राजनीति राष्ट्रीय समस्या बनती कुत्ता काटने की खूनी घटनाएं?

राष्ट्रीय समस्या बनती कुत्ता काटने की खूनी घटनाएं?

डॉ. रमेश ठाकुर पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठतम नेता विजय गोयल ने कटखने कुत्तों से उत्पन्न हुई समस्याओं पर अंकुश लगवाने के लिए…

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राजनीति भारत डेड नहीं, एक जीवंत और सनातन अर्थव्यवस्था

भारत डेड नहीं, एक जीवंत और सनातन अर्थव्यवस्था

पंकज जायसवाल भारत केवल एक भूगोल नहीं बल्कि एक निरंतर सभ्यता है। इस सभ्यता का मूल चरित्र सनातन है जिसका अर्थ है सस्टेनेबल, शाश्वत, स्थायी,…

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पर्यावरण उत्तरकाशी के धराली गांव में आई प्राकृतिक आपदा से धधकते सवाल?

उत्तरकाशी के धराली गांव में आई प्राकृतिक आपदा से धधकते सवाल?

कमलेश पांडेय भारत वर्ष में विज्ञान और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। बावजूद इसके ब्रेक के बाद यहां आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सटीक अनुमान लगा पाना अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। एआई के अप्रत्याशित विकास के बावजूद शोधकर्ताओं की उदासीनता और  लापरवाही से विषयगत सफलता अभी तक हासिल नहीं की जा सकी है। इसलिए सरकार, निजी उद्यमियों और शोधार्थियों को इस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। खासकर मौसम विज्ञान और पर्यावरण ज्योतिष के अनुसंधान कर्ताओं को इस ओर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। इससे समय रहते ही हमें सटीक भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी और ऐसी आपदाओं के बाद होने वाली भारी धन-जन की हानि भी रोकने में मदद मिलेगी और यदि ऐसा संभव हुआ तो यह भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि भी होगी। बताते चलें कि उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जनपद के धराली गांव में आई अकस्मात बादल फटने जैसी आपदा प्रकृति और आये दिन बिगड़ते पारिस्थितिकी संतुलन की एक और गंभीर चेतावनी है।  पर्वतीय प्रदेशों में ऐसी चेतावनियों की एक लंबी श्रृंखला है जो हमें चीख चीख कर यह बताती है कि पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन साधने की कितनी जरूरत है? खासकर, देश के पहाड़ी राज्यों, यथा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि पर्वतीय प्रदेशों को लेकर ऐसी नीति बननी चाहिए जिससे पहाड़ और इंसानों के बीच चिरस्थायी संतुलन बना रहे। इसलिए यह सवाल उठता है कि आखिरकार कुदरत की चेतावनी को हमलोग कब समझेंगे? और सिर्फ समझेंगे ही नहीं बल्कि उनके अनुरूप ही अपना अग्रगामी व्यवहार भी बदलेंगे।  यह ठीक है कि तकनीकी क्रांति और सूचना क्रांति से विकास में अप्रत्याशित गति आई है लेकिन विकास के भौगोलिक मानदंडों की उपेक्षा की जो सार्वजनिक और व्यक्तिगत कीमत सम्बन्धित लोगों को चुकानी पड़ रही है, वह नीतिगत व प्रशासनिक लापरवाही नहीं तो क्या है? यह यक्ष प्रश्न बन चुका है। जानकारों का कहना है कि उत्तरकाशी के धराली गांव में खीरगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में जो बादल फटा, उंससे आये फ्लैश फ्लड ने रास्ते में आने वाली हर चीज को अपनी चपेट में ले लिया। इससे प्रभावित इलाके से आ रहे विडियो दिल दहलाने वाले हैं। चूंकि अभी चारधाम यात्रा का सीजन चल रहा है और यह गांव गंगोत्री वाले रास्ते पर ही पड़ता है जो श्रद्धालुओं के रुकने का एक अहम पड़ाव भी है। ऐसे में जानमाल की बड़े पैमाने पर हानि होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। चूंकि उत्तरकाशी जैसे उत्तराखंड के जनपदों में ब्रेक के बाद प्राकृतिक आपदा आती रहती है। इसलिए यहाँ पर निरंतर/  लगातार आफत आते रहने से शोधकर्ताओं को और भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा इसलिए कि हाल के बरसों में उत्तराखंड इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के केंद्र में रहा है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में चमोली जनपद में, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के पास एक ग्लेशियर टूटकर गिर गया था। इसकी वजह से धौलीगंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई और तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजना में काम करने वाले कई श्रमिकों को जान गंवानी पड़ी।  इसी तरह, साल 2023 की शुरुआत में एक और धार्मिक पर्यटन स्थल जोशीमठ में भूस्खलन ने एक बड़ी आबादी को विस्थापित कर दिया। वहीं, साल 2013 में केदार घाटी में मची भयानक तबाही से लेकर अभी तक, छोटी-बड़ी ऐसी कई प्राकृतिक आपदाएं आ चुकी हैं। इसलिए पुनः सुलगता हुआ सवाल यहां आकर ही ठहर जाती है कि आखिर  पहाड़ से छेड़छाड़ कब रुकेगी क्योंकि आरोप है कि उत्तराखंड में चल रहे बेशुमार पावर प्रॉजेक्ट्स ने पहाड़ों को खोखला कर दिया है। वहीं, इस दौरान क्षेत्र में बढ़ती आबादी, लाखों पर्यटकों के बोझ, अनियंत्रित निर्माण और घटती हरियाली को मिला दीजिए तो स्थिति विस्फोटक बन जाती है। इसलिए पर्यावरण प्रेमी पहाड़ अनुकूल विकास करने की मांग हमेशा उठाते रहते हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है जिस पर इंसानों का कोई जोर नहीं लेकिन, यह भी एक उद्वेलित करने वाला तथ्य है कि जब पानी के निकलने के रास्तों, नालों-गदेरों के मुहानों पर कंक्रीट के बड़े-बड़े स्ट्रक्चर खड़े हो चुके हैं तो फिर उन तमाम जगहों पर, जिन रास्तों से पानी को बहना था, आखिर वह कैसे निकलेगा क्योंकि उन रास्तों पर तो प्रकृति प्रेमी इंसान बस चुका है। स्पष्ट है कि यह जानबूझकर आफत बुलाने जैसा है। इसी के चक्कर में भारी धन-जन की हानि झेलनी पड़ती है और आपदा आने के बाद प्रशासन का जो सिर दर्द बढ़ता है, वह अलग बात है।  इसलिए समकालीन स्थिति-परिस्थितियों को बदलने की जरूरत है। इंसान को संभलने की जरूरत है। सच कहूं तो उत्तराखंड को लेकर यह जारी बहस तकरीबन 5 दशक पुरानी है कि विकास किस कीमत पर होना चाहिए? साल 1976 में, गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एकं कमिटी ने जोशीमठ को बचाने के लिए फौरन कुछ कदम उठाने की सिफारिश की थी- इनमें संवेदनशील जोन में नए निर्माण पर रोक और हरियाली बढ़ाना प्रमुख था लेकिन 49 साल बाद आज वह रिपोर्ट पूरे पहाड़ के लिए प्रासंगिक हो चुकी है।  इसलिए केंद्रीय व राज्य सत्ता प्रतिष्ठान को चाहिए कि वे दूरदर्शिता भरा कदम उठाएं और पर्वतीय प्रदेशों की रमणीकता के दृष्टिगत उन पर फिदा होने वालों को बसने से रोके। भारतीय सनातन संस्कृति भी पहाड़ों को साधना स्थली बताती है जबकि मैदानी भूभाग जनजीवन के बसने हेतु श्रेष्ठ हैं। पर्वतीय घाटियों में भी रहा जा सकते है लेकिन मैदानों के सूखा या बाढ़ की तरह वहां भी ऐसा ही कुछ होते रहने की संभावना बनी रहती है।  कमलेश पांडेय

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कला-संस्कृति एक भाव है राखी, हर भाई-बहन को बांधती है स्नेह की डोर से 

एक भाव है राखी, हर भाई-बहन को बांधती है स्नेह की डोर से 

राजेश जैन   रक्षाबंधन हर साल आता है पर हर साल कुछ नया दे जाता है- नई यादें, वादे और भरोसे। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि रिश्तों…

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राजनीति भारत…फिलीपींस की दोस्ती से चीन इतना क्यों परेशान है?

भारत…फिलीपींस की दोस्ती से चीन इतना क्यों परेशान है?

रामस्वरूप रावतसरे फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कास जूनियर भारत दौरे पर हैं। फिलीपींस और चीन में सालों से तनातनी है। चीन के अनधिकृत दावों से फिलीपींस परेशान…

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लेख कुपित कुदरत का कहर या लापरवाही ? 

कुपित कुदरत का कहर या लापरवाही ? 

डॉ घनश्याम बादल अपने नैसर्गिक एवं नयनाभिराम प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता के सेव उत्पादन के लिए प्रसिद्ध उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग का पर्यटकों का…

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राजनीति भारत और अमेरिका की मुश्किलें बढ़ा रहे ट्रंप

भारत और अमेरिका की मुश्किलें बढ़ा रहे ट्रंप

राजेश कुमार पासी डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को फिर से महान देश बनाने का नारा दिया था और आते ही उन्होंने अपने एजेंडे पर काम शुरू कर दिया। उन्होंने सरकारी खर्च कम करने की कोशिश की और अवैध घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने का काम शुरू किया।

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लेख देश का आधार : शिक्षा और स्वास्थ्य

देश का आधार : शिक्षा और स्वास्थ्य

डॉ. नीरज भारद्वाज किसी भी विकसित राष्ट्र के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। दोनों ही देश के विकास के मजबूत पहिए भी हैं। कहा…

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सिनेमा एक्टिंग में वापसी के लिए तैयार हैं आमना शरीफ

एक्टिंग में वापसी के लिए तैयार हैं आमना शरीफ

सुभाष शिरढोनकर भारतीय पिता और फ़ारसी-बहरीनी मां के घर 16 जुलाई 1982 को मुंबई में जन्मी एक्‍ट्रेस आमना शरीफ़, 2000 के दशक में भारतीय टेलीविज़न की सबसे पॉपुलर एक्‍ट्रेसों में से…

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लेख एक हथिनी ‘माधुरी’ के बहाने धर्म का पुनर्पाठ

एक हथिनी ‘माधुरी’ के बहाने धर्म का पुनर्पाठ

-स्वामी देवेन्द्र ब्रह्मचारी – नांदणी जैन मठ की गजलक्ष्मी हथिनी माधुरी, जो 35 वर्षों से मठ की सेवा में थी, को पेटा की याचिका पर जामनगर भेजा…

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पर्यावरण उत्तराखंड की आपदा: जब हिमालय ने चुप्पी तोड़ी, और हमारे तैयार न होने की कीमत चुकाई गई

उत्तराखंड की आपदा: जब हिमालय ने चुप्पी तोड़ी, और हमारे तैयार न होने की कीमत चुकाई गई

दोपहर का वक्त था। बादल घिरे थे, पर कोई डर नहीं था। यह तो पहाड़ों का रोज़ का मिज़ाज है। लेकिन अचानक, जैसे किसी ने…

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राजनीति संसद संवाद की बजाय संघर्ष का अखाड़ा कब तक?

संसद संवाद की बजाय संघर्ष का अखाड़ा कब तक?

– ललित गर्ग –बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर संसद में गतिरोध जारी है, जिससे कामकाज बाधित हो रहा है। आज संसद का दृश्य सार्थक…

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