एक साधन के रूप में उपयोग करने की दिशा में संयुक्त प्रयासों की अपील की। योग केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि अपने भीतर एकता की भावना, अहिंसा एवं शांति, दुनिया और प्रकृति की खोज है। हमारी बदलती जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न महासंकट से निपटने में मदद कर सकता है।
योग एवं ध्यान के माध्यम से भारत दुनिया में गुरु का दर्जा एवं एक अनूठी पहचान हासिल करने में सफल हो रहा है। आज हर व्यक्ति एवं परिवार अपने दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव/दबाव महसूस कर रहा है। हर आदमी संदेह, अंतर्द्वंद्व और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है। मनुष्य के सम्मुख स्वस्थ-शांतिपूर्ण जीवन का संकट खड़ा है। मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है। मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। योग एक ऐसी तकनीक है, एक विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है। यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है। जब हम योग करते हैं, श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, प्राणायाम और कसरत करते हैं तो यह सब हमारे शरीर और मन को भीतर से खुश और प्रफुल्लित रहने के लिये प्रेरित करती है, जिसकी आज विश्व मानवता को सर्वाधिक अपेक्षा है।
एक ऐसे विश्व में रहने की कल्पना करें जहां आपकी प्रत्येक सांस मानसिक शांति, शारीरिक शक्ति और हमारे साझा ग्रह पर सद्भाव को बढ़ावा देती हो। एक समय में एक मुद्रा, एक श्वास, एक क्षण, यह जानने के लिए कि योग किस प्रकार आपके जीवन और आपके आस-पास की दुनिया को बदल सकता है, योग दिवस का मुख्य ध्येय है। मनुष्य, पशु और पौधे सहित सभी जीवित प्राणी हमारे ग्रह को अपना घर मानते हैं। हमें प्राकृतिक दुनिया के साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व बनाए रखते हुए इसकी देखभाल करनी चाहिए। योग हमें सद्भावना से रहना, सचेत रहना और समझदारी-विवेक से निर्णय लेना सिखाता है। हम योग का अभ्यास करके पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं और अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं। पर्यावरण की स्थिति का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। जब हम अपने पर्यावरण और खुद का ख्याल रखते हैं तो सभी को फायदा होता है। विश्व अनेक स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी समस्याओं का सामना कर रहा है, जिनमें प्रदूषण, तनाव और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ शामिल हैं। योग शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का एक त्वरित, प्राकृतिक साधन है।
अभी कुछ दिन पहले ही समाचारपत्रों में पढ़ा कि कैंसर क्यों होता है, इसके कई कारण हैं। एक कारण यह है कि जो लोग मस्तिष्क का सही उपयोग करना नहीं जानते, उनके कैंसर हो सकता है। मस्तिष्क विज्ञानी तो यह भी कहते हैं कि मस्तिष्क की शक्तियों का केवल चार या पांच प्रतिशत उपयोग आदमी करता है, शेष शक्तियां सुप्त पड़ी रहती है। यह भी कहा जाता है कि कोई मस्तिष्क की शक्तियों का उपयोग सात या आठ प्रतिशत करने में समर्थ हो जाए तो वह दुनिया का सुपर जीनियस बन सकता है। सबसे पहले हमारी जानकारी मस्तिष्क विद्या के बारे में होनी चाहिए। योग विद्या भारत की सबसे प्राचीन विद्या है। योगविद्या के आचार्यों ने मस्तिष्क विद्या से दुनिया का परिचय कराया था। हमारे मस्तिष्क में एक पर्त है एनीमल ब्रेन की। वह पर्त सक्रिय होती है तो आदमी का व्यवहार पशुवत हो जाता है। जितने भी हिंसक और नकारात्मक भाव हैं, वे इसी एनीमल ब्रेन की सक्रियता का परिणाम है। इसे संतुलित करने का माध्यम योग है।
हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा। ऐसा तब होगा, जब हम अपनी कमजोरियों पर ही नहीं, बल्कि उनसे उबरने के रास्तों पर भी विचार करेंगे। यहीं से हमारी तरक्की का रास्ता खुलता है और इसके लिये योग ही प्रभावी माध्यम है। हम अपनी समस्या को समझें और अपना समाधान खोजें। समस्याएं परेशान करती हैं। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं। आज विश्व में जो आतंकवाद, हिंसा, युद्ध, साम्प्रदायिक विद्धेष की ज्वलंत समस्याएं खड़ी हैं, उसका कारण भी योग का अभाव ही है। विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है- जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, उसे योग को अपनाना होगा। बार-बार क्रोध करना, चिड़चिड़ापन आना, मूड का बिगड़ते रहना- ये सारे भाव हमारी समस्याओं से लडने की शक्ति को प्रतिहत करते हैं। इनसे ग्रस्त व्यक्ति बहुत जल्दी बीमार पड़ जाता है। हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा। ऐसा तब होगा, जब हम योग को अपनी जीवनशैली बनायेंगे।
योग एवं ध्यान एक ऐसी विधा है जो हमें भीड़ से हटाकर स्वयं की श्रेष्ठताओं से पहचान कराती है। हममें स्वयं पुरुषार्थ करने का जज्बा जगाती है। स्वयं की कमियों से रू-ब-रू होने को प्रेरित करती है। स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराती है। आज जरूरत है कि हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिये औरों के मुंहताज न बने। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान हमारे भीतर से न मिले। भगवान महावीर का यह संदेश जन-जन के लिये सीख बने- ‘पुरुष! तू स्वयं अपना भाग्यविधाता है।’ औरों के सहारे मुकाम तक पहुंच भी गए तो क्या? इस तरह की मंजिलें स्थायी नहीं होती और न इस तरह का समाधान कारगर होता है। आधुनिक भौतिकवादी एवं सुविधावादी जिंदगी मनुष्य को अशांति, असंतुलन, तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट की ओर धकेल रही हैं, जिससे अस्त-व्यस्तता बढ़ रही है। ऐसी विषमता एवं विसंगतिपूर्ण जिंदगी को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाये रखने के लिये योग एक ऐसी रामबाण दवा है जो माइंड को कूल तथा बॉडी को फिट रखता है। योग से जीवन की गति को एक संगीत एवं शांतिमय रफ्तार दी जा सकती है। योग में गहरी दिलचस्पी लेने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक महान संकल्प लेकर उसे कार्यान्वित किया है। निश्चित ही उनकी योग-क्रांति विश्व मानवता के जीवन में विकास, अहिंसा, सुख और शांति का माध्यम बन रही है। आंतरिक व आत्मिक विकास, मानव कल्याण से जुड़ा यह विज्ञान सम्पूर्ण दुनिया के लिए एक महान तोहफा है। 

वृद्ध आश्रमों की कारागार में पड़े ‘उग्रसेन’ और आज के कंस

पश्चिमी संस्कृति के घातक हमला ने भारत पर परमाणु बम से भी भयंकर प्रभाव डाला है। इस हमला के चलते भारत का सांस्कृतिक गौरव हमारे सामने भंग हो रहा है । मर्यादाएं टूट रही हैं । समाज में अब से पूर्व के प्रत्येक काल की अपेक्षा कहीं अधिक बेचैनी अनुभव की जा रही है। नारी लज्जा को त्यागकर अपने आप निर्लज्ज होकर अपने सम्मान के साथ स्वयं खिलवाड़ कर रही है। प्रत्येक दिन कहीं ना कहीं से कोई ना कोई ऐसी घटना ‘सोशल मीडिया’ पर तैरती हुई मिल जाती है जिससे पता चलता है कि कहीं कोई सास अपने दामाद के साथ भाग रही है तो कहीं कोई बहू ससुर के साथ यही कृत्य कर रही है। कहीं कोई अपने बॉयफ्रेंड के साथ निर्लज्जता की सारी सीमाओं को त्याग रही है तो कहीं कोई पति की हत्या कर रही है । न्यूनाधिक यही स्थिति युवा वर्ग की भी है अर्थात लड़के भी इसी प्रकार की घटनाओं में लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। इन घटनाओं को देखकर बार-बार मन में यही विचार आता है कि अंततः हमारे समाज को हो क्या गया है ? हम जा किधर रहे हैं और इसकी अंतिम परिणति क्या होगी ?
अभी ‘सोशल मीडिया’ पर ‘फादर्स डे’ की बहुत सारी पोस्ट्स देखी गई हैं , उन्हें देखकर तो ऐसा लगता है कि जैसे भारतवर्ष में पिताओं के लिए बहुत समर्पित युवा वर्ग निवास करता है। परंतु सच्चाई इसके विपरीत है।’मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: और आचार्य देवो भव:’ की परंपरा में विश्वास रखने वाला भारत अपनी इस आदर्श वैदिक संपदा को लगभग लुटा चुका है। हम खंडहर के बियाबान जंगल में खड़े हैं। जहां एक नया भवन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। हमारे साथ दुर्भाग्य यह है कि हमने अपने भव्य भवन को अपने आप ही भूमिसात किया है और अब उसके मलबे से एक नया भवन बनाने की तैयारी कर रहे हैं, परंतु भवन बनाने की कला भूल गए हैं। पश्चिमी संस्कृति के हमला ने आज जितना निढाल इन तीनों संस्थानों को किया है, उतना किसी अन्य को नहीं। चरित्रहीन, पथ भ्रष्ट और सभी व्यसनों से युक्त शिक्षक ‘ टीचर’ के रूप में हमारे बच्चों का निर्माण कर रहे हैं। अपवादों को यदि छोड़ दें तो इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो गुरु, शिक्षक या आचार्य की परिभाषा तक नहीं जानते। अतः जिनका स्वयं का निर्माण नहीं हुआ, उन्हें निर्माण की जिम्मेदारी दे दी गई है। कहने का अभिप्राय है कि नए भवन को बनाने का ठेका उस ठेकेदार के पास है जो स्वयं भवन बनाना नहीं जानता।
ऐसे ‘दुष्ट ठेकेदारों’ के कारण ही युवा पीढ़ी विनाश की ओर बढ़ रही है। जानबूझकर पश्चिम के हमला को हावी प्रभावी बनाया जा रहा है। जानबूझकर वे परिस्थितियां निर्मित की जा रही हैं, जिनके चलते भारतीय सनातन का अंत हो और विदेशी विचारों की कलम भारतीय मानस पर चढ़ाई जा सके।
जानबूझकर एक षड़यंत्र के अंतर्गत हमारे युवाओं को विदेशों में नौकरी का झांसा देकर भेजा जा रहा है। जहां उन्हें चरित्रहीन बनाकर वहीं का नागरिक बना दिया जाता है। बहुत कम बच्चे ऐसे हैं जो भारत में रह गए अपने माता-पिता की ओर देखते हैं। उनमें से अधिकांश भारत और भारत में रहने वाले अपने परिवार अथवा माता-पिता को भूल जाते हैं। उनकी याद में माता-पिता का जीवन कैसे गुजरता है ? – इसे केवल वृद्ध माता-पिता ही जानते हैं। परंतु यदि हमारे भीतर थोड़ी सी भी मानवीय संवेदना है तो हम उसे अनुभव अवश्य कर सकते हैं।
मीडिया में छपी एक खबर के अनुसार काशीधाम वृद्धाश्रम में रह रहे 75 वर्षीय गोपाल कृष्ण भल्ला की आंखें अब भी अपने बेटे की प्रतीक्षा में दरवाजे पर लगी रहती हैं। दस वर्ष पहले उनका इकलौता बेटा उन्हें आश्रम में छोड़कर विदेश चला गया। उस समय उन्होंने कुछ नहीं कहा था। उन्होंने सोचा बेटा सफल होगा तो अवश्य लौटेगा। परन्तु बेटा गया तो फिर कभी लौटकर नहीं आया। कुछ समय बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया। गोपाल कृष्ण भल्ला ने अपनी जिंदगी भर की कमाई बेटे की पढ़ाई और उसके पालन पोषण में खर्च कर दी। लेकिन बुढ़ापे में उन्हें उस बेटे का सहारा तक नहीं मिला।
आज ऐसे कितने ही ‘गोपाल कृष्ण भल्ला’ हैं, जिनका बुढ़ापा तड़प रहा है , तरस रहा है और भटक रहा है – अपने ही कलेजा के टुकड़ा के लिए। जिन हाथों से बुढ़ापे में ऐसे माता-पिता को पानी और दूध का गिलास मिलना चाहिए था उन्हीं हाथों से उन्हें वृद्ध आश्रम की कठोर सजा दे दी गई है।
भारत के कथित सभ्य समाज ने इन वृद्ध आश्रमों को कठोर यातना केंद्र न मान कर वृद्ध आश्रम जैसा छद्म नाम दे दिया है। वास्तव में ये कथित वृद्ध आश्रम कंस की वह कारागृह हैं जिसमें उसने अपने ही पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर डाल दिया था। उस समय एक पिता जेल में था तो उसे मुक्त करने के लिए कृष्ण जी ने परिस्थितियों की ललकार को सुना और अपने आप को क्रांति के लिए समर्पित कर दिया। परंतु आज हम क्या कर रहे हैं ? हम तो प्रतीक्षा कर रहे हैं कि फिर कोई कृष्ण आएगा और कठोर कारागृह में पड़े ‘उग्रसेनों’ को मुक्त करेगा ? हमने मान लिया है कि जब पाप सिर से गुजर जाएगा तो फिर कोई ‘कृष्ण’ आएगा और इन पापों का अंत करेगा । हम यह भूल गए कि कृष्ण जी ऐसा कभी नहीं कह गए थे कि जब पाप बढ़ेगा तो मैं स्वयं आऊंगा और पापों का नाश करूंगा ? इसके विपरीत उन्होंने कहा था कि जब पाप की गतिविधियां बढ़ती हुई दिखाई दें , जब कोई कंस पैदा हो जाए और वह अपने ही पिता को कारागार में डाल दे तो उसे अपने लिए चुनौती मानकर उसके विरुद्ध सीना तानकर खड़े हो जाना। तब तुम क्रांति का बिगुल फूंकना और ऐसी व्यवस्था करना कि प्रचलित व्यवस्था धू धू कर जल उठे।
कृष्ण जी ने कभी नहीं कहा था कि तुम जातिवाद में बंटकर देश को तोड़ने के काम आना। उन्होंने यह भी नहीं कहा था कि तुम भाषा के नाम पर लड़ना, उन्होंने यह भी नहीं कहा था कि तुम माता-पिता और आचार्य का अपमान कर उन्हें जेल में डाल देना ? इसके विपरीत उन्होंने कहा था कि जब देश में जातिवाद बढ़े, भाषावाद और क्षेत्रवाद बढ़े , माता-पिता और आचार्य का अपमान हो तो ऐसा करने वालों के विरुद्ध विद्रोह करना। क्रांति करना। क्योंकि सनातन की रक्षा करना तुम्हारा सबसे बड़ा दायित्व है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

एकात्म मानववाद का संदेशवाहक है योग

डॉ. शंकर सुवन सिंह

मानव का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध होता है। समाज प्रकृति की व्यवस्था पर टिका हुआ है। प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है – प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य  प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति। प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं। मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। पृथ्वी मां स्वरुप है। प्रकृति जीवन स्वरुप है। पृथ्वी जननी है। प्रकृति पोषक है। पृथ्वी का पोषण प्रकृति ही पूरा करती है। जिस प्रकार माँ के आँचल में जीव जंतुओं का जीवन पनपता या बढ़ता है तो वहीँ प्रकृति के सानिध्य  में जीवन का विकास करना सरल हो जाता है। पृथ्वी जीव जंतुओं के विकास का मूल तत्व है। प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। मानव या व्यक्ति समाज की एक इकाई है। कई व्यक्तियों का समूह समाज कहलाता है। मानवता का एकीकृत होना ही एकात्म मानववाद है। मानवता एकता का प्रतीक है। एकता अखण्डता को दर्शाती है। योग भारत की अक्षुण्ण एकता का परिचायक है। शरीर और आत्मा का एकीकरण मानवता को जन्म देता है। योग शरीर को आत्मिक अनुभूति प्रदान करता है। स्व के साथ अनुभूति ही दर्शन कहलाता है। एकात्म मानववाद दर्शन का ही हिस्सा है। एकात्म मानववाद विचारधारा के जनक/प्रस्तावक पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी थे। एकात्म मानववाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शक दर्शन है। योग अपनेपन को विकसित करता है। अपनापन, अकेलापन को दूर करता है। अपनापन का शाब्दिक अर्थ है- आत्मीयता । आत्मीयता अर्थात अपनी आत्मा के साथ मित्रता। कहने का तात्पर्य- मनुष्य कभी अकेला नहीं होता है। मनुष्य जब नकारात्मक विचारों से ग्रसित होता है तो वह आत्मीयता अनुभव नहीं करता है। नकारात्मकता अकेलेपन को जन्म देती है। सकारात्मकता अपनेपन को जन्म देती है। अपनापन ही अकेलापन को दूर करता है। भीड़ में शामिल होने से हम अपने को अपने आप से अलग करते हैं ।भीड़ में शामिल होना अर्थात अपने को अपने आप से अलग करना हुआ। अलग होना आत्मीयता के लक्षण नहीं हैं। अपने आप को अपने से अलग करके कभी भी अकेलापन दूर नहीं किया जा सकता है। अतएव अपनी आत्मीयता को बनाए रखें। जिससे जीवन में अकेलेपन का अनुभव न हो। कोई भी व्यक्ति इस धरती पर अकेला नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति भौतिक रूप से भौतिक संसाधनो व चारो ओर के आवरण से घिरा हुआ है। देखा जाए तो भौतिक रूप से भी व्यक्ति अकेला नहीं है। अतएव हम कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति न तो आध्यात्मिक रूप से अकेला है और न ही भौतिक रूप से। योग से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। योग रोग को ख़त्म करता है। अयोग्य वह है जो असंतुलित है। असंतुलन आलस्य की निशानी है। आलसी व्यक्ति असंतुलित होता है। अयोग्य व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए अनुपयुक्त होता है। योग आलस्य और प्रमाद को दूर कर व्यक्ति को संतुलित करता है। संतुलन कर्मठता की निशानी है। योग्य व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त होता है। योग व्यक्ति को योग्य बनाता है। ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ में चरैवेति शब्द का उल्लेख मिलता है। चरैवेति अर्थात चलते रहना, रुकना नहीं। हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही आगे बढ़ते चलने का नाम जीवन है। जिस प्रकार बहते हुए जल में पवित्रता बनी रहती है उसी प्रकार निरंतर चलने वाले व्यक्ति में कर्मठता बनी रहती है। अयोग्यता ठहराओ के सिद्धांत पर आधारित है। अयोग्य व्यक्ति ठहरे हुए जल के समान है जबकि योग्य व्यक्ति बहते हुए जल के समान है। योग आंतरिक शांति या मन की शांति बनाए रखता है, जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है। योग से शांति, सामंजस्यता और शालीनता का विकास होता है। योग आत्मनिर्भरता के मार्ग को प्रशस्त करता है। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है। हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्श शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2025 में 11 वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है । 11 वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम/प्रसंग है- एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य। अर्थात पृथ्वी पर बसने वाले सभी मानव स्वस्थ्य हो और उनकी काया निरोगी हो। योग का स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। योग से शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है। यही नवीन ऊर्जा हमारे शरीर में नई कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। शरीर को पुनर्निर्मित करने का काम योग का है। योग से एकात्म मानववाद का विस्तार होता है। अतएव योग वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है) के दर्शन को फलीभूत करता है। योग से पूरा विश्व स्वस्थ्य होगा। एक स्वस्थ्य विश्व ही विश्व की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करेगा। अतः यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पूरे विश्व का स्वास्थ्य वैश्विक सम्पदा का आधार है। एक स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मस्तिष्क का वास होता है। स्वस्थ्य मस्तिष्क नशे जैसी आदतों से दूर रहता है। स्वस्थ्य मस्तिष्क स्वस्थ्य समाज की रीढ़ है। मानवता स्वस्थ्य मस्तिष्क में ही जन्म लेती है। एकात्म मानववाद की विचारधारा पूरे विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाती है। यदि पूरे विश्व की मानवता एक साथ एक मंच पर खड़ी हो जाए तो विश्व स्वर्ग हो जाएगा। इस्राइल- ईरान और रूस- यूक्रेन युद्ध अस्वस्थ्य विचारधारा का परिणाम है। मानवता जंग करना नहीं सिखाती। मानवता मानव के साथ प्रेम करना सिखाती है। एकात्म मानववाद एक स्वस्थ्य विचारधारा है। अतएव हम कह सकते हैं कि योग, एकात्म मानववाद का संदेशवाहक है।

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी यानी कि 21 जून 2025 को हम 11 वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहें हैं। पाठकों को बताता चलूं कि योग शब्द का अर्थ ‘एक्य’ या ‘एकत्व’ होता है, जो संस्कृत धातु ‘युज’ से निर्मित है। युज का अर्थ होता है ‘जोड़ना’। यानी योग का सीधा सा मतलब है ‘जोड़ना।’ योग जोड़ने का कार्य करता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि ‘जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।’ गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘योग : कर्मसु कौशलम्’ अर्थात् योग से कर्मों में कुश्लाता आती है। व्यावाहरिक स्तर पर योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का एक साधन है। आज की युवा पीढ़ी भौतिकता के साये में जी रही है, वह अतिमहत्वाकांक्षा की शिकार हो गई है। सच तो यह है कि आज की युवा पीढ़ी पढ़ाई, करियर, नौकरी-पेशा, विभिन्न पारिवारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक प्रतिस्पर्धा के बीच लगातार मानसिक दबाव में जी रही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इन चुनौतियों ने विशेषकर आज हमारी युवा पीढ़ी को इतनी अधिक नकारात्मकता से घेर लिया है कि वे आज लगातार तनाव और अवसाद के शिकार हो रहे हैं। इसका सीधा असर उनके मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। योग आसन, मुदाओं और बंद का समावेश है, जो हमें तनाव और अवसाद से तो बाहर निकालने की अभूतपूर्व क्षमताएं तो रखता ही है, यह हमारे जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भी ओतप्रोत करता है। आज के समय में महर्षि पतंजलि के योग सूत्र का श्लोक-‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’ अत्यंत ही प्रासंगिक प्रतीत होता है। उनके अनुसार मन की चंचल वृत्तियों का नियंत्रण ही योग है। यदि हम सरल शब्दों में कहें तो ‘व्यक्ति के लिए अपने मन की नकारात्मकता पर काबू पाना ही योग है।’ यानी योग ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे मानव अपने मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक स्वास्थ्य को बनाये रख सकता है। बहरहाल,यहां यदि हम योग की परिभाषाओं की बात करें तो अनेक योगियों, गुरूओं और विद्वानों ने इसे परिभाषित किया है। मसलन, श्री श्री रविशंकर के अनुसार ‘योग सिर्फ व्यायाम और आसन ही है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्त्व का स्पर्श लिये हुए एक आध्यात्मिक ऊँचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की एक झलक देता है।’ ओशो के अनुसार ‘योग को धर्म, आस्था और अंधविश्वास के दायरे में बांधना गलत है। योग विज्ञान है, जो जीवन जीने की कला है। साथ ही यह पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। जहाँ धर्म हमें खूंटे से बाँधता है, वहीं योग सभी तरह के बंधनों से मुक्ति का मार्ग है।’ बाबा रामदेव के अनुसार ‘मन को भटकने न देना और एक जगह स्थिर रखना ही योग है।’ आज जहां हम लोग नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में जी रहे हैं और हर कहीं निराशा और अवसाद से घिरे हुए हैं, वहां  ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध’ यानी योग से मन की नकारात्मकता को काबू में किया जा सकता है और सकारात्मकता की ओर कदम बढ़ाए जा सकते हैं। ‌बहरहाल, आज भारत योग की दिशा में निरंतर विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि योग न केवल भारत की प्राचीन व सनातन परंपरा व संस्कृति का अनमोल तोहफा है, बल्कि ये पूरी दुनिया के लिए सेहतमंद जीवन का रास्ता भी है। योग शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक संतुलन को भी बनाए रखने में मदद करता है।आज की बदलती जीवनशैली (आपा-धापी और दौड़-धूप भरी तनाव और अवसाद से ग्रस्त जीवनशैली) के बीच योग हमारे जीवन का अहम् हिस्सा बनता चला जा रहा है। पूरा विश्व आज योग के स्वास्थ्य लाभों के बारे में जान चुका है। ग्राम स्तर पर तो आज योग धीरे धीरे जन आंदोलन में बदलता चला जा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज ग्रामीण स्कूलों, आंगनवाड़ियों, पंचायत भवनों के साथ ही विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर योगा प्रोटोकॉल के अनुसार विशेष योग सत्रों का आयोजन किया जा रहा है।न केवल गांवों में बल्कि शहरों में भी लोग निरंतर योग और प्राणायाम की ओर आकर्षित होते चले जा रहे हैं। बच्चे हों जा बूढ़े, जवान,महिलाओं सभी के लिये योग बहुत ही जरुरी है क्योंकि आज वैश्वीकरण के और विज्ञान के इस युग में स्वास्थ्य के लिए किसी भी व्यक्ति विशेष के पास समय नहीं है। भागदौड़ भरी जिंदगी में योग जीवन के अंग के रूप में बहुत ही जरुरी इसलिए हैं क्योंकि इससे हमारे स्वास्थ्य, शरीर पर सकारात्मक और अच्छे प्रभाव पड़ते है।यह हमें विभिन्न बीमारियों से बचाता है और हमें स्वस्थ रखने में अंत्यंत ही उपयोगी व सहायक है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं को स्वस्थ बनाये रखने के लिए योग आज के जीवन की महत्ती आवश्यकता व जरूरत है। वैसे, यहां पाठकों को बताता चलूं कि योग दिवस का आधिकारिक नाम यूएन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। योग, ध्यान, बहस, सभा, चर्चा, विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति आदि के माध्यम से सभी देशों के लोगों के द्वारा मनाये जाने वाला एक विश्व स्तर का कार्यक्रम है।भारत सरकार इस पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रही हैं ताकि हम सभी स्वस्थ व बेहतर जीवन जी सकें। हर साल योग दिवस की एक थीम रखी जाती है। पाठकों को बताता चलूं कि वर्ष 2014 के दौरान  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ने यू.एन. की आम सभा से कहा था कि ‘योग भारतीय परंपरा का एक अनमोल उपहार है।’ बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि साल यानी 2025 में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम- ‘योग फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ’ यानी ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग’ रखी गई है। दरअसल, इस साल की यह थीम ये जाहिर करती है कि हमारी सेहत और धरती की सेहत एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। वास्तव में, यह भारत के उस पुराने विचार ‘वसुधैव कुटुंबकम’ से जुड़ी है, जिसका मतलब है-‘सारी दुनिया एक परिवार है।’ कहना ग़लत नहीं होगा कि योग हमारे मस्तिष्क और शरीर की एकता को संगठित करता है; विचार और कार्य; अंकुश और सिद्धि; मानव और प्रकृति के बीच सौहार्द; स्वास्थ्य और अच्छे के लिये एक पूर्णतावादी दृष्टिकोण है। ये केवल व्यायाम के बारे में ही नहीं बल्कि विश्व और प्रकृति के साथ स्वयं एकात्मकता की समझ को खोजने के लिये भी है। अपनी जीवनशैली को बदलने और चेतना को उत्पन्न करने के द्वारा ये जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में मदद कर सकता है। चलिये एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को अंगीकृत करने की ओर कार्य करें। योग दिवस के विभिन्न उद्देश्य तय किये गये हैं जो निम्न प्रकार से हैं- योग का मतलब होता है “जोड़” यह विश्व के समस्त लोगों को जोड़ने का काम करता है। लोगों के बीच वैश्विक समन्वय को मजबूत करता हैं। योग लोगों को शारीरिक और मानसिक बीमारियों के प्रति जागरुक बनाता है और साथ ही योग के माध्यम से विभिन्न बीमारियों का समाधन किया जा सकता है। वास्तव मेंं देखा जाये तो योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हमारी जीवन-शैली को बेहतर बनाता हैं। योग से हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य को लाभ होता है। कोई भी योग करके अपने वजन व कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम कर सकते हैं। योग हमें तनाव से दूर करके चिंता से राहत प्रदान करते हैं। यह हमारे अंतस की शांति के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।योग करके हम कैंसर, टीबी,ट्यूमर जैसी खतरनाक से खतरनाक बीमारियों से बच सकते हैं। यह हमारी प्रतिरोधक क्षमता में अपेक्षित सुधार कर ने में हमारी सहायता करते हैं। इससे हमारी सोच सकारात्मक, ऊर्जा में वृद्धि होती है और हम स्वयं को चुस्त दुरुस्त पाते हैं। शरीर शुद्ध होता है, टूट फूट से रक्षा होती हैं वगैरह वगैरह। योग व ध्यान से अंतर्ज्ञान की शक्ति में सुधार आते हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को खास बनाने के लिए सरकार ने 10 प्रमुख कार्यक्रमों की योजना बनाई है। इनमें क्रमशः योग संगम-1 लाख स्थानों पर सामूहिक योग प्रदर्शन, योग बंधन-योग से सामाजिक जुड़ाव बढ़ाना, योग पार्क-सार्वजनिक स्थानों पर योग केंद्र, योग समावेश-सबको जोड़ने वाली योग पहल,योग प्रभाव-योग के सकारात्मक प्रभाव पर चर्चा,योग कनेक्ट-डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से योग जोड़ना, हरित योग-पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा योग,योग अनप्लग्ड-सोशल मीडिया से दूर शांति से योग, योग महाकुंभ-विशाल योग आयोजन तथा संयोग – अन्य कलाओं व परंपराओं के साथ योग का मेल जैसे प्रमुख कार्यक्रमों की योजना बनाई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि योग हो या ध्यान, भारत ने युगों-युगों से विश्व को ऐसा कुछ दिया है, जो शायद ही विश्व के किसी अन्य देश ने संपूर्ण विश्व को दिया हो। शायद इसीलिए भारत को विश्व गुरू की संज्ञा दी जाती रही है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को ‘विश्व योग दिवस’ को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की गई थी। बहरहाल, ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि योग हमारी संस्कृति का हिस्सा भी है। वास्तव में सच तो यह है कि योग कोई धर्म नहीं है, यह जीने की एक कला है, जिसका लक्ष्य है- स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन। योग के अभ्यास से व्यक्ति को मन, शरीर और आत्मा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यह भौतिक और मानसिक संतुलन द्वारा शांत मन और संतुलित शरीर की प्राप्ति कराता है। तनाव और चिंता का प्रबंधन करता है। आज की भागमभाग व दौड़ धूप की इस जिंदगी में ‘योग व ध्यान’ रामबाण सिद्ध हो रहे हैं। हमें योग को अपनी रोजमर्रा की जीवनशैली में आवश्यक रूप से शामिल करना चाहिए व हमारी युवा पीढ़ी को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।

सुनील कुमार महला

इजराईल – ईरान युद्ध में भारत निभा सकता है अहम भूमिका

रूस – यूक्रेन एवं इजराईल – हम्मास के बीच युद्ध अभी समाप्त भी नहीं हुआ है और तीसरे मोर्चे इजराईल – ईरान के बीच भी युद्ध प्रारम्भ हो गया है। हालांकि इस बीच भारत – पाकिस्तान के बीच भी युद्ध छिड़ गया था परंतु भारत की बड़े भाई की भूमिका के चलते इस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त करने में सफलता मिल गई थी। दो देशों के बीच युद्ध में किसी एक देश का फायदा नहीं होकर बल्कि दोनों ही देशों का नुक्सान ही होता है। परंतु, आवेश में आकर कई बार दो बड़े देश भी आपस में टकरा जाते हैं एवं इन दोनों देशों के पक्ष एवं विपक्ष में कुछ देश खड़े हो जाते हैं जिससे कुछ इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं कि विश्व युद्ध छिड़ जाते हैं। वर्ष 1914 से वर्ष 1918 के बीच प्रथम विश्व युद्ध एवं वर्ष 1939 से वर्ष 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध इसके उदाहरण हैं। इजराईल – ईरान के बीच हाल ही में प्रारम्भ हुए युद्ध में अमेरिका भी कूदने की तैयारी करता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर ऐसा होता है तो बहुत सम्भव है कि ईरान की सहायता के लिए रूस एवं चीन भी इस युद्ध में कूद पड़ें एवं यह युद्ध तृतीय विश्व युद्ध का स्वरूप ले ले। ऐसा कहा जा रहा है कि इजराईल एवं अमेरिका ईरान में सत्ता परिवर्तन करवाना चाह रहे हैं ताकि ईरान में उनके हितों को साधने वाली सरकार स्थापित हो सके।

वैश्विक स्तर पर आज परिस्थितियां बहुत सहज रूप से नहीं चल रही है। विभिन्न देशों के बीच विश्वास की कमी हो गई है जिसके चलते छोटे छोटे मुद्दों को तूल दी जाकर आपस में खटास पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं। कुछ देश, दो देशों के बीच, इन मुद्दों को हवा देते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। जैसे आतंकवाद के मुद्दे को ही लें, यदि ये देश आतंकवाद से स्वयं ग्रसित हैं तो इनके लिए आतंकवाद बुराई की जड़ है और यदि कोई अन्य देश आतंकवाद को लम्बे समय से झेल रहा है तो इन देशों के लिए आतंकवाद कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। बल्कि, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को प्रोत्साहन दिया जाता हुआ दिखाई दे रहा है। चौधरी बन रहे कुछ देश अपनी विस्तरवादी नीतियों के चलते कई देशों में अपने हित साधने वाली सरकारों की स्थापना करना चाह रहे हैं एवं इन देशों में इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित करने के प्रयास कर रहे हैं ताकि ये देश आपस में लड़ाई प्रारम्भ करें। रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध इसका जीता जागता उदाहरण है । साथ ही, कुछ देशों की कथनी और करनी में पाए जाने वाले फर्क के चलते भी वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां बिगड़ रही हैं। चौधरी बन रहे देशों को तो उदाहरण पेश करते हुए अपनी कथनी एवं करनी में फर्क को समाप्त करना ही होगा। अन्यथा, वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां भयावह स्तर तक पहुंच सकती हैं। 

चूंकि इजराईल भी आतंकवाद से पीड़ित देश है एवं इजराईल की सीमाएं चार मुस्लिम राष्ट्रों से जुड़ी हुई हैं; यथा, उत्तर में लेबनान, दक्षिण पश्चिम में ईजिप्ट (एवं गाजा), पूर्व में जॉर्डन (एवं वेस्ट बैंक) एवं उत्तर पूर्व में सीरिया। अतः इजराईल अत्यधिक आक्रात्मकता के साथ आतंकवादियों (हम्मास एवं हूथी आदि संगठनों) से युद्ध करता रहता है। इस्लाम के अनुयायी यहूदियों के कट्टर दुश्मन हैं, इसके चलते भी इजराईल के नागरिकों को आतंकवाद को लम्बे समय से झेलना पड़ रहा है।  

ईरान के बारे में तो कहा जा रहा है कि ईरान स्थित लगभग 60 प्रतिशत मस्जिदों में इबादत के लिए कोई भी व्यक्ति पहुंच ही नहीं रहा है क्योंकि ईरान में एवं ईरान द्वारा पड़ौसी देशों में फैलाए गए आतंकवाद से ईरान के मूल नागरिक अत्यधिक परेशान हैं। महिलाओं पर आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से स्थानीय  नागरिक बहुत दुखी हैं। अतः अब वे अपने पुराने धर्म जोरोस्ट्रीयन को अपनाने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं अथवा इस्लाम धर्म का परित्याग करना चाह रहे हैं। जोरोस्ट्रीयन, ईरान का मूल धर्म हैं एवं यह अब ईरान के कुछ (बहुत कम) क्षेत्रों में सिमट कर रह गया है। भारत में भी जोरोस्ट्रीयन धर्म को मानने वाले पारसी समुदाय के कुछ नागरिक शांतिपूर्वक रह रहे हैं एवं भारत के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर निर्मित हो रही उक्त वर्णित परिस्थितियों के बीच भारत की विशेष भूमिका रह सकती है क्योंकि भारत के इजराईल एवं ईरान दोनों ही देशों के साथ आर्थिक रिश्ते बहुत मजबूत हैं। भारत, ईरान से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता रहा है एवं भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारी आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की है। चाबहार बंदरगाह का संचालन भी ईरान की सरकार के साथ भारतीय इंजीनियरों द्वारा ही किया जा रहा है। भारत और ईरान के बीच प्रतिवर्ष 200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का विदेशी व्यापार होता है। दूसरी ओर, इजराईल भारत का रणनीतिक साझीदार है। भारत इजराईल से भारी मात्रा में सुरक्षा उपकरण भी खरीदता है। भारत और इजराईल के बीच प्रतिवर्ष 650 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का विदेशी व्यापार होता है, इसमें भारत द्वारा इजराईल से आयात किये  जाने वाले सुरक्षा उपकरणों की राशि शामिल नहीं है। कुल मिलाकर, भारत के इजराईल एवं ईरान, दोनों देशों के साथ बहुत पुराने व्यापारिक एवं सांस्कृतिक रिश्ते हैं। 

भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति में “वसुधैव कुटुम्बकम”; “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” एवं “सर्वे भवंतु सुखिन:” की भावना पर विश्वास किया जाता है। अतः भारतीय नागरिक सामान्यतः शांत स्वभाव के होते है एवं पूरे विश्व में ही भ्रातत्व के भाव का संचार करते हैं। आज 4 करोड़ से अधिक भारतीय मूल के नागरिक विभिन्न देशों के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं। इन देशों में होने वाले अपराधों में भारतीय मूल के नागरिकों की संलिप्तता लगभग नहीं के बराबर पाई गई है। इसी कारण के चलते आज वियतनाम, जापान, इजराईल, आस्ट्रेलिया एवं सिंगापुर जैसे कई देश भारतीय मूल के नागरिकों को अपने देश में कार्य करने एवं बसाने में सहायता करते हुए दिखाई दे रहे हैं। खाड़ी के देश यथा ओमान, बहरीन, सऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात आदि में भी लाखों की संख्या में भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं एवं शांतिप्रिय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कुल मिलाकर, विभिन्न देशों में निवासरत भारतीय मूल के नागरिकों का रिकार्ड बहुत ही संतोषजनक पाया जाता है, क्योंकि, भारतीयों की मूल प्रकृति ही सनातन हिंदू संस्कारों के अनुरूप पाई जाती है एवं वे किसी भी प्रकार के कर्म में धर्म को जोड़कर ही इसे सम्पन्न करने का प्रयास करते हैं। और, धर्म के अनुरूप किये गए किसी भी कार्य से किसी का अहित हो ही नहीं सकता। 

उक्त वर्णित परिप्रेक्ष्य में वैश्विक स्तर पर जब चौधरी बन रहे देशों द्वारा अन्य देशों के साथ न्याय नहीं किया जाता हुआ दिखाई दे रहा है तो ऐसे में भारत को आगे आकर युद्ध में झौंके जा रहे देशों के नागरिकों की मदद करनी चाहिए। भारत की तो वैसे भी नीति ही “वसुधैव कुटुम्बकम” की है। यदि पूरे विश्व में भाईचारा फैलाना है तो सनातन हिंदू संस्कृति के अनुपालन से ही यह सब सम्भव हो सकता है। उक्त परिस्थितियों के बीच सनातन हिंदू संस्कृति की स्वीकार्यता विभिन्न देशों के नागरिकों की बीच तेजी से बढ़ भी रही है क्योंकि कई देश अब आतंकवाद से बहुत अधिक परेशान हो चुके हैं। अतः अब वे किसी तीसरे रास्ते की तलाश में हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच उनके पास अब विकल्प केवल सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कारों को अपनाने का ही बचता है, जिसके प्रति वे लालायित भी हैं। और फिर, आतंकवाद से यदि छुटकारा पाना है तो इससे लड़ते हुए छुटकारा पाने में तो कुछ देशों को कई प्रकार के बलिदान देने पड़ सकते हैं और यदि सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कारों को स्वीकार कर लिया जाता है तो कई देशों के नागरिकों को इस बलिदान से बचाया जा सकता है। अतः विश्व के देशों में सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कारों को तेजी से वहां के स्थानीय नागरिकों के बीच किस प्रकार फैलाया जा सकता है, इस विषय पर विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से अब गहन चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है।                  

प्रहलाद सबनानी 

उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर

‘ पारश्य ‘ देश ईरान कभी भारत का एक अंग रहा।
पारसी लोगों का मूल पूर्वज अपना भारत देश रहा।।

‘ आर्यान’ प्रांत ईरान बना, वैदिक धर्म अनुयायी था।
मैक्समूलर है लेखक इसका, ईरान सत्यानुरागी था।।

उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर।
वही पारसी कहलाए , हमें गर्व है उनकी हस्ती पर।।

भारत की नदियों के ऊपर नाम रखे निज नदियों के।
पारस से प्रमाणित होते संबंध हमारे सदियों के।।

उपकारों को नहीं भुलाया, सरस्वती और सरयू के ।
दोनों को सम्मान दिया कह हरहवती और हरयू के।।

भरत को बोला ‘फरत’ उन्होंने भूपालन को ‘बेबिलन’।
हम ही भूल गए निज गौरव, बिगड़ा भाषा उच्चारण।।

विस्मय होता है आज देखकर बच्चे शिक्षक बन बैठे।
मूल पिता पर रौब झाड़ते, रहते हर पल ऐंठे – ऐंठे।।

मेधा को लिया उधार हमीं ने, गौरव सारा बिसराया।
अपने ही बिछड़े परिजनों को , नहीं इतिहास बताया।।

सीख लीजिए पारस से यह, दूरी कितनी घातक होती ?
अपने ही जब नादिर बन जाते पीड़ा कितनी गहरी होती ?

हाथ पकड़ अपनों को रखिए, साथ हमेशा याद रखो।
आभास दीजिए अपनेपन का, कड़वाहट को दूर रखो।।

स्याह रात का अंधियारा था, ‘अपने’ हाथ झटक बैठे।
इस्लाम का झंडा हाथ उठाकर, देश में रक्त बहा बैठे।।

अपने ही अपने रह न सके , उन तूफानों की आंधी में।
मातृभूमि को किया विभाजित सहयोग दिया बर्बादी में।।

भूलो मत इतिहास कभी अपना हर पृष्ठ हमें बतलाता है।
किस-किस ने कब की गद्दारी, खोल खोल समझाता है।।

जो अतीत को भूलेगा, भविष्य उसी का उजड़ा करता।
जो बीते कल से शिक्षा ले, भविष्य उसी का सुधरा करता।।

भारत के बाहर भारत खोजो, गंभीर शोध अनुसंधान करो।
अपने योद्धा पूर्वजों का – तन, मन, धन से सम्मान करो।।

गले में डंक, दिल में सन्नाटा: मधुमक्खी से मृत्यु और मानव की नाजुकता

लंदन में उद्योगपति संजय कपूर की मृत्यु एक मधुमक्खी के डंक से हुई – यह घटना एक साधारण प्राणी द्वारा जीवन लीने की असाधारण त्रासदी बन गई। इस अप्रत्याशित मौत ने आधुनिक विज्ञान की सीमाओं, मानव शरीर की नाजुकता और स्वास्थ्य आपात स्थितियों को लेकर समाज की लापरवाही को उजागर किया है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि चेतावनी है कि प्रकृति के छोटे खतरे भी बड़े परिणाम ला सकते हैं। क्या हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसी आपात स्थितियों के लिए तैयार है? यह सवाल अब टाला नहीं जा सकता।

– प्रियंका सौरभ

12 जून 2025 को लंदन के एक पोलो मैदान में जब उद्योगपति संजय कपूर घोड़े पर सवार थे, किसी ने नहीं सोचा था कि प्रकृति का एक नन्हा जीव – मधुमक्खी – उनका जीवन लील लेगी। न गोली चली, न विस्फोट हुआ, न किसी ने जानबूझ कर हमला किया। बस एक मधुमक्खी उड़ती हुई उनके मुंह में घुस गई, जिसने या तो उनके गले में डंक मारा या श्वास नली में अवरोध पैदा कर दिया। इसके बाद आए हार्ट अटैक से संजय कपूर की मृत्यु हो गई।

सवाल यह है – क्या इतनी सी बात से मृत्यु संभव है?

जवाब है – हां, और यह हमारे समय की एक क्रूर सच्चाई है।

जब जीवन और मृत्यु के बीच सिर्फ एक डंक हो

हम आधुनिक युग में जी रहे हैं। स्मार्टफोन से लेकर अंतरिक्ष यान तक हम सबकुछ नियंत्रित करने का दावा करते हैं। मगर संजय कपूर की मृत्यु हमें यह याद दिलाती है कि मानव शरीर कितना नाजुक है और प्रकृति कितनी अपराजेय।

मधुमक्खी, जिसे आम तौर पर हम सिर्फ शहद बनाने वाली एक शांत प्राणी के रूप में जानते हैं, यदि गलती से गले में चली जाए और डंक मार दे, तो यह सीधे श्वास नली को अवरुद्ध कर सकती है। इसके अलावा यदि व्यक्ति को एपिटॉक्सिन नामक ज़हर से एलर्जी हो, तो एनाफिलेक्सिस जैसी स्थिति जानलेवा हो सकती है।

क्या यह पहली घटना है? नहीं! पर दुर्लभ है

माना जा रहा है कि संजय कपूर की मौत गले में मधुमक्खी के डंक और फिर एनाफिलेक्सिस की प्रतिक्रिया से हुई। हालाँकि उनकी कंपनी ने आधिकारिक रूप से सिर्फ “हार्ट अटैक” को कारण बताया, मगर करीबी मित्रों ने मधुमक्खी निगलने की घटना की पुष्टि की।

ऐसे मामले दुनिया में पहले भी दर्ज हुए हैं, लेकिन वे बहुत दुर्लभ होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मधुमक्खियों और ततैयों के डंक से हर साल लगभग 50,000 मौतें होती हैं। इनमें से अधिकांश एनाफिलेक्सिस या एक साथ कई डंक से होती हैं।

गले में डंक से मृत्यु के मामले कम होते हैं लेकिन होते ज़रूर हैं। भारत में 2021 में उत्तर प्रदेश के एक किसान की मृत्यु भी मधुमक्खियों के झुंड के हमले से हुई थी, जब उनके गले और चेहरे पर डंक लगे और श्वास लेने में तकलीफ़ हुई।

नेटफ्लिक्स, कल्पना और असलियत का टकराव

दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की घटना नेटफ्लिक्स की मशहूर सीरीज़ ब्रिजरटन के दूसरे सीज़न में दिखाई गई थी, जिसमें काउंट एडमंड ब्रिजरटन की मौत एक मधुमक्खी के डंक से होती है। वह दृश्य एक पटकथा थी – लेकिन अब वही दृश्य वास्तविकता बन चुका है। यह कल्पना और जीवन की भयानक समानता का नमूना है।

प्रकृति की चेतावनी और विज्ञान की सीमाएं

इस घटना को एक व्यक्तिगत त्रासदी के रूप में देखने की बजाय इसे एक प्रतीकात्मक चेतावनी समझना ज़रूरी है। हमने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में इतनी प्रगति की है कि दिल खोल कर शौर्य से बात कर सकते हैं, लेकिन जब एक मधुमक्खी इंसान की जान ले सकती है, तो हमें याद रखना चाहिए कि हम अभी भी प्रकृति के सामने बेहद कमजोर हैं।

हमने मिसाइलें बना ली हैं, रोबोट तैयार कर लिए हैं, लेकिन एनाफिलेक्सिस जैसी एलर्जी के प्रति आज भी अधिकांश लोगों में जागरूकता की कमी है। भारत जैसे देशों में तो एपिनेफ्रिन (EpiPen) जैसी जीवन रक्षक दवाएं आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं।

हेल्थ इमरजेंसी की उपेक्षा क्यों?

हम आज भी हेल्थ इमरजेंसी को गंभीरता से नहीं लेते। एम्बुलेंस समय पर नहीं आती, मेडिकल स्टाफ ट्रेन नहीं होता, और एलर्जी जैसी “छोटी” समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

संजय कपूर की मृत्यु एक अमीर आदमी की दुखद कहानी है। कल्पना कीजिए कि अगर यही घटना किसी गरीब मजदूर के साथ हुई होती, तो शायद हम खबर तक नहीं पढ़ते।

व्यवस्था के सवाल – क्या हम तैयार हैं ऐसी आपात स्थितियों के लिए?

भारत और दुनिया के कई हिस्सों में स्वास्थ्य व्यवस्था अभी भी मूलभूत प्राथमिकताओं से जूझ रही है। गांवों में एंटी एलर्जिक दवाएं, एयरवे ऑब्स्ट्रक्शन के लिए मेडिकल किट, प्रशिक्षित पैरामेडिक्स आदि तक नहीं हैं। शहरी क्षेत्र बेहतर हैं, लेकिन वहाँ भी बहुत कम लोग EpiPen लेकर चलते हैं – खासकर वे जिन्हें मधुमक्खी के डंक से एलर्जी है।

क्या हर डंक घातक है? नहीं। लेकिन लापरवाही ज़रूर हो सकती है।

मधुमक्खी का डंक आमतौर पर दर्द, सूजन और कुछ जलन पैदा करता है। परंतु कुछ लोगों के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इतनी संवेदनशील होती है कि एक छोटा सा डंक भी जीवन के लिए खतरा बन सकता है।

यह विषय सिर्फ एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि इस बात की गवाही है कि प्राकृतिक जोखिमों को हम कितना हल्के में लेते हैं।

क्या किया जाना चाहिए?

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और एंबुलेंस में EpiPen जैसी दवाएं रखी जानी चाहिए।

मधुमक्खियों और ततैयों की अधिकता वाले इलाकों में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

खेल आयोजनों में मेडिकल सपोर्ट यूनिट्स में एनाफिलेक्सिस प्रोटोकॉल लागू होना चाहिए।

स्कूलों में बच्चों को बताया जाए कि एलर्जी क्या होती है, और कैसे पहचानें।

मधुमक्खी, मृत्यु और मनुष्यता: एक अंतर्विरोध

मधुमक्खियां मानव सभ्यता की मित्र हैं – वे फूलों का परागण करती हैं, शहद देती हैं, जैव विविधता को संतुलित रखती हैं। मगर वही मधुमक्खी जब मौत का कारण बन जाए, तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि प्रकृति से दोस्ती भी एक मर्यादा मांगती है – लापरवाही की कोई जगह नहीं।

 एक डंक जो सवाल छोड़ गया

संजय कपूर का जाना न सिर्फ एक अमीर उद्योगपति की असमय मृत्यु है, बल्कि यह एक प्रतीक है – उस अनदेखे खतरे का जिसे हम रोज़ अपने आस-पास नज़रअंदाज करते हैं।

आज जरूरत है जागरूकता की, संवेदना की और उस वैज्ञानिक विवेक की, जो हमें सिखाए कि कभी-कभी जान बचाने के लिए हथियार नहीं, एक सुई काफी होती है।

– प्रियंका सौरभ

संकल्प से सिद्धि तक 11 बेमिसाल वर्ष

डॉ प्रदीप कुमार वर्मा

‘पहले कार्यकाल में लोग मुझे समझने की कोशिश कर रहे थे और मैं दिल्ली को समझने की कोशिश कर रहा था। दूसरे कार्यकाल में मैं अतीत की दृष्टिकोण से सोचता था। तीसरे कार्यकाल में मेरी सोच बदल गई है.और मेरा मनोबल ऊंचा है। मेरे सपने भी बड़े हो गए हैं।’ — नरेंद्र मोदी

26 मई, 2014 को जब नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी ने भारत के 15वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली तो देश एक नए युग में कदम रख रहा था। आज लगातार अपने तीसरे कार्यकाल में 11 साल बाद मोदी सरकार ने जिस तरह से नीतिगत फैसलों, जनकल्याण से संबंधित योजनाओं और सकारात्मक वैश्विक कूटनीति के माध्यम से देश को एक नई पहचान और सही दिशा दी है, वह कई मायनों में अभूतपूर्व कहीं जा रही है। मोदी सरकार का डंका अब देश के साथ-साथ विदेश में भी बज रहा है। सबका साथ सबका विकास के मूल मंत्र के साथ शुरू हुई यह बेमिसाल यात्रा अब विकसित भारत की ओर तीव्र गति से सतत अग्रसर है।

इन 11 वर्षों में मोदी सरकार के दूरगामी निर्णयों से न सिर्फ देश की दशा और दिशा बदली, बल्कि भारत को एक आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई है। 140 करोड़ देशवासियों के जीवन को आसान बनाती मोदी सरकार की योजनाएं आज देश के विकास में मील का पत्थर साबित हो रही है। सेवा सुशासन और गरीब कल्याण को समर्पित यह सरकार समावेशी विकास पर जोर दे रही है। इससे देश के लोगों को गुणवत्तापूर्ण जीवन शैली भी सुनिश्चित हुई है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के सिद्धांत को आत्मसात करते हुए समाज के अंतिम छोर तक योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है। इससे उन्हें बड़े पैमाने पर लाभ मिल रहा है। आज देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मध्यम वर्ग का है। कहना न होगा कि आर्थिक प्रगति के समेकित प्रयासों और विकास उन्मुख मॉडल से इस वर्ग का जीवन अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सुगम हो चुका है। भारत के आर्थिक सुधारों की चर्चा अब देश के बाहर विदेशों में भी हो रही है। भारत की स्वतंत्रता के 100वें वर्ष अर्थात 2047 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विकसित भारत का आह्वान आर्थिक विकास के स्वरूप में संरचनात्मक बदलाव, वित्तीय और सामाजिक समावेशन में सुधार, वैश्विक नजरिए से प्रतिस्पर्धा का उन्मुक्त माहौल, श्रम जनित क्षेत्रों में बाजार का निर्माण एवं ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के परिवेश का समायोजन है।

भारत की डिजिटल क्रांति से विश्व आश्चर्यचकित है। ऑनलाइन ट्रांजैक्शन आज लेनदेन की रीढ के रूप में तब्दील होते जा रहे हैं। छोटे अमाउंट के ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के मामले में मोदी सरकार की खिल्ली उड़ाने वाले आज खुद ही गदगद हैं। पूरे देश में जिस प्रकार छोटे से लेकर बड़े कारोबारी डिजिटल लेनदेन के माध्यम से अपना कारोबार कर रहे हैं, आम जनता को की परेशानी घटी है। मोदीजी के विरोधी भी जन-धन योजना के माध्यम से देश के 48.93 करोड़ से अधिक बैंक खाता खोलने के चलते उनके मुरीद हैं। अब देश के गरीबों के माथे पर अस्पतालों में इलाज और उसके महंगे बिल के भुगतान के लिए चिंता की लकीरें नहीं देखी जाती। अब तो 70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को भी इसमें शामिल कर दिया गया है। आयुष्मान भारत योजना 5 लाख रुपए तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा कवर करती है। देश के ग्रामीण क्षेत्र के 10 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए जाने से खासकर इन परिवारों की महिलाओं के स्वास्थ्य में भी सुधार देखा जा रहा है। महिला सशक्तिकरण के निमित्त बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से समाज में जागरूकता का स्तर बढ़ा है।

स्वच्छ भारत अभियान से 12 करोड़ शौचालय ग्रामीण इलाकों में सफाई के मामले में क्रांतिकारी परिवर्तन के वाहक बने हैं। स्वच्छता से संपन्नता के इस अभियान से देश में बाल मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिल रही है। जल जीवन मिशन से 11 करोड़ से ज्यादा परिवारों को पेयजल और गरीबों को 3.45 करोड़ से अधिक पक्का आवास उपलब्ध करवाया जाना भी इस सरकार की खास उपलब्धि है। भारत की अर्थव्यवस्था को चिंतनीय अवस्था से निकलकर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का श्रेय भी इस सरकार को जाता है। काले धन पर अंकुश लगाने के लिए नोटबंदी जैसे कदम भी उठाए गए। स्टार्टअप को प्रोत्साहन मिलने से लेकर विदेशी निवेश में लगातार बढ़ोतरी और इज ऑफ डूइंग में सुधार ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत को विश्व की अग्रणी आर्थिक शक्ति के तौर पर स्थापित किया है। आज भारत में पूरी दुनिया से निवेश हो रहे हैं। रोजगार का सृजन हो रहा है। कोविड के दौर में मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने नहीं दिया। इस दौर में कम समय के अंदर ही टीकों का निर्माण कर भारत ने पूरे विश्व में इसकी आपूर्ति की।

मोदी सरकार के राज में ‘विरासत भी विकास भी’ अब महज एक नारे की शक्ल में नहीं नजर आता, बल्कि इससे देश की संस्कृति, इसके धरोहरों और परंपराओं के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार भी सुनिश्चित हुआ है। पिछले वर्ष अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन देश के लिए गौरव एवं भावुकता का क्षण था। काशी, उज्जैन समेत देश के कई धार्मिक एवं तीर्थस्थलों के पुनरुद्धार एवं कायाकल्प कर मोदी सरकार ने धार्मिक पर्यटन को नया स्वरूप प्रदान किया है। करतारपुर कॉरिडोर को खुलवाने की पहल और बौद्ध सर्किट के निर्माण के प्रस्ताव से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों की आवाजाही सुनिश्चित होगी। चाहे G-20 के आयोजन में देश की सांस्कृतिक विविधता के दर्शन हों या योग दिवस के आयोजन की पहल — ऐसे आयोजनों ने देश का गौरव ही बढ़ाया है। महाकुंभ के अवसर पर पूरी दुनिया ने इसके वृहद और चुनौतीपूर्ण आयोजन को सराहा है।

मुस्लिम समाज में तीन तलाक के मुद्दे पर कानून बनाकर समाज की महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रयास मोदी सरकार ने किया। इस वर्ष वक्फ संशोधन अधिनियम के माध्यम से वक्फ की संपत्तियों के डिजिटाइजेशन एवं अन्याय प्रक्रियाओं के सुधार की रूपरेखा तैयार की गई। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत व्यापक बदलाव किए गए, जिसमें कौशल आधारित शिक्षा पर बोल दिया गया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी योजना के अंतर्गत उच्च शिक्षा के लिए 7.5 लाख रुपए तक के लोन का प्रावधान किया गया। जम्मू कश्मीर में धारा-370 की समाप्ति मोदी सरकार के कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर में अलगाववाद को खत्म करने की पहल करते हुए कई विद्रोही संगठनों से बातचीत कर इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए। इस सरकार ने देश में नक्सलवाद पर भी करारा प्रहार किया है, जिसके फलस्वरुप आज देश में नक्सलवाद अंतिम सांस से गिन रहा है।

भारत में आतंकवाद और इसके पोषकों के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। अब दुनिया भी मान रही है कि एक सॉफ्ट स्टेट की अवधारणा को भारत ने कहीं पीछे छोड़ दिया है। चाहे वर्ष 2016 में भारत के पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात हो या 2019 में पुलवामा में आतंकी हमले के बाद बालाकोट पर हवाई हमले का निर्णय — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जनभावना का उचित प्रतिनिधित्व करते हुए आतंकवादियों और उनके आकाओं को भरपूर सबक सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में प्रधानमंत्री के सशक्त नेतृत्व और सशस्त्र बलों के पराक्रम को पहलगाम नरसंहार के बाद पूरी दुनिया ने देखा है। मोदीजी की गर्जना ‘वहां से गोली चलेगी तो यहां से गोला चलेगा’ मोदी सरकार के आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को परिभाषित करता है।

गर्व के ग्यारह साल: मोदी सरकार की स्वर्णिम यात्रा

विष्णु दयाल राम

मोदी सरकार के उपलब्धियों से भरे 11 साल पूरे होने पर मुझे इस बात का गर्व है कि मैं भी बतौर सिपाही इस स्वर्णिम यात्रा में शुरू से शामिल रहा हूं। ये सरकार लगातार गरीबों, किसानों, लोअर मिडिल क्लास और आम लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने की कोशिश में लगी है और उस रास्ते पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही है। देेश आत्मनिर्भर बनने के साथ दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यस्था बन चुका है और विकसित भारत की राह पर अग्रसर है।

गरीबों और हाशिए पर रहने वालों के लिए तो सरकार की दर्जनों योजनाओं से क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है।
मैं बतौर जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र के लोगों से उनकी समस्याओं पर जब बात करता हूं तो वो भी उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में आ रहे बदलावों की चर्चा करते हैं। कुछ योजनाओं का मैं खास तौर से यहां जिक्र करना चाहता हूं जिसने ना सिर्फ लोगों की जिंदगी बदल दी बल्की इतिहास रच दिया।

सबसे पहले मैं पीएम जनधन योजना की बात करता हूं। इस योजना ने 55 करोड़ उन लोगों को देश के बैंकिंग सिस्टम से जोड़ दिया जिन्होंने 21वीं सदी आने के बावजूद बैंक का मुंह नहीं देखा था। मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो महसूस किया कि योजनाओं का लाभ और उसके तहत मिलने वाली राशि आखिर कैसे दूर दराज के उन लोगों तक बिना लीकेज के सुरक्षित पहुंचाया जाए। लाखों लोग इस योजना से वित्तीय तौर पर सशक्त हुए हैं। अब उनसे कोई सिग्नेचर करवा कर योजना की राशि का कुछ हिस्सा नहीं हड़प सकता। आज देश में 80 प्रतिशत व्यस्कों के पास बैंक खाते हैं। आज करीब 6 लाख गांवों को 5 किलोमीटर के भीतर बैंकिंग सेवाओं का फायदा मिल रहा है। इसी तरह डिजिटल लेनदेन का दायरा अब व्यापक हो गया है। गांव-देहात में भी लोग आपको बेहिचक धड़ल्ले से मोबाइल से पेमेंट करते दिख जाते हैं। मोदी सरकार ने करोड़ों लोगों को मुद्रा लोन के जरिए व्यवसाय करने और उसे बढ़ाने में मदद की। आंकड़ों की बात करें तो वित्त वर्ष 2025 में मुद्रा लोन का औसत आकार 1 लाख रुपए से ज्यादा हो गया है जो 2016 में 38 हजार था।

अब मैं आयुष्मान भारत- राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की चर्चा करता हूं। ये भी अपने आप में क्रांतिकारी योजना है, जो 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को मेडिकल कवरेज देती है। अस्पतालों में इलाज के लिए प्रति वर्ष 5 लाख तक का इंश्योरेंस कवर है। यानि बीमार पड़ने पर अगर भर्ती की नौबत आ गयी तो पैसे के जुगाड़ करने की टेंशन नहीं होगी। इस योजना में अब 70 साल से ज्यादा के बुजुर्गों को भी जोड़ा गया है, जिन्हें आय के साधन की परवाह किए बिना स्वास्थ्य कवरेज मिलता है। आयुष्मान भारत के अंतर्गत 1 लाख 76 हजार से अधिक आरोग्य मंदिर बने हैं।
इसी तरह जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली सस्ती दवाओं से लोगों को काफी राहत मिल रही है। सरकार के जेनरिक दवा के उत्पादन पर जोर देने से लोगों के पैसे बच रहे हैं।

ऐसे ही पीएम आवास योजना गरीब लोगों के अपने घर का सपना पूरा करने में मददगार साबित हो रही है। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े वैसे लोग जोकि मान बैठे थे कि वो कभी भी पक्के मकान में नहीं रह पाएंगे उनके लिए ये चमत्कार से कम नहीं है। 4 करोड़ से ज्यादा लोग इस योजना का लाभ ले चुके हैं। आने वाले समय में ये आंकड़ा बढ़ता चला जाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आते ही जब स्वच्छ भारत का नारा दिया था तो विपक्षी दलों ने खिल्ली उड़ाई थी। लेकिन ध्यान से स्वच्छ भारत मिशन की समीक्षा की जाए तो वो कालजयी फैसला था। प्रधानमंत्री के दृढ़संकल्प से पीढ़ियों से खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर माताओ-बहनों को घर में शौचालय मिल गया। 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक इस योजना के तहत 11 करोड़ से ज्यादा टॉयलेट बनाए जा चुके थे।
इसी तरह पीएम उज्ज्वला योजना से अब तक 10 करोड़ परिवारों को एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं। जिससे लकड़ी के चूल्हे में धुआं झेलती महिलाओं के खराब स्वास्थ्य की चिंता तो दूर हुई ही, घरेलू प्रदूषण भी कम हुआ। देश के कई इलाकों में लोग मीलों दूर से पानी लाने को मजबूर थे। ग्रामीण इलाकों में पीने को साफ पानी नहीं मिलता था। आज जल जीवन मिशन से पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो रही है।

मोदी सरकार शहरी और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर शुरू से सजग है, जिससे आम लोग भी लाभान्वित हुए हैं। एक्सप्रेस वे का फैलता जाल, सुंंदर सुंदर नेशनल हाईवे से लेकर शहरों के अंदर की सड़कें और ग्रामीण सड़कों का स्वरूप बदल चुका है। हिचकोले खाते हुए सफर अब इतिहास की बात हो चुकी है। गांवों का भ्रमण करके देखिए तो बदलाव साफ दिखता है। उदाहरण के तौर पर अगर मैं अपनी पलामू लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की बात करूं, तो यह निर्वाचन क्षेत्र को देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक माना जाता है लेकिन वहां भी केंद्र की योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया गया। पलामू जैसे अति पिछड़े जिले के विकास के लिए तकरीबन 50,000 करोड़ की राशि केंद्र सरकार से आवंटित हुआ, जिनमें प्रमुख रूप से रोड इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हुए।

मोदी सरकार ने पिछले 11 वर्षों में औपनिवेशिक काल के कानूनों को हटाकर और नए कानूनों को लागू करके भारतीय न्याय प्रणाली को आधुनिक, पारदर्शी, और नागरिक-केंद्रित बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारतीय न्याय संहिता और संबंधित कानूनों ने समयबद्ध न्याय, डिजिटल सुविधाओं, और आधुनिक अपराधों से निपटने की क्षमता को बढ़ाया है। यह निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो भारत को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने और स्वदेशी कानूनी ढांचे की दिशा में एक बड़ा कदम है।
लंबे अंतराल तक पुलिस सेवा में कार्य करने के अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं, खास तौर पर, भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलकर तीन नए कानून—भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)—जो 1 जुलाई 2024 से लागू किए गए, इन बदलावों का उद्देश्य औपनिवेशिक मानसिकता को खत्म करना, कानून को सरल और नागरिक-केंद्रित बनाना, और समकालीन चुनौतियों जैसे साइबर अपराध, आतंकवाद, और संगठित अपराध से निपटना है। भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 अब IPC की जगह लेता है। इसमें 533 धाराओं को संशोधित किया गया, 133 नई धाराएं जोड़ी गईं, 9 धाराओं को बदला गया, और 9 को हटाया गया। औपनिवेशिक राजद्रोह कानून (IPC धारा 124A) को समाप्त कर धारा 150 के तहत देश की संप्रभुता, एकता, और अखंडता के खिलाफ कृत्यों को दंडित करने का प्रावधान किया गया। इसमें मौखिक, लिखित, या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से देश के खिलाफ टिप्पणी करने पर 7 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। मॉब लिंचिंग को घृणित अपराध माना गया, जिसमें फांसी की सजा का प्रावधान है। नाबालिगों के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान जोड़ा गया। इतना ही नही, पहली बार कानून में आतंकवाद को परिभाषित किया गया, जिससे आतंकवादी गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई संभव होगी। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए अलग अध्याय जोड़ा गया। दुष्कर्म पीड़िताओं का बयान महिला पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज होगा, और मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों में देनी होगी।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 CrPC की जगह लाया गया, जिसमें समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान जोड़े गए। अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में या ऑनलाइन FIR दर्ज करा सकता है, जिससे शिकायत दर्ज करना आसान और तेज हुआ। अन्य प्रमुख कानूनी सुधार की बात करूं तो तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को गैर-कानूनी घोषित किया गया। इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाना और इस प्रथा पर रोक लगाना था। मोदी सरकार ने ब्रिटिश काल के लगभग 1500 औपनिवेशिक कानून, जो अब अप्रासंगिक थे, उनको निरस्त किया। दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास 7 रेस कोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया, जो औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने का हिस्सा था।

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाया गया, और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित किया गया। इससे केंद्रीय कानून वहां लागू हुए, और गैर-निवासी जमीन खरीद सकते हैं।