कविता मैं संस्कृति संगमस्थल हूँ May 29, 2015 by नरेश भारतीय | Leave a Comment –नरेश भारतीय- बनती बिगड़ती आई हैं युगों से सुरक्षित, असुरक्षित टेढ़ी मेढ़ी या समानांतर जोर ज़बरदस्ती या फिर व्यापार के बहाने, घुसपैठ के इरादे से वैध अवैध लांघी जाती रहीं अंतर्राष्ट्रीय मानी जाने वालीं सीमाएं प्रवाहमान हैं मानव संस्कृतियाँ सीमाओं के हर बंधन को नकारती समसंस्कृति संगम स्थल को तलाशतीं. सीमाओं को तो […] Read more » Featured कविता मैं संस्कृति संगमस्थल हूँ संस्कृति कविता
कविता बेबसी May 23, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- योगेन्द्र और प्रशांत को हटा मानो बाधायें हो गईं दूर, साथ में रह गये बस, कहने वाले जी हुज़ूर। फ़र्जी डिग्री के किस्से को, जैसे तैसे रफ़ा दफ़ा किया, एक सिक्किम से ले आया, नकली डिग्री और सपूत। मैंने जनता को स्टिंग सिखाया, पर वो भी मुझ पर ही आज़माया, मियां की जूती […] Read more » Featured कविता बेबसी
कविता मुक्ति May 21, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- वो ज़िन्दा ही कब थी, जो आज मर गई, सांसों का सिलसिला था, बस, जो चल रहा था। आज वो मरी नहीं है, मुक्त हो गई। घाव जितने थे उसके तन पे, कई गुना होंगे मन पे, मन के घावों का कोई, हिसाब कैसे रखे। वो झेलती रही, बयालिस साल तक पीड़ा, मुक्ति […] Read more » Featured कविता मुक्ति
कविता ऐसे इतिहास को बदल डालो May 21, 2015 by नरेश भारतीय | Leave a Comment -नरेश भारतीय- युग बदल रहा है बदल रही है सोच आने लगी है अंतत: होश विस्मरण नहीं अब राष्ट्रवीरों का सम्मान, अभिवादन, सादर नमन अब सिर्फ और सिर्फ अपनों का… सिकंदर को ग्रेट कहा तुमने अकबर को भी महान बना डाला अपने प्रताप को ठुकराया ! परकीयों को लाड़ दुलार दिया आक्रांताओं को कन्धों पर […] Read more » Featured ऐसे इतिहास को बदल डालो कविता
कविता दिल का अनोखा रिश्ता May 14, 2015 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment – लक्ष्मी जयसवाल अग्रवाल– सांस दर सांस मुझे याद आते हो तुम ज़िन्दगी के मेरे सुनहरे पल आज भी जाने अनजाने क्यों सजा जाते हो तुम मेरी ज़िन्दगी की इक ख्वाहिश थे तुम आज भी मेरे दिल की राहों में बसकर मेरे हर ख्वाब को सजा जाते हो तुम न जाने कब से तुमसे नाता जुड़ा है मेरा कि अब तो तन्हाइयों […] Read more » Featured कविता दिल कविता दिल का अनोखा रिश्ता
कविता मां का आंचल May 9, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 2 Comments on मां का आंचल -रवि विनोद श्रीवास्तव- मेरी ये कविता मदर्स डे पर संसार की सभी माओं को समर्पित। बचपन में तेरे आंचल में सोया, लोरी सुनाई जब भी रोया। चलता था घुटनो पर जब, बजती थी तेरी ताली तब। हल्की सी आवाज पर मेरी, न्योछावर कर देती थी खुशी। चलने की कोशिश में गिरा। जब पैर अपनी खड़ा […] Read more » Featured कविता मां का आंचल मां पर कविता
कविता पचास के उस पार April 29, 2015 / April 29, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- माना कि यौवन के वो पल, खो गये कुछ उलझनों में, मैं वही हूं तुम वही हो, फिर न क्यों जी लें कभी, उन्माद के वो क्षण। तुम मेंरे हो शांत सागर लक्ष्य मेंरा , मैं नदी बहती हुई तुमसे मिली थी, बांहे फैला दो मै तो अब भी वही हूं। तुम हो […] Read more » Featured कविता पचास के उस पार यौवन कविता
कविता विविधा हमें पार जाना ही है April 26, 2015 / April 26, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- नाव भँवरों की बाहों में है फंस गयी , उस पार पर हमको जाना ही है। घिर गए हैं तूफ़ान में गर तो क्या , पार पाने जा जज़्बा दिखाना ही है। अँधियारा है घना बुझ रहे हैं दिये , हैं खड़ी मुश्किलें सामने मुँह किये। रास्तों में जो काँटे पड़े हों […] Read more » Featured कविता जीवन कविता हमें पार जाना ही है
कविता तौहिनी लगाती है-कविता September 12, 2014 / September 12, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment डॉ नन्द लाल भारती बोध के समंदर से जब तक था दूर सच लगता था सारा जहां अपना ही है बोध समंदर में डुबकी क्या लगी सारा भ्रम टूट गया पता चला पांव पसारने की इजाजत नहीं आदमी होकर आदमी नहीं क्योंकि जातिवाद के शिकंजे में कसा कटीली चहरदीवारी के पार झांकने तक की इजाजत […] Read more » कविता तौहिनी लगाती है
कविता सुबह या शाम ? September 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनु कंचन- अभी आँख खुली है मेरी, कुछ रंग दिखा आसमान पे, लाली है तो चारों ओर, पर पता नहीं दिन है किस मुकाम पे, दिशाओं से मैं वाक़िफ़ नहीं, ऐतबार करूँ तो कैसे मौसमों की पहचान पे, चहक तो रहे हैं पंछी, पर उनके लफ़्ज़ों का मतलब नहीं सिखाया, किसी ने पढ़ाई के नाम […] Read more » कविता सुबह या शाम ? हिन्दी कविता
कविता कैसा वह नया ज़माना होगा August 21, 2014 by जावेद उस्मानी | 2 Comments on कैसा वह नया ज़माना होगा -जावेद उस्मानी- आओ देखें आने वाला अपना कल कितना सुहाना होगा। कैसा अपना जीवन होगा कैसा वह नया ज़माना होगा ! हर तरफ अजब धुंध होगी, अपना चेहरा अनजाना होगा सच और झठ को तोलने का , बस एक ही पैमाना होगा ! कहने को मेरी सूरत होगी मगर, अफसाना उनका होगा गीत कोई भी […] Read more » कविता कैसा वह नया ज़माना होगा हिन्दी कविता
कविता देश की आवाज़ पर August 13, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- देश की आवाज़ पर, मर मिटेंगे साथ हम, न किसी का डर हमें, न किसी का है गम़। वीरों के बलिदान को, व्यर्थ न जाने देंगे हम, शान है तिरंगा अपना, शान से फहराएंगे। देख के शक्ति को, दुश्मन थरराएंगे। वादा है हमारा ये, भारत माता से तो आज, प्राण निकल जाए भले, […] Read more » कविता देश की आवाज़ पर हिन्दी कविता