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रामलीला काण्ड और हम

गंगानन्‍द झा

बाबा रामदेव के रामलीला काण्ड पर श्री लालकृष्ण अडवाणी से सन 1975 ई. के एमर्जेंसी की याद से सिहर उठे हैं, उनके पार्टी अध्यक्ष को तो जालियाँवाला हत्याकांड की विभीषिका की याद हो आई। अतिशयोक्ति अलंकार को अभिव्यक्ति के एक रूप की मान्यता मिली हुई है, पर विश्वसनीयता की हद का सम्मान करते हुए। यह खयाल तो रखा जाना ही चाहिए कि अगर वर्तमान पीढ़ी ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया तो उन विभीषिकाओं का असम्मान होगा।

पर मुझे तो एक अधिक मिलती जुलती बात याद आ रही है। सन 1966 ई में भारत साधु समाज का आन्दोलन छिड़ा था। मुद्दा था, गोवध प्रतिबन्धित हो। आन्दोलन का चरम बिन्दु तब आया जब साधों की जमात ने दिल्ली की सड़कों पर ताण्डव किया। जैसा गणतान्त्रिक व्यवस्था में होता है, सरकार की असफलता, धार्मिक प्रतीकों की अवमानना जमता को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे पाने के ले भर्त्सना हुई। गृहमंत्री के इस्तीफे की माँगें उठी। और परिणति हुई, श्री गुलजारीलाल नन्दा जो गृहमंत्री होने के साथ उसी साधु समाज के अध्यक्ष भी थे, के त्यागपत्र से।

इस पूरे प्रकरण से संकेत मिलते हैं कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में धर्म के नाम पर कारोबार करनेवाले मुल्ला मौलवी लोगों की तरह यहाँ भी बाबाओं का सामाजिक हस्तक्षेप प्रभावी होने को मचल रहा है। ऐसी आशंका निर्मूल नहीं होगी कि कालक्रम में पाकिस्तान की तर्ज पर यहाँ भी भारतीय तालीबानी संस्करण उभड़े। सरकार भी इन्हें प्रश्रय देने में अपना योगदान कर रही है। तभी तो कालाबाजारी मिलावट और टैक्स चोरी कर मन्दिरों , धर्मशालाओं में दान देकर निदान करनेवाले सम्मानित और प्रभावकारी भूमिकाओं में विराज रहे हैं।

बचपन में बाँसुरीवाले की कहानी पढ़ी ङोगी. एक गाँव में चूहों का उत्पात मचा हआ था। लोग परेशान थे। तभी वहाँ एक बाँसुरी वाला आया। उसने कहा कि मैं सारे चूहों से गाँव को मुक्त कर दूँगा। लोग राजी हो गए। बांसुरीवादक ने तान छेड़ी। ,सारे चूहे अपने अपने बिलों से निकल आए। बाँसुरीवादक सागर की ओर बढ़ता गया, उसके पीछे पीछे चूहे भी चलते गए और सागर में डूब कर मर गए.। गाँववालों को प्रसन्नता और स्वस्ति मिली। पर बाँसुरीवादक को वे खुश नहीं कर पाए। बाँसुरीवादक ने एक दूसरी धुन छेड़ी। अब गाँव के सारे बच्चे अपने अपने घरों से निकल आए और बाँसुरीवादक के पीछे पीछे सागर की ओर बढ़ने लगे। गाँववाले देख रहे थे कि कहीं उनके बच्चे चूहों की तरह सागर में समा न जाएँ।

ये है दिल्ली मेरी जान

लिमटी खरे

पीएम के त्यागपत्र पर बाबा की रहस्यमय चुप्पी!

भ्रष्टाचार और काले धन पर योग गुरू बाबा रामदेव की चिंघाड़ से केंद्र सरकार सकते में है। बाबा रामदेव के अनशन को विफल करने सरकार ने क्या क्या जतन नहीं किए। प्रणब मुखर्जी और कपिल सिब्बल ने बाबा को रोकने जमीन आसमान एक कर दिया। कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के जहर बुझे तीर भी बाबा के आवेग को नहीं रोक सके। फिजा में खबर फैल गई कि अन्ना हजारे के मानिंद कांग्रेस के प्रबंधकों ने बाबा रामदेव को भी मैनेज करने के लिए तरह तरह के स्वांग रचे। बाबा रामदेव से कई दौर की बातचीत भी हुई। मीडिया से चर्चा में बाबा ने सदा ही कहा कि बातचीत सकारात्मक रही, पर बातचीत का मसौदा बताने से वे सदा ही हिचके। 4 और 5 जून की दर्मयानी रात में बाबा रामदेव काफी व्यथित, घबराए दिखे। कारण साफ था, कांग्रेस ने बाबा की कोई कमजोर नस दबा दी थी। बाद में बाबा ने स्त्री का वेश धारण कर वहां से गमन करना चाहा पर सफल नहीं हो पाए। पुलिस गिरफ्त में आने के बाद बाबा ने अपने गेरूए वस्त्र अचानक ही त्याग दिए, फिर वे दिखाई दिए तो सफेद कुर्ते पायजामे में। राजनैतिक वीथिकाओं में बाबा रामदेव के श्वेत धवल वस्त्रों का राज और मायने खोजे जा रहे हैं, क्यांेकि बाबा संघर्ष के दिनों में सफेद धोती कुर्ता पहना करते थे। बहरहाल इतना सब होने के बाद भी प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह के त्यागपत्र पर बाबा रामदेव की चुप्पी के अनेक मतलब लगाए जा रहे हैं।

अण्णा ने सोनिया को दिखाए दांत

भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता को एक जुट करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे ने देश के वजीरे आजम डाॅक्टर मनमोहन सिंह को अण्णा हजारे ने स्वच्छ छवि वाला अच्छा इंसान बताया है। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का नाम लिए बिना अन्ना बहुत कुछ बोल गए। बकोल अण्णा समस्या रिमोट कंट्रोल में है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में वे लोग मुसीबत पैदा कर रहे हैं जिनके हाथ में मनमोहन का रिमोट कंट्रोल है। कम समय में अण्णा हजारे राजनीति का मर्म समझ गए और फिर उन्होंने असली जड़ को भी पहचान लिया। सोनिया गांधी भले ही अपने आप को त्यागी और बलिदानी बताकर देश विदेश की तमाम पत्र पत्रिकाओं के कव्हर पेज पर स्थान पा जाएं किन्तु देश की राजनीति का रिमोट अपने हाथ में वे ही रखती हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। एक पत्रिका ने तो सोनिया पर आरोप जड़ा है कि वे सोवियत संघ के रास्ते कुछ माल को इधर से उधर भी कर रही हैं।

सिब्बल बने कांग्रेस के नए संकटमोचक

कांग्रेस में वर्तमान संकटमोचक अर्थात ट्रबल शूटर की भूमिका में मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ही नजर आ रहे हैं। जब भी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार पर कोई संकट आ रहा है सिब्बल तारण हार की भूमिका में सामने दिख जाते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने अण्णा हजारे के बाद बाबा रामदेव को अनशन न करने के लिए मनाने के लिए भी कपिल सिब्बल को ही पाबंद किया गया था। कपिल सिब्बल की फितरत से वाकिफ लोगों का कहना है कि वे बहुत ही घाघ और मंझे राजनेता है। बाबा रामदेव की मांगों को मानने के साथ ही साथ बाबा का जो पत्र सिब्बल ने मीडिया के सामने बाबा के कथित तौर पर नेपाली मूल के विश्वस्त साथी आचार्य बाल कृष्ण के उस पत्र को भी दिखा दिया जिसमें अनशन आरंभ होने के पहले ही उन्होंने अनशन समाप्ति की घोषणा कर दी थी। इस बार सिब्बल का दांव उल्टा पड़ा और बाबा रामदेव के समर्थन में देश का एक बहुत बड़ा वर्ग आ गया है।

जेल के कायदे सीख गए राजा

करोड़ों रूपयों के घोटाले के आरोपी पूर्व संचार मंत्री आदिमत्थू राजा पिछले कई दिनों से तिहाड़ जेल की रोटी खा रहे हैं। पहले जेल प्रशासन ने उनके नखरे सहे फिर आम कैदी की तरह ही व्यवहार करना आरंभ कर दिया। राजा के साथ के कैदी भी राजा के साथ उसी तरह का बर्ताव कर रहे हैं जैसा अन्य कैदियों के साथ करते हैं। जेल के अंदर ‘‘पैसा ही बोलता है‘‘ की बात राजा समझ चुके हैं। कैदियों को अपना मित्र बनाने के राजा ने घर से आने वाले खाने की तादाद में इजाफा करवा दिया है। शुरूआत में चिड़चिड़े और सदमा खाए ए.राजा अब खुश नजर आ रहे हैं। साथ के कैदियों को घर का खाना खिलाकर उनके साथ सुबह की सैर और शाम को खेलकूद कर अपना समय काट रहे हैं। 17 फरवरी को गिरफ्तार कर तिहाड़ पहुंचे राजा जेल के कायदे कानून पूरी तरह सीख चुके हैं। कैदियों को घर की इडली रसम खिलाकर वे सभी को प्रसन्न कर रहे हैं, और बदले में जेल के अंदर उन्हें उनके सेल के बाकी 14 कैदी उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं।

इच्छा मृत्यु मांगी बिट्टा ने!

युवक कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एम.एस.बिट्टा अपनों से ही बेहद खफा हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले बिट्टा के इस काम को उनकी ‘दुकान‘ की संज्ञा भी अनेकों बार दी जा चुकी है, पर बिट्टा इससे डिगे नहीं। हाल ही में उन्होंने कांगे्रसनीत कंेद्र सरकार से पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। बिट्टा का आरोप है कि सरकार जानती है कि वे आतंकवाद के खिलाफ अदालत में लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें और उनके परिवार को लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। बावजूद इसके सरकार ने उनकी सुरक्षा में लगे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड चार माह पहले हटा लिए हैं। बिट्टा को आशंका है कि राजनैतिक स्वार्थ के चलते आतंकियों के हाथांे उनकी हत्या की साजिश का ताना बाना बुना जा रहा है। अपनी ही सरकार से नाराज होकर किसी कांग्रेसी का यह कदम निश्चित तौर पर अन्य कांग्रेसियों के लिए क्या संदेश दे रहा है!

ममता की दरियादिली

ममता बनर्जी ने रेल मंत्री रहते हुए जो काम किया है वह लोग हमेशा याद रखेंगे। ममता के रेल मंत्री रहते भारतीय रेल की चाल इस कदर बिगड़ी कि उसे पटरी पर आने में कम से कम एक दशक तो लग ही जाएगा। रेल मंत्रालय में एक बार फिर अफरशाही और बाबू राज कायम हो गया है। ठेकेदारों की पौ बारह हैं। ऋषिकेश से जम्मू चलने वाली रेल जैसी अनेक रेल गाडियां हैं जिनमें रसोई यान नहीं है पर अवैध वेन्डर्स पेंट्री वालों की यूनिफार्म में लोगों को ठग रहे हैं। ममता का सपना बंगाल में रायटर बिल्डिंग पर कब्जे का था जो पूरा हो गया। भारतीय रेल भाड़ में जाती है तो जाती रहे। कांग्रेस को भी सत्ता की मलाई चखनी थी सो चख ली। पर ममता को मानना ही पड़ेगा। सीएम बनने के बाद रायटर बिल्डिंग का उन्होनंे अपने मन मुताबिक इंटीरियर करवाया। इस इंटीरियर मंे खर्च हुए दो लाख रूपए का बिल उन्होंने मुख्य सचिव समर घोष को चेक से चुका दिया है। ममता का कहना है कि जहां उन्हें दस से बारह घंटे बैठना हो वह जगह उनके मन के मुताबिक होना चाहिए, इसके लिए वे सरकार पर वित्तीय बोझ डालने के पक्ष में नहीं हैं।

यह है हृदय प्रदेश की सुरक्षा का हाल सखे

देश के हृदय प्रदेश में शिव का राज है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार किस तरह काम कर रही है, इस बात का प्रमाण अनेक घटनाओं से मिल रहा है। मध्य प्रदेश में कानून और व्यवस्था नाम की चीज बची नहीं दिख रही है। हाल ही में केद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया के इंदौर स्थित आवास पर हुई चोरी से दिल्ली में सियासत गर्मा रही है। कहा जा रहा है कि एमपी कांग्रेस के निजाम सदा से ही भाजपा के ‘पे रोल‘ पर काम करते आए हैं, यही कारण है कि 2003 के बाद प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार तेजी से गिरा ही है। अनेक मुद्दे हाथ लगने के बाद भी कांग्रेस उन्हें नहीं भुना पाई। हाल ही में निजाम बदला और उसके आवास पर चोरी हो गई। चोर आए बाकायदा घर में रखी बियर पी, काजू खाए और चोरी कर हो गए फरार। भूरिया इस मामले में खामोशी ओढ़े हैं। सियासी हल्कों में कहा जाने लगा है कि लगता है भूरिया भी भाजपा से मैनेज ही हो गए हैं।

बेवड़ों की आयु निर्धारण पर बिग बी को आपत्ति!

महाराष्ट्र सरकार द्वारा शराब का सेवन करने वालों की न्यूनतम आयु 25 बरस करने पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हैरान हैं। अमिताभ का कहना है कि 21 साल में आप वोट डाल सकते हैं, सेना में नौकरी पाकर देश की सेवा कर सकते हैं, पर शराब के सेवन के लिए आप अभी बच्चे हैं तो कीजिए 25 बरस तक इंतजार। सालों पहले शराब और सिगरेट से तौबा करने वाले अमिताभ बच्चन ने फिल्म शराबी में जो अभिनय किया था उसकी तारीफ आज भी लोग मुक्त कंठ से ही किया करते हैं। इतना ही नहीं अमिताभ के जनक हरिवंश राय बच्चन जिन्होंने मदिरा को हाथ नहीं लगाया उनकी लिखी मधुशाला आज भी प्रासंगिक हैं। प्रश्न तो यह है कि अगर महाराष्ट्र की सरकार चाह रही है कि लोग शराब जैसी सामाजिक बुराई से कम से कम 25 बरस की उमर तक दूर रहें तो इसमें भला किसी को क्या आपत्ति होना चाहिए! बिग बी को तो चाहिए था कि वे इस उमर को 25 के बजाए 35 करने की वकालत करते।

अरबपति मंत्री के राजसी ठाठबाट

देश में जनसेवक कौन है, वो जो अपनी शानो शौकत दिखाने के लिए समाज में स्थान पाने लाल बत्ती चमकाए या वो जो वाकई जरूरत मंद लोगों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करे! आजादी के वक्त जरूर जनसेवक इस तरह के काम किया करते थे, अब हालात बदल गए हैं। आज के जनसेवक करोड़पति हैं और जनसेवा के माध्यम से वे ज्यादा से ज्यादा पैसा जुगाड़ने में लगे हुए हैं। भाजपा की कर्नाटक में किरकिरी करवाने वाले रेड्डी बंधुओं के ठाठ बाट देखते ही बन रहे हैं। पहले राजा महाराजाओं के लिए यह कहा जाता था कि वे सोने के सिंहासन पर बैठा करते थे, और सोने चांदी के बर्तनों में खाना खाते थे। 153 करोड़ 49 लाख रूपए की संपत्ति वाले सूबे के पर्यटन मंत्री जी.जनार्दन रेड्डी सवा दो करोड़ रूपए मूल्य की सोने की कुर्सी पर बैठते हैं और उनके घर की कटलरी भी सोने चांदी की ही है। रेड्डी को 31 करोड़ 54 लाख रूपए सालाना पगार भी मिलती है अपने व्यापार से। अब बताईए क्या इस तरह के जनसेवकों से कुछ जनसेवा की उम्मीद की जाए।

आतंकी शरणगाह बना शांति का टापू

मध्य प्रदेश को शांति का टापू कहा जाता रहा है। पिछले कुछ सालों से मध्य प्रदेश में आतंकवादियों की आवाजाही को देखकर लगने लगा है कि आतंकवादियों ने इस सूबे को अपना आरामगाह बना लिया है। मध्य प्रदेश में मालवा, निमाड़ और महाकौशल में आतंकवादियों और कट्टरपंथियों ने अपना शरणगाह बना लिया है। मालवा के प्रमुख शहर रतलाम में सिमी के गुर्गों और एटीएस के बीच हुई मुटभेड़ में एक कांस्टेबल शहीद हो गया। दिल्ली स्थित केंद्रीय गृह मंत्रालय में इसके बाद भी हलचल न दिखाई देना आश्चर्य का ही विषय माना जा सकता है। इसके पहले एमपी के ही जिला मुख्यालय सिवनी के रिहाईशी इलाके में में बारूद से डेटोनेटर बनाते एक अधेड़ के परखच्चे उड़ गए थे, इसके बाद भी खुफिया एजंेसियों की नींद नहीं टूटी। मालवा और निमाड़ में अफीम की तस्करी से मिलने वाली रकम इनके बड़े काम आती है।

हाई सिक्यूरिटी जोन में हत्या

दिल्ली के जनपथ को हाई सिक्योरिटी जोन माना जाता है। जनपथ पर पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल के सरकारी आवास के पीछे तीन युवकों ने अपने साथी को बेरहमी के साथ पीट पीट कर मार डाला। दिल्ली पुलिस आपके लिए, सदैव का नारा अब फीका सा पड़ता दिख रहा है। दिल्ली में जब पुलिस की नाक के नीचे ही इस तरह की वारदात हो रही हो तो फिर बाकी अंचलों की कौन कहे। वैसे भी सांसदों के सरकारी आवास के बारे मंे आम धारणा यही है कि साठ फीसदी सांसद कभी कभार ही दिल्ली आते हैं, इसलिए उनके केयर टेकर नौकरों द्वारा उनके आवास और आवास के साथ बने सर्वेंट क्वार्टर को तीन से चार हजार रूपए महीने में ही किराए से दे दिया जाता है। दिल्ली में किराएदारों का पुलिस वेरीफिकेशन करवाने की बात कागजों पर बार बार हो जाती है, किन्तु हकीकत में एसा कुछ होता नहीं दिखता।

ममता की राह पर मुकुल

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की दूसरी पारी में देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि देश का रेल मंत्रालय पश्चिम बंगाल से ही चल रहा है। पहले ममता बनर्जी ने रायटर बिल्डिंग पर कब्जा जमाने के लिए बंगाल से ही रेल मंत्रालय चलाया, और फिर काबिज हो ही गईं बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर। इसके बाद अब राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार मुकुल राय भी ममता बनर्जी की राह पर ही चलते हुए बंगाल से ही रेल मंत्रालय चला रहे हैं। मुकुल राय पर आरोप है कि उनके पास मंत्रालय जाने के लिए समय नहीं है, पर वे पश्चिम बंगाल को लेकर बहुत ही ज्यादा सजग नजर आते हैं। रेल मंत्री बनते ही मुकुल राय ने बंगाल की रेल परियोजनाओं की जानकारी मांगी है। रेल मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मुकुल राय ने साफ इशारा कर दिया है कि ममता बनर्जी की प्राथमिकताओं को पहले पूरा किया जाए फिर किसी अन्य काम को हाथ लगाया जाए।

पुच्छल तारा

बाजार में हाथ की रेखाओं, अंक ज्योतिष और कुंडली आदि देखकर भविष्य बताने की न जाने कितनी दुकाने खुल गईं हैं। समाचार चेनल्स ने भी भगवा वस्त्र पहने तिलक धारियों को बिठाकर अपनी दुकाने चमकाना आरंभ कर दिया है। मनुष्य को कर्म पर विश्वास करना चाहिए न कि राशियों पर। इस बात को लिखा है भोपाल मध्य प्रदेश से संदीप गुप्ता ने। संदीप लिखते हैं कि कर्म से बड़ी चीज कोई नहीं होती। राम और रावण, कृष्ण और कंस, गांधी और गोडसे, ओबामा और ओसामा के अलावा न जाने कितने उदहारण हैं जिनमें राशियां एक सी हैं, पर कर्म! कर्म एकदम अलग अलग सो विश्वास करे सिर्फ कर्म पर गांधी बनने की कोशिश करें गोडसे बनने की नहीं।

सुनाई देने लगी ‘आपातकाल‘ की पदचाप

लिमटी खरे

देश की आजादी के वक्त आजादी के परवानों और महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं ने इक्कीसवीं सदी में भारत की जो कल्पना की होगी, भारत गणराज्य उससे एकदम ही उलट नजर आ रहा है। गरीब और अधिक गरीब तो अमीर की तिजोरी इतनी भर चुकी है कि उसका मुंह बंद नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस की नाक के नीचे जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के लाखों करोड़ों रूपयों की होली खेली जा रही है, पर कांग्रेस नीत कंेद्र सरकार आखें बंद कर बैठी है। ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ‘ का नारा देने वाली कांग्रेस की पोल अब खुलने लगी है। हालात देखकर लगने लगा है कि कांग्रेस को अपना नारा बदलकर ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी की गर्दन के साथ‘ कर देना चाहिए। बाबा रामदेव और उनके समर्थकों के साथ रामलीला मैदान पर जो भी हुआ उससे भान होने लगा है कि आने वाले समय में आपतकाल लागू होजाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए

देश की जनता घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार से पूरी तरह आजिज आ चुकी है। चूंकि कानून में बदलाव का हक संसद, विधानसभा, सांसदों और विधायकों को ही होता है इसलिए आम जनता अपने आप को निरीह, निर्बल, मजबूर ही महसूस कर रही है। जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के द्वारा देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था, हालात कुछ उसी तरह के बनते नजर आ रहे हैं। उस वक्त श्रीमति इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष तो उनके पुत्र संजय गांधी कांग्रेस के महासचिव हुआ करते थे। कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, आज कांग्रेस अध्यक्ष की आसनी पर इंदिरा गांधी के बजाए उनकी इटली मूल की बहू श्रीमति सोनिया गांधी तो महासचिव के पद पर संजय गांधी के भतीजे राहुल गांधी विराजमान हैं।

सोनिया की चाटुकार मण्डली में भी इंदिरा गांधी की कोटरी का अक्स ही दिखाई दे रहा है। उस वक्त प्रकाश चंद सेठी और नारायण दत्त तिवारी के जो स्वर थे वही तल्खी और स्वामीभक्ति राजा दिग्विजय सिंह के सुरों में दिखाई दे रही है। आपात काल में जिस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई थी, वही हालात आज भी दिख रहे हैं। सरकार का विरोध करने पर अन्ना हजारे के बाद अब रामदेव बाबा को आम ‘चोर‘ की तरह पकड़ा जाना निंदनीय है।

रामलीला मैदान में 4 और 5 जून की दरमयानी रात को जो रावण लीला हुई उससे देश दुनिया का हर नागरिक हतप्रभ है। कांग्रेस के इशारे पर पुलिस की बर्बरता से साफ हो गया है कि लोकतंत्र की स्थापना करने वाली कांग्रेस की वर्तमान पीढ़ी को अब लोकतंत्र पर विश्वास नहीं रहा। आज के हालात देखकर लगने लगा है मानो भारत गणराज्य में ‘हिटलरशाही‘ हावी होती जा रही है। अगर कोई सरकार या तंत्र के खिलाफ बोलने का साहस जुटाता है तो उसे मिटाने के लिए राजनेता एड़ी चोटी एक कर देते हैं।

आजादी के उपरांत 1975 में जय प्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के कदमों से त्रस्त जनता को उस जंगल राज से मुक्ति दिलाने के लिए आंदोलन छेड़ा और इंदिरा गांधी से त्यागपत्र मांग लिया। जेपी की यह कथित घ्रष्टता इंदिरा गांधी और संजय गांधी को इतनी नागवार गुजरी कि उसी वक्त देश में आपातकाल लगा दिया गया। सरकार का विरोध करने वालों को तरह तरह की यातनाएं देकर जेल मंे बंद कर दिया गया था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्यों को मीसा में बंद कर जिस तरह की अमानवीय यातनाएं दी थीं, उसे याद कर आज भी मीसाबंदियों सिहर उठते हैं।

रामलीला मैदान में भी कांग्रेस नीत कंेद्र सरकार द्वारा ने कमोबश यही कदम उठाया है। आधी रात को चोरों की तरह जाकर बाबा रामदेव को पकड़ने और शांति पूर्वक अनशन करने वालों के खिलाफ लाठियां भाजनें का ओचित्य किसी को समझ नही आ पाया है। महिलाओं और उनके साथ आए बच्चों को भी पुलिस ने अपना निशाना बनाया। सवाल यह है कि आखिर एसी कौन सी आफत आ गई थी सरकार को अंधेरी रात में इस तरह के कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा।

देश की सवा करोड़ जनता प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से इस बात का उत्तर अवश्य चाह रही है कि अगर देश में वाकई लोकतंत्र बचा हुआ है, तो वे इस बात का जवाब अवश्य ही दें कि आखिर क्या वजह थी कि बाबा रामदेव को पकड़ने और अनशनकारियों पर अश्रु गैस और लाठियां भांजने के लिए दिन होने का इंतजार नहीं किया गया? क्या कारण था कि सोते निर्दोष लोगों को बेतहाशा पीटा गया? क्या यही लोकतंत्र की परिभाषा है? क्या यही नेहरू और महात्मा गांधी के सपने के भारत के शासक हैं? इसे तो सोनिया और राहुल के शासन के प्रजातंत्र का नमूना कहा जा सकता है।

यह तो वाकई उपर वाले का शुक्र मनाना चाहिए कि चार और पांच जून की दर्मयानी रात को रामलीला मैदान में पुलिसिया कहर के बावजूद भी कोई अनहोनी नहीं घटी, वरना हालात संभालना मुश्किल हो जाता। देश के चेहरे पर भ्रष्टाचार, घपले, घोटालों के साथ ही साथ कुछ इस तरह के दाग भी लग जाते जिन्हें धोने में सालों साल का समय भी कम पड़ जाता। बाबा रामदेव के साथ ‘डीलिंग‘ करने में सरकार द्वारा जो तरीका अपनाया गया, वह अपने आप में इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि बाबा रामदेव के अनशन से सरकार किस कदर खौफजदा है।

उधर बाबा रामदेव इस आंदोलन की सफलता से फूले नहीं समा रहे हैं। बाबा का कहना है कि अगर आंदोलन तीन दिन चल जाता तो सरकार गिर जाती? हो सकता है बाबा की बात में दम हो, किन्तु बाबा को इस तरह का अहम नहीं पालना चाहिए। पहले भी मीडिया ने बाबा रामदेव का अनेक बार साक्षात्कार में भी उनका अहम छलका है। बाबा ने संवाददाताओं को ही डामीनेट करने के हथकंडे भी अपनाए। कहा जाता है कि ‘अहम‘ में से ‘अ‘ को अलग कर दिया जाए तो बाकी बचता है ‘हम‘।

केंद्र सरकार के इस तरह के कदम के उपरांत देश की सबसे बड़ी अदालत ने खुद संज्ञान लिया है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार और जस्टिस बी.एस.चैहान की पीठ ने केंद्र सरकार के गृह सचिव, दिल्ली सरकार के गृह सचिव और पुलिस आयुक्त दिल्ली को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में की जाएगी। एक याचिका कर्ता अधिवक्ता अग्रवाल के अनुसार कोर्ट ने उनकी अपील दाखिल करने के साथ ही कहा कि न्यायालय इस मामले में खुद ही स्वमोटिव नोटिस ले रहा है। कोर्ट खुद भी समाचार पत्र की कतरनों और विजुअल्स देखकर सन्न रह गया है। कोर्ट ने इस मामले को बेहद संगीन माना है।

खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे

बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को इस तरह कुचलना अलोकतांत्रिक

सुरेन्‍द्र पॉल

दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकारी शह पर पुलिस ने आधी रात को जो ‘लीला’ रची है, उसने लोकतंत्र के चेहरे को बुरी तरह से कलंकित कर दिया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव के आंदोलन से बौखलाई सरकार को जब कुछ नहीं सूझा तो उसने सभास्थल को उजाड़ने और लोगों को मार-भगाने में ही अपनी खैर समझी। सोते हुए लोगों पर जिस तरह से लाठियां भांजीं गयीं, आंसूगैस के गोले छोड़े गये और लोगों को खदेड़कर भगाया गया…उसने इमरजेंसी की यादें ताज़ा कर दी हैं।

सत्ता के गलियारों में अब सियासत इस मुद्दे पर आम आदमी को बांटने और उसका ध्यान भटकाने में लग गयी है। कांग्रेस, अंग्रेजों से विरासत में मिली ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का प्रयोग अपने ही लोगों पर कर रही है। जैसे ही भ्रष्टाचार को लेकर समवेत स्वर मुखर होते हैं, तो उसकी पूरी की पूरी मशीनरी इन आवाज़ों को दबाने में लग जाती है। इससे पहले अन्ना हज़ारे द्वारा चलाए गये आंदोलन से जिस तरह से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश की गयी और एक बड़े मुद्दे को व्यक्तिकेंद्रित कर दिया गया, ऐसा ही अब बाबा रामदेव के आंदोलन के साथ हो रहा है। आंदोलन को एक व्यक्ति विशेष तक ही समेटकर रखने की कांग्रेस की यह सोची-समझी चाल है। सरकार मुख्य मुद्दे से ध्यान बंटाने के लिए दिग्विजय सिंह जैसों के माध्यम से कवर फायर कर रही है। यदि बाबा रामदेव के आंदोलन को भाजपा का समर्थन प्राप्त है या इस आंदोलन के पीछे आरएसएस का हाथ है (जैसा कि दिग्वजिजय सिंह, कपिल सिबब्ल और दूसरे कांग्रेसी कह रहे हैं), तो भी इस शांतिपूर्वक चल रहे आंदोलन को इस बेरहमी से कुचलने का क्या औचित्य है? यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है और इससे कांग्रेस का फासीवादी चेहरा ही सामने आ रहा है। यदि बाबा रामदेव ठग या टैक्स चोर हैं, तो यह सवाल आज ही क्यों उठाया जा रहा है, इससे पहले उन के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

दिल्ली पुलिस प्रशासन इस मामले में जो तर्क दे रहा है, वह भी ध्यान देने योग्य हैं। प्रशासन का कहना है कि यहां सिर्फ योग शिविर की इजाज़त थी और एक निश्चित संख्या तक ही लोगों को इकट्ठा होने की इजाज़त दी गई थी। जबकि स्वामी रामदेव स्वयं यह कहते रहे हैं कि इस आंदोलन में देश भर में करोड़ों लोग और दिल्ली में एक लाख लोग शामिल होंगे। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार और उसकी सुरक्षा व खुफिया एजेंसियां उस समय सो रही थीं, जब हजारों की संख्या में लोग दिल्ली की ओर कूच कर रहे थे?

सत्ता के लिए कानून के अपने मायने होते हैं। जब केंद्र सरकार के मंत्रियों की मान-मुन्नौवल नहीं चली तो उसने इस शांतिपूर्ण चल रहे आंदोलन को बर्बरता से कुचलने में भी देर नहीं की। यहां तक कि सुबह होने तक का इंतज़ार नहीं किया। यहां यह बात तो सही है कि सत्ता का अपना दम-खम होता है, लेकिन सत्ता को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जनता के दम पर सत्ता में हैं। यह पब्लिक है, यह सब जानती है और इतिहास गवाह है कि पब्लिक अर्श से फर्श पर लाना भी जानती है। कुल-मिलाकर ऐसा लग रहा है जैसे केंद्र की यूपीए सरकार अपने लिए खुद ही ताबूत तैयार कर चुकी है। बस उसमें आखिरी कील का ठोंका जाना बाकी है। अब तो इतना ही कहना है कि-

तुमने दमन किया तो हम और बढ़ गये,

पहले से आ गया है हममें निखार, देख।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय में सहायक प्राध्‍यापक के रूप में कार्यरत हैं)

सोनिया और मनमोहन के बीच फंसे बाबा रामदेव

गौतम चौधरी

बाबा रामदेव के द्वारा किया गया कथित एतिहासिक अनशन का बडा बुरा हश्र हुआ है। रात के अंधेरे में बाबा को गिरफ्तार कर लिया गया। रामलीला मैदान को खाली कराने के लिए अर्धसैनिक बल एवं दंगा निरोधक दस्ते भेजे गये। समर्थकों पर लठियां बरसाई गयी। ध्यान और भगवान की भक्ति कर रहे श्रध्दालुओं को बुरी तरह पीटा गया। सुवह तक तो पता ही नहीं था कि आखिर बाबा को कहां ले जाया गया लेकिन दिन के 10 बजे के बाद वे देहरादून के जौलीग्रांड हवाई अड्डा पर देखे गये। जानकारी मिली है कि दिल्ली पुलिस ने बाबा के खिलाफ कई अरोप लगाये हैं। बाबा पर आरोप है कि वे सरकारी काम में बाधा पहुंचा रहे थे। उन्होंने दंगा भडकाने का प्रयास किया और सरकारी संपति को क्षति पहुंचाई है। आजकल मैं चण्डीगढ में अपनी संवाद समिति का काम देख रहा हूं। शनिवार को बाबा के समर्थकों के द्वारा उपवास और धराना स्थल पर भी गया था। बडी शांति थी। कार्यक्रम के संयोजक आर0 आर0 पासी लोगों से गुस्सा और आक्रोश थूक देने की बात कर रहे थे। लेकिन कहीं से कोई आवेश धरना स्थल पर नहीं दिखा। गुजरात, मध्य प्रदेश, छतीसगढ, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों से मैं लगातार संपर्क में हूं। इन प्रांतों के बुध्दिजीवियों और पत्रकार, संवाददाताओं से भी जुडा हुआ हूं। यही नहीं दिल्ली में खुद मेरी संवाद समिति के संवाददाता गोविन्द चौधरी बाबा के कार्यक्रम को कवर कर रहे हैं। किसी ने नहीं कहा कि बाबा का आन्दोलन उतेजक था। बावजूद बाबा को खदेड दिया गया। इसे क्या कहा जये? लगातार लोकतंत्र की दुहाई देने वाली सरकार अगर अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन कर रही जनता पर लठियां बरसाती है तो भारत को एक लोकतांत्रिक देश कहा जाना बेईमानी नहीं तो और क्या है। आखिर रात के अंधेरे में सरकार और प्रशासन को कैसे खबर लग गयी कि बाबा दंगा भडकाने का काम कर रहे हैं? आष्चर्य की बात यह है कि दंगा भडकाने वाले बाबा के आगवानी में सुवह सरकार के चार केन्द्रीय मंत्री दिल्ली हवाई अड्डा पहुंच गये थे। बाबा पर अगला आरोप है कि उन्होंने सरकारी संपत्ति को नुक्षान पहुंचाया हैं। पंडाल बाबा के समर्थकों का, पंडाल में आग लगाने का काम प्रषान ने किया, आषू गैसे के गोले पुलिस ने दागे, पुलिस ने बाबा को गिरफ्तार कर लिया और उनके समर्थकों को बुरी तरत पीटा गया। फिर भी प्रषासन कह रही है कि बाबा ने सरकारी संपत्ति को नुक्षान पहुंचाया है। यह भी बात समझ से परे है कि आखिर रात में सरकार का ऐसा कौन सा काम चल रहा था जिसे बाबा और बाबा समर्थकों ने नहीं होने दिया। ऐसे कुछ मौलिक प्रष्न है जो सरकार और प्रषासन को कठघरे में खडा करता है।

भले बाबा यह मान कर चल रहे होगे कि धरना और अनशन शांतिपूर्ण संपन्न होगा लेकिन संकेत बता रहा था कि बाबा के साथ कुछ बुरा होने वाला है। इस स्थिति के लिए बाबा खुद जिम्मेबार हैं। अगर बाबा भी अन्ना हजारे की तरह संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन अध्यक्ष सोनिया गांधी को केन्द्र में रखकर वार्ता करते तो बाबा को मखमली रास्ता प्रदान किया जाता लेकिन बाबा सोनिया और सोनिया गिरोह को खारिज कर प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को महत्व देने की कोषिश की जिसका खमियाजा बाबा को भुगतना पड रहा है। सोनिया के व्यक्तित्व का अध्यन करने वालो का मानना है कि सोनिया जी अपने सामने किसी को बरदास्त नहीं कर सकती हैं। हो सकता है बाबा को इस बात का एहसाश नहीं हो लेकिन बाबा ने जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया को बाईपास कर प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को महत्व देना प्रारंभ किया तभी सोनिया गुट ने तय कर लिया होगा कि अब बाबा को छोडा नहीं नहीं जाएगा।

सोनिया ही नहीं सोनिया जी का पूरा गिरोह हिन्दू संतो को ठिकाना लगाने में लगा है। सोनिया जी और उनके प्रधान सिपहसलार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विय सिंह हिन्दू संतों पर हल्ला बोले हुए हैं। बाबा ईसाई चर्च के भी टारगेट में हैं। जानकारी में रहे कि बाबा जैसे राफ साफ संतों को साधने के लिए ही मैडम मार्गेट अल्बा को उत्तराखंड की गवरनरी प्रदान की गयी है। बाबा ईसाई चर्च पर लगातार हमला बोल रहे हैं। इसलिए देश के अधिकतर संतों को बदनाम कर चुका ईसाई गिरोह अब बाबा के उपर हावी होना चाहता है। इस अभियान में भी ईसाई संगठनों ने संप्रग प्रमुख सोनिया को अपना हथियार बनाया है। सोनिया अपने से कुछ भी नहीं करती हैं। उनके सहयोगी के रूप में ईसाई चर्च ने तीन काडिनल बिठा रखे हैं। यहां दो बातों का उल्लेख करना जरूरी है। पहला कि ईसाई चर्च भारत के बहुसंख्यक हिन्दू और मुस्लमान दोनों को बदनाम कर ईसाई संप्रदाय को आदर्ष संप्रदाय साबित करने में लगा है। दूसरी बात यह है कि सोनिया जी अपनी संल्तनत सुरक्षित करना चाहती है। इधर प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को देश की चिंता है। लेकिन सोनिया और चर्च को इस बात से कोई लेना देना नहीं है। वे अपने स्वार्थ में लगे हैं। जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड रहा है। सोनिया और उनके गुट के लोगों को प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह की मजबूती खल रही है। इसलिए सोनिया जी डॉ0 सिंह को कोई मौका ही नहीं देना चाहती हैं। लेकिन आजकल देश की जनता समझने लगी है।

याद रहे अन्ना का डील खुद सोनिया जी ने किया था। अन्ना के अनशन के समय केन्द्रीय मंत्री सिब्बल, डॉ0 मनमोहन सिंह के प्रतिनिधि नहीं अपितु संप्रग अध्यक्ष सोनिया जी का प्रतिनिधि बनकर अन्ना हजारे के पास गये थे। तब अन्ना का आन्दोलन निष्कंटक संपन्न हुआ लेकिन बाबा ने अपने रास्तों में खुद कांटा बो लिया। अगर वे सोनिया का दामन थामे होते, जिसके लिए चार केन्द्रीय मंत्री उनकी आगवानी करने पहुंचे थे तो बाबा आज शांतिपूर्ण अनशन तोड रहे होते लेकिल बाबा का हठयोग सोनिया जी को ठीक नहीं लगा जिसका प्रतिफल सबके सामने हैं।

इस आन्दोलन का क्या हश्र हुआ या आगे क्या होगा यह तो अभी नहीं बताया जा सकता है लेकिन बाबा के आन्दोलन ने दो बातों की स्थापना कर दी है एक तो यह कि दस जनपथ और प्रधानमंत्री के बीच गतिरोध है और वह गतिरोध ताकत को लेकर है। दूसरी बात यह कि बाबा रामदेव का आन्दोलन ही सही मायने में जनता का आन्दोलन है। क्योंकि इससे सरकार घबराइ हुई है। हो सकता है बाबा के आन्दोलन को भी फिक्स करने का प्रयास किया गया होगा लेकिन बाबा का आन्दोलन फिक्स नहीं हो पाया और अब बात आगे निकल चुकी है। इधर अन्ना हजारे और उनके संगठन ने भी बाबा का समर्थन किया है जिससे यह साबित हो गया है कि सारे लोगों को यह लगने लगा है कि बाबा के साथ पूरा देश खडा है। अब एक बात यह होनी चाहिए कि देश के अंदर आन्दोलन को सोखने वाली ताकत को चिंहित कर उसको बेनकाब किया जाये। जबतक ऐसा नहीं होगा जबतक सोनिया जैसों को ईसाई चर्च अपना हथियार बनाता रहेगा।

आप को कुछ कहने का अधिकार नहीं!

लोकेन्‍द्र सिंह राजपूत

आप अपना काम करें, देश की समस्याओं पर बोलने का कोई अधिकार आपको नहीं है। अगर आप डाक्टर हैं तो लोगों का इलाज करें। शिक्षिक हैं तो सिर्फ वही पढ़ाएं जो किताबों में लिखा है। इंजीनियर है तो बिल्डिंग बनाएं, देश निर्माण करने की आवश्यकता नहीं। यही संदेश दिया है कांग्रेस ने चार-पांच जून की दरमियानी रात रामलीला मैदान में योग गुरु बाबा रामदेव के अनशन पर बर्बर कार्रवाई कर। कांग्रेस और उनके नेताओं ने मीडिया के सामने खुलकर कहा कि हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन कर रहे इस देश के नागरिकों पर आंसू गैस के गोले दागकर और लाठियां भांज कर एकदम सही किया है। इतना ही नहीं उन्होंने उन तमाम लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का मन बना लिया है, जिन्होंने बाबा रामदेव का साथ दिया है या जिन्होंने भ्रष्टाचार के विरोध में अपनी आवाज उठाने का प्रयास किया। पूरी कांग्रेस और उनके बड़बोले नेता बकबक करने में लगे हैं कि बाबा रामदेव योग गुरु हैं, उन्हें लोगों को सिर्फ योग सिखाने का काम ही करना चाहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश जागरण की जरूरत नहीं। उनकी मंशा साफ देश को लूटने की दिखती है। वे चाहते हैं कि हम आराम से भ्रष्टाचार करते रहें और कोई हमें कुछ न कहे। उन्हें पता है जनता जाग गई तो हमने देश में जो लूट-खंसोट मचा रखी है वह बंद करनी पड़ेगी। मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि यह कौन सा तर्क है कि आप जो काम कर रहे हैं वही करें। देश की समस्याओं के बारे में कुछ भी कहने का आपको अधिकार नहीं। अरे, इस देश के हर एक नागरिक का अधिकार है कि वह देश में चल रही गड़बड़ियों को उजागर कर सके, उनके खिलाफ आवाज बुलंद करे। इस देश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में राजपाठ में साधु-संतो, शिक्षिकों और उपदेषकों ने हमेशा से मार्गदर्शन दिया है। इस देश के इतिहास में तो इसकी लम्बी परंपरा है।

कांग्रेस और उसके नेताओं ने 60 सालों में इस देश को जमकर लूटा है। अब जनता जाग रही है तो उसे डर लग रहा है कि उसका गोरखधंधा कैसे जारी रहेगा। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ठग है, धोखेबाज, बर्बर है। उसने पहले अन्ना हजारे को धोखा दिया और अब बाबा रामदेव के अनशन पर बल प्रयोग किया है। वैसे हमेशा से ही कांग्रेस के शासनकाल में जनआंदोलनों का यही हश्र होता आया है। आपातकाल में भी लाखों लोगों पर अनगिनत अत्याचार किए गए। पांच जून की दरमियानी रात जो हुआ उसका सारे देश में सब ओर से विरोध हो रहा है। कांग्रेस के इशारे पर रात में सोते हुए लोगों पर लाठीचार्ज जैसी दमनात्मक कार्रवाई की गई। पांडाल में हजारों महिलाएं अपने छोटे बच्चों के साथ सो रहीं थीं। वृद्ध साधु-संन्यासी और देशभर से आए हजारों आमजन दिनभर की थकान के बाद गहरी नींद में थे। ऐसे वक्त की गई बर्बर पुलिया कार्रवाई की तुलना जलियांवाला बाग से की जा रही है। जो कि अतिश्योक्ति कतई नहीं। कल्पनामात्र से ही आंखें भर आती हैं कि अपरा-तफरी में छोटे-छोटे बच्चों की क्या हालत हुई होगी। गरीबों का मसीहा बनने का ढोंग करने वाला राहुल गांधी इन्हें देखने नहीं आया और न ही का बयान जारी किया कि यहां महिलाओं के साथ कांग्रेस के इशारे पर कितनी बर्बता बरती गई। लेकिन, उस दयालु, करुणा के प्रतीक, मानवता के रक्षक राहुल गांधी का कहीं कोई अता-पता नहीं।

…… ये कैसी सरकार है जो एक और तो भ्रष्टाचारियों और आतंकवादियों के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं कर रही है वहीँ निर्दोष और समस्याओं से घिरे लोगों पर आसू गैस के गोले दाग कर अत्याचार कर रही है… क्या ये सरकार समाजकंटकों के बचाव और देश भक्तों के विरोध में है…???

किसने क्या कहा –

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इस घटना को रामलीला मैदान में रावण लीला करार दिया।

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी – बाबा रामदेव की गिरफ्तारी और लोगों पर लाठीचार्ज की तुलना जलियांवाला बाग कांड और आपातकाल की।

गाधीवादी कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे – बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर कल मध्यरात्रि को हुई पुलिस कार्रवाई देश की लोकशाही पर कलंक की तरह है और इस कार्रवाई के लिए सरकार को सबक सिखाने वाला आदोलन करने की जरूरत है।

भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी – शनिवार को बाबा रामदेव के खिलाफ की गई कार्रवाई इमर्जेंसी के दिनों की याद दिलाती है। पार्टी अध्यक्ष ने कहा, ‘ यह लोकतंत्र को कलंकित करने वाली घटना है , जिसे सोनिया गांधीऔर मनमोहन सिंह के इशारे पर अंजाम दिया गया। पुलिस और आरएएफ ने लोकतांत्रिक तरीके से अनशन कर रहे निहत्थे लोगों पर अत्याचार किया , जो दुखद है।

संतोष हेगड़े – कर्नाटक के लोकायुक्त और लोकपाल विधेयक मसौदा समिति में समाज की ओर से शामिल सदस्य संतोष हेगड़े ने कहा कि बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर की गई पुलिस कार्रवाई आपातकाल के दिनों की याद दिलाती है। पुलिस ने रामलीला मैदान पर धारा 144 लगा दी। धारा 144 तब लगाई जाती है जब कानून व्यवस्था से जुड़ी स्थिति बिगड़ने की आशंका होती है। लेकिन जब पुलिस कार्रवाई हुई तब रामदेव, उनके समर्थक, महिलाएं और बच्चे सो रहे थे। सोते लोग कैसे कानून व्यवस्था से जुड़ी स्थिति बिगाड़ सकते हैं।

शांति भूषण – पुलिस की इस बर्बर कार्रवाई से आपातकाल की याद आ जाती है। उन्होंने कहा कि यह काफी निंदनीय है और प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर इस्तीफा देना चाहिए।

बीजेपी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर – सभी को इसका विरोध करना चाहिए। उन्होंने इसे आजादी और लोकतंत्र, दोनों पर हमला बताया है।

आरएसएस प्रवक्ता राम माधव – सरकार का रवैया हैरान करने वाला है। सरकार भ्रष्टाचारियों से डर गई है, जिस कारण आंदोलन को जबरन खत्म करवाया गया। स्वामी अग्निवेश ने भी पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि वे इसका विरोध करेंगे।

अरविंद केजरीवाल – केंद्र सरकार ने बाबा और अन्ना दोनों को धोखा दिया है।

बाबा रामदेव – हरिद्वार पहुंचने के बाद कहा कि यूपीए सरकार मेरे एन्काउंटर की साजिश कर रही थी। उन्होंने प्रेस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अनशन से पहले होटल में केंद्रीय मंत्रियों के साथ मीटिंग के दौरान भी उन्हें अनशन न करने के लिए धमकी दी गई थी। सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि यूपीए अध्यक्ष के निर्देश पर ही रामलीला मैदान में जमा महिलाओं और बच्चों बर्बर कार्रवाई की गई।

ये सरकारी नहीं असरकारी योगी है

डॉ. मनोज जैन

कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है बाबा रामदेव योग की क्रियायें शास्त्रोक्त नहीं हैं वह अपने मनमाने तरीके से यौगिक क्रियायें सिखाते हैं। अब दिग्विजय सिंह योगविज्ञान के वेत्ता भी हो गयें हैं। ऐसा नहीं है कि दिग्विजय सिंह सब अपने मन से और उटपंटाग तरीके से बोल देते हैं वास्तव में वह मातारानी के दरवार के शेर है जो माताजी महाराज की मर्जी से ही दहाडतें हैं। उनको रखा ही इसलिये गया है कि यदि सामने वाला डर जाये तो ठीक है यदि न डरे तो भी ठीक है क्यों दौनों ही हालात में मैयारानी की ही जय जयकार होनी है। दिग्विजय कोई विदूषक नहीं है परन्तु बेरोजगार अवश्य हैं और उनकी इसी मजबूरी को ढाल बना कर 10 जनपथ से वार किये जाते हैं। अब तो इस दिग्विजयी ढाल पर इतनी मार पड चुकी है कि इस ढाल की चाल ही विगढ चुकी है। दरअसल कांग्रेस पार्टी ने पहले अपने तरीके से बाबा को पटाने की सोची थी कांग्रेस की सोच थी कि जैसे अब तक के तमाम बाबा और योगी कांग्रेस ने पटा लिये थे रामदेव को भी पार्टी पटा ही लेगी। क्योंकि रामदेव के तामझाम और सुविधाओं को देखने से तो यही आभास होता है कि यह भी सुबिधाभोगी बाबा है। परन्तु बात दरअसल ऐसी है नहीं। बाबा की सेवा में तमाम तरह की गाडियां होती है पर बाबा हमेंशा अपनी काली र्स्कापियो में ही बैठतें हैं। कितना ही लम्बा प्रवास क्यों न किया हो सुबह तीन बजे बाबा जग ही जाते है। दिन चाहे कितना ही व्यस्त क्यों न रहने वाला हो पर सुबह का योग और प्राणायाम तो होगा ही होगा। पतंजलि योगपीठ की सारी सुविधायें निर्धारित भुगतान पर सभी को उपलब्ध हैं। बाबा के शरीर पर सूती भगवा वस्त्र और पैरों में खडाउं, खाने में सादा भोजन सन्यासीं की यही आवश्यकताएं हैं। संगठन में परिवार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। हॉ सारी व्यवस्थाएं आधुनिक प्रंबधको द्वारा कारपोरेट तरीके से संचालित होती है जिस प्रकार अम्बानी, टाटा, आदि के व्यापार चलते रहते है बाबा के कारोबार भी चल रहे हैं जिन का नियमानुसार आडिट होकर करों का भुगतान किया जाता है। दिग्विजय सिंह की परेशानी यह है कि यह बाबा अपने आश्रमों के लिये जमीन खरीदता क्यों है शासन से क्यों नहीं मांगता, बडें व्यापारी भी शासन से भयभीत रहते हैं क्यों कि उनको शासन के नाराज होने पर व्यक्तिगत नुकसान की संभावना रहती है। परन्तु बाबा तो सन्यासीं है वह तो पहले ही से निर्भय है इसलिये शासन से भयभीत नहीं होता है।

अब दिग्विजय सिंह ने नया बाण छोडा है कि बाबा के योग सिखाने का तरीका शास्त्रोक्त नहीं है। जहॉ तक मैनें बाबा को जाना है बाबा हर चीज के मामले में प्रयोगधर्मी है। और यही कारण है कि अब तक स्थापित योग के घरानों में यह चर्चा बहुत आम है कि बाबा का योग सिखाने का तरीका परम्परागत नहीं है। पर बाबा प्रयोगधर्मी है और उनका कहना है कि मैनें इस प्रकार से करके देखा तो मुझे यह लाभ समझ में आया है। आप को समझना है तो आप भी करके देखों। काफी सारे लोग करके देख रहे है और उनको लाभ मिल रहा है हजारों रुपये डाक्टरों के यहॉ बरबाद करने के बाद निराश लोग स्वस्थ्य होकर बाबा को चन्दा देते है तो इसमें आश्चर्य क्या है। पहले बाबा डाक्टरों के निशाने पर थे जहॉ बाबा के शिविर होते थे वहीं पर डाक्टर चुनौती की मुद्रा में खडें होकर बाबा को ललकारने लगतें थें बाबा की योग प्रणाली की वैज्ञानिकता पर सवाल खडें करने लगते थे। अब बाबा तो बाबा है उनके पास कोई वैज्ञानिक अध्ययन तो था नहीं सो वो सही जबाव देते बस एक ही तरीका था कि हमने करके देखा है तुम भी करके देख लो। पर बाबा के पास एक चीज हमेशा से थी वह था उनका दृढ आत्मविश्वास, जिसकी दम पर बाबा ने समूचे वैज्ञानिक जगत को चुनौती दे रखी थी। सन 2003 से बाबा ने अपने योग शिविरों में व्यवस्था पर चुपके चुपके चोट करना शुरु कर दी थी। मार्च 2004 में ग्वालियर के योग शिविर में मैने कहा था कि बाबा जी तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं तो बाबा ने कहा था कि मैं कभी भी राजनीति में नहीं आउंगा पर मैनें अपने मित्रों को कहा था कि बाबा राजनीति में आयेगें और पूरे दमखम के साथ आयेगें। और कभी डाक्टरों के निशाने पर आलोचनाओं के घेरें में रहे स्वामी रामदेव अब राजनीति में कदम रखने के पूर्व ही राजनेताओं के निशाने पर आ गये हैं। स्वामी रामदेव की एक विशेषता है कि प्रयोगधर्मी होने के कारण वह हर चुनौती को साहस के रुप में स्वीकार करते हैं और उन्हीं की भाषा में समुचित जवाब भी देतें हैं। यही कारण हैं कि स्वामी रामदेव ने पंतजलि योगपीठ में अत्याधुनिक रिसर्च लैब की स्थापना की है जहॉ अर्न्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ शरली टेलिस के मार्गदर्शन में योग एंव स्वामी रामदेव की योग पद्वाति पर विविध शोध कार्य सम्पन्न हो रहे हैं जिनके द्वारा वैज्ञानिकों के प्रश्नों का उत्तर उन्हीं की भाषा में दिया जा रहा है। और अब स्वयं स्वामी रामदेव द्वारा व्यवस्था परिर्वतन के मुददे पर राजनेताओं को उन्हीं की भाषा में धरना प्रदर्शन के माध्यम से समझाया जा रहा है। रही बात मातारानी के दरबार की तो मातारानी 10 जनपथ से पूर्व त्रिमूर्ती भवन में विराजती थी जहॉ धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का बेरोकटोक आना जाना था पर जब धीरेन्द्र ब्रह्मचारी सरकारी योगी हो गये तो उनका प्रभाव दिल्ली में तो बहुत बढा पर जनता में उनकी भूमिका संदेहास्पद योगी की हो गई। जबकि आज भी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की किताबों को सन्दर्भ पुस्तकों के रुप में निर्विवाद ख्याति प्राप्त है। उनके यौगिक सूक्ष्म व्यायामों को हर योग करने वाला करता ही है। एक अन्य संत जी जो बाद में केन्द्रीय मंत्री भी हो गये थे मातारानी की चाकरी में आ गये थे। प्रारम्भ में कांग्रेस ने भी सोचा था कि रामदेव को सरकारी योगी बना कर उनके सारे तेवर ठण्डे कर दिये जाएंगे। पर यह योगी तो सरकारी नहीं असरकारी योगी है जो आखिर अनशन पर अड़ ही गया है।

विदेशों में काला धन :सरकार की न नीयत साफ न उसके पास इच्छाशक्ति

अम्बा चरण वशिष्ठ

केवल कानून बनाने से ही कोई करिश्मा नहीं हो जाता। उसे कार्यरूप देने के लिये नीयत साफ, मन में लगन और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।

इसका एक प्रबल उदाहरण श्री टी.एन. शेषन हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति से पूर्व तो चुनाव आयोग केन्द्र सरकार का ही एक विभाग बन कर रह गया था जो कुछ भी करने से पूर्व सरकार की ओर ही निहारता था और सरकार ने जैसे सिर हिलाया उसी के अनुसार काम करता था।

पर ज्योंहि श्री शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्य सम्भाला चुनाव प्रक्रिया में तो जैसे क्रान्ति ही आ गई। उनके लिये कोई नया कानून न बना और न सरकार ने उन्हें कोई नया अधिकार ही दिया। पर जो भी कानून व अधिकार आयोग के पास थे उनका ही ईमानदारी और कड़ाई से पालन कर उन्होंने दिखा दिया कि यदि व्यक्ति में ईमानदार इच्छाशक्ति हो तो वह कुछ भी कर सकता है। यह भी वह तब कर पाये जब उनकी कार्यशैली पर सरकार की भौहें चढने लगी थी और सरकार उनके पर तक काटने की सोचने लगी। तभी एक सदस्यीय चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया गया। एक आयुक्त जो उस समय बनाये गये वह थे श्री एम.एस. गिल्ल जिन्होंने तब श्री शेषन के रास्ते में रोडे अटकाने का बहुत बडा काम किया। बाद में गिल्ल मुख्य चुनाव आयुक्त भी बने। यह अलग बात है कि जो लीक श्री शेषन बना गये उससे पीछे हटना उनके उत्तराधिकारियों के लिये भी सम्भव न हो सका।

इच्छाशक्ति

इसी प्रकार यदि सरकार के मन में ईमानदारी का पुट और कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो आज भी बहुत कुछ किया जा सकता है। उसके लिये किसी नये कानून की आवश्यकता नहीं है।

पिछले लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान विदेशी बैंको में भारतीयों के काले धन को भारत लाने और दोषियों को सजा देने की बात उठी थी। तब भी सरकार ने इसे विपक्ष का चुनावी शोशा बतला कर इसे नजरन्दाज करने की कोशिश की थी। पिछले 25 मास में सरकार ने इस बारे किया कुछ नहीं। केवल कुछ कोरे वादे करने की हामी अवश्य भरी थी। इसी बीच विदेशी बैंकों में भारतीयों का काला धन कम नहीं हुआ, बढा ही है।

बाबा रामदेव तो पिछले लगभग तीन वर्ष से इस बारे कुछ कारगर कदम उठाने का आग्रह करते आ रहे हैं पर सरकार की नींद नहीं खुली। लगभग दो मास पूर्व उन्होंने इस बारे अनशन पर बैठ जाने की धमकी दी थी। सरकार ने अपनी आदत के अनुसार इसे भी अनदेखा कर दिया। पर अब जब उसे लगा कि बाबा सचमुच ही अनशन पर बैठने पर अटल हैं तो मामला लटकाने के लिये उसने एक समिति का गठन कर दिया ताकि बाबा और जनता को भूलभूलैयां में डाला जा सके कि सरकार तो सब कुछ करने के लिये कटिबध्द है।

अपराधियों के ‘सम्मान’ की चिन्ता

पिछले कुछ मास से इस बारे देश के उच्चतम न्यायालय ने भी कई बार सरकार को खरी खोटी युनाई। हैरानी की बात तो यह है कि यह सरकार उन महानुभावों के सम्मान और ‘स्‍वच्‍छ’ छवि की रक्षा करना चाहती है जिन्हें गैरकानूनी व आपराधीक ढंग से काला धन कमाने और उसे विदेशी बैंकों में जमा करा कर देश के साथ गददारी करने में शर्म नहीं आई। सरकार के पास अनेक नाम हैं जिन्होंने विदेशी बैकों में आपराधिक धन जमा करा रखा है पर ‘जनहित’ का ढकोसला लगा कर उनके नाम उजागर करने से डरती है। इसी बीच कांग्रेस सरकार व पार्टी की कई नामी हस्तियों के नाम चर्चा में हैं जिनके विदेशी बैंकों में खाते बताये जाते हैं। सरकार और सम्बन्धित व्यक्ति न इन आरोपों का खण्डन करते हैं और न इनकी स्वीकारोक्ति। कारण स्‍पष्‍ट है।

आवश्यकता ईमानदारी की

सरकार यदि ईमानदार हो तो आज भी सरकार बहुत कुछ कर सकती है जिससे कि उन लोगों पर अंकुश लग सकता है जो काला धन अर्जित करने में लगे हुये हैं। निम्नलिखित कदम कारगर साबित हो सकते हैं।

केन्द्र में हमारे प्रधानमन्त्री व उनका मन्त्रिमण्डल व प्रदेशों में हमारे मुख्यमन्त्री व उनका मन्त्रिमण्डल पहल करे और सभी एक शपथपत्र जारी करें कि उनका या उनके परिवार के व्यक्तियों का देश के बाहर किसी विदेशी बैंक में खाता नहीं है। यदि है तो इसका पूरा ब्यौरा प्रस्तुत करें।

इसी प्रकार हमारे सभी सांसद व विधायक भी ऐसा ही करें। सभी संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति तथा सरकारों द्वारा नियुक्त व्यक्ति व नौकरशाह भी ऐसा ही करें।

चुनाव आयोग तथा प्रदेशों के पंचायतों तथा नगर निकाय चुनाव के लिये नियुक्त चुनाव आयोग भी संसद, विधानसभा, विधान परिषद, पंचायती राज संस्थाओं व नगर-निकायों के चुनाव के लिये सभी प्रत्याशियों के लिये यह आवश्यक कर दें कि वह अपने नामांकन पत्र के साथ किसी विदेशी बैंक में खाता न होने का शपथपत्र दाखिल करें।

सरकार से किसी टैण्डर, किसी उद्योग के लिये लाइसैंस प्राप्त करने, बैंकों में सभी खाताधारकों, बैंकों से किसी प्रकार का ऋण व खाता खोलने के लिये प्रार्थनापत्र देने के लिये, ड्राविंग लाइसैंस, पासपोर्टे, अपना आधार पहचान-पत्र प्राप्त करने के लिये, राशन-कार्ड व मतदाता पहचान-पत्र बनवाने के लिये, सरकार से किसी प्रकार की सहायता व प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिये, आयकर के पहचान-पत्र आदि प्राप्त करने के लिये भी प्रार्थियों को भी ऐसा करना आवश्यक बना दिया जाना चाहिये।

पंजीकृत राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों के लिये भी यही प्रावधान होना चाहिये।

यदि हमारे निर्वाचित प्रधानमन्त्री, मन्त्री, सांसद व विधायक, राजनैतिक दलों के पदाधिकारी ऐसा करने से कतराते हैं तो जनता स्वयं ही इसका निष्कर्ष निकाल लेने में सक्षम होगी।

जनरल डायर बनाम मनमोहन सिंह

ब्रितानी हुकूमत के काल में 13 अप्रेल 1919 में जनरल डायर ने अमृतसर के जलियां वाले बाग में निर्दोष लोगों को गोलियां से भून दिया था, यह था गोरी चमड़ी वालों की बर्बरता का नंगा नाच। महात्मा गांधी के आर्दशों पर चलकर देश को आजादी मिली और फिर कायम हुआ भारत गणराज्य जिसमें लोकतंत्र को सर्वोपरि माना गया। 4 और 5 जून की दर्मयानी रात दिल्ली में जो हुआ वह एक बार फिर ब्रितानी हुकूमत की सामंतवादी सोच का परिचायक कहा जाएगा। जिस तरह गोरों ने साम, दाम, दण्ड भेद की नीति पर चलकर देश पर राज किया, कमोबेश उसी तरह कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा हाल ही में किया जा रहा है। अन्ना हजारे के बाद बाबा रामदेव के अनशन से हिली कांग्रेस को अब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। बाबा रामदेव की मुहिम को जनता का समर्थन हासिल है, इस आंदोलन के दमन से सरकार की नीयत पर अनेक प्रश्नचिन्ह लग गए हैं। लोग इसकी तुलना जनरल डायर की अमानवीयता और आपातकाल (इमरजेंसी) से करने से नहीं चूक रहे हैं।

देश की सरकार एक और अन्ना हैं ‘हजारों‘, यह जुमला आज हर किसी की जुबां पर चढ़ चुका है। चाहे अन्ना हजारे ने बाबा के काले धन के मुद्दे को हाईजेक कर लिया हो, किन्तु 4 जून को स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जो भी किया उसे देखकर लगने लगा है मानो देश का आम आदमी भ्रष्टाचार घपले घोटालों से आजिज आ चुका है। इसके पहले अन्ना हजारे लोकपाल मामले में अपने तेवर दिखा चुके हैं। भले ही कांग्रेस इस मामले में बैकफुट पर हो, किन्तु बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ने कांग्रेस के थिंक टेंक्स को गंभीर मंत्रणा पर विवश कर ही दिया है।

भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही साफ कर दिया गया था कि भारत देश न तो कोई कम्युनिष्ट देश है, न ही दुनिया का चैधरी अमेरिका और न ही अरब देश की सामन्ती व्यवस्था का प्रतीक, जहां देश का सर्वोच्च नागरिक ‘स्वविवेक‘ से कोई भी कानून में तब्दीली का हक रखता हो। भारत गणराज्य में सबसे ताकतवर संवैधानिक पद ‘प्रधानमंत्री‘ का माना गया है, किन्तु उसे भी निचली अदालत से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत को सम्मन भेजकर हाजिर करने का हक है। इसी बिनहा पर यह कहा जा सकता है कि देश में हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इसे किसी भी कीमत पर छेड़ा नहीं जा सकता है।

बाबा रामदेव आखिर चाह क्या रहे हैं, यही न कि विदेशों में जमा देश का काला धन वापस स्वदेश लाया जाए। इसके लिए बाबा रामदेव लंबे समय से प्रयासरत हैं। यह अलहदा बात है कि उनकी इस मुहिम में बीच बीच में सडांध मारती राजनीति की बू भी आने लगती है, जब वे सियासत पर उतर आते हैं। लोगों को स्मरण दिलाना चाह रहा हूं कि जब लौह पुरूष का तमगा पाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हुआ तब उनकी कुल संपत्ति 259 रूपए थी। एसे थे नीतियों पर चलने वाले राजनेता। आज के राजनेताओं के पास अकूत दौलत है। क्या आम आदमी से ज्यादा धन को राष्ट्रीय संपत्ति नहीं माना जाए!

बाबा रामदेव को मनाने के लिए कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के हालिया सबसे विश्वस्त दूत कपिल सिब्बल गए। सिब्बल और बाबा के बीच वार्ता चली, जो असफल ही रही। सिब्बल ने गोरे ब्रितानियों की चाल चलकर बाबा के राईट हेण्ड और कथित तौर पर नेपाली मूल के आचार्य बाल कृष्ण से अनशन समाप्ति का पत्र लिखवा लिया। यह बात समझ से परे है कि आखिर उन्होंने अनशन समाप्ति का पत्र अनशन प्रारंभ होने के पूर्व लिखकर क्यों दिया? कहीं एसा तो नहीं कि यह सब कुछ मिली जुली प्रायोजित कुश्ती हो? अमूमन इस तरह के पत्र अग्रिम में तो सरकार में शामिल करने के पूर्व मंत्रियों से लिखवाए जाते हैं ताकि समय बे समय काम आ सकें।

कांग्रेस का आरोप है कि बाबा के अनशन स्थल को फाईव स्टार सुविधाओं से लैस किया गया है। इसमें पैसा कौन लगा रहा है यह शोध का विषय है। सियासी दल के नुमाईंदे इस तरह के आरोप लगाने के पहले यह बात भूल जाते हैं कि जब कांग्रेस या भाजपा के अधिवेशन होते हैं तब फाईव तो क्या सेवन स्टार की सुविधाएं मुहैया होती हैं नेताओं को, तब वे इस तरह का प्रश्न दागने का नैतिक साहस क्यों नहीं कर पाते हैं? इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि बाबा के पीछे संघ है या भाजपा, सवाल तो यह है कि बाबा का मुद्दा सही है अथवा नहीं!

एक तरह से देखा जाए तो सरकार और कांग्रेस के ट्रबल शूटर बनकर एक कपिल सिब्बल पूरी तरह से असफल ही हुए हैं। बाबा रामदेव को कल शाम अनशन स्थल से उठाकर ले जाने का प्रयास किया है, बाद में 4 और 5 जून की दर्मयानी रात में उन्हें बलात उठाही लिया गया, जो निंदनीय है। यह तो अच्छा हुआ कुटिल राजनेताओं ने बाबा के अनशन स्थल पर असमाजिक तत्वों का उपयोग कर रंग में भंग नहीं डाला, वरना मामला कुछ और रंग ले चुका होता।

बाबा रामदेव के इस तरह के अनशन से उनके पक्ष में बयार बह निकली है। दिल्ली इस बात की गवाह है कि सरकार के दमन चक्र के बावजूद भी बाबा रामदेव देश ने की जनता के मजबूत कांधों पर बैठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद किया। बाबा रामदेव की हुंकार के आगे अन्ना हजारे का कद अब बौना नजर आने लगा है।

पहले सियासत तब गर्माई थी जब पिछले साल बाबा रामदेव ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी। पिछले माह बाबा रामदेव ने अपने कमोबेश हर साक्षात्कार में यही कहा कि सरकार के साथ बातचीत सकारात्मक चल रही है, पर इस बात से वे कन्नी ही काटते रहे कि क्या बातचीत चल रही है? एसा कौन सा हिडन एजेंडा था जिसे बताने में बाबा रामदेव आखिरी तक हिचकते रहे। बार बार सरकार के साथ बातचीत फिर अनशन और पत्र का खुलासा, फिर बाबा की धरपकड़! आम आदमी इस बात को समझ ही नहीं पा रहा है कि आखिर एकाएक बाबा रामदेव के साथ ‘सकारात्मक‘ बातचीत इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में कैसे पहुंच गई?

जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी का यह कथन भी विचारणीय ही है कि बाबा रामदेव अनशन से पहले अपने 11 हजार करोड़ रूपए के साम्राज्य की सफाई अवश्य कर लें। कल तक जिनके पास साईकल के पंचर जुड़वाने के पैसे नहीं होते थे, वे बाबा रामदेव आज अकूत दौलत पर राज कर रहे हैं। बाबा रामदेव को शंकराचार्य के इस आरोप की सफाई देना ही होगा कि बाबा रामदेव अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए यह अनशन कर रहे हैं। उधर सिने स्टार सलमान खान ने भी बाबा रामदेव को योग सिखाने पर अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। पर जो भी हो बाबा रामदेव के अनशन को कुचलकर कांग्रेस ने यह साबित कर ही दिया है कि देश में कानून और व्यवस्था नाम की चीज नहीं बची है। जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर सरकार ने सभी को एक ही लाठी से हांकने का कुत्सित प्रयास किया है।

बाबा रामदेव के काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को कांग्रेस ने बहुत ही हल्के रूप में लिया। कांग्रेस को लगा योग सिखाने वाला एक बाबा आखिर कैसे सियासी ताकत के सामने टिक पाएगा। उधर बाबा रामदेव कछुए और खरगोश की कहानी में कछुए के मानिंद चलते रहे, अंत में अब बाबा रामदेव देश में सरकार के खिलाफ अलख जगाने में कामयाब हो ही गए। बाबा रामदेव ने योग से जुड़े लोगों को एक सूत्र में पिरोया और फिर सरकार को कटघरे में खड़ा कर ही दिया।

कांग्रेस के इक्कीसवीं सदी के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह ने जहर बुझे तीरों के मार्फत बाबा रामदेव को आहत करना चाहा किन्तुू वे सफल नहीं हो सके। इसके बाद गंदी राजनीति के तहत बाबा रामदेव को सियासी ताने बाने में उलझाने का प्रयास किया गया, किन्तु बाबा रामदेव की साफगोई के चलते सरकार की चालें अंततः सामने आ ही गईं।

5 जून की मध्य रात्रि में बाबा रामदेव को अनशन स्थल से जिस तरह से उठाया गया वह लोकतांत्रिक तरीका किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है। बाबा रामदेव की गिरफ्तारी को उनकी किडनेपिंग की संज्ञा दी जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। कांगे्रस का कहना है कि बाबा रामदेव द्वारा जनता को भड़काया जा रहा था, किन्तु कांग्रेस इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाई कि आखिर कौन सी पंक्तियां थीं, जिनके माध्यम से बाबा रामदेव द्वारा लोगों को भरमाया जा रहा था।

पूरे घटनाक्रम का तातपर्य यह ही हुआ कि अगर आप सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे तो आपका बलात शमन कर दिया जाएगा। ये परिस्थितियां इसलिए भी निर्मित हो रही हैं क्योंकि निहित स्वार्थ को प्राथमिक मानकर लंबे समय से सत्ता, विपक्ष, नौकरशाही और मीडिया का गठजोड़ हो गया है। यही कारण है कि आज शासकों द्वारा लोकतंत्र को अपने जूते के तले रोंदने में जरा भी हिचक नहीं की जाती है। समय रहते अगर हम नहीं चेते तो देश में हिटलरशाही राज कायम होने में समय नही ं लगने वाला। इस पूरे मामले में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी एवं ईमानदार छवि के धनी वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह की चुप्पी भी आश्चर्यजनक ही कही जाएगी।

 

अंग्रेजी मानसिकता सरकार का अधिकार है

काग्रेंस ने हमे आजादी दिलायी थी इस बात पर मै गर्व करता था ।पर ४-५ जून कि रात को सरकार और काग्रेंस ने जो कू कर्म किया वह तो अग्रेजो से भी दो कदम आगे है।सरकार के इस कदम को देख कर लगता आजादी हमे केवल गोरे अग्रेजो से मिली है अभी काले अंग्रेज(अंग्रेजी मानसिकता वाले लोग) से आजादी मिलनी बाकी है। क्योंकि जिस तरह से बाबा और उनके अनुयायियों के साथ व्यवहार किया गया,उससे यही सबित होता है। मै नहीं कहता बाबा कोई माहापुरूष है,बाबा इस देश के कर्ण धार है ।पर बाबा जिस बात को लेकर के आन्दोलन कर रहे थे उनकी जो मांगे थी वह जायज थी उनको मानने मे सरकार कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये थी।क्योकि वह पूरे देश कि समस्या है। उसके अलावा उनका आन्दोलन पूर्णतः शान्ति पूर्ण था तो उस पर लाठी चलवाने का आदेश देना संविधान और मानवता कि दृष्टिकोण से घोर अपराध है।

सरकार सायद यह भूल जाती है कि देश काग्रेंस के कहने से नही चलता है वह संविधान के प्रावधान के अनुसार चलता है।जब हमे संविधान ने शान्तिपूर्ण सभा करने का अधिकार दिया(अनुच्छॆद-१९-क) है ।तब सरकार ने ऐसा असंवैधानिक कार्य क्यो किया ।क्या बाबा के इस आन्दोल से देश को किसी तरह का खतरा था या देश का सम्प्रदायिक महौल बिगड रहा था। या बाबा के इस आन्दोलन से भारत संघ को खतरा था ।या शान्ति पूर्ण धरना देने वालो से कानून व्यवस्था बिगड रही थी। इस बात का जबाब क्या काग्रेस और सरकार दे सकती है।अगर अपनी जायज माग को लेकर सत्याग्रह करना अपराध है और उस पर लाठी चलवाना सरकार का अधिकार है तो हम यह नही कह सकते कि अंग्रजो जो भी किया वह गलत था क्योकि उन्होने जो किया वह उनका अधिकार था।क्योकि वह उस समय सरकार मे थी।

अगर सरकार  कि नजर बाबा और उनके साथ बैठे लोग अपराधी है तो इस देश के इतिहास का सबसे बडा अपराधी महात्म्मा गाँधी और नेहरूजी थे।जिन्होने देश के लोगो कि जायज माग को लेकर आन्दोलन किया और अंग्रेज सरकार कि नाक में दम कर के हमे आजादी दिलवायी थी।

सरकार अपने इस कार्यवाही को सही ठहाराने का प्रयास कर रही है कि बाबा के साथ समझौता हो गया था तो यह अनशन क्यो हो रहा था या बाबा ने योग शिविर के लिये अनुमति मागी थी अनशन के लिये नहीं। पर उसके बाद भी सरकार कि कार्यवाही वैध नहीं हो सकती है क्योकि किसी भी तरह से आराम से बैठि जनता जिससे कानून व्यवस्था कोई

खतरा नही था रात के अधेरे मे लाठी चलवाना उचित नहीं है। दिन के उजाले मे भी कार्यवाही कि जा सकती थी। उसके अलावा जानता को यह बाता कर के कि बाबा के साथ समझौता हो गया है,सरकार दो-माह तीन माह के अन्दर काले धन पर कानून लायेगी ।इस तरह से सरकार जनता को विश्वास मे ले लेती तो इससे सरकार का कद गिरता नही वरन सरकार का कद उठता हि पर सरकार ने यह मौका गवा दिया है।पर इस तरह कि कार्यवाही यह स्पष्ट होता है कि सरकार के मन मे चोर था जिस कारण से काले धन के सन्दर्भ में बनने वाला कानून भी निस्प्रभावी होता।या कोइ समिति बना कर इस कानून को दस प्रन्दह साल तक टाल या रोक ही लेगी। वरना सरकार इस तरह का बल प्रयोग कभी न करती । अतः सरकार को चाहिये कि काले धन सार्वजनिक कर के उसका राष्र्टीयकरण कर ले तथा भ्रषटाचारियों को कडॆ दन्ड का प्रावधानकरे।

यह बेदिल दिल्ली का लोकतंत्र है देख लीजिए !

सत्याग्रह के दमन से नहीं खत्म होंगे सवाल

संजय द्विवेदी

दिल्ली में बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों के साथ जो कुछ हुआ, वही दरअसल हमारी राजसत्ताओं का असली चेहरा है। उन्हें सार्थक सवालों पर प्रतिरोध नहीं भाते। अहिंसा और सत्याग्रह को वे भुला चुके हैं। उनका आर्दश ओबामा का लोकतंत्र है जो हर विरोधी आवाज को सीमापार भी जाकर कुचल सकता है। दिल्ली की ये बेदिली आज की नहीं है। आजादी के बाद हम सबने ऐसे दृश्य अनेक बार देखे हैं। किंतु दिल्ली ऐसी ही है और उसके सुधरने की कोई राह फिलहाल नजर नहीं आती। कल्पना कीजिए जो सरकारें इतने कैमरों के सामने इतनी हिंसक, अमानवीय और बर्बर हो सकती हैं, वे बिना कैमरों वाले समय में कैसी रही होंगी। ऐसा लगता है कि आजादी, हमने अपने बर्बर राजनीतिक, प्रशासनिक तंत्र और प्रभु वर्गों के लिए पायी है। आप देखें कि बाबा रामदेव जब तक योग सिखाते और दवाईयां बेचते और संपत्तियां खड़ी करते रहे,उनसे किसी को परेशानी नहीं हुयी। बल्कि ऐसे बाबा और प्रवचनकार जो हमारे समय के सवालों से मुठभेड़ करने के बजाए योग,तप, दान, प्रवचन में जनता को उलझाए रखते हैं- सत्ताओं को बहुत भाते हैं। देश के ऐसे मायावी संतों, प्रवचनकारों से राजनेताओं और प्रभुवर्गों की गलबहियां हम रोज देखते हैं। आप देखें तो पिछले दस सालों में किसी दिग्विजय सिंह को बाबा रामदेव से कोई परेशानी नहीं हुयी और अब वही उन्हें ठग कह रहे हैं। वे ठग तब भी रहे होंगें जब चार मंत्री दिल्ली में उनकी आगवानी कर रहे थे। किंतु सत्ता आपसे तब तक सहज रहती है, जब तक आप उसके मानकों पर खरें हों और वह आपका इस्तेमाल कर सकती हो।

सत्ताओं को नहीं भाते कठिन सवालः

निश्चित ही बाबा रामदेव जो सवाल उठा रहे हैं वे कठिन सवाल हैं। हमारी सत्ताओं और प्रभु वर्गों को ये सवाल नहीं भाते। दिल्ली के भद्रलोक में यह गंवार, अंग्रेजी न जानने वाला गेरूआ वस्त्र धारी कहां से आ गया? इसलिए दिल्ली पुलिस को बाबा का आगे से दिल्ली आना पसंद नहीं है। उनके समर्थकों को ऐसा सबक सिखाओ कि वे दिल्ली का रास्ता भूल जाएं। किंतु ध्यान रहे यह लोकतंत्र है। यहां जनता के पास पल-पल का हिसाब है। यह साधारण नहीं है कि बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को नजरंदाज कर पाना उस मीडिया के लिए भी मुश्किल नजर आया, जो लाफ्टर शो और वीआईपीज की हरकतें दिखाकर आनंदित होता रहता है। बाबा रामदेव के सवाल दरअसल देश के जनमानस में अरसे से गूंजते हुए सवाल हैं। ये सवाल असुविधाजनक भी हैं। क्योंकि वे भाषा का भी सवाल उठा रहे हैं। हिंदी और स्थानीय भाषाओं को महत्व देने की बात कर रहे हैं। जबकि हमारी सरकार का ताजा फैसला लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सर्विसेज की परीक्षा में अंग्रेजी का पर्चा अनिवार्य करने का है। यानि भारतीय भाषाओं के जानकारों के लिए आईएएस बनने का रास्ता बंद करने की तैयारी है। ऐसे कठिन समय में बाबा दिल्ली आते हैं। सरकार हिल जाती है क्योंकि सरकार के मन में कहीं न कहीं एक अज्ञात भय है। यह असुरक्षा ही कपिल सिब्बल से वह पत्र लीक करवाती है ताकि बाबा की विश्वसनीयता खंडित हो। उन पर अविश्वास हो। क्योंकि राजनेताओं को विश्वसनीयता के मामले में रामदेव और अन्ना हजारे मीलों पीछे छोड़ चुके हैं। आप याद करें इसी तरह की विश्वसनीयता खराब करने की कोशिश में सरकार से जुड़े कुछ लोग शांति भूषण के पीछे पड़ गए थे। संतोष हेगड़े पर सवाल खड़े किए गए, क्योंकि उन्हें अन्ना जैसे निर्दोष व्यक्ति में कुछ ढूंढने से भी नहीं मिला। लेकिन निशाने पर तो अन्ना और उनकी विश्वसनीयता ही थी। शायद इसीलिए अन्ना हजारे ने सत्याग्रह शुरू करने से पहले रामदेव को सचेत किया था कि सरकार बहुत धोखेबाज है उससे बचकर रहना। काश रामदेव इस सलाह में छिपी हुयी चेतावनी को ठीक से समझ पाते तो उनके सहयोगी बालकृष्ण होटल में मंत्रियों के कहने पर वह पत्र देकर नहीं आते। जिस पत्र के सहारे बाबा रामदेव की तपस्या भंग करने की कोशिश कपिल सिब्बल ने प्रेस कांफ्रेस में की।

बिगड़ रहा है कांग्रेस का चेहराः

बाबा रामदेव के सत्याग्रह आंदोलन को दिल्ली पुलिस ने जिस तरह कुचला उसकी कोई भी आर्दश लोकतंत्र इजाजत नहीं देता। लोकतंत्र में शांतिपूर्ण प्रदर्शन और घरना देने की सबको आजादी है। दिल्ली में जुटे सत्याग्रहियों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया था कि उन पर इस तरह आधी रात में लाठियां बरसाई जाती या आँसू गैस के गोले छोड़ जाते। किंतु सरकारों का अपना चिंतन होता है। वे अपने तरीके से काम करती हैं। यह कहने में कोई हिचक नहीं कि इस बर्बर कार्रवाई से केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी प्रतिष्ठा गिरी है। एक तरफ सरकार के मंत्री लगातार बाबा रामदेव से चर्चा करते हैं और एक बिंदु पर सहमति भी बन जाती है। संभव था कि सारा कुछ आसानी से निपट जाता किंतु ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी कि सरकार को यह दमनात्मक रवैया अपनाना पड़ा। इससे बाबा रामदेव का कुछ नुकसान हुआ यह सोचना गलत है। कांग्रेस ने जरूर अपना जनविरोधी और भ्रष्टाचार समर्थक चेहरा बना लिया है। क्योंकि आम जनता बड़ी बातें और अंदरखाने की राजनीति नहीं समझती। उसे सिर्फ इतना पता है कि बाबा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं और यह सरकार को पसंद नहीं है। इसलिए उसने ऐसी दमनात्मक कार्रवाई की। जाहिर तौर पर इस प्रकार का संदेश कहीं से भी कांग्रेस के लिए शुभ नहीं है। बाबा रामदेव जो सवाल उठा रहे हैं, उसको लेकर उन्होंने एक लंबी तैयारी की है। पूरे देश में सतत प्रवास करते हुए और अपने योग शिविरों के माध्यम से उन्होंने लगातार इस विषय को जनता के सामने रखा है। इसके चलते यह विषय जनमन के बीच चर्चित हो चुका है। भ्रष्टाचार का विषय आज एक केंद्रीय विषय बन चुका है। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे दो नायकों ने इस सवाल को आज जन-जन का विषय बना दिया है। आम जनता स्वयं बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त है। राजनीतिक दलों और राजनेताओं से उसे घोर निराशा है। ऐसे कठिन समय में जनता को यह लगने लगा है कि हमारा जनतंत्र बेमानी हो चुका है। यह स्थिति खतरनाक है। क्योंकि यह जनतंत्र, हमारे आजादी के सिपाहियों ने बहुत संर्धष से अर्जित किया है। उसके प्रति अविश्वास पैदा होना या जनता के मन में निराशा की भावनाएं पैदा होना बहुत खतरनाक है।

अन्ना या रामदेव के पास खोने को क्या हैः

बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसी आवाजों को दबाकर हम अपने लोकतंत्र का ही गला घोंट रहे हैं। आज जनतंत्र और उसके मूल्यों को बचाना बहुत जरूरी है। जनता के विश्वास और दरकते भरोसे को बचाना बहुत जरूरी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे राजनीतिक दल अगर ईमानदार प्रयास कर रहे होते तो ऐसे आंदोलनों की आवश्यक्ता भी क्या थी? सरकार कुछ भी सोचे किंतु आज अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जनता के सामने एक आशा की किरण बनकर उभरे हैं। इन नायकों की हार दरअसल देश के आम आदमी की हार होगी। केंद्र की सरकार को ईमानदार प्रयास करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करते हुए दिखना होगा। क्योंकि जनतंत्र में जनविश्वास से ही सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। यह बात बहुत साफ है कि बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के पास खोने के लिए कुछ नहीं हैं, क्योंकि वे किसी भी रूप में सत्ता में नहीं हैं। जबकि कांग्रेस के पास एक सत्ता है और उसकी परीक्षा जनता की अदालत में होनी तय है, क्या ऐसे प्रसंगों से कांग्रेस जनता का भरोसा नहीं खो रही है, यह एक लाख टके का सवाल है। आज भले ही केंद्र की सरकार दिल्ली में रामलीला मैदान की सफाई करके खुद को महावीर साबित कर ले किंतु यह आंदोलन और उससे उठे सवाल खत्म नहीं होते। वे अब जनता के बीच हैं। देश में बहस चल पड़ी है और इससे उठने वाली आंच में सरकार को असहजता जरूर महसूस होगी। केंद्र की सरकार को यह समझना होगा कि चाहे-अनचाहे उसने अपना चेहरा ऐसा बना लिया है जैसे वह भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी संरक्षक हो। क्योंकि एक शांतिपूर्ण प्रतिरोध को भी अगर हमारी सत्ताएं नहीं सह पा रही हैं तो सवाल यह भी उठता क्या उन्हें हिंसा की ही भाषा समझ में आती है ? दिल्ली में अलीशाह गिलानी और अरूँधती राय जैसी देशतोड़क ताकतों के भारतविरोधी बयानों पर जिस दिल्ली पुलिस और गृहमंत्रालय के हाथ एक मामला दर्ज करने में कांपते हों, जो अफजल गुरू की फांसी की फाईलों को महीनों दबाकर रखती हो और आतंकियों व अतिवादियों से हर तरह के समझौतों को आतुर हो, यहां तक कि वह देशतोड़क नक्सलियों से भी संवाद को तैयार हो- वही सरकार एक अहिंसक समूह के प्रति कितना बर्बर व्यवहार करती है।

बाबा रामदेव इस मुकाम पर हारे नहीं हैं, उन्होंने इस आंदोलन के बहाने हमारी सत्ताओं के एक जनविरोधी और दमनकारी चेहरे को सामने रख दिया है। सत्ताएं ऐसी ही होती हैं और इसलिए समाज को एकजुट होकर एक सामाजिक दंडशक्ति के रूप में काम करना होगा। यह तय मानिए कि यह आखिरी संघर्ष है, इस बार अगर समाज हारता है तो हमें एक लंबी गुलामी के लिए तैयार हो जाना चाहिए। यह गुलामी सिर्फ आर्थिक नहीं होगी, भाषा की भी होगी, अभिव्यक्ति की होगी और सांस लेने की भी होगी। रामदेव के सामने भी रास्ता बहुत सहज नहीं है,क्योंकि वे अन्ना हजारे नहीं हैं। सरकार हर तरह से उनके अभियान और उनके संस्थानों को कुचलने की कोशिश करेगी। क्योंकि बदला लेना सत्ता का चरित्र होता है। इस खतरे के बावजूद अगर वे अपनी सच्चाई के साथ खड़े रहते हैं तो देश की जनता उनके साथ खड़ी रहेगी, इसमें संदेह नहीं है। बाबा रामदेव ने अपनी संवाद और संचार की शैली से लोगों को प्रभावित किया है। खासकर हिंदुस्तान के मध्यवर्ग में उनको लेकर दीवानगी है और अब इस दीवानगी को, योग से हठयोग की ओर ले जाकर उन्होंने एक नया रास्ता पकड़ा है। यह रास्ता कठिन भी है और उनकी असली परीक्षा दरअसल इसी मार्ग पर होनी हैं। देखना है कि बाबा इस कंटकाकीर्ण मार्ग पर अपने साथ कितने लोगों को चला पाते हैं ?

भारत में वैचारिक आपातकाल का नया दौर शुरू

राजीव रंजन प्रसाद

जन-समाज, सभ्यता और संस्कृति के ख़िलाफ की गई समस्त साजिशें इतिहास में कैद हैं। बाबा रामदेव की रामलीला मैदान में देर रात हुई गिरफ्तारी इन्हीं अंतहीन साजिशों की परिणति है। यह सरकार के भीतर व्याप्त वैचारिक आपातकाल का नया झरोखा है जो समस्या की संवेदनशीलता को समझने की बजाय तत्कालीन उपाय निकालना महत्त्वपूर्ण समझती है। बीती रात को जिस मुर्खतापूर्ण तरीके से दिल्ली पुलिस ने बाबा रामदेव के समर्थकों को तितर-बितर किया; शांतिपूर्ण ढंग से सत्याग्रह पर जुटे आन्दोलनकारियों को दर-बदर किया; वह देखने-सुनने में रोमांचक और दिलचस्प ख़बर का नमूना हो सकता है, किन्तु वस्तुपरक रिपोर्टिंग करने के आग्रही ख़बरनवीसों के लिए यह हरकत यूपीए सरकार की चूलें हिलाने से कम नहीं है। केन्द्र सरकार की बिखरी हुई देहभाषा से यह साफ जाहिर हो रहा है कि जनता अब उसे बौद्धिक, विवेकवान एवं दृढ़प्रज्ञ पार्टी मानने की भूल नहीं करेगी। इस घड़ी 16 फरवरी, 1907 ई0 को भारतमित्र में प्रकाशित ‘शिवशम्भू के चिट्ठे’ का वह अंश स्मरण हो रहा है-‘‘अब तक लोग यही समझते थे कि विचारवान विवेकी पुरुष जहाँ जाएंगे वहीं विचार और विवेक की रक्षा करेंगे। वह यदि राजनीति में हाथ डालेंगे तो उसकी जटिलताओं को भी दूर कर देंगे। पर बात उल्टी देखने में आती है। राजनीति बड़े-बड़े सत्यवादी साहसी विद्वानों को भी गधा-गधी एक बतलाने वालों के बराबर कर देती है।’’

काले धन की वापसी के मुद्दे पर बाबा रामदेव ने जो सवाल खड़े किए उसका केन्द्र सरकार द्वारा संतुलित और भरोसेमंद जवाब न दिया जाना; सरकार की नियत पर शक करने के लिए बाध्य करता है। स्विस बैंक में अपनी राष्ट्रिय संपति अनैतिक ढंग से जमा है; यह जानते हुए समुचित कार्रवाई न किया जाना बिल्कुल संदिग्ध है। खासकर राहुल गाँधी जैसे लोकविज्ञापित राजनीतिज्ञ जो जनमुद्दों पर अक्सर मायावती से ले कर नीतिश कुमार तक की जुबानी बखिया उधेड़ते दिखते हैं; आज की तारीख में शायद किसी सन्नाटे में लेटे हैं।

राहुल गाँधी का ऐसे संवेदनशील समय में चुप रहना अखरता है। उनके भीतर कथित तौर पर दिखते संभावनाओं के आकाशदीप को धुमिल और धंुधला करता है। क्योंकि यूपी चुनाव सर पर है और प्रदेश कांग्रेस पार्टी इस विधानसभा में खुद को रात-दिन जोतने में जुटी है, राहुल गाँधी का काले धन के मुद्दे पर सफेद बोल न बोलना चौंकाता है।

दरअसल, यूपीए सरकार अपनी इस करतूत का सही-सही आकलन-मूल्यांकन कर पाने में असमर्थ है। उसे इस बात का अहसास ही नहीं हो रहा है कि इस वक्त जनता के सामने बाबा रामदेव की इज्जत दाँव पर न लगी हो कर खुद उसकी प्रतिष्ठा-इज्जत दाँव पर है। वैसे भी बाबा रामदेव के जनसमर्थन में जुटी भीड़ हमलावर, आतंकी या फिर असामाजिक कार्यों में संलग्न जत्था नहीं थी। यह जनज्वार तो देश में दैत्याकार रूप ग्रहण करते उस भ्रष्टाचार के मुख़ालफत

में स्वतःस्फुर्त आयोजित थी जो काले धन के रूप में स्विस बैंकों में वर्षों से नज़रबंद है। उनकी वापसी के लिए रामलीला मैदान में ऐतिहासिक रूप से जुटना जनता की दृष्टि में बाबा रामदेव को शत-प्रतिशत पाक-साफ सिद्ध करना हरगिज नहीं है। वस्तुतः बाबा रामदेव हों, श्री श्री रविशंकर हों, स्वामि अग्निवेश हों, अण्णा हजारे हों या फिर किरण बेदी व मेधा पाटेकर।

जनता को जनमुद्दों के लिए आवाज़ उठाने वाला नागरिक-सत्ता चाहिए। जनता ऐसे व्यक्तित्व के नेतृत्व में सामूहिक आन्दोलन करने के लिए प्रवृत्त होना चाहती है जिसकी बात सरकार भी सुनें और आम जनमानस भी।

बाबा रामदेव इसी के प्रतिमूर्ति थे। जनता उनसे जुड़कर(तमाम व्यक्तिगत असहमतियों एवं मतभेदों के बावजूद) अपने हक के लिए जनमुहिम छेड़ चुकी थी जिसे केन्द्र सरकार और उसके इशारे पर नाचने वाली दिल्ली सरकार ने अचानक धावा बोलकर जबरन ख़त्म करने की चाल चली। यह सीधे-सीधे सांविधानिक प्रावधानों के रूप में प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है। अब जनता सरकार से किन शर्तों पर पूरी निष्ठा के साथ जुड़ी रह सकती है; यह सोचनीय एवं चिन्तन का विषय है।

बहरहाल, सबसे ज्यादा नुकसानदेह यूपीए की पार्टी को ही जमीनी स्तर पर होगी। स्थानीय पार्टी नेता और कैडर किस मुँह के साथ जनता के बीच समर्थन माँगने का चोंगा लिए फिरेंगे; देखने योग्य है। फिरंगी कुटनीतिक आधार और अक्षम राजनीतिक नेतृत्व क्या यूपी में दिग्गी राजा को देखकर वोट देगी जिन्हें सहुर से बोलना भी नहीं आता है। बाबा रामदेव के अनशन को ‘पाँचसितारा अनशन’ बताने वाले दिग्विजय सिंह क्या बताएंगे कि हाल ही में बनारस में हुए महाधिवेशन के दरम्यान उन्होंने पीसीसी कार्यकारिणी की बैठक कहाँ की थी? उनके वरिष्ठ नेता, मंत्री और हुक्मरान कहाँ ठहरे थे? होटल क्लार्क का शाही खर्चा क्या होटल-प्रबंधन ने उनकी पार्टी को सप्रेम भेंट की थी जैसे बाबा रामदेव को भेंट में एक ‘द्वीप’ हाथ लग गया है।

बाबा रामदेव अगर गैरराजनीतिज्ञ होते हुए राजनीति कर रहे हैं तो कहाँ जनता उन्हें भावी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनाने के लिए पागल हुए जा रही है? इस किस्म का घटिया स्टंट प्रचारित करना सिर्फ कांग्रेस जानती है; और पार्टियाँ तो अंदरुनी कलह की मारी खुद ही दौड़ से बाहर हैं। भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित राहुल गाँधी को क्या यहाँ अपना राजनीतिक स्टैण्ड नहीं प्रदर्शित करना चाहिए था? वह भी वैसे जरूरी समय पर जब देश की तकरीबन 55 करोड़ युवा-निगाह उन्हें क्षण-प्रतिक्षण घूर रही है; और वह परिदृश्य से गायब हैं। जागरूक और जुनूनी युवा जब रामलीला मैदान में पुलिस के हिंसक झड़पों का निशाना बन रहे थे। दिल्ली पुलिस उम्र और लिंग का

लिहाज किए बगैर लाठीचार्ज कर रही थी, तो क्या उस घड़ी राहुल गाँधी के शरीर में स्पंदन और झुरझुरी होना स्वाभाविक नहीं था? क्या इन बातों को इस वक्त बाबा रामदेव का ‘पाचनचूर्ण’ खाकर पचा लिया जाना ही बुद्धिमत्तापूर्ण आचरण है?

खैर, जो भी हो। एक बात तो तय है कि कांग्रेस के रणनीतिकार और खुद को बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञ मानने वाले पार्टी नेताओं ने कांग्रेसी-पतलून को अचानक ही ढीली कर दी है जिसे चालाक और हमलावर मीडिया ने एकदम से हथिया लिया है। सनसनी के स्वर में ब्रेकिंग न्यूज ‘ओवी वैन’ के ऊपर चढ़ बैठे हैं। जनता देख रही है कि आमआदमी के हित-प्रयासों, मसलों एवं मामलों को ये राजनीतिक सरपरस्त कैसे-कैसे भुना सकते हैं? कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भले इस घड़ी विजय की रणभेरी बजा रहे हों; दिल्ली के 10-जनपथ पर उत्सव का माहौल तारी हो। लेकिन इस क्षणिक खुशी से आगे भी जहान है जिसे देखने की दूरदृष्टि केवल जनता के पास है। वह आसन्नप्रसवा उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस अविवेकी एवं अराजक कार्रवाई का अपने वैचारिक तपोबल से बदला अवश्य लेगी। पाँचसितारा होटलों में कांग्रेस-सरकार चाहे कितने भी दिवास्वप्न देख ले, आगामी दिनों में कांग्रेस पार्टी को इस अभियान को इस तरीके से कुचलना काफी महंगा पड़ेगा।

रामलीला मैदान से लाखों की जमावट-बसावट को हटा देना दिल्ली पुलिस की बहादुरी मानी जा सकती है; लेकिन जनता को झूठी दिलासाओं, भौड़ी नौटंकी वाले सन्देश यात्राओं तथा ख्याली राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक घोषणापत्रों से विचलित कर ले जाना बेहद मुश्किल है। आप अधिक से अधिक पार्टी कैडर बना सकते हैं, किन्तु बहुसंख्यक जनता जो आपके किए कारस्तानियों का यंत्रणा टप्पल, दादरी, भट्टा-पारसौल से ले कर दिल्ली के रामलीला मैदान तक भुगत चुकी है; वह किसी झाँसे और लोभ की आकांक्षी नहीं है। यह तय मानिए बाबा रामदेव फिर कल से अपने अनुयायियों को योग सिखाएंगे। सार्वजनिक मंच से आपके द्वारा किए गए जुल्म की भर्त्सना करेंगे। उनकी पंताजंलि योग पीठ में पहले की माफिक श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहेगा। किन्तु जनता आपको नहीं भूलेगी, नहीं बख्शेगी। जनता आपका पीछा सन 2014 के लोकसभा चुनाव के उस परिणाम तक करेगी जब तक आप देश की जनता के सामने पछाड़ खा जाने की असलियत नहीं स्वीकार लेते हैं।