कविता कविता/अपनी जमीं पर… January 26, 2011 / December 16, 2011 by डॉ. सीमा अग्रवाल | 2 Comments on कविता/अपनी जमीं पर… आसमाँ सा ऊँचा उठकर, झिलमिल सपनों में खो जाऊँ। दीन-हीन की पीन पुकार, एक बधिरवत् सुन न पाऊँ। सागर-सी गहराई पाकर, अपने सुख मेँ डूबूँ-उतराऊँ, गम मेँ किसी के गमगीँ होकर, आँसू भी दो बहा न पाऊँ। तो, नहीं चाहिए ऐसी उच्चता, और न ऐसी गहराई। इससे तो मैं अच्छा हूँ, अपनी जमीं पर ठहरा […] Read more » poem कविता
कविता कविता/की जब मैंने दुख से प्रीत January 21, 2011 / December 16, 2011 by डॉ. सीमा अग्रवाल | 5 Comments on कविता/की जब मैंने दुख से प्रीत कल क्या होगा, इस चिंता में रात गई आँखों में बीत। होठों पर आने से पहले, सुख का प्याला गया रीत। आशाओं का दीप जला ढूँढा, न मिला जीवन संगीत। किस्मत भी जब हुई पराई, फूट पडा अधरों से गीत। साथी सुख तन्हा छोड़ गया जब, दर्द मिला बन मन का मीत। हर सुख से […] Read more » poem कविता
कविता कविता/ “मगंल पाण्डेय” January 17, 2011 / December 16, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on कविता/ “मगंल पाण्डेय” जो मरा नहीं अमर है, किताबों में उसका घर है, उसके लिये हमारी आखें नम हैं। जो करा काम कल, शुक्रिया भी कहना कम हैं। क्या हमारे अन्दर इतना दम हैं, दम नहीं तो क्या हम- हम हैं, जो दूसरों के लिये क्या वही कर्म हैं। कोई है जो कहे मगंल पाण्डेय हम हैं, बस […] Read more » poem कविता
कविता कविता / मन का शृंगार January 11, 2011 / December 16, 2011 by अंकुर विजयवर्गीय | 2 Comments on कविता / मन का शृंगार काश। एक कोरा केनवास ही रहता मन…। न होती कामनाओं की पौध न होते रिश्तों के फूल सिर्फ सफेद कोरा केनवास होता मन…। न होती भावनाओं के वेग में ले जाती उन्मुक्त हवा न होती अनुभूतियों की गहराईयों में ले जाती निशा। सोचता हूं, अगर वाकई ऐसा होता मन तो मन मन नहीं होता तन […] Read more » poem कविता
कविता कविता / कपूत January 11, 2011 / December 16, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on कविता / कपूत कितने तीर्थ किये माता ने और मन्नत के बांधे धागे! चाह लिए संतति की मन में, मात-पिता फिरते थे भागे! सुनी प्रार्थना ईश ने उनकी मैं माता के गर्भ में आया! माना जन्म सार्थक उसने हुई विभोर ज्यों तप-फल पाया नौ-दस मास पेट में ढोया पर माथे पर शिकन न आई! सही उसने प्राणान्तक पीड़ा […] Read more » poem कविता
कविता कविता / दर्द बन कर December 24, 2010 / December 18, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 11 Comments on कविता / दर्द बन कर अपनों का जब छूट जाता है साथ दर्द बन कर हंसाती है हर लम्हा याद बनकर तड़पाती है काश! कुछ लोग ये बात समझ पाते काश! अपनों की र्दद का अहसास होता बनकर दीप जलते रहे हम साहिल पे जाकर बुझ गए बन गए एक पहेली समझ सके न वो तन्हाई पल भर में हो […] Read more » poem कविता
कविता कविता / ‘जब से शहर आया हूं…’ December 19, 2010 / December 18, 2011 by लोकेन्द्र सिंह राजपूत | 1 Comment on कविता / ‘जब से शहर आया हूं…’ जब से शहर आया हूं हरी साड़ी में नहीं देखा धरती को सीमेंट-कांक्रीट में लिपटी है जींस-पेंट में इठलाती नवयौवन हो जैसे धानी चूनर में शर्माते, बलखाते नहीं देखा धरती को जब से शहर आया हूं। गांव में ऊंचे पहाड़ से दूर तलक हरे लिबास में दिखती वसुन्धरा शहर में, आसमान का सीना चीरती इमारत […] Read more » poem
कविता प्रो. मधुसूदन की कविता : खंडहर शिवाला December 17, 2010 / December 18, 2011 by डॉ. मधुसूदन | 7 Comments on प्रो. मधुसूदन की कविता : खंडहर शिवाला प्रवेश: एक घना निबिड़ अरण्य। जलाशय के किनारे, प्राचीन खंडहर शिवाला विलुप्तसा। पगडंडी परभी पेड पौधे। मिट चुकी पगडंडी। बरसों से कोई यात्री ही नहीं। श्रद्धालु तो, निष्कासित हैं। कवि वहां पहुंचता है। प्रगाढ शांति -भंग करने की झिझक, और द्विधा के क्षण पर, यह कविता-एक सबेरे, चेतस की सितारी यूं, झन झना कर गई। […] Read more » poem कविता
कविता कविता / मैं कौन हूँ ………..? December 16, 2010 / December 18, 2011 by ललित कुमार कुचालिया | 4 Comments on कविता / मैं कौन हूँ ………..? हर बार मेरे मन में बस यही प्रश्न गूंजता है, कि आखिर मैं कौन हूँ …………..? मैं जिस संसार की मानव प्रकृति में रहा उसी मानव प्रकृति के बीच से निकलकर बस यही सोचता , कि आखिर मैं कौन हूँ ……………..? कौन हूँ का प्रश्न मेरे मन को नोच डालता, और समुन्द्री की तरह हिलोरे […] Read more » poem
कविता श्रीराम तिवारी की कविता : हारे को हरिनाम है … December 10, 2010 / December 19, 2011 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment अब न देश-विदेश है, वैश्वीकरण ही शेष है। नियति नहीं निर्देश है, वैचारिक अतिशेष है।। जाति-धरम-समाज की जड़ें अभी भी शेष हैं। महाकाल के आँगन में, सामंती अवशेष है।। नए दौर की मांग पर, तंत्र व्यवस्था नीतियाँ। सभ्यताएं जूझती, मिटती नहीं कुरीतियाँ।। कहने को तो चाहत है, धर्म-अर्थ या काम की। मानवता के जीवन पथ […] Read more » poem हरिनाम
कविता कविता / आ अब लौट चलें ……. December 4, 2010 / December 19, 2011 by श्रीराम तिवारी | 4 Comments on कविता / आ अब लौट चलें ……. अगम रास्ता-रात अँधेरी, आ अब लौट चलें. सहज स्वरूप पै परत मोह कि, तृष्णा मूंग दले. जिस पथ बाजे मन-रण-भेरी, शोषण बाण चलें. नहीं तहां शांति समता अनुशासन ,स्वारथ गगन जले. विपथ्गमन कर जीवन बीता, अब क्या हाथ मले. कपटी क्रूर कुचली घेरे, मत जा सांझ ढले. अगम रास्ता रात घनेरी आ अब लौट चलें. […] Read more » poem कविता
कविता कविता / दुखदैन्य हारिणी December 2, 2010 / December 19, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment दुखदैन्य हारिणी के दुख को अब हम सबको हरना होगा, चिंताहरिणी की चिंता पर अब कुछ चिंतन करना होगा। कोई भविष्य में दिव्य नीर को भूतकाल की संज्ञा दे, इससे पहले ही पतित पावनी का जल पावन करना होगा। जय गंगा मईया का स्वर जब मुख से उच्चारित करते हो, क्यों नही तभी संकल्प यही […] Read more » poem कविता