कविता वर्तमान May 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- कौन कहता है, अतीत में मत झांको! कौन कहता है, अतीत से मत सीखो! पर अतीत को अपने, कांधों पर ढोकर, वर्तमान पर अपने, न बोझ बनने दो! कौन कहता है, भविष्य की मत सोचो! कौन कहता है, भविष्य भ्रम है केवल! पर भविष्य की चिंता में, रातों में न करवटें बदलो! भविष्य […] Read more » कविता जीवन पर कविता
कविता दमन की हवा से ही इक दिन… May 2, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- दमन की हवा से ही इक दिन, दहकेंगे श्रम के शोले! हक़ के अंगार से, दफनाये जायेंगे शोषण के गोले! अब भी सुन लो शोषकों, बर्के जिहिंद क्या बोले! इक कौंध में लपक लेने को, अंजाम खड़ा मुंह खोले! वे अपने दम पर लड़ते आये हैं, ताक़तवर से हर युग में! मगर ज़माना […] Read more » poem poem on hope आशा पर कविता कविता
कविता अच्छे लोगों की अच्छाई May 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- अच्छे लोगॊं की अच्छाई चिड़ियों के गीतों को सुनकर, पत्ते लगे नांचने राई| कांव-कांव कौवे की सुनकर, पेड़ों ने कब्बाली गाई| राग बेसुरे सुनकर कोयल, गुस्से के मारे चिल्लाई| फिर भी उसके मधुर कंठ से, कुहू कुहू स्वर लहरी आ ई| अच्छे लोगों में रहती है, बात बात में ही अच्छाई| कभी नहीं […] Read more » birds poem poem कविता चिड़िया कविता
कविता सुमन यहां जलते दिन-रात। May 2, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- सुमन यहां जलते दिन-रात। मिहनत जो करते दिन-रात। वो दुख में रहते दिन-रात। सुख देते सबको निज-श्रम से। तिल-तिल कर मरते दिन-रात। मिले पथिक को छाया हरदम। पेड़, धूप सहते दिन-रात। बाहर से भी अधिक शोर क्यों। भीतर में सुनते दिन-रात। दूजे की चर्चा में अक्सर। अपनी ही कहते दिन-रात। हृदय वही परिभाषित […] Read more » poem poem on life कविता जीवन पर कविता
कविता चुनाव आओ हम मतदान करें… May 1, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’- लोकतंत्र मजबूत बनाकर, भारत का उत्थान करें। जाति-धर्म की तोड़ दीवारें, आओ हम मतदान करें॥ चोर-उचक्के-बाहुबली जो, उनसे हमें न डरना है। शिक्षित जो सुख-दुःख में शामिल, ऐसे प्रतिनिधि चुनना है। गाँव-गाँव अरु शहर-शहर में, घर-घर जन अभियान करें। जाति-धर्म की तोड़ दीवारें, आओ हम मतदान करें॥ कोई हमको लालच दे […] Read more » poem on voting voting कविता मतदान मतदान पर कविता
कविता मोदी का युद्ध है चोरों से April 29, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | 11 Comments on मोदी का युद्ध है चोरों से -विपिन किशोर सिन्हा- पुरखों का युद्ध था गोरों से, मोदी का युद्ध है चोरों से। हे भारत मां के अनुपम सुत। जन-जन की आंखों के तारे। नर इंद्र तुम्हीं दामोदर हो। हे कोटि जनों के तुम प्यारे। गांधी ने अलख जगाई थी। सरदार ने राह दिखाई थी। उस मिट्टी में तुम पले बढ़े। है काम […] Read more » Narendra Modi poem Poem on Narendra Modi कविता नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी कविता
कविता नवल शक्ति April 25, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवींद्र मीणा- हे शक्ति रूप, हे नवल धूप, हो रहा आज मानस कुरूप मधुमास छा गया दिग दिगंत, पीकर मधुरस, मधुकर उन्मत, तू बन प्रचंड -दे उसे दंड, प्रतिकार करो प्रतिकार करो। तेरा जीवन संताप नहीं, तेरा जीवन अभिशाप नहीं, तेरा जीवन संघर्ष सही, होंगे सारे उत्कर्ष वहीं, तू आशा बन, निराशा का, संहार करो, […] Read more » poem कविता नवल शक्ति
कविता कोशिश April 24, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- कुछ अनचाहा सा, कुछ अनसोचा सा, कुछ अनदेखा सा, कुछ अप्रिय सा, जब घट जाता है, तो मन कहता है नहीं… ये नहीं हो सकता, दर्द और टीस का कोहरा, छा जाता है सब ओर। पर नियति है… स्वीकारना तो होगा थोड़ा मुश्किल है, पर करना तो होगा.. ये स्वीकारना ही एक ऐलान […] Read more » poem on try कविता कोशिश
कविता सीता की व्यथा April 23, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -महेश कुमार शर्मा- जो अतीत की भूलों से कुछ सीख न ले पाते हैं। उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं। निर्वासित कर मुझे राम ने, कितना सुख पाया है। पूछो धोबी से उसने क्यों अपयश लाभ कमाया है। किन्तु न मैंने रेख लांघकर अवसर अगर दिया होता। उपजी ही होती क्यों शंका […] Read more » poem seeta कविता सीता सीता की व्यथा
कविता तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा… April 23, 2014 / April 23, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा उसने जो भी कहा, क्या खूब कहा तुमको उसको मैं ही तो चुनने वाला था आखिर को इक मैं ही तो सुनने वाला था! तुम ठहरे सपनों के सौदागर वह ठहरा बातों का जादूगर सच झूठ के बीच इक बारीक़ सा जाला था आखिर को इक […] Read more » poem कविता क्या खूब कहा... तुमने जो भी कहा
कविता हो गया है विहान री December 28, 2013 / December 28, 2013 by बीनू भटनागर | 6 Comments on हो गया है विहान री 1. हो गया है विहान री सखि,हो गया है अब विहान री, तू नींद छोड़ कर जाग री। पंछियों का कलरव गूंज रहा, सूरज देहरी को पूज रहा। तू अब तक सोई है री सखि, आंखों में लिये ख़ुमार री। चल उठ पनघट तक जाना है, दो चार घड़े जल लाना है, मै छाछ कलेवा बनालूं […] Read more » poem कविता हो गया है विहान री
कविता कविता: जिन्दगी – लक्ष्मी नारायण लहरे May 16, 2012 / May 16, 2012 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment आपना पन कहें या दोस्ताना अजीब चाहत है इस जीवन में सिर्फ संघर्ष भरी राहें है अपनों के बीच भी हम अकेले है एक -दुसरे के प्रेम से बंध कर स्वार्थ भरी जीवन जी रहे है जिन्दगी ….. की जंग में भाई -भाई को नहीं समझता माँ -बाप को नही पहचानते स्वार्थ ,भरी जीवन जी […] Read more » कविता कविता - जिन्दगी जिन्दगी लक्ष्मी नारायण लहरे