Tag: पत्थरबाज

विविधा

“यह कैसा विधान…. पत्थरबाज भी नही आते बाज…”⁉

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विश्व के सभी देश अपने अपने नागरिकों के महत्व को समझते है और उसकी रक्षा के साथ साथ उसके समस्त मौलिक अधिकारों को यथा संभव सुरक्षा प्रदान करने के लिए संकल्पित है। परंतु हम सत्तर वर्ष के अपने स्वतंत्र राष्ट्र में इतने बौने हो गए है कि सैनिको का मान-मर्दन होता रहें और हम चिंता व निंदा करके केंडिल मॉर्च से अपने अपने दायित्व से मुक्त हों कर मीडिया में श्रद्धांजलियां देते हुए छपते रहना चाहते है । आज के सोशल मीडिया ने तो इस चलन की बाढ़ आती जा रही है ,यह कैसी राष्ट्रपरायणता है जो मानवीय संवेदनाओं से भी प्रचार की होड़ करवाती है । क्या पीड़ित हृदयो में आंसुओ का अकाल हो गया है या ह्र्दय ही इतना कठोर होता जा रहा है कि हमारी सुरक्षा में लगे इन सैनिकों को आक्रोशित हों कर भी आत्मग्लानि में जीने को विवश होना पड़ें ?

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