महाराजा चंपतराय और रानी सारंधा
Updated: June 25, 2025
भारत की वीरांगनाओं में रानी सारंधा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। सारंधा बुंदेला राजा चंपतराय की सहधर्मिणी थी। उन्होंने मुगलों के…
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पेप्सी बाटलिंग प्लांट के बाद अब कैंपा कोला, भूगर्भ जल का दोहन
Updated: May 26, 2025
कुमार कृष्णन बिहार के बेगूसराय की बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डवलपमेंट आथोरिटी (बियाडा ) क्षेत्र के आठ दस किलोमीटर के दायरे में पिछले तीन वर्षों के…
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पसमांदा मुसलमानों के लिए भी बेहतर अवसर उपलब्ध करवाएगी जातिगत जनगणना
Updated: May 26, 2025
पिछड़े और दलित हिन्दुओं के लिए ही नहीं, पसमांदा मुसलमानों के लिए भी बेहतर अवसर उपलब्ध करवाएगी जातिगत जनगणना गौतम चौधरी आगामी राष्ट्रीय जनगणना में…
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देश के खिलाफ भ्रामक जानकारी फैलाकर पहुंचा रहे हैं राष्ट्रीय हितों को नुकसान
Updated: May 26, 2025
संदीप सृजन जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला इस बात को साबित करता है कि कैसे बाहरी ताकतें और आंतरिक सहयोगी मिलकर देश को…
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क्यों जनता भ्रष्टाचार का अनचाहा भार ढ़ोये?
Updated: May 22, 2025
– ललित गर्ग- विभिन्न राजनीतिक दलों, विभिन्न प्रांतों की सरकारों, विभिन्न गरीब कल्याण की योजनाओं, न्यायिक क्षेत्र एवं उच्च जांच एजेंसियों में भ्रष्टाचार की बढ़ती…
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सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल : अज्ञता का द्वार रुकना चाहिए
Updated: June 25, 2025
पहलगाम आतंकी हमला के समय जिस प्रकार देश की राजनीति और नेताओं ने एकता का परिचय दिया, वह एक अनुकरणीय कार्य था। जिसकी जितनी प्रशंसा…
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सुमित्रानंदन पंत : प्रकृति का सुकुमार कवि, छायावादी युग का स्तंभ
Updated: May 22, 2025
महान साहित्यकार सुमित्रानंदन पंत की जयंती 20 मई पर विशेष… साहित्य सृजन से लेकर स्वाधीनता आंदोलन के सेनानी, मानवतावादी दृष्टिकोण लोगों के लिए है प्रेरणा पुंज -प्रदीप कुमार वर्मा सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के श्रेष्ठ कवि थे। सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के उपासक और प्रकृति की सुंदरता का वर्णन करने वाले कवि के रूप में भी जाना जाता है। पंत को ऐसी कविताएँ लिखने की प्रेरणा उनकी अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड से ही मिली। जन्म के छह-सात घंटे बाद ही माँ से बिछुड़ जाने के दुख ने पंत को प्रकृति के करीब ला दिया था। पंत ने सात वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में प्रकृति का सौन्दर्य चित्रण के साथ-साथ नारी चेतना और ग्रामीण जीवन की विसंगतियों का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता हैं। यही वजह है कि सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में भी जाना जाता है। यही नहीं पंत जी का साहित्य सज्जन आज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय माना जाता है। सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड राज्य बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। सुमित्रानंदन पंत के पिता कानाम गंगादत्त पंत और माता का नाम सरस्वती देवी था। यह विधाता की करनी ही थी कि पंत के जन्म के कुछ घंटो बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। जिसके बाद उनका लालन-पोषण उनकी दादी ने किया। बचपन में उनका नाम गुसाईं दत्त था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव से ही शुरू की। लेकिन हाई स्कूल के समय रामकथा के किरदार लक्ष्मण के व्यक्तित्व एवं लक्ष्मण के चरित्र से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। हाई स्कूल के बाद वह वाराणसी आ गए और वहां के जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद सुमित्रानंदन पंत वर्ष 1918 में इलाहबाद चले गए और ‘म्योर कॉलेज’ में बाहवीं कक्षा में दाखिला लिया। उस समय पूरे भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। इलाहाबाद में पंत गांधी जी के संपर्क में आए। वर्ष 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने म्योर कॉलेज को छोड़ दिया और आंदोलन में सक्रिय हो गए। इसके बाद वह घर पर रहकर स्वयंपाठी के रूप में हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करने लगे। इसके साथ ही सुमित्रानंदन पंत अपने जीवन में कई दार्शनिकों-चिंतकों के संपर्क में आए। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और श्रीअरविंद के प्रति उनकी अगाध आस्था थी। वह अपने समकालीन कवियों सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और हरिवंशराय बच्चन से भी प्रभावित हुए। पंत जी के साहित्य में प्रकृति का प्रमुखता से चित्रण मिलता है। इस संदर्भ में पता चलता है कि उनकी मां के स्वर्गवास के बाद प्रकृति की रमणीयता ने पंत जी के जीवन में माँ की कमी को न केवल पूरा किया, बल्कि अपनी ममता भरी छाँह में पंत जी के व्यक्तित्व का विकास किया। इसी कारण सुमित्रानंदन पंत जीवन-भर प्रकृति के विविध रूपों को प्रकृति के अनेक आयामों को अपनी कविताओं में उतारते रहे। यहां यह भी बताना उचित रहेगा की सत्य, शांति, अहिंसा, दया, क्षमा और करुणा जैसे मानवीय गुणों की चर्चा बौद्ध धर्म-दर्शन में प्रमुख रूप से होती है। इन मानवीय गुणों को पंत जी की कविताओं में भी देखा जा सकता है। प्रकृति के प्रति प्रेम और मानवीय गुणों के प्रति झुकाव के चलते उनका लेखन इतना शशक्त और प्रभावशाली हो गया था कि वर्ष 1918 में महज 18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली थी। उनका रचनाकाल वर्ष 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्षों तक रहा। इस दौरान उनकी काव्य यात्रा के तीन प्रमुख चरण देखने को मिलते हैं। इसमें प्रथम छायावाद, दूसरा प्रगतिवाद और तीसरा श्रीअरविंद दर्शन से प्रभावित अध्यात्मवाद रहा हैं। सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता। इस दौरान सुमित्रानंदन पंत द्वारा अनेक कालजयी रचनाओं का सृजन किया गया। इनमें ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि शामिल हैं। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। …
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भारत का पक्ष रखने की सराहनीय पहल एवं बेतुका विवाद
Updated: May 22, 2025
– ललित गर्ग पहलगाम की क्रूर एवं बर्बर आतंकी घटना एवं उसके बाद भारत के सिंदूर ऑपरेशन में पाकिस्तान को करारी मात देने की घटना…
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भीतर के दुश्मनों के खिलाफ सख्ती-चौंकसी बढ़ानी होगी
Updated: May 22, 2025
– ललित गर्ग- पाकिस्तान भारत के अनेक लालची, शानोशौकत के आकांक्षी, देशद्रोही एवं देश के दुश्मन लोगों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ प्रचार और जासूसी…
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शस्त्र और शास्त्र, दोनों धरातलों पर ध्वस्त पाकिस्तान
Updated: May 22, 2025
जैसा कि ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म में सभी ने देखा कि पेशवाई के लिए साक्षात्कार के समय बाजीराव ने अपने तीर से मोरपंख का आकार कम…
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घर के भेदी
Updated: May 22, 2025
ये कौन लोग हैं जो मुल्क बेच आते हैं,चंद सिक्कों में ज़मीर सरेआम ले जाते हैं।न बम चले, न बारूद की ज़रूरत पड़ी,अब तो दुश्मन…
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विलुप्त होती प्रजातियां: जीवन के अस्तित्व पर संकट की दस्तक
Updated: May 22, 2025
अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) पर विशेष
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