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ईंट भट्ठों की तपिश में मजबूर होते मजदूर

उत्तर भारत(खासकर) बिहार और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण इलाक़ों का दायरा काफ़ी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। इन क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी कंपनियों तथा कारखानों का अभाव बना रहता है। ऐसे में कुछ पूंजीपति लोगों द्वारा छोटे-मोटे कारखाने या फिर निजी व्यवसाय ही वहाँ के मजदूरों के लिए जीविका का साधन होता है।  इस क्रम में एक व्यवसाय जिसके लिए काफ़ी संख्या में मजदूरों और कारीगरों की आवश्यकता होती है वह है ईंट भट्टा । हालाँकि इस व्यवसाय ले लिए साल के चार-पाँच महिनों को ही उपयुक्त माना गया है जिस दौरान बारिश की संभावना बिल्कुल भी नहीं होती है। चूँकि मुख्य तौर पर साल के कुछ ही महीनों तक चलने वाला यह व्यवसाय ग्रामीण सारे मजदूरों के लिए उपयुक्त नहीं हो पाता है इसलिये उनमें से कुछ गाँव छोड़कर बाहर शहरों या फिर दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं।

अक्सर देखा यह जाता है कि इन ईंट भट्ठों में काम करने के लिये झारखंड या किसी दूसरे राज्यों से मजदूरों को लाया जाता है।

इन मजदूरों को लाने के क्रम में ईंट भट्टा मालिकों के बीच हमेशा नौ और छौ का आकड़ा रहता है। मजदूरों को अधिक पैसों की लालच देकर हर एक भट्टा मलिक अपनी दाल गलाने में लगे रहते हैं।

चूँकि मैं ग्रामीण इलाक़े से हूँ और मैने इस तरह के कारनामे होते हुए देखा है। दरअसल, बाहर के राज्यों से आये मजदूरों के साथ सबसे बड़ी समस्या उनकी भाषा को लेकर होती है। इस क्रम में कई बार ऐसे मुसीबत खडी हो जाती हैं जिससे वहाँ के ग्रामीण मजदूरों और इनके बीच मारपीट की नौबत आ जाती है। ईंट भट्ठों पर कम करने के लिए लाए गये दूसरे राज्यों से मजदूरों में ऐसे कई सारे होते हैं जो या तो कम उम्र के होते है या फिर उन्हे बंधुआ बनाकर काम लिया जाता है।

बंधुआ मज़दूरी को लेकर पिछले कई सालों से हाईकोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इस दिशा में कार्य कर रही है। इस क्रम में हाल ही में उत्तर प्रदेश व पड़ोसी राज्यों के जिलों से काफ़ी संख्या में बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया गया है। ये सारे ईंट भट्ठों  पर काम करते थे ।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे ज़्यादा है और वहीं से करीब 1000 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया गया है।

ऐसा देखा गया है कि देश में चल रहे ईंट भट्ठों में मजदूरों के लिए मज़दूरी का कोई हिसाब-किताब नहीं रखा जा रहा है और साथ ही मजदूरों को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है। इस क्रम में मैं आपको यह भी बता दूँ कि ये वो मजदूर हैं जो किसी दूसरे राज्यों से परिवार सहित लाए जाते हैं। शुरू-शुरू में पैसों की लालच में फंसकर बाद में इनको मजबूर किया जाता है। एक डेटा के मुताबिक उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के 180 में से मात्र 111 ने ही प्रदूषण विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र लिया हुआ है। ईंट पकाई के दौरान दिए जाने वाले शुल्क सभी राज्यों के लिए अलग-अलग तय है। उत्तर प्रदेश सरकार के अधिसूचित पकाई दर 202 रुपया प्रति हज़ार( जिसमे ठेकेदार का कमीशन लगभग 14 रुपया शामिल है) की बजाय आपसी समझौते के आधात पर 221 रुपया प्रति हज़ार मज़दूरी दिलाने की बात बताते हैं जबकि  कमीशन इसमे अलग है।

ऐसे में एक बात को सामने आती है वह यह है कि कुछ जगहों पर बंधुआ घोषित करने के पीछे  अफ़सर रैकेट संचालन  की भी बात से मुकरा नहीं जा सकता है।

ऐसे में आवश्यकता है कि ईंट भट्ठो  के क्रियाकलापों व मजदूरों की मज़दूरी का लेखा-जोखा तैयार किया जाए। साथ ही  ईंट भट्ठो पर बुनियादी  सुविधाएँ मुहैया करवाने के लिए ठोस उपायों की ज़रूरत है और यह तभी संभव है जब श्रम विभाग गंभीरता से इन चीज़ों पर विचार करेगी।

 

अर्जुन सिंह मर गये?

अर्जुन सिंह भी मर गये  ?  अब आप कहेंगे कि मै बजाय निधन या पंचतत्व में विलिन जैसी सभ्य बोली को छोडकर मर गये जैसी भाषा में क्यों पूछ रहा हूँ … इसका कारण है मेरा अब भारतीय कुप्रथाओं का विरोध .. हमारी एक बहुत बडी कुप्रथा है कि मरने वाले के बारे में हम कोई चर्चा नही करते हैं उसकी सारी बुराईयों को छोडकर केवल अच्छाईयों की बातें करते हैं । चलो उस परंपरा का निर्वहन करते हुये सबसे पहले उनकी तारिफ करता हूँ … ये एक ऐसे व्यक्ति रहे है जिन्होने देश के लगभग हर बडे पद पर कार्य किये हैं । इनकी सबसे बडी उपलब्धी पंजाब से आतंकवाद को खत्म करना था । १४ मार्च १९८५ को उन्होंने पंजाब के राज्यपाल के पद का दायित्व सभांला। २५ जुलाई १९८५ को अर्जुन सिंह जी उस दायित्व को पूरा करने में सफल हो गये जिसके लिये उन्हें पंजाब भेजा गया था। उस दिन हरचरण सिंह लोगोंवाल ने प्रधानमत्री श्री राजीव गांधी से मुलाकात की और पंजाब समझौते पर हस्ताक्षर किया।  ….. और यदि इन्होने गर्वनर के पद पर रहते हुये गिल को खुली छूट नही दिये होते तो आज भी हम पंजाब को जलता देखते रहते । … चलो हो गये खुश … अब बतायें इन्होने क्या किये …. चुरहट लाटरी कांड याद है कि भूल गये कि किस तरह से मुख्यमंत्री पद न्यायालय के आदेश पर इन्हे छोडना पडा था । … चलो जाने दो यार मर गये को अब क्या उखाडना
लेकिन अब मरने के बाद क्या होगा । अर्जुन के काले करोडों रूपयों का क्या होगा (अब ये मत कहना कि उनके पास कुछ नही होगा या वे इमानदार थे  , भाई जैन हवाला कांड की डायरी के नामों को याद करो)  एंडरसन के साथ हुए मौत के सौदों का क्या होगा,   आरक्षण जैसे बेतुके और देशद्रोह पूर्ण निर्णयों पर सहमती देकर इन्हे क्या मिलेगा …. जानते हैं क्या मिलेगा केवल एक तमगा मेरी ओर से … ये कि इन्होने केवल स्वार्थ की राजनीती किये इन्हे देश की कभी कोई परवाह नही रही और ना ही मान सम्मान की .. ये उन मोटी चमडी वालों में से एक हैं जिन्हे आप कुछ भी कह दो कोई फर्क नही पडता क्योकि उनका जवाब होता है .. क्या हुआ .. गाली ही तो दिया ना .. पैसे ले गया क्या …….
लेकिन उनके मरने के बाद क्य होगा ये इस देश के नेताओं को बताना चाहूंगा कि देखो किस तरह से इनकी  मौत अमावस को हुई है ,, अमावस को प्रेत लोक के अलावा हर लोक के दरवाजे बंद रहते हैं और प्रेतात्माएं घुमती रहती है …… अब जबकि अर्जुन मरे हैं तो उनकी आत्मा तो निकली ही होगी और इस समय गैस कांड में अकाल मौत मरे सारे लोग उन्हे बडे आराम से अपने पास बैठा कर सेंक रहे होंगे । उन्हे अपने कर्मों को भुगतने के लिये रोज एक नया जन्म लेना पडेगा कभी वो चींटी बन कर पैदा होंगे तो कभी बिल्ली के घर … हर जन्म में वो अपने पापों को याद किया करेंगे कि मैने अपने दुर्लभ मानव शरीर का किस तरह से दुरूपयोग किया था .. मैने अपने जिन नाती पोतों को ध्यान में रखकर पाप से पैसा कमाया वो सब अब गलत संगत में पडकर उन पैसों को उडा दिये हैं और किस तरह से एक एक कर बदनाम मौत मर रहे हैं ।
हे इस लेख को पढने वालों जरा गौर से पढो सोचो और समझो इस कथा को  …….. एक राजा था । उसका देश पूरे दुनिया का तीसरा सबसे बडा देश था और वहां की प्रजा बडी धार्मिक और कर्मठ थी । जनता ईमानदारी से अपना काम करती थी किंतु वह अपनी प्रजा पर कैसे भी करके टैक्स वसूली जारी रखता था जिन पैसों से जनता का भला हो सकता था उनसे वह अपना गुप्त धन बढाता था । वह अपने पैसों को दुसरे देशों में भी जमा करके रखता जाता था ताकि विपत्ति आने पर वह उस धन का उपयोग कर सके । एक दिन उसके अत्याचारों से त्रस्त जनता नें विद्रोह कर दिया और राजा के संभलने के पहले ही उसे उसके पूरे परिवार सहित मार डाला ।
राजा नें अपना जो धन दुसरे देशों में रखा था उन्हे मुफ्त में पाकर दुसरे देश समृद्ध होते गये ।  जिस धन को परिवार के लिये गडा कर रखा था वह सारा धन मिट्टी में दबता चला गया लेकिन राजा की आत्मा अपने धन को पाने के लिये भटकते रही । वह आज भी  कैसे भी करके अपने धन को वापिस पाना चाहता है … अब वो चाहता है तो चाहे लेकिन आप सोचकर देखें कि अगर उसे धन मिल भी जाता है तो क्या वह अपनी आत्मा के साथ ले जा सकता है . …. नही…. क्योकि धन का उपयोग आत्मा के लिये नगण्य है …. आत्मा केवल कर्म के आधार पर ही दिव्यात्मा बन सकती है । धन का लोभ हर बार आपकी आत्मा को प्रेतलोक में लेकर जाता है । इसलिये पापों को छोडो और देश धर्म की ओर लौटो । और हां ये बातें  केवल भारतीय विचारधारा वालों के लिये है इटालियन विचारधारा के लिये ही तो कहानी लिखा हूँ ।

तीसरा विश्वयुद्ध शुरू – नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी पूर्णता की ओर

मैं जो लिख रहा हूँ वह कोई आजकल की लिखी हुई किताब से नही है बल्कि 14 दिसंबर 1503 को फ्रांस में जन्मे नास्त्रेदमस की लिखी भविष्यवाणी पर आधारित  पुस्तक से  पढकर लिख रहा हूँ ।
                                      नास्त्रेदमस की दुर्लभ भविष्यवाणी नामक इस पुस्तक के अनुवादक अशोक कुमार शर्मा हैं । मैं इस पुस्तक को पढ रहा था कि इसके पृष्ट क्रमांक 48 पर निगाह पडते ही मैं सन्न रह गया इसमें लिखा है “एक पनडुब्बी में तमाम हथियार और दस्तावेज लेकर वह व्यक्ति इटली के तट पर पहुंचेगा और युद्ध शुरू करेगा । उसका काफिला बहुत दूर से इतालवी तट तक आएगा “
                              अब इसके आगे की लाइन पर गौर फरमाएँ –  अगर विश्व मानचित्र को ध्यान से देखा जाये तो इटली के तट की ओर आने के लिये सबसे उपयुक्त रास्ता समद्र मार्ग ही लगता है । आधुनिक युद्धों में किसी भी देश पर मिसाइल तथा विमानों से आक्रमण करना तो संभव होगा नही । फिर पनडुब्बी द्वारा समुद्र के भीतर-भीतर होकर एक दम किसी देश पर हमला कर देना आसान भी  है और कम जोखिमभरा भी । अपने ही देश में दुश्मन पर अणु बम भी नही चलाया जा सकता । इससे मुकाबला सैनिको के बीच होगा न कि तकनीक के बीच ।
                                                        इसके बाद की लाइनों ने ही मेरे होश उडा दिये इसमें साफ साफ लिखा गया कि – इटली के चारो ओर मित्र राष्ट्र हैं मगर कुछ ही दूरी पर लगभग एक हजार किलोमीटर के क्षेत्र में लीबिया, अल्जीरिया, मिश्र, सउदी अरब, तुर्की और इस्राइली तट हैं । इनमें से कौन सा देश युद्ध शुरू करेगा अनुमान लगाना कठिन है मगर पश्चिमी समीक्षक यह संदेह करते हैं कि लीबिया यह कारनामा कर सकता है ।
                                     अब इसे पढने के बाद आप बतायें कि हाथों को लिखने से कैसे रोका जा सकता है । चाहे जैसी भी समीक्षा की की गई हो लेकिन यह बहुत ही सटीक भविष्यवाणी है ।  इन भविष्याणीयों में और भी कई बातें जुडी हुई है मगर वर्तमान में जिस तरह से वातावरण बन रहा है उसमें अमेरिका- रूस का गठबंधन एवं पूर्व में चीन- अरब गठबंधन बनने की आशंका बताई गई है । अभी हाल ही में इरान नें अमेरिका को लीबिया में दखलंदाजी करने से मना किया है । लेकिन ऊपर जिस तरह से पनडुब्बी की बात आई है उससे तो यही लगता है कि अमेरिका मित्र देशों के साथ मिलकर लीबिया को नो फ्लाई जोन में तब्दील करवा सकता है जिसके बाद गद्दाफी के पास पनडुब्बी के अलावा कोई दुसरा विकल्प नही बचेगा । 
                          अभी अभी की खबर है  –     समाचार चैनल ‘अल जजीरा’ के मुताबिक रास लानूफ शहर के ऊपर लड़ाकू विमान चक्कर लगा रहे हैं, जबकि विद्रोही विमानों का अपना निशाना बना रहे हैं। यानि की मैं इस खबर को लिख रहा हूँ और भविष्यवाणी का समय पास आता जा रहा है । इसके अलावा इसमें जिस तरह से विश्व के नेताओं की स्थिति जाहिर की गई है वह इस समय बिल्कुल सही स्थान पर है जैसे – तीन ओर  जल से घिरे देश में  एक नेता होगा जो जंगली नाम वाला होगा (इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है की भविष्य में कोई सिख(सिंह ) भारत मे प्रधानमंत्री पद पर बैठेगा ) वर्तमान में मनमोहन सिंह इसी पद पर हैं , एक देश मे जन क्रांति से नया नेता सत्ता संभालेगा ( मिश्र में हो चुका है )  नया पोप दुसरे देश में बैठेगा (वर्तमान के पोप फ्रांस में रहते हैं ) मंगोल (चीन) चर्च के खिलाफ युद्ध छेडेगा ( चीन नेंं अमेरिका को लीबिया से दूर रहने की सलाह दे डाली है ) इसके अलावा और भी कई चीजें ऐसी होने वाली है जो कुछ ही दिनों में पूरी हो सकती है । जैसे – छुपा बैठा शैतान अचानक बाहर निकल आएगा ( ओसामा या अन्य बडा आतंकवादी समाने आ सकता है) नया धर्म (इस्लाम) चर्च के खिलाफ भारी मारकाट करते हुए इटली और फ्रांस तक जा पहुंचेगा । 
                                                   उफ्फ्फ्फ्फ ना जाने और भी कितनी बातें है जिन्हे पढने से ही सिहरन हो जाती है । लेकिन जो नियती है वह तो निभ  कर ही रहेगी । 

ललक ‘बहरूपिया’ वोटर को रिझाने की

बहुमत पाने के लिए आजकल बिसातें बिछाने का पूर्वाभ्यास चल रहा है। उत्तर प्रदेश का राजनीतिक प्रांगण किसी विश्वकप से कम नहीं आंका जाना चाहिए । यह वह जमीं है जहां से कई नेताओं को तो प्रधानमंत्री तक का तमगा मिल चुका है। चाहे वह वैकल्पिक हो या सच्चा कद्दावर नेता। जनता सबकी नब्ज टटोलती है। जिस पर मन पसीजा उसे बेखौफ अपना मत दे डालती है। यहां की जनता का दिल कब किस पर मेहरबान हो जाए कोई नहीं जानता। बात 2007 के विधान सभा चुनाव की ही देखी जाए। उस समय मुलायम सरकार के जंगल राज से सभी त्रस्त थे। धुरंधर नेताओं से लेकर राजनैतिक पंडित तक नहीं समझ पा रहे थे कि राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा,लेकिन जनता शायद भ्रमित नहीं थी। उसने मन बना तो लिया था,लेकिन इसके साथ ही शायद यह भी कसम खा ली थी कि पेट की बात बाहर नहीं आने देगा।

 

भाजपा,कांगे्रस,सपा और बसपा सभी अपनी जीत के दावे कर रहे थे।तरहतरह के नारे हवाओं में गूंज रहे थे।मुलायम को अपनी सत्ता बचाने की चिंता थी तो विपक्ष उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने को उतावला था।नेताओं के दौरे शुरू हो गए थे,लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती यूपी आने से कतराती रहीं। यही वजह थी मुलायम राज में यूपी से दूरी बना कर चल रहीं बसपा सुप्रीमों मायावती की पार्टी के सत्ता में आने का कोई दावा नहीं कर रहा था। हॉ,इतना जरूर कहा जा रहा था कि बसपा पहले से अधिक मजबूती हासिल कर सकती है। लेकिन जनता ने जब अपने मन की बात वोटिंग मशीन का बटन दबा कर जगजाहिर की तो नतीजे चौंकाने वाले निकले। हाथी पर मतवाले मतदाताओं ने अपनी ताकत के बल पर सत्ता परिवर्तन करके माया की ताजपोशी का रास्ता साफ कर दिया।॔ च़ गुंडों की छाती पर, मोहर लगाओ हाथी पर’ बसपा के इस एक नारे ने जादू सा कर दिया।माया,मुलायम के जंगल राज के खातमें की बात जगहजगह कह रहीं थीें। शायद मुलायम राज से जनता अकुलाई थी और उसने मन बना लिया था कि कुर्सी किसी एक के हवाले करो, वो चाहे कोई भी हो, आधा अधूरा बहुमत किसी काम का नहीं। ऐसा ही हुआ ।सपा की नैया डूब गई और बसपा को खेवनहार मिलते ही गये। खासकर ब्राह्मणों ने अपनी जादुई छड़ी से दलित नेत्री को एक बार फिर मुख्यमंत्री का दर्जा दिला दिया था। भाजपा से रूष्ट या यूं कहिए कि सवर्णों की दशा और दिशा की ओर ध्यान न दे पाने वाली इस पार्टी से ठाकुर ,ब्राहमण,या अन्य अगड़ी जातियों का मोहभंग सा हो गया था जो 2007 के विधान सभा चुनाव में भी जारी रहा। उसे भाजपा फूटी आंख भी नहीं सुहा रही थी। आरएसएस वाले बैकफुट पर आ गये। भाजपा के प्रति उनकी रूचि खत्म सी हो गयी थी। यही कारण रहा कि पेशे से वकील रहे एक अराजनैतिक ब्राहमण शख्स जिसकी थोड़ीबहुत पकड़ अपने समाज पर थी ने बहुजन के झंडे तले अपना तम्बू गाड़ बहुरूपिया वोटर को बसपा के साथ आने का न्योता दे दिया।बसपा के साथ ब्राहमणों का आना किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था,लेकिन माया के करिश्में ने ऐसा कर दिखाया।वह दलितों और ब्राहमणों को एक ही तराजू पर तौलती और ब्राहमणों के बीच जाती तो बस एक ही बात कहती ब्राहमणों का किसी भी राजनैतिक दल ने भला नहीं किया।यही वजह है आज वह भी दलितों की तरह दरिद्र हो गए हैं। यह बात ब्राहमणों के घर कर गई।उन्हें एक तरह से माया ने आईना दिखा दिया था। बस,ब्राहमण नीलामय हो गया।

यह बहुरूपिया वोटर अगड़ी जाति का था। जिसने जाति देखी न पांति । सिर्फ जुनून भर था। मुलायम सरकार को उखाड़ फेंकने का जिम्मा अपने कंधे पर ले लिया। जो वोटर कभी कांग्रेस का, कभी भाजपा फैन होता था। अपने आसपास अनुकूल पार्टी न पाकर दलित भावना में बह उठा। राजनीति और प्यार में सूरत या सीरत कोई मायने नहीं रखती। बसपा से सवर्ण का गठजोड़ काफी सुहाना रहा। यही समीचीन था। वक्त ने इतना साथ दिया कि अगड़ी जातियों का वोटर भी उसी लाइन में खड़ा हो गया । अगड़ों ने जाति बंधन तोड़कर दलित उम्मीदवारों को गले लगाया । वहीं जहां दलित वोटर था उसने ठाकुर,ब्राहमण,वैश्य, व कायस्थ का वोट पाकर अपना रूतबा जमा लिया। माया सर्वहारा की बिसात पर ताज पहन कर यूपी के सिंहासन पर आऱु हो गयीं। इससे मुलायम का मनोबल लड़खड़ा उठा,लेकिन सत्ता जाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। जनता पर अपनी पकड़ दर्शाने और माया को आईना दिखाने की चाहत में मुालयम नएनए प्रयोग करते ही रहे। उन्हें मुगालता था कि वह किसी हद तक इस राजनीतिक समर में किसी को सामने नहीं ठहरने देंगे, लेकिन बहुरूपिया वोटर ने मुलायम पर ज्यादा विश्वास नहीं किया । बहुरूपिया वोटर खीझा हुआ था। तो मुलायम उत्तर प्रदेश के वोटरों की फितरतको भूल से गए थे।उन्हें याद नहीं रहा कि यूपी का मतदाला मौके बेमौके वह बड़ेबड़े दिग्गजों को धराशायी कर बैठता है। यह खूबी उसमें हमेशा से रही है। वह चाहे रायबरेली में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ही क्यों न रही हों। जिनको राज नारायण जैसे अदने से नेता ने सरलता से पराजित कर दिया था। जिसकी खबर विदेशों में मुख पृष्ठों पर छापी गयी थी, (प्राइम मिनस्टर आफ इंडिया श्रीमती इंदिरागांधी इज डिफीटेड बाई राजनारायण ऐट रायबरेली इन उत्तर प्रदेश स्टेट।’ )

 

बात बदस्तूर जारी है, यूपी का नक्शा ही बेतरतीब राजनीतिक धरती से बना है। हर कोई यहां की कुशल राजनीति का कायल रहता है। मान्यता यह कि यदि किसी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति कर ली तो वह कहीं भी अपना झंडा गाड़ सकता है। आजादी के बाद अनेकों बार उत्तर प्रदेश के नेता ही दिल्ली का तख्त संभाले दिखे तो इसमें आश्चर्य किसी को नहीं हुआ। यहां का तो मुख्यमंत्री भी देश में मिनी प्राइम मिनिस्टर की हैसियत रखने वाला होता है।

उत्तर प्रदेश के बहरूपिया वोटर अपने प्रदेश के ही नहीं बाहरी प्रदेशों के नेताओं को भी काफी लुभाते हैं। यही वजह रही यूपी के बाहर के कई नेताओं ने यहां आकर अपनी किस्मत अजमाई। अटल बिहारी वाजपेई, कर्ण सिंह, राम विलास पासवान,नफीसा अली,संजय दत्त,जयाप्रदा आदि इसमें से चंद शख्सियतें हैं।भाजपा की दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा अपना तो उत्तर प्रदेश को अपना दूसरा घर ही बताने लगी है।

 

बहरहाल, एक बार फिर 2012 में बहरूपिया वोटरों से विभिन्न राजनैतिक दलों का सामना होना है।बहरूपिया वोटर हवा का रूख किस तरफ मोड़ दे कोई नहीं जानता। बहरूपिया वोटरों की वजह से ही मुलायम चार साल से अधिक सत्ता से दूर रहने के बाद भी वापसी का मोह नहीं छोड़ पाए हैं। कांगे्रस नेता और भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जा रहे राहुल गांधी भी गलतफहमी से निकल नहीं पा रहे हैं। पदयात्राओं, दलितों के घर जाकर उनके हाल चाल पूछने वाली गाथाओं पर पानी फिर रहा है। राहुल के लिए कांग्रेस सरकार की मंहगाई अभिशाप बन गई है। मंहगाई और घोटाले की आवाजें यूपी में सुनाई पड़ने लगी हैं। इन स्थितियों को देखते हुए एक बार यह कहा जा रहा है कि हाशिये पर पड़ी यूपी की कई राजनैतिक पार्टियां ठीक मायावती की किस्मत की तरह बहुरूपिया वोटर की मेहरबानी की ललक में है।

 

फोर लेन मामले में मीड़िया की सार्थक पहल का असर

मीड़िया ने सार्थक पहल कर सुप्रीम कोर्ट को सरकार को विलम्ब के कारण तीन सौ तिरतालीस करोड़ रु. हर्जाना देने का खुलासा कर जल्द मामले के निपटारे की लगायी गुहार

 

फोर लेन विवाद में जिले की मीडिया ने सार्थक पहल करते हुये भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र भेजकर अवगत कराया हैं कि केन्द्र सरकार को विलम्ब के कारण 1 मार्च 2011 तक 342 करोड़ रूपये हजौना ठेकेदारों को देया हो गया हैं जों किे 38 लाख 8 सौ रु. प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ता ही जायेगा। भू तल परिवहन मन्त्रालय कोर्ट में अपने ही दिये गये फ्लायी ओवर के विकल्प से अब लरगत की अरड़ लेकर मुकर रहा हैं जबकि योजना बी.ओ.टी. में बन रही हैं।आपसी सहमति बनाने के लिये कोर्ट एक साल से भी अधिक का समय दे चुकी हैं लेकिन आम सहमति नहीं बन पा रही हैं अत: कोर्ट शीघ्र मामले का निराकरण कर एक राष्ट्रीय परियोजना के पूर्ण होने में हो रहे विलम्ब को समाप्त कराने का कष्ट करें।

 

मीडिया द्वाराप्रेषित आवेदन में उल्लेख किया गया है कि समूचे देश में चारों महानगरो और चारों दिशाओं को न्यूनतम लम्बाई के मार्गों को जोड़कर ईन्धन एवं समय की बचत के लिये प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुर्भुज योजना के तहत एक्सप्रेस हाई वे बनाये जा रहे हैं। इसके तहत कन्याकुमारी से काश्मीर तक बनने वाला चार हजार कि. मी. लम्बा उत्तर दक्षिण कॉरीडोर मध्यप्रदेश के सिवनी जिले से होकर नागपुर से कन्याकुमारी तक बन रहा हैं। यह मार्ग मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में कुरई विकासखंड़ में स्थित पेंच नेशनल पार्क की सीमाओं के बाहर से जा रहा हैं। जिले में यह कॉरीडोर मार्ग लगभग 105.58 कि.मी. बनना हैं जिसमें से 67 किलोमीटर बन चुका हैं और मात्र 38.50 किलो मीटर बनना शेष हैं।

इस कारीडोर के निर्माण को रोकने के लिये एक एन.जी.ओं. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंड़िया दिल्ली द्वारा सुप्रीम कोर्ट में उक्त याचिका आई.ए.क्र. 1124/09 पेश की गई हैं जो कि विचाराधीन हैं। इस याचिका के जवाब में सम्प्रग शासनकाल के प्रथम कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण ने शपथ पत्र के साथ जो जवाब दिया था उसमें प्रथम आप्शन के रूप में फ्लाई ओवर(एलीवेटेड हाई वे) और आप्शन दो में वर्तमान एन.एच. के चौड़ीकरण का प्रस्ताव किया था। जिस पर वन एवं पर्यावरण विभाग सहमत नहीं था।

आवेदन में यह भी बताया गया है कि सी.ई.सी. की रिपोर्ट के बाद सिवनी के नागरिकों की ओर से इण्टरवीनर बनने का आवेदन लगाया गया। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने एमाइकस क्यूरी श्री साल्वे को यह निर्देश दिया कि वे सी.ई.सी. और एन.एच.ए.आई. के साथ बैठक कर एलीवेटेड हाई वे सहित अन्य विकल्प तलाशने का प्रयास करें। एक बैठक के बाद एन.एच.ए.आई. ने 9 अक्टूबर 2009 को एक शपथ पत्र देकर बैठक में सी.ई.सी. द्वारा आप्शन दो के बारे में सुझाये गये संशोधनों पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी हैं लेकिन आप्शन एक के बारे में शपथपत्र में कुछ भी नहीं कहा हैं। इसके बाद सम्प्रग शासन के दूसरे कार्यकाल में दिनांक 6 नवम्बर 2009 को श्री साल्वे ने कोर्ट में जो अपना नोट प्रस्तुत किया है उसमें यह उल्लेख किया है कि एन.एच.ए.आई. आप्शन एक, जो कि एलीवेटेट हाइ वे का था, के लिये सहमत नहीं हैं क्योंकि उसमें लगभग 900 करोड़ रूपये की राशि व्यय होगी। कोर्ट में एन.एच.ए.आई. द्वारा स्वयं के सुझाये गये प्रस्ताव पर अब असहमत होना समझ से परे हैं। जबकि ईन्धन और समय की बचत के मूल मन्त्र को लेकर बनायी जा रही परियोजना में निर्माण लागत का प्रश्न उठाना ही नहीं चाहिये। वैसे भी यह परियोजना बी.ओ.टी. योजना के अंर्तगत बनायी जा रही है।

 

मीडिया द्वारा प्रेषित इस आवेदन में स्थानीय सम्पादकों श्रीमती मञ्जुला कौशल,संवाद कुञ्ज, अशोक आहूजा,सुदूर सन्देश, विजय छांगवानी,युग श्रेष्ठ, मनोज मर्दन त्रिवेदी, यशोन्नति, प्रमोद शर्मा, दलसागर, के अलावा सम्भाग एवं प्रदेश स्तर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों के जिला प्रतिनिधि जिनमें दिनेश किरण जैन, भास्कर,आनन्द खरेू नवभारत, ओम दुबे हितवाद, सञ्जय सिंह जनपक्ष, आर.के.विश्वकर्मा नई दुनिया, वाहिद कुरैशी, एक्सपेस, हरीश रावलानी, लोकमत समाचार, सन्तसेष उपाध्याय, पत्रिका, सूर्यप्रकाश विश्वकर्मा, राज एक्सप्रेस, अभय निगम, हरि भूमि, के अलावा टी.वी. चैनल के प्रशान्त शुक्ला, साधना, तिलक जाटव, सहारा समय, सुनील हंर्चारिया, ई.टी.वी., काबिज खॉन टी.वी.99 चैनल के द्वारा प्रेषित आवेदन में आगे बताया गया हैं कि इस सम्बन्ध में कृपया जिला कलेक्टर सिवनी के संलग्न पत्र क्र./9025/रीडर-अपर कले./08 दिनांक 19/12/2008 का अवलोकन करने का कष्ट करें जो कि मध्यप्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वन विभाग एवं प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग को सम्बोधति हैं।इस पत्र में विस्तृत विवरण देते हुये बताया गया हैं कि राज्य शासन की अनुशंसा की प्रत्याशा में पेड़ कटाई प्रतिबन्धित कर दी गई हैं। इस पत्र में यह भी उल्लेख किया गया गया है कि केन्द्रीय साधिकार समिति के सदस्य डॉ. राजेश गोपाल ने 18 एवं 19 नवम्बर 2008 को जब कोर्ट के निर्देश पर विवादास्पद स्थल का भ्रमण किया था तो उसकी सूचना ना तो जिला कलेक्टर को दी गई थी और ना ही स्थानीय वन विभाग और प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर एन.एच.ए.आई.को गई थी। ऐसी परिस्थिति में जनमत का आकलन करना या आम आदमी को होने वाली असुविधाओं के बारे में विचार करना तो सम्भव था ही नहीं। इस पत्र में जिला कलेक्टर ने यह भी उल्लेख किया था कि रोके गये मार्ग में कई पुलियां अत्यन्त कमजोर हैं जिनसे दुघZटनायें होने की सम्भावना से कानून एवं व्यवस्था की स्थिति भी बन सकती हैं।

आवेदन में यह भी बताया गया हैं कि इसी पत्र में एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का भी उल्लेख किया हैं कि,Þ चूंकि रोक लग जाने पर ये बाधामुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पायेंगे। जिससे भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण को प्रोजेक्ट में देरी होने पर अपने कंशसेनर को प्रतिदिन करीब 6 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा देना होगा जिससे उन पर अनावश्यक वित्तीय भार पड़ेगा।ंß बी.ओ.टी. योजना के तहत बनाये जाने इस मार्ग की जिले में लम्बाई 105.58 कि.मी. हैं। जिसका लगभग 37.5 कि. मी. क्षेत्र का काम बाधा मुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पाने के कारण रुका पडा़ हैं। विवादास्पद पेंच पार्क के बाजू के हिस्से के अलावा छपारा के पास भी 9.24 कि.मी. मार्ग का निमार्ण भी वन विभाग की अनुमति नहीं होने से रुका पड़ा हैं। इस मार्ग की भूमि की चौड़ाई 60 मीटर हैं। इसके कारण टोल टैक्स की वसूली भी प्रारम्भ नहीं हो पा रहीं हैं। इस आधार पर यदि दोनों कम्पनियां पूरे 105.58 कि. मी. पर हर्जाने की मांग करती हैं तो इस भूमि का कुल क्षेत्रफल 633.58 हेक्टेयर होता हें जिस पर 6 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हर्जाने की राशि 38 लाख 8 सौ 80 रु. होती हैं। इस हिसाब से 1 मार्च 2011 तक की कुल राशि 343 करोड़ 17 लाख 29 हजार 7 सौ 20 रु. होती हैं जो शासन द्वारा ठेकेदार को देय होगी।

 

पत्र में आगे उल्लेख किया गया है कि इस राष्ट्रीय परियोजना का मूल मन्त्र ईन्धन और समय की बचत का है। लेकिन इसमें निर्माण में हो रहे अनावश्यक विलम्ब के कारण जहां एक ओर शासन को अरबों रूपयों का चूना लग रहा हैं वहीं दूसरी ओर इस विलम्ब के कारण राष्ट्र को क्षति उठानी पड़ रही हैं। माननीय न्यायालय ने भू तल परिवहन मन्त्रालय और वन एवं पर्यवरण मन्त्रालय को एक राय बनाने के लिये लगभग एक वर्ष से अधिक का समय दिया लेकिन वे इसमें अभी तक सफल नहीं हो पायें हैं।

 

अन्त में आववेदकगणों के द्वारा माननीय न्यायालय से अनुरोध किया है कि इस मामले का शीघ्र निराकरण करने का कष्ट करें।

 

प्रधान मंत्री की एक ओर अग्नि परीक्षा – मोदी कमेटी पर अमल कैसे हो?

चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी यु पी ऐ सरकार को कहीं ठौर नहीं है. निरंतर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी और विपक्षी हंगामों के चलते जांच-पड़ताल और ठोस  नतीजों की अपेक्षा सुनिश्चित करने में जुटी सरकार और कांग्रेस के दिग्गज सिपहसालार एक नई चुनौती से रूबरू होने जा रहे हैं.

महंगाई पर काबू पाने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित महंगाई- रोधी कमेटी ने द्रढ़ता के साथ निर्णय लिया है कि ’वायदा बाजार’  कारोबार तुरंत बंद किया जाना चाहिए यह एक एतिहासिक और महत्वपूर्ण  दूरगामी प्रगतिशील फैसला है, नाकेवल सत्तापक्ष  अपितु विपक्ष का प्रमुख दल भाजपा भी इस फैसले से यु  निश्चित ही द्विविधा में होगा. जहां तक वाम पंथ का सवाल है इसे तो मानो बिन मांगेमुराद मिली; क्योंकि विगत यु पी ऐ प्रथम के दौर से ही वाम ने  वायदा बाजार को महंगाई का एक बड़ा कारक सावित कर इसे समाप्त करने कि रट लगा राखी थी. तब प्रधानमंत्री जी ने कोई ध्यान नहीं दिया था .किन्तु विगत वित्तीय सत्र २००९-२०१० में   महंगाई से मची त्राहि -त्राहि को जब संयुक विपक्ष ने मुद्दा बनाया तो प्रधान मंत्री जी ने गत अप्रैल-२०१० में महंगाई पर रोक लगाने बाबत महंगाई-वीरोधी कमेटी गठित की. महाराष्ट्र , तमिलनाडु के मुख्यमंत्री सदस्य के रूप में शामिल किये गए और गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को अध्यक्ष बनाया गया. विगत वर्षों में भी जब संसद और उसके बाहर सड़कों पर विभिन्न राजनैतिक दलों ने आवाज उठाई तो कोई भी इसी तरह की कमेटी बिठाकर मामले की आंच को धीमा किया गया, योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने भी पहले तो वायदा कारोबार के विरोध में रिपोर्ट वनाई किन्तु दिग्गज खाद्द्यान्न माफिया के प्रभाव ने रिपोर्ट को वायदा बाजार का समर्थन करते हुए दिखाने पर मजबूर कर दिया था. नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने महंगाई जैसे मुद्दे पर सुझाव देने में भले ही ११ महीने लगाए हों किन्तु वायदा बाजार का स्पष्ट विरोध करके अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूर्ण की है. देखना यह है कि अब इस रिपोर्ट को लागू करने में सरकार कितना समय लेती है . वैसे केंद्र सरकार को शायद न तो महंगाई की चिंता है और न घोटालों की.
देश को वैश्वीकरण की राह पर ले जाने वाले हमारे प्रधान मंत्री जी हर जगह विवश और ढीले नजर आ रहे हैं. उनका दर्शन था की कोई और विकल्प नहीं है सिवाय एल पी जी के. यदि विकल्प नहीं थे तो अब मोदी कमेटी के सुझाव पर तो  अमल  करो.
देश में भरी बेरोजगारी बढी है, परिणामस्वरूप चोरियां ,ह्त्या लूट ,डकेती और बलात्कार आम बात हो चुकी है. लोग न घर में सुरक्षित हैं और न बाज़ार में.
अधिकांश   विपक्ष और मुख्यमंत्री इस वायदा बाज़ार को बंद करने के पक्ष में हैं. वायदा कारोबार का मुद्दा सीधेतौर से महंगाई से जुड़ा है. कृषि जिसों में अरबों रूपये के वायदा सौदे हो रहे हैं. इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में बड़े-बड़े औद्योगिक  घराने भी कूद  पड़े हैं . किसान वर्ग को इससे से रत्तीभर फायदा नहीं है. भृष्ट व्यपारियों ,बड़े अफसरों और सत्ता में बैठे मंत्रियों की इस सबमें हिस्सेदारी है.
आज देश घोटालेबाजों ,सट्टेबाजों के चंगुल में सिसक रहा है. आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. कहा जाता है कि महंगाई तो सर्वव्यापी और सर्वकालिक है. क्या बाकई यह सच है? नहीं..नहीं…नहीं…
विश्व कि महंगाई और भारत कि महंगाई में कोई समानता नहीं. विश्व के कई देशों में खाद्यान्न  कि भारी कमी है,  जबकि भारत में गेहूं-चावल के भण्डार भरे हैं और रखने को गोदाम नहीं, सो खुले में रखा -रखा सड़ रहा है. यदि दयालु न्यायधीश कहते हैं कि गरीबों में बाँट दो तो सरकार मुहं फेर लेती है.क्यों? शक्कर के भण्डार भरे पड़े हैं. कमी थी तो रुई और यार्न को निर्यात प्रोत्साहन क्यों? गरीब दाल-रोटी मांगते है आप उसे मोबाइल और इन्टरनेट का झुनझुना पकड़ा रहे हैं. भारत में महंगाई का मूल कारण मुनाफाखोरी और सरकार की जन-विरोधी नीतियाँ हैं मोदी कमेटी ने यदि वायदा बाजार को बंद करने की सिफारिश  की है तो केंद्र सरकार उस पर अमल क्यों नहीं कर रही? यदि सरकार इस रिपोर्ट को मानने से इनकार करती है तो देश के साथ और खास तौर से देश की निम्न वित्तभोगी जनताके साथ नाइंसाफी तो होगी ही , साथ ही भाजपा के उदारपंथियों पर उग्र-दक्षिणपंथ के नायक नरेंद्र मोदी की बढ़त में भी कोई नहीं रोक सकेगा.

                             श्रीराम तिवारी

 

सन 2011 का “रामनाथ गोईन्का पत्रकार शिरोमणी पुरस्कार “डॉ राधेश्याम शुक्ल को

हैदराबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक श्रंखला ” स्वतंत्र वार्ता ” के समूह संपादक डॉ राधेश्याम शुक्ल को सन 2011 का “रामनाथ गोईन्का पत्रकार शिरोमणी पुरस्कार ” से नवाजा जाएगा | पुरस्कार के रूप में डॉ शुक्ल को 51 हजार रुपये नकद के साथ साथ शाल,श्रीफल एवम प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा.यह जानकारी कमला गोइन्का फाउन्डेशन द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञाप्ति श्याम सुन्दर गोइन्का ने दी है. इससे पूर्व सन 2009 मे श्रीकांत पराशर एवम 2010 में नवभारत टाईम्स के पूर्व संपादक विश्च्नाथ सचदेव जी को दिया गया है.उन्हों ने बताया है कि यह पुरस्कार ईलेक्ट्रोनिक्स एवम प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को दिया जाता है.पता हो कि एक वर्ष ईलेक्ट्रोनिक्स एवम दूसरे वर्ष प्रिंट मीडिया के लोगों को दिया जा रहा है.विज्ञप्ति के मुताबिक हिंदीतर भाषी क्षेत्रों के हिंदी पत्रकारों एवम दूसरे वर्ष हिंदी भाषी क्षेत्रों के हिंदी पत्रकारों को जाता है.जिसके तहत डॉ राधेश्याम शुक्ल को सन 2011 का यह पुरस्कार दिया जा रहा है| मूलतः अयोध्या के रहने वाले डॉ शुक्ल पिछले 41 वर्षों से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हैं| जिन्होंने फैजाबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक “जनमोर्चा “से पत्रकारिता की शुरुवात की .बाद में डॉ शुक्ल ने वहीँ से प्रकाशित हिंदी दैनिक “हमलोग” में संपादक बने.उसके बाद मेरठ से प्रकाशित “अमरउजाला ” एवम दैनिक जागरण को अपनी महत्त्वपूर्ण दीं | जनवरी 1998 से हैदराबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक “स्वतंत्र वार्ता “में समूह संपादक बने.विदित हो कि “स्वतंत्र वार्ता” का प्रकाशन हैदराबाद के आलावा निज़ामाबाद एवम विशखापतानम से भी होता है.डॉ शुक्ल द्वारा लिखित पुस्तक “रामजन्म भूमि का प्रमाणिक इतिहास ” काफी लोकप्रिय रही है|श्री गोइन्का के मुताबिक केरल के वरिस्थ साहित्यकार डॉ एन .ई .विश्वनाथ अय्यर को “गोइन्का हिंदी साहित्य सारस्वत ” सम्मान तथा इसी तरह “बाबूलाल गोइन्का हिंदी साहित्य पुरस्कार “चेन्नई के डॉ. एम्.शेषन को उनकी लोकप्रिय कृति “तमिल संगम “के लिए दिया गायेगा| जिन्हें पुरस्कार के रूप में 21000 रुपये नकद के साथ -साथ शाल,श्रीफल एवम प्रशस्ति पात्र प्रदान किया जाएगा |

लीविया में फ़ंसे भारतीयों की सुरक्षा हेतु विहिप ने भेजा पत्र

नई दिल्ली मार्च 10, २०११,  लीबिया में फ़ंसे भारतीयों की सुरक्षित घर वापसी सुनिश्चित कराने तथा वहां रह रहे शेष भारतीयों को पूरी सुरक्षा प्रदान कराने के संदर्भ में आज विश्व हिंदू परिषद ने लीवियाई दूतावास को एक पत्र भेजा है। पत्र में विहिप दिल्ली के महामंत्री श्री सत्येन्द्र मोहन ने मांग की है कि जब तक एक भी भारतीय लीविया में है उनकी सुरक्षा में कोई कोर-कसर नहीं होनी चाहिए।

पत्र की कापी मीडिया को जारी करते हुए विहिप दिल्ली के मीडिया प्रमुख श्री विनोद बंसल ने बताया कि गत कुछ दिनों से लीविया की हालात का अध्ययन करने के बाद हमें लगा कि हमारे देशवासियों की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाया जाना आवश्यक है। आज फ़ैक्स द्वारा पत्र भेजने के बाद हमने लीवियन उच्चायुक्त से फ़ोन पर बात कर वहां रह रहे भारतीयों के बारे में उनसे जानकारी भी ली तथा उच्चायुक्त से प्रत्येक भारतीय की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा। श्री बंसल ने बताया कि लीवियन दूतावास ने हमें हमारे हर एक नागरिक की सुरक्षा का वचन दिया है। विहिप दिल्ली के महामंत्री श्री सत्येन्द्र मोहन ने पत्र में वहां चल रहे राजनैतिक संकट में फ़ंसे भारतीयों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने तथा जो भारतीय स्वदेश लौटना चाहें, उनकी सुरक्षित घर वापसी सुनिश्चित करने की मांग की गई है। पत्र की प्रति केन्द्रीय ग्रह मंत्रालय को भी भेजी गई है।*

कांग्रेस की राजनीति

कांग्रेस आजकल बहुत मेहनत कर रही है ,दो साल पहले तय हुआ की अब वही पार्टी में पदाधिकारी होगा जो ज्यादा सदस्यता करेगा .उनपर फोटो लगाना अनिवार्य होगा .सबकी मौके पर छानबीन होगी .फिर तय हुआ की फोटो नहीं है तों अब लगा दो .फिर तय हुआ की अब सदस्यता की छान बीन होगी |जिनको छान बीन की जिम्मेदारी दी गयी उन्होंने सोचा कि गाव गाव घूमे इसलिए तय करवा दिया कि सबकी सदस्यता सही मान ली जाय क्योकि सबकी ९० % नकली है .जाने पर कोई मिलेगा ही नहीं .ऐसा भी हो गया की किसी नेता ने अपने चमचे को किताबे भरने को दिया तों वह चूँकि किसी को जानता ही नहीं था अतः वोटर लिस्ट में से पार्टी के एक पूर्व मंत्री और एक पूर्व सांसद का भी नाम भर कर उनके फार्म पर किसी का फोटो चिपका दिया और ब्योरे में उन्हें मजदूर लिख दिया .ऐसे में एक दूसरे की ढकने की शुरू हो गई मौसेरे भाइयो में .फिर फरमान जारी हुआ की जिन लोगो को पार्टी में आये तीन वर्ष नहीं हुए ये अभी घर बैठे उनके लिए पार्टी में कोई काम नहीं है ,वे बूथ के चपरासी बनाने लायक भी नहीं है ,अभी वही सूरमा सब काम सम्हालेंगे जो विधानसभा चुनाव में ३०० से ३००० वोट लाये थे और लोकसभा इस बार वाली छोड़कर जिसमे बेनी प्रसाद वर्मा से लेकर राजबब्बर तक तमाम लोग पार्टी में उसी समय आये और मोहम्मद आजम खान ने सपा से विद्रोह कर अंदरखाने कांग्रेस का साथ दिया, बाकी में कुछ हजारो में सिमट गए थे .चुनाव का रिजल्ट देखे तों पता चलता है की ४,५ सीटो को छोड़कर पार्टी सब उन्ही सीटो पर जीती जहा मुस्लमान [आजम के प्रभाव वाला ]और वर्मा जी के प्रभाव वाले कुर्मी वोट की बहुतायत थी .दुमार्रियागंज और उसके बाद के चुनावो ने हकीकत बयान कर दिया .कुछ नेताओ ने आजम को श्रेय ना मिल जाये इसके लिए रामपुर की हार का जिक्र जरूरी समझा लेकिन ये भूल गए की रामपुर में कल्याण सिंह के साथ साथ तमाम पूंजीवादी ताकते लगी थी और फिर गाजियाबाद और रामपुर के बीच भा जा पा तथा सपा का अंदरूनी गठजोड़ जिसके कारण रामपुर में आजतक का सबसे कम वोट मिला और रामपुर में चुपचाप तमाशा देखने के एवज में वहा के प्रत्याशी को राज्यसभा मिल गई .खैर कांग्रेस में बहुत मेहनत हो रही है ,खूब कागज रंगे जा रहे है ,छोटे छोटे पदों के लिए इतना दौड़ा दिया जा रहा है की बाद में कोई चलने लायक भी नहीं रह जाये ,इतना पै सा खर्च हो जा रहा है की बाद में उसकी भरपाई की चिंता सताने लगे .अच्छा तों यह होता की किसी को पार्टी में लेने से पहले ही बता दिया जाता की इतने वर्षो तक उसे चपरासी भी नहीं बनाया जायेगा .ईमानदारी तों ये थी की यदि चुनाव में भाग लेने से रोक देना था तों उन लोगो से केवल सक्रिय सदस्यता लायक ही सदस्यता करवाई जाती.ये आर ओ ,बी आर ओ और ना जाने कितने आर ओ के बाद भी अंत में वे सब भी पद पाएंगे जिन्होंने एक भी सदस्य नहीं बनाया है और वही सब बनेंगे जो बनते रहे है या जिनकी लोबी है गौद्फादर है .यह उस बन्दर जैसा कारनामा है जो जंगल का प्रधान बनाए जाने पर शेर के खिलाफ इंसाफ मांगने पर घंटो डालियों पर कूदता रहा और अंत में बोला की मेरी मेहनत में तों कोई कमी नहीं है ,इससे अधिक मै क्या कर सकता हूँ .वही मेहनत आजकल कम से कम उत्तर प्रदेश कांग्रेस में तों हो ही रही है . राजनीति में रूचि रखने वाले देख रहे है की जब गाव से लेकर जिले तक के चुनाव सर पर है और विधान सभा भी कभी भी सकती है तों कांग्रेस ये कर क्या रही है ,अपने ही लोगो में इतना झगडा क्यों पैदा कर रही है ,इस निरर्थक और फर्जी प्रक्रिया से पार्टी कैसे मजबूत होगी .लेकिन ये सब बड़ी शिद्दत से हो रहा है .देखे २०१२ में क्या होता है क्योकि ऐसा लगता है की कांग्रेस में ही कुछ ऐसे महत्वपूर्ण लोग है जो उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत नहीं होने देना चाहते है ,कुछ ऐसे लोग तों बहुत महत्वपूर्ण है जो सिर्फ अपनी सीट बचाने के लिए जिससे वे हाईकमान को बता सके की वे अजेय नेता है अंदरखाने दूसरे दलों को कई सीटे जिताने का जतन करते रहते है .ये पूर्ण सत्य है की वे अपनी पार्टी के स्थान पर अन्य दल जो भी सत्ता में रहते है उनके ज्यादा करीब रहते है .हाईकमान को ये देखना होगा की ऐसे आस्तीन के सांप ज्यादा खतरनाक है दल के लिए या नाराजगी के कारण कुछ दिनों बाहर रहे लोग .सपा और बसपा की कारिस्तानी से नाराज तथा भाजपा को नापसंद करने वाले बहुत से महत्वपूर्ण लोग कांग्रेस की मजबूती चाहते है और इसमें योगदान देना चाहते है लेकिन दल के भीटर छुपे स्वर्थी दुश्मन राहुल गाँधी के सपने को पलीता लगाने पर उतारू है क्योकि वे तभी तक मजबूत है जब तक उत्तर प्रदेश में पार्टी कमजोर है .जिस दिन यहाँ राहुल जी ने सरकार बना लिया, बिहार में मजबूत कर दिया ,इन स्थानों से १०० के करीब सांसद जीतने लगे ,तों इसका असर आसपास के प्रदेशो और पूरे देश पर पड़ेगा .कांग्रेस पहले वाली कांग्रेस हो जाएगी तों किसी भी तरह पार्टी पर हावी रहना और सत्ता में बने रहना इन लोगो के लिए मुश्किल हो जायेगा .इस काकस ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है की इनके मन के खिलाफ बात करने वाला कोई सोनिया जी और राहुलजी से मिल ही ना पाए .पार्टी का स्वरुप इन लोगो ने ऐसा बना रखा है की प्रेस क्लब में एक चुटकला सुनने को मिला की [किसी ने सी पी से पूछा की २+२ क्या होता है .सी पी ने कह की ४ होता है पर अपनी परंपरा के अनुसार मै वर्किंग कमेटी बुला लू तभी बता सकती हूँ या हमारे प्रवक्ता बता देंगे .वर्किंग कमेटी बुलाया की क्या जवाब दिया जाये ,वर्किंग कमेटी ने सुझाव दिया की लोकतंत्र का तकाजा है की ब्लाक से लेकर पी सी सी और फिर ऐ आइ सी सी का सत्र बुला कर पूछ लिया जाये तब जवाब दिया जाये . सी पी ने कहा की मै बता देना चाहती हूँ की चार होता है ,जब हमें पता है तों इतनी कसरत क्यों ?काकस ने कहा की लोकतंत्र की रक्षा भी होगी ,परंपरा भी है यही ही ठीक रहेगा .प्रक्रिया पूरी होई नीचे से ऊपर तक सभी ने प्रस्ताव कर दिया की जवाब सी पी पर छोड़ दिया जाये .यह सब पूरा करने में लगे वर्षो के बाद सी पी ने पूछने वाले को जवाब देने के लिए बुलाया तों पता चला की वो तों तीन वर्ष पहले ही गुजर गया ] आज कल के फैसलों में भी दिख रहा है कि सब हो रहा है पर तब हो रहा है जब बहुत नुकसान हो जा रहा है ,अनिर्णय कांग्रेस कि सबसे बड़ी कमजोरी है कोई कमजोरी ही तो है की प्रमुख लोगो के पूर्ण इमानदार होने पर भी घोटालों की फेहरिस्त छोटा होने का नाम ही नहीं ले रही है ,पता नहीं कितने और भविष्य के गर्भ में है |संगठन में वे लोग लिए जाते है जो जमीन पर नहीं जाते और सरकार में शामिल लोग नीचे का रास्ता भूल केवल दिल्ली के होकर रह जाते है |पर कांग्रेस में लोग पूरी मेहनत कर रहे है की कोई बड़ा और मजबूत नेता पार्टी में आ ना जाये और उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे प्रदेशो में पार्टी मजबूत न हो जाये .राहुल जी राजनीति बदलने का काम कर ना सके किसी भी हालात में वरना ये लोग क्या करेंगे .देखना दिलचस्प होगा की मिशन २०१२ का क्या होता है और ये नेता कब तक राहुलजी को उनके रास्ते पर चलने देते है या अपने अस्तित्व पर खतरा देख उनके साथ भी वही करते जो राजीवजी के साथ किया था .उनपर तों बोफोर्स मढ़ा था इनपर क्या मढ़ते है .पर भारत आज के राहुल जी के साथ है ,पाँच प्रदेशो के बाद राहुल के उत्तर प्रदेश का चुनाव राहुल जी और सोनिया जी के नेतृत्व कि परीक्षा होगा ,बाकी सारे दल चुनाव आज मान कर काम में लग गए है और उत्तर प्रदेश कोंग्रेस और उसकी जिला कमेटियां अभी तक घोषित नहीं हो पाई है ,कोई ऐसा काम नहीं हो रहा है कि लगे कि कोई मिशन २०१२ है राहुल जी का सपना |कोई महाभ्र्स्ट सत्ता को हटाने का इरादा है ,कोई इस सरकार के खिलाफ गुस्सा है ,कोई रणनीति है ,कोई संघर्ष का कर्यक्रम है ,कोई ऐसा कार्यक्रम है जिसमे गंभीरता हो, इरादे कि मजबूती हो ,बस सब गोलमाल है केवल हाजिरी और जी हजूरी जिंदाबाद |भारत सहित उत्तर प्रदेश भी बहुत उम्मीद से सोनिया जी और राहुल जी कि तरफ देख रहा है .भारत को क़ुरबानी देने वाली सोनिया जी पर भी पूरा भरोसा है .यदि ये दोनों मजबूती से और बिना देरी के फैसले लेते रहे तथा खिड़की खोल कर अन्दर भरी वो हवा जो बदबूदार हो चुकी है उससे मुक्ति पाते हुए ताजी को अन्दर आने दे सुरक्षा का ध्यान रखते हुए तों भारत इनके साथ मजबूती से खड़ा रहेगा, नई सुबह के लिए नए , राजनीतिक एजेंडे के लिए ,गौरवशाली और मजबूत भारत बनाने के लिए .भारत देख रहा है राहुलजी के सपनो,सोनिया जी के मजबूत इरादों और लगातार फरेब करके वालो की चालों के युद्ध को .

लड़ाई चलेगी लंबी इस बार …

अब यह उजाड़

एक टीस बन कर उतर गया है अंदर,

देखी नहीं जाती

यह बदहाली हमसे…

ऐ वक्त तू दिखा ले –

जो भी दिखाना हो तुझे,

हम भी जिद्द पर हैं –

लड़ाई चलेगी लंबी इस बार, हमारी जीत तक … ।

 

जो तुम सोचते हो कि –

यह देश है ठंडा अब न जागेगी चिंगारी कभी,

जो तुम समझते हो कि –

यहाँ अब न रहे लड़ने वाले कोई,

तो हम बता दें तुम्हें कि –

हमारी अच्छाई हमारी कमजोरी नहीं –

लिए शोले हम घूमते हैं अब भी,

आग जलेगी तुम्हें खाक में मिलाने तक … ।

 

ऐ वतन को लूटने वालों

तुम खाते हमारा ही हो,

ऐ वतन को तोड़ने वालों

तुम्हारी साँसें हम चलने दें, तभी तक हैं,

पर तुम्हें लगने लगा है कि

तुम बन शासक हमें नेस्तनाबूत कर सकते हो,

खड़े हो रहे हैं देखो नौजवां हमारे,

लड़ने को, तुम्हारी सत्ता हटाने तक… ।

 

 

क्या सोच तुम आए थे कि

हिन्द का खून पानी-पानी है,

क्या तुम ने मान लिया कि

अब यहाँ इस देश में न रहा कोई मानी है,

बहुत कर ली तुमने मनमानी

ऐ वतन के दुश्मन, बहुत वक्त गुज़र गया –

हिन्द ने ठानी है इस बार करेंगे घमासान,

तुम्हारा वजूद मिटाने तक … ।

 

लीबिया न बने दूसरा वियतनाम

ट्यूनीसिया और मिस्र के मुकाबले लीब्या की बगावत ज़रा लंबी खिंचती चली जा रही है| अबीदीन बिन अली और हुस्नी मुबारक की तुलना में मुअम्मर कज्ज़ाफी ज्यादा बड़े तानाशाह सिद्घ हो रहे हैं| उन्होंने अपने 41 साल के राज में अपनी जड़ें इतनी गहरी कर ली हैं कि उन्हें उखाड़ना मुश्किल हो रहा है| अपने आप को ‘बादशाहों’ का ‘बादशाह’ कहनेवाले कज्ज़ाफी ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि अगर वह सैन्य हस्तक्षेप करेगा तो उसे लीब्या में वियतनाम से भी भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ेगा| उन्होंने यह भी कहा है कि वे 30 लाख लीब्याई नागरिकों को इतने हथियार दे देंगे कि वे विदेशी फौजों को मार गिराएंगे|

 

 

 

अमेरिका और बि्रटेन जैसे राष्ट्र इस समय बड़ी दुविधा में फंस गए हैं| उन्होंने कज्ज़ाफी के खिलाफ मोर्चा तो खोल दिया है लेकिन वह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे लीब्या में सैन्य हस्तक्षेप करें या न करें| बि्रटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरन ने प्रधानमंत्री ब्लेयर के नक्शे-कदम पर चलते हुए लीब्या में फौज भेजने का नारा लगा दिया है लेकिन ब्लेयर को जैसे सद्दाम हुसैन ले डूबा, वैसे ही कज्ज़ाफी कहीं केमरन का बेड़ा गर्क न कर दे, यह भय अब बि्रटेन की जनता को सताने लगा है| इधर केमरन ने अपने सैन्य-प्रमुखों को सतर्क कर दिया है, उधर अमेरिका ने अपना जंगी जहाजी बेड़ा – ‘यूएसएस एंटरप्राइज़’ भूमध्यसागर में भेज दिया है|

 

 

 

पश्चिमी राष्ट्रों ने संयुक्तराष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद पर दबाव डालकर कज्ज़ाफी के खिलाफ प्रतिबंध तो घोषित करवा दिए हैं लेकिन अगर वे चाहेंगे कि लीब्या में फौजें उतार दी जाएं तो उन्हें रूस और चीन के वीटो का सामना करना पढ़ सकता है| भारत और ब्राजील जैसे सु.प. के अस्थायी सदस्य भी फौजी कार्रवाई का समर्थन नहीं करेंगे| पश्चिमी राष्ट्रों ने जैसे एराक़ पर हमला बोल दिया था, यदि वैसे ही वे लीब्या पर भी हमला बोल देंगे तो वे अपने आपको भारी मुसीबत में फंसा लेंगे| इसके कई कारण हैं|

 

 

 

पहला तो यही कि फौजी कार्रवाई के पीछे सं.रा. का समर्थन नहीं होने के कारण उसकी वैधता संदिग्ध हो जाएगी| दुनिया के देश मानेंगे कि वह कार्रवाई शुद्घ पश्चिमी दादागिरी है, जिसे ब्लेयर ने कभी ‘उदार हस्तक्षेपवाद’ कहा था| दूसरा, लीब्या में हस्तक्षेप का कारण यह बताया जाएगा कि वहां मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, लेकिन इस तरह के उल्लंघन कई देशों में हो रहे हैं| कहीं कम, कहीं ज्यादा ! पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा लीब्या में किए जानेवाले हस्तक्षेप को यह कहकर बदनाम किया जाएगा कि यह मानव अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि लीब्या के तेल पर कब्जा करने के लिए किया गया है| तीसरा, अमेरिका के एक लाख सिपाही अफगानिस्तान में और 50 हजार सिपाही पहले से ही एराक़ में फंसे हुए हैं| सैकड़ों की संख्या में वे मारे जा रहे हैं और हर माह अरबों डॉलर पानी की तरह बह रहे हैं| फिर भी अमेरिका को इस अंधी सुरंग से बाहर निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा है| अब वह एक नई सुरंग में छलांग लगाने की गलती क्यों करेगा ? चौथा, कज्ज़ाफी न तो बिन अली है, न मुबारक है, न सद्रदाम है| उस पर झूठे ही सही, वैसे गंभीर अरोप नहीं हैं, जैसे सद्दाम हुसैन पर लगाए गए थे| सद्दाम की तरह वह शिया बहुल देश का अल्पसंख्यक सुन्नी शासक नहीं है| कज़्ज़ाफी का अपना कबीला-कज्ज़ाफ-हालांकि सबसे बड़ा नहीं है लेकिन पिछले चार दशक में उसने लीब्या के हर महत्वपूर्ण और नाजुक स्थान पर अपना कब्जा जमा रखा है| वह कज्ज़ाफी के लिए जरूर लड़ेगा याने यदि लीब्या में फौजी हस्तक्षेप होता है तो गृह-युद्घ छिड़ने की पूरी संभावना है, जो लंबा खिंच सकता है और जिसके दुष्परिणाम पड़ौसी देशों को भी भुगतने पड़ सकते हैं|

 

 

 

लीब्या में विदेशी फौजी हस्तक्षेप का सबसे बड़ा खतरा यह है कि तेल का उत्पादन बिल्कुल ठप्प हो सकता है| तेल पैदा करनेवाले ज्यादातर क्षेत्र् पूर्वी लीब्या में हैं| इन क्षेत्रें में अभी तक बागियों का बोलबाला था लेकिन ताजा खबरों से पता चलता है कि कज़्ज़ाफी के सैनिकों ने उन पर दुबारा कब्जा कर लिया है| यह असंभव नहीं कि कज़्ज़ाफी-जैसा सिरफिरा नेता इन तेल के कुओं में आग लगा दे और पाइपलाइनों को तुड़वा दें| शक तो यह भी है कि यदि विदेशी फौजी हस्तक्षेप होगा तो कज्ज़ाफी विषाक्त रासयनिक गैसों का इस्तेमाल करने से भी बाज़ नहीं आएंगें| ऐसी हालत में यही बेहतर होगा कि अंतरराष्ट्रीय समाज सीधे सैन्य हस्तक्षेप से बचे लेकिन कज्ज़ाफी को हटाने की पुरजोर कोशिश करे|

 

 

 

कज़्ज़ाफी भागने के लिए मजबूर हो जाएं, इस दृष्टि से लीब्या को ‘उड़ान-निषिद्घ क्षेत्र्’ घोषित करने का प्रस्ताव हवा में तैर रहा है| कल तक बागियों का जो संगठन दावा कर रहा था कि हमें किसी भी तरह की विदेशी मदद नहीं चाहिए, उसने भी ‘उड़ान-निषिद्घ क्षेत्र्’ का समर्थन कर दिया है| इस घोषणा का व्यावहारिक अर्थ यह है कि कज़्ज़ाफी के विमानों और हेलिकॉप्टरों को उड़ने नहीं दिया जाएगा| फिलहाल इन्हीं के जरिए कज्ज़ाफी बागियों और साधारण नागरिकों पर हमले बोल रहे हैं| लीब्या की हवाई सेना पर उनके अपने कज्ज़ाफ कबीले का लगभग एकाधिकार है| यदि लीब्या की वायुसेना को निष्कि्रय कर दिया जाए तो कज़्ज़ाफी का टिके रहना मुश्किल हो जाएगा| 45000 जवानों की फौज में वारफल्लाह, मघराहा और सेनूस्सी कबीलों के लोगों की संख्या काफी बड़ी है| इन कबीलों के सीनों में कज़्ज़ाफी ने गहरे घाव लगा रखे हैं| इसीलिए वायुसेना के निष्कि्रय होते ही फौज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कज्ज़ाफी के खिलाफ खड़गहस्त हो सकता है|

 

 

 

‘उड़ान निषिद्घ क्षेत्र्’ की घोषणा का अर्थ है, कज्ज़ाफी के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्घ की घोषणा ! अमेरिकी रक्षामंत्री रॉबर्ट गेट्रस उसे अव्यावहारिक बता चुके हैं लेकिन बि्रटिश प्रधानमंत्री उसके उत्साही समर्थक हैं| जैसे सद्दाम के विरूद्घ इस तरह की घोषणा ने उन्हें पंगु बना दिया था, वैसे ही कज्ज़ाफी को घेरने का यह सबसे सुरक्षित उपाय मालूम पड़ रहा है लेकिन लीब्या की राष्ट्रीय बागी परिषद के अध्यक्ष मुस्तफा अब्दुल जलील ने कहा है कि यह हस्तक्षेप केवल संयुक्तराष्ट्र संघ की देखरेख में ही होना चाहिए| जलील की यह राय काफी दूरदर्शितापूर्ण है| इस संबंध में सुरक्षा परिषद को तुरंत विचार करना चाहिए| इसके अलावा पश्चिमी राष्ट्र लीब्या में सीधा हस्तक्षेप करें, उससे कहीं अधिक बेहतर होगा कि वे बागियों को हथियार और प्रशिक्षण सुलभ करवाएं|

 

 

 

वैसे अंतरराष्ट्रीय फौजदारी अदालत भी सकि्रय हो गई है| सुना है िक वह शीघ्र ही कज्ज़ाफी और उनके सहयोगियों के नाम वारंट जारी करेगी लेकिन असली सवाल यह है कि उन्हें गिरफ्रतार कौन करेगा और उन्हें पकड़कर हेग की अदालत में कौन पेश करेगा ? इस बीच यह खबर भी गर्म है कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्रयुगो शावेज ने, जो कज्ज़ाफी के मित्र् भी हैं, एक शांति समझौते का प्रस्ताव रखा है लेकिन बागी नेता जलील ने उसे रद्द करते हुए कहा है कि वे कज्ज़ाफी से कोई बात नहीं करेंगे| उन्हें जाना ही होगा| कज्ज़ाफी जाएंगे जरूर लेकिन डर यही है कि जाते-जाते वे पश्चिमी राष्ट्रों को कहीं लीब्या के दल-दल में न फंसा जाएं|

 

दैनिक हिन्दुस्तान, 5 मार्च 2011 में प्रकाशित

दशहतगर्दो के ठेकेदार बने है सहारा, आजतक और इंडिया न्यूज

गांवों के बाद अब स्कूलों में भी प्रायोजित होने लगी हैं भूतो की स्टोरी….

आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जहां पर दुनियां का एक मात्र भूतो का मेला लगता हैं उसी क्षेत्र में भूत – प्रेतो के नाम पर डराने धमकाने का धंधा कुछ टीवी चैनल वालो के लिए सनसनी पैदा करने का जरीया बन गया हैं। जहां एक ओर बैतूल जिले की चिचोली जनपद क्षेत्र की मलाजपुर ग्राम पंचायत में गुरू साहेब बाबा की समाधी पर भूतो का मेला लगता हैं। यहां पर अच्छे – अच्छे लोगो के भूत उतर जाते हैं , वही दुसरी ओर चिचोली जनपद मुख्यालय पर स्थित उत्कृष्ट आदिवासी बालिका छात्रावास में इन दिनों सहारा समय , आजतक , इंडिया न्यूज के तीनों तथाकथित स्ट्रींगर रिर्पोटरों के गठबंधन से बैतूल जिले में भूत,प्रेत का सहारा लेकर मासूम स्कूली छात्राओं में भय और अध्ंाविश्वास के साथ – साथ दहशत का भी माहौल तैयार किया जा रहा हैं। टीवी चैनलों पर आने वाले तथाकथित सनसनी , आहट ,जी हारर शो की तर्ज पर गांवो और सुनसान पड़े स्थानो से भय के भूत को साकार रूप देकर परोसा जा रहा हैं। कुछ दिन पहले निरगुड़ में दो हजार लोगो के बीच दहशत की सनसनी खेज $खबर का हमारे द्वारा किया गए खंडन से सबक न लेते हुए एक बार फिर बैतूल जिले से भूत – प्रेत बाधा पर प्रायोजित खबर दिखाई गई। प्रेत बाधा पर आधारित आजतक , इंडिया न्यूज ,सहारा समय पर प्रसाति खबर के बाद सच का सामना करने महाराष्ट्र के विभिन्न जिलो से आई अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के सदस्यों ने उत्कृष्ट बालिका छात्रावास की किसी भी छात्रा को तथाकथित भूत – प्रेत बाधा से पीडि़त होना नहीं पाया। समिति ने अपनी जांच के दौरान पाया कि नगर पंचायत मुख्यालय चिचोली में बैतूल से कुछ दिन पूर्व में आए एक टीवी चैनल के पत्रकार ने स्थानीय छुटभैया नेता की मदद से स्कूल की छात्राओं को टीवी चैनलो पर दिखाने का लालच देकर उनसे पूरी मनगढ़ंत कहानी बनाई। कहानी का द एण्ड तब हो गया जब कुछ छात्राओं ने इटीवी को बताया कि छात्रावास में ऐसी कोई भी आहट सुनाई नहीं दे रही थी। मजेदार बात तो यह हैं कि विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी आइ के बोडख़े बैतूल नगर के निवासी हैं तथा उनके परिवार की बैतूल में पिंजरकर स्टोर्स के नाम की दुकान हैं। जहां पर कुछ टीवी चैनलो के पत्रकारों की आवाजाही बनी रहती हैं। श्री बोडख़े एवं अत्कृष्ट स्कूल प्राचार्य श्री डी के केनकर तथा छात्रावास अधिक्षिक सुश्री पिंकी राठौर ने सोची समझी नीति एवं रीति के अनुसार पिछले 15 दिनो से स्कूली छात्राओं के बीच जानबुझ कर भूत – प्रेत को लेकर भ्रम फैलाने का प्रयास किया गया। एक पडय़ंत्र जो कि कुछ टी वी चैनलो द्वारा आयोजित था उसके लिए बकायदा तंत्र – मंत्र साधना , पूजा पाठ , हवन किया गया। बालिकाओं को बकायदा रामायण पाठ पढ़वाने के लिए छात्रावास में रामायण पहुंचाई गई। स्वंय आर के श्रोती सहायक परियोजना अधिकारी भी इस षडय़ंत्र में शामिल थे क्योकि उन्होने अपने भोपाल से आए आला अफसर श्री सेगंर की मौजूदगी में बेव न्यूज पोर्टल यू एफ टी न्यूज को बताया कि स्कूली छात्राए मानसिक रूप से पढ़ाई से भयक्रांत थी लेकिन वे रामायण पढ़ती थी। अब सवाल यह उठता हैं कि स्कूली छात्राओं से छात्रावास परिसर में रामायण का पाठ , मंदिर में पूजन , हवन आखिर क्यों करवाया गया। यदि छात्रावास में भूत था तो उन्हे पास में ही मलाजपुर क्यों नहीं ले जाया गया। अलग से तांत्रिक – मांत्रिक बुलवा कर टीवी चैनल वालों के सामने ड्रामा किसी अनुमति से हुआ। छात्रावास परिसर में पालक के अलावा बाहर के लोगो को खास कर टीवी चैनल वालों को घुसने एवं अंदर जाकर छात्राओं से बातचीत करके उनके दिलो दिमाग में भय का भूत डालने की क्या जरूरत थी। जब इटीवी पर उन चैनलों के मंशा के ठीक विपरीत $खबर प्रसाति की गई तब भी उक्त टीची चैनलों द्वारा अपने स्ट्रींगरों एवं रिर्पोटरों से $खबर की सच्चाई जानने का प्रयास क्यों नहीं किया गया। अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति का तो सीधा सीधा आरोप था कि जानबुझ कर दहशत का माहौल पैदा करके कुछ तांत्रिक – मांत्रिक टीवी चैनलो को माध्यम बना कर उन 50 स्कूली छात्राओं के पालको से मोटी रकम ठगना चाहते थे। मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र सरकार की तरह अघोरी प्रेक्टीस एक्ट 2005 की तरह कोई कड़ा कानून नहीं है जिसके चलते आदिवासी बाहुल्य जिलों में इस तरह का गोरखधंधा फल फूल रहा हैं। देश के नॅबर वन का तमगा लेकर स्वंय भू टीवी चैनलों को ऐसी भ्रामक $खबरो को जो खास कर स्कूली छात्राओं के भविष्य से जुड़ सकती हैं को प्रसारित करने से पहले सोचना चाहिए। एक भी चैनल यदि चांद पर पहुंचने वाले युग में कोमल मानसिक पटल पर भ्रम का या अधंविश्वास के भूत को बढ़ावा देगा तो आने वाले कल में वह भयभीत होकर दहशत भरा जीवन जीने को बेबस हो जाएगी। चिचोली छात्रावास की घटना का पूरजोर खंडन करते हुए विद्धवान कानूनविद भरत सेन कहते हैं कि हमारे छात्रावासों में यदि तंत्र – मंत्र में शिक्षा अधिकारी , प्राचार्य , अधिक्षक आस्था रखेगें तो देश में आइंस्टीन , न्यूटन, एडीशन जैसे वैज्ञानिक कैसे पैदा होगें? और ऐसे में भारत की कोई भी कल्पना चावला जैसी अंतरीक्ष यात्री कभी नहीं मिलेगी। इस छात्रावास की बालिकाए इस समय गणित और विज्ञान जैसे विषयों से भटक कर भूत – प्रेतो के अस्तीव में खो जाएगीं तो इनके भीतर विज्ञान कैसे पैदा होगा। श्री सेन तर्क देते हैं कि प्रिंट एण्ड इलेक्ट्रानिक मीडिया तंत्र – मंत्र – यंत्र भूत – प्रेत – नजर बाधा निवारण के तांत्रिक प्रयोग तथा तथाकथित आलौकिक शक्तियों का प्रचार – प्रसार – प्रसारण करके अंधविश्वास को बढ़ावा देकर प्रेस एक्ट की मूल भावनाओं का हनन कर रही हैं।

इधर बैतूल जिले के चिचोली नगर पंचायत मुख्यालय पर स्थित आदिवासी बालिका छात्रावास की 50 छात्राओं से यू एफ टी न्यूज ने चर्चा की जिसमें सभी छात्राओं ने एक सिरे से उक्त खबर का खंडन किया। वही मनोवैज्ञानिक डाँ देवेन्द्र बलसारा कहते हैं कि अधिकांश छात्राए 10 एवं 12 की बोर्ड परीक्षा देने के चलते देर रात्री तक पढ़ाई करती हैं ऐसे में उनकी पढ़ाई के चलते पूरी नींद नहीं हो पाती हैं। यहां पर यह देखने को आ रहा हैं कि छात्रावास की अधिकांश आदिवासी छात्राएं बोर्ड परीक्षा में पास – फेल के चक्कर मानसिक तनाव में रहती हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ श्रीमति रश्मी पंवार कहती हैं कि आज के समय में चौदह साल में ही अधिकांश बालिकाओं को मासिक धर्म शुरू हो जाते हैं। ऐसे समय में बालिका कमजारे हो जाती हैं तथा उन्हे मानसिक तनाव भी कई बार उन्हे बहोशी एवं चक्कर आने लगते हैं। पचास में से मात्र तीन ही बालिकाओं को उक्त कथित प्रेत बाधा से पीडि़त बता कर पूरा माहौल को अंधविश्वास की बलि पर चढ़ाया जाना न्योचित नहीं हैं। घटना के पीछे की एक कहानी यह भी बताई जा रही हैं कि नेशनल हाइवे 59 ए बैतूल से इन्दौर पर स्थित इस छात्रावास को किसी सरकारी बैंक द्वारा बीते वर्ष ही किराये पर अनुबंधित कर लिया गया था। सरकारी बैंक इसी वर्ष जनवरी से अपनी शाखा खोलना चाहती थी लेकिन पिछले माह से जब मुख्य मार्ग चिचोली पर स्थित छात्रावास भवन खाली नहीं हुआ तो फिर उक्त कहानी को मूर्त रूप दिया गया था। बताया जाता हैं कि बीते आठ वर्षो से सरकारी दर पर किराये पर चल रहे भवन के मालिक द्वारा कई बार छात्रावास को खाली करवाने का प्रयास किया गया लेकिन जब बात नहीं बनी तो यह कुछ टीची चैनल वालों से मिल कर छात्रावास भवन में भूत – प्रेत होने की बाते फैलाई गई ताकि प्रशासन दबाव में आकर आनन – फानन में उक्त भवन को खाली कर नए छात्रावास भवन में स्थानांतरीत कर दे। हालाकि अब भी उक्त भवन को त्वीत खाली नहीं करवाया जा रहा हैं। परीक्षा सत्र पूर्ण हो जाने के बाद भी छात्रावास नए भवन में जाएगा। इधर सामाजिक कार्यकत्र्ता एवं अनिस से जुड़े श्री राम भलावी का कहना हैं कि उक्त तीनो चैनल पिछले तीन सालों से किसी को नमक खिलाते दिखा रहे हैं तो किसी कुंजीलाल के मरने की भविष्यवाणी करते दिखा रहे हैं। कभी किसी सुनसाने खण्डहर में मुजरा होते और पायल छनकते दिखाते हैं तो कभी किसी खण्डहर को अभिश्रप्त दिखा रहे हैं। श्री भलावी का कहना हैं कि मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र की सीमा से लगे बैतूल जिले में इन टीवी चैनलों द्वारा अभी तक दिखाई गई सनसनी खेज स्पेशल स्टोरी में से एक ने भी भूत – प्रेत के वजूद को सिद्ध नहीं कर दिखाया हैं।