भारत अमेरिका टैरिफ वार
Updated: August 11, 2025
शिवानन्द मिश्रा कहते हैं बाज़ जब शिकार करता है तो सबसे पहले ऊँचाई पर चढ़ता है, फिर बिना आहट के झपट्टा मारता है। आज भारत ठीक उसी मोड़ पर खड़ा है। अमेरिका ने भारत से होने वाले आयात पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री जी को तुरंत बात करनी चाहिए, अमेरिका से दो टूक कह देना चाहिए कि ये हमें मंज़ूर नहीं पर समझदारी इसी में है कि इस वक्त हम चुप रहें लेकिन हाथ पर हाथ धर कर नहीं बल्कि मन ही मन तैयारी करते हुए। कोरोना जैसे संकट ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया लेकिन भारत उस समय भी घबराया नहीं। जहाँ एक ओर अमेरिका में लोग सड़कों पर ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे, वहीं भारत गाँव की पगडंडियों से लेकर महानगरों की गलियों तक जीवन के लिए लड़ रहा था और लड़ कर जीता भी। हमने टीके बनाए, दवाइयाँ बाँटी, यहाँ तक कि दूसरों की मदद भी की। अब जब अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाए हैं तो क्या हमें नहीं घबराना चाहिए क्योंकि यह पहला और आखिरी झटका नहीं है। हो सकता है कल ये टैरिफ 150% तक बढ़ जाएँ। हमने सीखा है रोटी तब पकती है जब आँच तेज़ हो। भारत को अब मुँह से नहीं, हाथों से जवाब देना है। जो चीज़ें बाहर से आती हैं, उन्हें यहीं बनाना सीखना चाहिए। देश के गाँव-गाँव में हुनर बिखरा पड़ा है। बस उसे दिशा देने की ज़रूरत है। आज भी लोहार की भट्टी में वह आग है जो मशीन को टक्कर दे सकती है, अगर उसे अवसर मिले। अगर अमेरिका अपना दरवाज़ा बंद करता है तो अफ्रीका, रूस, दक्षिण एशिया और अरब देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मज़बूत करना चाहिए। बाजार एक नहीं,कई होते हैं पर आँख सिर्फ उसी पर टिकती है जहाँ आदत पड़ जाए। जनता को जागरूक बनना होगा। हम हर विदेशी चीज़ के पीछे दौड़ने वाले लोग नहीं रहे। अब हम समझ चुके हैं कि ‘मेड इन इंडिया’ सिर्फ शब्द नहीं, एक ज़रूरत है, आत्मसम्मान की ज़रूरत। सरकार को चाहिए कि वह छोटे कारीगरों को, खेत के किसानों को और छोटे उद्यमियों को ऐसी छत दे जहां वो धूप-बारिश में भी कुछ बना सकें जो बाहर भेजा जा सके। सबसे बड़ा संकट बाहर से नहीं, भीतर से आता है। जब घर की दीवारें खुद कमजोर हो जाएँ तो बाहर की आंधी क्या कर लेगी लेकिन जब भीतर ही दरारें हों, एकता की नींव हिलने लगे, तब सबसे बड़ा डर वहीं से होता है। आज देश के भीतर कुछ ऐसे स्वर सुनाई देते हैं जो विदेशी ताक़तों को न्योता देते हैं। जब एक घर का बेटा ही पड़ोसी से कहे कि ‘आओ,हमारे घर में आग लगाओ’ तो किसे दोष दिया जाए? हमें सतर्क रहना है…
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क्या राहुल गांधी एक जिम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं ?
Updated: August 11, 2025
वीरेन्द्र सिंह परिहार क्या राहुल गांधी एक गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं। अब जब 2022 की राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी की इस बात पर कि चीन ने भारत की 2000 कि.मी. जमीन कब्जा ली, सर्वोच्च न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुये कहा कि इस बात का क्या सबूत है। अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसी बाते नहीं कर सकते। इस तरह से अनेको बातें है जिससे यह पता चलता है, कि उनका रवैया सदैव ही एक गैर जिम्मेदाराना राजनीतिज्ञ का रहा है। वह चाहे राफेल का मामला हो, चाहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वीर सावरकर या पैगोसेस का मामला हो, सभी मामलों में वह झूठे और गलत साबित हुये हैं। अब प्रियंका वाड्रा भले ही यह कहे कि यह जज तय नहीं कर सकते कि सच्चा भारतीय कौन है ? पर लाख टके की बात यह कि यदि देशका सर्वोच्च न्यायालय यह तय नहीं करेगा तो कौन करेगा ? क्या यह एक खानदान विशेष करेगा ? इसी तरह से आये दिन राहुल गांधी चुनाव आयोग पर बेसिर-पैर के हमले करते रहते हैं, उस पर वोट चोरी करने और देख लेने की धमकी देते हैं। उस पर जब कर्नाटक चुनाव आयोग ने राहुल से शपथ-पत्र माँग लिया तो साय-पटाय बकने लगे कि वह नेता है और जो सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं, वही शपथ-पत्र है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प जब अपने निहित स्वार्थों के चलते भारत की अर्थव्यवस्था को डेड/मृत बताते हैं, तो लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी उस पर पूरी तरह सहमति व्यक्त करते हैं। परीक्षण करने का विषय है कि क्या इसमें कुछ सच्चाई है। अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट यह कहती है कि भारत की अर्थव्यवस्था राकेट बनी हुई है। वर्तमान में भारत की विकास दर जहाँ 6.4 प्रतिशत है वहीं चीन की 4.8 प्रतिशत, अमेरिका 1.9 प्रतिशत, यू.के. की 1.2 प्रतिशत, जर्मनी 0.1 प्रतिशत, जापान 0.7 प्रतिशत फ्रांस 0.6 प्रतिशत विकास दर है। कुल मिलाकर भारत विश्व की सबसे ज्यादा बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। वर्ष 2015 में भारत की अर्थव्यवस्था जहाँ 2.1 ट्रिलियन डालर की थीं, वहीं 2025 में दुगुने से ज्यादा 4.3 ट्रिलियन डालर की हो चुकी है। विनिर्माण क्षेत्र में भारत की स्थिति जहाँ 57.4 प्रतिशत की है, चीन जहाँ 50.4 प्रतिशत है, वहीं अमेरिका 40.1 प्रतिशत में ही अटका हुआ है। कहने का आशय यह कि दुनिया की नम्बर 1 और नम्बर 2 दोनो ही अर्थव्यवस्थाओं से भारत विनिर्माण क्षेत्र में आगे है। आज दुनिया का प्रत्येक देश भारत से ज्यादा से ज्यादा व्यापार करने के तत्पर है। 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ पर देश का शेयर मार्केट धड़ाम हो जाना चाहिए था पर इसका बहुत हल्का असर हुआ। यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक यूपीए शासन के दौर में महगाई की दर 8.2 प्रतिशत वार्षिक थी जबकि मोदी शासन में यह 5.5 से ऊपर कभी नहीं गई। यूपीए शासन में एफडीआई के माध्यम से जहाँ मात्र 305 करोड़ रूपये आये, वहीं मोदी शासन में 595 करोड़ रूपये का निवेश हुआ। जी.एस.टी. का कलेक्शन जुलाई 2025 में 1.96 लाख करोड़ रूपये है जो पिछले वर्ष से 7.5 प्रतिशत ज्यादा है। ऐसी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था को डेड कहना एक सफेदपोश झूठ और ट्रम्प का फ्रस्टेशन ही कहा जा सकता है। यद्यपि इस मामले में राहुल के रवैये को लेकर उनकी ही पार्टी के नेताओं जैसे राजीव शुक्ला एवं शशि थरूर ने ही असहमति जताते हुये राहुल गांधी को आईना दिखाया। राजीव शुक्ला ने कहा कि हमारी इकोनामी बहुत मजबूत है तो शिवसेना उद्धव गुट की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस मामले में अपनी असहमति जताई। इसी अर्थव्यवस्था के तहत राहुल गांधी ने म्यूचल फंड एवं शेयर मार्केट के माध्यम से स्वतः भारी कमाई की है। 2014 के बाद जहाँ म्यूचल फंड से वह 3.8 करोड़ और शेयर मार्केट से 4.87 करोड़ अर्जित कर चुके हैं। वर्ष 2014 में राहुल गांधी ने शेयर मार्केट में 83 लाख रूपये का निवेश किया जो 2019 में 5 करोड़ और 2024 में 8 करोड़ रूपये हो गया। राहुल गांधी ने पिछले 5 महीनें में 66 लाख 49 हजार का मुनाफा कमाया। यही स्थिति उनकी माँ सोनिया गांधी और बहन प्रियंका वाड्रा की भी है। बड़ी सच्चाई यह कि ट्रम्प ने 2014 के पश्चात भारत में स्वतः निवेश किया है। ट्रम्प स्वतः कह चुके हैं कि निवेश की दृष्टि से भारत अच्छी जगह है। ट्रम्प टावर्स के कार्य मुम्बई, पुणे, गुरूग्राम जैसे शहरों में तेजी से फैले हैं तो नोयडा, हैदराबाद, बेंगलुरू जैसी जगहों में 15000 करोड़ के निवेश ट्रम्प रियल स्टेट में कर चुके हैं। वर्तमान में भारत में ट्रम्प का कारोबार 29 लाख करोड़ रूपये का है। ट्रम्प के बेटे स्वतः भारत आकर कई परियोजनाओं की शुरूआत करने वाले हैं। बड़ा सवाल फिर यही कि यदि भारत डेड इकोनामी है तो फिर ट्रम्प की कम्पनियाँ भारत में इतना निवेश क्यों कर रही हैं ? यदि ट्रम्प भारत को रूस से तेल और हथियार खरीदने को लेकर नहीं झुका पा रहे हैं। भारत के कृषि बाजार, पशुपालन और डेयरी को अमेरिका के लिये नहीं खुलवा पा रहे हैं तो ट्रम्प का भारत के विरोध में खड़ा होना तो समझ में आता है पर यदि राहुल गांधी ऐसे भारत विरोधियों के साथ खड़े हो जाते हैं तो यह समझ के परे है। सिर्फ इतना ही नहीं, वह जब पाकिस्तान के इस दावे कि आपरेशन सिन्दूर के दौरान उसने भारत के पाँच लड़ाकू विमान गिरा दिये, उस पर सुर-से-सुर मिलाते हुये सरकार से पूछते हैं कि बताओं हमारे कितने जहाज गिरे तो यह सब एक तरफ जहाँ राष्ट्र-बोध का अभाव है, वहीं किसी भी कीमत पर पागलपन की हद तक सत्ता पाने की छटपटाहट भी है। जैसा कि शशि थरूर ने कहा, भारत मात्र निर्यात पर निर्भर नहीं, वह एक मजबूत और विशाल बाजार है। बड़ी बात यह कि अमेरिकी धमकी के बाद भारतीय व्यापारियों के संगठन कैट ने ‘भारतीय सम्मान हमार स्वाभिमान’ का अभियान चलाते हुये स्वदेशी वस्तुओं की ही खरीदी और बिक्री पर जोर दिया है। उपरोक्त आधारों पर यह कहा जा सकता है कि राहुल सिर्फ एक गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि भारत-विरोधी मानसिकता के नागरिक भी हैं।
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गंदगी और बंदगी एक साथ कैसे?
Updated: August 11, 2025
डॉ.वेदप्रकाश विगत दिनों एक समाचार पढ़ा- साढ़े चार करोड़ कांवड़ यात्री धर्मनगरी में छोड़ गए 10 हजार मीट्रिक टन कूड़ा। यह समाचार हाल ही में संपन्न हुई कांवड़ यात्रा के संबंध में था। समाचार के विश्लेषण में आगे लिखा था- 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा विधिवत रूप से शुरू हुई थी। यात्रा का आधा पड़ाव पूरा होने के बाद कांवड़ यात्रियों ने खाद्य पदार्थ,प्लास्टिक की बोतलें, चिप्स और गुटके के रैपर्स, पॉलिथीन की थैलियां, पुराने कपड़े, जूते- चप्पल आदि सामान कूड़ेदान में डालने के बजाय सड़क और गंगा घाटों पर ही फेंक दिया। हर की पैड़ी के संपूर्ण क्षेत्र में गंदगी फैली है। मालवीय घाट, सुभाष घाट, महिला घाट, रोड़ी बेलवाला,पंतद्वीप, कनखल, भूपतवाला, ऋषिकुल मैदान, बैरागी कैंप आदि क्षेत्रों में गंदगी पसरी है। गौरतलब यह भी है कि हरिद्वार में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद भी कांवड़ यात्रा के दौरान पॉलीथिन और प्लास्टिक का कारोबार जमकर हुआ। क्या यह प्रशासन की मिलीभगत नहीं है? संयोग से इस दौरान मुझे भी हरिद्वार और ऋषिकेश गंगा स्नान एवं दर्शन के लिए जाने का सौभाग्य मिला। परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती के समय प्रतिदिन की भांति पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी उन दिनों भी विशेष रूप से अपने उद्बोधन में कह रहे थे- घाटों पर गंदगी न करें, कूड़ा कूड़ेदान में डालें, प्लास्टिक का प्रयोग न करें, मां गंगा में पुरानी कांवड़ और पुराने कपड़े आदि न फेंके। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न हो, इसके लिए उन्होंने एक विशेष अभियान के अंतर्गत कपड़े के लाखों थैले बंटवाए। जगह-जगह स्वच्छ पेयजल हेतु व्यवस्थाएं की। तदुपरांत भी गंगा घाटों पर गंदे कपड़े, कूड़ा और प्लास्टिक की बोतलें सहजता से इधर-उधर पड़ी दिखाई दे रही थी। यहां समझने की आवश्यकता है कि गंदगी न करना, स्वच्छता रखना, प्रकृति- पर्यावरण, नदी और जल स्रोतों को दूषित न करना अपने आप में एक बड़ी भक्ति अथवा बंदगी है। अनेक स्थानों पर लोग भंडारे और अन्य कार्यक्रमों के आयोजन करते हैं, जिसमें प्लास्टिक की प्लेट, चम्मच, गिलास आदि के रूप में ढेर कूड़ा दाएं बाएं बिखरा पड़ा रहता है। भंडारा करना और अन्य धार्मिक आयोजन हर्षोंल्लास से करना बहुत अच्छी बात है लेकिन गंदगी के लिए भी सजग होना पड़ेगा। एक नागरिक के रूप में हमें यूज एंड थ्रो की संस्कृति को छोड़ना होगा। तीर्थ स्थानों पर अथवा कहीं भी गंदगी फैलाना हमें बंदगी की भावना से दूर करता है। विगत दिनों प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हुआ। मेले में प्रतिदिन सैकड़ों मीट्रिक टन कूड़ा निकलता था, लेकिन प्रशासन की समुचित योजना और सजगता होने से मेला क्षेत्र लगातार स्वच्छ रहा। कुछ ही स्थानों पर प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें और कूड़ा दिखाई दिया। भारत विविधताओं का देश है। यहां विभिन्न जातियां, मत- संप्रदाय एवं पर्व- उत्सव हैं। समूचे देश में विभिन्न नदियों एवं स्थानों पर अनेक तीर्थ हैं। जहां प्रतिदिन भारी संख्या में श्रद्धालु एवं तीर्थयात्री पहुंचते हैं। क्या अपनी इन पवित्र यात्राओं पर जाते समय हम प्रकृति-पर्यावरण और तीर्थों को गंदा न करने और स्वच्छ रखने का संकल्प नहीं ले सकते? स्वच्छता की दृष्टि से लगातार प्रयास करते हुए इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर बना हुआ है जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कई जगह कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। लगातार बढ़ती जनसंख्या के बीच शासन- प्रशासन की भी अपनी सीमाएं हैं। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति को यह संकल्प लेना होगा कि मेरा कूड़ा मैं ही संभालूं। हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा के संबंध में गांधी जी ने लिखा है- गंगा तट पर जहां पर ईश्वर दर्शन के लिए ध्यान लगाकर बैठना शोभा देता है- पाखाना, पेशाब करते हुए बडी संख्या में स्त्री-पुरुष अपनी मूढ़ता और आरोग्य के तथा धर्म के नियमों को भंग करते हैं…जिस पानी को लाखों लोग पवित्र समझकर पीते हैं, उसमें फूल, सूत, गुलाल,चावल, पंचामृत वगैरा चीजें डाली गई… मैंने यह भी सुना कि शहर के गटरों का गंदा पानी भी नदी में ही बहा दिया जाता है जोकि एक बड़े से बड़ा अपराध है। आज भी गंगोत्री धाम से लेकर गंगासागर तक मां गंगा, यमुनोत्री से लेकर प्रयागराज संगम तक मां यमुना, कृष्णा, कावेरी, मंदाकिनी, ब्रह्मपुत्र आदि विभिन्न ऐसी नदियां हैं जिनमें व्यापक स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रदूषण और गंदगी फैलाई जा रही है। इस गंदगी के लिए न तो प्रशासन सजग है और न ही लोग। दिल्ली, हरियाणा और फिर उत्तर प्रदेश, वृंदावन में भी मां यमुना के किनारे गंदगी सहज ही देखी जा सकती है। यद्यपि भारत सरकार नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत गंगा व अन्य नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रयास कर रही है तथापि अभी स्थिति में अधिक बदलाव नहीं हुए हैं। स्वच्छता ही सेवा, सेवा ही धर्म आदि महत्वपूर्ण सूत्रों का व्यवहार में आना अभी बाकी है। परमार्थ निकेतन में मां गंगा आरती के समय पूज्य मुनि चिदानंद सरस्वती जी, विभिन्न संत एवं भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा के अनेक ग्रंथ लगातार यह कह रहे हैं कि- नदियां जीवनदायिनी हैं, प्रकृति-पर्यावरण के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है, नदियां बचेंगी तो जीवन बचेगा, संतति बचेंगी,संस्कृति बचेगी। पूज्य स्वामी चिदानंद जी अपने उद्बोधन में अक्सर कहते हैं- गंदगी और बंदगी एक साथ नहीं हो सकती। जब आप गंदगी को छोड़ देंगे, स्वच्छता को अपना लेंगे, तो बंदगी की राह बहुत आसान हो जाएगी। आइए खूब बंदगी करें, खूब तीर्थ करें, खूब स्नान करें लेकिन प्रकृति-पर्यावरण और नदियों को गंदा न करें। यदि प्लास्टिक की बोतलें, थैली अथवा कुछ कूड़ा हमारे पास है तो उसे यहां वहां न फेंके, कूड़ेदान में डालें ताकि उसे उचित व्यवस्था में ले जाकर समाप्त किया जा सके। डॉ.वेदप्रकाश
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राहुल के आरोपों पर सर्वोच्च सवाल?
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