राजनीति डॉ.आंबेडकर को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता !

डॉ.आंबेडकर को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता !

डॉ सुधाकर कुमार मिश्रा                                             डॉ आंबेडकरजी भारतीय राजनीति के महान नेता थे। भारत के स्वतंत्रता के समय आंबेडकर जी  सामाजिक परिवर्तन चाहते थे, सामाजिक परिवर्तन के पुरोधा समाज की दुरावस्था एवं सामाजिक कुरीतियों को देखकर आत्मा से दु:खी थे और उनको बदलने के लिए  प्रयत्नशील थे । उनके सामाजिक कार्यक्रमों में तत्कालीन कांग्रेस ने रोड़ा लगाया था। कांग्रेस के सन् 1886 के दुसरे अधिवेशन में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्री दादाभाई नौरोजी ,जो भारत के व्यवृद्ध व्यक्ति थे और उदारवादी नेता थे  ने कहा था कि कांग्रेस संगठन को अपना  ध्यान राजनीतिक विषयों पर देना चाहिए। सन्  1887 के मद्रास अधिवेशन के समय भी कांग्रेस अध्यक्ष श्री बदरुद्दीन तैय्यब जी ने कहा कि कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने आपको  सामाजिक समस्याओं से अलग रखें। डॉ आंबेडकर जी ने अपना ध्यान बाल – विवाह , अछूतोद्धार,स्त्री वर्ग की प्रगति, अस्पृश्यता तथा अन्य रूढ़ियों के समाप्त करने का कार्य किया। यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि जिन लोगों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सत्ता प्राप्त किए , वे  समाज सुधार से कोसों दूर चले गए। आंबेडकर जी का कहना था कि “मैं सामाजिक सुधार को राजनीतिक सुधार की अपेक्षा अधिक मौलिक मानता हूं।”…

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शख्सियत यशपाल का आजादी की लड़ाई और साहित्य में योगदान

यशपाल का आजादी की लड़ाई और साहित्य में योगदान

–    कल्पना पाण्डे प्रसिद्ध हिन्दी कथाकार एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था। उनके पूर्वज हिमाचल के भूम्पल गांव, हमीरपुर के रहने वाले थे।…

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लेख भारत में बुज़ुर्ग आबादी की समस्याएँ

भारत में बुज़ुर्ग आबादी की समस्याएँ

–डॉ. सत्यवान सौरभ भारत की आबादी में वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ रहा है और यह प्रवृत्ति जारी रहने…

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राजनीति राजनीति के दलदल में खिला कमल : अटल बिहारी 

राजनीति के दलदल में खिला कमल : अटल बिहारी 

डा. विनोद बब्बर  पिछले कुछ दशकों से राजनीति कीचड़ का पर्याय बन चुकी है। शायद ही कोई चादर उजली हो। कुछ अपने कर्म तो कुछ…

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राजनीति संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर मोदी ने कॉंग्रेस की बखिया उधेड़ी

संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर मोदी ने कॉंग्रेस की बखिया उधेड़ी

विजय सहगल     संविधान की 75वी  वर्षगाँठ पर विशेष चर्चा की शुरुआत पर जहां बायनाड  से सांसद कॉंग्रेस की प्रियंका गांधी, लोकसभा मे अपने प्रथम सम्बोधन मे…

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राजनीति संविधान निर्माता अम्बेडकर के अपमान पर मचे सियासी तूफान के पूंजीवादी एजेंडे को ऐसे समझिए 

संविधान निर्माता अम्बेडकर के अपमान पर मचे सियासी तूफान के पूंजीवादी एजेंडे को ऐसे समझिए 

लीजिए, हमारे विपक्षी नेताओं को एक और अपमानजनक मुद्दा मिल गया ताकि संसद की जनहितकारी कार्यवाही को बाधित कर दिया जाए और सड़क से संसद तक हंगामा खड़ा करके लोगों को गोलबंद किया जाए। इससे मिशन आम चुनाव 2029 की विपक्षी राह आसान हो जाएगी। बताया जाता है कि एक संसदीय चर्चा के दौरान संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह कह दिया है कि आजकल आंबेडकर का नाम लेना सियासी फैशन हो गया है। इतना नाम भगवान का लेते तो सात जन्मों के लिए स्वर्ग मिल जाता।  बकौल शाह, “आंबेडकर-आंबेडकर-आंबेडकर क्यों कह रहे हो? आप अगर भगवान-भगवान कहेंगे तो 7 पीढ़ियां आपकी स्वर्ग में जाएंगी।” बस इसी बयान को लेकर प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी का विरोध करना शुरू कर दिया है।  इस प्रकार विभिन्न दलों के समर्थन-विरोध और बचाव की सियासत के बीच संसद में धक्कामुक्की तक की नौबत आई गई और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी व उनके साथियों के विरुद्ध भाजपा नेताओं द्वारा एफआईआर तक दर्ज करवाना पड़ा। उधर, कांग्रेस ने भी भाजपा सांसदों के खिलाफ शिकायत दी है। इससे बिखरते इंडिया गठबंधन को थोड़ी सी राहत भी मिल गई, क्योंकि जो नेता राहुल गांधी का विरोध करते थे, वही अब उनकी भाषा पुनः बोलने लगे। चूंकि फरवरी 2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव और नवम्बर 2025 में ही बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी वैतरणी पार करनी होगी, तो मुद्दा चाहिए। इसलिए कांग्रेस ने मनमाफिक मुद्दा ढूंढ लिया। भाजपा ने अपनी नीतियों से मुसलमानों को उसके लिए बुक ही कर दिया है और भाजपा से दलितों को हड़पने के लिए वह संविधान बदलने से लेकर अम्बेडकर के अपमान तक के मुद्दे को हवा दे चुकी है। ऐसा इसलिए कि कांग्रेस का ‘दम समीकरण’ दलित-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत हो। बता दें कि इसी को मजबूत करते करते लोकजनशक्ति पार्टी के संस्थापक स्व. रामविलास पासवान और उनके पुत्र केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भाजपा की गोद में जा बैठे।  वहीं, दम समीकरण की दूसरी प्रबल पैरोकार समझी गईं बसपा नेत्री और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की सियासी दुर्गति आप लोग देख ही रहे हैं, जिनपर भाजपा की बी टीम होने के आरोप लगते आए हैं। इसलिए इसी दम समीकरण पर अपना दावा मजबूत करते करते कांग्रेस क्या गुल खिलाएगी, अभी कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि इसी समीकरण ने लोकसभा चुनाव 2024 में उसे 10 वर्षों के सियासी दुर्दिन से मुक्ति दिलाई है।  यह बात दीगर है कि कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष बनते ही उसकी सियासी सौतनों यानी इंडिया गठबंधन के साथी दलों की नींद उड़ चुकी है। इसलिए हरियाणा और महाराष्ट्र में दलितों के छिटकते ही विपक्षी आलोचना का केंद्रविन्दु बनी कांग्रेस ने अंबेडकर के अपमान को ऐसा तूल दिया और आक्रामक रणनीति अपनाई कि संसद में धक्कामुक्की कांड हो गया। इससे राहुल गांधी पुनः विपक्षी नेताओं के हीरो बनते प्रतीत हो रहे हैं। अब उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस इस मुद्दे से ही दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों के बाद 2027 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव और फिर 2028 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को जीतने की रणनीति बनाएगी। चूंकि इसी बीच कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, पश्चिम बंगाल आदि विधानसभाओं के भी चुनाव इलेक्शन कैलेंडर के मुताबिक होंगे, इसलिए कांग्रेस जातिगत जनगणना के बाद अंबेडकर के अपमान को भी मुख्य मुद्दा बनाएगी क्योंकि भाजपा भी इन्हीं दोनों मुद्दों पर कांग्रेस के ऊपर तार्किक सवाल उठाती आई है। राजनीतिक टिप्पणीकारों की बातों पर गौर करें तो राष्ट्रपति महात्मा गांधी, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी के ‘हत्यारोपी’ हिंदूवादी नेता वीर सावरकर, और अब संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ भीमराम अम्बेडकर के ऊपर हुई सियासी टीका-टिप्पणी कोई नई बात नहीं है, बल्कि नई बात तो यह है कि गांधी-नेहरू का अपमान सहते रहने वाली कांग्रेस ने अम्बेडकर के अपमान को सियासी मुद्दा बनाकर एक तीर से दो शिकार कर रही है।  पहला तो यह कि दलितवादी दलों और ओबीसी की राजनीति करने वाले दलों से वह मुद्दे लपक चुकी है और इसी को धार दे रही भाजपा को जन कठघरे में खड़ा करके अपना सियासी उल्लू सीधा करने की कवायद तेज कर चुकी है। अपने देखा होगा कि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, राममनोहर लोहिया, वीपी सिंह, लालूप्रसाद, मान्यवर कांशीराम, मायावती, रामविलास पासवान, लालकृष्ण आडवाणी, अटलबिहारी बाजपेयी आदि अनगिनत नेताओं के ऊपर सियासी टिपण्णी हुई, लेकिन बात का इतना बतंगड़ कभी नहीं बना।  कभी आजादी, कभी आरक्षण, कभी समता, कभी समरसता, कभी वामपंथ, कभी समाजवाद और कभी राष्ट्रवाद के सवाल पर सियासत हुई। रोटी कपड़ा और मकान के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान की सियासत भी हुई। जय जवान, जय किसान से लेकर जय विज्ञान तक के उदघोष हुए। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास तक की बातें हुईं। लेकिन जनता की माली हालत उबचुब करती रही। पिछले तीन दशकों में अमीरी और गरीबी की खाई हर रोज चौड़ी हो रही है।  एक और कड़वी सच्चाई यह है कि निर्वाचित नेताओं की आय रॉकेट की गति से बढ़ रही है पर समतामूलक समाज स्थापित करने के संवैधानिक प्रयत्न नदारत रहे। क्योंकि जब भी सर्वहितकारी कुछ बात शुरू हुई तो दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों को कानूनी ढाल बना दिया गया। कुछ लोगों को आरक्षण दिया गया और उनका समर्थन हासिल करके कहीं पारिवारिक राजनीति को मजबूत किया गया तो कहीं राजकोषीय लूट मचाई गई। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो यह कि कहीं कोई प्रशासनिक और न्यायिक संतुलन स्थापित करने की कोशिश नहीं की गई। या तो कानून स्वहित के अनुरूप बने या फिर परिभाषित किये गए। दुष्प्रभाव सबके सामने है। हिंसा-प्रतिहिंसा और असमानता हमारी नियति बन चुकी है। यह कड़वी सियासी सच्चाई यह है कि सन 1990 के दशक के पूर्वार्द्ध से देश में लागू ‘नई आर्थिक नीतियों’ के दुष्परिणाम स्वरूप भारतीय संसद जनहितकारी मुद्दों से अपना पिंड छुड़ाती हुई प्रतीत हो रही है और सिर्फ पूंजीवादी एजेंडों को पूरा करने की गरज से जनमानस के बीच भावनात्मक मुद्दों को हवा दे रही है। इन नीतियों को देश में लागू करने वाली कांग्रेस और फिर बाद में उसकी समर्थक बन चुकी भाजपा (स्वदेशी आंदोलन को भूलकर) ने पूंजीवादी राजनीति को इतनी हवा दी कि क्षेत्रीय सियासत ही हाशिए पर आ गई।  इसलिए क्षेत्रीय दलों को भाजपा और कांग्रेस के इस सियासी पेंच को समझना चाहिए, लेकिन ये भी इन दोनों दलों के गठबंधन के मोहरे बन चुके हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए कि सियासत के लिए जो जरूरी आर्थिक खाद-पानी चाहिए, वो सिर्फ पूंजीवादी कम्पनियां ही पूरी कर सकती हैं। आप गौर कीजिए कि 1990 के दशक से शुरू हुए कम्पनी राज के बाद जीवन चर्या कितनी महंगी होती जा रही है। मानवीय संवेदनाओं से परे सबकुछ को मौद्रिक पैमाने पर तौलने की बाजारू प्रवृत्ति ने खान-पान, दवा-दारू, रहन-सहन से लेकर परिवहन तक को महंगा कर दिया और गुणवत्ता के मामलों में भगवान भरोसे छोड़ दिया।  वहीं, कभी कांग्रेस और कभी भाजपा के वर्चस्व वाली  संसद मजबूत कानूनों को पूंजीपतियों के लिहाज से कमजोर करती रही  जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, परिवहन आदि के क्षेत्रों में व्याप्त अराजकता बढ़ती चली गई। यह आज भी जारी है। समाज में रूपये के बढ़ते बोलबाले से प्रशासनिक तंत्र और अधिक भ्रष्ट हो गया। सियासत में ओबीसी, दलित व अल्पसंख्यक शब्दों के बढ़ते बोलबाले से जो जनप्रतिनिधियों की फौज संसद में आई, उन्होंने जाने-अनजाने सियासत को भ्रष्ट कर दिया। आलम यह है कि यथा राजा-तथा प्रजा और यथा प्रजा-तथा राजा का अंतर मिट चुका है। जनप्रतिनिधियों के विशेषाधिकार और न्यायाधीशों के न्यायिक अवमानना के अधिकारों ने मीडिया के मुंह सील दिए। देश में अब स्वस्थ राजनीतिक बहस की कोई गुंजाइश नहीं बची है क्योंकि पहले आजादी, फिर समाजवाद, उसके बाद हिंदूवाद की सियासत हुई, जिसमें अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, जातीय तुष्टिकरण, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, दलित-पिछड़ा-आदिवासी गोलबंदी, फिर इनकी आपसी सिरफुटौव्वल के बीच पूंजीवादी राजनीतिक अपनी जड़ जमाती रही और लोगों के मूलभूत रोजगार से लेकर जीवन यापन तक की नीतियां हाशिए पर चली गईं। अब जो भी दिखावटी जनहितकारी नीतियां लागू की जा रही हैं, उसके पीछे कॉरपोरेट लूट का एजेंडा सर्वप्रथम है, जिसे समझने में हमारे अधिकांश नेता व उनकी समर्थक अशिक्षित या कम शिक्षित जनता नाकाम रही है। आधार कार्ड, मुफ्त आवास, मुफ्त या कम ब्याज दर ऋण, डीबीटी जैसे जितने भी नव आर्थिक उपाय किए गए, सबका मकसद कम्पनियों को लाभ पहुंचना है। लोगों के पास काम नहीं है और सरकार एआई पर जोर दे रही है। सत्ता में मशीनीकरण के घुसपैठ से सिर्फ पूंजीवादियों का ही भला होगा।  सच कहूं तो एक देश, एक चुनाव भी उनका ही एजेंडा है ताकि छोटे छोटे दल समाप्त हो जाएं। छोटी-छोटी कम्पनियों को उनका ऑनलाइन बाजार लूट ही चुका है। इसलिए देश जनक्रांति की बाट जोह रहा है, क्योंकि वैश्विक पूंजीवादी ताकतों के इशारे पर थिरक रही भारतीय कम्पनियों से मुट्ठी भर लोगों का भला होगा, जबकि बहुत बड़ी आबादी भावनात्मक मुद्दों पर उलझी हुई है और किसी राष्ट्रीय अभिशाप से कम नहीं है। सवाल पुनः वही कि भावनाओं को भड़काकर सियासी रोटी सेंकने की कांग्रेस-भाजपा की चाल को आखिर कब तक समझेंगे हमारे क्षेत्रीय दल और जनहित की रक्षा के लिए उन पर दबाव बढ़ाएंगे, अन्यथा एक समय बाद वो भी लोगों के बीच अप्रासंगिक हो जाएंगे। कमलेश पांडेय

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लेख स्वामी सत्यानंद ने साकार किया मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न

स्वामी सत्यानंद ने साकार किया मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न

(102वीं जयंती 25 दिसम्बर  पर  विशेष ) कुमार कृष्णन स्वामी सत्यानंद सरस्वती देश के ऐसे संत हुए, जिन्होंने न सिर्फ योग को पूरी दुनिया में फैलाया बल्कि सामाजिक चिंतन के जरिए विकास के मॉडल को पेश किया। वे विशुद्ध आत्मभाव से प्रेरित एवं ‘लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’  के दिव्य भाव से संचालित थे।उनका वेदान्त शास्त्रीय अथवा किताबी नहीं , बिल्कुल व्यवहारिक, प्रयोगात्मक, उपयोगी एवं मानवतावादी है।उनका मानवतावाद आत्मभाव पर आधारित है।इसे उन्होंने आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन की एक सशक्त विचारधारा, उत्तम साधन एवं सर्वोपयोगी उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया।स्वामी सत्यानंद का योग जहां व्यक्तित्व के शोधन-शुद्धिकरण-परिष्कार, उन्नयन- उत्थान विकास तथा ईश्वरीकरण की दिशा निश्चित करता है,उनका क्रांति दर्शन सामाजिक- आर्थिक परिवर्तन के सिद्धांत का प्रतिपादन एवं उसके क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करता है। स्वामी सत्यानंद के अनुसार-‘ योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थय की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। योग दर्शन के अनुसार- मानव तीन आधारभूत तत्त्वों- जीवनी शक्ति, या प्राण, मानसिक चित्त शक्ति या चित्त और आध्यात्मिक शक्ति या आत्मा का सम्मिश्रण है।’ स्वामी सत्यानंदजी के जीवन प्रवाह में भी हम पाते हैं कि पढ़- लिख कर भरे-पूरे परिवार से आने वाला एक 20 वर्षीय युवक अध्यात्म की राह पर चल पड़ता है। वह गुरु सेवा में लीन होने के बाद नचिकेता का वैराग्य प्राप्त कर 12 वर्षों बाद एक परिव्राजक के रूप में देश दुनिया में योग के प्रसार में लग जाते हैं। याद करें 1960 के दशक में योग के यह भ्रामक धारणा प्रचलित थी कि यह साधु सन्यासियों का विषय है,गृहस्थों और महिलाओं को योग नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में स्वामी सत्यानंद ने योग की उपयोगिता सिद्ध की।आज जहां मुंगेर में विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय है, वह स्थान कर्णचौरा के नाम से जाना जाता था। किंवदन्ती के अनुसार राजा कर्ण इसी चबूतरे पर बैठकर प्रतिदिन सवा मन सोना दान करता था।उसी चबूतरे पर कई बार शयनकर रातें काटीं थीं। उस चबूतरे पर स्वामी जी को कई दिब्य अनुभव हुए।उन्होंने यहीं पर बैठकर  संकल्प लिया कि जहां राजा कर्ण बैठकर सोना दान करता था, वहां  से मैं विश्व को शांति बांटूंगा और योग को भविष्य की संस्कृति के रूप में विकसित करूंगा। दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों को भारत भूमि के प्राचीन योग विद्या से परिचित कराया, जिसका परिणाम है कि आज संयुक्त राष्ट्र ने योग को आधिकारिक मान्यता दी है। मुंगेर का गंगा दर्शन, पादुका दर्शन और देवघर के रिखियापीठ को देख यक्ष भाव मन में आता होगा कि परमहंस स्वामी सत्यानंद का जीवन वैभवपूर्ण रहा होगा, लेकिन स्वामी सत्यानंद ने अभावपूर्ण, कष्ट और विपन्नता का जीवन जीते हुए पुनः मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न साकार किया। पुनः 1988 में मुंगेर त्यागने के बाद रिखियापीठ में आकार 1991 से रिखिया के स्थानीय लोगों के शैक्षिक – सामाजिक -आर्थिक उत्थान के काम का बीड़ा उठाते है। एक ऐसी आर्थिक -सामाजिक व्यवस्था जो धारित विकास के मूल्यों का मॉडल विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता हो। आत्मिक विकास के साथ -साथ आर्थिक स्बाबलंबन के उनके प्रयास को वैश्विक अर्थव्यवस्था और ग्लोबल विलेज के परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 25 दिसंबर 1923 को जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती इस शताब्दी के महानतम संतों में से एक हैं, जिन्होंने समाज के हर क्षेत्र में योग को समाविष्ट कर, सभी वर्गों, राष्ट्रों और धर्मों के लोगों का आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित कर दिया। योग का तात्पर्य होता है जोड़ना. परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग का वैज्ञानिक रूप में पुनर्जीवन किया उस योग ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में जोड़ कर रखा है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक जिस योगलहर में योगस्नान कर रहा है उसके मूल में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का कर्म और उनके गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का वह आदेश है जो उन्होंने सत्यानंद को दिया था। गुरु के आदेशानुसार उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था- योगविद्या का प्रचार-प्रसार, द्वारे-द्वारे तीरे-तीरे। दरअसल इस शताब्दी में योग की कहानी 1940 के दशक से आरंभ होती है। उस समय तक लोग योग से अनजान थे। योग का अस्तित्व तो था त्यागियों वैरागियों और साधु सन्यासियों के लिए 1943 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ने ऋषिकेश में शिवानंद आश्रम की स्थापना की।उन्होंने दिव्य जीवन का ज्ञान और अनुभव प्रदान करने के लिए दो विधियों का उपयोग किया योग और वेदांत। स्वामी शिवानंद के साथ वे निरंतर रहे। परिव्राजक के रूप में बिहार यात्रा के क्रम में छपरा के बाद 1956 में पहली बार मुंगेर आये. यहां की प्राकृतिक छटा उन्हें आकर्षित करती थी।यहां उन्होंने चातुर्मास भी व्यतीत किया। यहीं उन्हें दिव्य दृष्टि से यह पता चला कि यह स्थान योग का अधिष्ठान बनेगा और योग विश्व की भावी संस्कृति बनेगी। 1961 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना की तब तक योग निंद्रा और प्राणायाम विज्ञान पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। ‘लेशन आॅन योग’ का अनुवाद योग साधना भाग-एक व दो आ चुके थे। सत्यानंद पब्लिकेशन सोसायटी नंदग्राम से- सत्यम स्पीक्स, वर्डस ऑफ सत्यम, प्रैक्टिस ऑफ त्राटक, योग चूड़ामणि उपनिषद, योगाशक्ति स्पीक्स, स्पेट्स टू योगा, योगा इनिसिएशन पेपर्स, पवनमुक्त आसन (अंगरेजी)में, अमरसंगीत, सूर्य नमस्कार, योगासन मुद्रावंध आदि पुस्तकें प्रकाशित हुईं। 1963 से अंगरेजी में योगा और योगविद्या निकालना आरंभ किया। परिव्राजक जीवन की समाप्ति के बाद वसंत पंचमी के दिन 19 जनवरी 1964 को बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने पूरी दुनिया में योग को लोगों के बीच पहुंचाया। दुनिया के 48 देशों की सघन यात्राएं कीं। अमरीका के बाहर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ग्रीस, कुवैत, ईरान, इराक से लेकर केन्या और घाना जैसे देशों में योग की आधारशिला रखी। फ्रांस, इंटली, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में तो सत्यानंद योग के पर्याय ही हो गये। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा बोए गये योग बीज आज वटवृक्ष का रुप ले चुके हैं ,जिनकी छांव में समस्त विश्व का जनमानस स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है ।परमहंस जी ने योगरुपी ऐसी अनुपम भेंट दी है जिससे स्वस्थ जीवन के साथ आध्यात्मिक ऊंचाईयों तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है ।आज भारत ही नहीं समस्त विश्व में परमहंस जी की “योग-निद्रा “का डंका बज रहा है। अपने परमगुरुदेव के पदचिन्हों पर चलते हुए  परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने उनकी योगविद्या को नई ऊंचाईयां प्रदान की । प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रदान किया गया योग पुरस्कार यह सिद्ध करता है कि “सत्यानंद योग” भारतवर्ष ही नहीं विश्व में सर्वश्रेष्ठ है ।  योग के माध्यम से विश्व विजय प्राप्त करने के बाद जब रिखिया वाले बाबा बने तो आसपास के ग्रामीणों की दयनीय दशा ने  सहज ही उनका ध्यान आकृष्ट किया।उनके अंदर के पूर्णतः जाग्रत ईश्वर ने उनसे कहा, ‘सत्यानंद,जो सुविधाएं मैंने तुम्हें प्रदान की,वे अपने पडो़सियों को भी उपलब्ध कराओ।’ इसी आदेश को पूरा करने के लिए सेवा, प्रेम और दान को व्यवहारिक रूप प्रदान करने के लिए देवघर के रिखिया में रिखियापीठ की स्थापना की। झारखंड के देवघर के निकट रिखिया नाम के इस गांव में योग गुरु सत्यानंद ने जो पर्णकुटीर बनाई थी, वह उनके तपोबल से इस पूरे क्षेत्र के कल्याण का माध्यम बन गई। सितंबर, 1989  जब सत्यानंद यहां पहुंचे तब चारों ओर घनघोर जंगल था। आस-पास थे आदिवासियों के बेहद पिछड़े गांव। न कोई सड़क थी और न बिजली। सत्यानंद दरअसल तप, साधना और सेवा के लिए इस दुर्गम स्थान में आए थे। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के अनुग्रह, आशीर्वाद तथा परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती एवं स्वामी सत्यसंगानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में संस्कार और मानव सेवा की तरंगों ने आश्रम के आसपास के इलाकों में बदलाव की बयार बहा दी। कभी गरीबी के कारण गांव के बच्चे पढ़ नहीं पाते थे। आज बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा मिल रही है। परिवर्तन ऐसा हुआ कि इलाके की बच्चियां फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं। शास्त्रीय संगीत और भरतनाट्यम में पारंगत हैं। 1995 में स्वामी सत्यानंद ने रिखिया में सीता कल्याणम शंतचंडी महायज्ञ आरंभ किया। यहीं से इलाके में विकास की लौ जल उठी। आश्रम के सामने बने मिडिल स्कूल के बच्चों को किताब-कॉपी, जाड़े में गर्म कपड़े व जूते देने की शुरुआत हुई। हर पर्व पर गांव के बच्चों व महिलाओं को नये वस्त्र वितरित होते हैं। बेटियों के विवाह में आर्थिक सहयोग सहित उपहार स्वरूप गृहस्थी की जरूरतों का सामान आदि आश्रम की ओर से प्रदान किया जाता है। क्षेत्र की वृद्धाओं, विधवाओं को हर माह 1200 रुपये पेंशन आश्रम से मिलती है। उनका काम यही है कि वे आश्रम के कीर्तन में शामिल हों। पंचायत के गरीबों को आत्मनिर्भर  बनाने के लिए आश्रम की ओर से रिक्शा, ठेला जैसे साजोसामान बांटे जाते हैं। क्षेत्र की लगभग हर बालिका के पास साइकिल है, जो आश्रम की ओर से दी जाती है जिन बच्चों, बालिकाओं को कंप्यूटर में रुचि थी, उनको कंप्यूटर व लैपटॉप दिए गए। ताकि वे बिना रुके आगे बढ़ते जाएं। सबसे बड़ी बात, यह आश्रम दान नहीं लेता बल्कि देता है। इसीलिए इसे दातव्य आश्रम कहा जाता है गरीबों के कल्याण को जो राशि खर्च की जाती है, वह योग विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं से प्राप्त होती है। 5 दिसंबर 2009 को शिष्यों की उपस्थिति में महासमाधि में लीन हो गए। भले ही वह आज नहीं हैं, लेकिन उनके योग आंदोलन का ही नतीजा है कि योग वैश्विक धरातल पर छाया हुआ है।  कुमार कृष्णन

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राजनीति तस्करी के लिए हाइटेक ड्रोन्स और तकनीक का इस्तेमाल कर रहा पाकिस्तान

तस्करी के लिए हाइटेक ड्रोन्स और तकनीक का इस्तेमाल कर रहा पाकिस्तान

सुनील कुमार महला सभी जानते हैं कि पाकिस्तान दुनिया में आतंकवाद का गढ़ है। पाकिस्तान न केवल आज दुनिया में आतंकवाद फैला रहा है बल्कि वह स्वयं भी इससे बहुत त्रस्त है। हाल ही में उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में एक सुरक्षा चौकी पर बड़ा आतंकवादी हमला हुआ, मीडिया के हवाले से खबरें आईं हैं कि आतंकवादियों की ओर से किए गए इस भीषण हमले में 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं। मीडिया से यह भी सूचना मिली है कि पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों पर हुआ सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है।न केवल आतंकवाद बल्कि पाकिस्तान अपने यहां से नशा व हथियारों की तस्करी का भी आज एक बड़ा गढ़ ही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज पाकिस्तान ड्रग्स व हथियारों की स्मगलिंग के लिए ऐसे हाईटेक ड्रोनों का इस्तेमाल कर रहा है, जो आसानी से पकड़ में नहीं आते।  गौरतलब है कि जहां नशीली दवाओं की तस्करी अक्सर अपराध के अन्य रूपों जैसे-आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग अथवा भ्रष्टाचार से जुड़ी होती है, वहीं दूसरी ओर हथियारों की तस्करी आतंकवाद व आतंकी घटनाओं को जन्म देती है।कहना ग़लत नहीं होगा कि आज नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी से राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा है। नशा व हथियार तस्करी ही नहीं धार्मिक शिक्षा के नाम पर भी पाकिस्तान आज एक खतरनाक खेल, खेल रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और खुफिया एजेंसी आइएसआइ के गठजोड़ का भी एक फ्रांसीसी पत्रिका ‘ले स्पेक्टेकल डू मोंड’ द्वारा यह खुलासा किया गया है कि पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों को सेना की तरह प्रशिक्षित कर रहा है और धार्मिक शिक्षा के नाम पर साज़िश रच रहा है। यह बहुत ही खतरनाक है कि आज जैश धार्मिक शिक्षा की आड़ में आतंकी तैयार कर रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज पाकिस्तान धार्मिक शिक्षा की आड़ में आतंकी ही तैयार नहीं कर रहा है अपितु वह भारत में हथियार और मादक पदार्थों की तस्करी के नये-नये तरीके खोज रहा है और उन्हें इस्तेमाल में ला रहा है। सच तो यह है कि पाकिस्तान स्थित विभिन्न आतंकवादी समूह आज डिजिटल यानी कि विभिन्न आनलाइन गतिविधियों के जरिए भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने में लिप्त है। हालांकि, भारतीय सुरक्षा एजेंसियां, हमारे देश की साइबर टीम और हमारे तमाम सुरक्षा बिल इसको लेकर पहले से ही बहुत सतर्क और मुस्तैद हैं। बावजूद इसके भारत को पाकिस्तान द्वारा की जा रही डिजिटल घुसपैठ को रोकने के लिए और बड़े कदम उठाने की जरूरत इसलिए है क्योंकि आज का जमाना सूचना क्रांति का है।हम सभी जानते हैं कि आज आनलाइन माध्यमों से पलों में भारत विरोधी कंटेंट को इधर से उधर पहुंचाया जा सकता है। आज तस्कर और आतंकी लगातार तकनीक और मोबाइल क्रांति का सहारा ले रहे हैं। सच तो यह है कि मोबाइल और तकनीक के इस्तेमाल ने आतंकियों/तस्करों/ माफियाओं के लिए तस्करी के तरीके, रास्ते सटीक और आसान बना दिए हैं। आलम यह है कि अब सरहद के पास कोई स्थान विशेष को निर्दिष्ट करके हथियार और हेरोइन, अफीम, गांजा ,चरस, नशीली दवाएं आदि मादक पदार्थ तथा हथियार तक गिराए जाते हैं। गौरतलब है कि पाकिस्तान, भारत समेत विश्व के अनेक देशों में हथियारों और नशीले पदार्थों की खपत करता है। आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान में सालाना 44 टन तक संसाधित हेरोइन की खपत होती है। पड़ोसी अफ़गानिस्तान से 110 टन हेरोइन और मॉर्फिन की तस्करी पाकिस्तान के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में की जाती है। इसके अलावा, माना जाता है कि पाकिस्तान का अवैध ड्रग व्यापार सालाना 2 बिलियन डॉलर तक कमाता है। आज पाकिस्तान ड्रोन से अवैध रूप से ड्रग्स कारोबार में लिप्त है।आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2024 के दस महीनों में ही पाकिस्तान से पंजाब सीमा पर भेजे गए 177 ड्रोन बरामद किए गए हैं। यह बरामदगी 2023 में पकड़े गए ड्रोन की संख्या से 107 अधिक है। गत वर्ष 60 ड्रोन बरामद हुए थे। वर्ष 2022 में जून के महीने में यह सामने आया था कि पाक के तस्कर पंजाब सीमा से सटे खेतों व बॉर्डर फेंसिंग के पास नशे से भरी ईंटें फेंक रहे हैं। उस वक्त यह भी सामने आया था कि पानी की मोटरों में इस्तेमाल होने वाले होलो पंप में भी नशा भरकर सीमा पार से भेजा जा रहा है और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलों का भी इस्तेमाल नशा तस्करी में किया जा रहा है। पिछले कुछ समय पहले यह भी सामने आया था कि अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट भारत में नशे की खेप लाने के लिए अलग-अलग रास्तों का फायदा उठा रहे हैं। मसलन, गुजरात का मुंद्रा पोर्ट, पंजाब बॉर्डर, नेपाल और म्यामांर के रास्ते भारत में ड्रग्स लाई जा रही है। वाकई यह बहुत ही संवेदनशील है कि आज भारतीय तस्कर पाकिस्तानी तस्करों को लोकेशन भेज ड्रोन के माध्यम हेरोइन,गांजा, चरस और असलहा आदि की खेप मंगवा रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पाक तस्करों का समर्थन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ भी करती है। आइएसआइ इन्हीं तस्करों की मदद से भारत में विस्फोटक सामग्री, हथियार व नशीले पदार्थों तक को भिजवाती है। सच तो यह है कि पाकिस्तान भारत में शांति व सौहार्द को भंग करने के उद्देश्य से चोरी-छुपे हथियारों की सप्लाई के साथ नशा तस्करी को भी अंजाम दे रहा है और यही कारण है कि भारत में तस्करी आज एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रही है, जो सिर्फ कानून व्यवस्था पर ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति, हमारे समाज और पर्यावरण, स्वास्थ्य पर भी कहीं न कहीं बुरा असर डाल रही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि तस्करी का प्रभाव केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहता। यह पूरे देश की सुरक्षा, स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण तक को प्रभावित करता है। पाकिस्तान अपनी धरती से भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करता रहा है और आज भी वह लगातार ऐसी गतिविधियों में संलिप्त है। तस्करी की बात करें तो हाल ही में पंजाब के अमृतसर (ग्रामीण) में पुलिस ने 4 किलो हेरोइन के साथ तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। बताया जा रहा है कि इस हेरोइन को पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए तस्करी करके लाया गया था। हेरोइन ही नहीं पुलिस ने एक 9 एमएम पिस्तौल भी बरामद की है। आज भी नेपाल और पंजाब के रास्ते पाकिस्तान से हेरोइन और अफीम जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी की जाती है और इस आशय की खबरें मीडिया के माध्यम से आतीं रहतीं हैं। दो साल पहले एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक के हवाले से यह खबरें आईं थीं कि पाकिस्तान, अपने हितैषी चीन में बने नये ड्रोन के स्थान पर अब पाकिस्तान में ही बनाए गए पुराने ड्रोन तस्करी के लिए इस्तेमाल कर रहा है।सूत्रों के मुताबिक भारतीय सुरक्षा बलों की पाकिस्तानी तस्करों पर लगातार कार्रवाई और महंगे चीनी ड्रोन से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए पाकिस्तान द्वारा ऐसा किया जा रहा है। गौरतलब है कि पाकिस्तान से भारतीय सीमा में आने वाले ज्यादातर ड्रोन चीन में ही बने होते हैं, जिनमें हेक्साकॉप्टर और क्वाडकॉप्टर ड्रोन भी शामिल हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि पाकिस्तान आज ज्यादातर अपने देश में बने ड्रोन से ही हथियार और नशा भारत में सप्लाई कर रहा है। आज हमारे देश की सीमा सुरक्षा एजेंसियाँ, सीमा सुरक्षा बल और सीमा शुल्क अधिकारी, पाकिस्तानी तस्करों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई करते हैं, अनेक ड्रोनों को उन्होंने मार गिराये हैं और तस्करों को पकड़ा भी हैं,जिसके परिणामस्वरूप अवैध व्यापार अस्थायी रूप से रुका भी  है। हालाँकि, यह बात अलग है कि तस्करी में शामिल लोग अपने अवैध व्यापार(नशीले पदार्थों, हथियारों की सप्लाई) को जारी रखने के लिए वैकल्पिक मार्गों के साथ ही तस्करी के अन्य विकल्पों की तलाश करते हैं। आज पाकिस्तान आतंकियों, तस्करों की सहायता से देश के अंदरूनी इलाकों में अव्यवस्थाओं को फैलाने की कोशिश करता है और इसके लिए वह सूचना क्रांति के इस दौर में नये-नये हथकंडे अपना रहा है। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि आज पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकियों और नशा माफिया/तस्करों ने अपनी गतिविधियों के पुराने तरीकों को छोड़कर नये तरीके अपना लिए हैं। आज पाकिस्तान से पाकिस्तानी सिम कार्ड की रेंज बढ़ा दी गई है। पाकिस्तानी आतंकी और तस्कर आज वाट्सएप व पाकिस्तानी सिमकार्ड से भारतीय तस्करों से संपर्क साधते हैं, क्योंकि अब रेंज बढ़ाये जाने से पाक मोबाइल कंपनियों का सिग्नल सीमावर्ती भारतीय गांवों तक पहुंचने लगा है। अब सीमा पर पूरे षड्यंत्र के साथ तस्करी (हेरोइन, गांजा,चरस, नशीली दवाओं और असलहा की खेप)और आतंकी गतिविधियां हो रही हैं। अक्सर तस्कर आपस में कोड वर्ड देकर एक दूसरे से मादक पदार्थ व हथियार मंगवाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि तस्करी के काम में ज्यादातर बेरोजगार युवा जुड़े हुए हैं। यहां तक कि इस कारोबार में आजकल युवतियां भी शामिल हो गई हैं। अमूमन होता यह है कि लड़कियों/महिलाओं पर पुलिस, सेना, सुरक्षा बल शक नहीं करते हैं और वे इनकी गिरफ्त में आने से अक्सर बच जाते हैं। आज भारतीय सरहद में ऐसे बहुत से गांव हैं, जिनमें खेत आधे भारतीय सरहद में और आधे पाकिस्तानी सरहद में है, तस्कर विभिन्न कृषि गतिविधियों के ज़रिए इसका फायदा उठाते हैं। यह संवेदनशील और गंभीर है कि आज नशा तस्करी के लिए अब ऑनलाइन प्लेटफार्म का भी इस्तेमाल हो रहा है।बहरहाल, भारत ड्रोन व सूचना क्षेत्र में क्रांति के मार्ग पर अग्रसर हो गया है। भारत में आज सुरक्षा व्यवस्था भी बहुत पुख्ता और सख्त है।बावजूद इसके पाकिस्तान की ओर से नशे व हथियारों की तस्करी का धंधा थमने का नाम नहीं ले रहा। अतः इसका मुकाबला करने के लिए हमें नई रणनीतियों को बनाने की जरूरत है। सुनील कुमार महला

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