धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-18 June 13, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें गतांक से आगे…. मंत्र का अगला शब्द है-‘इंद्र’। इंद्र को हमारे वीरता और ऐश्वर्य का अर्थात समृद्घि का प्रतीक माना गया है। राजा का कत्र्तव्य है कि वह देश की प्रजा को वीर तथा ऐश्वर्यशाली बनाये। वीर्य रक्षा से वीर संतति का निर्माण […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-17 June 7, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें गतांक से आगे…. वेद की ऋचाओं में सत्य-धर्म का रस यूं तो सर्वत्र ही भरा पड़ा है, पर इस वेदमंत्र के ऋषि ने जितनी सुंदरता से सत्यधर्म का रस निचोडक़र हमें पिलाने का प्रयास किया है, वह अनुपम है। मैं समझता हूं कि विश्व […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-16 May 30, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें गतांक से आगे…. सत्य को धारण करना हमारा राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक लक्ष्य है। हम उसी के आधार पर ‘विश्वगुरू’ बनने की अपनी साधना में लगे हैं। हमारा सैकड़ों वर्ष का स्वाधीनता संग्राम इसी सत्य की साधना के लिए था। क्योंकि यह सत्य […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-15 May 26, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment इस श्लोक को देश के राजा (राष्ट्रपति) की पीठिका (गद्दी) के पीछे लिखने का उद्देश्य है कि यह देश आज भी सत्य का अनुसंधान करने वाला और सत्योपासक देश है। यह देश सत्य को छल-छदमों में लपेटकर कहने की साधना करने वाला देश नही है यह तो सत्य को जैसा है वैसा ही परोसने वाला देश है। सत्य से कोई समझौता यह देश नही करेगा। इसके विपरीत सत्य को धारण करेगा और ‘सत्यमेव जयते’ की परंपरा को विश्व परंपरा बनाकर आगे बढ़ेगा। Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-14 May 15, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें गतांक से आगे…. किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है :- ओ३म् है जीवन हमारा, ओ३म् प्राणाधार है। ओ३म् है कत्र्ता विधाता, ओ३म् पालनहार है।। ओ३म् है दु:ख का विनाशक ओ३म् सर्वानंद है। ओ३म् है बल तेजधारी, ओ३म् करूणाकंद है।। ओ३म् सबका पूज्य […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-13 May 11, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment कोई भी भजन, प्रवचन, गीत या मंत्र आदि हम इसीलिए बोलते हैं कि वह कंठस्थ होते-होते हमारे कार्य व्यवहार में उतरकर हमारे साथ इस प्रकार रम जाए कि हम और वह भजन, प्रवचन, गीत या मंत्र इस प्रकार एकाकार हो जाएं कि हमारा अस्तित्व ढूंढऩा या खोजना भी असंभव हो जाए। ऐसी अवस्था में जाकर ही कोई गीत, भजन, प्रवचन या मंत्र आदि हम पर वास्तविक प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए ‘छोड़ देवें छल कपट को’ केवल गाते ही नही रहना है, अपितु उसे अपने व्यावहारिक जीवन में उतारना भी है। Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-12 May 8, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए गतांक से आगे…. यहीं जाग्रत साधक को अत्यानुभूति होती है, स्वानुभूति होती है, इसे ही आत्मदर्शन कहा जाता है। इस अत्यानुभूति के क्षणों में मन बहुत तुच्छ सा दीखने लगता है। वह जड़ जगत में रमाने वाला ही जान पड़ता है। इसलिए मानसिक बल आत्मिक […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-11 May 3, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए गतांक से आगे…. वास्तव में जब हम व्यक्ति को मानसिक बल की प्रार्थना में लीन पाते हैं या स्वयं ईश्वर से अपने लिए मानसिक बल मांगते हैं तो इसका अभिप्राय होता है दृढ़ इच्छाशक्ति की प्रार्थना करना या विचारशक्ति को प्रबल करने की ईश्वर […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-10 April 29, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए गतांक से आगे…. ओ३म्! येनेदम् भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतम मृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।। (यजु. 34-4) अर्थ-‘जिस अमर मन ने ये तीनों काल भूत, वर्तमान और भविष्यत अपने वश में किये हुए हैं, जिसके द्वारा सात होताओं (यज्ञकत्र्ताओं) वाला यज्ञ किया […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-9 April 24, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment पर संसार के लोगों में और विद्वान लोगों में एक बात सांझा होती है कि संसार के साधारण लोग भी जिस सुख-समृद्घि की प्राप्ति करना चाहते हैं उनके लिए वह भी यज्ञयागादि और ज्ञान चर्चाएं करते हैं और विद्वान लोग भी अपने स्तर पर ऐसी ही कार्य प्रणाली को अपनाते हैं। इन सबका उद्देश्य होता है-अपने-अपने उद्देश्यों की प्राप्ति, अपनी-अपनी आकांक्षाओं की प्राप्ति। Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-8 April 20, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए गतांक से आगे…. इसी अवस्था के आनंद की चर्चा करते हुए वेदांत स्पष्ट करता है:- भिद्यंते हृदय ग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्व संशया:। क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्दृष्टे पराह्यवरे।। मु. 2 खण्ड 2 मं. 18 (स.प्र. समु. 9 पृष्ठ 371) अर्थात ‘जब इस जीव के हृदय की अविद्या अंधकार […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-7 April 17, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment जब जिह्वा पर परमेश्वर की गुणों की चर्चा होने लगे और रसना उसी के मधुर गीत गाने लगे, जब हमारे श्वांसों की सरगम में परमेश्वर के गीत भासने लगें तब समझना चाहिए कि हमारे दुर्भाग्य के दुर्दिन हमसे दूर हो रहे हैं और हमारे सौभाग्य का उदय हो रहा है। हमारे भीतर सर्वांशत: व्यापक स्तर पर परिवत्र्तन हो रहा है। हमारे भीतर और बाहर सर्वत्र क्रांति व्याप रही है। Read more » पूजनीय प्रभो हमारे