Home Blog Page 2835

सभ्यता का संघर्ष कब तक …..

civilizationसंसार के समस्त जीवधारियों का जीवन परस्पर संघर्ष की कहानी है। अपने आप को मौत से बचाते हुए अच्छी जिन्दगी की तलाश में पूरा जीवजगत आपसी टकरावों में उलझा रहा है। मसलन, सर्प और मेंढक के बिच का टकराव, बड़ी मछलियों का छोटी मछलियों के साथ टकराव आदि अनेक उदहारण इस सन्दर्भ में दिए जा सकते हैं। जिजीविषा की इस लडाई में मानव को कैसे भूल सकते हैं, असल में मनुष्य- मनुष्य के मध्य जाति-धर्म-भाषा अर्थात सभ्यताओं का संघर्ष नई बात नही है। संपूर्ण वैश्विक सन्दर्भ में पिछले २००० वर्षों के इतिहास को खंगाले तो कई जानने योग्य तथ्य प्रकाश में आते हैं । यही वो समय था जब विश्व इतिहास में नया बदलाव आरंभ हो चुका था। आज के इस विवादित और आतंकित भविष्य की नीव भी पड़ चुकी थी। अब तक ईसाइयत की मान्यताओं को न मानने वाले १५० करोड निरीह लोगों की हत्या की जा चुकी है। लगभग ४८ सभ्यताओं को नष्ट किया जा चुका है। ईसाइयत के बाद प्रगट हुए इस्लाम ने भी इसी परम्परा को अपनाया। इसके पीछे धर्मान्धों की यह मानसिकता काम करती है कि उनके धर्म में जो है वही एकमात्र और अन्तिम सत्य है। समूची दुनिया को एक धर्म में रंग डालने कि कवायद ठीक वैसी ही है जैसी वर्षों पूर्व सरे संसार को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंधेरे से ढँक दिया गया था। यही वो वक्त था, लोग कहते थे -“ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्यास्त नही होता। “स्कूल के दिनों में एक कहानी पढ़ी थी जिसमे तरह -तरह के रंग हरा, लाल, पीला, कला, सफ़ेद सभी अपने -अपने को श्रेष्ठतम बताते हुए दुनुया को अपने अधिपत्य में शामिल करना चाहते हैं। यहाँ भी धर्म को आधार बना कर संसार का झूठा एकीकरण करने का कुप्रयास चलाया जा रहा है। इस दुनियाकि विविधता ही इसकी सबसे बड़ी संपत्ति है, इस विविधता को धर्म के नाम पर तोड़ने का काम कुछ अन्ध्भाक्तो कीदेन है। कुछ धर्मो खास कर ईसाइयत और इस्लाम में धर्म विस्तार/धर्म परिवर्तन पुन्य का काम माना जाता है। अब, जब कोई धार्मिक मान्यता पुण्य का साधन बन जाए तो यह तय करना मुश्किल हो जाता है की यह कार्य तलवारों के जोर से हो अथवा कागज – कलम के जोर से यार्था के इस युग में पैसों की चमक से। आज सारा विश्व जिस आतंक के “वाद” की परिभाषा तैयार करने में जुटी है,उसका सीधा- सीधा सम्बन्ध ऐसी ही मान्यताओं से जुडाहुआ है। हालाँकि कुछ लोग, जिन्हें आतंक और आतंकवाद के बिच का अनतर नही पता, अशोकमहान को भी आतंकी कहने से नही चुकते। उनके मुताबिक तो नक्सलवाद, क्षेत्रवाद आदि भी आतंकवाद ही है । जिस अशोक की बात की जाति है उसका युद्ध राज्य विस्तार के लिए था न की धरम विस्तार के लिए। धर्म विस्तार के लिए तो उन्हें भी प्रचार का सहारा लेना पड़ा था। आज के इस बेसिर-पैर की हिंसात्मक करवाई में विश्वास रखने वालो की तुलना सम्राट अशोक से करना मुर्खता की बात होगी। आतंक से आतंकवाद का सफर कई दशकों में तय किया गया है। हमारा भारत तो शको, हनो, तुर्को, मुगलों, और अंग्रेजों के आक्रमण और फिर शासन केसमय से ही आतंक का दंश झेलता आया है । आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा हमले हमारे देश में होते हैं। हमेशा से रक्षात्मक रवैया अपनानाये रहने की वजह से ही तो ये दुर्गति है। मुठी भर बहरी आक्रमणकारियों ने न केवल हम पर शासन किया बल्कि अपनी धर्म और संस्कृति को भी थोपते गए। हमारी कमजोरियों का फल ये है कि५ हजार साल पुराणी सभ्यता वाला भारत, १३० करोड कि आबादी वाला भारत, पाकिस्तान से तंग आकर अमेरिका से मदद मांग रहा है! तब से अब तक हम दूसरी बार घुटने टेकते नजर आरहे हैं। अर्नाल्ड ने कहा था” भारत एक ही बार पराजित हुआ था वो भी १९४७ में “। निश्चय ही धर्म के नाम पर विभाजन हमारी हार थी। बहरहाल, सभ्यता का ये संघर्ष अनवरत जारी है,  कब तक?  पता नही ……..


जयराम चौधरी

बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
जामिया मिलिया इस्लामिया
मो: 09210907050

संरक्षण मुहिम बनी बाघों की मुसीबत – सरिता अरगर

tiger1बाघों का कुनबा बढ़ाने की अफ़लातूनी कवायद से मध्यप्रदेश के प्रकृति प्रेमी खासे नाराज़ और वन्य जीव विशेषज्ञ हैरान हैं। बाघों की तादाद बढाने के लिए शुरु की गई मुहिम को लेकर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। लेकिन वन विभाग के आला अफ़सरान इन आपत्तियों को सिरे से खारिज कर बाघों की संख्या बढाने की दुहाई दे रहे हैं। ये और बात है कि जब से प्रोजेक्ट टाइगर शुरु हुआ है बाघों की मौत का सिलसिला तेज़ हो गया है। गोया यह परियोजना बाघों की मौत सुनिश्चित करने के लिए ही बनाई गई है।

हेलीकॉप्टर से बाघिन पहुँचाने की परियोजना सरिस्का के बाद अब मध्यप्रदेश में भी शुरु की गई है। लेकिन परियोजना का उद्देश्य अपनी मोटी बुद्धि में तो घुसता ही नहीं। इधर प्रदेश में बाघों की वंशवृद्धि के लिए नई तरकीबें आज़मायी जा रही हैं, उधर बाघों की मौतों के बढते ग्राफ़ ने तमाम सवाल भी खड़े कर दिये हैं।

हाल ही में सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम के बीच वायुसेना के उड़नखटोले से बाघिन को पन्ना लाया गया। कान्हा नेशनल पार्क में सैलानियों को लुभा रही बाघिन अब अपने पिया के घर पन्ना नेशनल पार्क की रौनक बन गई है। इससे पहले तीन मार्च को बाँधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में गुमनाम ज़िन्दगी गुज़ार रही बाघिन सड़क के रास्ते पन्ना पहुँची। पन्ना के बाघ महाशय के लिए पाँच दिनों में दो बाघिन भेजकर वन विभाग योजना की सफ़लता के “दिवा स्वप्न” देख रहा है।

मध्यप्रदेश में आए दिन बाघों के मरने की खबरें आती हैं। पिछले हफ़्ते कान्हा नेशनल पार्क में एक बाघ की मौत हो गई। वन विभाग ने स्थानीय संवाददाताओं की मदद से इस मौत को दो बाघों की लड़ाई का नतीजा बताने में ज़रा भी वक्त नहीं लगाया। वीरान घने जंगल में मरे जानवर की मौत के बारे में बिना किसी जाँच पड़ताल के तुरंत उसे बाघों का संघर्ष करार दे देना ही संदेह की पुष्टि का आधार बनता है । खैर, वन विभाग के जंगल नेताओं और अधिकारियों की चारागाह में तब्दील हो चुके हैं, अब इसमें कहने- सुनने के लिए कुछ भी बाकी नहीं रहा।

पिछले दो माह के दौरान कान्हा में बाघ की मौत की यह तीसरी घटना है। इसी अवधि में बाँधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में भी बाघ की मौत हो चुकी है। बुधवार को इंदौर चिड़ियाघर में भी “बाँके” नाम के बाघ ने फ़ेंफ़ड़ों में संक्रमण के कारण एकाएक दम तोड़ दिया। भोपाल के राष्ट्रीय वन विहार में भी अब तक संभवतः तीन से ज़्यादा बाघों की मौत हो चुकी हैं । पन्ना नेशनल पार्क में बाघों की तादाद तेज़ी से घटी है। वर्ष 2005 में यहाँ 34 बाघ थे। इनमें 12 नर और 22 मादा थीं। 2006-2007 की भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की गणना में यह आँकड़ा 24 रह गया।

बाघिन को स्थानांतरित करने की मुहिम पर स्थानीय लोगों ने ही नहीं , देश के जानेमाने वन्यजीव विशेषज्ञों ने भी आपत्ति उठाई है। उन्होंने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को खत लिखकर अभियान रोकने की गुज़ारिश की थी । वन्य संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञ बृजेन्द्र सिंह ,वाल्मिक थापर, डॉक्टर उल्हास कारंत, डॉक्टर आर. एस. चूड़ावत, पी. के. सेन, बिट्टू सहगल, फ़तेह सिंह राठौर और बिलिन्डा राइट ने बाघिन को बाँधवगढ़ से पन्ना ले जाने के बाद 7 मार्च को पत्र भेजा था। इसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और जानेमाने बाघ विशेषज्ञों से इस मुद्दे पर राय मशविरा नहीं करने पर एतराज़ जताया गया है।

विशेषज्ञों ने वन कानून और अपने अनुभव के आधार पर कई अहम मुद्दे रखे हैं, जिनके मुताबिक पन्ना की मौजूदा परिस्थितियाँ बाघिनों के स्थान परिवर्तन के लिए कतई अनुकूल नहीं हैं। साथ ही ऎसा मुद्दा भी उठाया है जो वन विभाग की पूरी कवायद पर ही सवालिया निशान लगाता है। पत्र में पिछले एक महीने में पन्ना टाइगर रिज़र्व में किसी भी बाघ के नहीं दिखने का ज़िक्र किया गया है।

हालाँकि पूरी कवायद फ़िलहाल अँधेरे में तीर चलाने जैसी है। जो सूरते हाल सामने आए हैं, उसके मुताबिक वन विभाग ही आश्वास्त नहीं है कि पन्ना में कोई बाघ बचा भी है या नहीं ….? तमाम विरोध और भारी मशक्कत के बीच दो बाघिनें पन्ना तक तो पहुँच गईं, मगर नेशनल पार्क में नर बाघ होने को लेकर वन विभाग भी संशय में है। दरअसल पार्क का इकलौता नर बाघ काफ़ी दिनों से नज़र नहीं आ रहा है।

प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉक्टर पी. बी. गंगोपाध्याय का कहना है कि ज़रुरी हुआ तो एक-दो नर बाघ भी पन्ना लाये जा सकते हैं। बाघों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए पिछले दिनों भारतीय वन्यजीव संस्थान ने कैमरे लगाये थे , जिनसे पता चला कि पार्क में सिर्फ़ एक ही बाघ बचा है।

बाघ संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे बाँधवगढ़ फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष पुष्पराज सिंह इस वक्त बाघिन के स्थानांतरण को जोखिम भरा मानते हैं । गर्मियों में पन्ना के जलाशय सूख जाने से बाघों को शाकाहारी वन्यजीवों का भोजन मिलना दूभर हो जाता है । ऎसे में वे भटकते हुए गाँवों के सीमावर्ती इलाकों में पहुँच जाते हैं और कभी शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं या फ़िर ग्रामीणों के हाथों मारे जाते हैं । कान्हा की बाघिन को पन्ना ले जाने से रोकने में नाकाम रहे वन्यप्राणी प्रेमियों ने अब बाघिन की सुरक्षा को मुद्दा बना लिया है । अधिकारियों की जवाबदेही तय कराने के लिए हाईकोर्ट में अर्ज़ी लगाई गई है ।

जानकारों का ये तर्क एकदम जायज़ लगता है कि पन्ना को सरसब्ज़ बनाने का सपना देखने और इसकी कोशिश करने का वन विभाग को हक तो है, मगर साथ ही यह दायित्व भी है कि वह उन कारणों को पता करे जो पन्ना से बाघों के लुप्त होने का सबब बने । बाहर से लाये गये बाघ-बाघिनों की हिफ़ाज़त के लिहाज़ से भी इन कारणों का पता लगना बेहद ज़रुरी हो जाता है।

मध्यप्रदेश के वन विभाग के अफ़सरों की कार्यशैली के कुछ और नमूने पेश हैं,जो वन और वन्य जीवों के प्रति उनकी गंभीरता के पुख़्ता सबूत हैं –
सारे भारत में वेलंटाइन डे को लेकर हर साल बवाल होता है, लेकिन वन विभाग के उदारमना अफ़सरों का क्या कीजिएगा जो वन्य प्राणियों के लिए भी “वेलंटाइन हाउस” बनवा देते हैं। भोपाल के वन विहार के जानवर पर्यटकों की आवाजाही से इस कदर परेशान रहते हैं कि वे अपने संगी से दो पल भी चैन से मीठे बोल नहीं बोल पाते। एकांत की तलाश में मारे-मारे फ़िरते इन जोड़ों ने एक दिन प्रभारी महोदय के कान में बात डाल दी और उन महाशय ने आनन-फ़ानन में तीन लाख रुपए ख़र्च कर इन प्रेमियों के मिलने का ठिकाना “वेलंटाइन हाउस” खड़ा करा दिया । कुछ सीखो बजरंगियों, मुथालिकों, शिव सैनिकों….। प्रेमियों को मिलाने से पुण्य मिलता है और अच्छी कमाई भी होती है।

इन्हीं अफ़सर ने वन्य प्राणियों की रखवाली के लिए वन विहार की ऊँची पहाड़ी पर दस लाख रुपए की लागत से तीन मंज़िला वॉच टॉवर बनवा दिया। भोपाल का वन विहार यूँ तो काफ़ी सुरक्षित है, लेकिन जँगली जानवर होते बड़े चालाक हैं। वन कर्मियों की नज़र बचा कर कभी भालू, तो कभी बंदर, तो कभी मगर भोपालवासियों से मेल मुलाकात के लिए निकल ही पड़ते हैं। तिमँज़िला वॉच टॉवर पर टँगा कर्मचारी बेचारा चिल्लाता ही रह जाता है।

— सरिता अरगर
ई-मेल: sarjay63@gmail.com

प्रजातांत्रिक भारत का राजवंश

nehru-family-350x1051लोकतंत्र मूर्खों का शासन होता है पर, यहाँ तो मूर्खों ने लोकतंत्र को हीं राजशाही की ओर ठेल दिया है। राजतन्त्र नहीं तो और क्या है? गाँधी, सिंधिया, पायलट, ओबेदुल्लाह जैसे खानदान ही शासन में बचे हैं। ये तो चंद बड़े नाम हैं छोटेछोटे स्तरपर भी कई मंत्रीसन्तरी भी बाप दादा की कुर्सी जोग रहें है। आज भी तो वही हो रहा है, पहले ताजपोशी होती थी अब प्रक्रिया थोडी बदल गई है। सेवानिवृत होतेहोते राजनेता अपने उतराधिकारी(भाईबंधुओं) को मूर्खों की सभा में भेजते हैं, जहाँ उनको तथाकथित छद्म लोकतान्त्रिक तरीकों से चुना जाता है।लोकतंत्र के मंदिरों में बाप, बाप के बाद बेटा, फ़िर पोता! राजनीति का खून तो जैसे इनकी धमनियों में दौड़ता है। एक साथ दोतीन पीढियां सत्ता का रसास्वादन कर रहीं हैं। सरकार से भी बुरे हालात हैं राजनीतिक दलों के, वहां तो बगैर चुनावी ढोंग अपनाए ही वंशवादी नेतृत्व का बोझ कार्यकर्ताओं के कन्धों पर सौंप दिया जाता है।

५० सालों से देश कि एक बड़ी पार्टी कांग्रेस नेहरू खानदान के चंगुल में फंसी हुई है अब तक तो यही हुआ कि हर मुद्दे पर जनता की भावना को उभारकर कांग्रेस ने सालो तक राज किया। राजनीतिक रूप से थोड़े बहुत अधिकार देकर जनता को अहसान मंद बनाया गया कभी आरक्षण , कभी ऋण माफ़ी का लोलीपोप थमाया गया। चारों तरफ़ विकास का हंगामाहम भारतवासी विकास कर रहे है ! आज हमारे यहाँ कांग्रेस के राज मे ५२५३ खरबपति है! कितनी गर्व की बात है भाई !गर्व करो ख़ुद के भारतीय होने पर ! गर्व करो कि हम पाश्चात्य सभ्यतासंस्कृति के अनुरूप ख़ुद को ढाल रहे है!  वाकई गर्व की बात है ! हम पीवीआर मे सिनेमा देखते है , हम मैकडी मे पिज्जाबर्गेर खाते है , हम बड़ी बड़ी कारों मे घुमते है,  हम चाँद पर जा पहुचे है,  हमारे पास परमाणु शास्त्रों से लैस विश्व की दूसरी बड़ी सेना है(हाँ ये बात और है की हम बांग्लादेश जैसे पिद्दी राष्ट्रों से भी डरते है), हमारा विकास दर कुछ वर्षों मे बढ़ता रहा है (ये बात अलग है किअमेरिका मे मंदी की ख़बर मात्र से हमारा शेयर बाजार धराशायी हो जाता है) और जाने कितनी बातें गर्व करने लायक हो सकती हैं ।लकिन,महानगरों मे बसने वाले चंद अमेरिकापरस्त अथवा बाजारबाद के प्रचारक लोगों को हिंदुस्तान की तरक्की मानलेना न्याय पूर्ण होगा ? किसी ने सच ही कहा था – “सौ सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है, दिल पे रखके हाथ कहिये देश क्या आजाद है ? कोठियों से मुल्क की तक़दीर को मत आंकिये, असली हिंदुस्तान तो गाँव मे आवाद है।क्या वर्षो के बाद भी हमारी तकदीर बदली है ? नही, कल भी कुछ अमीर थे और आज भी हैं। हमने सामाजिक समानता जैसे शब्दों को तो केवल संसद एवं भाषण तक सीमितकर दिया है।

 

भ्रष्टाचार को राजकीय धर्म बना दिया गय,( जिसमे पुरे समाज की भूमिका है) लोकतंत्र में वंशवाद के बीज रोपे गए जिसे जनता ने भी एकएक वोट से सींच कर उसे विशाल जंगल बना दिया है। परिवारवाद के अलावा अपराधीकरण की समस्या ने सियासत के तालाव को और भी गन्दा कर दिया है। एक समय था जब नेताजी अपने कुर्सी बचाए रखने के लिए गुंडे पालने लगे। धीरेधीरे भूमंडलीकरण के बढ़ते प्रभाव ने गुंडों की समझ भी बढाईऔर वे भी सोचने लगेभाई ,,जब इनकी जीत हम सुनिश्चित करते हैं तो क्यूँ नेतागिरी का शुभ कर्म भी ख़ुद से किया जाए ?सामाजिक दायरा भी बढेगा और पुलिस का भय भी ख़त्म। इस तरहराजनीती का अपराधीकरण, अपराध के राजनीतिकरणमें बदल चुका है। वो कहते हैं , आटे में नमक मिलाना पर यहाँ तो नमक में आटा मिलाने का रिवाज है। भ्रष्टाचार रूपी विषाणु लोकतंत्र के रागराग में फैलता जा रहा है बेरोकटोक तो उसके पास प्रतिरोध की ताकत बची है और ही उसे बचाने का कोई प्रयत्न ही हो रहा है। बस बारबार इलाज के नाम पर आश्वासन की गोलियां दी जाती है

आख़िर कब तक एक बीमार, दयनीय और जर्जर व्यवस्था यूँ चलती रहेगी ? हम गर्व करते हैं अपने लोकतंत्र पर। कहते हैंहमारा गणतंत्र अभी शैशवावस्था में है, अरे इस विषाणु जनित महामारी के चपेट में कब बुढापा जाए पता भी चलता है। अब, जबकि बुढापा ही गया है तो आत्मा कब इस बहरी ढांचे को छोड़ जायेगी कहना मुश्किल है? इसबीमारी ने देश की लोकतान्त्रिक प्रणाली को कहा पंहुचा दिया है इसका बयां शब्दों में कर पाना असंभव है क्याक्या बताये , किस किस कमी का बखान करें? सारी खामियों में एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात है-‘कमियों को दूर करने की इच्छाशक्ति का अभाव , भ्रष्टाचार की इस बीमारी से लड़ने की दृढ़ता का अभाव आज ६०६१ वर्षों बाद भी हम रोटी , कपड़ा और मकान के झंझट में पड़े है , ऊपर से ये वंशवाद की बीमारी ये सारी बुराइयाँ हमें खाए जा रही है पर इस चिंता को त्याग कर हमें इसका विकल्प लोगो के समक्ष रखना होगा भविष्य की राजनीति कैसी हो , इस पर केवल सोचने से नही बल्कि युवाओं को सक्रीय राजनीति में आना ही सबसे बड़ा विकल्प है


जयराम चौधरी

(Jayram Chaudhary)

BA(HONS) MASS MEDIA
JAMIA MILLIA ISLAMIA
M:09210907050

यह क्रांति की शुरुआत हैः नवाज शरीफ

Nawaj Sarifपाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता नवाज़ शरीफ़ वकीलों के लांग मार्च की अगुआई करते हुए राजधानी इस्लामाबाद की ओर रवाना हो गए हैं। देश में गत कुछ दिनों से चल रही राजनीतिक गहमा-गहमी उस समय तेज हो गई जब रविवार सुबह यह ख़बर आई कि नवाज शरीफ को नजरबंद कर लिया गया है।

हालांकि पाकिस्तान सरकार ने ऐसी बात से साफ इनकार किया है। वैसे विपक्ष के नेता नवाज शरीफ के लांग मार्च की अगुआई करने से इस बात के साफ संकेत मिल रहे है कि पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

दूसरी तरफ लाहौर में इस्लामाबाद की ओर बढ़ रहे वकीलों व लांग मार्च के समर्थकों और पुलिस के बीच जम कर संघर्ष हुआ। यह मार्च दो वर्ष पहले पद से हटाए गए न्यायाधीशों की फिर से बहाली की मांग के समर्थन निकाल गया है।
मार्च का नेतृत्व कर रहे शरीफ के साथ उनकी पार्टी के दर्जनों कार्यकर्ता हैं। वे जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए उनके समर्थकों का हुजूम लगातार बढ़ता गया।
लाहौर में अपने आवास पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए शरीफ ने वकीलों के इस लांग मार्च के साथ जुड़ने के लिए लोगों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि उन्हें नजरबंद करना व इस्लामाबद जाने से रोकने की कोशिश करना गैरकानूनी था।

एक समाचार चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद हमारी नियति है और हम इस्लामाबाद के लिए निकल पड़े हैं। लोग आश्चर्यजनक रूप से हमारा समर्थन कर रही है। यह देश में क्रांति की शुरुआत है।

पाकिस्तान में हलचल, नवाज शरीफ नजरबंद

PAKISTANपाकिस्तान में खड़ा हुआ राजनीति संकट गहराता जा रहा है। मुस्लिम लीग-नवाज के नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को लाहौर में उनके अन्य सहयोगियों के साथ नजरबंद कर लिया गया है। वकीलों के साथ विरोध प्रदर्शन जारी रखने के ऐलान के बाद उन्हें नजरबंद कर दिया गया है।

मीडिया में आ रही खबर के मुताबिक पंजाब पुलिस ने नवाज शरीफ के साथ पूर्व क्रिकेटर व तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान और जमात-ए-इस्लामी प्रमुख काजी हुसैन अहमद को भी नजरबंद किया है। इन नेताओं के घरों के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किए गए हैं।

पीएमएल-एन के प्रवक्ता अहसान इकबाल ने भी शरीफ को नजरबंद किए जाने की है। उन्होंने कहा है कि सैकड़ों की संख्या में पुलिसकर्मियों ने नवाज शरीफ के आवास को घेर रखा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण और लोकतांत्रिक धारा के खिलाफ है। लेकिन इससे हमारे दृढ़ संकल्प पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।

गौरतलब है कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने शनिवार रात शरीफ और उनके भाई को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराए जाने के फैसले पर सुप्रीम कार्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे शरीफ ने ठुकरा दिया था।

लाहौर में शनिवार रात एक जनसभा को संबोधित करते हुए शरीफ ने कहा था कि वे यहां इस बात की घोषणा करना चाहते हैं कि वकीलों का लांग मार्च इस्लामाबाद पहुंचने तक जारी रहेगा।

भविष्य की कृषि खतरे में – जयराम ‘विप्लव’

agricultureसभ्यता के आरभ से ही ” कृषि ” मानव की तीन जीवनदायनी आधारभूत आवश्यकताओं में से एक -भोजन की आपूर्ति के लिए अपरिहार्य बना हुआ है । कृषि के अलावा ज्ञान-विज्ञान , अध्यात्म ,चिकित्सा आदि -इत्यादि मानवीय जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में हर दिन नव चेतना फ़ैल रही है , हर दिन कुछ नई बातें सामने आ रहीं हैं। ऐसा नही की ये सब एक दिन में हो गया बल्कि ऐसा होने में सदियाँ बीत गई । जीवन जीने की जद्दोजहद में पशुवत मांसभक्षण करने वाला मनुष्य कब शाकाहारी हो गया इसका ठीक- ठीक अनुमान लगना मुश्किल है।कालांतर में धीरे-धीरे कंदमूल खाकर भरण -पोषण करने वाला आदिमानव खेती करने लगा । सैकडों -हजारों वर्षों के मेहनत के बाद आज खेती -बड़ी अर्थात कृषि का ये उन्नत रूप हमारे समक्ष है।लेकिन आज के इस वैज्ञानिक -बाजारवादी युग में जब समूची दुनिया को एक बाज़ार बनाने की तयारी रही है , कृषि का भविष्य खतरे में दिखता है । भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहाँ ७० %आबादी खेती के सहारे जीवन गुजारा करती है, वहां सरकारी उदासीनता के कारणआज सार्वजनिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण व्यवस्था कृषि और अन्य असंगठित रोजगारों के कामगारों की बदहाली किसी से छुपी नही । एक कलावती का नाम लेकर हमारे तथाकथित युवराज श्रीमान राहुल गाँधी और उनकी सरकार अपने कर्तव्यों से मुक्ति चाहती है। ये संभव नही । न जाने कितनी कलावती और कितने हल्कू पूस की रात में ठिठुर कर मर रहे होंगे ? पशुओं का चारा तक निगल जाने वाले नेताओ की सरकार से उम्मीद ही बेकार है। जिस पर देश की अर्तव्यवस्था टिकी है उस सार्वजनिक क्षेत्र को बहल करने को लेकर भला ये कैसे इमानदार हो सकते हैं !
सरकारी उदासीनता , विज्ञान के दुरूपयोग और ज्यादा मुनाफाखोरी की आदत ने भविष्य की खेती को दावपर लगा दिया है । संवर्धित बीजों और रासायनिक उर्वरको के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनिया किसानो को नजदीक के फायदे का सपना दिखाकर बरगला रही हैं। परंपरागत खेती में किसान अपने ही खेत के बीजो का इस्तेमाल करते थे अब अधिक पैदावार के लोभ में बाजार से ख़रीदे संवर्धित बीजो से एक बार ही खेती की जा सकती है , हालाँकि अभी भारत में ये चलन कम है । परन्तु गरीब -अनपढ़ किसानो को अभी से इस सब के बारे में जानलेना चाहिए ताकि भविष्य में सतर्क रहा जा सके । कभी हरित-क्रांति को जन्म देने वाली waigyanik पद्धति आज कृषकों और कृषि का विनाश करने पर उतारू है । पिछले ५० सालों में कृषि का जो विकास हुआ वो शायद २००० सालों में भी नही हुआ था । इस विकास का मुख्या आधार विज्ञान के ज्ञान का प्रयोग है। नई तकनीक के कारण खेती के स्वरुप में अपेक्षित बदलाव तो आया पर बाजार के बढ़ते प्रभाव ने यहाँ भी प्रतिकूल असर डाला । अपनी-अपनी दुकान चलाने में न तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को और न ही देश के कर्णधार नेताओं को इसकी चिंता है । ऊपर से जनसँख्या का बढ़ते दवाब से कृषियोग्य भूमि पर कंक्रीट का जाल बढ़ताही जा रहा है । भूमि कम पड़ रही है ,उपज बढ़ने के दवाब में किसान अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरको का अँधा-धुंध उपयोग करते हैं ।हमारे देश में सन ५७ में मुश्किल से दो हजार तन रासायनिकखादों और कीटनाशकों कि खपत थी जो कि बढ़ कर दो लाख तन का आंकडा छुने वाला है । परिणाम स्वरुप jamin की उर्वरा शक्ति नगण्य होती जा रही है ।घनी खेती कि वजह से पैदावार में वृद्धि तो होती है पर कई बड़ी मुश्किलें भी खड़ी है । इस समय भारत में करीब १४०० लाख हेक्टेयर धरती पर खेती हो रही है । बहुत कोशिश करने पर इसमे ४०० लाख हेक्टेयर भूमि जोड़ी जा सकती है । परन्तु इसके लिए हमें जंगलो को काटना पड़ेगा।और ऐसा करना व्यावहारिक नही है। भूमि उसर होती जा रही है, भूमिगत जलस्तर घटता जा रहा है ,वायुमंडल दूषित हो रहा है, कुल मिलकर संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि कृषि का संकट(या मानवीय जीवन पर खतरा ) गहराता जा रहा है और जिसे कोई समझने को तैयार नही । भविष्य में ऐसे यत्नों की जरुरत है जिनके द्वारा कृषि के भविष्य पर मंडराते बादलों को टला जा सके ।नई राहें खोजी जाए कि उपज भी बढे अर्थात जनसँख्या के सामने अन्न का संकट न हो और ऊपर बतलाई गई मुश्किलें भी khatm हो सके और इसके लिए तीन महत्वपूर्ण क़दमों को उठाने पर सरकार को विचार करना चाहिए । प्रथम, संवर्धित बीजों के व्यापार अथवा प्रयोग पर प्रतिबन्ध । दूसरा , रासायनिक उर्वरको और घटक कीटनाशकों के बरक्स नए विकल्पों जैसे जैविक खाद आदि को लेकर किसानो को जागरूक करना । तीसरा , अधिक से अधिक खेती लायक जमीं को बनाये रखना और ऐसा उपाय खोजना जिससे प्रति इकाई उपज को बढाया जा सके लेकिन वो उपाय सुरक्षित हो ।


जयराम चौधरी

बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
जामिया मिलिया इस्लामिया
मो: 09210907050

बांगलादेशी घुसपैठ – जयराम ‘विप्लव’

banglaindoborderघुसपैठ को आम तौर पर बड़ी समस्या नहीं माना जाता और न ही इसके बारें में गंभीरता से सोचा जाता है। असम समेत पूर्वोत्तर भारत में सारी फसाद की जड़ हैं – बांग्लादेशी घुसपैठ। पूर्वी भारत के राज्यों की सीमा सुरक्षा की कमजोरी और वोट बैंक की राजनीति के कारण हो रही; अवैध घुसपैठ यहां की सुरक्षा के साथ ही सांस्कृतिक, समाजिक, आर्थिक एव राजनीतिक संकट बनती जा रही है।पिछले तीस सालों से जारी घुसपैठ ने अनेक राज्यों में जन – संख्या के अनुपात को बिगाड़ कर वहां के मूल निवासियों के समक्ष अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। ये घुसपैठिये असम, बंगाल, त्रिपुरा व बिहार में ही सीमित नहीं बल्कि दिल्ली, राजस्थान, मुम्बई, गुजरात व हैदराबाद तक जा पहुंचे हैं। वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 3 क़रोड़ बतायी जाती है। असम के राज्यपाल ने केंद्र को सौंपी एक रपट में कहा है कि हर दिन 6 हजार बांग्लादेशी भारत में प्रवेश करते हैं। साथ ही सं. रा. सं. की एक सर्वे में बांग्लादेश से 1 करोड़ नागरिकों को लापता बताया गया है। सीमा से लगे 4600 किमी के भारतीय इलाकों में अप्रत्याशित जनसंख्या वृध्दि इस बात को पुख्ता करती है कि ये लोग भारत में ही घुसे हैं। इन घुसपैठियों की बढ़ती तादाद की वज़ह से असम, बिहार एव बंगाल के अनेक जिलों में बांगलादेशी मुसलमानों की बहुलता हो गई है अर्थात् ये राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। और यही से शुरू होता है वोट बैंक की राजनीति।

इन अवैध घुसपैठियों को राशनकार्ड देकर जमीन का पट्टा व मतदाता सूची में नाम शामिल कर राजनीतिक दल देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करती आ रही है। आज इन बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा लूट, हत्या, तस्करी, जाली नोट व नशीली दवाओं के कारोबार समेत आतंकी गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है। प्राकृतिक रुप से समृध्द पूर्वोत्तर आतंक का गढ़ बनता जा रहा है। आतंक के सौदागरों और आइ. एस. आइ. जैसे संगठनों के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो रहा हैं। इस उपकरण को राजनीतिक, समाजिक, और आर्थिक सभी मुद्दों पर भारत के विरुध्द इस्तेमाल किया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या के सहारे हासिल राजनीतिक ताकत, अपराध और आतंकवाद के जोर पर एक सुनियोजित योजना के तहत असम के 11 बंगाल के 9 बिहार के 6 एवं झारखंड के 3 जिलों को मिलाकर ग्रेटर बांग्लादेश बनाने का काम किया जा रहा है। प्रख्यात लेखक जयदीप सैकिया की मानें तो इस क्षेत्र में बांग्लादेश – म्यांमार के कुछ भाग और उत्तर-पूर्वी भारत को सम्मिलित कर एक इस्लामिक राज्य की कल्पना की जा रही है। कुल मिला कर भारत को पुन: विभाजित करने का षड़यंत्र रचा जा रहा है परन्तु सरकार की उपेक्षा से यह मसला ठंडे बस्ते में ही पड़ा दिखता है। सत्ता की दौड़ में वोट की सियासत का ही असर है; वर्षों के शासन काल में कांग्रेस ने इस दिशा में दृढ़ इच्छाशक्ति से काम नहीं किया। हाँ आइ.एम.डी.टी एक्ट जैसे कानून के सहारे उनको यहां बसाने में मदद अवश्य पहुंचायी गयी! बांग्लादेशी आतंकियों को भगाने के बजाय घर-जंवाइ बनाने की संरक्षणात्मक तुष्टीकरण की नीति 1977 से ही जारी है। केंद्र की कांग्रेस सरकार से लेकर राज्य की असम गण परिषद सरकार; जो इसी मसले को लेकर सत्ता में आई, का रवैया भी एक सा रहा है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से एक बात तो साफहै कि कुर्सी के आगे देश कुछ भी नहीं ।

बहरहाल आगामी लोकसभा चुनावों में घुसपैठ का मुद्दा नया रंग ला सकता है। देश की एकता,अखंडता एवं स्थानीय नागरिकों की आर्थिक और समाजिक सरोकारों से जुड़े इस मामले में बरती जा रही उदासीनता के गंभीर परिणाम हमें भविष्य में भुगतने होंगे।

– जयराम चौधरी

बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
जामिया मिलिया इस्लामिया
मो:09210907050

छात्रों का जोर पर्यावरण बने चुनावी मुद्दा (ब्यूरो)

green-powerदेश भर के करीब 10,000 छात्रों ने राजनीतिक पार्टियों से अनुरोध किया है कि वे आगामी 15वीं लोकसभा चुनाव में हरित ऊर्जा के स्रोतों के उपयोग से जुड़े मुद्दे को चुनाव प्रचार का अभिन्न हिस्सा बनाएं। साथ ही जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों उठाएं।

हाल ही में इन छात्रों ने विभिन्न दलों के शीर्ष नेताओं के नाम एक पत्र लिखा है। पत्र में छात्रों ने कहा है कि वे इस बात से परिचित हैं कि जलवायु परिवर्तन का भावी पीढ़ी पर गंभीर असर पड़ने वाला है। इसी के मद्देनजर यह जरूरी है कि हरित ऊर्जा यानी सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग शुरू किया जाए। इसके साथ ही पानी और बिजली के बेजा इस्तेमाल को रोका जाए।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भेजे इस पत्र में छात्रों ने कहा है कि वे उम्मीद करते हैं कि प्रर्यावरण को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाए।
पत्र भेजने की पहल इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट सोसायटी फाउंडेशन और ‘अरकानीर’ नाम के संस्थान की ओर से की गई है। इस पत्र में हरियाणा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्यों के छात्र शामिल हैं।

सेक्स चर्चा – जयराम ‘विप्लव’

sex-discussionइतनी आपा-धापी और उथल-पुथल भरे राजनितिक व आर्थिक परिदृश्य में बांकी चिन्ताओ से परे ‘सेक्स चर्चा’ -स्त्री विमर्श की आड़ में खूब फल- फूल रहा है। क्या आउटलुक और क्या ब्लॉग! मोहल्ले की फैलाई इस बीमारी ने किस-किस को संक्रमित कर दिया कहना मुश्किल है! इसके बरक्स कई अन्य ब्लोगरों की सामाजिक सरोकार वाले आलेख एक अदद टिप्पणी की बाट जोहते -जोहते सरकारी दफ्तरों के पुरानी फाइल की भांति धूल फांक रहा है। ‘मोहल्ले’ पर सविता भाभी को लेकर बड़ा बबाल मचा । सम्बंधित पोस्ट पर गर्दाउड़ान गाली-गल्लम भी हुआ। सेक्स चर्चा को जिस परिप्रेक्ष्य में विचार -विमर्श का केन्द्र बिन्दु बनाया गया , उसमें अधिक से अधिक टिप्पणी पाने अतिरिक्त कोई और उद्देश्य नहीं दिखता है। मुझे सेक्स को लेकर बहस करने से परहेज नहीं है। निश्चित रूप से आज सेक्स को लेकर हमें नए सिरे से सोचने की, नया दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है। लेकिन उद्देश्य सार्थक हो।

समय चक्र परिवर्तित हुआ है , जिस वज़ह से अनेक पुरानी परम्पराएँ टूटती नज़र आ रही है। कल का सम्भोग आज सेक्स का रूप ले चुका है। सेक्स केवल बंद कमरों के भीतर बिछावन तक सीमित न हो कर शिक्षा मंदिरों (डीपी एस दिल्ली की घटना याद होगी) से होते हुए कार्य स्थली (कॉल सेंटरों की कहानी भी आप तक पहुँच गई होगी) तक विस्तार ले चुका है। पाश्चात्य का अनुकरण किसी और क्षेत्र में तो नहीं परन्तु सेक्स और भ्रष्टाचार के मामले में जम कर हुआ है। कुछ लोग इसे मेट्रो शहरों में सीमित बताते हैं जबकि ये मसला भी महानगरीय उच्च -मध्य वर्गो (अर्थात विकासशील इंडिया) से निकल कर देहातों में मध्य- निम्न वर्गो (गरीब भारत जिसे अमेरिकाऔर यूरोप वाले रियल इंडिया कहते हैं) तक फ़ैल चुका है। ऐसा भी नहीं है कि यह सब अचानक हो गया । किसी भी सामाजिक परिवर्तन / बदलाव के पीछे कई छोटी -बड़ी ,साधारण से साधारण घटनाएँ सालों से भूमिका बना रहे होते हैं । यहाँ में जिस बदलाव की बात कर रहा हूँ वो यु ही नहीं हुआ उसके पीछे सूचनातंत्र की महती भूमिका रही है। हालाँकि सूचना क्रांति ने हमें काफी सुख-सुविधाएं मुहैया करायी लेकिन भारतीय समाज को उससे बहुत बड़ा घाटा हुआ है। विज्ञान का ये वरदान हमारी संस्कृति के लिए अभिशाप ही साबित हुआ । चलिए अतीत में बहुत दूर न जाकर स्वतंत्र भारत को लेकर आगे बढ़ते हैं। हम बात कर रहें हैं सेक्स के सामाजिक सन्दर्भों की । अवैध संबंधो को अब तक भारत में सामाजिक मान्यता नहीं मिली है बावजूद इसके व्यक्तिगत स्वतंत्रता की छतरी लगाये अनैतिकता से बचने की कोशिश जारी है। आज कदम -कदम पर आधुनिकता के नाम पर सामाजिक दायरे, सदियों से चली आ रही परम्पराए तोड़ी जा रही हैं। मुझे पता है आप कहेंगे कि परम्पराएँ टूटनी ही चाहिए। ठीक हैं मैं भी कहता हूँ, हाँ पर वो परम्पराएँ ग़लत होनी चाहिए। ध्यान रहे कभी प्रथाएं नहीं टूटी बल्कि कुप्रथाएं तोड़ी गई हैंऔर इसे बदलाव नहीं क्रांति /आन्दोलन कहा गया। उदाहरण के लिए समय-समय पर हुए समाज और धर्म सुधार आंदोलनों को समझनेका प्रयास करें तो बात स्पष्ट हो जायेगी । वर्तमान समय में युवा वर्ग मानसिक तौर पर उत्तर आधुनिक है या बनना चाहता है। आज का प्रगतिशील युवा अक्सर परम्पराओं को रूढ़ी कहना ज्यादा पसंद करता है। और इसको तोड़ कर ख़ुद को विकास की दिशा में अग्रसर समझता है। यहाँ हमें परम्पराओं तथा रुढियों में अन्तर करना सीखना होगा।

सेक्स की बात सुन कर हम मन ही मन रोमांचित होते हैं .जब भी मौका हो सेक्स की चर्चा में शामिल होने से नहीं चूकते .इंटरनेट पर सबसे अधिक सेक्स को हीं सर्च करते हैं . लेकिन हम इस पर स्वस्थ संवाद /चिंतन/ मंथन करने से सदैव घबराते रहे हैं और आज भी घबराते हैं .law of reverse effect ” मे अनेक विद्वानों ने सेक्स को जीवन का बही आवरण बताया है जिसको भेदे बिना जीवन के अंतिम लक्ष्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है . सेक्स अर्थात काम जिन्दगी की ऐसी नदिया है जिसमें तैरकर हीं मन रूपी गोताखोर साहिल यानी परमात्मा तक पहुँचता है .

एक गृहस्थ के जीवन में संपूर्ण तृप्ति के बाद ही मोक्ष की कामना उत्पन्न होती है | संपूर्ण तृप्ति और उसके बाद मोक्ष, यही दो हमारे जीवन के लक्ष्य के सोपान हैं | कोणार्क, पूरी, खजुराहो, तिरुपति आदि के देवालयों मैं मिथुन मूर्तियों में जीवन के लक्ष्य का प्रथम सोपान है अतः  इसे मंदिर के बाहरी  दिवाल पर ही प्रतिष्ठित किया जाता है | द्वितीय सोपान मोक्ष की प्रतिष्ठा देव प्रतिमा को मंदिर के अंत: पुर में की जाती है | प्रवेश द्वार और देव प्रतिमा के मध्य जगमोहन बना रहता है, ये मोक्ष की छाया प्रतिक है | मंदिर के बाहरी  दीवारों पर मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थी को आनंद की अनुभूतियों को आत्मसात कर जीवन की प्रथम सीढ़ी – काम से  तृप्ति पा लेने का संकेत कराती है | ये मिथुन मूर्तियाँ दर्शनार्थी को ये स्मरण कराती है कि  जिस मानव ने जीवन के इस प्रथम सोपान ( काम तृप्ति ) को पार नहीं किया है, वो देव दर्शन – मोक्ष के द्वितीय सोपान पर पैर रखने का अधिकारी नहीं | मनुष्य को हमेशा इश्वर या मोक्ष को प्राप्ति के लिए काम से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है |

जीवन और काम के शाश्वत सम्बन्ध की उपरोक्त व्याख्या गौर करने लायक है . मानव समाज समाज की नीव जिस काम /सेक्स पर टिकी हुई है कालांतर में उसी काम को समाज ने प्रतिबंधित करने की दिशा में निरंतर प्रयास किये . परिणाम हमारे समक्ष हैं , जीवन के अंतिम लक्ष्य तक ले जाने का साधन और उसकी उर्जा को नकारात्मक रूप में देखा जाने लगा . आज काम बिस्तर पर सिमट आया है जिसका लक्ष्य बस एक विपरीतलिंगी अथवा समलिंगी जोड़े की क्षणिक संतुष्टी भर रह गयी है .सम्भोग को केवल भोग,भोग,भोग, और भोग तक सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि भोग से संपूर्ण तृप्त होकर आगे मोक्ष की ओर जाने का अवसर आते है लेकिन काम के प्रति अपनी नकारात्मक छवि के कारण हम इस रस्ते को छोड़ दूसरे -तीसरे रास्ते में भटकते रहते हैं . हमारा यह भटकाव केवल और केवल काम / सेक्स के प्रति गलत नजरिये की वजह से है . इस मंच पर हर आलेख में इसे दूर करने का  प्रमाणिक और तथ्यपूर्ण  प्रयत्न होता रहेगा . हम जीवन के मूल तत्व काम अथवा सेक्स के ऊपर विभिन्न विचारकों और अपने विचार को आपके समक्ष रखेंगे . काम का जीवन में क्या उपयोगिता है  ? सेक्स जिसे हमने बेहद जटिल ,रहस्यमयी ,घृणात्मक बना रखा है उसकी बात करने से हमें घबराहट क्यों होती है ? यह विमर्श किस्तों में जारी रहेगा ……

www.janokti.com

क्या कल्याण को माफी जायज है? – अमलेन्दु उपाध्याय

amalendus-photoभदोही उपचुनाव में बसपा के खाते से सीट झटककर समाजवादी पार्टी गदगद है और उसके बड़े नेता अब फतवा जारी कर रहे हैं कि प्रदेश की जनता बसपा से छुटकारे के लिए सपा को वोट करेगी और कल्याण सिंह से दोस्ती का मुसलमान वोट पर कोई असर नहीं पड़ा है।

      एकबारगी तो लगता है कि सपा का सोचना सही है। लेकिन इतिहास बताता है कि राजनीति के सवाल उतने सीधे होते नहीं जितने दिखाई देते हैं। अगर भदोही का उपचुनाव बैरोमीटर है तो बलिया संसदीय उपचुनाव बैरोमीटर साबित क्यों नहीं हुआ? बलिया चुनाव के बाद प्रदेश में दो बार उपचुनाव हुए और दोनों उपचुनाव में सपा का बहुत बुरा ही हाल हुआ केवल मुलायम द्वारा रिक्त की गई गुन्नौर सीट ही सपा बचा पाई और वहां भी उसका प्रत्याशी बहुत कम अन्तर से जीता।

      इस सबसे परे लगता है कि उत्तर प्रदेश में दलितों के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक समझे जाने वाला मुसलमान पशोपेश में है कि लोकसभा चुनाव में किधर जाए! उसकी प्राथमिकता आज भी भाजपा को हराना है, लेकिन पिछले दह दशक से जिस तरह से उसे छला गया है उससे वह आहत है। इसका फायदा उठाकर मुस्लिम कट्टरपंथियों की तरफ से भी अपनी पार्टी का राग अलापा जा रहा है।

      1984 के लोकसभा चुनाव तक मुसलमान उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करता था जिसके बल पर कई दशक तक कांग्रेस ने देश पर राज किया। लेकिन राजीव गांधी के शासनकाल में कांग्रेस ने हिंदू कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेकते हुए जब बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया और अयोध्या में राममंदिर का शिलान्यास कराकर अयोध्या से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की तब यह वोट कांग्रेस से खिसकने लगा। बाद में जब नरसिंहाराव ने बाबरी मस्जिद गिरवाने में अप्रत्यक्ष सहयोग दिया तो मुसलमान पूरी तरह से उससे दूर हो गया और मुलायम सिंह के साथ 1993 के विधानसभा चुनाव में चला गया।

      छह फीसदी यादव मतदाताओं के बल पर समाजवादी पार्टी नाम की प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी चलाने वाले मुलायम सिंह ने पन्द्रह बरस तक मुसलमानों को भाजपा का खौफ और बाबरी मस्जिद की शहादत की याद दिलाकर छला। छह दिसम्बर 1992 के बाद से लगातार मुलायम सिंह मुसलमानों के हीरो थे, भले ही उनकी कैबिनेट में मौ आजम खां के अलावा किसी दूसरे मुसलमान को स्थान नहीं मिलता था। परंतु सपा में अमर सिंह का प्रकोप बढ़ने के साथ मुलायम का ग्राफ विगत 5-6 वषों में गिरने लगा था, और अब बाबरी मस्जिद के कातिल कल्याण सिंह से हाथ मिला लेने के बाद मुसलमान स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।

      यहां यह याद दिलाना आवश्यक है कि 1996 के आसपास वह समय था जब उत्तर प्रदेश के मुसलमान ने तमाम कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं के फतवे के बावजूद समाजवादी पार्टी को वोट दिया था। निश्चित रूप से इस स्थिति के लिए बहुत बड़ा श्रेय सपा के फारब्राण्ड नेता मौ आजम खां को जाता है। यह आजम खां के सहारे का सम्बल था कि मुलायम सिंह ने एक समय में शाही इमाम को चुनौती के अंदाज में कहा था कि इमाम साहब इमामत करें और राजनीति हमें करने दें।

       मुलायम की अवसरवादिता तब काफी कुछ खुली जब परमाणु करार पर वे अपने समाजवाद, लोहिया के सिद्धान्त और साम्राज्यवाद विरोध की नीतियों की ऐसी तैसी करके मनमोहन और अमरीका की बगल में खड़े हो गए। करार पर ही मुलायम को लग गया था कि अब मुसलमान उनसे दूर हो गया है। इसीलिए ठीक डेढ़ दशक पहले जो मुलायम सिंह चुनौती के अंदाज में कह रहे थे कि इमाम साहब इमामत करें वही मुलायम सिंह करार पर उन्हीं इमाम के दरवाजे पर गिड़गिड़ाने गए।

      करार पर मुलायम सिंह की उलटबांसी से तय हो गया था कि उन्हें अब मुस्लिम वोटों की दरकार नहीं है और कल्याण सिंह से हाथ मिलाकर उन्होंने भविष्य की अपनी राजनीति का साफ संकेत दे दिया है। आज मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद के कत्ल के इल्जाम से बरी कर दिया है। लेकिन वो हिंदुस्तानी बाबरी मस्जिद के उस कातिल को कैसे माफ कर दे जिसके कारण 6 दिसम्बर 1992 के बाद पूरे दो माह तक चले साम्प्रदायिक दंगों में देश भर में चुनचुनकर मुसलमानों का कत्ल किया गया हो, मुंबई, सूरत और अहमदाबाद की सड़कों पर औरतों और लड़कियों को निर्वस्त्र करके कांच की बोतलों पर नचाया गया हो और उनकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई हो, सड़कों पर टायर जलाकर जिंदा आग में झोंक दिया गया हो। इन हादसात के लिए मुलायम सिंह तो कल्याण सिंह को माफ कर सकते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश का मुसलमान कैसे करे?

      तमाशा यह है कि मुलायम ने एक बार फिर दांव चला और कल्याण से माफीनामा जारी कराया। लेकिन इस माफीनामे में कहीं भी ‘बाबरी मस्जिद’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया। कहीं भी बाबरी मस्जिद गिराने के लिए माफी नहीं मांगी गई। कल्याण ने कहा कि उन्होंने तो 6 दिसम्बर 1992 को ही घटना की जिम्मेदारी लेनी थी। अगर ऐसा ही था तो कल्याण सिंह भाजपा में अब तक क्या कर रहे थे? 6 दिसम्बर 1992 की जिम्मेदारी लेकर एक बार फिर से स्वयं को हिंदू आतंकवादियों का कर्णधार साबित करने का ही प्रयास किया है। लिब्रहान आयोग के समक्ष गवाही में भी उन्होंने कोई खेद प्रकट नहीं किया है, बल्कि हर साल 6 दिसम्बर को शौर्य दिवस मनाया है। क्या अगली 6 दिसम्बर को कल्याण फिर से शौर्य दिवस नहीं मनाएंगे?

      उधर मुलायम सिंह ने यह कहकर कि अगर भाजपा ‘यूनिफाइंग सिविल कोड’ और धारा 370 को छोड़ दे तो वे उससे भी समझौता करने को तैयार हैं, अपनी भविगय की राजनीति तय कर ली है। अगर जरूरत पड़ी तो सत्ता के लिए भाजपा इन दो मुद्दों को तिलांजलि भी दे देगी और मुलायम भाजपा की गोद में बैठ जाएंगे! लेकिन यह याद रखना होगा कि जब नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में कत्ल-ए-आम कराया तब भाजपा के एजेंडे में 370 और यूनिफाइड सिविल कोड और राम मंदिर नहीं थे! आखिर कहना क्या चाहते हैं मुलायम?

      अगर मुलायम की कल्याण से दोस्ती हो सकती है, अपनी चालीस साल की कांग्रेस विरोध की राजनीति और डॉ लोहिया के गैर कांग्रेसवाद को तिलांजलि देकर एक दलित महिला से घबराकर मुलायम कांग्रेस के साथ जा सकते हैं तो क्या लोकसभा चुनाव के बाद मुलायम सिंह के लिए भाजपा पाक साफ नहीं हो सकती?

          

(लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं और पाक्षिक पत्रिका ‘प्रथम प्रवक्ता’ के संपादकीय विभाग में हैं)

अमलेन्दु उपाध्याय

द्वारा एस सी टी लिमिटेड

सी-15, मेरठ रोड इण्डस्ट्रियल एरिया

गाजियाबाद

मो  9953007626

 

मुशर्रफ़ को मदनी का दो टुक जबाब — जयराम ‘विप्लव’

musharafराष्ट्रपति पद गंवाने के बाद पहली बार भारत पधारे मियां मुशर्रफ़ की एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान खूब फजीहत हुई। मुशर्रफ़ ने कहा कि मुंबई आतंकी घटना की वजह है कश्मीर समस्या। जिस दिन कश्मीर समस्या का हल निकल आया, आतंकवाद ख़ुद -बखुद समाप्त हो जाएगा। भारत के लोगों को हमेशा ग़लतफ़हमी रही है कि आई एस आई और पाक सेना शान्ति नही चाहती। पाकिस्तान के ऊपर शक की निगाह से दोहरे चरित्र होने का आरोप भी लगता रहा है, जबकि ऐसा बिल्कुल नही है।

आगे अपने बयान में मुशर्रफ़ ने भारतीय मुसलमानों के साथ ज्यादती का मुद्दा बड़ी ही गर्मजोशी से उठाया लेकिन तभी पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी (जो पहले इस्लामी सेवक संघ नमक एक उग्रवादी संगठन था) के नेता अब्दुल नासिर मदनी ने पलटवार करते हुए कहा कि भारतीय मुस्लमान किसी भी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं। हमें आपके सलाह की जरुरत नही। मदनी की बात सुनकर मुशर्रफ़ नजरें बचते हुए दिखे । भारत-पाक के बीचइतने तनावपूर्ण माहौल में एक कट्टरपंथी मुस्लिम नेता का मुशर्रफ़ को दो टुक जबाब देना महत्वपूर्ण संकेत है। क्योंकि आम तौर पर कहा जाता है कि भारत के मुस्लिम रहनुमाओं के भीतर पाकिस्तान के प्रति सॉफ्ट कोर्नर रहताहै।

पाक के पूर्व राष्ट्रपति द्वारा आतंकवाद के मसले पर कश्मीर और भारतीय मुस्लिमो के साथ ज्यादती के मुद्दे की आड़ लेकर भारत को घेरने की कोशिश और मदनी का जवाब , इस गुत्थी को सुलझने में वक्त लग सकता है ! फिलवक्त , इतना जरुर कह सकते हैं कि भारत में मुस्लिम राजनीति नई करवटें ले रहा है।


जयराम चौधरी

बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
जामिया मिलिया इस्लामिया
मो:09210907050

‘जय हो’ का इस्तेमाल किसी के खिलाफ नहीं चाहते सुखविंदर

slumdog-millionaire-jai-ho-danceकांग्रेस पार्टी की ओर से चुनाव प्रचार के लिए फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के लोकप्रिय गीत ‘जय हो’ के इस्तेमाल करने की योजना पर गायक सुखविंदर ने कहा है कि इस गीत का उपयोग किसी के खिलाफ नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इस गीत का उपयोग बेहतर तरीके से करना चाहिए। लेकिन इसका उपयोग किसी के खिलाफ बिल्कुल न हो।

गौरतलब है कि सिनामाई गीतों का इस्तेमाल पहले से भी लोग अपने अंदाज में करते रहे हैं। लेकिन, पहली बार कोई राजनीतिक पार्टी गाने की राइट खरीदकर इसका अपने लिए व्यापक इस्तेमाल करने जा रही है।