Home Blog Page 2801

कीचड़ उछालने वाली करतूतों को बंद करें: राजनाथ

rajnathjiभाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह द्वारा अप्रैल 15, 2009 को बैंगलूरू में जारी वक्तव्य

केन्द्र में संप्रग सरकार का शासनकाल अब लगभग समाप्त होने के निकट है। इस सरकार ने अपने पीछे प्राय: सभी मोर्चो पर विफलताओं की एक लम्बी सूची छोड़ी है। इन पांच वर्षो के दौरान देश को अनेक अभूतपूर्व संकटों का सामना करना पड़ा। केन्द्र में एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली सरकार और ढृढ-संकल्पी नेतृत्व के अभाव ने इस संकट को और अधिक गहरा कर दिया है।

गर्तोन्मुख संप्रग की तुलना में मजबूत होता राजग

भाजपा को किसी भी कीमत पर सत्ता से बाहर रखने की राजनीतिक विवश्ता के कारण संप्रग 2004 में अस्तित्व में आया। कोई भी ऐसा गठबंधन लम्बे समय तक बना नही रह सकता है जो घोर अवसरवादिता और अनुचित सौदेबाजियों को आधार बना कर किया जाता है। संप्रग के कुछ घटक दलों ने अधिक घास वाले चराहागाहों को देख कर कांग्रेस से हाल ही में किनारा कर दिया है।

इससे गठबंधन का निर्वाह करने में कांग्रेस की अन्तर्निहित अक्षमता उजागर होती है। कांग्रेसनीत गठबंधन से बाहर जाने की इस अचानक फूर्ती का दूसरा कारण संप्रग सरकार का घटिया ट्रैक-रिकार्ड है। संप्रग की अक्षमता और निकम्मेपन के कारण इसके सहभागियों को उससे दूर जाने के लिए विवश होना पड़ा। इसमें कोई हैरत नहीं है कि संप्रग एक डूबता जहाज बन गया है, जिसकी डैक से उसके सहयोगी अपने आपको बचाने के लिए छलांग लगा रहे हैं।

इसके विपरीत भाजपा नीत राजग ने श्री अटल जी के कुशल नेतृत्व में गठबंधन के सहयोगियों को जोड़े रखने की कला में महारत हासिल कर ली है। अब श्री आडवाणी जी सबको साथ लेकर चलने की कला में पारंगत हो रहे है। राजग 2004 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर जिस स्थिति में था, आज उससे कही बेहतर स्थिति में है क्योंकि भाजपा ने अपने अधिकांश प्रमुख सहभागियों को सफलतापूर्वक अपने साथ जोड़कर रखा है। राजग के सभी घटक दलों – अकाली दल, शिव सेना, जद(यू), एजीपी, आरएलडी और ईएनएलडी ने भाजपा और प्रधानमंत्री के पद के लिए इसके प्रत्याशी श्री लालकृष्ण आडवाणी को अपने बिना शर्त समर्थन का वचन दिया है।

राजग के बाहर भी हमारे अन्य कई मित्र हैं, जो चुनाव परिणाम घोषित हो जाने के बाद हमसे जुड़ जाएंगे। राजग अपनी उल्लेखनीय एकता, सामंजस्य और कठिन समय में दृढ़ता दर्शाने के कारण ही भारतीय राजनीति में एक सशक्त ताकत बनकर उभरा है।

इसमें एकमात्र अचरज की बात उड़ीसा में बीजद द्वारा किया गया विश्वासघात है। मूझे पूर्ण विश्वास है कि कर्नाटक के लोगों से सीख लेकर उड़ीसा के मतदाता भी बीजद के राजनीतिक विश्वासघात और अवसरवादिता को ठुकराकर उसको करारा सबक सिखाएंगे।

संप्रग की नीतियों से सबसे अधिक व्यथित आम आदमी

संप्रग शासनकाल के दौरान संप्रग की नीतियों ने सबसे भारी चोट आम आदमी को पहुंचाई है।

आज भारत की अर्थव्यवस्था मंदी के दबावों के नीचे कसक रही है। निर्यात घटकर निम्न धरातल पर आ गए है। छटनी के कारण लाखों कामगार अपना रोजगार गंवा बैठे हैं। देश में औद्योगिक उत्पादन नकारात्मक वृध्दि की मार झेल रहा है।

यद्यपि संप्रग सरकार मुद्रास्फीति को शून्य बिन्दु तक लाने की शेखी बघार रही है किन्तु यह इस तथ्य को छुपा रही है कि आवश्यक वस्तुओं के मूल्य अभी भी बढ़ रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक स्पष्ट रूप में दर्शा रहा है कि वास्तविक मुद्रास्फीति में अभी भी 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है।

सत्ता में आने के पश्चात् श्री आडवाणी के नेतृत्व में राजग सरकार देश में मूल्यों पर नियंत्रण करने और विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक समेकित तथा द्रुत कार्य योजना पर शिद्दत से काम करेगी।

कांग्रेस का कार्य निंदा और मिथ्यापवाद करना

कांग्रेसनीत संप्रग सरकार भाजपा और इसके नेतृत्व पर आधारहीन आरोप लगाते हुए एक मिथ्या अभियान चला रही है ताकि लोगों का ध्यान वास्तविक मुद्दों से हट जाए।

भाजपा सामयिक मुद्दों – जैसे आतंकवाद, मूल्यवृध्दि, मंदी, सुरक्षा और विकास पर एक गंभीर बहस करना चाहती है किंतु कांग्रेस ऐसी बहस से दूर भागना चाहती है क्योंकि इन मोर्चों पर उसके पास कहने को कुछ नहीं है।

कांग्रेस पार्टी की ज्यादा दिलचस्पी विगतकालीन मुद्दों को उठाने में है। परसों प्रधानमंत्री जी ने कंधार का मुद्दा उठाया और भाजपा के विरूद्ध बेबुनियाद आरोप लगाने का प्रयास किया।

यह एक सर्वज्ञात सच्चाई है कि कांग्रेस पार्टी कंधार संकट के दौरान लोगों में घबराहट फैलाने की प्रमुख दोषी थी। इस पार्टी ने ही राजग सरकार के विरूद्ध आंदोलन को समर्थन दिया था, जिसमें अगवा किए गए वायुयान के सभी यात्रियों की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी।

जब राजग सरकार ने इस संकट को सुलझाने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई तब भी कांग्रेस पार्टी उसमें उपस्थित थी। किंतु इस पार्टी ने सभी यात्रियों की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करने के लिए आम सहमति के विरूध्द एक शब्द भी विरोध में नहीं बोला था।

एक ओर कांग्रेस ने कंधार मुद्दे पर, जिसमें स्वयं कांग्रेस पार्टी लिए गए निर्णय में एक पक्षकार थी, रोष व्यक्त करती है, दूसरी ओर इसने चरारे-शरीफ में अपने स्वयं के कुकर्मों को पूरी तरह भूला दिया है जब कांग्रेस सरकार ने पांच खतरनाक आतंकवादियों को बच निकलने का सुरक्षित रास्ता सुनिश्चित किया था वह भी इस स्थिति में जब कोई बंधक नहीं बनाया गया था।

जिन लोगों ने चरारे-शरीफ में आतंकवादियों के साथ बातचीत की थी। वे ही लोग हमारे ऊपर आज उस निर्णय का दोषारोपण कर रहे हैं, जो संकटकाल में लिया गया था। कांग्रेस पार्टी को उस पुरानी कहावत को ध्यान में रखने की जरूरत है कि कांच के घरों में रहने वाले लोगों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।

कांग्रेस पार्टी का चुनावी एजेंडा भी विगतकालीन मुद्दों पर आधारित है। जबकि भाजपा का एजेंडा अधिक समसामयिक और प्रगतिशील है क्योंकि भाजपा का चुनावी नारा सुशासन, विकास और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर आधारित है।

एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में विपक्षी नेताओं पर वैयक्तिक प्रहारों को कभी भी ठीक नहीं माना जा सकता। जिम्मेदार प्रतिपक्षी दलों का यह नैतिक दायित्व है कि वे पदस्थ सरकार की रचनात्मक आलोचनाओं के अधिकार का प्रयोग करे। यदि प्रतिपक्षी दल प्रधानमंत्री की उनके कार्यों के लिए आलोचना करते है तब प्रधानमंत्री को स्वयं को बचाने की बजाय उनकी पार्टी को उनका बचाव करने के लिए आगे आना चाहिए।

प्रधानमंत्री को कभी भी किसी तरह के कलंकित करने वाले अभियान में वैयक्तिक रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। मैं आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह स्वयं चुनाव अभियान के नाम पर की जा रही इन कीचड़ उछालने वाली करतूतों को बंद करने की पहल करेंगे।

जारी है चुनावी आचार संहिता उल्लंघन का दौर…

electioncommission3मशहूर उपन्यासकार जार्ज बर्नाड शॉ ने ठीक ही कहा था “चुनाव एक नैतिक सदमा है, इससे जुड़े हर किसी के लिए कीचड़ में सनना लाज़िमी है।” आज यही स्थिति हमारे आंखों के सामने मौजूद है, क्योंकि भारत में इन दिनों लोकसभा चुनावों का मौसम है। सारे नेता एक-दूसरे को बड़े प्यार से कीचड़ से नहला रहे हैं। एक दूसरे नेताओं के वक्तव्यों पर राजनीति हो रही है, मुद्दे उछाले जा रहे हैं, उपलब्धियाँ गिनाई जा रही हैं, वोट मांगे जा रहे हैं। और इन सब के बीच जारी है चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन का दौर…

सच पूछे तो आचार संहिता का उल्लंघन सारे राजनीतिक दलों के लिए एक मज़ाक बन कर रह गया है। आयोग भी असहाय है। और वैसे भी नियम कानून बनते ही हैं तोड़ने के लिए…

हालांकि पिछले दस वर्षों में भारत में चुनाव लड़ने के तौर-तरीक़ों में काफ़ी अंतर नज़र आ रहा है, चुनाव आयोग उम्मीदवारों और पार्टियों के ख़र्च पर कड़ी नज़र रख रहा है। चुनाव आचार संहिता को भी सख़्ती से लागू कराने की कोशिश की जा रही है, पर निर्वाचन आयोग इस कार्य में बहुत ज़्यादा कामयाब नहीं है।

हर दिन कहीं न कहीं आचार संहिता उल्लंघन के मामले सामने आ रहे हैं। इस वर्ष देश में आचार संहिता उल्लंघन के कितने मामले दर्ज हुए हैं, इसका सही आंकड़ा तो नहीं बताया जा सकता है। पर वर्ष 2004 के 14 वीं लोक-सभा चुनाव में निर्वाचन आयोग में आचार संहिता उल्लंघन के कितने मामले दर्ज हुए..? साथ ही आयोग ने इन मामलों में क्या कार्रवाई किया है, यह जानना भी दिलचस्प होगा। बहरहाल, इसका आंकड़ा हमारे सामने है। यह आंकड़े सूचना के अधिकार कानून द्वारा प्राप्त हुए हैं। 

क्र.सं.

राजनीति दल जिनके खिलाफ शिकायतें दर्ज हुईं।

शिकायतों की संख्या

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा की गई कार्रवाई

1.

तेलगू देसम पार्टी

    4

तीन शिकायतें उचित कार्रवाई हेतु आंध्र-प्रदेश के सी.ई.ओ. को भेजी गई। एक शिकायत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि यह चुनाव बाद दर्ज हुआ था।

2.

इंडियन नेशनल कांग्रेस

   7

दो शिकायतें पंजाब व हिमाचल प्रदेश के सी.ई.ओ. को भेजी गई। रिपोर्ट में इसे बेबुनियाद पाया गया।

दो शिकायतें उचित कार्रवाई हेतु असम के सी.ई.ओ. को भेजी गई।

दो शिकायतें चुनाव बाद दर्ज हुए, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।

और एक शिकायत में कार्रवाई करना ज़रुरी नहीं था।     

 

3.

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (Marxist-Leninist)

     1

इस शिकायत को उचित कार्रवाई हेतु असम के सी.ई.ओ. को भेजा गया था।

 

4.

भारतीय जनता पार्टी

    6

एक शिकायत को उचित कार्रवाई हेतु असम के सी.ई.ओ. को भेजा गया था।

दो मामलों में सी.ई.ओ. से रिपोर्ट मंगवाकर उसकी जांच की गई, जांच करने के बाद कार्रवाई करने की कोई ज़रुरत महसूस नहीं हुई।

एक शिकायत, भाजपा द्वारा बनाए गए विज्ञापन से संबंधित था, इसमें यह पाया गया कि यह किसी एक व्यक्ति या दल के लिए नहीं था, इसमें सिर्फ सरकार की निंदा की गई थी, इसलिए आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की।

दो शिकायतों को उचित कार्रवाई हेतु उत्तर-प्रदेश के सी.ई.ओ. को भेजा गया था।

 

5.

डी.एम.के.(Dravida Munnetra Kazagam)

    1

जो शिकायत दर्ज हुई, उसे डी.एम.के.पार्टी को उनकी राय जानने के लिए भेजा गया, लेकिन पार्टी ने इस इलज़ाम को बिल्कुल ही नकार दिया। पार्टी द्वारा मिले जवाब को शिकायतकर्ता के पास भी भेजा गया। साथ ही शिकायतकर्ता को सबूत पेश करने के लिए कहा गया, पर शिकायतकर्ता ने कोई सबूत पेश नहीं किए।

6.

ए.आई.ए.डी.एम.के.

(All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam)

 

 

       2

एक शिकायत जो दर्ज हुई, उसे ए.आई.ए.डी.एम.के.पार्टी को उनकी राय जानने के लिए भेजा गया,पार्टी ने जवाब में बताया कि आयोग तभी कार्रवाई कर सकती है, जब एम.सी.सी. का उल्लंघन हो। और शिकायत में कहीं भी ये नहीं दर्शाया गया है कि एम.सी.सी का उल्लंघन हुआ है। ऐसे में मुद्दे को बंद करना ही सबसे बेहतर था

एक शिकायत जो दर्ज हुई, उसे पार्टी को उनकी राय जानने के लिए भेजा गया, लेकिन पार्टी ने इस इलज़ाम को भी नकार दिया। लेकिन जवाब संतोषजनक नहीं था, इसलिए आयोग ने श्री एस.एस.चंद्रन पर एस.सी.सी. के उल्लंघन के जुर्म में पाबंदी लगा दी।

7.

समाजवादी पार्टी

   1

आयोग ने इस मामले की जांच की, और पुन: मतदान कराए गए।

8.

बहुजन समाज पार्टी

   1

इस शिकायत को रिपोर्ट हेतु उत्तर-प्रदेश के सी.ई.ओ. को भेजा गया था।

 

 

-अफरोज आलम साहिल

 

(लेखक युवा पत्रकार हैं)

एक समसामयिक राजनीतिक व्यंग्य – दीपक ‘मशाल’

media_relations_4आज की ताज़ा खबर, आज की ताज़ा खबर… ‘कसाब की दाल में नमक ज्यादा’, आज की ताज़ा खबर….. .
चौंकिए मत, क्या मजाक है यार, आप चौंके भी नहीं होंगे क्योंकि हमारी महान मीडिया कुछ समय बाद ऐसी खबरें बनाने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं. आप विगत कुछ दिनों की ख़बरों पर ज़रा गौर फरमाइए, ‘कसाब की रिमांड एक हफ्ते और बढ़ी’, ‘कसाब ने माना कि वो पाकिस्तानी है’, ‘कसाब मेरा बेटा है-एक पाकिस्तानी का दावा’, ‘कसाब मेरा खोया हुआ बेटा-एक इंडियन माँ’, ‘जेल के अन्दर बम्ब-रोधक जेल बनेगी कसाब के लिए’, ‘कसाब के लिए वकील की खोज तेज़’, ‘अंजलि बाघमारे लडेंगी कसाब के बचाव में’, ‘गाँधी की आत्म-कथा पढ़ रहा है कसाब’ वगैरह-वगैरह…. अरे महाराज, ये महिमामंडन क्यों? कसाब न हुआ ‘ओये लकी, लकी ओये’ का अभय देओल हो गया.ज़रा सोचिये की क्या गुज़रती होगी ये सब देख कर उन्नीकृष्णन, करकरे, सालसकर और कामते जैसे शहीदों पर. अरे इतनी बार नाम तो हमने देश को इस भयावह संकट से निकलने वाले इन वीरों का भी नहीं लिया. माफ़ कीजिये मैं ये सब व्यंग्य की भाषा में लिख सकता था मगर मैं उन मुख्यमंत्री जी की तरह संवेदनाहीन नहीं बन सकता जो शहीदों का सम्मान करना नहीं जानते. इतने के बावजूद शायद महामीडिया और तथाकथित सेकुलरों का तर्क हो की ‘ पाप से घृणा करो, पापी से नहीं’, तो ठीक है उसे उसके पापों की ही सजा दे दो, नहीं हिम्मत पड़ती तो गीता पढ़ के देदो, कुरान का सही अर्थ समझ के देदो और दो, ऐसी सजा दो, ऐसी सजा दो की हर आतंक की रूह फ़ना हो जाये, काँप जाये.

खैर ज्यादा बोल गया, क्योंकि इस सब के लिए इन मीडिया वालों को दोषी ठहराना भी सही नहीं है, इन बेचारों के लिए तो रोज़ी-रोटी वतन और इज्ज़त से प्यारी हो गयी है. तभी ‘काली मुर्गी ने सफ़ेद अण्डे दिए’ ब्रेकिंग न्यूज़ बनाते हैं और चुनावी बरसात का मौसम आते ही ये भी सत्ताधारी सरकार को पुनः बहाल करने के ‘अभियान'(साजिश नहीं कह सकता, ये शब्द चुनाव आयोग को भड़का सकता है खामख्वाह मुझ पर भी रासुका लग सकती है) के तहत अघोषित, अप्रमाणित, अप्रकट किन्तु दृष्टव्य गठबंधन बना लेते हैं. चाणक्य नीति में नयी नीति एड करनी पड़ेगी ‘ जिसकी लाठी उसकी भैंसें’ भैसें इसलिए की कई हैं जैसे की प्रेसिडेंट जी, चीफ इलेक्शन कमिश्नर जी, सी बी आई जी, मीडिया जी, न्यायाधीश जी.
कमाल देखिये कि ५ वर्ष तक मूक-बधिरों के लिए प्रोग्राम बने रहने के बाद हमारे अतिप्रतिभाशाली प्रधानमंत्री जी अक्षम प्रधानमंत्री का लेबल हटाने के लिए अचानक आजतक की तरह हल्ला बोल की मुद्रा में आ गए, मगर वो भी हाईकमान के इशारे पर. ऐसे लगा जैसे मालिक ने बोला हो ‘टॉमी छू’. अरे महाराज दया करो हमें पीअच्.डी., ऍफ़.एन.ए.सी. डिग्रीधारक प्रोफेसर नहीं चाहिए जो घड़ी देख के क्लास लेने आयें और घड़ी देख के बिना कुछ समझाए चले जाएँ(ऐसे लोग सलाहकार ही अच्छे लगते हैं). मालिक, सचिन होना एक बात है और गैरी किर्स्टन होना दूसरी, जरूरी नहीं की अच्छा खिलाडी अच्छा कोच भी साबित हो. हमें एक लीडर चाहिए न की शोपीस. ओबामा जी कलाकार आदमी हैं, खूब मीठी मीठी बातें कहीं पी ऍम साब के बारे में, भाई इलेक्शन टाइम है, वो भी मनमोहक अदा से झूमते हुए पलट के तारीफ कर गए भाई की. इसपर मुझे संस्कृत का एक श्लोक याद आता है कि-
‘उष्ट्रस्य विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभः, परस्परं प्रशंस्यती अहो रूपः अहो गुणं’
ज्यादा मुश्किल अर्थ नहीं है- ऊँट के विवाह में गधे जी ने गीत गया, फिर दोनों ने आपस में ही एक दुसरे के गले(आवाज़) और रूप की प्रशंसा भी कर ली. सच है जी नेता जी वेदों की ओर लौट रहे हैं.

मुझे सच में नहीं पता कि नेहरु-गाँधी परिवार के सबसे छोटे चश्म-ओ-चिराग ने कुछ उल्टा-पुल्टा बोला था कि नहीं (क्योंकि सी.डी. नहीं देखि) मगर ये तो सच है कि आरोप लगे हैं, बाकी सच्चाई चुनाव बाद ही पता चलेगी क्योंकि अभी हाईकमान ने चीफ इलेक्शन कमिश्नर की जंजीर टाइट कर रखी है. मगर श्रीमान वरुण जी, अच्छा सुन्दर, धार्मिक नाम पाया है आपने और आपके सारे परिवार ने. ज़रा सोच समझ के ही बोल लेते, जोश में होश खो दिया, इतना भावुक होने की क्या जरूरत थी. 

अरे लेलेले अगर मैंने मासूम लालू के लिए नहीं लिखा तो इस महान सेकुलर का दिल टूट जायेगा और लल्ला रूठ जायेगा. खैर दद्दा आपकी तो कच्ची लोई है, जो जी में आये बोलो. वैसे भी आपकी गलती नहीं मानता मैं, चारा खा के कोई और बोलेगा भी क्या(याद रहे ये चारा है, राणा प्रताप ने भूसे की रोटियां खाई थीं वो भी अपने देश के लिए, इसलिए अपने को उस केटेगरी में मत समझना). लेकिन एक नया राज़ पता चला की चारा आपने राबड़ी को भी खिलाया है, वो तो भला हो उनकी जुबान का जिसने खुल के सब पर्दाफाश कर दिया की उनके दिमाग में जो है वो क्या खाने से हो सकता है.

आहा हा, पासवान साब तो मुझे सदाशिव अमरापुरकर की याद दिला देते हैं(रियल लाइफ नहीं रील लाइफ वाले अमरापुरकर की).

माननीय मुलायम जी के बारे में लिखने से तो कलम भी इन्कार करती है, वैसे भी मैं इस ब्लॉग और व्यंग्य की गरिमा नहीं गिराना चाहता.

बहिन मायावती जी के लिए जरूर करबद्ध निवेदन है आप लोगों से कि एक बार इस बेचारी को २-४ दिन के लिए ही सही प्रधानमंत्री बनवा दो यार. पुष्पक विमान से कुछ विदेशी दौरे मार लेगी, बाहर की धरती देख लेगी, विदेशी मेमों से कुछ फैशन टिप्स ले लेगी, देश में ५-६ हज़ार अपनी स्टेच्यू लगवा लेगी और उत्तर प्रदेश में करोड़ों के करती है यहाँ अरबों के वारे-न्यारे कर लेगी(इंटरनेशनल बर्थडे पार्टी के लिए चंदा ज्यादा चाहिए ना) और ज्यादा कुछ नहीं. फिर लल्ला कोई बड़ी समस्या जैसे ही देश के सामने आवेगी अपने आप ही भड़भड़ा के इस्तीफा दे देगी. उसकी तमन्ना पूरी कर दो यार, कम से कम सच्चाई में एक तो ‘स्लमडोग मिलियेनर’ बने.

बहुत देर से कमेन्ट किये जा रहा हूँ भइया, अब सुनो गौर से ऐसे लिखते-पढ़ते रहने से कुछ ना होने वाला, कुछ ठानो, कुछ करो. मैंने तो सोच लिया है अगला इलेक्शन लड़ने का, आप भी डिसाइड करलो या बिना मेरा नाम बताये सुसाईड कर लो. क्योंकि अब ये ही दो आप्शन हैं. सच्चाई ये है कि आज जब तक एक ऍम.पी. एक डी.ऍम. के बराबर योग्य(सिर्फ डिग्री वाला योग्य नहीं, बोलने और करने वाला योग्य) नहीं होगा तब तक देश का यूँ ही मटियामेट होता रहेगा और इस जैसे न जाने कितने व्यंग्य सामने आते रहेंगे.

एक बात दिल से बताना भाईलोग कि “क्या आप लोगों को ऐसा नहीं लगता कि उम्मीदवारों के नाम के बाद एक आखिरी ऑप्शन इनमें से कोई नहीं का होना चाहिए और यदि ५०% से ज्यादा मतदाता उस ऑप्शन को चुनते हैं तो पुनः चुनाव हो. वो भी नए उम्मीदवारों के साथ जिससे कि सभी पार्टियों को ये सन्देश जाये की अब ‘अर्द्धलोकतंत्र’ नहीं चलेगा, उनका उम्मीदवार नहीं चलेगा बल्कि जनता का नेता चलेगा. संविधान में संशोधन होना चाहिए कि कुछ विशेष योग्यता वाला व्यक्ति ही सांसद या विधायक पद का उम्मीदवार हो वर्ना ऐसे ही भैंसियों की पीठ से उतर के लोग देश की रेल ढकेलते रहेंगे.”

अरे जागो ग्राहक जागो, अब और घटिया माल मत खरीदो. एक नई क्रांति का सूत्रपात करो.

– दीपक चौरसिया ‘मशाल’

विज्ञापन एवं जनसंम्पर्क पाठ्यक्रम में प्रवेश प्रारंभ

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित एम.ए- विज्ञापन एवं जनसंम्पर्क पाठ्यक्रम में सत्र 2009-2010 के लिये प्रवेश प्रक्रिया आरंभ हो गयी है। प्रवेश के लिये आवेदन करने की अंतिम तिथि 30 अप्रेल 2009 है। पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु अखिल भारतीय आधार पर लिखित परीक्षा आयोजित की जायेगी। लिखित परीक्षा 31 मई 2009 को आयोजित होगी। लिखित परीक्षा के केन्द्र भोपाल ,कलकत्ता, लखनऊ, पटना, रांची, जयपुर, नोएडा एवं खंडवा बनाए गए हैं। किसी भी विषय में स्नातक उपाधि उत्तीर्ण व्यक्ति इस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकता है। प्रवेश के लिए इच्छुक उम्मीदवार अपने दो पासपोर्ट आकार के फोटोग्राफ के साथ 350 रूपए का डिमांड ड्राफ्ट (अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए 250 रूपये) जो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में देय हो के साथ विश्वविद्यालय द्रारा निर्धारित प्रपत्र में आवेदन कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिये विश्वविद्यालय की वेबसाइट www.mcu.ac.in देख सकते हैं।

(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)
विभागाध्यक्ष
विज्ञापन एवं जनसम्पर्क अध्ययन केन्द्र

भाजपा का चुनावी;कॉरपोरेट कल्चरसरिता अरगरे

mpमध्यप्रदेश में बीजेपी के फ़रमान ने कई मंत्रियों की नींद उड़ा दी है। पिछले लोकसभा चुनावों की कामयाबी दोहराने के केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव के चलते प्रदेश मंत्रिमंडल की बेचैनी बढ़ गई है। कॉरपोरेट कल्चर में डूबी पार्टी ने सभी को टारगेट दे दिया है। ‘टारगेट अचीवमेंट’ ही मंत्रिमंडल में बने रहने के लिये कसौटी होगी। प्रदेश में पचास ज़िले हैं और मंत्रियों की संख्य़ा महज़ बाइस है। ऎसे में सभी मंत्रियों को कम से कम दो – दो ज़िलों में अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन देना ज़रुरी है, ताकि बीजेपी केन्द्र में सत्ता के करीब पहुँच सके। पार्टी ने क्षेत्रीय विधायकों को भी “लक्ष्य आधारित काम” पर तैनात कर दिया है। प्रत्याशियों को जिताने का ज़िम्मा सौंपे जाने के बाद से इन नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है।

हाईप्रोफ़ाइल मानी जा रही विदिशा, गुना, रतलाम और छिंदवाड़ा सीट पर सभी की नज़रें लगी हैं। हालाँकि विदिशा में राजकुमार पटेल की ‘मासूम भूल’ के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। सूत्रों का कहना है कि सुषमा की जीत पक्की करने के लिये विकल्प भी तय था यानी सुषमा का दिल्ली का टिकट कटाओ या मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करो। और फ़िर राजनीति में “साम-दाम-दंड-भेद” की नीति ने रंग दिखाया। अब सुषमा स्वराज के साथ ही बीजेपी भी पूरी तरह निश्चिंत हो गई है।

मध्यप्रदेश में बीजेपी के फ़रमान ने कई मंत्रियों की नींद उड़ा दी है। पिछले लोकसभा चुनावों की कामयाबी दोहराने के केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव के चलते प्रदेश मंत्रिमंडल की बेचैनी बढ़ गई है। कॉरपोरेट कल्चर में डूबी पार्टी ने सभी को टारगेट दे दिया है। ‘टारगेट अचीवमेंट’ ही मंत्रिमंडल में बने रहने के लिये कसौटी होगी। प्रदेश में पचास ज़िले हैं और मंत्रियों की संख्य़ा महज़ बाइस है। ऎसे में सभी मंत्रियों को कम से कम दो – दो ज़िलों में अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन देना ज़रुरी है, ताकि बीजेपी केन्द्र में सत्ता के करीब पहुँच सके। पार्टी ने क्षेत्रीय विधायकों को भी “लक्ष्य आधारित काम” पर तैनात कर दिया है।

कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांतिलाल भूरिया को घेरने के लिये मुख्यमंत्री ने खुद ही मोर्चा संभाल लिया है। दिल्ली और मध्यप्रदेश की चार सर्वे एजेंसियों ने छिंदवाड़ा, गुना-शिवपुरी, रतलाम, बालाघाट, दमोह ,टीकमगढ़, भिंड, धार, होशंगाबाद और खरगोन सीट पर नज़दीकी मुकाबले की बात कही है। जीत सुनिश्चित करने के लिये काँटे की टक्कर वाले इन क्षेत्रों में मुख्यमंत्री ने सूत्र अपने हाथ में ले लिये हैं।

अपने चहेतों को टिकट दिलाने के कारण मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दाँव पर लगी है। मंत्री रंजना बघेल के पति मुकाम सिंह किराड़े धार से उम्मीदवार हैं। बालाघाट से के. डी. देशमुख को टिकट मिलने के बाद मंत्री गौरी शंकर बिसेन और रीवा से चन्द्रमणि त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाने के बाद मंत्री राजेन्द्र शुक्ला पर दबाव बढ़ गया है। होशंगाबाद से रामपाल सिंह और सागर से भूपेन्द्र सिंह की उम्मीदवारी ने मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी बढ़ा दी है।

उधर खेमेबाज़ी और आपसी गुटबाज़ी ने काँग्रेस को हैरान कर रखा है। आये दिन की फ़जीहत से बेज़ार हो चुके नेता अब चुप्पी तोड़ने लगे हैं। अब तक चुप्पी साधे रहे दिग्गज नेताओं का दर्द भी ज़ुबान पर आने लगा है। प्रदेश काँग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अजय सिंह का कहना है कि इस तरह की राजनीति उनकी समझ से बाहर है। वे कहते हैं, “पार्टी हित में सभी नेताओं को मिलजुल कर आपसी सहमति से फ़ैसले लेना होंगे।”

विधान सभा चुनाव में काँग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद आलाकमान ने सभी नेताओं को एकजुटता से काम करने का मशविरा दिया था। लेकिन पाँच महीने बाद भी हालात में सुधार के आसार नज़र नहीं आने से कार्यकर्ता निराश और हताश हैं। जानकारों की राय में प्रदेश काँग्रेस इस वक्त अस्तित्व के संकट के दौर से गुज़र रही है। संगठन में नेता तो बहुत हैं, नहीं हैं तो केवल कार्यकर्ता।

जनता के दबाव कांग्रेस ने की उम्मीजनता के दबाव कांग्रेस ने की उम्मीदवारी निरस्तदवारी निरस्त

jagdishसंभवतः ऐसा पहली बार हुआ है, जब कांग्रेसियों ने अपने घोषित उम्मीदवार की उम्मीदवारी निरस्त कर दी। जगदीस टाइटलर और सज्जन कुमार को राजधानी से उम्मीदवार बनाया था। दिल्ली में सन 1984 के सिख विरोधी दंगों में तथाकथित विवादास्पद भूमिका के मद्देनजर दिल्ली व पंजाब में दोनों नेताओ का भारी विरोध हुआ। जनता के इस विरोध की वजह से कांग्रेस हाई कमान को दोनों की उम्मीदवारी निरस्त करनी पड़ी। यह घटना दूर तक असर डालने वाली है।

इससे पहले सन् 1989 में भागलपुर दंगे के बाद शहर के लोगों ने कांग्रेस के तात्कालिक नेता व सांसद भागवत झा आजाद को उक्त स्थान से टिकट न देने की अपील की थी। लेकिन, आजाद वहां से खड़े हुए और जनता ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद कांग्रेस इस इलाके में अब तक अपना जनाधार मजबूत नहीं कर पाई है। हालांकि, तब इस घटना से कांग्रेस ने कोई सबक नहीं लिया था।

इन दोनों उम्मीदवारों की उम्मीदवारी निरस्त होने के बाद कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने घोषणा की कि कांग्रेस ने अपनी परम्परा का पालन करते हुए तय किया है कि टाइटलर और सज्जन कुमार अब लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि लोगों के मन में किसी तरह का भ्रम न हो इसलिए नेतृत्व ने यह निर्णय लिया है।

उन्होंने कहा कि इससे पहेल ही दोनों नेताओं ने चुनाव न लड़ने की अपनी मंशा से कांग्रेस नेतृत्व को अवगत करा दिया था।

टाइटलर ने भी संवाददाताओं से बातचीत में स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के बारे में फैसला पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर छोड़ दिया है।

इससे पहले, सिखों के भारी विरोध प्रदर्शन के बीच राजधानी की एक अदालत ने टाइटलर के मामले की सुनवाई 28 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी थी। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने टाइटलर को क्लीन चिट देते हुए पिछले सप्ताह मामला बंद करने के लिए अदालत में रिपोर्ट दाखिल की थी।

जोशी की जनसंपर्क यात्रा ने बदली हवा, आंकड़े भी हुए पक्ष में

murli_manohar_joshi-250x3002प्रख्यात सर्वे एजेंसी इमेज इण्डिया और विश्व संवाद केंद्र काशी की ओर से जारी वाराणसी लोकसभा की चुनाव विश्लेषण रिपोर्ट में बताया गया है कि अभी तक के रूझानों से डा. मुरली मनोहर जोशी अपने प्रतिद्वन्दियों से काफी आगे निकल चुके हैं। सर्वे-विश्लेषण का मानना है कि चुनावी टक्कर में उनका सीधा मुकाबला बसपा प्रत्याशी मोख्तार अंसारी से हो रहा है। मोख्तार के पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं में अंडरकरेंट चल रही है वहीं बड़ी संख्या में ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर, कुर्मी-पटेल, मौर्य, कायस्थ, बंगाली, सिंधी, मारवाड़ी और खटिक मतदाताओं का रूझान डा. जोशी के पक्ष में स्पष्ट दिख रहा है। सर्वे रिपोर्ट ने आश्चर्यजनक रूप से यह दावा किया है कि भूमिहार और यादव मतदाताओं का 70 प्रतिशत हिस्सा भी भाजपा के पक्ष में वोटिंग का मन बना चुका है।

एजेंसी ने सरकारी दस्तावेजों का विश्लेषण कर परिसीमन के बाद बने नवीन वाराणसी संसदीय क्षेत्र में जातिवार मतदाता संख्या का विवरण भी जारी किया है। विवरण के अनुसार वाराणसी सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 15लाख 55 हजार के करीब है जिसमें 2लाख 51हजार ब्राह्मण, एक लाख जायसवाल मतदाता, 70 हजार क्षत्रिय, 80 हजार कायस्थ, 70 हजार मौर्य, 1लाख 80हजार पटेल-कुर्मी, बंगाली 40 हजार, सिंधी-मारवाड़ी व अन्य उच्च वर्गीय व्यवसायी वोट 50हजार, भूमिहार 90 हजार, यादव वोट 90 हजार और करीब दो लाख मुसलमान मतदाता हैं। इसके अतिरिक्त हरिजन 70 हजार, अन्य अनुसूचित जातियों में खटिक 40 हजार, भर-बिंद-मल्लाह-पाल भी लगभग 40 हजार की संख्या में हैं।

सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों के विश्लेषण और सर्वे के मुताबिक डा. जोशी के पक्ष में ब्राह्मण मतदाताओं का 95 प्रतिशत,जायसवाल मत 95 प्रतिशत, क्षत्रिय मत शत प्रतिशत, कायस्थ शत प्रतिशत, बंगाली वोट शत प्रतिशत, मौर्य और कुर्मी वोटों का 80 प्रतिशत,यादव मतों का 60 प्रतिशत, खटिक मत 90 प्रतिशत, बिंद-मल्लाह-पाल-भर मतों का 70 प्रतिशत, मारवाड़ी-सिंधी व अन्य उच्च व्यवसायी वर्ग का शत प्रतिशत वोट पड़ रहा हैं। रिपोर्ट के अनुसार बड़ी संख्या में शिया मुस्लिम मत भी डा. जोशी के पक्ष में खड़े हो गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि भूमिहार मतों में डा. जोशी के पक्ष में अलका राय, कुसुम राय व अन्य प्रमुख भूमिहार नेताओं के दौरे के बाद तेज धु्रवीकरण हो गया है। इस प्रकार लगभग 70 प्रतिशत भूमिहार मत भी डा. जोशी को मिलने की बात रिपोर्ट में कही गई है।

रिपोर्ट के अनुसार डा. मुरली मनोहर जोशी को लोकसभा के सभी जाति-वर्गों में बढ़त मिल रही है जबकि अन्य प्रत्याशी विशेष जाति-वर्गों में ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी डा. राजेश मिश्र को तीसरे नंबर पर और सपा प्रत्याशी अजय राय को चौथे नंबर पर बताया गया है। (विश्व संवाद केंद्र, काशी)

कांग्रेस और सपा पर काशी के विद्वानों ने लगाया हिंदू और गंगाद्रोही होने का आरोप

काशी के विद्वानों ने एक दैनिक अखबार में डा.मुरली मनोहर जोशी के संदर्भ में कांग्रेस प्रत्याशी के बगल में प्रकाशित भ्रामक विज्ञापन पर आपत्ति जताई है। काशी के प्रमुख विद्वानों और वैज्ञानिकों ने कांग्रेस और सपा प्रत्याशी से कुछ गंभीर सवालों पर तत्काल उत्तर चाहा है। इन विद्वानों में डा. कामेश्वर उपाध्याय, प्रोफेसर श्यामसुंदर शुक्ल, प्रोफेसर ओम प्रकाश सिंह, प्रोफेसर यू.के. चौधरी, डा.दीनानाथ सिंह,डा. नन्दू सिंह, प्रोफेसर जेपी लाल,प्रोफेसर नागेंद्र पाण्डेय, डा. सच्चिदानंद सिंह, डा. विजय सोनकर शास्त्री, आनन्दरत्न मौर्य आदि ने पूछा है कि कांग्रेस प्रत्याशी बताएं कि क्या वेदकाल में ब्राह्मण गोमांस खाते थे? आखिर कांग्रेस पार्टी ने स्कूली पाठयक्रम में आजादी के बाद से पढ़ाए जा रहे इस पाठ पर कभी आपत्ति क्यों नहीं की।विद्वानों ने पूछा है कि क्या गुरू तेगबहादुर और सरदार भगत सिंह, पं. चंद्रशेखर आजाद लुटेरे और आतंकवादी थे। और यदि ऐसा नहीं है तो कांग्रेस 40 साल तक एनसीईआरटी की स्कूली पुस्तकों में यह गंदी बात क्यों पढ़ाती रही? विद्वानों ने सवाल पूछा है कि कांग्रेस पार्टी ने सन् 70 के दशक में मां गंगा के प्रवाह पर टिहरी बांध का निर्माण किसके कहने पर शुरू किया? महामना मालवीय और ब्रिटिश सरकार के बीच के समझौते को क्यों कांग्रेस और समाजवादी सरकारों ने जनता की नजरों से छुपाकर रखा? गंगा एक्शल प्लान का सारा पैसा कांग्रेसी नेताओं ने दबाकर उसे स्विस बैंक में रखा या नहीं? यदि नहीं तो कांग्रेस पार्टी स्विस बैंक के खातेदारों और उनकी जमा धनराशि के बारे में स्विटजरलैण्ड सरकार से हिसाब मांगने में क्यों हिचक रही है।

विद्वानों ने पूछा है कि क्या यह सच नहीं है कि कांग्रेस नेतृत्व ने सन् 1998 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने के पहले ही टिहरी बांध के पीछे गंगा की अविरल धारा को कैद कर दिया था। क्या यह सच नहीं है कि डा. जोशी ने केंद्र में मंत्री बनने के बाद स्कूली पाठयक्रम में हिंदुओं और तमाम अन्य भारतीय मत-पंथों के बारे में लिखी अनाप-शनाप बातों को पुस्तकों से हटवा कर बच्चों के लिए सर्व शिक्षा अभियान की शुरूआत की। आखिर कांग्रेस ने ग्रैंड ट्रंक रोड को शेरशाह सूरी ने बनवाया ये झूठा पाठ देश को क्यों पढ़ाया? डा. जोशी ने अपने कार्यकाल में देश को बताया कि ग्रैंड ट्रंक रोड शेरशाह सूरी नहीं वरन् सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य और उनके प्रखर महामंत्री आचार्य चाणक्य के प्रयत्नों से बना था। सवाल यह भी पूछा गया है कि क्या अधिसूचना जारी कर देने मात्र से ही गंगा का प्रदूषण समाप्त हो जाएगा जबकि कांग्रेस पचास साल तक गंगा में तमाम शहरों का सीवरजल, टेनरी और बूचड़खानों का चमड़ा-रक्त आदि बहाने का पापकर्म करवाती रही और कांग्रेस नेतृत्व ने रूस की सरकार से करोड़ों रूपया लेकर गंगा का अविरल प्रवाह रूकवा दिया।

विभिन्न सरकारी दस्तावेजों का हवाला देते हुए विद्वानों ने कांग्रेस से जवाब मांगा है कि जोशी कमेटी ने गंगा के अविरल प्रवाह के लिए पहाड़ों को काटकर सुरंग बनाने की 450 करोड़ की जो परियोजना भारत सरकार का सौंपी उस रिपोर्ट पर अब तक केंद्र की कांग्रेस सरकार ने क्या कार्रवाई की। गंगा पर उत्तराखंड में केंद्र सरकार के एनटीपीसी ने ही अधिकांश योजनाएं पिछले पांच साल में शुरू की, कांग्रेस उन परियोजनाओं पर चुप क्यों है। भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में गंगा के प्रवाह को अविरल बनाने का मुद्दा शामिल कर लिया गया है। कांग्रेस जवाब दे कि उसने अपने घोषणापत्र में गंगा के प्रवाह को अविरल करने की घोषणा क्यों शामिल नहीं होने दी। गौमाता का राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने में कांग्रेस क्यों चुप है। देश भर में चल रहे तमाम कत्लखानों जैसे देवनार, अलकबीर को कांग्रेस सरकारों ने बंद क्यों नहीं कराया। गीता जैसे पवित्र ग्रंथ को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित क्यों नहीं किया गया। विद्वानों ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने आजादी के बाद सिर्फ और सिर्फ हिंदू द्रोह को ही शरण दी है, एक विदेशी महिला के इशारों पर नाचने वाली कांग्रेस ने एक देसी होनहार युवा वरूण गांधी को जेल की सलाखों के पीछ बंद करवा कर अपनी जहरीली मानसिकता का परिचय दे दिया है, ऐसी कांग्रेस को इस बार जनता सत्ता से खदेड़कर उसके सारे पापकर्मों का हिसाब ले लेगी।

विद्वानों ने पूछा कि कांग्रेस का गंगा प्रेम तब कहां गुम हो जाता है जब सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर कांग्रेसी कहते हैं कि राम भगवान तो कभी पैदा ही नहीं हुए। रामसेतु तोड़ने और गंगा को बांधने का षड़यंत्र क्या कांगेस ने नहीं रचा है। आखिर कांग्रेस रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर क्यों बनने नहीं दे रही है। कांग्रेस बताए कि देश से करोड़ों बंगलादेशी घुसपैठियों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद अभी तक क्यों बाहर नहीं किया गया। आतंकवाद विरोधी कानून पोटा क्यों निरस्त किया गया और संसद पर हमले के आरोपी सजायाफ्ता अफजल गुरू को अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई। (विश्व संवाद केंद्र, काशी)

एक बेहतर राजनेता किसी बात से कभी इंकार नहीं करता: जयललिता

jayaअन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता ने चेन्नई में मंगलवार को कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद की स्थिति पर बातचीत करना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन एक बेहतर राजनेता किसी बात से कभी इंकार नहीं करता है। उन्‍होंने कहा कि चुनाव के बाद संभावित गठबंधन के लिए किसी पार्टी से बातचीत करने का कोई सवाल ही नहीं है।अन्नाद्रमुक नेता से यह पूछे जाने पर कि, ‘भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि अन्नाद्रमुक के साथ चुनाव बाद गठबंधन के लिए अनौपचारिक बातचीत हो रही है।’ उन्‍होंने आडवाणी के इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि एक बेहतर राजनेता किसी बात से इनकार नहीं कर सकता है। जया ने कहा कि उनकी पार्टी का गठबंधन तमिलनाडु में फिलहाल वाम दलों, एमडीएमके, और पीएमके के साथ है। केंद्र में गैर कांग्रेस और गैर भाजपा सरकार बनाने के लिए उनकी पार्टी काम कर रही है।

जयललिता की पार्टी ने 2004 का लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन कर लड़ा था। उन्होंने यह भी कहा कि वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं क्योंकि उनकी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है। उन्होंने एक टीवी चैनल से कहा कि चुनाव बाद गठबंधन के बारे में बातचीत करना जल्दबाजी होगी। चुनाव परिणाम आने के बाद हमलोग अपने चुनाव सहयोगी वाम दलों के साथ तथा समान विचार धारा वाले अन्य दलों से मिलकर किसी मसले पर बातचीत करेंगे। उस समय की स्थिति पर अभी से अटकलें लगाना जल्दबाजी होगी।

भाजपा ने निकाली एक और रथयात्रा…

राजग के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने आज लोकसभा चुनाव 2009 के लिए भारत रत्न डा0 बालासाहेब भीमराव अम्बेडकर को उनकी 118वीं जयंती के अवसर पर आयोजित ‘दलित चेतना रथयात्रा’ को झंडी दिखाकर रवाना किया।इस अवसर आडवाणी ने अपने भाषण में कहा कि भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार डा0 अम्बेडकर समता, सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन के समर्थक थे। उन्होंने अन्य विद्वानों के साथ मिलकर भारतीय संविधान की रचना की जो विश्व के बेहतरीन संविधानों में से एक है। 25 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा के समापन सत्र में डा0 अम्बेडकर ने एक उत्कृष्ट भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने नए स्वतंत्र राष्ट्र को दो बिन्दुओं पर प्रबोधित किया : मुश्किल से हासिल की गई हमारी आजादी की रक्षा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करके की जानी चाहिए और विगत की मूर्खताओं जिनसे विदेशी आक्रमणकारियों और शासकों को भारत पर शासन करने में मदद मिली थी, को नहीं दोहराया जाना चाहिए। सामाजिक लोकतंत्र और आर्थिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र अधूरा है। भारतीय जनता पार्टी स्वयं इस शिक्षा का पालन करने के प्रति कृत-संकल्प है।

आडवाणी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने डा0 अम्बेडकर को कभी भी अपेक्षित श्रेय नहीं दिया। इसने सन् 1952 में पहले लोकसभा चुनावों में उन्हें शिकस्त दी। तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता डा0 एच.वी. हांडे की एक नई पुस्तक (मेकमिलन द्वारा प्रकाशित अम्बेडकर एंड द मेकिंग ऑफ द इंडियन कांस्टीटयूशन) में प्रकाश डाला गया है कि संविधान सभा में शुरू में भेजे गए 296 सदस्यों में किस तरह डा0 अम्बेडकर को स्थान नहीं मिल सका था। पूर्वी बंगाल के एक दलित नेता ने सदस्य के रूप में अपना नाम वापस लेकर डा0 अम्बेडकर के लिए संविधान सभा में जाने का रास्ता बना दिया। इसके अलावा, महात्मा गांधी ने ही डा0 अम्बेडकर को मंत्रिमण्डल में शामिल करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू को राजी किया था।

आडवाणी ने बताया कि डा0 अम्बेडकर को सन् 1990 में ही ”भारत रत्न” दिया गया था। यह कार्य वी.पी.सिंह की सरकार द्वारा किया गया, जिसका भारतीय जनता पार्टी ने समर्थन किया था। इसके अलावा, यह मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ही थी जिसने डा0 अम्बेडकर की जन्मभूमि, महू में उनका भव्य स्मारक बनाया। मुझे गतवर्ष इस स्मारक का उद्धाटन करने का सम्मान मिला था। कांग्रेस पार्टी जिसने 50 वर्षों तक इस राज्य पर शासन किया था, ने कभी भी इसकी परवाह नहीं की।

आडवाणी ने पार्टी के घोषणा-पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने वादा किया है कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को जारी रखने के अलावा, ”भारतीय जनता पार्टी हमारे समाज के दलितों, आदिवासियों, अन्य पिछड़े वर्गों एवं दूसरे वंचित वर्गों के लिए उद्यमीशीलता एवं व्यवसाय के अवसरों को बढ़ाएगी ताकि भारत की सामाजिक विविधता पर्याप्त रूप से इसकी आर्थिक विविधता में प्रतिबिम्बित हो।” इस प्रकार घोषणा-पत्र में डा0 अम्बेडकर के स्वप्न को पूरी तरह से उच्चारित किया गया है। हमने सीखो और धन कमाओ योजनाओं (learn-and-earn schemes) के जरिए कौशल संवर्धन को बढ़ावा देने हेतु ”अत्यंत पिछड़े समुदायों” के लिए एक विकास बैंक का भी प्रस्ताव किया है।

आडवाणी ने आगे कहा कि डा0 अम्बेडकर के आर्थिक लोकतंत्र के सपने को पूरा करने का यह एक नया दृष्टिकोण है। मैं इसे आरक्षण से आगे दृष्टिकोण कहूंगा। इसका अभिप्राय है कि हम आरक्षणों की नीति को जारी रखेंगे और अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को उद्यमशीलता, व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय (प्रोफेशनल्स) और लाभप्रद रोजगार की मुख्य धारा में लाने हेतु महत्वाकांक्षी नई पहलें भी शुरू करेंगे।

आडवाणी ने उत्तर प्रदेश के मतदाताओं से अपील की कि उत्तर प्रदेश में एक पार्टी दलितों के नाम पर चुनकर सत्ता में आई है। दु:ख की बात है कि सरकार में इसका कामकाज ऐसा है कि दलितों के कई वर्ग अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। इस सरकार ने अपराध और भ्रष्टाचार जो पिछली सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में महामारी की तरह फैले हुए थे, को समाप्त करने का वादा किया था। दु:ख की बात है कि उत्तर प्रदेश में एक भ्रष्ट और अपराधयुक्त सरकार की जगह दूसरी सरकार आ गई है। लेकिन न केवल दलित ही वरन् समाज के सभी वर्ग अपने को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की जनता को आगामी लोकसभा चुनावों में सही निर्णय लेने का एक मौका मिला है। उन्होंने उत्तरप्रदेश की जनता से अपील की कि वह भारतीय जनता पार्टी तथा इसकी सहयोगी पार्टी-आर.एल.डी. को समर्थन दे और बड़ी संख्या में हमारे उम्मीदवारों को चुनें। मैं उनसे वादा करता हूं कि यदि नई दिल्ली में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई तो हम उत्तर प्रदेश में स्थिति को व्यवस्थित करेंगे।

तीर ए नजर/ जा बेटा, कुर्सी तोड़!!

0

इस स्कूल मास्टरी की वजह से कई बार घरवाली से जूते खा चुका हूं। बच्चे मुझे अपना बाप समझने में शरम समझते हैं। और वह अपनी बगल वाला माल मकहमे का चपड़ासी! उसके बच्चे भरे मुंह उसे बाप!बाप! कहते मुंह का थूक सुखाए रहते हैं। इधर-उधर के बच्चे भी जब उसे बाप-बाप कहते उसके पीछे दौड़ते हैं तो उसकी पत्नी का सीना फुट भर फुदकता है। और जिनके बच्चे उसे बाप-बाप कहते हैं, उनकी मांओं के सिर भी गर्व से इतने ऊंचे हो जाते हैं कि मुझे अपना सिर षरम के मारे नीचा करना पड़ता है। हा रे मास्टरी!इसी रोज-रोज की टच-टच से तंग आकर अबके मैंने भी सांसद के चुनाव लड़ने की ठानी! सोचा, मास्टरी में रहकर जो नहीं कर पाया सो लीडरी में जाकर कर ही लिया जाए।

इधर मैंने आजाद उम्मीदवार का नामांकन भरा और लो बंधुओं, उधर मैं हो गया स्कूल मास्टर से लीडर! आज उनके घर वोट मांगने जा रहा हूं, कल आपके घर भी आऊंगा। भगवान के पास भी गया था, पर उसने बताया कि मेरे आगे नाक रगड़ने से कुछ नहीं मिलेगा। जनता के आगे नाक रगड़ो तो कुछ बात बने। मेरे आगे मनौती कर कुछ नहीं बनेगा, जनता को खिला-पिला पटाया जाए तो बात बने। जनता के यही दिन तो खाने के दिन होते हैं। सरकार बनने के बाद तो उसे प्याज के छिलके भी नसीब नहीं होते।

ये देखिए भाई साहब! चार दिन में ही जनता के द्वार नाक रगड़-रगड़कर आधा हो गया है। पर मुझे भी कोई चिंता नहीं। ये चुनाव मुझे नाक का सवाल नहीं ,कमाई का सवाल है।

अपने प्रचार के सिलसिले में कल पार वाले गांव में गया था। किराए के दो-चार पोस्टर लगाने वाले साथ थे। मुफ्त में तो आज लोग अपने बाप की अर्थी में भी शरीक नहीं होते। माशुका की अर्थी में तो दस-दस बच्चों के बाप भी सादर शरीक होते हैं और अर्थी होती है कि हाथों हाथ श्‍मशान पहुंच जाती है कि असली आशिक को पता ही नहीं चलता कि कब जैसे श्‍मशान आ गया ।

वोटर सामने! पेट गले-गले तक भरा हुआ। फिर भी खाए जा रहा था। मैंने उसके श्रीचरणों में नाक रगड़ी। उसने मुंह में काजू डालते ,भरे पेट पर हाथ फेरते पूछा,’ किस जात के हो?’

‘मैं स्कूल में बीस साल से मास्टर रहा हूं।’
उसने फिर पूछा, ‘किस जात के हो?’
‘मेरा ही पढ़ाया आपके हलके का पटवारी है।’ बड़ी देर भैंस की तरह जुगलाने के बाद बोला,’जल्दी बता न यार! किस जात के हो?’
‘मैंने बच्चों को सदा ईमानदारी सिखाई।’ पर उसने वैसे ही मेरी ओर से फिर विमुख हो पूछा,’मैं पूछ रहा हूं तुम आखिर हो किस जात के?’
‘मैं भ्रष्टाचार के बिलकुल खिलाफ हूं।’
‘पूछ रहा हूं किस जात के हो मेरे बाप?’
‘मैंने बच्चों को पिछले बीस सालों से भाईचारे का पाठ पढ़ाया है।’ ये लीडर सच्ची को सच्चे हैं जो जनता पर जीतने के बाद मूतते भी नहीं।
‘वो तो सब ठीक है, पर तुम आखिर हो किस जात के?’
‘मैं देश की अखंडता में विश्‍वास रखता हूं।’
‘रामदेयी भीतर से पानी का गिलास देना। गले में हाथ वालों का दिया काजू फस गया लगता है।’ वह गला साफ कर फिर बोला, ‘अच्छा, तो तुम हो किस जात के?’
‘मैं मास्टर जात का हूं।’ मैंने अपना सिर पटक लिया।
‘सर्वे में ये कोई नई जात निकल आई क्या?’
‘नहीं, यह वो जात है जो ईष्वर से गधे तक का साक्षात्कार करवाती है।’

‘कौन, उस ईशरु का! जो पूरी पंचायत की बहू-बेटियों को छेड़ता फिरता है?’ मन किया लीडरी को लात मार फिर वही बीयूटी बुट,पीयूटी पट हो जाऊं। मैंने अपना सिर धुनते कहा,’ तुम्हारी जात का हूं मेरे बाप।’

‘तो ऐसा कहो न ! अपना तो सीधा सा हिसाब है,न कमल पर न हाथी पर, न हाथ पर, मुहर लगेगी तो बस जात पर। जा बेटा! जाकर संसद की कुर्सी तोड़!!’

डॉ.अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड
नजदीक मेन वाटर टैंक,सोलन-173212 हि.प्र.

‘जरनैलिज्म’ नहीं जर्नलिज्म

2

यह अघोरपंथी राजनीति का दौर है। या यूं कहें कि अघोरपंथी राजनीति पर भदेस किस्म की प्रतिक्रिया है। अघोरपंथ में सांसारिक बंधनों और लोक मर्यादाओं की परवाह नहीं की जाती। आज राजनीति भी लोकआकांक्षाओं से बहुत दूर जा चुकी है और उस पर प्रतिक्रिया भी सत्याग्रह से आगे बढ़ कर मुंह पर थूकने और जूता फेंकने तक आ पहुंची है।

चिदंबरम पर जूता फेंकने की चर्चा अभी थमी भी नहीं थी कि नवीन जिंदल भी जूते की जद में आ गये। इंटरनेट पर ब्‍लॉगर चटखारे लेकर इस घटना की चर्चा कर रहे हैं। इस बात की गिनती की जा रही है कि दुनियां में कितने प्रसिद्ध लोग जूतों का निशाना बन चुके हैं। पहले आया कि चिदंबरम जूते का हमला झेलने वाले चौथे आदमी हैं। फिर आया कि वे दूसरे भारतीय हैं जिसे जूते का शिकार होना पड़ा। नवीन जिंदल इस कड़ी में तीसरे व्यक्ति बन गये हैं।

जनमत को नकारने की मनोवृत्ति जो कांग्रेस ही नहीं बल्कि राजनीति में एक सिरे से दूसरे सिरे तक व्याप्त हो गयी है। चिदंबरम और नवीन जिंदल पर जूता उछालने के साथ ही अरुंधती राय पर चप्पल फेंकने और जिलानी के मुंह पर थूकने की घटनाएं भी एक ही शृंखला की कड़ियां हैं। यह मानव गरिमा के विरुद्ध है, निन्दनीय है। लेकिन सभी के पीछे जनविरोध को ठेंगे पर रखने की प्रवृति जिम्मेदार है।

हाल ही में एडिनबर्ग में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास तथा ब्रिटिश प्रधानमंत्री रॉबर्ट ब्राउन के निवास पर युद्ध विरोधियों ने जम कर जूते लहराये। यद्यपि इंगलैंड में जूता फेंकने की परम्परा की जानकारी नहीं मिलती फिर भी वहां इसकी बढ़ती लोकप्रियता लीक पर चलने वाले ब्रिटिश कुलीन समाज के बदलते चरित्र तथा नये प्रयोगों के प्रति स्वागतशीलता का परिचायक है।

इससे पहले ईराक में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश, केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में चीन के राष्ट्राध्यक्ष वेन जिआ बाओ और स्वीडन में इजराइल के राजदूत बेनी डेगन पर भी जूते उछाले जा चुके हैं। अमेरिका और चीन के नेताओं के बाद चिदंबरम ने विश्व की तीसरी महाशक्ति के प्रतिनिधि के रूप में इस क्लब में प्रवेश किया है। इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ समय बाद इस क्लब की सदस्यता पाने की होड़ शीतयुद्ध से भी अधिक खतरनाक दौर में पहुंच जाये।

तेजी से ‘ग्‍लोबल’ हो रहे इस ट्रेंड के भारतीय संदर्भ भी हैं। इस सूची में जितने भी गैर भारतीय हैं उन्हें दूसरे देश में पराये लोगों के हाथों जूते खाकर संतोष करना पड़ा है। किन्तु भारत इस मामले में आत्मनिर्भर है। चिदंबरम हों, अरुंधती राय हों या नवीन जिंदल, सभी ने अपनी ही धरती पर, अपने ही लोगों के हाथों जूते पाकर देश की लाज बचायी है। स्वदेशी के समर्थक निस्संदेह इस घटना को राष्ट्रीय स्वाभिमान से जोड़ कर देखेंगे। खास तौर पर चिदंबरम के संदर्भ में, जो देश की हर समस्या का हल विदेशी निवेश में खोजते रहे हैं, यह एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं है।

दुर्भाग्य से चिदंबरम पहले भारतीय तो बन ही नहीं सके, जूतों का प्रहार झेलने वाले पहले कांग्रेसी नेता बनने से भी वंचित रह गये। इस घटना के सूत्र कांग्रेस इतिहास के पृष्ठों में भी खोजे जा सकते है। 1907 में सूरत में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में कांग्रेस के संस्थापकों में से एक श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी को जूतों का सामना करना पड़ा था। नरमदल और गरम दल के बीच हुए इस संघर्ष का अंत कांग्रेस के विभाजन में हुआ।

बंग-भंग के बाद ही कांग्रेस में यह मंथन प्रारंभ हो गया था कि भारत को सुधार नहीं स्वराज्य चाहिये। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और श्री अरविन्द स्वराज्य के पक्ष में थे और उसके लिये कोई भी बलिदान करने को तैयार थे। 1906 में कोलकाता में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। इसमें गरमदल के नेताओं की पहल पर स्वदेशी, स्वराज, विदेशी का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा के प्रस्ताव पारित हुए। देखते ही देखते स्वराज्य की मांग और विदेशी के बहिष्कार का आन्दोलन मद्रास से रावलपिंडी तक पूरे देश में फैल गया।

अंग्रेजों के दवाब में उनकी ‘जय हो’ कहने वाले नरमदली सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, फिरोज शाह मेहता, दादा भाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले और रासबिहारी घोष आदि ने इस आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की। 1907 को सूरत अधिवेशन के दौरान कोलकाता अधिवेशन में पारित हुए उपरोक्त प्रस्ताव बांटे गये। नीचे बैठे हुए तिलक जी ने जैसे ही प्रस्ताव पर नजर डाली, वे बोल पड़े- ‘धोखा हुआ है।’ चारों प्रस्ताव बदल दिये गये थे। यह पता लगते ही शोर-शराबा शुरू हो गया। गतिरोध अगले दिन तक भी समाप्त न हो सका। ऐसी ही स्थितियों में नरमदल के नेताओं ने जबरदस्ती रासबिहारी घोष को अध्यक्ष चुनने की घोषणा की जिसके बाद हुए हंगामे में मंच पर बैठे सुरेन्द्र नाथ बनर्जी पर जूतों की बरसात शुरू हो गयी। अंतत: कांग्रेस का विभाजन हो गया और गरम दल ने श्री अरविन्द को अपना नेता चुन लिया।

यह संयोग ही है कि जिस जरनैल सिंह ने गृहमंत्री की ओर जूता उछाला उसकी भी इस प्रतिक्रिया का कारण था उसका यह मत कि कांग्रेस नेतृत्व सिखों के साथ धोखा कर रहा है। यद्यपि जरनैल सिंह ने स्वयं अपने कृत्य को गलत माना है और कांग्रेस ने उसे माफ भी कर दिया है लेकिन इस घटना ने वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है।

सिख समाज की ओर से बार-बार टाइटलर और सज्ज्न कुमार को टिकट न देने की अपील की जा रही थी। उसे नजरअंदाज कर कांग्रेस क्या संदेश देना चाहती थी। इस घटना के बाद उनके टिकट काटने से क्या यह संदेश नहीं जायेगा कि इस प्रकार की अवांछित हरकतें करके कांग्रेस के नेतृत्व को झुकाया जा सकता है।

इससे भी अधिक चिन्ता का विषय है जनमत को नकारने की मनोवृत्ति जो कांग्रेस ही नहीं बल्कि राजनीति में एक सिरे से दूसरे सिरे तक व्याप्त हो गयी है। चिदंबरम और नवीन जिंदल पर जूता उछालने के साथ ही अरुंधती राय पर चप्पल फेंकने और जिलानी के मुंह पर थूकने की घटनाएं भी एक ही शृंखला की कड़ियां हैं। यह मानव गरिमा के विरुद्ध है, निन्दनीय है। लेकिन सभी के पीछे जनविरोध को ठेंगे पर रखने की प्रवृति जिम्मेदार है।

मीडिया को भी अपनी भूमिका पर विचार करना होगा। ऐसी घटनाओं का एक कारण जनमत और जनविरोध को मीडिया द्वारा अपेक्षित तीव्रता के साथ न उठाना भी है। वहीं ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों को मीडिया जबरदस्त प्रचार मुहैया कराता है। उन्हें अपराधी के बजाय सेलेब्रिटी बना देता है। कथित टीआरपी का मोह छोड़ इससे बचना होगा तभी मीडिया लोकतंत्र को मजबूत बनाने में सहयोग कर पायेगी। सुनिश्चित करना होगा कि ‘जर्नलिज्म’ इतनी प्रभावशाली भूमिका अदा करे ताकि ‘जरनैलिज्म’ के लिये कोई स्थान न बन सके।

-आशुतोष

(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं)