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विविधा समाज

सार्वभौमिक-समन्वित भारतीय हिन्दू संस्कृति

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दूसरों को दुख देना सबसे बड़ा अधर्म है एवं दूसरों को सुख देना सबसे बड़ा धर्म है । यही हिन्दू की भी परिभाषा है। कोई व्यक्ति किसी भी भगवान को मानते हुए एवं न मानते हुए हिन्दू बना रह सकता है। हिन्दू की परिभाषा को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि भारत में हिन्दू की परिभाषा में सिख, बौद्ध, जैन, आर्यसमाजी व सनातनी इत्यादि आते हैं। हिन्दू की संताने यदि इनमें से कोई भी अन्य पंथ अपना भी लेती हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं समझी जाती एवं इनमें रोटी बेटी का व्यवहार सामान्य माना जाता है।

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राजनीति

डर काहे का

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वीरेन्द्र सिंह परिहार सी.बी.आई. ने 17 हजार करोड़ रू. के रोजवैली चिटफंड घोटाले में कथित संलिप्तता के आरोपी सुदीप बंद्योपध्याय को गिरफ्तार क्या किया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल काॅग्रेस ने सारी मर्यादाएॅ तोड़ दी। ज्ञातव्य है कि 30 दिसम्बर को सी.बी.आई. पांेजी योजना घोटाला में ऋणमूल के एक […]

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राजनीति

प्रधान मंत्री के खिलाफ “राजनैतिक जिहाद” का फतवा – कठमुल्ले मानते हैं देश में आज भी मुग़ल सल्तनत !

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सत्ताधीशों की लगातार कुर्सीपरस्त तुष्टीकरण की राजनीति के कारण भारत के कतिपय कट्टरपंथियों के मन में यह धारणा घर कर चुकी है कि अंग्रेजों के जाने के बाद अब भारत पर उनका ही शासन है ! जीहाँ इसका ताजा तरीन उदाहरण है कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के बदनाम इमाम सैयद नूरउररहमान बरकाती का वह […]

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विविधा

सेना की साख में सुराख होना चिन्तनीय

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ना की साख में यह पहला सुराख नहीं है। समय-समय पर अनेक सुराख कभी भ्रष्टाचार के नाम पर, कभी सेवाओं में धांधली के नाम पर, कभी घटिया साधन-सामग्री के नाम पर, कभी राजनीतिक स्वार्थों के नाम पर होते रहे हैं। एक बार नहीं कई बार सुराख हो चुके हैं। कभी जीप घोटाला तो कभी घटिया कम्बल खरीदने पर खूब विवाद हुआ था। कभी बोफोर्स तोप खरीद घोटाला तो कभी ताबूत खरीद में हेराफेरी के मामले उछलते रहे हैं। दाल खरीद में घोटाला हुआ तो दूध पाउडर घोटाला, अंडा घोटाला, घटिया जूतों की खरीद घोटाला भी चर्चित हुआ।

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राजनीति

राजनीतिक का ‘शुद्धिकरण’ जरूरी

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सर्वोच्च अदालत ने दागियों को विधायिका से बाहर रखने के तकाजे से जो पहल की है उसका लाभ पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तो नहीं मिल पाएगा, पर उम्मीद की जा सकती है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले जरूर कुछ ऐसी वैधानिक व्यवस्था बन पाएगी जिससे आपराधिक तत्त्व उम्मीदवार न हो सकें। एक समय था जब ऐसे किसी नियम-कानून की जरूरत महसूस नहीं की जाती थी, क्योंकि तब देश-सेवा और समाज-सेवा की भावना वाले लोग ही राजनीति में आते थे। पर अब हालत यह है कि हर चुनाव के साथ विधायिका में ऐसे लोगों की तादाद और बढ़ी हुई दिखती है जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हों। हमारे लोकतंत्र के लिए इससे अधिक शोचनीय बात और क्या हो सकती है!

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विविधा

एक हुतात्मा दुला भट्टी जिसकी स्मृति में मनायी जाती है लोहड़ी

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  नवमुस्लिमों  का हिन्दू प्रेम इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब किसी कारण से या किसी परिस्थितिवश कोई व्यक्ति यदि मुसलमान बन भी गया तो भी उसने हिंदू संस्कारों का और हिंदू संस्कृति का हृदय से बहिष्कार नही किया। इसके विपरीत वह अपने पूर्व संस्कारों के अनुसार अपने धर्मबंधुओं के प्रति सहयोगी और सदभावी […]

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राजनीति

दिल्ली का मौहम्मद तुगलक और अरविन्द केजरीवाल

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पंजाब की जनता अपने लिए किसे चुनेगी यह तो समय ही बताएगा-पर हम यहां की जनता के निर्णय की परिपक्वता पर आज ही संतुष्ट हैं कि वह जो भी निर्णय लेगी उसे सोच समझकर ही लेगी। केजरीवाल यह भूल जाएं कि जनता कुछ भी नहीं जानती, इसके विपरीत यह मान लें कि यह जनता सब कुछ जानती है। दिल्ली पर शासन करके और अब यह मानकर कि दिल्ली की जनता तुझसे असंतुष्ट है और वह तुझे आगे शायद ही पसंद करे - पंजाब की ओर केजरीवाल का भागना उनकी अवसरवादी राजनीति का एक अंग है, जिसमें वह अपना भविष्य सुरक्षित देख रहे हैं। उनका यह निर्णय मौहम्मद तुगलक की याद दिलाता है जिसने राजधानी दिल्ली से दौलताबाद बनाने का निर्णय लिया था, पर अपनी फजीहत कराके वापस दिल्ली ही आ गया था। केजरीवाल को आना तो दिल्ली में ही है-पर अच्छा हो कि फजीहत कराके ना आयें।

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