फिर आतंकी हमलें, कायम हो शांति का उजाला
Updated: June 15, 2024
-ः ललित गर्ग:- यह आशंका सच साबित हो रही है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलने पर कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ेंगी एवं पाकिस्तान…
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खोदी धरती बोई बीज
Updated: June 15, 2024
किरण दोसादगरुड़, उत्तराखंड खोदी धरती बोई बीज,ये मिट्टी है बड़े काम की चीज,इसने दिया भोजन हमको,सूरज ने दिया जब ताप,फूटा अंकुर उसमें जब,ऊपर आया अपने…
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भारत सहित विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक बढ़ा रहे है अपने स्वर्ण भंडार
Updated: June 15, 2024
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी बैंकों में रखे भारत के 100 टन सोने को ब्रिटेन से वापिस भारत में ले आया गया है। यह सोना भारत ने ब्रिटेन के बैंक में रिजर्व के तौर पर रखा था और इस पर भारत प्रतिवर्ष कुछ फीस भी ब्रिटेन के बैंक को अदा करता रहा है। समस्त देशों के केंद्रीय बैंक अपने यहां सोने के भंडार रखते हैं ताकि इस भंडार के विरुद्ध उस देश में मुद्रा जारी की जा सके (भारत में 308 टन सोने के विरुद्ध रुपए के रूप में मुद्रा जारी की गई है, यह सोने के भंडार भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा हैं) और यदि उस देश की अर्थव्यवस्था में कभी परेशानी खड़ी हो एवं उस देश की मुद्रा का तेजी से अवमूल्यन होने लगे तो इस प्रकार की परेशानियों से बचने के लिए उस देश को अपने स्वर्ण भंडार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचना पड़ सकता है। इस कारण से विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने पास स्वर्ण के भंडार रखते हैं। पूरे विश्व में उपलब्ध स्वर्ण भंडार का 17 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के पास जमा है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास भी 822 टन के स्वर्ण भंडार हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसका 50 प्रतिशत से अधिक भाग, अर्थात लगभग 413.8 टन, भारत के बाहर अन्य केंद्रीय बैंकों विशेष रूप से बैंक आफ इंग्लैंड एवं बैंक आफ इंटर्नैशनल सेटल्मेंट के पास रखा गया है। उक्त वर्णित 308 टन के अतिरिक्त 100.3 टन स्वर्ण भंडार भी भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा है। वर्ष 1947 में भारत के राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही भारत ने अपने स्वर्ण के भंडार बैंक आफ इंग्लैड में रखे हुए हैं। इसके बाद 1990 के दशक में भी भारत ने अपनी आर्थिक परेशानियों के बीच अपने स्वर्ण भंडार को बैक आफ इंग्लैंड में गिरवी रखकर अमेरिकी डॉलर उधार लिए थे। विभिन्न देशों द्वारा लंदन में स्वर्ण भंडार इसलिए रखे जाते हैं क्योंकि लंदन पूरे विश्व का सबसे बड़ा स्वर्ण बाजार है और यहां स्वर्ण को सुरक्षित रखा जा सकता है। यहां के बैकों द्वारा विभिन्न देशों को स्वर्ण भंडार के विरुद्ध अमेरिकी डॉलर एवं ब्रिटिश पाउंड में आसानी से ऋण प्रदान किया जाता है बल्कि यहां पर स्वर्ण भंडार को आसानी से बेचा भी जा सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण के कई खरीदार यहां आसानी से उपलब्ध रहते हैं। कुल मिलाकर इंग्लैंड स्वर्ण का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा बाजार हैं। लंदन के बाद न्यूयॉर्क को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण का एक बड़ा बाजार माना जाता है। भारत को इस स्वर्ण भंडार को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिवर्ष फी के रूप में कुछ राशि बैंक आफ इंग्लैंड को अदा करनी होती थी अतः अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 100 टन स्वर्ण भंडार को भारत लाने के बाद इस फी की राशि को अदा करने से भी भारत बच जाएगा। दूसरे अपने यहां स्वर्ण भंडार रखने से भारत के पास सदैव तरलता बनी रहेगी। जब चाहे भारत इस स्वर्ण भंडार का इस्तेमाल स्थानीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हित के लिए कर सकता है। वर्ष 2009 में भारत ने 200 टन का स्वर्ण भंडार अंतरराष्ट्रीय बाजार में 670 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि अदा कर खरीदा था। 15 वर्ष वर्ष बाद पुनः भारत ने अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करने का निश्चय किया है। स्वर्ण भंडार सहित आज भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गए हैं और यह भारत के लगभग एक वर्ष के आयात के बराबर की राशि है। अतः अब भारत को अपने स्वर्ण भंडार बेचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी इसलिए भी भारत ने ब्रिटेन में स्टोर किए गए अपने स्वर्ण भंडार को भारत में वापिस लाने का निर्णय किया है। विश्व में आज विभिन्न देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने पास स्वर्ण के भंडार भी बढ़ाते जा रहे हैं। आज पूरे विश्व में अमेरिका के पास सबसे अधिक 8133 मेट्रिक टन स्वर्ण के भंडार है, इस संदर्भ में जर्मनी, 3352 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ दूसरे स्थान पर एवं इटली 2451 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है। फ्रान्स (2437 मेट्रिक टन), रूस (2329 मेट्रिक टन), चीन (2245 मेट्रिक टन), स्विजरलैंड (1040 मेट्रिक टन) एवं जापान (846 मेट्रिक टन) के बाद भारत, 812 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत ने हाल ही के समय में अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करना प्रारम्भ किया है एवं यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 मेट्रिक टन स्वर्ण भारतीय रुपए में खरीदा था। हाल ही के समय में चीन का केंद्रीय बैंक भारी मात्रा में अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण की खरीद कर रहा है। कुछ अन्य देशों के केंद्रीय बैंक भी अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करने में लगे हैं। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण के दामों में बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई है और यह 2400 अमेरिकी डॉलर प्रति आउंस तक पहुंच गई है। कई देश संभवत: अपने विदेशी मुद्रा के भंडार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्वर्ण भंडार को अधिक महत्व दे रहे हैं, क्योंकि अमेरिकी डॉलर पर अधिक निर्भरता से कई देशों को आर्थिक नुक्सान झेलना पड़ रहा है। यदि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत हो रहा हो तो उस देश की मुद्रा का अवमूल्यन होने लगता है। इससे उस देश में वस्तुओं का आयात महंगा होने लगता है और उस देश में मुद्रा स्फीति के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। इन विपरीत परिस्थितियों में घिरे देश के लिए स्वर्ण भंडार बचाव का काम करते हैं। इसलिए आज लगभग प्रत्येक देश के केंद्रीय बैंक अपने स्वर्ण भंडार को बढ़ाने के बारे में विचार करते हुए नजर आ रहे हैं। प्रहलाद सबनानी
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प्रकाशनार्थ पुस्तक समीक्षा: मोदी vs खान मार्केट गैंग
Updated: June 15, 2024
पुस्तक लेखक: श्री अशोक श्रीवास्तव (खातिलब्ध एंकर, दूरदर्शन समाचार)समीक्षा लेखक: शिवेश प्रताप (लेखक एवं स्तंभकार) विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए…
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कुमाऊनी बोली और भाषा से कैसे जुड़ेगी नई पीढ़ी?
Updated: June 15, 2024
श्रुति कपकोट, उत्तराखंड“बेडू पाको बारो मासा, नारायण ! काफल पाको चैता मेरी छैला” (बेडू तो बारह माह पकते हैं, लेकिन काफल तो केवल चैत माह में ही…
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पिता-पुत्र के संबंधों की संस्कृति को जीवंत बनाएं
Updated: June 15, 2024
अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस- 16 जून, 2024– ललित गर्ग- किसी के भी जीवन में पिता की क्या भूमिका होती है, इसे शब्दों में बयां करने की…
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दूध की चाय पीने के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
Updated: June 15, 2024
डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणाभारत में दूध की चाय पीना अधिकतर लोगों के दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हो चुका है। उच्च शिक्षा प्राप्त, उच्च पदस्थ…
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बरेदी
Updated: June 15, 2024
एक हैं जरिया, दिन दुपहरियासमंदर की भांति उर हैं दरियापशुओं को लेकर चल दिया बरेदीएक बेरा खेवत खलियान,पहने कपड़े आधदूजी बेरा चल दिया चरानेभैंस के…
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14 जून 1033 को महाराजा सुहेलदेव ने काटी थी शत्रु की 11 लाख की सेना
Updated: June 15, 2024
14 जून 1033 को महाराजा सुहेलदेव ने काटी थी शत्रु की 11 लाख की सेना महाराजा सुहेलदेव पराक्रम दिवस- तुलसीदास जी बहराइच में जारी कब्र…
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बाजार के फादर्स डे का ‘तर्पण’
Updated: June 14, 2024
16 जून ‘फादर्स डे’ पर विशेषमनोज कुमारबाजार ने अपने लाभ के लिए रिश्तों का बाजार खोल दिया है. अभी माँ के लिए मदर्स डे मनाया…
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अधिक ऋण के बोझ तले वैश्विक अर्थव्यवस्था कहीं चरमरा तो नहीं जाएगी
Updated: June 14, 2024
विश्व के समस्त नागरिकों एवं विभिन्न संस्थानों पर लगभग 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण है। कुल ऋण की उक्त राशि में विभिन्न देशों की सरकारों के ऋण एवं नागरिकों के व्यक्तिगत ऋण भी शामिल है। कई देशों को मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण पाने में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, विकास करने का दबाव विभिन्न देशों की सरकारों पर है अतः सरकारों के साथ साथ व्यक्ति भी बहुत अधिक मात्रा में ऋण ले रहे हैं। परंतु, कितना ऋण प्रत्येक व्यक्ति अथवा सरकार पर होना चाहिए, इस विषय पर भी अब गम्भीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है। आज विश्व की कुल जनसंख्या 810 करोड़ है और विश्व पर कुल ऋण की राशि 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है इस प्रकार औसत रूप से विश्व के प्रत्येक नागरिक पर 39,000 अमेरिकी डॉलर का ऋण बक़ाया है। 320 लाख करोड़ रुपए के ऋण की राशि में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा लिया गया ऋण, व्यापार एवं उद्योग द्वारा लिया गया ऋण एवं व्यक्तियों द्वारा लिया गया ऋण शामिल है। पूरे विश्व में परिवारों/व्यक्तियों द्वारा 59 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है। व्यापार एवं उद्योग द्वारा 164 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है। साथ ही, सरकारों द्वारा 97 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है, ऋण की इस राशि में एक तिहाई हिस्सा विकासशील देशों की सरकारों द्वारा लिया गया ऋण भी शामिल है। सरकारों द्वारा लिए गए ऋण की राशि पर प्रतिवर्ष 84,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ब्याज का भुगतान किया जाता है। विश्व में प्रत्येक 3 देशों में से 1 देश द्वारा कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च की गई राशि से अधिक राशि ऋण पर ब्याज के रूप में खर्च की जाती है। आकार में छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक ऋण लेना सदैव ही बहुत जोखिमभरा निर्णय रहता आया है। पूरे विश्व में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 109 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है जबकि ऋणराशि का आकार 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। इस प्रकार, एक तरह से आय की तुलना में खर्च की जा रही राशि बहुत अधिक है। इसे संतुलित किया जाना अब अति आवश्यक हो गया है अन्यथा कुछ ही समय में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। पूरे विश्व में लिए गए भारी भरकम राशि के ऋण के चलते अमीर वर्ग अधिक अमीर होता चला जा रहा है एवं गरीब वर्ग और अधिक गरीब होता चला जा रहा है, क्योंकि अमीर वर्ग ऋण का उपयोग अपने लाभ का लिए कर पा रहा है एवं इस ऋण राशि से अपनी सम्पत्ति में वृद्धि करने में सफल हो रहा है। जबकि, गरीब वर्ग इस ऋण की राशि का उपयोग अपनी देनंदिनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करता है और ऋण के जाल में फंसता चला जाता है। इसके साथ ही, हालांकि विश्व में दो विश्व युद्ध हो चुके हैं, वर्तमान में भी रूस यूक्रेन युद्ध एवं इजराईल हमास युद्ध चल ही रहा है। परंतु, फिर भी इस सबका असर अमीर वर्ग पर नहीं के बराबर हो रहा है। हां, गरीब वर्ग जरूर और अधिक गरीब होता जा रहा हैं क्योंकि विश्व के कई देशों में, ब्याज दरों में लगातार की जा रही बढ़ौतरी के बाद भी, मुद्रा स्फीति नियंत्रण में नहीं आ पा रही है। मुद्रा स्फीति का सबसे अधिक बुरा प्रभाव गरीब वर्ग पर ही पड़ता है। अमीर वर्ग (जिनकी सम्पत्ति 2 करोड़ 28 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक है), इनकी संख्या वर्ष 2023 में 5.1 प्रतिशत से बढ़ गई है और इनकी कुल सम्पत्ति 86.8 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गई है और यह भी 5 प्रतिशत की दर से बढ़ गई है। वर्ष 2020 के बाद से विश्व के 5 सबसे अधिक अमीर व्यक्तियों की संपत्ति दुगुनी हो गई है। साथ ही, वर्ष 2020 के बाद से विश्व के बिलिनायर की सम्पत्ति 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़ गई है। इन कारणों के चलते अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। जिस रफ्तार से विश्व में गरीबी कम हो रही है, इससे ध्यान में आता है कि इस धरा से गरीबी को हटाने में अभी 229 वर्ष का समय लगेगा। जैसे जैसे विश्व में विकास की दर तेज हो रही है अमीर व्यक्ति अधिक अमीर होते जा रहे हैं एवं गरीब व्यक्ति अधिक गरीब होते जा रहे हैं। आज से पहिले विश्व में कभी भी इतने अधिक अमीर नागरिक नहीं रहे हैं। वैश्विक स्तर पर उक्त वर्णित ऋण सम्बंधी भयावह आंकड़ों के बीच अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत की स्थिति नियंत्रण में नजर आती है। वैसे भी, ऋण का उपयोग यदि उत्पादक कार्यों के लिए किया जाता है एवं इससे यदि धन अर्जित किया जाता है तो बैकों से ऋण लेना कोई बुरी बात नहीं है। बल्कि, इससे तो व्यापार को विस्तार देने में आसानी होती है और पूंजी की कमी महसूस नहीं होती है। साथ ही, भारतीय नागरिक तो वैसे भी सनातन संस्कृति के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए अपने ऋण की किश्तों का भुगतान समय पर करते नजर आते हैं इससे भारतीय बैकों की अनुत्पादक आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हो रही है। भारत के बैकों की ऋण राशि में हो रही अतुलनीय वृद्धि के बावजूद, भारत में ऋण:सकल घरेलू उत्पाद अनुपात अन्य विकसित देशों की तुलना में अभी भी बहुत कम है। हालांकि यह वर्ष 2020 में 88.53 प्रतिशत तक पहुंच गया था, क्योंकि पूरे विश्व में ही कोरोना महामारी के चलते आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी। परंतु, इसके बाद के वर्षों में भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है और यह वर्ष 2021 में 83.75 प्रतिशत एवं वर्ष 2022 में 81.02 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गया है। साथ ही, भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के वर्ष 2028 में 80.5 प्रतिशत के निचले स्तर पर आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। यदि अन्य देशों के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात की तुलना भारत के ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के साथ की जाय तो इसमें भारत की स्थिति बहुत सुदृढ़ दिखाई दे रही है। पूरे विश्व में सबसे अधिक ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात जापान में है और यह 255 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। इसी प्रकार यह अनुपात सिंगापुर में 168 प्रतिशत है, इटली में 144 प्रतिशत, अमेरिका में 123 प्रतिशत, फ्रान्स में 110 प्रतिशत, कनाडा में 106 प्रतिशत, ब्रिटेन में 104 प्रतिशत एवं चीन में भी भारी भरकम 250 प्रतिशत के स्तर के आसपास बताया जा रहा है। अर्थात, विश्व के लगभग समस्त विकसित देशों में ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 100 प्रतिशत के ऊपर ही है। भारत में इस अनुपात का 81 प्रतिशत के आसपास रहना संतोष का विषय माना जा सकता है। हाल ही के समय में भारत में विनिर्माण इकाईयों की उत्पादन क्षमता का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ा है, वित्तीय वर्ष 2022-23 के चौथी तिमाही में विनिर्माण इकाईयों द्वारा अपनी उत्पादन क्षमता का 76.3 प्रतिशत उपयोग किया जा रहा था, जिसके कारण उद्योग जगत को ऋण की अधिक आवश्यकता महसूस हो रही है। बढ़े हुए ऋण की आवश्यकता की पूर्ति भारतीय बैंकें आसानी से करने में सफल रही हैं। यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विकसित देशों में भी प्रायः यह देखा गया है कि बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋण में वृद्धि के साथ उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी तेज गति से वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। भारत में भी अब यह तथ्य परिलक्षित होता दिखाई दे रहा है। भारत में आर्थिक गतिविधियों में आ रही तेजी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ऋण की मांग लगातार बढ़ रही है। फिर भी, भारत में कोरपोरेट को प्रदत ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत वर्ष 2015 के 65 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 50 प्रतिशत हो गया है। इसका आशय यह है कि इस दौरान कोरपोरेट ने अपने ऋण का भुगतान किया है एवं उन्होंने सम्भवत: अपनी लाभप्रदता में वृद्धि दर्ज करते हुए अपने लाभ का पूंजी के रूप में पुनर्निवेश किया है। दूसरे, भारत में विभिन्न बैंकों द्वारा प्रदत्त लम्बी अवधि के ऋण सामान्यतः आस्तियां उत्पन्न करने में सफल रहे हैं, जैसे गृह निर्माण हेतु ऋण अथवा वाहन हेतु ऋण, आदि। इस प्रकार के ऋणों के भविष्य में डूबने की सम्भावना बहुत कम रहती है। बैकों द्वारा खुदरा क्षेत्र में प्रदत्त ऋणों में से 10 प्रतिशत से भी कम ऋण ही प्रतिभूति रहित दिए गए हैं जैसे सरकारी कर्मचारियों को पर्सनल (व्यक्तिगत) ऋण, आदि। पर्सनल ऋण प्रतिभूति रहित जरूर दिए गए हैं परंतु चूंकि यह सरकारी कर्मचारियों सहित नौकरी पेशा नागरिकों को दिए गए हैं, जिनकी मासिक किश्तें समय पर अदा की जाती हैं, अतः इनके भी डूबने की सम्भावना बहुत ही कम रहती है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि भारत में अब बैकों द्वारा ऋण सम्बंधी व्यवसाय बहुत सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में यह पाया गया है कि भारतीय बैंकों की अनुत्पादक आस्तियों की वृद्धि पर अंकुश लगा है। यह भी संतोष का विषय है कि हाल ही के समय में भारतीय बैकों से प्रथम बार ऋण लेने वाले नागरिकों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इसका आशय यह है कि भारतीय नागरिक जो अक्सर बैकों से ऋण लेने से बचते रहे हैं वे अब बैकों से ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि इस बीच बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋण सम्बंधी शर्तों को आसान बनाया गया है। कुल मिलाकर भारत के संदर्भ में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि भारतीय नागरिकों में सनातन संस्कृति के संस्कार होने के कारण बैकों से ऋण के रूप में उधार ली गई राशि का समय पर भुगतान किया जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया की तरह माना जाता है, जिसके कारण भारतीय बैंकों के अनुत्पादक आस्तियों की राशि अन्य देशों की बैंकों की तुलना में कम हो रही है। अतः वैश्विक स्तर पर गम्भीर होती ऋण सम्बंधी समस्या का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधे सीधे पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है।
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संघ शिक्षावर्ग – राष्ट्रसाधना के प्रशिक्षण का प्रसंग
Updated: June 14, 2024
ग्रीष्म की छूट्टियों में जब कि सामान्यतः लोग किसी पहाड़, पठार, ठंडे स्थान जैसे सुरम्य स्थान पर या होटल के वातानुकूलित कमरों में जाकर आराम…
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