प्रवक्ता न्यूज़ उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर

उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर

‘ पारश्य ‘ देश ईरान कभी भारत का एक अंग रहा।पारसी लोगों का मूल पूर्वज अपना भारत देश रहा।। ‘ आर्यान’ प्रांत ईरान बना, वैदिक…

Read more
कविता कर्म

कर्म

सौ वर्षों की बातें सोचें,तब तो व्यर्थ आज की बारिश।आज धरा का रूप अलग है,कल सूरज सब जल हर लेगा।मिट्टी तो कल सूख जाएगी,मेघ आज…

Read more
कविता लोरी

लोरी

आ जा ओ निंदिया रानी, तुझको बुलाऊं।काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं। माता अब बुढ़ी मेरी, गा नहीं पायेगी।अपने आंचल में मुझको, कैसे सुलाएगी।तन्हा-तन्हा-सा…

Read more
विविधा गले में डंक, दिल में सन्नाटा: मधुमक्खी से मृत्यु और मानव की नाजुकता

गले में डंक, दिल में सन्नाटा: मधुमक्खी से मृत्यु और मानव की नाजुकता

लंदन में उद्योगपति संजय कपूर की मृत्यु एक मधुमक्खी के डंक से हुई – यह घटना एक साधारण प्राणी द्वारा जीवन लीने की असाधारण त्रासदी…

Read more
राजनीति संकल्प से सिद्धि तक 11 बेमिसाल वर्ष

संकल्प से सिद्धि तक 11 बेमिसाल वर्ष

डॉ प्रदीप कुमार वर्मा ‘पहले कार्यकाल में लोग मुझे समझने की कोशिश कर रहे थे और मैं दिल्ली को समझने की कोशिश कर रहा था।…

Read more
राजनीति गर्व के ग्यारह साल: मोदी सरकार की स्वर्णिम यात्रा

गर्व के ग्यारह साल: मोदी सरकार की स्वर्णिम यात्रा

विष्णु दयाल राम मोदी सरकार के उपलब्धियों से भरे 11 साल पूरे होने पर मुझे इस बात का गर्व है कि मैं भी बतौर सिपाही…

Read more
लेख वे स्त्रियां

वे स्त्रियां

प्रभुनाथ शुक्ल वे सिर्फ स्त्रियां हैंनहीं वे जीवन की चकबेनियांवे जब चलती हैं तो गढ़ती हैंएक परिवार, एक समाज और एक परिवेशवे समर्पित और संघर्षशील…

Read more
लेख पिता-पुत्र का रिश्ता बेजोड़ एवं विलक्षण है

पिता-पुत्र का रिश्ता बेजोड़ एवं विलक्षण है

अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस- 15 जून, 2025– ललित गर्ग- भारतीय संस्कृति में पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा माना गया है, पिता की धर्म है,…

Read more
राजनीति गोस्वामी समाज क्यों कर रहा है ठाकुर बांके बिहारी कॉरिडोर एवं सरकारी न्यास का विरोध?

गोस्वामी समाज क्यों कर रहा है ठाकुर बांके बिहारी कॉरिडोर एवं सरकारी न्यास का विरोध?

पूरन चन्द्र शर्मा बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर पिछले कई सालों से जमकर विरोध हो रहा हैl विरोध करने वाले लोग मंदिर में पूजा-पाठ करने वाला गोस्वामी समाज हैl उन्होंने सख्त चेतावनी दी है कि अगर कॉरिडोर बना तो वे लोग अपने ठाकुरजी को लेकर यहां से पलायन कर जाएंगेl गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है, फिर इसमें सरकार दखल क्यों दे रही हैl उन्होंने कॉरिडोर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाए जाने को लेकर सरकार की तरफ से जारी अध्यादेश को मानने से ही इनकार कर दिया l  वृंदावन के मूल स्वरूप के साथ खिलवाड़ करने से कुंज गलियां नष्ट हो जाएंगी और वृंदावन की संस्कृति भी खत्म होगी l  बांके बिहारी लाल मंदिर के सेवायत आचार्य आनंद बल्लभ गोस्वामी का कहना है कि ठाकुर बांके बिहारी लाल जी आज भी कुंज गली होते हुए निधिवन जाते हैं, अतः उनके मार्ग को नष्ट करने का दुस्साहस न करेंl    इसके अलावा दुकानें हटाए जाने से  रोजी- रोटी पर असर पड़ेगा तथा मनमाने तरीके से दुकानों के टेंडर पास किए जाएंगेl क्यों है कॉरिडोर की जरूरत?*  दरअसल वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. अगर वीकेंड हो या फिर नए नया साल या होली या रंग भरनी एकादशी तो भक्तों की संख्या लाख के करीब पहुंच जाती है. मंदिर में जाने के लिए रास्ता छोटा होने की वजह से व्यवस्था बिगड़ जाती है. दरअसल मंदिर तक कई सौ साल पुरानी कुंज गलियों से होकर गुजरना पड़ता है. कई बार भीड़ में लोगों के दबने की खबरें सामने आती है. इसीलिए सरकार चाहती है कि व्यवस्था इस तरह की हो जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो और ज्यादा से ज्यादा लोग दर्शन के लिए आ सकें.  कॉरिडोर बनाने की आवश्यकता ही नहीं*  आचार्य आनंद वल्लभ गोस्वामी का मानना है कि इस समय बांके बिहारी जी मंदिर के जितने दर्शनाथी आ रहे हैं, इससे तीन गुना से अधिक दर्शनाथी आ सकते हैंl इतनी जगह मंदिर के पास पूरे परिसर में है जिसमें भोग भंडार के बगल का स्थान, इसके बाद पाठशाला तथा पोस्ट ऑफिस एवं बांके बिहारी जी का चबूतरा सब मिलकर के यदि इतना ही परिसर को चौड़ा कर दिया जाए तो एक बार में लगभग 25000 यात्री समा सकते हैं। इसके अलावा इस्कॉन के बगल वाला परिक्रमा मार्ग को कम से कम फोर लेन बना दिया जाए तथा एक्सप्रेस वे तक सीधे नैशनल हाईवे- 2 से जोड़ दिया जाए तो भीड़ जगह-जगह बट जाएगी। थोड़ा-थोड़ा अतिक्रमण हट जाए एवं ई रिक्शा स्टैंड, गाड़ी पार्किंग, जगह-जगह शौचालय आदि बन जाए तो  कॉरिडोर बनाने  की आवश्यकता ही नहीं होगी. इससे लोगों को परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा तथा जमीन अधिग्रहण के समय दिया जाने वाला मुआवजा भी नहीं देना होगा. इससे सरकार को राजस्व की बचत होगी एवं वृन्दावन का वास्तविक स्वरूप भी बना रहेगाl   क्या बांके बिहार मंदिर निजी संपत्ति नहीं?  गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है. लेकिन रेवेन्यू डॉक्युमेंट्स के मुताबिक ऐसा नहीं है. इन दस्तावेजों में यह जमीन मंदिर के नाम से है ही नहीं बल्कि गोविंददेव के नाम से दर्ज है. कॉरिडोर बनाने के लिए मंदिर के पास 100 दुकानों और 300 घरों का अधिग्रहण किया जाना है. हालांकि सरकार इसके लिए उचित मुआवजा देगी. लेकिन लोग इसके लिए भी तैयार नहीं हैं.  5 एकड़ जमीन पर बनेगा कॉरिडोर*:  बता दें कि बांके बिहारी मंदिर के पास करीब 5 एकड़ जमीन पर कॉरिडोर बनना है. मंदिर तक जाने के लिए तीन रास्ते बनाए जाएंगे. श्रद्धालुओं को वाहन खड़ा करने में परेशानी न हो इसके लिए 37 हजार वर्ग मीटर में पार्किंग बनाई जानी है. हालांकि कॉरिडोर इस तरह से बनाया जाना है जिससे मंदिर का मूल स्वरूप पहले जैसा ही रहे. कॉरिडोर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका :*  देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में 19 मई को एक याचिका दायर कर कहा था कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का कार्यान्वयन अव्यावहारिक है और मंदिर के कामकाज से ऐतिहासिक और परिचालन रूप से जुड़े लोगों की भागीदारी के बिना मंदिर परिसर के पुनर्विकास का कोई भी प्रयास प्रशासनिक अराजकता का कारण बन सकता है. उन्होंने अदालत के आदेश में संशोधन किए जाने की अपील की थी. दरअसल कोर्ट ने 15 मई को बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को विकसित करने की यूपी सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था.  बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की तरफ से दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के 8 नवंबर, 2023 के उस आदेश को 15 मई को संशोधित किया था जिसमें राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था लेकिन राज्य को मंदिर की निधि का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था. याचिका में क्या है गोस्वामी का दावा?*  वहीं देवेंद्र नाथ गोस्वामी की याचिका में दावा किया गया था कि कॉरिडोर बनाए जाने से मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र के बदलने की आशंका है जिसका गहरा ऐतिहासिक और भक्ति संबंधी महत्व है. बता दें कि देवेंद्र नाथ मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं और उनका परिवार पिछले 500 सालों  से मंदिर का प्रबंधन कर रहा है. मंदिर का ट्रस्ट पहले से बना हुआ है. फिर नए ट्रस्ट बनाने की आवश्यकता क्यों ? बाहरी लोग न्यास में शामिल होने से उनका अनावश्यक हस्तक्षेप होगा जिसके चलते मंदिर के संचालन में परेशानी आयेगी सैकड़ों सालों से चली आ रही ठाकुर बांके बिहारी जी की पूजा- अर्चना में बाधा डाली जाएगी  जिसे हम किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते हैंl सरकार जनहित के लिए जो भी कार्य करेगी उस में हमारा पूरा सहयोग एवं समर्थन रहेगा बशर्ते  वृन्दावन की प्राचीन संस्कृति, परंपरा एवं इसके पुराने स्वरूप में किसी प्रकार की छेड़-छाड़ न होl यहां के दुकानदारों को भी आशंका है कि जिस तरह से अयोध्या में जिस दुकान का मुआवजा 1.5 लाख रुपये मिला , उसी साईज की दुकानों को 15 से 20 लाख रुपये में बेचा गया l लोगों को आशंका है कि बृजवासियों की अधिगृहीत जमीन का एक हिस्सा माँल एवं आलीशान  होटल बनाने के लिए पूंजीपतियों को न बेच दें l यदि सरकार ऐसा करती है तो बृजवासी अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगेंगेl  अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि गोस्वामी समाज एवं स्थानीय लोगों को भरोसा दिलाए कि किसी को कोई परेशानी नहीं होगी तथा काम में ईमानदारी एवं पारदर्शिता बरती जाएगीl…

Read more
राजनीति भारत में इस्लामोफोबिया के प्रचार में लगा पश्चिमी जमात, हकीकत के उलट है वास्तविकता  

भारत में इस्लामोफोबिया के प्रचार में लगा पश्चिमी जमात, हकीकत के उलट है वास्तविकता  

गौतम चौधरी  अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों और अधिवक्ताओं के समूहों की ओर से लगाए जा रहे आरोपों की बढ़ती बाढ़ ने भारत को वैश्विक स्तर…

Read more
राजनीति भारत की ‘ मेक इन इंडिया ‘ पहल को मिलेगी मजबूती

भारत की ‘ मेक इन इंडिया ‘ पहल को मिलेगी मजबूती

संजय सिन्हा आखिरकार अमेरिका और चीन के बीच व्यापार समझौते को लेकर इंतजार खत्म हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने  घोषणा की कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार समझौता लगभग पूरा हो गया है। अब बस उनकी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मंजूरी बाकी है। ट्रंप ने यह भी कहा कि अमेरिका चीन पर 55% टैरिफ लगाएगा। वहीं, चीन 10% टैरिफ लगाएगा। इस समझौते के तहत अमेरिका को चीन से मैग्नेट और रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) मिलेंगे। समझौते में यह भी शामिल है कि चीनी छात्र अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अपनी शिक्षा जारी रख सकेंगे। यह ट्रंप की उस नीति से अलग है जिसमें उन्होंने चीनी नागरिकों के अमेरिकी शिक्षण संस्थानों में आने पर रोक लगा दी थी। ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर लिखा, ‘चीन के साथ हमारा समझौता पूरा हो गया है। अब बस राष्ट्रपति शी और मेरी अंतिम मंजूरी बाकी है। चीन की तरफ से पूरे मैग्नेट और जरूरी दुर्लभ खनिज दिए जाएंगे। इसी तरह, हम चीन को वो देंगे जिस पर सहमति हुई है, जिसमें चीनी छात्रों को हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने की अनुमति देना शामिल है (यह हमेशा से मुझे अच्छा लगता रहा है!)। हमें कुल 55% टैरिफ मिल रहा है, चीन को 10% मिल रहा है। हमारे रिश्ते बहुत अच्छे हैं! इस मामले पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद!’ एक अन्य पोस्ट में ट्रंप ने कहा, ‘चीन के बारे में एक और बात, राष्ट्रपति शी और मैं मिलकर चीन को अमेरिकी व्यापार के लिए खोलने का काम करेंगे। यह दोनों देशों के लिए बहुत बड़ी जीत होगी!!!।’व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि अमेरिका-चीन व्यापार समझौते के तहत अमेरिका के पास चीनी आयात पर 55% टैरिफ लगाने का अधिकार है। इसमें 10% का मूल ‘रेसिप्रोकल’ टैरिफ, फेंटनिल से संबंधित चिंताओं के लिए अतिरिक्त 20% और मौजूदा टैरिफ का 25% जारी रहना शामिल है। अधिकारी के अनुसार, चीन अमेरिकी आयात पर 10% शुल्क लगाएगा। लंदन में हुई बातचीत के बाद अमेरिका और चीन के प्रतिनिधियों ने अपने व्यापार समझौते को बहाल करने और रेयर अर्थ एक्‍सपोर्ट पर चीनी प्रतिबंधों को खत्म करने के लिए एक समझौते पर सहमति जताई थी। अमेरिका के वाणिज्य सचिव हावर्ड लुट्निक ने लंदन में दो दिनों की कड़ी बातचीत के बाद पत्रकारों से कहा कि यह समझौता पिछले महीने जिनेवा में हुए शुरुआती समझौते को और मजबूत करता है। उस समझौते का उद्देश्य उन भारी जवाबी टैरिफ को कम करना था जो तीन अंकों तक बढ़ गए थे।डोनाल्ड ट्रंप की ओर से घोषित अमेरिका-चीन व्यापार समझौते का भारत के लिए काफी मायने हैं। इसके अच्छे और कुछ चुनौतीपूर्ण दोनों पहलू हैं। इन पर भारत को विशेष ध्यान देना होगा।आपको बता दूं कि जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा था तो अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ लगाए थे। इससे भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिला था क्योंकि उनके उत्पाद चीनी उत्पादों की तुलना में सस्ते पड़ते थे। इस नए समझौते से अगर अमेरिका चीनी उत्पादों पर टैरिफ कम करता है तो यह भारत के लिए वह ‘टैरिफ आर्बिट्रेज’कम कर देगा। इसका मतलब है कि चीनी सामान फिर से अमेरिकी बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। इससे भारतीय निर्यातकों के लिए कुछ क्षेत्रों में चुनौतियां बढ़ेंगी, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और ऑटो कंपोनेंट्स जैसे क्षेत्रों में। व्यापार युद्ध के दौरान कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से बाहर निकलकर अपने मैन्यूफैक्चिरंग आधार को अन्य देशों में ट्रांसफर करने पर विचार किया था। भारत एक आकर्षक विकल्प के रूप में उभरा था। अगर अमेरिका-चीन व्यापार तनाव कम होता है और टैरिफ घटते हैं तो चीन से मैन्यूफैक्चरिंग के ट्रांसफर की यह रफ्तार धीमी हो सकती है या कुछ निवेश वापस चीन में जा सकता है। इससे ‘दुनिया की फैक्ट्री’ बनने की भारत की महत्वाकांक्षा पर कुछ हद तक असर पड़ सकता है।ग्लोबल सप्लाई में ‘चीन-प्लस-वन’ रणनीति को अपनाने की बात हो रही थी, जहां कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अन्य देशों में भी उत्पादन आधार स्थापित कर रही थीं। समझौता होने से इस पुनर्गठन की रफ्तार धीमी हो सकती है, क्योंकि कंपनियों को चीन में वापस निवेश करने का प्रोत्साहन मिल सकता है। अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। उनके बीच व्यापार तनाव में कमी आने से वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था में अधिक स्थिरता आएगी। यह वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता को कम करेगा। इससे भारत जैसे व्यापार-निर्भर देशों को भी लाभ होगा।ग्लोबल आर्थिक मंदी की आशंका कम होने से IT और मेटल जैसे क्षेत्रों को लाभ हो सकता है। उदाहरण के लिए अमेरिकी कंपनियों की ओर से चीनी तकनीक पर निर्भरता कम करने से भारतीय IT फर्मों को अधिक काम मिल सकता है। मेटल की मांग भी बढ़ सकती है।यह समझौता भारत को अपनी आंतरिक प्रतिस्पर्धात्मकता और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को मजबूत करने के लिए प्रेरित करेगा। भारत को केवल टैरिफ लाभों पर निर्भर रहने की बजाय अपनी उत्पादन क्षमता, गुणवत्ता और लागत-दक्षता में सुधार करना होगा। सरकार की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं और कुशल कार्यबल भारत को एक लचीला और आकर्षक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने में मदद कर सकते हैं। इस घटनाक्रम के बाद भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि उसे अमेरिका के साथ जल्द से जल्द एक अनुकूल द्विपक्षीय व्यापार समझौता करना चाहिए। अगर भारत अमेरिका के साथ एक मजबूत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर लेता है तो वह चीन पर टैरिफ लाभ को बरकरार और अपनी निर्यात बढ़ोतरी की रफ्तार को बनाए रख पाएगा।उल्लेखनीय है कि हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच जेनेवा में बैठक हुई थी। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे पर लगाए गए टैरिफ को 90 दिनों के लिए घटा दिया था। अमेरिका ने चीनी सामान पर टैरिफ को 145 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दिया था। वहीं, चीन ने भी अमेरिकी सामान पर अपने करों को 125 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया था।  संजय सिन्हा

Read more
राजनीति मोदी शासन: एक रुद्र बनाम रौद्र रूप के सियासी मायने

मोदी शासन: एक रुद्र बनाम रौद्र रूप के सियासी मायने

कमलेश पांडेय सदैव लोककल्याणकारी देवाधिदेव महादेव के दरबार में एक रुद्र का मतलब ग्यारह होता है। सनातन धर्म में यह बेहद कल्याणकारी अंक समझा जाता है। इस नजरिए से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक क्लोन भारतीय जनता पार्टी के देशव्यापी शासन के छठवीं पारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निरंतरता के 11 वर्ष पूरे होने पर देशवासियों यानी हर हिंदुस्तानी को गर्व तो होना ही चाहिए क्योंकि इसी वर्ष पाकिस्तान द्वारा प्रोत्साहित और चीन-अमेरिका द्वारा उकसाए हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद दी गई जवाबी प्रतिक्रिया में भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी संयुक्त सेनाओं ने जो अपना रौद्र रूप दिखलाया है, वह काबिले तारीफ है। इसने दुनियावी महाशक्तियों को अपनी हद में रहने अन्यथा दुष्परिणाम झेलने का दो टूक संदेश दिया है। कहना न होगा कि भारतीयों की यह महानतम उपलब्धि अनायास नहीं है बल्कि मोदी सरकार की ग्यारह वर्षीय सैन्य साधना का चमत्कार है। यह आरएसएस के शताब्दी वर्ष को और भाजपा को 45 वर्ष पूरे करने की सलामी है जिसे जनसंघ को विघटित किये जाने के पश्चात एक नया रूप दिया गया था। वैसे तो जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी-दीन दयाल उपाध्याय, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी-पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-गृहमंत्री अमित शाह सरीखे सैकड़ों-लाखों संघ पुरुषों के त्याग बलिदान के बाद यह शुभ दिन देखने को मिल रहा है, इसलिए युगपुरुष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने जिस शिद्दत से यह महानतम उपलब्धि हासिल की है और विभिन्न उपलब्धियों की जो विश्वयव्यापी श्रृंखला बनाई है, वह अनुकरणीय है। इसके लिए मोहन भागवत जैसे विभिन्न संघ प्रमुखों व उनके लाखों स्वयंसेवकों व भाजपा कार्यकर्ताओं के त्याग व बलिदान को भी नहीं भुलाया जा सकता । कहना न होगा कि ‘विदेशी एजेंट्स’ के तौर पर कार्य करने वाले कतिपय भारतीय राजनेताओं ने जिस भाजपा को सियासी अछूत और साम्प्रदायिक पार्टी करार देने में कोई कोताही नहीं बरती, आज उसी की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां व सूबाई रणनीति इन राजनेताओं के राजनीतिक अस्तित्व को ही समाप्त करती जा रही हैं। अमेरिका और चीन जैसे अंतरराष्ट्रीय दोगले देशों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलते हुए भारत अब दुनिया की बड़ी आर्थिक व सैन्य शक्ति बन गया है। आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों की सूची में भारत जहां वर्ष 2014 में 10वें स्थान पर था, वह अब 2025 में 4थे स्थान पर पहुंच चुका है। हमारी अर्थव्यवस्था अब उछलकर विश्व के चौथे स्थान पर जा पहुंची है। कहने का तात्पर्य यह कि जिस ब्रिटेन ने दुनियाभर पर राज्य किया, वह तो कब का भारत से पिछड़ गया, वहीं अब धनकुबेर जापान को भी भारत ने पछाड़ दिया है और अपनी हठधर्मिता से दुनिया को दो विश्व युद्ध की सौगात देने वाले और तीसरे संभावित विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले जर्मनी को आर्थिक चकमा देकर भारत कब दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा और फिर अमेरिका-चीन से आर्थिक होड़ शुरू कर देगा, इसमें ज्यादा अवधि नहीं बची है! क्या यह देशवासियों के खुश होने का वक्त नहीं है?  आंकड़े बताते हैं कि 1947 में आजादी मिलने के बाद साल 2014 तक यानी लगभग 70 वर्षों में देश महज 2 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी ही बन पाया था। ऐसा इसलिए कि हमारी सरकारें विदेशियों के मुंह पोछते रहने की आत्मघाती नीतियों पर चल रही थीं। वहीं, राष्ट्र्वादी सरकार की 4थी से 6 ठी पारी के बीच यानी 11 साल बाद भारतीय अर्थव्यवस्था 4.2 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन चुकी है। अब भारत का तात्कालिक लक्ष्य तीसरे स्थान पर चल रहे जर्मनी को पछाड़कर 2028 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनना है। मतलब साफ है कि एक विकासशील देश से विकसित देश बनने को आतुर भारत का अगला शिकार जर्मनी होगा। तब भारत की अर्थव्यवस्था से आगे सिर्फ चीन और अमेरिका रह जाएंगे जो हमसे पिछले कई दशकों से मजबूत प्रतिद्वंद्विता करते आए हैं। ऐसे में हम विगत 11 सालों में मोदी सरकार या एनडीए सरकार पास हुई या फेल, इस विवाद को हम विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के लिए छोड़ते हैं जबकि बाकी काम जनता जानती है और उसके पास जवाब देने के लिए अनेक अवसर हैं। जो असंभव को संभव बनाने का कार्य मोदी सरकार ने किया है, वह हम सबके सामने है। चाहे राम मंदिर निर्माण हो, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति हो और तीन तलाक़ नामक कुप्रथा की समाप्ति, आदि…. ऐसे बड़े काम हैं जो पिछली सरकारें कभी नहीं कर पातीं।  उसे छोड़िए, हुआ न हुआ, इसको सरकार और विपक्ष पर छोड़ते हैं।  लेकिन अब हमारी निगाहें 22 साल बाद यानी 2047 के विकसित भारत की ओर लगी हैं। वर्तमान अमृत काल खंड सबको आकर्षित कर रहा है। माना कि वह साल हम लोग और हमारी वर्तमान पीढ़ी नहीं देख पाएगी या जो सौभाग्यशाली होंगे, वो देख पाएंगे पर भारत को विकसित राष्ट्र बनते हमारे बच्चे देखेंगे और हम उनकी आंखों से देखेंगे। कहना न होगा कि विगत 11 सालों में भारत की गतिशील अर्थव्यवस्था का रास्ता खुद ही नहीं खुला बल्कि टीम मोदी प्रशासन की अथक तैयारियों के साथ खोला गया है। यदि एपल, स्टारलिंक और टेस्ला जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां अमेरिका की बजाय भारत में अपना उद्योग लगाना चाहती हैं तो कोई तो बात हुई होगी इन 11 वर्षों में जबकि कुछ लोगों ने दंगों-फसादों में ही झुलसते रहने का ही ठेका ले लिया है? आप गौर कीजिए कि आखिर अब ऐसा कौन-सा मोर्चा बचा हुआ है जिस पर भारत मजबूत न हुआ हो? क्योंकि कोई भी देश मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश तभी बनता है जब वह हर मोर्चे पर मजबूत हुआ हो। यही वजह है कि ऑपरेशन सिंदूर में दुनिया ने भारत की मजबूती देखी। भारत के हमलों की मार पाकिस्तान के उस परमाणु भंडार तक पहुंच गई जिसमें अमेरिका और चीन भी अपने अपने परमाणु हथियार रखे हुए हैं। भारत द्वारा 9 आतंकी ठिकाने और 11 एयरबेस उड़ाने की आग जब परमाणु भंडार की तरफ बढ़ी, तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पसीने भी छूटने लगे। फिर भारत ने आत्मशक्ति से अर्जित आत्मसंयम की मिसाल भी दुनिया के सामने खड़ी कर दी। आप जरा गौर कीजिए, बीते कुछ महीनों-सालों में पाकिस्तान में पनवाड़ी से लेकर मोची तक और सिपाही से लेकर सेनाध्यक्ष मुनीर तक सभी परमाणु हमले की धमकी बार-बार दिया करते थे लेकिन भारत के ब्रह्मोस की रेंज में जब सरगोधा के बाद किराना हिल्स भी आ गई, तब अमेरिका तक किस तरह घबरा गया। चीन किस तरह से अमेरिका की चिरौरी करने लगा। वही आक्रमण था जब पाकिस्तानी सेना ने गिड़गिड़ाते हुए सीजफायर की गुहार भारतीय सेना से लगाई।  अच्छा हुआ, वसुधैव कुटुंबकम का पथप्रदर्शक भारत मान गया लेकिन यदि न मानता तो आज पाकिस्तान का वजूद ही मिट गया होता। उसके बाद चीन अपनी कुटिल चालें चल रहा है। अमेरिका का नेतृत्व पागल की तरह भारत से व्यवहार कर रहा है लेकिन देखते रहिए, भारत की यह सैन्य शक्ति तथा बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था ही इस महान देश को विकसित राष्ट्र और वैश्विक महाशक्ति बनने के रास्ते पर ले जाएगी।  हमारे देश को जरा और आगे बढ़ने तो दीजिए? हमारे महान भारत को, हमारे कुशल भारतीयों को! उनका रौद्र रूप और शिव तांडव जब दुनिया देखेगी, तो अचंभित रह जायेगी क्योंकि विश्व को सत्य व अहिंसा का नया पाठ पढ़ाने के लिए हमलोग दुनियावी तांडव जरूर दिखाएंगे, आज नहीं तो निश्चय कल। इसलिए चेत जाए हिंसक-प्रतिहिंसक दुनिया! कमलेश पांडेय

Read more