राजनीति इजराइल-ईरान युद्ध में कौन जीता, कौन हारा

इजराइल-ईरान युद्ध में कौन जीता, कौन हारा

राजेश कुमार पासी इजराइल और ईरान के बीच युद्ध विराम हो गया है लेकिन इस पर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल तो इस युद्ध…

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मनोरंजन हिंदी फिल्मी गीतों में व्यंग्य

हिंदी फिल्मी गीतों में व्यंग्य

विवेक रंजन श्रीवास्तव  हिंदी फिल्मी गीतों में व्यंग्य एक सशक्त माध्यम रहा है जिसने सामाजिक विसंगतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार और मानवीय दुर्बलताओं को बिना कटुता  तीखेपन से उघाड़ा है। ये गीत मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक दर्पण का काम करते हैं जो समाज के अंतर्विरोधों को संगीत और शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म पड़ोसन (1968) का गीत “एक चतुर नार करके सिंगार, मेरे मन के द्वार ये घुसत जात…” राजेंद्र कृष्ण द्वारा रचित और किशोर कुमार व मेहमूद द्वारा गाया गया यह गीत नारी चतुराई और पुरुष अहं पर करारा व्यंग्य करता है। इसमें दक्षिण भारतीय लहजे का प्रयोग हास्य के साथ-साथ सांस्कृतिक रूढ़ियों को भी चिह्नित करता है ।  फिल्म प्यासा (1957) का गीत “सर जो तेरा चकराए, या दिल डूबा जाए…” शकील बदायूंनी के बोल और मोहम्मद रफी की आवाज में जॉनी वॉकर पर फिल्माया गया था। यह गीत शहरी जीवन की अवसादग्रस्त दिनचर्या और तनावमुक्ति के लिए तेल मालिश (चंपी) पर निर्भरता का मखौल बनाकर हास्य उत्पन्न करता है। जीवन की जटिल समस्याओं का समाधान एक चंपी में खोजा जा रहा है जो निजी कुंठाओं से भागने का प्रतीक बन जाता है. यह व्यंग्य हास्य मिश्रित है। काला बाज़ार (1989) का गीत “पैसा बोलता है…” कादर खान पर फिल्माया गया जो धन के अमानवीय प्रभुत्व को दर्शाता है। नितिन मुकेश की आवाज में यह गीत पूँजीवादी समाज में नैतिक मूल्यों के पतन की ओर इशारा करता है, जहाँ पैसा हर रिश्ते और सिद्धांत पर हावी है ।  कॉमेडियन महमूद की अदाकारी ने कुंवारा बाप  (1974) के गीत “सज रही गली मेरी माँ चुनरी गोते में…” को यादगार बनाया। यह गीत हिजड़ों के माध्यम से समलैंगिकता और पारंपरिक पितृसत्ता पर प्रहार करता है। बोल “अम्मा तेरे मुन्ने की गजब है बात…” लालन-पालन में पुरुष की भूमिका को चुनौती देते हैं, जो उस दौर में एक साहसिक विषय था ।  1950-80 के दशक के स्वर्ण युग में कॉमेडियन्स ने व्यंग्य को नई ऊँचाइयाँ दीं। जॉनी वॉकर की विशिष्ट अभिव्यक्ति, महमूद का स्लैपस्टिक हास्य और किशोर कुमार का संगीत के साथ व्यंग्य का संयोजन, सभी ने गीतों को सामाजिक टिप्पणी का माध्यम बनाया। फिल्म हाफ टिकट (1962) का गीत “झूम झूम कव्वा भी ढोलक बजाये…” या गुमनाम (1965) का “हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं…” जैसे गीतों ने रंगभेद और वर्ग संघर्ष को हल्के अंदाज में प्रस्तुत किया था ।  साहित्य और फिल्मी गीतों के बीच का सामंजस्य भी रोचक रहा है। गीतकारों ने साहित्यिक रचनाओं को फिल्मों में लोकप्रिय बनाया। गोपाल दास ‘नीरज’ ने मेरा नाम जोकर (1970) के गीत “ऐ भाई ज़रा देख के चलो…” को अपनी पुरानी कविता “राजपथ” से अनुकूलित किया था, जो मानवीय अहंकार पर व्यंग्य था । इसी प्रकार, रघुवीर सहाय की कविता “बरसे घन सारी रात…” को फिल्म तरंग (1984) में लिया गया, जो साहित्य और सिनेमा के बीच सेतु बना ।  व्यंग्य के सम्पुट के साथ इस तरह के फिल्मी गीतों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। “पैसा बोलता है…” जैसे गीत आज के भौतिकवादी युग में और भी सटीक लगते हैं। ये गीत सामाजिक विडंबनाओं को उजागर करने के साथ-साथ श्रोताओं को हँसाते-गुदगुदाते हुए विचार करने को प्रेरित करते हैं, जो हिंदी सिनेमा की सांस्कृतिक धरोहर का अमर हिस्सा हैं । विवेक रंजन श्रीवास्तव

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धूम 4′ में नजर आएंगी श्रद्धा कपूर?

सुभाष शिरढोनकर फिल्‍म ‘स्त्री 2’ की रिकार्ड तोड़ कामयाबी के बाद एक्‍ट्रेस श्रद्धा कपूर लगातार चर्चाओं में बनी हुई हैं। उनकी यह फिल्‍म साल 2024 की सबसे बड़ी…

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मनोरंजन सिचुएशनशिप: रिश्ता जिसमें किन्तु-परन्तु नहीं

सिचुएशनशिप: रिश्ता जिसमें किन्तु-परन्तु नहीं

सचिन त्रिपाठी प्रेम संबंधों की परिभाषाएं समय के साथ बदलती रही हैं। पहले ‘प्रेम’ एक स्थायी, सामाजिक और पारिवारिक स्वीकृति वाला संबंध था। फिर प्रेम विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप और अब ‘सिचुएशनशिप’ जैसे नए रूप सामने आए हैं। सिचुएशनशिप कोई पारंपरिक प्रेम संबंध नहीं है, न ही यह पूर्णतः मित्रता है। यह उन दो लोगों के बीच का अनिश्चित-सा, पर भावनात्मक रूप से गहरा जुड़ा हुआ रिश्ता है जिसमें स्पष्टता की बजाय धुंध, स्थायित्व की जगह अस्थाई होना और भरोसे की जगह संभावनाएं होती हैं लेकिन क्या सिचुएशनशिप सिर्फ भ्रम है? या यह आज की पीढ़ी का आत्म-स्वतंत्र और यथार्थवादी प्रेम है? इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए हमें इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को गहराई से समझना होगा। आज के युवा स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानते हैं चाहे वह करियर हो, स्थान चयन हो या रिश्ते। सिचुएशनशिप इस आज़ादी को जगह देता है। इसमें दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की कंपनी पसंद करते हैं, लेकिन अपने जीवन के निर्णय स्वतंत्र रूप से लेते हैं। कोई सामाजिक दबाव नहीं, न ही विवाह का अनावश्यक तनाव। यह रिश्ता उन्हें भावनात्मक संबल देता है जो अभी जीवन में स्थायित्व के लिए तैयार नहीं हैं। युवा जो पढ़ाई, करियर या निजी हीलिंग के दौर से गुजर रहे हैं, वे किसी गंभीर संबंध में बंधे बिना भी साथी के साथ जुड़ सकते हैं। अक्सर सिचुएशनशिप में दोनों पक्ष शुरू से स्पष्ट होते हैं कि वे अभी किसी परिभाषित रिश्ते में नहीं हैं। यह पारदर्शिता कई बार उस झूठ और छल से बेहतर होती है जो परंपरागत प्रेम संबंधों में दिखावे के रूप में होता है। आज की पीढ़ी अपने करियर और आत्म-विकास को पहले स्थान पर रखती है। विवाह या रिश्तों की स्थायित्वपूर्ण जिम्मेदारियों को टालते हुए भी वे एक भावनात्मक सहारा चाहते हैं। सिचुएशनशिप इस जरूरत को पूरा करता है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसमें न कोई वचन होता है, न कोई भविष्य की रूपरेखा। कई बार एक व्यक्ति अधिक जुड़ जाता है जबकि दूसरा असमंजस में रहता है। इससे भावनात्मक असुरक्षा, ईर्ष्या और दुख जन्म लेते हैं। सिचुएशनशिप में वर्षों निकल जाते हैं, और जब अंत में कोई एक व्यक्ति दूर चला जाए तो दूसरे के लिए यह गहरे आघात का कारण बनता है। कई युवाओं के लिए यह एक ‘इमोशनल इंवेस्टमेंट’ होता है जिसकी कोई निश्चित परिणति नहीं होती। भले ही शहरी युवा वर्ग इसे स्वीकार कर चुका हो, लेकिन सामाजिक ढांचे में यह अब भी अजीब या ‘अधूरा’ माना जाता है। परिवार, समाज और रिश्तेदारों के सवालों का उत्तर नहीं होता: ‘क्या चल रहा है?’ ‘क्या रिश्ता है?’ “कब शादी करोगे?’ बहुत से लोग सिचुएशनशिप की आड़ में किसी को ‘टाइम पास’ समझने लगते हैं। वे यह रिश्ता तब तक बनाए रखते हैं जब तक कोई बेहतर विकल्प न मिल जाए। इसमें भावनात्मक धोखा मिलने की संभावना बहुत अधिक रहती है। भारत में मेट्रो शहरों, विश्वविद्यालय परिसरों और मल्टीनेशनल कंपनियों के युवाओं में यह रिश्ता तेजी से बढ़ रहा है। टिंडर, बम्बल जैसे डेटिंग ऐप्स पर कई युवा अब ‘सिचुएशनशिप’ को रिश्ता मानते हैं। 2024 के एक ऑनलाइन सर्वे के अनुसार, 18 से 30 वर्ष की आयु के 42% युवाओं ने स्वीकार किया कि वे ‘डेट कर रहे हैं पर कमिटेड नहीं हैं’। इसका अर्थ स्पष्ट है; रिश्तों की दिशा बदल रही है। हाल ही में एक सोशल मीडिया घटना वायरल हुई जहां एक युवती ने ‘ब्रेकअप नहीं हुआ पर अब हम स्ट्रेंजर हैं’ जैसी पोस्ट लिखी। इसने हज़ारों युवाओं के दिल की आवाज़ को शब्द दे दिए। क्या यह संबंध भविष्य है? इसका उत्तर ‘हां’ और ‘ना’ दोनों हो सकता है। हां, क्योंकि यह उन युवाओं के लिए एक विकल्प है जो फिलहाल स्थायित्व नहीं चाहते, पर अकेलेपन से जूझ रहे हैं। ना, क्योंकि यह संबंध देर-सवेर किसी एक को पीड़ा जरूर देता है, क्योंकि इंसान का मन किसी न किसी बिंदु पर स्पष्टता और सुरक्षा चाहता है। सिचुएशनशिप न तो पूर्णतः अनुचित है, न ही पूर्णतः आदर्श। यह उस दौर की उपज है जिसमें हम प्रेम को परिभाषाओं की कैद से बाहर निकालकर उसके अनुभव की ओर ले जा रहे हैं। पर यह भी सच है कि प्रेम की सबसे मौलिक आवश्यकता ‘स्पष्टता’ है। जिसकी कमी इस रिश्ते को एक ‘चुभता हुआ धुंधलका’ बना देती है। इसलिए यह जरूरी है कि यदि आप सिचुएशनशिप में हैं या उसमें जाने की सोच रहे हैं, तो ईमानदारी, संवाद और सीमाओं की स्पष्टता को सर्वोपरि रखें वरना यह रिश्ता, जिसमें कोई ‘किन्तु-परन्तु’  नहीं होना चाहिए, खुद एक अंतहीन ‘किन्तु-परन्तु’ बन सकता है। सचिन त्रिपाठी

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खान-पान आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है!

आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है!

क्या आप जानते हैं कि आपका सादा खाना भी काफ़ी ‘ओइली’ है?नहीं, हम घी या सरसों तेल की बात नहीं कर रहे—हम बात कर रहे हैं उस कच्चे…

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राजनीति आपातकाल में प्रतिबंध के बावजूद और सशक्त होकर उभरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

आपातकाल में प्रतिबंध के बावजूद और सशक्त होकर उभरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

सुशील कुमार ‘ नवीन ‘  आपातकाल नाम सुनते ही शरीर में एक अलग ही झनझनाहट शुरू हो जाती है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे चर्चित और विवादित…

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राजनीति वैश्विक शांति और वर्तमान युद्ध परिप्रेक्ष्य

वैश्विक शांति और वर्तमान युद्ध परिप्रेक्ष्य

विवेक रंजन श्रीवास्तव शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् एक नए शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था के उदय की आशा थी परन्तु इक्कीसवीं सदी का तीसरा दशक…

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राजनीति क्या भारत सिंधु जल समझौता रद्द करने वाला है

क्या भारत सिंधु जल समझौता रद्द करने वाला है

राजेश कुमार पासी  बार-बार मोदी सरकार की तरफ से यह बयान आता रहता है कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है, सिर्फ उसे रोका गया है । सवाल…

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लेख नशा मुक्त भारत बनाने की बड़ी चुनौती

नशा मुक्त भारत बनाने की बड़ी चुनौती

अंतर्राष्ट्रीय नशा एवं मादक पदार्थ निषेध दिवस (26 जून) पर विशेषचिंता का सबब बनता युवा सोच पर नशे का ग्रहण– योगेश कुमार गोयलविश्व के अनेक…

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राजनीति परमाणु हथियारों के बहाने किए युद्ध का परिणाम

परमाणु हथियारों के बहाने किए युद्ध का परिणाम

संदर्भः- ईरान-इजरायल के बीच युद्ध विरामप्रमोद भार्गवईरान-इजरायल के बीच 12 दिन चला युद्ध बीच में अमेरिका द्वारा ईरान के एक साथ तीन परमाणु ठिकानों पर…

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कला-संस्कृति उत्तराखंड के अनजाने पर्यटन स्थल 

उत्तराखंड के अनजाने पर्यटन स्थल 

डा. घनश्याम बादल यदि पहाड़ों का सौन्दर्य देखने की ललक हो तो उत्तराखंड चलें आएं. इससे बेहतर जगह आपको शायद ही अन्यत्र मिले । उत्तराखंड ऐसा अकेला…

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राजनीति ईरान-इस्राइल संघर्ष में अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र अपनी जिम्मेदारियों को समझें

ईरान-इस्राइल संघर्ष में अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र अपनी जिम्मेदारियों को समझें

ईरान-इस्राइल के बीच युद्ध के कारण पश्चिम एशिया में संकट के बादल मंडरा रहे हैं और विश्व तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा नजर…

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