मुस्कान से आसान होती है मुश्किलें
Updated: October 3, 2024
विश्व मुस्कान दिवस, 4 अक्टूबर, 2024 पर विशेषः -ः ललित गर्ग:- प्रत्येक अक्टूबर के पहले शुक्रवार को यानी इस वर्ष 6 अक्टूबर को विश्व मुस्कान…
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अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
Updated: October 3, 2024
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों एवं भारतीय समाज के लिए संघ के अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करना एक गर्व का विषय हो सकता है। संघ के स्वयंसेवक समाज में अपना सेवा कार्य पूरी प्रामाणिकता से बहुत ही शांतिपूर्वक तरीके से करते रहते हैं। वरना, भारत सहित पूरे विश्व में आज ऐसा माहौल बन गया है कि कुछ संगठन जो समाज में सेवा कार्य करते तो बहुत थोड़ा है परंतु उस कार्य का बहुत अधिक प्रचार प्रसार करते हैं। इसके ठीक विपरीत संघ के स्वयंसेवक चुपचाप समाज में अपने ईश्वरीय कार्य को सम्पादित करते रहते हैं, कई बार तो संघ के पदाधिकारियों को भी इस बात का आभास नहीं हो पाता है कि हमारे संघ के स्वयंसेवकों ने समाज में कोई विशेष सेवा कार्य सम्पन्न किया है। दरअसल, संघ के स्वयंसेवकों को यह संस्कार संघ की शाखा में प्रदान किए जाते हैं। और, इसी प्रकार की कई अन्य विशेषताओं के चलते, आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे विश्व में सबसे बड़ा सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन कहा जाने लगा है। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में शायद ही कोई ऐसा संगठन रहा होगा जो अपनी स्थापना के समय से ही निर्धारित किए गए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर लगातार सफलतापूर्वक आगे बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना उस समय हुई थी, जब अंग्रेजों की दासता में भारतीय संस्कृति का सर्वनाश हो रहा था। इससे व्यथित होकर डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना विजयादशमी के पावन अवसर पर वर्ष 1925 में की थी। मार्च 2024 में संघ की नागपुर में आयोजित प्रतिनिधि सभा में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों एवं 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं, प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं। समाज के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से 40 से अधिक विभिन्न संगठन अपना कार्य कर रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। देश में राजनैतिक कारणों के चलते संघ पर तीन बार प्रतिबंध भी लगाया गया है – वर्ष 1948, वर्ष 1975 एवं वर्ष 1992 में – परंतु तीनों ही बार संघ पहिले से भी अधिक सशक्त होकर भारतीय समाज के बीच उभरा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ “हिंदू” शब्द की व्याख्या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में करता है जो किसी भी तरह से (पश्चिमी) धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है। इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत सम्बंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, बाल गंगाधर तिलक और बी सी पाल जैसे हिंदू विचारकों के दर्शन से हैं। विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “एक सही अर्थों में हिंदू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो हिंदुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाए”। स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने व्यवहार में बदल दिया। उनका मानना था कि हिंदुओं को एक ऐसे कार्य दर्शन की आवश्यकता है जो इतिहास और संस्कृति पर आधारित हो, जो उनके अतीत का हिस्सा हो और जिसके बारे में उन्हें कुछ जानकारी हो। संघ की शाखाएं “स्व” के भाव को परिशुद्ध कर उसे एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं। वस्तुतः यह कह सकते हैं कि हिंदू राष्ट्र को स्वतंत्र करने व हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना की। आज संघ का केवल एक ही ध्येय है कि भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना। संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी की दृष्टि हिंदू संस्कृति के बारे में बहुत स्पष्ट थी एवं वे इसे भारत में पुनः प्रतिष्ठित कराना चाहते थे। डॉक्टर साहब के अनुसार, “हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान का प्राण है। अतएव हिंदुस्तान का संरक्षण करना हो तो हिंदू संस्कृति का संरक्षण करना हमारा पहला कर्त्तव्य हो जाता है। हिंदुस्तान की हिंदू संस्कृति ही नष्ट होने वाली हो तो, हिंदू समाज का नामोनिशान हिंदुस्तान से मिटने वाला हो, तो फिर शेष जमीन के टुकड़े को हिंदुस्तान या हिंदू राष्ट्र कैसे कहा जा सकता है? क्योंकि राष्ट्र जमीन के टुकड़े का नाम तो नहीं है …… यह बात एकदम सत्य है। फिर भी हिंदू धर्म तथा हिंदू संस्कृति की सुरक्षा एवं प्रतिदिन विधर्मियों द्वारा हिंदू समाज पर हो रहे विनाशकरी हमलों को कांग्रेस द्वारा दुरलक्षित किया जा रहा है, इसलिए इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता है।” जिस खंडकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी वह मुस्लिम तुष्टिकरण का काल था। वर्ष 1920 में देश में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। मुसलमानों का नेतृत्व मुल्ला-मौलवियों के हाथों में था। इस खंडकाल में मुसलमानों ने देश में अनेक दंगे किए। केरल में मोपला मुसलमानों ने विद्रोह किया। उसमें हजारों हिंदू मारे गए। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण के कारण हिंदुओं में अत्यंत असुरक्षिता की भावना फैली थी। हिंदू संगठित हुए बिना मुस्लिम आक्राताओं के सामने टिक नहीं सकेंगे, यह विचार अनेक लोगों ने प्रस्तुत किया और इस प्रकार हिंदू हितों के रक्षार्थ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। संघ के प्रयासों से भारत में विस्मृत राष्ट्रभाव का पुनर्जागरण प्रारम्भ हुआ। स्वामी विवेकानंद ने वेदांत के आधार पर सार्वभौम हिंदुत्व का प्रचार किया। आधुनिक भारत के अंतरराष्ट्रीय शंकराचार्य के रूप में उन्हें प्रतिष्ठित किया जा सकता है। उनके प्रयासों से हिंदू धर्म का न केवल उद्धार हुआ, अपती हिंदू समाज को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित भी किया। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, राजनारायण बोस, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, योगी अरविंद, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जैसे हिंदू हितचिंतकों ने विश्व के समक्ष यह संदेश दिया कि हिंदुस्तान में राष्ट्रीय एकता का आधार हिंदू धर्म है और स्वयं हिंदू एक धर्म प्रधान एवं प्रकृति के सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधार जीवन पद्धति है। पश्चिमी देशों में जीवन के लक्ष्य का सदैव अभाव रहा है। भौतिक सुख-समृद्धि ही जीवन का मानक बन गया था। इसलिए पश्चिमी देश असंवेदनशील हो गए थे। साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद जैसी वैचारिकी इस भौतिकवादी पृष्ठभूमि की उपज रही है। भौतिकता की अंधी दौड़ ने अंततः नाजीवादी, फासीवाद एवं साम्यवाद जैसे विचारों को जन्म देकर पश्चिमी देशों को महायुद्धों की विनाशलीला में झोंक दिया था। स्वामी विवेकानंद जैसे हिंदू चिंतकों द्वारा पश्चिमी देशों में हिंदुत्व के आदर्शों को प्रस्थापित कर उन्हें अंधकार से अलग करने का प्रयास किया गया था। हिंदू आदर्शों का यदि अनुपालन किया जाता तो सम्भवत: मानवीय विनाश के उन दृश्यों को रोका जा सकता था जो विश्व मानव की छाती पर एक भीषण घटित दुर्घटना के चोट के चिन्ह रूप में विद्यमान है। स्वामी विवेकानंद ने जीवन जीने के लक्ष्य एवं मानव संस्कृति के मूल रहस्यों को पश्चिमी समाज के समक्ष उद्घाटित किया था। स्वामी विवेकानंद के प्रयासों से पश्चिमी समाज में हिंदुत्व के प्रति एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ था और लोग हिंदू संस्कृति के मूल रहस्यों को जानने के लिए आकर्षित हुए। स्वामी विवेकानंद को हिंदू राष्ट्रीयता का विश्व में प्रथम उद्घोषक कहा जा सकता है। उन्होंने विश्व के समक्ष भारत की मूल्यवान आध्यात्मिक धरोहर को प्रतिष्ठित किया तथा हिंदू धर्म के मूल रहस्यों से विश्व को अवगत कराया। स्वामी रामतीर्थ, महर्षि दयानंद, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, महात्मा गांधी, डॉक्टर अम्बेडकर, एम एस गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, दत्तोपंत ठेंगढ़ी जैसे चिंतकों ने हिंदुओं को चिंतन की एक नयी शैली एवं विधा से सुसज्जित कर हिंदुत्व के पुनरुत्थान का सार्थक प्रयास किया। उक्त हिन्दू चिंतकों ने विश्व समुदाय में हिन्दुत्व के प्रति फैले भ्रम को न केवल दूर करने का प्रयास किया, अपितु हिन्दुस्तान में सनातन संस्कृति के प्रति जो वैषम्यतापूर्ण विचारधाराएं बलवती हो रही थीं उन्हें भी प्रतिबन्धित करने का प्रयास किया। इन विचारकों ने सामाजिक समरसता स्थापित करने के लिए उन समस्त कुरीतियों को दूर करने का आह्वान भी किया। मुगलकाल एवं ब्रिटिश शासन के अंतर्गत हिन्दू लोक जीवन विखंडित हो गया था। हिन्दू धर्म के मूल रहस्यों से अनभिज्ञ आक्रांताओं ने न केवल वैयक्तिक अधिकारों का हनन किया अपितु हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथों को भी नष्ट कर दिया। 1000 वर्षो तक सनातन संस्कृति विधर्मियों के प्रहार को झेलती हुई लगभग मृतप्राय बना दी गई थी। अब आवश्यकता है कि मूल्य परक हिन्दू जीवन पद्धति जिससे न केवल मानव अपितु प्रकृति एवं जीव-जन्तु जगत का भी उत्थान सम्भव है, उसे पुनः प्रतिष्ठित किया जाए। वस्तुतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आज भी लक्ष्य हिंदुओं को जाति, क्षेत्र और भाषा के कृत्रिम विभाजन के चलते उत्पन्न सामाजिक सांस्कृतिक विरोधभासों से उबारना है। इसकी आकांक्षा है कि भारत को विश्व गुरु का स्थान अपने कर्तृत्व, दर्शन और सांस्कृतिक प्रभाव से पुनः मिले। भारतीय समाज को संघ के इन प्रयासों से अपने आप को जोड़ना चाहिए तभी भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित किया जा सकेगा। प्रहलाद सबनानी
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शिक्षक दुनिया को बेहतर बनाने में सहायता करें
Updated: October 3, 2024
विश्व शिक्षक दिवस- 5 अक्टूबर 2024 पर विशेष: ललित गर्ग- विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में मनाया जाता है। इस…
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मेरे मानस के राम : अध्याय 60
Updated: October 1, 2024
राम राज्य का वर्णन राज्याभिषेक हो जाने पर श्री राम जी ने 30 करोड़ अशर्फियां और बहुमूल्य वस्त्र तथा आभूषण ब्राह्मणों को दान में दिए।…
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नवरात्रि का संदेश : नारी सशक्तीकरण
Updated: October 1, 2024
-डॉ. सौरभ मालवीय भारतीय पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। इनसे हमें ज्ञात होता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी विशाल, संपन्न एवं समृद्ध है।…
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सनातन परंपराओं एवं आदर्श राज-व्यवस्था की संरक्षिका-संपोषिका – महारानी अहिल्याबाई होल्कर
Updated: October 1, 2024
यह भारत-भू वीर प्रसूता है। यहाँ हर युग, हर काल में ऐसे-ऐसे वीर-वीरांगनाओं ने जन्म लिया, जिनके व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व के आगे सारा संसार सर…
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जलवायु परिवर्तन: दोस्ती चाहती हैं आक्रामक प्रजातियाँ।
Updated: October 1, 2024
आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से किए गए कई प्रयास अप्रभावी और अत्यधिक समय की मांग करने वाले साबित हुए हैं। ये प्रजातियाँ…
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मेरे मानस के राम : अध्याय 59
Updated: October 1, 2024
रामचंद्र जी का अभिषेक रामचंद्र जी के अभिषेक से पूर्व उनकी एक शोभा यात्रा निकाली गई । जिससे नगर निवासी भी यह देख लें कि…
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मेरे मानस के राम : अध्याय 58
Updated: October 1, 2024
भरत का विनम्र आग्रह भरत जी जब अपने भाई श्री राम जी के पास पहुंच जाते हैं तो उन्हें देखकर रामचंद्र जी अत्यंत प्रसन्न होते…
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ताशकंद में हमने खोया लाल बहादुर
Updated: October 1, 2024
2 अक्टूबर शास्त्री जयंती विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाग्य और कर्म के बीच के संघर्ष में कभी कर्म जीतता है तो कभी भाग्य, किन्तु कभी-कभी दोनों के इतर प्रारब्ध…
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वन नेशन वन इलेक्शन आज के भारत की आवश्यकता
Updated: October 1, 2024
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकसभा एवं विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। परंतु केंद्र सरकार द्वारा कुछ विधानसभाओं को 1950 एवं 1960 के दशक में इनकी अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भंग करने के चलते कुछ विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा से अलग कराने की आवश्यकता पड़ी थी, उसके बाद से लोकसभा, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय स्तर पर नगर निगमों, निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग समय पर कराए जाने लगे। आज स्थिति यह निर्मित हो गई है कि लगभग प्रत्येक सप्ताह अथवा प्रत्येक माह भारत के किसी न किसी भाग में चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष केवल 65 दिन ऐसे रहे हैं जब भारत के किसी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं। किसी भी देश में चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है। जनबल का यह उपयोग एक तरह से अनुत्पादक श्रम की श्रेणी में गिना जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के श्रम से किसी प्रकार का उत्पादन तो होता नहीं है परंतु एक तरह से श्रमदान जरूर करना होता है। यह श्रम यदि बचाकर किसी उत्पादक कार्य में लगाया जाय तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि इस श्रम से देश के सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की जा सकती है। अमेरिकी थिंक टैंक के एक अर्थशास्त्री के अनुसार, देश में बार बार चुनाव कराए जाने के चलते उस देश का सकल घरेलू उत्पाद लगभग एक प्रतिशत से कम हो जाता है। चुनाव कराने के लिए होने वाले खर्च पर भी यदि विचार किया जाय तो भारत में केवल लोकसभा चुनाव कराने के लिए ही 60,000 करोड़ रुपए का खर्च किया जाता है। आप कल्पना कर सकते हैं इस राशि में यदि विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं, नगर निगमों, निकायों एवं ग्राम पंचायतों के चुनाव पर किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ा जाय तो खर्च का यह आंकड़ा निश्चित ही एक लाख करोड़ रुपए के आंकडें को पार कर जाएगा। उक्त बातों के ध्यान में आने के पश्चात केंद्र सरकार ने विचार किया है कि भारत में “वन नेशन वन इलेक्शन” के नियम को लागू किया जाना चाहिए। इस विचार को आगे बढ़ाने एवं इस संदर्भ में नियम आदि बनाने के उद्देश्य से भारत के पूर्व राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में राष्ट्रपति/केंद्र सरकार को सौंप दी है। इसके बाद, केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल की समिति ने इस रिपोर्ट को स्वीकृत कर लिया है एवं इसे अब लोकसभा एवं राज्यसभा के सामने विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। किसी भी देश की लोकतंत्रीय प्रणाली में समय पर चुनाव कराना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। चुनाव किस प्रकार हों, समय पर हों एवं सही तरीके से हों, इसका बहुत महत्व होता है। परंतु देश में चुनाव बार बार होना भी अपने आप में ठीक स्थिति नहीं कही जा सकती है। विश्व के कई देशों, यथा स्वीडन, ब्राजील, बेलजियम, दक्षिण अफ्रीका, आदि में समस्त प्रकार के चुनाव एक साथ ही कराए जाने के नियम का पालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है। चुनाव एक साथ कराने के कई फायदे हैं जैसे इन देशों में चुनाव कराने सम्बंधी खर्चों पर नियंत्रण रहता है। दूसरे, सुरक्षा हेतु पुलिसकर्मियों एवं चुनाव करवाने के लिए स्थानीय कर्मचारियों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता को कम किया जा सकता है। तीसरे, देश में चुनाव एक साथ कराने से अभिशासन पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है एवं चौथे विभिन्न स्तर के चुनाव एक साथ कराने से चुनाव में वोट डालने वाले नागरिकों की संख्या में निश्चित ही वृद्धि होती है क्योंकि नागरिकों को मालूम होता है कि पांच साल में केवल एक बार ही वोट डालना है अतः वह अन्य कार्यों को दरकिनार करते हुए अपने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करना पसंद करता है। इसी प्रकार यदि कोई नागरिक किसी अन्य नगर यथा दिल्ली में कार्य कर रहा है और उसके मुंबई का निवासी होने चलते उसे वोट डालने के लिए मुंबई जाना होता है तो पांच वर्ष में एक बार तो इस महान कार्य के लिए वह दिल्ली से मुंबई आ सकता है परंतु पांच वर्षों में पांच बार तो वह दिल्ली से मुंबई नहीं जा पाएगा। इसके अलावा लोकसभा, विधानसभाओं, स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग होने से विभिन्न पार्टियों के पदाधिकारी, इनमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मंत्री आदि भी शामिल रहते हैं, अपना सरकारी कार्य छोड़कर चुनाव प्रचार के लिए अपना समय देते हैं। जबकि, यह समय तो उन्हें देश एवं प्रदेश की सेवा में लगाना चाहिए। इससे देश में अभिशासन की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। वन नेशन वन इलेक्शन के लिए गठित उक्त विशेष समिति ने यह सलाह दी है कि शुरुआत में लोकसभा एवं समस्त प्रदेशों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते है। यदि ऐसा होता है तो यह भी सही है कि देश में लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संसाधनों की भारी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी, इसका हल किस प्रकार निकाला जाएगा इस पर भारतीय संसद में विचार किया जा सकता है। साथ ही, भारत में 6 राष्ट्रीय दल, 54 राज्य स्तरीय दल एवं 2000 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त दल हैं जिनके बीच में सामंजस्य स्थापित करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, भारत में अंतिम बार लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ 1960 के दशक में कराए गए थे। आज भारतीय नागरिकों को भी शिक्षित करने की आवश्यकता होगी कि लोकसभा, विधान सभाओं एवं स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ किस प्रकार कराए जा सकते हैं ताकि उन्हें वोट डालने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो। इन समस्याओं का हल भारतीय संसद में चर्चा के दौरान निकाला जा सकता है। यदि किसी कारण से केंद्र में लोकसभा अथवा किसी प्रदेश में विधानसभा पांच वर्ष की समय सीमा के पूर्व ही गिर जाती है तो लोकसभा अथवा उस प्रदेश की विधान सभा के चुनाव शेष बचे हुए समय के लिए पुनः कराए जा सकते हैं, ऐसे प्रावधान को कानूनी रूप प्रदान दिया जा सकता है। इससे विभिन्न राजनैतिक दलों के सांसदों एवं विधायकों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे लोकसभा अथवा विधानसभा को समय पूर्व भंग कराने अथवा गिराने का प्रयास नहीं करें।वन नेशन वन इलेक्शन के सम्बंध में कुछ संशोधन तो देश के वर्तमान कानून में करने ही होंगे और फिर पूर्व में भी विभिन्न विषयों पर अलग अलग खंडकाल में (समय समय पर) 100 बार से अधिक संशोधन कानून में किए ही जा चुके हैं। यह तर्क भी सही नहीं है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से भारत के नागरिक केंद्र एवं राज्यों में एक ही राजनैतिक दल की सरकार चुनने को प्रोत्साहित होंगे। परंतु, भारत का नागरिक अब पूर्ण रूप से परिपक्व एवं सक्षम हो चुका है कि वह लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर केवल एक ही दल की सरकार को नहीं चुनेगा। देश में ऐसा कई बार हुआ है कि लोकसभा एवं विधान सभा के एक साथ हुए चुनवा में लोकसभा में एक दल के सांसद को चुना गया है एवं विधान सभा में किसी अन्य दल के विधायक को चुना गया है। भारत आज एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में भारत को अपने संसाधनों का उत्पादक कार्यों के लिए उपयोग करना आवश्यक होगा न कि रक्षा एवं सरकारी कर्मचारी देश में बार बार हो रहे चुनाव के कार्यों में व्यस्त रहें। कुल मिलाकर वन नेशन वन इलेक्शन, देश के हित में उठाया जा रहा एक मजबूत कदम है। इस विषय पर, भारत के हित में, देश के समस्त राजनैतिक दलों को गम्भीरता से विचार कर इस नियम को भारत में लागू किया जाना चाहिए। प्रहलाद सबनानी
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बुजुर्गों के स्वास्थ्य सुविधा का ख्याल रखना भी जरूरी है
Updated: October 1, 2024
शबनम कुमारीपटना, बिहार हमारे समाज के निर्माण में बच्चे, युवा, महिलाओं, किशोरियों और बुज़ुर्गों सभी का विशेष महत्व है. लेकिन इनमें बुजुर्गों की भूमिका और स्थिति कुछ…
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