कविता सब अपने हिस्से का कर्तव्य करें मनुज का उद्धार कर

सब अपने हिस्से का कर्तव्य करें मनुज का उद्धार कर

—विनय कुमार विनायकहे भाई! उम्मीद नहीं कर उम्मीद नहीं करहे भाई! दूसरों से कुछ भी उम्मीद नहीं करबहुत अधिक दुख होता है उम्मीद टूटने पर,मगर…

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व्यंग्य नीट की परीक्षा का ससुराली गठजोड़

नीट की परीक्षा का ससुराली गठजोड़

नवेन्दु उन्मेष नीट की परीक्षा को आखिर लीक होना था सो हो गया। वैसे तो आये दिन कोई नकोई परीक्षा लीक होती ही रहती है।…

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कविता मेरा भारत महान

मेरा भारत महान

मैंने अपने भारत को मरते देखा हैसिसकते देखा है| मैंने अपने भारत को मरते……… अबलाओ की अस्मिता कोविज्ञापनों की जलधारा में बहते देखा हैमैंने अपने…

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धर्म-अध्यात्म मेरे मानस के राम अध्याय 1

मेरे मानस के राम अध्याय 1

गुण गण सागर श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म त्रेता काल में हुआ। विद्वानों की मान्यता है कि जिस समय दशरथनंदन श्री राम…

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आर्थिकी प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का अनुपालन किया जाता रहा है

प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का अनुपालन किया जाता रहा है

पिछले कुछ वर्षों से निगमित अभिशासन को विभिन्न बैकों एवं कम्पनियों में लागू करने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस सम्बंध में विस्तार से दिशा निर्देश जारी किए हैं एवं इन्हें सहकारी क्षेत्र के बैंकों में लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के पश्चात अमेरिका में लागू की गई पूंजीवाद की नीतियों के चलते कम्पनियों को अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की खुली छूट दी गई थी ताकि अमेरिकी में बिलिनायर नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जा सके ताकि अमेरिका एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाय। अमेरिका एवं अन्य देशों में व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अमेरिका में आर्थिक नियमों में भारी छूट दी गई थी। इस छूट का लाभ उठाते हुए कई अमेरिकी कम्पनियों ने अन्य देशों में भी अपने व्यापार का विस्तार करते हुए अपनी कई कम्पनियां इन देशों में स्थापित की और बाद में उन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कहा गया। अमेरिका में स्थापित कम्पनियां दूसरे देशों में स्थापित अपनी सहायक कम्पनियों की अमेरिका में बैठकर देखभाल तो कर नहीं सकती थी अतः उन्होंने अन्य देशों में स्थापित कम्पनियों के बोर्ड में अपने प्रतिनिधि, निदेशक के तौर पर भर्ती किए। इस बोर्ड को चलाने के साथ ही इन देशों में इन कम्पनियों द्वारा व्यापार को विस्तार देने के उद्देश्य से इस सम्बंध में नियमों की रचना की गई, जिन्हें बाद में निगमित अभिशासन का नाम दिया गया। वर्ष 1970 के आसपास अमेरिका में एवं अन्य यूरोपीयन देशों में निगमित अभिशासन के सम्बंध  में बहुत शोध कार्य सम्पन्न हुआ एवं निगमित अभिशासन के कई मॉडल एवं सिद्धांत विकसित हुए, जिन्हें भारत में भी लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं।  हालांकि भारत में तो प्राचीन काल से ही आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन सम्बंधी नियमों का अनुपालन किया जाता रहा है। सनातन संस्कृति में कर्म एवं अर्थ को धर्म से जोड़ा गया है। अतः प्राचीन भारत में धर्म का पालन करते हुए ही आर्थिक गतिविधियां सम्पन्न होती रही हैं। इस प्रकार, आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन तो व्यापार में उपयोग होता ही रहा है। ब्रिटिश मूल के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार श्री एंगस मेडिसिन द्वारा सम्पन्न किए के शोध के अनुसार एक ईसवी पूर्व से 1750 ईसवी तक वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से 48 प्रतिशत के बीच रही है और भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्तर पर होने वाले व्यापार में अभिशासन की नीतियों का अनुपालन तो निश्चित रूप से होता ही होगा। परंतु, पश्चिमी देश निगमित अभिशासन को एक नई खोज बता रहे हैं। प्राचीन काल में भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन के अनुपालन का स्तर बहुत उच्च था। एक घटना के माध्यम से इसे सिद्ध भी किया जा सकता है। एक किसान ने एक अन्य किसान से जमीन के टुकड़ा खरीदा। उस किसान ने जब जमीन में खुदाई शुरू की तो उसे खुदाई के दौरान उस जमीन में सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला। इस घड़े को लेकर वह किसान जमीन के विक्रेता किसान के पास पहुंचा और बोला आपसे जो जमीन का टुकड़ा मैंने खरीदा था उसमें सोने के सिक्कों से भरा यह घड़ा मिला है, मैंने तो चूंकि आपसे केवल जमीन खरीदी है अतः इस घड़े पर आपका अधिकार है। विक्रेता किसान ने उस घड़े को लेने से इसलिए इंकार कर दिया कि क्योंकि अब तो वह जमीन मैं आपको बेच चुका हूं अतः अब जो भी वस्तु अथवा पदार्थ इस जमीन से प्राप्त होता है उस पर जमीन के क्रेता अर्थात केवल आपका अधिकार है। दोनों किसानों के बीच जब किसी प्रकार की सुलह नहीं हो सकी तो वे दोनों किसान राजा के महल में अपनी समस्या का हल ढूंढने के लिए पहुंचे। जब वहां भी इस समस्या का हल नहीं निकल सका तो दोनों किसानों ने राजा से प्रार्थना की कि सोने के सिक्कों से भरे इस घड़े को राज्य के खजाने में जमा कर दिया जाय। राजा ने भी उस घड़े को राज्य के खजाने में जमा करने से इंकार कर दिया क्योंकि राज्य के खजाने में तो अभिशासन सम्बंधी नियमों के अनुपालन के अनुसार ही प्राप्त धन को जमा किया जा सकता है और अभिशासन सम्बंधी नियमों में इस प्रकार से प्राप्त धन को खजाने में जमा करने का वर्णन ही नहीं है। इस उच्च स्तर की अभिशासन प्रणाली प्राचीन भारत में लागू थी।    अभिशासन को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि यह एक तरीका है, जिसके अनुसार संस्थानों को अभिशासित किया जाता है। यह नियमों, व्यवहारों एवं प्रक्रियाओं की एक प्रणाली है जिसके अनुसार एक व्यवसाय को चलाया, विनियमित एवं नियंत्रित किया जाता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्णय प्रक्रिया स्वच्छ (निष्पक्ष) एवं नैतिक है। इसके माध्यम से यह जानने, संतुलित करने एवं संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है कि लम्बी अवधि के लिए हितधारकों के हित सुरक्षित रहें। हितधारकों में शामिल हैं – बैंक के संदर्भ में जमाकर्ता, एवं अन्य कम्पनियों के संदर्भ में ग्राहक, शेयरधारक, कर्मचारी, प्रबंधन, सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, आदि। निगमित अभिशासन सम्बंधी नियमों के अनुपालन की जिम्मेदारी बोर्ड के सदस्यों की मानी जाती है। अच्छे निगमित अभिशासन के गुणों के सम्बंध में कहा जाता है कि बोर्ड द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में निष्पक्षिता एवं पारदर्शिता होनी चाहिए। संस्था में प्रत्येक स्तर पर जवाबदेही एवं जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।  बोर्ड के सदस्यों के चुनाव में पारदर्शिता हो एवं बोर्ड के सदस्य पेशेवर होने चाहिए। यदि बैंक के बोर्ड की बात की जाय तो बोर्ड के सदस्य जमाकर्ता के ट्रस्टी के रूप में कार्य करें। ऋण प्रदान करने में पारदर्शिता होनी चाहिए एवं मेरिट आधारित निर्णय होने चाहिए। केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक एवं प्रधान कार्यालय द्वारा जारी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित होना चाहिए। अंकेक्षण प्रणाली, जागरूकता प्रणाली (विजिलन्स सिस्टम), धोखाधड़ी का पता लगाने का तंत्र  (फ्राड डिटेक्शन मेकनिजम) मजबूत होना चाहिए। साथ ही, संस्थान में उच्च तकनीकी का उपयोग भी होना चाहिए।  निगमित अभिशासन के अंतर्गत बोर्ड की भूमिका के संबंध में भी कहा जाता है कि बोर्ड के सदस्यों में व्यावसायिक कुशलता होना चाहिए। बोर्ड के सदस्यों द्वारा संस्था में स्थापित प्रणाली एवं प्रक्रिया की व्याख्या करनी चाहिए। आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की व्याख्या करनी चाहिए। आंतरिक अंकेक्षण प्रणाली की समय समय पर जांच पड़ताल करनी चाहिए। समस्त व्यवसाय सबंधित नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। प्रणाली एवं प्रक्रिया की उचित समय अंतराल पर समीक्षा करनी चाहिए। निगमित अभिशासन के अंतर्गत बोर्ड स्तर की कुछ समितियों का निर्माण भी किया जाना चाहिए। जैसे, अंकेक्षण समिति, नियमों के अनुपालन की जांच करने के सम्बंध में समिति, बड़ी राशि के फ्राड की जांच करने वाली समिति, बोर्ड के सदस्यों का परिश्रमिक तय करने की समिति, जोखिम प्रबंधन समिति, आदि। निगमित अभिशासन के सम्बंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बनाए गए नियमों को कम्पनियों एवं बैकों में लागू किया जाना चाहिए। हालांकि प्राचीन भारत में विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का उच्च स्तर रहा है, क्योंकि उस खंडकाल में कर्म एवं अर्थ के कार्य धर्म से जोड़कर किए जाते थे। परंतु, आज की परिस्थितियाँ भिन्न हैं, अतः वर्तमानकाल में भिन्न परिस्थितियों के बीच निगमित अभिसासन के नियमों को विभिन्न संस्थानों में लागू किया ही जाना चाहिए।   प्रहलाद सबनानी 

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महिला-जगत शिक्षा के लिए संघर्ष करती किशोरियां

शिक्षा के लिए संघर्ष करती किशोरियां

निरमाअजमेर, राजस्थान हमारे देश में महिलाओं और किशोरियों को आज भी जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पितृसत्तात्मक समाज से संघर्ष…

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राजनीति असुविधा की सड़कों का टोल-टैक्स ज्यादती है

असुविधा की सड़कों का टोल-टैक्स ज्यादती है

– ललित गर्ग – बेहतर सेवाओं के नाम पर सरकारें कई तरह के शुल्क वसूलती है, इसमें कोई आपत्ति एवं अतिश्योक्ति नहीं है। लेकिन सेवाएं…

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आर्थिकी प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का अनुपालन किया जाता रहा है

प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का अनुपालन किया जाता रहा है

पिछले कुछ वर्षों से निगमित अभिशासन को विभिन्न बैकों एवं कम्पनियों में लागू करने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस सम्बंध में विस्तार से दिशा निर्देश जारी किए हैं एवं इन्हें सहकारी क्षेत्र के बैंकों में लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के पश्चात अमेरिका में लागू की गई पूंजीवाद की नीतियों के चलते कम्पनियों को अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की खुली छूट दी गई थी ताकि अमेरिकी में बिलिनायर नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जा सके ताकि अमेरिका एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाय। अमेरिका एवं अन्य देशों में व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अमेरिका में आर्थिक नियमों में भारी छूट दी गई थी। इस छूट का लाभ उठाते हुए कई अमेरिकी कम्पनियों ने अन्य देशों में भी अपने व्यापार का विस्तार करते हुए अपनी कई कम्पनियां इन देशों में स्थापित की और बाद में उन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कहा गया। अमेरिका में स्थापित कम्पनियां दूसरे देशों में स्थापित अपनी सहायक कम्पनियों की अमेरिका में बैठकर देखभाल तो कर नहीं सकती थी अतः उन्होंने अन्य देशों में स्थापित कम्पनियों के बोर्ड में अपने प्रतिनिधि, निदेशक के तौर पर भर्ती किए। इस बोर्ड को चलाने के साथ ही इन देशों में इन कम्पनियों द्वारा व्यापार को विस्तार देने के उद्देश्य से इस सम्बंध में नियमों की रचना की गई, जिन्हें बाद में निगमित अभिशासन का नाम दिया गया। वर्ष 1970 के आसपास अमेरिका में एवं अन्य यूरोपीयन देशों में निगमित अभिशासन के सम्बंध  में बहुत शोध कार्य सम्पन्न हुआ एवं निगमित अभिशासन के कई मॉडल एवं सिद्धांत विकसित हुए, जिन्हें भारत में भी लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं।  हालांकि भारत में तो प्राचीन काल से ही आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन सम्बंधी नियमों का अनुपालन किया जाता रहा है। सनातन संस्कृति में कर्म एवं अर्थ को धर्म से जोड़ा गया है। अतः प्राचीन भारत में धर्म का पालन करते हुए ही आर्थिक गतिविधियां सम्पन्न होती रही हैं। इस प्रकार, आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन तो व्यापार में उपयोग होता ही रहा है। ब्रिटिश मूल के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार श्री एंगस मेडिसिन द्वारा सम्पन्न किए के शोध के अनुसार एक ईसवी पूर्व से 1750 ईसवी तक वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से 48 प्रतिशत के बीच रही है और भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्तर पर होने वाले व्यापार में अभिशासन की नीतियों का अनुपालन तो निश्चित रूप से होता ही होगा। परंतु, पश्चिमी देश निगमित अभिशासन को एक नई खोज बता रहे हैं। प्राचीन काल में भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन के अनुपालन का स्तर बहुत उच्च था। एक घटना के माध्यम से इसे सिद्ध भी किया जा सकता है। एक किसान ने एक अन्य किसान से जमीन के टुकड़ा खरीदा। उस किसान ने जब जमीन में खुदाई शुरू की तो उसे खुदाई के दौरान उस जमीन में सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला। इस घड़े को लेकर वह किसान जमीन के विक्रेता किसान के पास पहुंचा और बोला आपसे जो जमीन का टुकड़ा मैंने खरीदा था उसमें सोने के सिक्कों से भरा यह घड़ा मिला है, मैंने तो चूंकि आपसे केवल जमीन खरीदी है अतः इस घड़े पर आपका अधिकार है। विक्रेता किसान ने उस घड़े को लेने से इसलिए इंकार कर दिया कि क्योंकि अब तो वह जमीन मैं आपको बेच चुका हूं अतः अब जो भी वस्तु अथवा पदार्थ इस जमीन से प्राप्त होता है उस पर जमीन के क्रेता अर्थात केवल आपका अधिकार है। दोनों किसानों के बीच जब किसी प्रकार की सुलह नहीं हो सकी तो वे दोनों किसान राजा के महल में अपनी समस्या का हल ढूंढने के लिए पहुंचे। जब वहां भी इस समस्या का हल नहीं निकल सका तो दोनों किसानों ने राजा से प्रार्थना की कि सोने के सिक्कों से भरे इस घड़े को राज्य के खजाने में जमा कर दिया जाय। राजा ने भी उस घड़े को राज्य के खजाने में जमा करने से इंकार कर दिया क्योंकि राज्य के खजाने में तो अभिशासन सम्बंधी नियमों के अनुपालन के अनुसार ही प्राप्त धन को जमा किया जा सकता है और अभिशासन सम्बंधी नियमों में इस प्रकार से प्राप्त धन को खजाने में जमा करने का वर्णन ही नहीं है। इस उच्च स्तर की अभिशासन प्रणाली प्राचीन भारत में लागू थी।    अभिशासन को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि यह एक तरीका है, जिसके अनुसार संस्थानों को अभिशासित किया जाता है। यह नियमों, व्यवहारों एवं प्रक्रियाओं की एक प्रणाली है जिसके अनुसार एक व्यवसाय को चलाया, विनियमित एवं नियंत्रित किया जाता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्णय प्रक्रिया स्वच्छ (निष्पक्ष) एवं नैतिक है। इसके माध्यम से यह जानने, संतुलित करने एवं संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है कि लम्बी अवधि के लिए हितधारकों के हित सुरक्षित रहें। हितधारकों में शामिल हैं – बैंक के संदर्भ में जमाकर्ता, एवं अन्य कम्पनियों के संदर्भ में ग्राहक, शेयरधारक, कर्मचारी, प्रबंधन, सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, आदि। निगमित अभिशासन सम्बंधी नियमों के अनुपालन की जिम्मेदारी बोर्ड के सदस्यों की मानी जाती है। अच्छे निगमित अभिशासन के गुणों के सम्बंध में कहा जाता है कि बोर्ड द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में निष्पक्षिता एवं पारदर्शिता होनी चाहिए। संस्था में प्रत्येक स्तर पर जवाबदेही एवं जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।  बोर्ड के सदस्यों के चुनाव में पारदर्शिता हो एवं बोर्ड के सदस्य पेशेवर होने चाहिए। यदि बैंक के बोर्ड की बात की जाय तो बोर्ड के सदस्य जमाकर्ता के ट्रस्टी के रूप में कार्य करें। ऋण प्रदान करने में पारदर्शिता होनी चाहिए एवं मेरिट आधारित निर्णय होने चाहिए। केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक एवं प्रधान कार्यालय द्वारा जारी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित होना चाहिए। अंकेक्षण प्रणाली, जागरूकता प्रणाली (विजिलन्स सिस्टम), धोखाधड़ी का पता लगाने का तंत्र  (फ्राड डिटेक्शन मेकनिजम) मजबूत होना चाहिए। साथ ही, संस्थान में उच्च तकनीकी का उपयोग भी होना चाहिए।  निगमित अभिशासन के अंतर्गत बोर्ड की भूमिका के संबंध में भी कहा जाता है कि बोर्ड के सदस्यों में व्यावसायिक कुशलता होना चाहिए। बोर्ड के सदस्यों द्वारा संस्था में स्थापित प्रणाली एवं प्रक्रिया की व्याख्या करनी चाहिए। आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की व्याख्या करनी चाहिए। आंतरिक अंकेक्षण प्रणाली की समय समय पर जांच पड़ताल करनी चाहिए। समस्त व्यवसाय सबंधित नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। प्रणाली एवं प्रक्रिया की उचित समय अंतराल पर समीक्षा करनी चाहिए। निगमित अभिशासन के अंतर्गत बोर्ड स्तर की कुछ समितियों का निर्माण भी किया जाना चाहिए। जैसे, अंकेक्षण समिति, नियमों के अनुपालन की जांच करने के सम्बंध में समिति, बड़ी राशि के फ्राड की जांच करने वाली समिति, बोर्ड के सदस्यों का परिश्रमिक तय करने की समिति, जोखिम प्रबंधन समिति, आदि। निगमित अभिशासन के सम्बंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बनाए गए नियमों को कम्पनियों एवं बैकों में लागू किया जाना चाहिए। हालांकि प्राचीन भारत में विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का उच्च स्तर रहा है, क्योंकि उस खंडकाल में कर्म एवं अर्थ के कार्य धर्म से जोड़कर किए जाते थे। परंतु, आज की परिस्थितियाँ भिन्न हैं, अतः वर्तमानकाल में भिन्न परिस्थितियों के बीच निगमित अभिसासन के नियमों को विभिन्न संस्थानों में लागू किया ही जाना चाहिए।  

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राजनीति राहुल गांधी का कद भी बढ़ा एवं राजनीतिक कौशल भी

राहुल गांधी का कद भी बढ़ा एवं राजनीतिक कौशल भी

– ललित गर्ग – राहुल गांधी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता बन गये हैं, यह उनका पहला संवैधानिक पद है, इससे पहले वे कांग्रेस के…

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लेख शिक्षा के लिए संघर्ष करती किशोरियां

शिक्षा के लिए संघर्ष करती किशोरियां

निरमाअजमेर, राजस्थान हमारे देश में महिलाओं और किशोरियों को आज भी जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पितृसत्तात्मक समाज से संघर्ष…

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खान-पान हमारा विनाश कब शुरू हुआ?

हमारा विनाश कब शुरू हुआ?

1.हमारा विनाश उस समय से शुरू हुआ जब हरित क्रांति के नाम पर देश में रासायनिक खेती की शुरूआत हुई और हमारा पौष्टिक वर्धक, शुद्ध…

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राजनीति अब भारत को विभिन्न क्षेत्रों में अपने सूचकांक तैयार करना चाहिए

अब भारत को विभिन्न क्षेत्रों में अपने सूचकांक तैयार करना चाहिए

वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की भिन्न भिन्न क्षेत्रों में रेटिंग तय करने की दृष्टि से वित्तीय एवं विशिष्ट संस्थानों द्वारा सूचकांक तैयार किए जाते हैं। हाल ही के समय में इन विदेशी संस्थानों द्वारा जारी किए गए कई सूचकांकों में भारत की स्थिति को संभवत जान बूझकर गल्त दर्शाया गया है। इन सूचकांकों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं अफ्रीका के गरीब देशों की स्थिति को भारत से बेहतर बताया गया है। उदाहरण के लिए अभी हाल ही में पश्चिमी देशों द्वारा जारी किए गए तीन सूचकांकों की स्थिति देखिए। सबसे पहिले उदार (लिबरल) लोकतंत्र सूचकांक में भारत की रैकिंग को 104 बताया गया है और भारत के ऊपर निजेर देश को बताया गया है। इसी प्रकार, आनंद (हैपीनेस) सूचकांक में भी भारत का स्थान 126वां बताया गया है जबकि पाकिस्तान को 108वां स्थान मिला है, जहां अत्यधिक मुद्रा स्फीति के चलते वहां के नागरिक अत्यधिक त्रस्त हैं। एक अन्य, प्रेस की स्वतंत्रता नामक सूचकांक में भारत को 161वां स्थान मिला है जबकि इस सूचकांक में कुल मिलाकर 180 देशों को शामिल किया गया है और अफगानिस्तान को 152वां स्थान दिया गया है, अर्थात इस सर्वे के अनुसार, अफगानिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता भारत की तुलना में अच्छी पाई गई है। पश्चिमी देशों में स्थिति इन संस्थानों द्वारा इस प्रकार के सूचकांक तैयार किए जाकर पूरे विश्व को भ्रमित किए जाने का प्रयास हो रहा है।  इसी प्रकार, भारत में हाल ही में सम्पन्न हुए लोक सभा चुनावों पर भी पश्चिमी देशों ने कई प्रकार के सवाल खड़े करने के प्रयास किए थे। जैसे, इस भीषण गर्मी के मौसम में चुनाव क्यों कराए गए हैं, जिससे सामान्यजन वोट डालने के लिए घरों से बाहर ही नहीं निकले, ईवीएम मशीन में कोई खराबी तो नहीं है, आदि। परंतु, भारतीय मतदाताओं ने इन लोक सभा चुनावों में भारी संख्या में भाग लेकर पश्चिमी देशों को करारा जवाब दिया है। न ही, ईवीएम मशीन में किसी प्रकार की गड़बड़ी पाई गई और न ही गर्मी का प्रभाव चुनावों पर पड़ा। हालांकि सत्ताधारी दल को पिछले चुनाव की तुलना में कुछ कम स्थान जरूर प्राप्त हुए हैं परंतु देश में किसी भी प्रकार की कोई घटना घटित नहीं हुई है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव सामान्यतः शांति के साथ सम्पन्न हो गए। साथ ही, विपक्षी दलों को पिछले चुनाव की तुलना में कुछ अधिक स्थान मिले हैं और उन्होंने भी चुनाव के परिणामों को स्वीकार कर लिया है। चुनाव की प्रक्रिया पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया गया है। इस सबके बावजूद पश्चिमी देशों ने पश्चिमी लोकतंत्र सूचकांक में वर्ष 2014 में भारत को 27वां स्थान दिया था और वर्ष 2023 में भारत की रैंकिंग नीचे गिराकर 41वें स्थान पर बताई गई है। जबकि वास्तव में तो इस बीच देश में लोकतंत्र अधिक मजबूत ही हुआ है, परंतु पश्चिमी देशों द्वारा भारतीय लोकतंत्र को ही जैसे खतरे में बताया जा रहा है और एक तरह से भारतीय लोकतंत्र पर ही सवाल खड़े कर दिए गए हैं। दरअसल पश्चिमी देशों में कुछ शक्तियां भारत के हितों के विरुद्ध कार्य कर रही हैं एवं ये ताकतें विभिन्न सूचकांक तैयार करने वाली संस्थाओं को प्रभावित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़तीं हैं।   कुछ समय पूर्व एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान ने वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया था। इस सूचकांक में यह बताया गया था कि भारत की तुलना में श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, एथीयोपिया, नेपाल, भूटान आदि देशों में भुखमरी की स्थिति बेहतर है। अर्थात, सर्वे में शामिल किए गए 121 देशों की सूची में श्रीलंका का स्थान 64वां, म्यांमार का 71वां, बांग्लादेश का 84वां, पाकिस्तान का 99वां, एथीयोपिया का 104वां एवं भारत का 107वां स्थान बताया गया था। जबकि पूरा विश्व जानता है कि व श्रीलंका, पाकिस्तान एवं म्यांमार जैसे देशों में खाद्य पदार्थों की भारी कमी है जिसके चलते इन देशों के नागरिकों के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। जबकि, भारत कई देशों को आज खाद्य सामग्री उपलब्ध करा रहा है। फिर किस प्रकार उक्त सूचकांक बनाकर वैश्विक स्तर पर जारी किए जा रहे हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि भारत की आर्थिक तरक्की को विश्व के कई देश अब सहन नहीं कर पा रहे हैं एवं भारत के बारे में इस प्रकार के सूचकांक जारी कर भारत की साख को वैश्विक स्तर पर प्रभावित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है।  युद्ध की विभीषिका झेल रहे एथीयोपिया में नागरिक अपनी भूख मिटाने के लिए घास जैसे भारी पदार्थों को खाकर अपना जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच जीवन यापन करने वाले नागरिकों को भुखमरी के मामले में भारत के नागरिकों से बेहतर स्थिति में बताया गया है। वहीं दूसरी ओर भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत 80 करोड़ नागरिकों को केंद्र सरकार द्वारा प्रतिमाह 5 किलो मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि इन लोगों को खाने पीने सम्बंधी किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हो। फिर भी भारत के नागरिकों को भुखमरी सूचकांक में ईथीयोपिया के नागरिकों की तुलना में इतना नीचे बताया गया है। अब कौन इस प्रकार के सूचकांकों पर विश्वास करेगा। यह भी बताया जा रहा है कि इस सूचकांक को आंकने के लिए भारत के 140 करोड़ नागरिकों में से केवल 3000 नागरिकों को ही इस सर्वे में शामिल किया गया था। इस प्रकार सर्वे का सैम्पल बनाते समय भारत जैसे विशाल देश के लिए अपर्याप्त संख्या का उपयोग किया गया है। वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की सावरेन क्रेडिट रेटिंग पर कार्य कर रही संस्था स्टैंडर्ड एंड पूअर ने हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था का आंकलन करते हुए भारत के सम्बंध में अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक किया है एवं कहा है कि वह भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के उद्देश्य से भारत के आर्थिक विकास सम्बंधी विभिन्न पैमानों का, आधारभूत ढांचे को विकसित करने एवं भारत के राजकोषीय घाटे को कम करने से सम्बंधित आंकड़ों एवं प्रयासों का गम्भीरता से लगातार अध्ययन एवं विश्लेषण कर रहा है। आगे आने वाले दो वर्षों के दौरान यदि उक्त तीनों क्षेत्रों में लगातार सुधार दिखाई देता है तो भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड किया जा सकता है। वर्तमान में भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग BBB- है, जो निवेश के लिए सबसे कम रेटिंग की श्रेणी में गिनी जाती है। किसी भी देश की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को यदि अपग्रेड किया जाता है तो इससे उस देश में विदेशी निवेश बढ़ने लगते हैं क्योंकि निवेशकों का इन देशों में पूंजी निवेश तुलनात्मक रूप से सुरक्षित माना जाता है। साथ ही, अच्छी सावरेन क्रेडिट रेटिंग प्राप्त देशों की कम्पनियों को अन्य देशों में पूंजी उगाहना न केवल आसान होता है बल्कि इस प्रकार लिए जाने वाले ऋण पर ब्याज की राशि भी कम देनी होती है। किसी भी देश की जितनी अच्छी सावरेन क्रेडिट रेटिंग होती है उस देश की कम्पनियों को कम से कम ब्याज दरों पर ऋण उगाहने में आसानी होती है। परंतु, भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के लिए स्टैंडर्ड एंड पूअर को दो वर्षों का समय क्यों चाहिए? जब इन समस्त क्षेत्रों में लगातार सुधार होते साफ दिख रहा है।  साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई विदेशी संस्थान (विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि) आगे आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक प्रगति को लेकर बहुत उत्साहित हैं एवं आर्थिक प्रगति के साथ साथ राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु भारत सरकार द्वारा लगातार किए जा रहे प्रयासों की भी सराहना करते रहते हैं। फिर भी, स्टैंडर्ड एंड पूअर को भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के लिय दो वर्षों का अतिरिक्त समय चाहिए।  वैश्विक पटल पर पश्चिमी देशों के विभिन्न संस्थानों द्वारा भारत के प्रति ईर्ष्या का भाव रखने के चलते, अब समय आ गया है कि भारत विभिन्न पैमानों पर अपनी रेटिंग तय करने के लिए अपने सूचकांक विकसित करने पर विचार करे क्योंकि वैश्विक स्तर पर पश्चिमी देशों द्वारा जितने भी सूचकांक तैयार किए जा रहे हैं उसमें भारत के संदर्भ में वस्तुस्थिति का सही वर्णन नहीं किया जा रहा है। प्रहलाद सबनानी

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