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किसान आत्महत्या के निहितार्थ

– मुलखराज विरमानी

भारत के छोटे किसानों का बुरा हाल है। हमारी सरकार ने आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को राहत देने के लिए कानून तो बनाया परंतु उस कानून का पालन न करने के लिए सरकार के ही अधिकारी ऐसी दलीलें देते हैं कि जिससे आत्महत्या करनेवाले किसान के परिवार को क्षति की रकम देनी पड़े। भारत के कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि इस वर्ष विदर्भ में जनवरी से अप्रैल तक छह किसानों ने आत्महत्या की जबकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का कहना है कि इस अवधि में इसकी गणना 343 है–यह पवार के आंकड़ों से 57 गुना है। इससे भी अजीब बात तो यह है कि भारत सरकार कृषि के उपमंत्री के.वी. थॉमस ने वहां के किसानों की आत्महत्या के आंकड़े 23 दिए। इसके विपरीत महाराष्ट्र सरकार के ही वसंतराव नायक फार्मरज सेल्फ रिलाइंस मिशन का कहना है कि केवल जनवरी में 62 किसानों ने आत्महत्या की। क्या शरद पवार राज्य सभा में यह कहकर कि चार मास में छह किसानों ने आत्महत्या की है, झूठ का सहारा तो नहीं ले रहे ताकि ढेर सारे आत्महत्या के आकड़ों से सरकार की बदनामी होती है और यह मानने से अधिक मुआवजा भी देना पड़ता है? इन सब महानुभावों के आंकड़ों का उद्गमस्थान तो महाराष्ट्र सरकार है फिर इनमें 5500 प्रतिशत का अंतर क्यों आ रहा है? पवार ने तो यह भी बताया कि 3 वर्षों में 3450 किसानों ने आत्महत्या की है जबकि नेशनल क्राइम ब्यूरो का कहना है कि यह आंकड़े 50,000 हैं। इन आंकड़ों को मानना ही पड़ेगा क्योंकि गरीबी और अनिश्चितता के कारण आत्महत्याएं की । इस संस्था ने यह भी चौंका देने वाली बात कही है कि लगभग 2,00,000 किसानों ने 1997 से 2008 तक आत्महत्या की। इन आंकड़ों पर विवाद तो है किंतु इस काम के लिए यही एक संस्था है, इसीलिए इसकी गणना ठीक माननी पड़ेगी।

सरकार आंकड़ों में हेर-फेर करती ही है ताकि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा न देना पड़े। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो का कहना है कि 1999 से 2005 के अंतराल में 1.5 लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं। सरकार मुआवजा न देने के सौ बहाने बनाती है। अगर जमीन बाप के नाम पर है और सारा काम बेटा करता है और भूखमरी के हालत में आत्महत्या कर लेता है तो सरकार उस किसान की आत्महत्या को गणना में नहीं लेती है क्योंकि खेती की भूमि उसके नाम न होके उसके बूढ़े बाप के नाम है। फिर सरकार कहती है कि इस हालत में किसान के बेटे ने कर्ज से उत्पन्न समस्याओं के कारण आत्महत्या नहीं की। परिवार का बड़ा लड़का बाप के बूढ़े होने के कारण खेती का काम तो संभाल लेता है परंतु उसको विचार यह कभी नहीं आ सकता कि बाप के होते हुए भूमि अपने नाम करवा ले। सरकार के मंत्री किसानों की आत्महत्या को रोक नहीं पाये और न ही उनके पास प्रबल इच्छा और समय है। परंतु यह समस्या हर साल बढ़ती ही जा रही है। किसान आत्महत्या न करें इसके लिए उनको आमदनी के साधन बढ़ाने होंगे। भारत इतना बड़ा देश है और साधन संपन्न होने के कारण किसानों को खुशहाल बनाना संभव है। परंतु कारगर नीतियां बनाने के लिए हमारे मंत्रियों को इस ओर ध्यान और समय देने की आवश्यकता है। नीतियां बदलने की इच्छा हुई तो किसानों को खेती के साथ-साथ आमदनी के दूसरे साधन जुटाने होंगे। कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के किसानों को दूध की उत्पादन से बहुत अधिक आमदनी हो सकती है। इसके लिए हमारे उद्योगपतियों को डेरी फार्मिंग में अधिक रुचि लेनी चाहिए। वह किसानों से दूध अधिक-से-अधिक और अच्छे दामों में खरीदें। इस समय की स्थिति यह है कि कई छोटे देश भी दूध और दूध से बनी वस्तुओं का निर्यात कर अपने किसानों की खुशहाली बढ़ा रहे हैं। और फिर हमारे देश में तो देशी गाय का दूध तो अमृत तुल्य माना जाता है। हमें चाहिए कि दूध और दूध से बनी वस्तुओं का आयात करनेवाले देशों को ठीक-ठीक बताएं कि वास्तव में दूध तो देशी गाय का पौष्टिकता के साथ-साथ शरीर के किसी प्रकार के रोग को पास फटकने नहीं देता और बुध्दिवर्धक तथा सर्वांगीण विकास में भी मदद करता है। इस समय न्यूजीलैंड के दूध और उससे बनी वस्तुओं का निर्यात 86 खरब डॉलर का है। खेद है कि भारत में उल्टी गंगा बहती है। जिस देश में कभी दूध की नदियां बहती थीं और आज भी बह सकती हैं, अगर नीतियों में बदलाव किया जाए और मंत्रियाें को कहा जाए कि हम राजनीति न करके ऐसी नीतियां बनाएं जिससे किसानों को लाभ हो। आज की परिस्थिति में किसान को गरीबी से निकालने के लिए उद्योगपतियों को डेरी फार्मिंग के काम में जाना चाहिए। भारत सरकार को हमारे उद्योगपतियों की मीटिंग बुलानी चाहिए जिसमें उद्योगपतियों को ऐसा सुझाव दिया जाए कि वे डेरी फार्मिंग के धंधे में सक्रिय भाग लें ताकि किसान दूध को बेचकर अपनी आमदनी बढ़ाएं और उनको आत्महत्या का सहारा न लेना पड़े।

* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

अयोध्या निर्णय : टुकडों में बांट कर शांति

– डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

30 सितंबर, 2010 की सांय 3.30 बजे के बाद से ही 60 वर्ष से अधिक चले रामजन्म भूमि व बाबरी मस्जिद प्रकरण पर दायर हुए मुकदमें का उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ पीठ के तीन न्यायमूर्तियों के द्वारा दिये गये ऐतिहासिक, अभूतपूर्व तथा कानूनी व कुछ आस्था में पगे अपना फैसला भारत की जनता को दिया जाने लगा था। जैसे-जैसे फैसला जनता के सामने आता गया वैसे-वैसे ही आम जनता में तो शांति बनी रही परंतु राजनेताओं ने फैसले के बारे में अपने अपने राजनीतिक उद्देश्य साघने वाले बयान गढ़ने शुरु कर दिये। निर्णय देने वालों में एक माननीय न्यायमूर्ति ने कहा कि यह मात्र 1,500 वर्ग गज के एक छोटे से भूमि के टुकडे के मालिकाना हक को निर्धारित करने वाला ही मुकदमा नहीं था अपितू इस जमीन के टुकडे पर तो अब देवदूतों को भी कुचलने का डर सताने लगा है तथा यह जमीन न जाने कितनी भूमिगत सुरंगों (विस्फोटक) को अपने सीने में समेटे हुए है तथा उनसे (न्यायाधीशों से) उम्मीद की जा रही थी कि वे इस जमीन को साफ कर दें और उन्होंने यह जोखिम उठाया। सबसे ज्यादा जोखिम जीवन में यह रहता है कि जोखिम उठाने का मौका ही न लिया जाय। हम सफल होंगे अथवा असफल यह तो जमाना व वक्त ही बता सकेगा और तीनों न्यायाधीशों ने मिलकर यह अभूतपूर्व निर्णय लिया जो आम भारतीय आदमी के द्वारा शांति के साथ स्वीकार किया गया। निर्णय में जमीन के तीन टुकड़े किये जा चुके थे – एक टुकड़े पर रामलला, दूसरे पर निर्मोही अखाड़ा व तीसरे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का हक रहेगा।

इस निर्णय को कानूनी कम व समझौते की नजर से अधिक देखा जा रहा है जबकि यह निर्णय पूरी तरह से ही कानूनी सम्मति लिये हुए है। कानूनी तकनीकी दृष्टि से सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया परंतु उन्हें जमीन का एक तिहाई देकर उस पर मस्जिद बनाने का अधिकार दे दिया गया। निर्मोही अखाड़ा हालांकि बाबरी मस्जिद के ढांचे में ही 200 वर्ष से एक मंदिर चला रहा था इसलिए जमीन का एक तिहाई हिस्सा उसे भी दिया गया बाकी रामलला जहां विराजमान है, तो वहां वे रहेंगे ही। न्यायिक फैसले में न्यायसंगत तथा साफ-सुथरी व ईमानदारी की बात देखी गई। जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर हिन्दू व मुसलमान दोनो को ही खुश करने की कोशिश की गई है तथा फैसले के रुष्ट पक्षकार अपनी आपत्ति को तीन माह (90दिनों) में उच्च्तम न्यायालय में दािखल कर सकता है और इस प्रकार उच्च न्यायालय ने अपनी बॉल उच्चतम न्यायालय के कोर्ट में फेंक दी है। 90 दिनों की इस अवधि में यदि संबंधित पक्षकार चाहें तो आपसी सहमति का वातावरण बनाया जा सकता है तथा तब तक विवादित जमीन पर कोई पक्का निर्माण कार्य नहीं कराया जा सकेगा और आज जो स्थिति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी जिसकी जिम्मेदारी सरकार की रहेगी। सभी पक्षकारों को उच्चतम न्यायालय में जाने की छूट रहेगी। इस फैसले में ऐसे बहुत से आधार है जिस पर उच्चतम न्यायालय में फैसले के विरुध्द वाद दायर किया जा सकता है तब तक सरकार रामजन्म भूमि व बाबरी मस्जिद की यथास्थिति बनाये रखे।

उच्च न्यायालय ने मुकदमें के दौरान उत्पन्न हुए लगभग 20 प्रश्नों, जो मुख्यतया मिथक, आस्था, इतिहास, सांसारिक व सीमितता अधिनियम से संबंधित थे, में से कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सफलता प्राप्त की तथा कुछ प्रश्नों को कचरे के डिब्बे में डाल दिया गया। सबसे पुराना व विवादित प्रश्न तो यही था कि क्या भगवान राम ने विवादित भूमि पर जन्म लिया और जन्म लिया तो जमीन पर वह कौन सा बिन्दु अथवा कोना है जहां वास्तव में जन्म लिया। यह केवल आस्था का ही प्रश्न था क्योंकि ऐसा कोई रिकॉर्ड उपल्ब्ध नहीं था और उपलब्ध हो भी नहीं सकता था। न्यायालय ने इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की है। हालांकि इसी प्रश्न के उत्तर को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। भगवान राम स्वयं ने अपने मित्र (थ्रो दी नेक्स्ट फ्रेन्ड) के द्वारा न्यायालय में याचिका दायर की थी। अदालत ने यह मान कर कि भगवान राम एक दैवी शक्ति है जिस प्रकार वायु, अग्नि, केदारनाथ इत्यादि के लिए कोई भी स्थान आम लोगों के द्वारा देवता मान कर पूजा जाने लगता है और प्रमुख हो जाता है उसी प्रकार रामलला अथवा भगवान राम का बचपन का यह स्थान भी लोगों के द्वारा पूजने के कारण ही प्रसिध्द हुआ है। अदालत ने भगवान राम के प्रति अपना आदर दिखाते हुए इस जगह को राम का जन्म स्थान मान लिया है इस बात को भी उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती हे। क्योंकि अदालत किसी के प्रति आदर नहीं रखता है। वह मात्र विश्वास में ही विश्वास नहीं रखता है तथा मात्र कानून सम्मत बात ही करता है। अब देखना यह है कि अदालत के द्वारा जमीन के एक टुकडे का बंटबारा (हिन्दुओं के लिए यह जमीन का टुकडा आस्था की चरम सीमा का प्रतीक है) करके देश में शांति स्थापित करने की कोशिश की गई। अब देखना यह है कि 90 दिनों में इस मुकदमे का फैसला सभी के द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है अथवा नहीं और कहीं यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय में फिर से लटक न जाये।

बंटवारा सदैव शांति स्थापित करता है ऐसा नहीं है। 1947 में देश का बंटवारा हुआ जिसमें लाखों लोग काल ग्रसित हो गये तथा तभी से जन्मी कश्मीर की समस्या आज तक नही सुलझ सकी है। मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण कश्मीर की जनता को निरंतर राजनेता पाकिस्तान की ओर धकेलते रहते है तथा वहां की आबादी का आर्थिक संकट उन्हें भारत की ओर धकेलता है। 1947 से अब तक कश्मीर पर भारत के द्वारा अनुमान के अनुसार 3 लाख करोड़ रुपये व्यय हो चुके हैं परंतु वहां की मुस्लिम जनसंख्या अभी भी दिल खोल कर भारत के साथ नहीं हो सकी है तथा भारत की मुख्य समस्याओं में कश्मीर भी एक समस्या बना हुआ है। अयोध्या में भी यह हो सकता है कि हिंदुओं की आस्था का प्रतीक इस जमीन के टुकड़े को मुसलमान हिंदुओं को सौंप देते है तो राजनेताओं की सारी की सारी राजनीति समाप्त हो जाती है। परंतु मुसलमान ऐसा नहीं कर सके। वे देश में शांति की स्थापना के लिए इतना सा भी त्याग नहीं कर सके क्योंकि वे लोग सिर्फ भारत की बहुसंख्य आबादी से सिर्फ लेना ही जानते है। फैसले के बाद चार मुख्य पक्षकार – रामजन्म भूमि न्यास, रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड तो सुलह की बात ही नहीं कर रहे है वहीं पाचंवें पक्षकार हाशिम अंसारी भी कम तनाव में नहीं है वे भी पाचंवें पक्षकार है और कह रहे है कि मस्जिद विवादित भूमि पर ही बनेगी। उन्हें सुन्नी वक्फ बोर्ड बार-बार यह कह रहा है कि वह कोई सुलह न करे तथा बयान इत्यादि न देवें। अब पांचों पक्षकरों के पीछे कितने राजनेता, कटटरपंथी लोग खड़े हुए है यह कहना मुश्किल है। यह सभी पक्षकार भी किसी सुलह की ओर न पंहुचने के लिए अत्यधिक उत्साहित है। रामलला विराजमान से जुड़े लोग कह रहे है कि सदियों पहले खंडित किये गये मंदिर के लिए न तो कोई शर्मिंदा होना चाहता है और न ही मंदिर के खंडित करने के अधर्म को किसी ने निंदा की। अब समय आ गया है कि इस अधर्म के कार्य को भूला दिया जाय। यह तो सबित हो ही गया है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाया गया था अब सुन्नी वक्फ बोर्ड अपना बड़ा दिल दिखाते हुए इस निर्णय में मिली अपने हिस्से की जमीन को भी रामजन्म भूमि को दान दे दे जिससे मंदिर निर्माता मंदिर की दीवार पर दान दाताओं की सूची में सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रति अहोभाव के शब्द पत्थर में खुदवा सके। इससे मंदिर की भव्यता में जहां चार चांद लगेंगे वहीं देश की धर्मनिरपेक्षता की भावना भी पोषित हो सकेगी। राम केवल दशरथ का बेटा ही नहीं था बल्कि वह घट-घट में बैठा राम है जो अयोध्या के सभी पक्षकारों में बैठा हुआ है। अतः सभी पक्षकार घट-घट में बैठे राम की सुने और 90 दिनों के भीतर ही सर्वसम्मत हल तलाश कर लेवें। राम मंदिर निर्माण के लिए 500 वर्ग गज का भूमि का टुकड़ा बहुत छोटा रहेगा। राममंदिर की भव्यता के लिए सारी जमीन मिलनी चाहिए थी निर्मोही अखाड़े के मंहत भास्कर दास का कहना है कि राम मंदिर निर्माण के लिए (सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़ कर ) सभी पक्षकार एकमत है सभी पक्षकार मंदिंर निर्माण के लिए तन-मन-धन से सहयोग करेगें। अगर मुस्लिम समुदाय कोटि-कोटि हिंदुओं की भावनाओं का आदर करता है और स्थल पर अपना दावा छोड़ देता है तो यह विश्व में एक मिसाल ही होगी। वह भाईचारा मजबूत होगा जो देश का आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक विकास तेजी से कर सकेगा। लेकिन जिस प्रकार सुन्नी वक्फ बोर्ड ने निर्णय के बाद अपने तेवर दिखाये और उच्चतम न्यायालय जाने की बात कही तो उससे तो यह उम्मीद नहीं है कि वह मंदिर के लिए कुछ त्याग करेगा जबकि इस्लाम देने वालों का, त्याग करने वालों का धर्म बताया गया है किसी के दिल को तकलीफ पहुंचाना इस्लाम में ऐसा माना जाता है जैसे किसी ने काबा ढा दिया हो। पैगंबर तथा ईस्लाम के उपदेशों व शिक्षाओं को समझ-समझ कर ही गैर मुस्लिम लोग ईस्लाम पर ईमान लाते चले गये और ईस्लाम फैलता चला गया। अब भी ऐसी मिसालें स्थापित की जा सकती है। अदालत ने तो एक रास्ता दिखा दिया अब उस रास्ते पर मजबूती के साथ आगे बढ कर अटूट भाईचारा स्थापित करना अयोध्या के पक्षकरों की जिम्मेदारी है।

* लेखक सनातन धर्म महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर के वाणिज्य संकाय में रीडर तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

पंजाबी फ़िल्म तेरे इश्क नचाया

इरोज इंटरनेशनल व पर्ल्स इंटरटेनमेंट की पंजाबी फीचर फ़िल्म ”तेरे इश्क नचाया” के निर्माता हैं केसर सिंह व निर्देशक है रविंदर रवि.

”तेरे इश्क नचाया” की कहानी है कमल नाम की एक चुलबुली युवती की. उसके तीन भाई हैं जो अपनी बेटी की तरह उसे प्यार करते हैं. अभी भी वो बच्चों के साथ ही खेलना पसंद करती है जबकि वो युवा हो चुकी है. वो नृत्य भी बहुत ही अच्छा करती है, जब वो अपनी आंटी के बेटी की शादी में डांस करती है तब उसको देख कर गुरजोत नाम का युवक उससे प्यार करने लगता है, लेकिन भोली भाली कमल उसके प्यार को समझ नही पाती. गुरजोत उससे शादी करना चाहता है और उन दोनों की शादी भी पक्की हो जाती है लेकिन शादी से पहले कमल अपनी माँ से मिलने बैंकॉक जाती है क्योंकि उसकी माँ बीमार है.

बैंकॉक में उसकी मुलाकात करन से होती है वह भी बहुत अच्छा डांसर है कमल करन से प्यार करने लगती है. और उसे अब समझ में आता है प्यार का सही मतलब. वो करन के प्यार में यह भूल जाती है कि उसे वापस भारत जाकर गुरजोत से शादी करनी है.

किससे कमल की शादी होती है ? वो जो उसे प्यार करता है यानि गुरजोत, या उससे जिसे वो प्यार करती है यानि करन.

यह जानने के लिए तो आपको देखनी पड़ेगी फ़िल्म ”तेरे इश्क नचाया”.

फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं अभिनेता दक्ष अजीत सिंह, गेवी चहल व अभिनेत्री मन्नत. फ़िल्म के अन्य कलाकार हैं कँवलजीत सिंह, दीप ढिल्लों और अमर नूरी. फ़िल्म में संगीत दिया है लोकप्रिय सूफी गायक हंस राज हंस व उनके बेटे नवराज हंस ने.

इस फ़िल्म की शूटिंग बैंकॉक, पंजाब व दिल्ली में हुई है.

“वीकोन ग्रुप भी अब म्यूजिक और मनोरंजन के क्षेत्र में

वीकोन ग्रुप ने भी अब म्यूजिक व मनोरंजन के क्षेत्र में अपने कदम रख दिये हैं. वीकोन एक ऐसा प्रोफेशनल ग्रुप है जो एअरपोर्ट जैसे संवेदन शील जगह पर सुरक्षा के यंत्रो जैसे स्कैनर की मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्युशन करती है. पिछले साल नवरात्रि में इस ग्रुप ने दो चैनल कात्यायनी टेलीविजन और वी न्यूज़ आरम्भ किये थे.

अब वीकोन ने म्यूजिक के क्षेत्र में इसलिए कदम रखा है जिससे वो श्रोताओ को अच्छा व स्तरीय संगीत सुनने को दे. वीकोन म्यूजिक एंड इंटरटेनमेंट ने पिछले दिनों तीन धार्मिक एलबम रिलीज़ किये हैं जिनमे एक माता की भेंटों का एलबम ”अज माँ नू मना लो” , इस एलबम की भेंटों को गाया है गायिका रिचा शर्मा ने. इसके अलावा दो एलबम ”मंगल भवन अमंगल हारी” और ”श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी” भी रिलीज़ किये हैं. जिनमे से एक में तो भगवान श्री राम व उनके सेवक हनुमान के भजन हैं जबकि दूसरी एलबम में राधा कृष्ण के भजन हैं. इन दोनों ही एलबम में फ़िल्मी दुनिया के लोकप्रिय संगीतकार रविंदर जैन का संगीत है और भजनो को गाया है सुरेश वाडेकर, साधना सरगम, कविता कृष्णमूर्ति व खुद रविंदर जैन ने.

इन सभी एलबम को रिलीज़ करते हुए वीकोन ग्रुप के मैनजिंग डाइरेक्टर जे के श्रीवास्तव ने कहा कि, ” आज जब म्यूजिक इंडस्ट्री बहुत अच्छे दौर से नही चल रही है फिर भी मेरी यही कोशिश रहेगी कि हम अपनी मेहनत व समर्पण से काम करे और अच्छी अच्छी प्रतिभाओ को मौका दे, अच्छा संगीत श्रोताओ को सुनाये, जिससे फिर से म्यूजिक इंडस्ट्री अपनी चमक सब ओर बिखेरे.”

पंजाबी फ़िल्म तेरे इश्क नचाया

इरोज इंटरनेशनल व पर्ल्स इंटरटेनमेंट की पंजाबी फीचर फ़िल्म ”तेरे इश्क नचाया” के निर्माता हैं केसर सिंह व निर्देशक है रविंदर रवि, रविंदर ने इस फ़िल्म से पहले ”चलती का नाम गाड़ी”, ”जमुनिया”, ”राजा की आएगी बारात” आदि अनेको लोकप्रिय धारावाहिकों का निर्देशन किया है. इसके अलावा जल्दी ही ”स्टार प्लस” पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक ”मर्यादा” का निर्देशन भी उन्होंने किया है.

”तेरे इश्क नचाया” की कहानी है कमल नाम की एक चुलबुली युवती की. उसके तीन भाई हैं जो अपनी बेटी की तरह उसे प्यार करते हैं. अभी भी वो बच्चों के साथ ही खेलना पसंद करती है जबकि वो युवा हो चुकी है. वो नृत्य भी बहुत ही अच्छा करती है, जब वो अपनी आंटी के बेटी की शादी में डांस करती है तब उसको देख कर गुरजोत नाम का युवक उससे प्यार करने लगता है, लेकिन भोली भाली कमल उसके प्यार को समझ नही पाती. गुरजोत उससे शादी करना चाहता है और उन दोनों की शादी भी पक्की हो जाती है लेकिन शादी से पहले कमल अपनी माँ से मिलने बैंकॉक जाती है क्योंकि उसकी माँ बीमार है.

बैंकॉक में उसकी मुलाकात करन से होती है वह भी बहुत अच्छा डांसर है कमल करन से प्यार करने लगती है. और उसे अब समझ में आता है प्यार का सही मतलब. वो करन के प्यार में यह भूल जाती है कि उसे वापस भारत जाकर गुरजोत से शादी करनी है. किससे कमल की शादी होती है ? वो जो उसे प्यार करता है यानि गुरजोत, या उससे जिसे वो प्यार करती है यानि करन. यह जानने के लिए तो आपको देखनी पड़ेगी फ़िल्म ”तेरे इश्क नचाया”.

फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं अभिनेता दक्षअजीत सिंह, गेवी चहल व अभिनेत्री मन्नत. फ़िल्म के अन्य कलाकार हैं कँवलजीत सिंह, दीप ढिल्लों और अमर नूरी. फ़िल्म में संगीत दिया है लोकप्रिय सूफी गायक हंस राज हंस व उनके बेटे नवराज हंस ने. इस फ़िल्म की शूटिंग बैंकॉक, पंजाब व दिल्ली में हुई है.

हार्ड कौर के टैटू

गायिका हार्ड कौर जितनी अपनी गायिकी के लिए जानी जाती हैं उतनी ही वो अपने टैटू के लिए भी जानी जाती हैं. अपने टैटू के बारे में उन्होंने बताया कि, ”मैंने अपना पहला टैटू बनवाया था १९९५ – ९६ में, ब्रिटेन में जब गोरी लड़कियां अपने हाथों पर दिल के आकार के टैटू बनवाया करती थी तब मैंने भी सोचा कि क्यों न मैं भी कुछ ऐसा करूं जिससे सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकूं इसलिए मैंने वाइल्ड टाइप का टैटू बनवाया मतलब ”एक उड़ता हुआ ड्रेगन” अपने हाथ पर बनवाया. आज भी जब लोग मेरे इस टैटू को देखते हैं तो पूछते हैं इसके बारें में. ”हार्ड का दूसरा टैटू पहले से बिल्कुल ही अलग है उनसे इसके बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि, ”यह मैंने अपनी मम्मी के लिए बनवाया है मैंने इसमें लिखवाया है ”आई लव यू मम्मी” यह कलाई पर है. जब मैंने यह बनवाया तो सबसे पहले अपनी मम्मी को बताया कि मैं आपके लिए यह बनवा रही हूँ तब उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी मम्मी के प्रति प्यार को दिखाने के लिए यह सब करने की कोई जरुरत नही है फिर भी मैंने यह टैटू बनवाया.”

अब नया कौन सा टैटू बनवा रही है पूछने पर उन्होंने बताया कि, अपने शरीर के बायें कंधे से लेकर कमर तक टैटू बनवाने का इरादा है अब मेरा. ” लोग इतने टैटू क्यों बनवाते हैं? के जवाब में उन्होंने कहा कि,” यह भी एक तरह का नशा ही है, एक बनवाओ फिर दूसरा और फिर तीसरा कोई अंत नही है इसका. बस एक बार इसकी शुरुआत होनी चाहिए.”

“गायिका रिचा शर्मा का एलबम लांच”

नवरात्र के शुभ अवसर पर वीकोन म्यूजिक ने गायिका रिचा शर्मा का माँ देवी की भेटों का पंजाबी एलबम ”अज्ज माँ नू मना लो” एलबम राजधानी दिल्ली के छतरपुर मंदिर में लॉन्च किया. रिचा शर्मा द्वारा गाये इन माता की भेटों में संगीत दिया है संगीतकार चरणजीत आहूजा ने.

नवरात्र और रामनवमी के इस अवसर पर लॉन्च हुये इस एलबम ”अज्ज माँ नू मना लो” के बारें में श्री जे के श्रीवास्तव ( वीकोन म्यूजिक के मैंनेजिंग डाईरेक्टर) ने कहा कि, ”मुझे बहुत ही ख़ुशी हो रही है माता की भेटों के इस एलबम लॉन्च करते हुए. मुझे पूरी उम्मीद है की श्रोताओ को भी यह एलबम पसंद आयेगा क्योंकि रिचा शर्मा ने बहुत ही मधुर आवाज में इन को गाया है.”

गायिका रिचा शर्मा ने कहा कि,” मैं तो माता की भेटों को गाकर ही यहाँ तक पहुंची हूँ, यह सब उनका ही आशीर्वाद है. मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है कि आज यह एलबम लॉन्च हुआ है.”

लाडो के सेट पर मना हरीश का जन्मदिन

कलर्स पर प्रसारित लोकप्रिय धारावाहिक ”न आना इस देस लाडो” में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हरीश वर्मा यानि अवतार का जन्मदिन उनके लिए एक नयी सौगात लेकर आया. आने वाले कुछ एपिसोड में हरीश ही छाये रहेगें यही नही उनके लिए इससे बड़ा सरप्राइज था कि ११ अक्टूबर को रात में जब १० बजे इस धारवाहिक की शूटिंग खत्म हुई और सब कलाकार थके हारे अपने अपने घर जाने वाले थे तभी प्रोडक्शन टीम ने सभी को हाल में बुलाया जंहा पर केक सजा हुआ था क्योंकि हरीश यानि हम सबके प्यारे अवतार का जन्मदिन जो था सबने हरीश के जन्मदिन का केक खाया. हरीश को बिल्कुल उम्मीद नही थी की उनका जन्मदिन सेट पर मनाया जाएगा , क्योंकि इस दिन अभिनेत्री मल्लिका शेरावत धारावाहिक में अपनी फ़िल्म ”हिस्स” के प्रचार के सिलसिले में आयी हुई थी और सभी इसी में व्यस्त थे.

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि,” मैं बहुत ही खुश हूँ कि आज मेरा जन्मदिन सबके साथ मना और साथ मे मैं अपने जन्मदिन पर इसलिए भी खुश होता हूँ क्योंकि मेरा यह लकी डे बिग बी के साथ मनाया जाता है.”

हरीश के जन्मदिन पर मल्लिका तो उपस्थित नही थी लेकिन उन्होंने उनको जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई दी.

धारावाहिक ‘पीहर’ ने पूरे किये ३०० एपिसोड

दूरदर्शन पर रोज़ दोपहर को प्रसारित होने वाले धारावाहिक ‘पीहर’ ने ३०० एपिसोड पूरे कर लिए हैं फिर भी यह धारवाहिक दर्शको की पहली पसंद बना हुआ है क्योंकि आज भी इसने अपनी मौलिकता नही खोयी है. ‘पीहर’ में जहाँ निर्देशक ने गाँव के आम आदमी की समस्या को दिखाया है, वहीँ रिश्तों के ताने-बाने को भी बहुत ही ख़ूबसूरती से दिखाया है.यह धारावाहिक दर्शको का स्वस्थ मनोरंजन तो करता ही है इसके साथ-साथ इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि किस तरह हम अपनी समस्याओ को दूर करे.

एक लड़की के जीवन में पीहर का कितना महत्त्व होता है,और वो शादी के बाद अपने ससुराल जाने पर भी अपने पीहर को नही भूल नही पाती और हमेशा ही उससे जुडी रहती है और सदा ही उसके सुखद भविष्य की कामना करती है. यह सब भी बहुत ही ख़ूबसूरती से दिखाया है ”पीहर” में.

धारावाहिक ”पीहर” की सफलता के बारें में निर्देशक हिमांशु कहते हैं कि, पीहर की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि आज भी दर्शक अच्छी कहानियों पर आधारित धारावाहिकों को पसंद करते हैं कहानी तो इसकी अच्छी है ही इसके साथ -साथ सभी कलाकारों ने भी शानदार अभिनय किया है.

विशान्त ऑडियो के बैनर में निर्मित इस धारावाहिक निर्माता हैं रमेश बोकाडे व निर्देशक हैं हिमांशु कोंसुल और लेखक हैं विमांशु कौशल. अभिनय किया है टीना पारेख, अमित बहल,शिशिर शर्मा, कुलदीप दुबे, धोनी भारद्वाज, श्वेता दधीचि व कपिल सोनी.

रिश्तेदार बाहर

फ़िल्म ”खिचड़ी” की हीरोइन कीर्ति की यह पहली ही फ़िल्म है लिहाजा वह बहुत जोश में हैं. फ़िल्म का पहला शो फ़िल्म के कलाकारों और उनके करीबी रिश्तेदारों के लिए किया गया था बाकी लोगों ने तो अपने दो-दो, तीन-तीन रिश्तेदार ही बुलाये वही कीर्ति ने अपनी पहचान के ५० से ज्यादा लोगो को बुला लिया अब न तो इतनी सीट थी न जगह अब क्या हो कीर्ति को बहुत बुरा महसूस हो रहा था. ऐसे में फिल्म के निर्माता और हीरो जे डी मजीठिया ने बडप्पन का परिचय देते हुए तुरंत दूसरे शो का इंतजाम किया और कीर्ति को बेइज्जत होने से बचा लिया. आपको एक बात बताये कीर्ति की इज्जत तो उन्हें बचानी ही थी क्योंकि फ़िल्म में कीर्ति उनकी महबूबा जो बनी हैं.

शाहिद कपूर का खिचड़ी कनेक्शन

खिचड़ी की हीरोइन कीर्ति, शाहिद कपूर की दीवानी हैं और यह बात उनके फ़िल्मी हीरो जे. डी मजीठिया को मालूम थी जब उन्होंने खिचड़ी का शो फ़िल्म में काम करने वाले कलाकारों और तकनीशियनों के लिए किया तो एक सरप्राईज भी था कीर्ति के लिए, जी हाँ फ़िल्म की सक्रीनिंग पर शाहिद कपूर भी पंहुचे और उन्हें देख कर कीर्ति आश्चर्य चकित रह गयी उन्हें विश्वास ही नही हुआ. वह तो उन्हें बाद में पता चला कि जे.डी ने सुप्रिया पाठक से गुजारिश की. शाहिद को फ़िल्म दिखाने की और कीर्ति को सरप्राईज देने की. शाहिद भी जान कर शरमा से गये कि फ़िल्म कि हीरोइन उनकी प्रशंसक है.

HARISH SHARMA

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सब्जियों और मसालों के बीच गाना

अब फ़िल्म का नाम ‘खिचड़ी’ हो और उसमें एक ही गाना हो तो आप क्या सोचते हैं कि गाना किसी हिल स्टेशन पर शूट होगा ? नही ऐसा बिल्कुल भी नही हुआ हिल स्टेशन पर तो शूट नही हुआ फ़िल्म का एक मात्र गाना लेकिन गाने की शूटिंग के लिए बाकायदा एक सेट बनाया गया सब्जी मंडी का, जहां तमाम ठेलों पर अलग – अलग तरह की सब्जियां लदी थी. मसालों की दुकाने लगी थी, आप अंदाजा लागाये कि कितनी सब्जी होगी सेट पर. हम बताते हैं २०० किलो से ज्यादा सब्जी और १०० किलों मसाले.

गीत के कोरियोग्राफर हैं ओस्कार वाले लौंजी, अब वह लगे जी डी मजीठिया व हीरोइन कीर्ति को नचाने में, कभी मसालों के बीच कभी सब्जी के ठेलों पर. अब हाल यह हो गया कि शूटिंग खत्म होते होते हीरो हीरोइन दोनों ही मसालों की खुशबू से चित हो चुके थे और अगले तीन दिन तक वह सेट पर आते थे लेकिन गला ख़राब होने के कारण बोल नही पाते थे, अब ‘खिचड़ी’ का गाना तो ऐसा ही बनना था और हाँ आपको एक बात और बताये कि फ़िल्म में सुहागरात का सीन भी सब्जी के ठेले पर ही फिल्माया गया है.

-Meenakshi Sharma