राजनीति क्या छात्र-छात्राओं की खुदकुशी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता से शिथिल प्रशासनिक मिशनरी में कोई नई हलचल पैदा होगी?

क्या छात्र-छात्राओं की खुदकुशी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता से शिथिल प्रशासनिक मिशनरी में कोई नई हलचल पैदा होगी?

कमलेश पांडेय देश के शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राओं (स्टूडेंट्स) की आत्महत्या और उनमें बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) की समस्याओं पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम…

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कविता ये मोबाइल रिश्ते का हो गया है भस्मासुर

ये मोबाइल रिश्ते का हो गया है भस्मासुर

—विनय कुमार विनायकमैं ढूँढ रहा हूँ अपनों में अपनापनइंसान में इंसानियत आदमी में आदमियतकि आज मानव से मानवता हो गई लापता! मैं सोच नहीं पाता…

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कला-संस्कृति सांपों के प्रति समर्पण की सांस्कृतिक परंपरा है नाग पंचमी

सांपों के प्रति समर्पण की सांस्कृतिक परंपरा है नाग पंचमी

नाग पंचमी (29 जुलाई) पर विशेषपौराणिक काल से ही होती रही है नागों की पूजा– योगेश कुमार गोयलश्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को…

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लेख चाइनीज मांझा: खुलेआम बिकती मौत की धार

चाइनीज मांझा: खुलेआम बिकती मौत की धार

 डॉ. सत्यवान सौरभ हर शहर, हर गली, हर मोहल्ले में, जब बच्चे और किशोर पतंग उड़ाने निकलते हैं, तो उनका उद्देश्य केवल आसमान छूना होता…

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राजनीति भारत की पासपोर्ट इंडेक्स में बड़ी छलांग-विकसित भारत का ग्लोबल मिशन !

भारत की पासपोर्ट इंडेक्स में बड़ी छलांग-विकसित भारत का ग्लोबल मिशन !

हाल ही में 22 जुलाई 2025 को हेनली पासपोर्ट इंडेक्स-2025 जारी किया गया है, और यह हमारे देश के लिए गौरवान्वित करने वाली बात है…

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कला-संस्कृति लिंग रूप में शिव है, विश्व के पालक और संहारक

लिंग रूप में शिव है, विश्व के पालक और संहारक

ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से मुझे महेश के स्वरूप और उनकी महत्ता जानने की इच्छा प्रारम्भ से ही रही है। शिव पुराण , लिंगपुराण…

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कला-संस्कृति पूर्व में भगदड़ से हुए हादसों से कोई सबक नहीं 

पूर्व में भगदड़ से हुए हादसों से कोई सबक नहीं 

संदर्भ- हरिद्वार के मंदिर में भगदड़  प्रमोद भार्गव              उत्तराखंड के प्रसिद्द तीर्थस्थल के मनसा देवी मंदिर के मार्ग में मची भगदड़…

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लेख मनसा का मातमः अफवाह बनी त्रासदी की वजह

मनसा का मातमः अफवाह बनी त्रासदी की वजह

 ललित गर्ग  हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर में बिजली का तार टूटने और करंट फैलने की एक अफवाह ने कई जानें ले…

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आर्थिकी भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौताः एक क्रांतिकारी कदम

भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौताः एक क्रांतिकारी कदम

-ललित गर्ग- भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की अंतिम स्वीकृति ने न केवल वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी…

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आर्थिकी भारत एवं यूके के बीच मुक्त व्यापार समझौते से बढ़ेगा विदेशी व्यापार

भारत एवं यूके के बीच मुक्त व्यापार समझौते से बढ़ेगा विदेशी व्यापार

दिनांक 24 जुलाई 2025 को भारत एवं यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं यूके के…

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प्रवक्ता न्यूज़ भारत में तेज गति से आगे बढ़ता पर्यटन उद्योग

भारत में तेज गति से आगे बढ़ता पर्यटन उद्योग

भारत में पर्यटन उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए कई वर्षों से लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं, परंतु इस क्षेत्र में वृद्धि दर कम ही रही है। क्योंकि, भारत में पर्यटन का दायरा केवल ताजमहल, कश्मीर एवं गोवा आदि स्थलों तक ही सीमित रहा है। परंतु, हाल ही के वर्षों में धार्मिक क्षेत्रों यथा, अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, उज्जैन, हरिद्वार, उत्तराखंड में चार धाम (केदारधाम, बद्रीधाम, गंगोत्री एवं यमुनोत्री), माता वैष्णोदेवी एवं दक्षिण भारत स्थित विभिन्न मंदिरों सहित, बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं सिक्ख धर्म के कई पूजा स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं का विस्तार कर इन्हें आपस में जोड़कर पर्यटन सर्किट विकसित किए गए हैं। इससे भारत में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से आगे बढ़ा है। विभिन्न देशों से भी अब पर्यटक इन नए विकसित किए गए धार्मिक स्थलों पर भारी मात्रा में पहुंच रहे हैं। योग एवं आयुर्वेद भी हाल ही के समय में विदेशों में काफी लोकप्रिय हो गया है अतः इसकी खोज के लिए विदेशों से कई पर्यटक भारत में धार्मिक पर्यटन करने के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। इससे विदेशी पर्यटन भी देश में तेजी से वृद्धि दर्ज कर रहा है। हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में सम्पन्न हुए प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद स्थानीय कारोबारी अपना उज्जवल भविष्य देख रहे हैं। अयोध्या धार्मिक पर्यटन का हब बनाने जा रहा है तथा अब अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा। जेफरीज के अनुसार अयोध्या में प्रति वर्ष 5 करोड़ से अधिक पर्यटक आ सकते हैं।  यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही तिरुपति बालाजी, काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं। विश्व के कई अन्य देश भी धार्मिक पर्यटन के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्थाएं सफलतापूर्वक मजबूत कर रहे हैं। सऊदी अरब धार्मिक पर्यटन से प्रति वर्ष 22,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर अर्जित करता है। सऊदी अरब इस आय को आगे आने वाले समय में 35,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाना चाहता है। मक्का में प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोग पहुंचते हैं, जबकि मक्का में गैर मुस्लिम के पहुंचने पर पाबंदी है। इसी प्रकार, वेटिकन सिटी में प्रतिवर्ष 90 लाख लोग पहुंचते हैं। इस धार्मिक पर्यटन से अकेले वेटीकन सिटी को प्रतिवर्ष लगभग 32 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय होती है, और अकेले मक्का शहर को 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आमदनी होती है। अयोध्या में तो किसी भी धर्म, मत, पंथ मानने वाले नागरिकों पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं होगी। अतः अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 5 से 10 करोड़ तक प्रतिवर्ष जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार, प्रत्येक पर्यटक लगभग 6 लोगों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। इस संख्या के हिसाब से तो लाखों नए रोजगार के अवसर अयोध्या में उत्पन्न होने जा रहे हैं। अयोध्या के आसपास विकास का एक नया दौर शुरू होने जा रहा है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब अयोध्या के रूप में वेटिकन एवं मक्का का जवाब भारत में खड़ा होने जा रहा है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने भी धरातल पर बहुत कार्य सम्पन्न किया है। साथ ही, अब इसके अंतर्गत एक रामायण सर्किट रूट को भी विकसित किया जा रहा है। इस रूट पर विशेष रेलगाड़ियां भी चलाए जाने की योजना बनाई गई है। यह विशेष रेलगाड़ी 18 दिनों में 8000 किलो मीटर की यात्रा सम्पन्न करेगी, इस विशेष रेलगाड़ी के इस रेलमार्ग पर 18 स्टॉप होंगे। यह विशेष रेलमार्ग प्रभु श्रीराम से जुड़े ऐतिहासिक नगरों अयोध्या, चित्रकूट एवं छतीसगढ़ को जोड़ेगा। अयोध्या में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर वैश्विक पटल पर इस रूट को भी रखेगा। इसके पूर्व में केंद्र सरकार ने भी देश के 12 शहरों को “हृदय” योजना के अंतर्गत भारत के विरासत शहरों के तौर पर विकसित करने की घोषणा की है। ये शहर हैं, अमृतसर, द्वारका, गया, कामाख्या, कांचीपुरम, केदारनाथ, मथुरा, पुरी, वाराणसी, वेल्लांकनी, अमरावती एवं अजमेर। हृदय योजना के अंतर्गत इन शहरों का सौंद्रयीकरण किया जा रहा है ताकि इन शहरों की पुरानी विरासत को पुनर्विकसित कर पुनर्जीवित किया जा सके। इस हेतु देश में 15 धार्मिक सर्किट भी विकसित किये जा रहे हैं। “हृदय” योजना को लागू करने के बाद से केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने कई परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इनमें से अधिकतर परियोजनाओं पर काम भी प्रारम्भ हो चुका है। इन सभी योजनाओं का चयन सम्बंधित राज्य सरकारों की राय के आधार पर किया गया है।  केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा पर्यटन की गति को तेज करने के उद्देश्य से किए जा रहे उक्तवर्णित उपायों के चलते अब भारतीय पर्यटन उद्योग तेज गति से आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारतीय पर्यटन उद्योग ने वर्ष 2024 में 2,247 करोड़ अमेरिकी डॉलर का आकार ले लिया है। वर्ष 2033 तक इसके 3,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुंचने की सम्भावना है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2034 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन उद्योग का योगदान बढ़कर 43.25 लाख करोड़ रुपए का हो जाने वाला है। भारत के हवाईअड्डों पर भारी भीड़ अब आम बात हो गई है एवं हेरिटेज स्थलों पर विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ दिखाई देने लगी है। देश के नागरिक एवं अन्य देशों के पर्यटक भारत में पर्यटन के लिए घरों से बाहर निकलने लगे हैं। भारत में मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है एवं आम भारतीयों की डिसपोजेबले आय में भी वृद्धि दर्ज हुई है। अतः भारतीय नागरिक, विदेशी स्थलों पर पर्यटन के लिए जाने के स्थान पर अब भारत में ही विभिन्न स्थलों पर पर्यटन करने लगे हैं। इस बीच देश के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर आधारभूत सुविधाओं का विस्तार भी किया गया है। होटल उद्योग ने भारी मात्रा में होटलों का निर्माण कर पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध कमरों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है। रेल एवं हवाई यात्रा को बहुत सुगम बनाया गया है तथा 4 लेन से लेकर 8 लेन की सड़कों का निर्माण किया गया है, जिससे पर्यटकों के लिए यातायात की सुविधाओं में बहुत सुधार हुआ है। इससे कुल मिलाकर अब भारतीय परिवार अपने घर से बाहर भी घर जैसा वातावरण एवं आराम महसूस करने लगे है। अतः अब भारतीय परिवार वर्ष में कम से कम एक बार तो पर्यटन के लिए अपने घर से बाहर निकलने लगे हैं।   वर्ष 2023 में भारत में अंतरराष्ट्रीय हवाई उड़ानों में 124 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है और 1.92 करोड़ विदेशी पर्यटक भारत आए हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। विदेशी पर्यटन से विदेशी मुद्रा की आय 15.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 1.71 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गई है। गोवा, केरल, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पश्चिमी बंगाल एवं पंजाब में देशी पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज हुई है। अब तो उत्तर प्रदेश भी विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बनता जा रहा है। वर्ष 2022 में 31.7 करोड़ भारतीय पर्यटक उत्तर प्रदेश पहुंचे हैं। वर्ष 2023 में तमिलनाडु में 10 लाख से अधिक विदेशी पर्यटक पहुंचे हैं। वर्ष 2025 में प्रयागराज में आयोजित किए गए महाकुम्भ मेले के अवसर पर लगभग 66 करोड़ श्रद्धालु त्रिवेणी के पावन तट पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं, जो अपने आप में विश्व रिकार्ड है।    भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है एवं देश के कुल रोजगार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। देश के पर्यटन उद्योग में लगभग 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है। देश में पर्यटन उद्योग में 87 प्रतिशत हिस्सा देशी पर्यटन का है जबकि शेष 13 प्रतिशत हिस्सा विदेशी पर्यटन का है। अतः भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के उद्देश्य से केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार धार्मिक स्थलों को विकसित करने हेतु प्रयास कर रही हैं। पर्यटन उद्योग में कई प्रकार की आर्थिक गतिविधियों का समावेश रहता है। यथा, अतिथि सत्कार, परिवहन, यात्रा इंतजाम, होटल आदि। इस क्षेत्र में व्यापारियों, शिल्पकारों, दस्तकारों, संगीतकारों, कलाकारों, होटेल, वेटर, कूली, परिवहन एवं टूर आपरेटर आदि को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।  केंद्र सरकार के साथ साथ हम नागरिकों का भी कुछ कर्तव्य है कि देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हम भी कुछ कार्य करें। जैसे प्रत्येक नागरिक, देश में ही, एक वर्ष में कम से कम दो देशी पर्यटन स्थलों का दौरा अवश्य करे। विदेशों से आ रहे पर्यटकों के आदर सत्कार में कोई कमी न रखें ताकि वे अपने देश में जाकर भारत के सत्कार का गुणगान करे। आज करोड़ों की संख्या में भारतीय, विदेशों में रह रहे हैं। यदि प्रत्येक भारतीय यह प्रण करे की प्रतिवर्ष कम से कम 5 विदेशी पर्यटकों को भारत भ्रमण हेतु प्रेरणा देगा तो एक अनुमान के अनुसार विदेशी पर्यटकों की संख्या को एक वर्ष के अंदर ही दुगना किया जा सकता है।  

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राजनीति सौ वर्ष बाद भी संघ आत्ममुग्ध नहीं

सौ वर्ष बाद भी संघ आत्ममुग्ध नहीं

सचिन त्रिपाठी  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष की दहलीज पर खड़ा है। यह केवल किसी संस्था के 100 वर्ष पूरे होने की औपचारिकता नहीं है बल्कि भारत के आधुनिक इतिहास, समाज और विचारधारा की उस यात्रा की समीक्षा का अवसर है जिसमें संघ की भूमिका निर्णायक, विवादास्पद, किंतु निर्विवाद रूप से प्रभावशाली रही है। सौ वर्षों की यात्रा में संघ चाहे जितना बड़ा, शक्तिशाली और विस्तृत हुआ हो, वह आत्ममुग्ध नहीं हुआ है। यह वाक्य एक प्रशंसा नहीं, बल्कि एक वैचारिक अवलोकन है। संघ की मूल प्रवृत्ति आत्मप्रशंसा या आत्ममुग्धता नहीं, आत्मसाधना है। आज की दुनिया में जहां संस्थाएं कुछ दशकों के भीतर ही ‘इमेज ब्रांडिंग’, ‘स्मार्ट मैसेजिंग’ और ‘गौरवोत्सव’ के चक्कर में अपना आत्मावलोकन खो बैठती हैं, वहीं संघ अपने आलोचकों की भी उतनी ही सावधानी से सुनता है जितनी श्रद्धा से स्वयंसेवकों की बात करता है। यह गुण उसे ‘संगठन’ से ‘संघ’ बनाता है। 1930 के दशक में जब यह ‘आंदोलन’ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समय में पनपा, तब इसके सामने राष्ट्रवाद को व्यावहारिक सामाजिक जीवन में उतारने की चुनौती थी। आज, जब वह राष्ट्र के नीति-निर्धारकों, शैक्षणिक परिसरों, मीडिया विमर्शों और वैश्विक मंचों पर प्रभावी भूमिका में है, तब भी वह सतत आत्मसमीक्षा करता रहा है। संघ ने कभी अपने सौ साल के संघर्ष को ‘विजय यात्रा’ की तरह प्रस्तुत नहीं किया। उसका कार्यकर्ता आज भी स्वयं को ‘स्वयंसेवक’ ही मानता है, नायक नहीं।  यह आत्ममुग्ध न होने का भाव उसकी कार्यपद्धति में स्पष्ट झलकता है। संघ कार्यालय आज भी उतने ही साधारण हैं जैसे 1925 में नागपुर में थे। किसी भव्यता, बैनर या नारेबाजी की ज़रूरत उसे नहीं लगती। संघ शिक्षा वर्गों, शाखाओं और प्रकल्पों के ज़रिये समाज निर्माण में रमा रहता है। वह जानता है कि दिखावे से नहीं, चरित्र से परिवर्तन आता है। संघ के आलोचकों ने अक्सर उसे ‘पुरुषप्रधान’, ‘हिंदू केंद्रित’, ‘गुप्तवादी’ या ‘राजनीतिक आकांक्षाओं से प्रेरित’ संस्था कहा है किंतु आत्ममुग्धता कभी उसकी आलोचना नहीं रही। आत्ममुग्धता वह होती है जब कोई संस्था अपनी ही छाया से अभिभूत हो जाए। संघ इसके ठीक उलट, अपनी सीमाओं का निरंतर आंकलन करता रहा है। चाहे वह सामाजिक समरसता के क्षेत्र में दलितों के लिए कार्य हो, महिलाओं की भूमिका पर विचार हो या मुस्लिम समाज से संवाद की नई पहल,  संघ हमेशा इन विषयों पर आत्मसंवाद करता रहा है। सौ वर्षों की इस यात्रा में संघ को बहुत कुछ प्राप्त हुआ है। लाखों स्वयंसेवक, हजारों संगठन, राजनीतिक शीर्ष, शैक्षणिक नेटवर्क और सांस्कृतिक प्रभाव। फिर भी, संघ अपने आपको ‘समाप्त यात्रा’ नहीं मानता। उसकी दृष्टि में यह सब ‘कार्य विस्तार का माध्यम है, लक्ष्य नहीं।’ यह विचार ही उसे आत्ममुग्ध होने से रोकता है। संघ का सबसे बड़ा सामाजिक योगदान यह रहा है कि उसने राष्ट्रीय चेतना को केवल भाषणों में नहीं, जीवन में उतारा। उसने स्वयंसेवक को मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या किसी भी पूजा पद्धति से ऊपर एक भारतीय के रूप में गढ़ा। संघ की आत्मा उसके शाखा जीवन में बसती है जहां न कोई टीवी कैमरा होता है, न कोई उत्सव। वहां केवल साधना होती है तन, मन और राष्ट्र की। आज जब वह शताब्दी की दहलीज़ पर खड़ा है, तो आत्ममुग्ध होने का अवसर उसके पास भरपूर है लेकिन वह नहीं है। न तो संघ ने अपनी 100 साल की यात्रा को कोई भव्य उत्सव बनाया, न ही मीडिया कैम्पेन। वह जानता है कि ‘कार्य की पूजा’ ही उसका मूल है, न कि प्रचार की आरती। यह उस गहराई का संकेत है, जो भारत के पारंपरिक ज्ञान और तपस्या की विरासत से जुड़ी है। संघ का यह आत्मसंयम ही उसे दीर्घकालिक बनाता है। वह जानता है कि भारत के पुनर्जागरण की यात्रा केवल राजनीतिक सत्ता या सामाजिक संगठन से नहीं चलेगी, यह एक आत्मिक संघर्ष भी है और यह आत्मिकता, आत्ममुग्धता की दुश्मन होती है। शायद इसीलिए, जब संघ अपने 100वें वर्ष में प्रवेश करता है तो वह कोई घोषणा नहीं करता, बल्कि एक मौन साधक की तरह समाज के साथ चल पड़ता है “बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे।” संघ आत्ममुग्ध नहीं है क्योंकि वह जानता है कि सच्चा राष्ट्रनिर्माण आरंभिक होता है, समाप्त नहीं। वह जानता है कि समाज को हर दिन एक नई शाखा, एक नई चेतना और एक नया संकल्प चाहिए। इसलिए सौ वर्षों बाद भी वह रास्ते में है, मंच पर नहीं। इसी में उसकी मौलिकता है। इसी में उसका तप है। इसी में उसकी भारतीयता है। सचिन त्रिपाठी 

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