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विविधा

कश्मीर में पैलेट गन क्यों नही…

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जबकि यह सर्वविदित ही है कि वर्षो से कश्मीर घाटी में अलगाववादियों व आतंकवादियों द्वारा प्रति लड़के/युवक को 500 से 1500 रुपये तक देकर सुरक्षाबलों पर हमले करवायें जाते आ रहे है। परिणामस्वरूप अनेक सुरक्षाकर्मी मारे भी गये और साथ ही सरकारी संपत्तियों की भी भारी क्षति हुई है। पिछले कुछ वर्षों के अतिरिक्त भी जुलाई 2016 में आतंकी बुरहानवानी के मारे जाने के बाद इन पत्थरबाजों की टोलियों ने कई माह तक विशेषतौर पर दक्षिण कश्मीर में सामान्य जनजीवन को ही बंधक बना दिया था।

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विविधा

सच्चाई को समझें भारतीय मुसलमान

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सबसे बड़ा सत्य तो यह है कि भारत और पाकिस्तान में निवास करने वाले मुसलमान के पूर्वज पहले हिन्दू ही थे। अगर वे इतिहास उठाकर देखेंगे, तो उन्हें इस सच्चाई का पता चल जाएगा। वैसे भारत के कई मुसलमान आज भी इस सत्य को बेहिचक स्वीकार करने का साहस दिखाते हैं। यह भी सच है कि दुनियाभर में जितने भी मुसलमान निवास करते हैं, उनमें सबसे ज्यादा सुरक्षित भारत में ही हैं। आज कुछ मुसलमान संदेह की दृष्टि से देखे जा रहे हैं, उसके पीछे भी सबसे बड़ा कारण स्वयं मुसलमान ही हैं।

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विविधा

गौरक्षा एवं भक्ति हिंसक क्यों?

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देश में समय-समय पर गौहत्या के विरोध में आन्दोलन हुए हैं। 1967 में गौ-हत्या को लेकर उग्र आन्दोलन हुआ, संसद भवन को साधु-सन्तों ने घेरा था तो पुलिस ने उन पर बल प्रयोग किया था और लाठी-गोलियां भी चलाई थीं। तत्कालीन गृहमन्त्री स्व. गुलजारी लाल नन्दा को इस्तीफा देना पड़ा था। तत्कालीन इन्दिरा सरकार ने भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक आस्था से जुड़े इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। क्योंकि गाय भारत की आत्मा है, जन-जन की आस्था का केन्द्र है।

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विविधा

गौ-रक्षा का बदनाम होता उद्देश्य

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गौ-हत्या पर रोक का कानून बनता है तो दुध का उत्पादन तो बढ़ेगा ही, जैविक खाद से खेती भी होने लग जाएगी। फिलहाल देश में दुग्ध उत्पादन में कमी अनुभव की जाने लगी है। जिसकी भरपाई नकली दूध से की जा रही है। जो नई-नई बीमारियां परोसने का काम कर रहा है। दूध की दुनिया में सबसे ज्यादा खपत भारत में है। देश के प्रत्येक नागरिक को औसतन 290 गा्रम दूध रोजाना मिलता है। इस हिसाब से कुल खपत प्रतिदिन 45 करोड़ लीटर दूध की हो रही है। जबकि शुद्ध दूध का उत्पादन करीब 15 करोड़ लीटर ही है। मसलन दूध की कमी की पूर्ति सिंथेटिक दूध बनाकर, यूरिया और पानी मिलाकर की जा रही है। दूध की लगातार बढ़ रही मांग के करण मिलावटी इस दूध का कारोबार गांव-गांव फैलता जा रहा है।

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राजनीति

भारतीय परिप्रेक्ष में राष्ट्रीय राजनीति का उदय

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निसंदेह एक साधारण से दिखने वाले युवक ने अपना जीवन धर्म की सेवा व साधना के लिये समर्पित करते हुए भगवा धारण किया। 'भगवा' मात्र रंग ही नही हमारी महान संस्कृति का सूचक और वाहक है। जिसका संदेश है..."असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय , मृत्योर्मामृतं गमय" अर्थात "हे भगवान मुझको असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर एवं मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो"। जिसको अपनाते हुए युवा अजय सिंह अपनी वर्षों की अथक तपस्या से योगी आदित्यनाथ बन गये।

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समाज

वेल्थ के हवाले हेल्थ

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भारत के नीति निर्माताओं ने स्वास्थ्य सेवाओं को मुनाफा पसंदों के हवाले कर दिया है. आज भारत उन अग्रणी मुल्कों में शामिल है जहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य का तेजी से निजीकरण हुआ है. आजादी के बाद के हमारे देश में निजी अस्पतालों की संख्या 8% से बढक़र 93 % हो हो गयी है. आज देश में स्वास्थ्य सेवाओं के कुल निवेश में निजी क्षेत्र का निवेश 75 प्रतिशत तक पहुँच गया है. निजी क्षेत्र का प्रमुख लक्ष्य मुनाफा बटोरना है जिसमें दावा कम्पनियां भी शामिल हैं, जिनके लालच और दबाव में डॉक्टरों द्वारा महंगी और गैरजरूरी दवाइयां और जांच लिखना बहुत आम हो गया है.

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राजनीति

वंदे मातरम्-विवाद नहीं, विकास का माध्यम बने

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मुसलमानों को ‘वन्दे मातरम्’ गाने पर आपत्ति इसलिये भी बतायी जा रही है, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। जबकि यह गान किसी देवी नहीं, बल्कि धरती माता की पूजा की बात कहता है। माता भी कौन-सी? पृथ्वी। जो जड़ है। इसमें भारत को माता कहा गया है। वंदे-मातरम् में भारत के जलवायु, फल-फूल, नदी-पहाड़, सुबह-शाम और शोभा-आभा की प्रशंसा की गई है। किसी खास देवी की पूजा नहीं की गई है। वह कोई हाड़-मासवाली देवी नहीं है। वह एक प्रतीक है। विभिन्न मुस्लिम देशों में भी वहां राष्ट्रीय गीतों में मातृ-भूमि का यशोगान गाया गया है।

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विविधा

जीवन के अलौकिक संकेत प्रतीक व बिम्ब

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पूरी तरह से खिले हुए फूल को प्रस्फुटित फूल कहा जाता है। देखने में बहुत प्यारा तथा मन को आनन्दित करता हैं परन्तु उसका दर्द दूसरा कोई नहीं समझता है। किसी को उसकी वेदना का आभास भी शायद ना होता हो। माली पुजारी नारी या युवा ? यहां तक कि उसे माध्यम बनाकर पे्रम का इजहार करने वाले अपने लक्ष्य को साध लेते हैं पर वे प्रस्फुटित फूल कीवेदना को शायद ही समझ पाते हों या समझना चाहते हों।

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