वर्तमान लोकसभा चुनावों में तमाम प्रयासों के बाद भी मतदान का प्रतिशत प्रथम एवं द्वितीय चरण में बढ़ता नहीं दिखा। मतदाताओं की इस नकारात्मक या कहें कि उदासीन स्थिति के कारण प्रत्याशी पशोपेश में हैं। अमेठी के मतदान को लेकर तो प्रियंका ने अपनी स्थिति को स्पष्ट भी कर दिया है। लोकतन्त्र में मतदाताओं की इस स्थिति को कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
अकसर मतदान को लेकर और प्रत्याशियों को लेकर एक ही सवाल किया जाता है कि क्या करेंगे वोट करके? मतदाताओं की यह स्थिति और सोच लोकतन्त्र के लिए कदापि सही नहीं है। इस प्रकार के कदम जहाँ एक ओर अच्छे लोगों को मतदान से दूर करते हैं वहीं दूसरी ओर गलत प्रत्याशियों का भी चुनाव करवाते हैं। इसको इस प्रकार से आसानी से समझा जा सकता है कि अपने देश में आमतौर पर औसत मतदान प्रतिशत 51-55 तक रहता है। यह भी व्यापक रूप से मतदान के बाद की स्थिति है।
मान लिया जाये कि किसी चुनाव में मात्र 55 प्रतिशत तक मतदान होता है तो यह तो तय रहता है कि मत न देने वालों का प्रतिशत 45 है। अब जीतने वाले को कितने भी मत प्राप्त हों वे अवश्य ही समाज में एक विरोधाभासी स्थिति को पैदा करते हैं। यह स्थिति मतदान में अरुचि रखने वालों के कारण हो रही है। इस बार के चुनावों में प्रत्येक स्तर पर यह प्रयास किये गये कि मतदान का प्रतिशत बढ़े किन्तु सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। इधर कुछ तथ्यों की ओर चुनाव आयोग के साथ-साथ नीति नियंताओं को भी गौर करना होगा। मतदान में आती कमी लोकतन्त्र को ही खोखला कर रही है।
जहाँ तक सवाल अच्छे या बुरे लोगों के चयन का है तो यह तो सत्य है कि विधानसभा, लोकसभा को प्रत्येक पाँच वर्ष के बाद अपनी सीटों को भरना है। अब यदि अच्छे लोगों का रुझान इस ओर नहीं होगा तो निश्चय ही इस सीट पर उनके स्थान पर और कोई बैठेगा, अब वह अच्छा होगा या बुरा यह कैसे कहा जा सकता है। गलत लोगों के लिए तो संसद में जाने का रास्ता तो हम लोगों ने ही खोला है। यह सोचना तो नितांत बेवकूफी है कि यदि हम मतदान नहीं करेंगे तो इन राजनेताओं के दिमाग सही रहेंगे। मतदान न करके हम अपने आपको ही सीमित कर ले रहे हैं।
यह बात भी सत्य साबित हो सकती है कि आज राजनीति में माफियाओं का, बाहुबलियों का बोलबाला है। इसके साथ-साथ यह भी बात सत्य है कि तमाम सारे प्रत्याशियों में सभी ही बाहुबली नहीं होते हैं, सभी का सम्बन्ध माफिया से नहीं होता है। हम यह जानते हुए भी कि एक सीधे-सरल व्यक्ति को वोट करने से भी वह नहीं जीतेगा, सम्भव है कि हमारा मत बेकार चला जाये किन्तु क्या उस सही व्यक्ति को मिलता अधिक मत प्रतिशत यह साबित नहीं करेगा कि अब मतदाता एक लीक पर चल कर बाहुबलियों, धनबलियों को ही वोट नहीं करेंगे। मतदान के होने से उन राजनेताओं पर भी दबाव बनता है तो हमारे मत के बिना भी विजयी हो जाते हैं और हमारे मतदान न करने को मुँह चिढ़ाते हैं।
व्यवस्था से दूर रहकर व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है, उसे सुधारने के लिए उसी में शामिल होना पड़ेगा। जिस प्रकार से लोगों में मतदान के प्रति नकारात्मक भाव बढ़ता जा रहा है वह ही गलत लोगों को आगे आने को प्रोत्साहन प्रदान करता है। राजनैतिक क्षरण के लिए माफिया नहीं, हम सब जिम्मेवार हैं। सकारात्मक वोट के द्वारा हम राजनैतिक दलों पर भी दवाब बनायें कि वे ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार साफ-सुथरी छवि के लोगों को बनायें। वोट की चोट से ही माफिया को, बाहुबलियों को रोका जा सकता है।
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डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
सम्पादक-स्पंदन
सकारात्मक राजनीति के लिए राजनीति में आना होगा
मप्र में मीसा बंदियों के साथ भेदभाव
मध्यप्रदेश में मीसा बंदियों के साथ भेदभाव का मामला सामने आया है। यहां आपातकाल के दौरान मीसा के तहत बंदी बनाए गए लोगों को उनकी पार्टीगत निष्ठा को देखते हुए पेंशन दिया जा रहा है।साथ ही जिला स्तर पर गहरी छानबीन किए बगैर कई आपराधिक प्रवृति के लोगों को भी यह सम्मान दिया गया है। राज्य सरकार ने 20 जून 2008 को घोषणा की थी कि आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत बंदी बनाए गए सभी लोगों को अप्रैल 2008 से प्रत्येक माह आजीवन जयप्रकाश नारायण सम्मान पेंशन दिया जाएगा। घोषणा के मुताबिक जिन लोगों को आपातकाल के दौरान छह माह से कम अवधि तक जेल में बंद रखा गया था, उन्हें तीन हजार रुपये और उससे अधिक समय तक जेल में बंद रहे लोगों को छह हजार रुपये दिए जाएंगे। लेकिन, जिला स्तर पर इसके क्रियान्वयन को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं।
समाजवादी जन परिषद (मध्यप्रदेश) के प्रदेश अध्यक्ष अजय खरे ने बताया, “जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि नियम-6 की गलत व्याख्या कर जिला प्रशासन ने समाजवादी पृष्ठभूमि वाले संघर्षशील नेताओं को सम्मान पेंशन पाने से वंचित कर दिया है।” रीवा जिला प्रशासन के इस रवैये से अजय खरे समेत कई हकदार लोग पेंशन पाने से वंचित रह गए हैं। इनमें वर्तमान सांसद चंद्रमणि त्रिपाठी समेत कई लोग शामिल हैं।
खरे के मुताबिक सम्मान पेंशन स्वीकृत करने को लेकर जिला स्तर पर जो भी कार्यवाई हुई उसमें सभी कायदे-कानूनों को ताक पर रख दिया गया। उन्होंने कहा, “संघ परिवार से संबंध रखने वाले नारायण प्रसाद, श्रीनाथ पटेल जैसे कई लोगों को पेंशन स्वीकृत कर दिया गया। लेकिन, नियमों की गलत व्याख्या और तत्समय जैसे महत्वपूर्ण शब्दों की हेराफेरी कर समाजवादी धारा से जुड़े लोगों को इस सम्मान से वंचित रखा गया है।”
गौरतलब है कि सरकार की और से जारी दिशा निर्देश के अनुसार सम्मान पेंशन के लिए उपयुक्त व्यक्ति की अनुशंसा के लिए जिला स्तर पर एक समिति बनाई गई थी। जिला कलेक्टर व दंडाधिकारी, जिला पुलिस अधीक्षक और जेल अधीक्षक इस समिति के सदस्य हैं, जबकि जिले के प्रभारी मंत्री को समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।
इस समिति की ओर से जिला रीवा में सम्मान पेंशन की पात्रता के लिए 26 फरवरी 2009 को जो कार्यवाही हुई, उसपर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। साथ ही रीवा की जिला समिति के गठन की प्रक्रिया ही गलत बताई गई है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक रीवा की जिला कलेक्टर व दंडाधिकारी ने डा. एम. गीता ने जिले के अतिरिक्त जिलाध्यक्ष को भी बतौर सदस्य समिति में शामिल किया है, जो कानून सम्मत नहीं है।
खरे ने समिति के फैसले पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा, “जिले में समिति के गठन की प्रक्रिया ही अवैधनिक है। इसलिए समिति की ओर से लिए गए सभी निर्णय को अमान्य करार देते हुए नए सिरे से सम्मान पेंशन प्रक्रिया का निपटारा होना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “आपातकाल के दौरान 22 जुलाई 1977 को रीवा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष एवं दंडाधिकारी के आदेश पर मुझे गिरफ्तार किया गया था। डेढ़ वर्ष तक मुझे जेल में रखा गया। हालांकि, इससे पहले आपराधिक गतिविधि में शामिल रहने का मेरे ऊपर कोई आरोप नहीं था। इसके बावजूद मुझे सम्मान पेंशन के योग्य नहीं समझा गया। ऐसे और भी साथी हैं। दूसरी ओर घोर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सुशील पांडे की विधवा ममता पांडे, प्रमोद सिंह, दलबीर सिंह जैसे लोगों को सम्मानित किया गया है। यह मीसा बंदियों के लिए अपमान की बात है।”
संपूर्ण क्रांति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले समय में आंदोलन में भाग लेने वाले मीसा बंदी अपराधी करार दिए जाएंगे, जबकि कई अपराधियों को मीसा बंदी बतलाकर सरकार सम्मानित करेगी।
वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना – अफरोज आलम ‘साहिल’
खबर है कि केन्द्र सरकार के ढाई करोड़ की राशि से वंचित होने के बाद भी वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना कार्यालय (वाल्मीकीनगर, बिहार) की ओर से वर्ष 2009-10 के लिए नया वार्षिक योजना बनाने की कवायद तेज कर दी गयी है। सूत्रों की मानें वार्षिक योजना पर अंतिम रिपोर्ट अप्रैल माह के अंत तक तैयार कर दिया जायेगा। लगभग 900 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत इस परियोजना क्षेत्र का विकास एवं प्रबंधन वार्षिक योजना की राशि से पूरा किया जाता है। समय पर इस राशि के नहीं मिलने से बाघों की सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
स्पष्ट रहे कि वर्ष 2008-09 में वार्षिक योजना के रूप में केन्द्र सरकार ने कुल ढ़ाई करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी। यह स्वीकृति जुलाई माह में मिली, लेकिन बिहार सरकार के लापरवाही के चलते समय पर वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना को यह राशि नहीं मिल सकी। इससे जहां एक ओर इतनी बड़ी राशि से टाईगर प्रोजेक्ट को हाथ धोना पड़ा है, तो दूसरी ओर यहां के वनों की सुरक्षा एवं वन प्राणियों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। अगर समय रहते राज्य सरकार की ओर से पहल नहीं की जाती है, तो सुबे का एक मात्र टाईगर प्रोजेक्ट कुछ ही दिनों में नष्ट हो सकता है। इतना ही नहीं राज्य सरकार की लापरवाही के वजह से टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन वर्ष 2008-09 के तहत नहीं हो सका है। वनों की सुरक्षा के लिए नियमित गश्ती भी पिछले चार माह से बंद है। जबकि बाघों की सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार के निर्देश पर प्रत्येक टाईगर रिजर्व क्षेत्र में टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया जाना है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि मानदेय की राशि नहीं मिलने से सुरक्षा के लिए लगाये गये पांच भूतपूर्व सैनिक नौकरी छोड़ दिये। अब दस भूतपूर्व सैनिक ही अपनी सेवा दे रहे हैं। इधर डीएफओ एस. चन्द्रशेखर की माने, तो भूतपूर्व सैनिकों के मानदेय के भुगतान के लिए गैर योजना मद से चार लाख रुपये दिये गये हैं। इससे उनके एक वर्ष में से मात्र आठ माह का ही वेतन भुगतान हो पाया है। इसके अलावा अतिरिक्त राशि की मांग राज्य सरकार से की गयी है। स्पष्ट रहे कि टाईगर प्रोजेक्ट में सुरक्षा सहित विभिन्न योजनाओं का संचालित करने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से प्रति वर्ष वार्षिक योजना की राशि दी जाती है। राशि की स्वीकृति के बाद केन्द्र सरकार के नेशनल टाईगर कंजर्वेशन ऑथारिटी एवं बिहार सरकार के बीच मोड ऑफ अंडरस्टैडिंग कराया जाता है। इसके बाद राशि का इस्तेमाल हो सकता है। आश्चर्य तो यह कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2008-09 के लिए जुलाई 08 में दो करोड़ 50 लाख रुपये स्वीकृत की थी, जिसमें प्रथम किस्त के रूप में उसी माह एक करोड़ रुपये वाल्मीकि टाईगर प्रोजेक्ट को दे दिया गया। लेकिन राज्य सरकार की ओर से एमओयू पर दस्तखत नहीं होने के कारण 31 मार्च बीत जाने के बाद भी उस राशि का इस्तेमाल नहीं किया जा सका। प्रथम किस्त की उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं देने के चलते दूसरी किस्त की राशि से भी हाथ धो लेना पड़ा।
ऐसा नहीं है कि यह घटना पहली बार हुआ। इससे पूर्व भी बिहार सरकार इस तरह की लापरवाही लगातार दिखाती रही है। पिछले आठ वर्षों में केन्द्र सरकार द्वारा जारी फंड और बिहार सरकार द्वारा किए गए खर्चों को देखे तो आश्चर्य होगा। वर्ष 2000-01 में केन्द्र सरकार ने 38.7765 लाख रुपये दिए, पर बिहार सरकार ने सिर्फ 17.73454 लाख रुपये ही खर्च किया। वर्ष 2001-02 में केन्द्र सरकार ने 50 लाख रुपये जारी किए, पर बिहार सरकार सिर्फ 3.75 लाख रुपये ही खर्च कर पाई। वर्ष 2002-03 में केन्द्र सरकार ने 39.15 लाख रुपये उपलब्ध कराए, और बिहार सरकार ने इसे पूरा खर्च कर दिया।
वर्ष 2003-04 में केन्द्र सरकार ने 50 लाख रुपये दिए, और बिहार सरकार ने खर्च किया 77.828 लाख रुपये। वर्ष 2004-05 में केन्द्र सरकार ने 85 लाख रुपये दिए, बिहार सरकार ने सिर्फ 42.7079 लाख रुपये ही खर्च किया। वर्ष 2005-06 में केन्द्र सरकार ने कोई फंड उपलब्ध नहीं कराया, लेकिन बिहार सरकार ने 73.2290 लाख रुपये खर्च किए। वर्ष 2006-07 में केन्द्र सरकार ने 63.9554 लाख रुपये दिए, और बिहार सरकार ने 73.8575 लाख रुपये खर्च किया। वर्ष 2007-08 में केन्द्र सरकार ने 92.810 लाख रुपये दिए, और बिहार सरकार ने 66.9436 लाख रुपये खर्च किया।
यह सारे आंकड़े भारत सरकार के पर्यावरण व वन मंत्रालय के नेशनल टाईगर कंजरवेशन ऑथोरिटी से लेखक द्वारा डाले गए आर.टी.आई. के माध्यम से प्राप्त हुए हैं। मंत्रालय ने यह फंड बिहार के वाल्मीकी टाईगर रिजर्व के विकास एवं संरक्षण हेतु उपलब्ध कराए थे।
दुधवा टाईगर रिजर्व, उत्तर प्रदेश को केन्द्र द्वारा उपलब्ध कराई गई राशि का ब्यौरा:-
वित्तीय वर्ष | केन्द्र सरकार द्वारा जारी राशि | राज्य सरकार द्वारा खर्च की गई राशि |
2000-01 | 122.36 लाख रुपये | 115.96 लाख रुपये |
2001-02 | 77.00 लाख रुपये | 74.15 लाख रुपये |
2002-03 | 30.30 लाख रुपये | 30.30 लाख रुपये |
2003-04 | 173.585 लाख रुपये | 162.735 लाख रुपये |
2004-05 | 174.715 लाख रुपये | 178.402 लाख रुपये |
2005-06 | 162.875 लाख रुपये | 162.875 लाख रुपये |
2006-07 | 183.265 लाख रुपये | 101.77 लाख रुपये |
2007-08 | 134.89 लाख रुपये | 115.99 लाख रुपये |
– अफरोज आलम ‘साहिल’
आईपीएल बनाम चुनाव
आईपीएल साउथ अफ्रीका पलायन कर गया तो क्या, अपुन लोग फिर भी तो मस्त हैं। इस बार का आईपीएल उत्सव कई मायने में खास है। एक ओर फिल्म स्टार्स की टीमें दांव पर लगी हैं तो दूसरी और लोकतंत्र के नुमाइन्दो की प्रतिष्ठा।
एक ओर साउथ अफ्रीका की उछाल मारती पिचों पर बेपरवाह बाउंसर तो एक ओर चुनावी पिचों पर चोके छक्के ठोंकते डेमोक्रेटिक प्लेयर्स। साउथ अफीका का पॉलिटिक्स से खास लेना देना है। महात्मा गाँधी ने अपनी जिंदगी का एक अरसा व्यतीत किया है वहां पर। अपने विजय माल्या साब जिन्होंने गाँधी की बची खुची चीजें खरीदकर राष्ट्रपिता की लाज रखी वो भी डटे हुए हैं अपनी पूरी टीम के साथ।
आईपीएल साउथ अफ्रीका पलायन कर गया तो क्या, अपुन लोग फिर भी तो मस्त हैं इस बार का आईपीएल उत्सव कई मायने में खास है। एक ओर फिल्म स्टार्स की टीमें दांव पर लगी हैं तो दूसरी और लोकतंत्र के नुमाइन्दो की प्रतिष्ठा।
साउथ अफ्रीका काफी अरसे से रंग भेद का शिकार रहा है और इधर शिल्पा शेट्टी को रातों रात स्टार बना देने वाली जेडी गुडी का नस्लभेदी कमेन्ट। अजी भूल गए जनाब. शिल्पाजी भी राजस्थान रायल्स के बिग ब्रदर्स संग जोर आजमाइश में जुटी हुई हैं। डिम्पल गर्ल प्रीती जिंटा जो पिछली बार खिलाडियों को जादू की झप्पी देती रहीं, इस बार के सीजन में नए अंदाज में अवतरित हुई हैं सॉफ्ट ड्रिंक विथ हार्ड समोसों के काम्बिनेसन के साथ।
सल्लू मियां पार्टी निरपेक्षता के सिद्धान्त के बल पर हर दल के स्टार प्रचारक बने फिर रहे हैं तो किंग खान भी नाइट राइडर्स के स्टारडम को भुनाने के लिए फिलम विलम कर शूटिंग छोड़ पैवेलिएन में बैठ हाथ हिलाते नज़र आ रहे हैं। खुन्नस तो दादा गांगुली को हुई है जिनकी कप्तानी छीन उन्होंने रही सही इंटरनेशनल इज्जत की मिटटी पलीत कर दी। मुन्ना भाई ने अपने को सीमित कर लिया है अब वो एक ही पार्टी के लिए शूटिंग करेंगे डिफरेंट्स लोकेशंस पर।
सस्पेंस का तड़का, थ्रिलर का लाइव शो, हारर का रोमांच सब उपलब्ध है जरूरत है बस रिमोट का बटन दबाने की। मैथ वालों के लिए मुफ्त की आंकड़ेबाजी गर्मियों की छुट्टी में फुल टाइम पास। मंदिरा बेदी की दिलकश समीक्षा सुनिए मन उकताए तो चैनेल चेन्ज कीजिये और उठाइए चुनावी पुरोधाओं की गरमा गर्म बहस का ठंडा ठंडा लुफ्त। आईपीएल की ढोल विथ चुनावी एग्जिट पोल। ढोल की पोल हर बार के माफिक खुलेगी ही आखिर जनता की परख कैच कर पाना उतना ही मुश्किल है जितना कि आईपीएल चैम्पियन का चुनाव।
चुनाव के अटकलबाज और आईपीएल के सट्टेबाज समान रूप से सक्रिय हो गए हैं। चवन्नी-अठन्नी से लेकर लाखों करोडों के वारे न्यारे कुछ ही दिनों में हो जायेंगे। कोई सत्ता जीत मालामाल होगा तो कोई सट्टा।
-पंकज प्रसून
मंदिरा बेदी का नया लुक किस के लिए?
आईपीएल-2 के दूसरे संस्करण की एक्सट्रा इनिंग्स मे नये लुक के साथ प्रस्तुत हुई है। अपनी पोशाक और हेयर ड्रेसिंग के लिए चर्चा में रहने वाली मंदिरा का नया लुक भी चर्चा का कारण है। आखिर यह लुक किस के लिए है। वैसे तो यह दक्षिण अफ्रीका के अनुरूप है। क्यों कि जैसा देश वैसा भेष ही ठीक रहता है। परन्तु वे सैट मैक्स के अंग्रेजी वर्जन में प्रस्तुत हो रही है। हिन्दी वर्जन में न तो मंदिरा है और न ही अन्य कोई महिला एंकर। यानि ग्लेमर विहीन है आईपीएल की हिन्दी। इसलिए अब आप तो समझ गये होगे कि मंदिरा का नया लुक अंग्रेजी जानने वालो के लिए है।
बॉलीवुड सितारों की हार
प्रतियोगिता में पहले दो दिन बॉलीवुड सितारों की चमक फीकी पड़ गईं। प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी और शाहरूख की टीमें बुरी तरह मैच हार गई। तीनों ही सितारे अपनी टीमों का जोश बढ़ाने के लिए दर्शक दीर्घा में मौजूद थे। उनकी मौजदूगी ने अखबारों में तो सूर्खियां बटोर ली परन्तु उनकी टीमें रन नहीं बटोर सकी। अब उनको समझ में आ गया होगा कि रील लाईफ सब कुछ अच्छा नहीं होता है। मैदान में सितारों की चमक से काम नहीं चलता वहां तो बल्ले की चमक ही काम आती है।
चुनाव पर भारी आईपीएल
आईपीएल शुरू हुए दो दिन नहीं हुए कि यह चुनाव पर भारी पड़ गया है। मीडिया से लेकर आम जनता तक अब चुनाव दूसरे नंबर आ गया है। नेताओं की शाम की सभाओ में भीड़ जुटाना मुश्किल हो गया है। यहां तक कि सट्टा बाजार में भी चुनाव दूसरे नंबर पर खिसक गया है। शहरों और कस्बों के गली और नुक्कडों पर भी आईपीएल की ही चर्चा है। ऐसे में यदि चुनावों में कहीं आईपीएल को देश से बाहर करने का मुद्दा बन गया तो आप ही सोच सकते है कि इसका किसको फायदा होगा और किसको नुकसान?
प्रस्तुति- मनीष कुमार जोशी
आईपीएल में विवाद का कारण है ‘एस’
बिलकुल सही है। आईपीएल में अधिकांश विवादो की जड़ अंग्रेजी का अक्षर ‘एस’ ही है। आईपीएल से जुड़े जितने विवाद है, वे एस नाम से शुरू होने वाले व्यक्तियों द्वारा ही किये गये है। सौरव गांगुली का विवाद अपने कोच के साथ हुआ । शाहरूख खान ने सुनील गावस्कर को भली बुरी सुनाकर बखेड़ा खड़ा किया। शेन वार्ने का विवाद अपनी ही टीम के मो. कैफ के साथ हुआ। सबसे बड़ा विवाद जिसके कारण आईपीएल दक्षिण अफ्रीका में हुआ, उसका कारण भी एस ही है। जी हां । सुरक्षा के विवाद के कारण ही आईपीएल भारत से बाहर कराना पड़ा। अब आप भी मान गये होंगे कि आईपीएल विवाद की जड़ अंग्रेजी का ‘एस’ अक्षर ही है।
हार का कारण है सुंदरिया
जिस टीम के साथ बॉलीवुड की सुंदरिया जुड़ी है। उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा है। प्रीति जिंटा की टीम अच्छी होने के बावजूद आईपीएल .1 अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। नाईट राईडर्स का समर्थन पिछली बार जुही चावना ने किया था और टीम खिताब तक नहीं पहुंच पाई। आईपीएल .1 में मुंबई इंडियन्स का समर्थन भी बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने किया था और टीम ने फाईनल से पहले ही दम तोड़ दिया है। अब शिल्पा शेट्टी राजस्थान रॉयल्स से जुड़ी है। अब आप ही सोच सकते है कि इस टीम का क्या होगा?
चीयर्स लीडर्स के दीवानों के लिए खुश खबर
दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल होने से भले ही नाराजगी हो। परन्तु यह चीयर्स लीडर्स के दीवानों के लिए खुश खबर है। अब चीयर्स लीडर्स बिना बंदिश के अपना प्रदर्शन कर सकेगी। चीयर्स लीडर्स का प्रदर्शन वैसे तो कला की श्रेणी में आता है लेकिन पता नहीं लोग चीयर्स लीडर्स के किस प्रदर्शन के दीवाने है? अब कह रहे है चीयर्स लीडर्स का असली खेल तो दक्षिण अफ्रीका के स्टेडियम में ही देखेंगे। उनका कहना है वे तो मैच में चीयर्स लीडर्स ही देखते है। सो अब बिना विवाद बिना बंदिश चीयर्स लीडर्स का जलवा सबके लिए होगा।
प्रस्तुति मनीष कुमार जोशी
साध्वी प्रज्ञा पर जेल में हमला
मालेगांव विस्फोट मामले की एक प्रमुख अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर भायखला जेल में एक कैदी ने हमला बोल दिया, जिससे उनके चेहरे और गले पर चोटें आ गई हैं। प्रज्ञा के वकील के मुताबिक उन्होंने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) की अदालत में एक आवेदन देकर इस मामले में एक निजी शिकायत दर्ज कराने की अनुमति मांगी है।
मकोका अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एम.आर.पुराणिक ने साध्वी प्रज्ञा की याचिका स्वीकार कर ली है। उनके वकील ने दावा किया कि प्रज्ञा को जेल में मुमताज शेख नामक कैदी गाली दी और उन्हें जेल से बाहर फेंकने की धमकी दी।
उसके बाद प्रज्ञा ने मुमताज के बारे में जेलर से शिकायत की थी। सोमवार को जब कैदी दोपहर का भोजन कर रहे थे, उसी समय मुमताज ने साध्वी पर कटोरे से हमला बोल दिया।
मप्र में सुषमा स्वराज समेत 198 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला कल
पंद्रहवी लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के दौरान मध्य प्रदेश में गुरुवार को केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज सहित 198 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है।23 अप्रैल को होने वाले मतदान में 1,71,78,538 मतदाता अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इनके भाग्य का फैसला करेंगे।
मतदान की प्रशासनिक तौर पर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया गया है। यहां की 29 में से 13 संसदीय सीटों पर मतदान होना है, जिसमें कुल 198 उम्मीदवार मैदान में हैं। सबसे अधिक 28 उम्मीदवार छिन्दवाडा संसदीय क्षेत्र में हैं।
राज्य के खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला, बालाघाट, छिन्दवाडा, होशंगाबाद, विदिशा, भोपाल और बैतूल में मतदान होना है।
छिन्दवाडा लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के कमलनाथ और विदिशा से भाजपा की सुषमा स्वराज और सीधी से निर्दलीय वीणा सिंह चुनाव मैदान में है।
मुख्य निर्वाचन कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार 31 हजार 387 इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का मतदान में इस्तेमाल किया जाएगा। चुनाव के बाबद सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए है।
पीलीभीत की जनता देगी मेरी मां के आंसुओं का जवाब: वरुण गांधी
भाजपा के युवा नेता वरुण गांधी ने बुधवार को पीलीभीत में लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन-पत्र दाखिल किया। इस अवसर पर उनके साथ मां मेनका गांधी और बरेली से भाजपा के प्रत्याशी संतोष कुमार गंगवार भी उपस्थित थे। विदित हो कि वरुण गांधी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।इसके पश्चात यहां आयोजित एक रैली में उमडे जनसैलाब को संबोधित करते हुए वरुण ने कहा कि मैं राष्ट्रभक्तों के सम्मान और उनकी रक्षा के लिए पहले भी खड़ा था और आगे भी रहूंगा। उन्होंने कहा कि मेरा हाथ हमेशा लोगों की रक्षा व मदद के लिए उठेगा।
भावुक होते हुए वरुण ने कहा कि 29 साल के जीवन में मैंने पहली बार अपनी मां को रोते हुए देखा, जब वह मुझसे मिलने एटा जेल आई थीं। उन्होंने कहा कि मेरी मां के आंसुओं का जवाब पीलीभीत की जनता देगी।
गुजरात में जोर पकड रहा है भ्रष्टाचार और काला धन का मुद्दा
‘देश के बाहर गये काले धन की पाई-पाई हम वापस लेकर आयेंगे’ मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इस उद्धोषणा के आगे कांग्रेस आक्रामक होकर भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त और काले धन की पोषक पार्टी के उपमे से नवाजती है। काला धन और भ्रष्टाचार के सवाल पर राज्य में बहस तेज हो चुकी है। दोंनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर आमने-सामने खडी है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने जब दिल्ली में आयोजित प्रेस-कांफ्रेंस में विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने का मुद्दा उछला तो देश भर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई।
‘देश के बाहर गये काले धन की पाई-पाई हम वापस लेकर आयेंगे’ मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इस उद्धोषणा के आगे कांग्रेस आक्रामक होकर भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त और काले धन की पोषक पार्टी के उपमे से नवाजती है। काला धन और भ्रष्टाचार के सवाल पर राज्य में बहस तेज हो चुकी है। दोंनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर आमने-सामने खडी है।
संत बाबा रामदेव ने भी इसे पार्टी विशेष का मुद्दा के रूप में देखने के बजाये राष्ट्रीय मुद्दा मानने की अपील की। साथ ही उन्होंने कहा कि यह देशहित से जुडा मुद्दा है, और इस पर सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आवाज उठानी चाहिए। देखते-देखते काला धन का मुद्दा देश भर में जोर पकडने लगा। लेकिन गुजरात में इससे एक कदम आगे बढते हुए भाजपा ने जनमत इकट्ठा करने का काम कर डाला। इस पर व्यापक जनसमर्थन मिला। भाजपा ने सभी 26 संसदीय क्षेत्रों में करीब दो हजार से अधिक मतदान केंद्र बना कर इस बहस को जनव्यापी करने की कोशिश की। लोगों में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और लोगों ने भाजपा के इस अभियान में साथ दिया। करीब 22 लाख लोगों ने मतदान के जरिये भाजपा की इस मुहिम को सही करार दिया। इससे भाजपा ने इस मुद्दे को राज्य में अपने सभी चुनावी भाषणों से जोड दिया। हालांकि कई पार्टियों ने इसे हल्के ढंग से लेते हुए किनारा भी किया। सर्वप्रथम लालकृष्ण आडवाणी ने राज्य में अपनी पहली जनसभा में काला धन का मुद्दा उछाला। 27 अप्रेल को कांकरिया के फुटबॉल ग्राउंड में आडवाणी ने कहा कि देश के बाहर भारत का करीब 73 लाख करोड राशि विभिन्न बैंकों में पडा है, इतनी बडी राशि यदि देश में वापस आती है तो इसका उपयोग देश की आमो-आवाम और विकास कार्यों के लिए किया जा सकेगा।
दूसरी बडी सभा उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की हुई। 30 मार्च को इसी कांकरिया फुटबॉल ग्राउंड में मायावती ने भाजपा के इस मुद्दे को आडे हाथों लेते हुए कहा कि केंद्र में जब एनडीए की सरकार थी, तो लालकृष्ण आडवाणी ने अपने मंत्रियों के काले धन वापस लाने का प्रयास क्यों नहीं किया। मायावती ने भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी बताया। मायावती ने काले धन की बात को भाजपा का चुनावी शगुफा बताते हुए मतदाताओं को भाजपा के भ्रमजाल से बचने की अपील की। दूसरी तरफ राज्य में अपने चुनावी सभाओं को तुफानी रफ्तार देते हुए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपने भाषणों का मुख्य मुद्दा बना जनता के बीच हलचल पैदा कर दी। वे सभाओं में लोगों से पूछने लगते कि बताईये-काला धन देश में वापस आना चाहिए या नहीं? हजारों की संख्या में एक साथ जवाब आता-हां। मोदी की जनसभाओं के बाद जनता के बीच यह मुख्य चुनावी मुद्दा के रूप में प्रचलित हो जाता। फिर अन्य मुद्दों का स्थान दूसरा और तीसरा नंबर पर आने लगता।
इधर कांग्रेस ने मोदी की सभाओं के बाद लोगों में प्रतिक्रिया होते देख अपने केंद्रीय नेतृत्व को मैदान में उतारा। सर्वप्रथम इस मुद्दे पर बोलने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री पी.चिदम्बरम आये। उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से सफाई देते हुए कहा कि वे सरकारी स्तर पर सभी कार्यवाही कर रहे हैं। समय आने पर सब कुछ साफ हो जायेगा। चिदम्बरम का ऐसा कहना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी इस मायने में सही समय पर सही कदम उठाने से पीछे नहीं रहेगी। चिदम्बरम के बयान के बाद कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता मैदान में आ गये। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सिध्दार्थ पटेल ने भी चिदम्बरम के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि काले धन के मुद्दे पर पार्टी कार्यवाही का समर्थन करती है, लेकिन उसे इस संबंध में भाजपा की साफ नियत होने पर शक है। इसके बाद कांगे्रेस ने अपने पूर्व नेता प्रतिपक्ष और मुख्य प्रवक्ता अर्जुन मोढवाडिया को आक्रमण तेज करने को उतारा। कांग्रेस नेता मोढवाडिया ने काला धन पर पार्टी की राय स्पष्ट करने के बजाये भाजपा और एनडीए शासन के समय हुए भ्रष्टाचार की बात कर भाजपा पर हमला बोल दिया। यानी भाजपा के इस मुद्दे को जनव्यापी होता देख कांग्रेस ने आक्रमक रहने की अपनी पूरानी रणनीति को ही हथियार बना कर भाजपा से मुकाबला करने की ठान ली। मोढवाडिया ने भाजपा पर आरोपों की बौछार करते हुए कौफिन कांड से लेकर डिस्इन्वेस्टमेंट विभाग तक की गडबडियों के मामले उठाये जो कि एनडीए शासनकाल में जनता के बीच चर्चा के विषय बने हुए थे। मोढवाडिया ने कहा कि भ्रष्टाचार और काला धन दोनों अलग-अलग नहीं अपितु एक ही है। भ्रष्टाचार से पैदा हुए काला धन को छुपाने के लिए ही भ्रष्ट व्यक्ति विदेशी बैंकों का सहारा लेता है। उन्होंने भाजपा शासन के दरम्यान कौफिन कांड, बंगारू लक्ष्मण द्वारा शस्त्र खरीदी के लिए लिया गया रिश्वत, युनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया का यूएस-54 का पांच हजार करोड का घोटाला, डिस्इन्वेस्टमेंट के नाम पर बाल्को का 5 हजार करोड का घोटाला, मुंबई की सेंट्रल होटल के सौ करोड का घोटाला, अरविंद जोहरी के लखनऊ के सायबर ट्रोन तकनीकी आईटी पार्क सहित गुजरात सरकार के सुजलाम सुफलाम के 11 सौ करोड के घोटाले संबंधी आरोप लगाये। इसके अलावा मोढवाडिया ने भाजपा के दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालय से चोरी हुए 2.5 करोड रुपये को काला धन बताते हुए सवाल खडा किया कि यदि वह काला धन नहीं था, तो भाजपा ने इस संबंध में पुलिस रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज करायी। मोढवाडिया ने आडवाणी पर भी आरोप लगाते हुए कहा कि उनका भी नाम जैन हवाला की डायरी में आया था।
गांधीनगर से आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड रही प्रसिध्द भौतिक वैज्ञानिक स्वर्गीय विक्रम साराभाई की पुत्री मल्लिका साराभाई भी अपने चुनावी कैंपेन में इस मुद्दे को खूब उठाती है। लेकिन उनका तर्क दूसरा है, वे कहती है कि देश के काले धन को क्यों नहीं वापस देश की तिजोरी में डालना चाहिए। पहले तो देश के अंदर हुए बडे घोटालों के पैसे देश के सामने लाने की पहल होनी चाहिए। देश से भ्रष्टाचार नाबूद करने की कोशिश होनी चाहिए। उन्होंने आडवाणी के इस बयान पर तिखी प्रतिक्रिया जतायी जिसमें आडवाणी ने काले धन को देश के विकास में लगाने की बात की थी। मल्लिका ने कहा कि विकास के नाम पर फिर से इन पैसों की लूट की योजना से इनकार नहीं किया जा सकता है। सुप्रसिध्द नृत्यांगना ने कहा कि देश के काले धन को पहले स्वयंसहायता समूहों और गरीब जनता के बीच देने की जरूरत है जिससे वह वास्तविक जरूरतमंदों के काम आ सकें।
-बिनोद पांडेय
(लेखक हिंदुस्थान समाचार, अहमदाबाद से संबद्ध हैं)
बेतिया में प्रकाश झा के ऑफिस पर छापा
बिहार में पश्चिमी चंपारण लोकसभा सीट से लोकजनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी प्रकाश झा के दफ्तर पर पुलिस ने छापे मारकर 10.25 लाख रुपए जब्त कर लिए हैं।पश्चिमी चंपारण की पुलिस अधीक्षक केएस अनुपम के मुताबिक गुप्त सूचना के आधार पर जिला पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के संयुक्त दल ने बीती रात प्रकाश झा के गेस्ट हाउस पर छापामारी कर उक्त राशि को जब्त किया और इसके साथ ही 53 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इस संबंध में बेतिया थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई है।
प्रकाश झा ने कहा कि उक्त राशि उनके द्वारा गेस्ट हाउस के पास ही निर्माणाधीन मौर्य चीनी मिल के मजदूरों और कर्मचारियों को देने के लिए रखी गई थी। विरोधियों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि खुद को हारता देख विरोधियों ने ऐसा करवाया है।
विदित हो कि 23 अप्रैल को बेतिया में मतदान होने वाला है।
माँ झण्डेवाली देवी मंदिर (सिध्द पीठ)- शोध आलेख
कात्यायिनी महामाये भवानि भुवनेश्वरि॥
संसारसागरे मग्नं मामुध्दर कृपामये।
ब्रह्माविष्णुशिवाराध्ये प्रसीद जगदम्बिके॥
मनोऽभिलशितं देवि वरं नमोस्तुते।1
भारतवर्ष हमेशा से पूजनीय व वन्दनीय रहा है, क्योंकि यहाँ के कण-कण में ईश्वर का निवास माना जाता है। प्रकृति के हर रुप में हमें ईश्वर के दर्शन होते हैं। और यही दर्शन परम्परा व्यक्तिमात्र को ईश्वर से जोड़ती है। इसीलिए हमारे धर्मग्रन्थों में यह कहा गया है कि भक्ति के सम्मुख स्वयं परमपिता परमेश्वर भी अपना शीश झुकाते हैं। ऐसी समृध्दशाली परम्परा लेकर भारतवर्ष के आर्यजन अपने जीवन के सम्पूर्ण भागों को जीते हुए अन्तत: भक्ति मार्ग द्वारा मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस मोक्ष प्राप्ति के सबसे बड़े साधन मंदिर व तीर्थ होते हैं जिनमें स्वयं देवी-देवताओं का निवास मानकर भारतीय समाज उनकी प्राणप्रतिष्ठा करता है। तथा उनका पूजन करता है।
भारतवर्ष ऋषियों, महापुरुषों और देवतुल्य सन्तों की धरती है, इसीलिए स्वयं भगवान् भी समय-समय पर यहां अपना जीवन काल विभिन्न अवतारों के रूप में बिताते हैं। व्यक्ति मात्र अपनी जागृत चेतना से उस ईश्वर का दर्शन करते हैं। तथा मां जगदम्बा की कृपा से भक्ति के उच्चतम शिखर को प्राप्त करते हैं। इसकी एक बड़ी शृंखला भारतवर्ष में पायी जाती है। इसी कड़ी में एक नाम आता है मा के परम भक्त बद्रीभगत जी का, जिन्होने अपनी भक्ति चेतना से मां की अनुभूति की और भूसमाहित मां की प्रतिमा का पुन:उद्धाटन किया। और अपनी तपस्या से एक नये मंदिर का निर्माण कर भक्ति की अनन्त धारा का प्रवाह किया। जो अनवरत जारी है।
मंदिर के उद्भव का इतिहास :
झण्डेवाला देवी मंदिर का एक प्राचीन इतिहास है जिसका आरम्भ 19वीं शताब्दी के मां के परम भक्त श्री बद्रीभगत से प्रारम्भ होती है। बद्रीभगत एक प्रसिध्द कपड़ा व्यवसायी थे तथा अपार सम्पत्ति के स्वामी थे। दिल्ली में उनकी प्रचुर अचल सम्पत्ति थी। किन्तु लेश मात्र भी उनको अपनी समृध्दि व धन पर घमण्ड नहीं था वे मांँ वैष्णों देवी के अनन्य भक्त थे तथा दीन-दुखियों की सेवा व भगवत् भजन में रमे रहते थे। उनके इसी स्वभाव के कारण लोग उन्हे ‘बद्री भगत’ के नाम से पुकारने लगे।2
जिस स्थान पर वर्तमान् में मंदिर स्थित है वह स्थान तब शांत, हरा-भरा उपवन था। हरी-भरी पहाड़ियाँ, फलफूलों से लदे बगीचे और कल-कल करते झरने बहते थे। यहाँ पशु-पक्षी, मोर-पपीहों के कलरव से वातावरण किसी ऋषि के आश्रम की भाँति मनोरम था। लोग इस शांत व निस्तब्ध वातावरण में मानसिक व आत्मिक शांति के लिए आते थे। ऐसे व्यक्तियों में बद्रीभगत जी भी थे। धीरे-धीरे यह पता चला कि यहाँ के झरनों व पेड़-पौधों में स्वास्थ्य लाभ के गुण भी थे। अत: यहाँ लोग मानसिक शांति के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ के लिए भी आते थे।
बद्रीभगत जी इस पावन स्थान पर साधना और ध्यान मग्न होकर प्रार्थना किया करते थे। एक संध्या जब एक स्वास्थ्यवर्धक झरने के पास वह साधना में रत थे, तब उन्हे अनुभूति हुई कि उसी स्थान पर एक प्राचीन मंदिर दबा हुआ है। उन्होने निश्चय किया कि वह इस प्राचीन धरोहर का पुनरोध्दार अवश्य करेगें। उस दिन से बद्रीभगत जी ने अपना तन, मन, धन इस मंदिर की खोज में लगा दिया। उन्होने इस क्षेत्र की भूमि खरीदनी प्रारम्भ कर दी। अन्त में बहुत प्रयत्न के बाद स्वास्थ्यदायी झरने के पास उन्हें इस प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले, जिसमें माता की सदियों पुरानी चमत्कारी मूर्ति विराजमान थी। किन्तु खुदायी के दौरान मूर्ति के हाथ खंड़ित हो गये थे। अपने शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा-अर्चना वर्जित है। इसलिए बद्रीभगत जी ने उस मूर्ति को गुफा में ही रहने दिया और उसके ठीक ऊपर एक नये मंदिर का निर्माण करवाया। उन्हें विष्वास था कि पुरानी प्रतिमा की शक्ति नई प्रतिमा में विद्यमान होगी। मूल मूर्ति की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए नई प्रतिमा की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गयी। मंदिर के ऊपर ध्वजारोहण करवाया गया ताकि लोगों को दूर से ही मंदिर होने का आभास हो और वह माँ के दर्शन करने आये। इस प्रकार यह मंदिर, झण्डेवाला देवी मंदिर के नाम से प्रसिध्द हो गया। शीघ्र ही लोगों को मंदिर की चमत्कारी शक्ति का आभास होने लगा। इस मंदिर की महिमा व ख्याति सारे देश में ही नही अपितु देश के बाहर भी फैलने लगी है।3
मंदिर का क्रमिक विकास :
बद्रीभगत की चार पीढ़ियों ने निरन्तर इस मंदिर की उत्कृष्ट परम्परा का निर्वाह किया है। और अब पांचवी पीढ़ी भी इस मंदिर के क्रमिक विकास में लगी हुई है। यह बद्रीभगत के भक्ति का ही प्रताप है कि आने वाली उनकी पीढ़ियों ने भी इसको जारी रखा। क्रमश: बद्रीभगत-भगतराम जी दास-भगत श्यामसुन्दर जी-प्रेम कपूर जी व और अब श्री नवीन कपूर जी मंदिर के आधार से लेकर वर्तमान तक के वाहक रहे हैं। जैसा कि वर्णित है माता की मूर्ति खुदायी के दौरान खण्डित हो जाने पर उसी स्वरुप में नई मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गयी। भगत श्यामसुन्दर जी के समय में मां की मूर्ति में कुछ त्रुटि होने के कारण पुन: भगत श्यामसुन्दर जी व उनकी धर्मपत्नी धनदेवी नें नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तथा मंदिर को और नवीन रुप प्रदान किया तबसे माता की वही मूर्ति वर्तमान में भी पूजनीय रुप में विद्यमान है। मंदिर का विकास आज भी निरन्तर जारी है।4 यह इन पीढ़ियों व लोगों की भक्ति का ही प्रमाण है कि मां की मौलिक मूर्ति के स्थान पर उनकी रुपित मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गयी मां की पूर्ण शक्ति इन मूर्तियों में विद्यमान रही। और यह मां का ही प्रताप है कि आज लाखों की संख्या में भक्त इस मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और मां के दर्शन मात्र से ही उनके चित्त को शान्ति मिल जाती है।
मंदिर का स्वरुप :
झण्डेवाला देवी मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है। इसका शीर्ष कमल के फलकों के आकार का बना है। सबसे नीचे गुफा में माता की प्राचीन मूर्ति है। तथा ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदायी में प्राप्त हुई थी, चूंकि माता की मूर्ति खुदायी के समय खण्डित हो गयी थी अत: इसे उसी प्रकार छोड़ दिया गया जिससे कि इसकी और क्षति न हो। मूर्ति के नीचे का कुछ भाग आज भी उसी अवस्था में है। ठीक इसी प्रकार शिवलिंग को भी कोई क्षति न हो इसी कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे के भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया। गुफा में शिवलिंग के दक्षिण सुन्दर नक्षत्रों का चित्रण है। इसके बारे में जानकारी करने पर पता चला कि प्रारम्भ में यहां एक नक्षत्रशाला भी थी। जहां वर्ष में एक बार ज्योतिषियों का सम्मेलन भी होता था। मंदिर के ऊपरी तल पर ठीक प्राचीन मूर्ति के सीध में मां झण्डेवाली की मूर्ति प्रतिष्ठापित है जो अत्यन्त ही सुन्दर है जिसका वर्णन, देखकर स्वयं की अनुभूति से ही प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा में शीतला माता, संतोषी माता, वैष्णो माता, गणेश जी, लक्ष्मी जी तथा हनुमान जी आदि की मूर्तियां स्थापित हैं, ठीक इनके पीछे एक बड़ा हॉल है जहाँ निरन्तर सांस्कृतिक कार्यक्रम, माता की चौकी आदि का आयोजन होता रहता है। मंदिर प्रांगण में उत्तर-पूर्व दिशा में एक मनोरम उद्यान है। तथा उत्तर की ओर मण्डपों से होता हुआ विशाल द्वार है, जो सुरक्षा कारणों से (नवरात्रि छोड़कर) बन्द रहता है। वैसे तो मंदिर में प्रवेश के 6 द्वार हैं किन्तु मुख्य रुप से पूर्व का द्वार ही मंदिर दर्शन के लिए खुलता है। तथा दक्षिण (6 नं0)का द्वार जो सीधे मंदिर के कार्यक्रम स्थल को जाता है, वह विभिन्न आयोजनों के निमित्त खोला जाता है। नवरात्रों में मंदिर के सभी द्वार व्यवस्था की दृष्टि से खोल दिये जाते हैं। मंदिर के शीर्ष पर कमलदल से होते हुए प्राचीर पर भगवा ध्वज (मंदिर का पुरातन प्रतीक झण्डा) लहरता है जो माता के दर्शन का दूर से ही आभास कराता है।
प्रमुख त्यौहार व सांस्कृतिक कार्यक्रम :
सामान्यत: सभी शक्तिपीठों व सिध्दपीठों में नवरात्रि के समय मंदिरों में विशेष भीड़ इकट्ठा होती है तथा मां के दर्शनों के लिए भक्तों का आगमन वृहत् रूप में होता है। किन्तु मां झण्डेवाली की यह महिमा ही है कि यहां वर्ष पर्यन्त उत्सव सा माहौल होता है तथा प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्र के समय में मां के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्त प्रतिदिन आते हैं तथा मंदिर की तरफ से उन श्रध्दालुओं के दर्शन की पूरी व्यवस्था रहती है तथा उनको किसी प्रकार की असुविधा न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है। नवरात्रि में यहां मेला लगता है तथा साथ ही साथ बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी एक विशाल भण्डारे का आयोजन भी करती है जिसे प्रत्येक भक्त मां के प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अपने को धन्य समझता है। सर्वविदित है कि नवरात्रि में देवी जगदम्बा के नौ विभिन्न रुपों की पूजा होती है।
झण्डेवाला मंदिर में नवरात्रों में माँ की पूजा का निराला प्रकार है :
•1 से 3 दिनों में : नवरात्रि के प्रथम दिन पूजागृह में मिट्टी की एक छोटी सी चौकी बनाई जाती है और जौ रोपित किया जाता है। जो 10वें दिन 3-5 इंच तक बढ़ जाता है तथा पूजा के उपरान्त इन बीजों को भक्तों को मां के प्रसाद के रुप में दिया जाता है। इन तीन दिनों में मां के तीन रुपों की पूजा होती है : प्रथम दिन कुमारी, द्वितीय दिन पार्वती और तृतीय दिन काली जी की, ये नारी के तीनों बाल, यौवन, व सम्पूर्ण विकसित रुपों की पूजा होती है।
•4 से 6 दिनों में : चौथे दिन माँ लक्ष्मी की पूजा होती है, पांचवे दिन ललिता पंचमी का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन दीपक जलाकर, पाठय व लेखन सामग्रियों की पूजा कर शिक्षा व कला की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। और छठे दिन मां कात्यायिनी की पूजा होती है।
•7-8 दिनों में :इन दोनों दिनों में सरस्वती की आराधना के साथ-साथ 8वें दिन महागौरी की पूजा होती है।
•महानवमी : इस दिन कन्या पूजन होता है, जिसमें नौ कुँवारी कन्याओं का देवी के विभिन्न नौ रुप मानकर उनका पूजन किया जाता है। यह पूजन लगभग भारतवर्ष में सभी स्थानों पर मनाया जाता है।5
नवरात्रों के अलावा भी मंदिर में प्रतिदिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम व माँ की चौकी का आयोजन भक्तों द्वारा होता है। जन्माष्टमी का एक विशेष कार्यक्रम मंदिर में मनाया जाता है।
मंदिर से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण बातें :
वर्ष 1944 में बद्रीभगत के पौत्र श्री श्याम सुन्दर जी द्वारा बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी स्थापित की गयी। जो आज भी मंदिर की सारी व्यवस्था व अन्य सभी कार्य इसी बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी द्वारा ही किये जाते हैं। यह मां का ही आशीर्वाद है कि उनके भक्तों द्वारा अपर्ण किया हुआ धन का एक बड़ा भाग समाज की उन्नति के लिए बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी द्वारा खर्च की जाती है। ऐसी ही कुछ रोचक बातें मंदिर के सम्बन्ध में अग्रवत हैं:
•मंदिर के स्थापना के साथ ही संस्कृत के प्रसार के लिए संस्कृत पाठशाला की नींव भी रखी गयी जो आज वर्तमान में मंडोली में ‘बद्रीभगत संस्कृत वेद विद्यालय’ के रुप में विद्यमान है। जिसका पूरा खर्च बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी वहन करती है।
•बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी द्वारा आयुर्वेद, होमियोपैथिक और पाष्चात्य चिकित्सा प्रणाली के नि:शुल्क औषधालय स्थापित किये गये हैं।
•प्राकृतिक आपदाओं में जिसमें हजारों व्यक्ति प्रभावित होते हैं, बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी उनके पुनर्वास के लिए यथासम्भव व्यवस्था करती है।
•अन्य शिक्षण कार्यों तथा भारतीय संस्कृति के लिए भी बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसाइटी हर सम्भव प्रयत्न करती है।6
•श्री सुरेन्द्र कपूर जी (श्री प्रेम कपूर जी के अनुज) ने बताया कि यहां एक कुआं था जिसका पानी इतना मीठा पवित्र माना जाता था कि 1940 के बाद तक भी आस-पास के लोग, यहाँ तक कि चांदनी चौक से भी आकर लोग कलश में पानी भर कर ले जाते थे।
•उनके अनुसार पुराने समय में विशेष आयोजनों पर पहनने वाले मंदिर के चौकीदार का चपड़ास आज भी सुरक्षित अवस्था में संरक्षित है।7
झण्डेवाला देवी मंदिर वर्तमान में दिल्ली ही नहीं बल्कि देश का ऐसा सिध्दपीठ माँ का मंदिर है जहाँ हजारों की संख्या में लोग प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं। भक्तों की संख्या नवरात्रों व विशेष त्यौहारों पर लाखों की संख्या में पहुँच जाती है। नवरात्रि में लगभग 10 लाख लोग माता के दर्शन करनें के लिए दूर-दूर से आते हैं।
पुरातात्तिवक दृष्टि से देखा जाय तो अभी तक खुदायी में प्राप्त माता की मूर्ति व शिवलिंग की विवेचना किसी ने नहीं की है तथा यह शोध का विषय है कि 19वीं शताब्दी में बद्रीभगत द्वारा उद्धाटित यह मंदिर कितना पुराना होगा। यह सर्वविदित है कि दिल्ली का इतिहास प्रामाणिक रूप से महाभारत काल से सम्बन्धित है, और यह मूर्ति अरावली की पहाड़ी पर स्थित है अत: खुदायी से प्राप्त इस मूर्ति की प्राचीनता का पता लगाया जाय तो सम्भवत: इसका काल महाभारत काल तक जा सकता है। किन्तु यह शोध का विषय है अत: निश्चित तौर पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। किन्तु इतना अवश्य है कि यह माता का सिध्द मंदिर लाखों करोड़ो भक्तों के आस्था का केन्द्र है, और यहाँ जितनी संख्या में बड़े-बूढ़े दर्शन करने आते हैं यह प्रसन्नता की बात है कि दिल्ली जैसे भाग-दौड़ भरे जीवन में नौजवान पीढ़ी भी माँ के दर्शनों के लिए उतनी ही संख्या में और भक्तिभाव से आती है। और झण्डेवाली देवी अपने भक्तों को निराश नहीं करती है।
-रत्नेश कुमार त्रिपाठी
(शोधछात्र)
अ. भारतीय इतिहास संकलन योजना
संदर्भ सूची
1कल्याण, पृ0. 513, फरवरी 09, गीताप्रेस, गोरखपुर
2मंदिर विवरणिका, बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायटी, नई दिल्ली-55
3वही।
4मंदिर में शिलापट्ट द्वारा।
5इन्टरनेट पर मंदिर की वेव साइट www.jhandewalimata.com/templedetails.htm
6मंदिर विवरणिका, बद्रीभगत झण्डेवाला टेम्पल सोसायिटी, नई दिल्ली-55
7साक्षात्कार से :- श्री नवीन कपूर जी व उनके चाचा श्री सुरेन्द्र कपूर जी।