पं. भीमसेन जोशी मां सरस्वती के ऐसे साधक थे जिनके गायन से मन और आत्मा दोनों पवित्र हो जाता था। गला फोड़ संगीत के दौर से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया और वे संगीत के माध्यम से समूची दुनियां में भारत का प्रतिनिधित्व करते थे। उनका निधन भारतीय संगीत क्षेत्र के भीष्म पितामह के असमय चले जाने जैसा है। कहते हैं सगीत में ईश्वर का वास है। भगवान शिव, मां सरस्वती सहित अनेक देवी देवता संगीत के उपासक है। भीमसेन जोशी के गायन से समय जैसे थम सा जाता था। वे पूर्णतया अलौकिक कलाकार थे और सच्चे अर्थो में मां सरस्वती के वरद पुत्र। नियति के आगे सभी बेबश है। समूचा देश ही नही वरन पूरी दुनियां भीमसेन जोशी के निधन से स्तब्ध है। ऐसे महान लोग बार-बार जन्म नहीं लेते। विन्रमता और सादगी पंडित जी की पूंजी थी। दिखावे से वे कोसो दूर थे। यही सहजता उनके गायन में झलकती थी। ‘कैराना’ घराने से सम्बद्ध भीमसेन जोशी ने 89 वर्ष की अवस्था में देह त्यागा। चार फरवरी 1922 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के गडग में जन्मे जोशी को बचपन से ही संगीत से लगाव था। वह संगीत सीखने के उद्देश्य से 11 साल की उम्र में गुरू की तलाश के लिए घर से चले गए। जब वह घर पर थे तो खेलने की उम्र में वह अपने दादा का तानपुरा बजाने लगे थे। संगीत के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह था कि गली से गुजरती भजन मंडली या समीप की मस्जिद से आती ‘अजान’ की आवाज सुनकर ही वह घर से बाहर दौड़ पड़ते थे।
शरीर नश्वर है और इसे एक न एक दिन छोड़कर जाना ही होता है किन्तु भीमसेन जोशी जैसे लोगों का शरीर नष्ट होता है और उनके सतकर्म सदियों तक भारतीय संगीत की ज्ञान गंगा को पवित्र करते हुये मार्ग दर्शन करते रहेंगे। उनका आकस्मिक निधन समूचे शास्त्रीय जगत के लिये गहरा आघात है। सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजा था, सच्चे अर्थो में वे इसके हकदार थे।
पंडित भीमसेन जोशी शायद शास्त्रीय संगीत के लिये ही जन्मे थे। संगीत का यह चितेरा अब भले ही भौतिक रूप में सामने न आये किन्तु उनके संगीत का समुद्र युगों-युगों तक मार्गदर्शक बना रहेगा। वे संगीत के अनन्य साधक थे। व्यक्तित्व का समग्र मूल्याकन देह छोड़ देने के बाद ही संभव है। आज जिस प्रकार से प्रधानमंत्री से लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग पंडित जी के अवसान से विचलित हैं उससे समझा जा सकता है कि देश ने कितना महत्वपूर्ण रत्न खो दिया है। मां सरस्वती के अमर साधक भीमशेन जोशी को इस रूप में श्रद्धांजलि कि कठिन समय में भी उन्होने नयी पीढी का जो विरवा रोपा है वे पंडित जी के संगीत सागर का स्मरण कराते रहेंगे। संगीत के आकाश पर उनका नाम सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। संगीत के साधक का स्वत: ब्रम्ह सम्बन्ध हो जाता है। ऐसे महान गायन परम्परा के अगुआ को विनम्र श्रद्धांजलि।
वैश्विक चिन्तन के विषय के रूप में एक नया अध्याय इस धरती ने स्वत: ही जुड़ गया है क्योंकि सदैव ही हरी भरी दिखने वाली धरा वैश्विक तापवर्द्धन के चपेट में आ गयी है। जिससे धरा की हरितिमा नष्ट होने को अग्रसर है साथ ही 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 112 वर्ष बीत जाने पर पुन: अति ताप से एक बार हिम युग की ओर गतिमान हो रही है। धरती के स्वर्ग कहलाने वाले काश्मीर झील और बर्फिली चोटियों के रूप में अपनी पहचान रखते है परन्तु वह हिमालय की चोटियों से बर्फ के गायब होने और झील के सतह पर बर्फ के जम जाने से आज अपनी पहचान और आकर्षण खो रहा है। वहां की झील में बर्फ जमने से बच्चों के खेल के मैदान की शक्ल लेकर हमारी पर्यावरण संरक्षण के प्रेम को मुह चिढा रही है।
भारतीय ग्लेशियरों पर निगरानी करने की दृष्टि से अहमदाबाद स्थित स्पेश एप्लीकेशन सेन्टर में एक ग्लेकिस्कोलॉजी परियोजना चलायी जा रही है। यहां उपग्रह की मदद से अतिसंवेदी ग्लेशियरों पर लगातार नजर रखी जाती है। इस परियोजना के प्रमुख डा. अनिल वी. कुलकर्णी द्वारा काफी चौंकाने वाले तथ्य पहली बार ठोस सबूत के साथ पेश किए गये है। हिमाचल प्रदेश के वसपा बेसिन स्थित 4 ग्लेशियर तबाही की ओर बढते पाये गये और बाकी 15 ग्लेशियर भी खस्ता हालात में पहुंच चुके है। डा. कुलकर्णी के अनुसार जहां ग्लेशियरों की बर्फ वैश्विक ताप से पिघल रही है वही दूसरी ओर उन स्थानों पर प्रदूषण के कारण जाड़ों में बर्फ जमने नहीं पा रही है। इस ग्लेशियरों की सत्यता यह है कि वर्ष 2000 से वर्ष 2002 के दौरान ही ग्लेशियरों ने 0.2347 क्यूबिक बर्फ लुप्त हो गयी हैं। बर्फ के क्षरण की यह दर वैश्विक स्तर पर अवश्य ही चिन्तादायक है।
भारत से हटकर यदि इस विषय में वैश्विक दृष्टिपात किया जाए तो ध्रुव प्रदेश भी इस कड़ी में मर्माहत ही दिखायी पड़ रहे है। पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की अपेक्षा दक्षिणी ध्रुव अधिक ठंडा होता है यहां समुद्र तल पर बर्फ की मोटी चादर लगभग पूरे वर्षभर बनी रहती है। पृथ्वी के बर्फ का कुल 10वां हिस्सा दक्षिणी ध्रुव में ही रहता है। शिकागो विश्वविद्यालय के प्रो. टार्वफोर्न ने ग्लोबल कूलिंग के विषय में चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि धरती का दो तिहाई भाग पानी से भरा है जो कभी भी बर्फ में बदल सकता है। टार्वफोर्न के अनुसार ध्रुव प्रदेशों में सबसे ऊंची सतह पर बर्फ की मोटाई लगभग 14 हजार फुट आंकी गयी है जिसके पिघलने और प्रदूषण के कारण पुन: न जमने की प्रक्रिया ठीक तरह से होने पर धरती अवश्य ही हिम युग में पहुंच जाएगी।
अमेरिका के मध्य पश्चिम राज्यों में बर्फिले तूफान से पिछले पखवाड़े में जन जीवन ठप हो गया है और हर प्रभावित इलाकों में लगभग 2 फुट बर्फ का जमाव बना हुआ है। उत्तरी यूरोप में भारी बर्फबारी और कड़ाके की ठंड से विभिन्न दुर्घटनाओं में 28 लोगों की मौत हो गयी। ब्रिटेन के हीथ्रो, गैवाटिक, पेरिस, एम्सटर्डम, बर्लिन आदि स्थानों पर बर्फबारी के कारण विभिन्न उड़ानों को रद्द करना पडा जिससे इन देशों को काफी आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। बाल्कन देशों में अल्वानिया, बोस्निया, मोन्टेनेगो, और सार्विया आदि क्षेत्र में बाढ़ की विभिषिका के कारण हजारों लोग प्रभावित हो गये है। शीत के कारण विगत जनवरी में चीन के मंगोलिया प्रान्त में पिछले 6 दशकों की सबसे ज्यादा बर्फबारी हुई जिसमें एक रेलगाड़ी 6.5 फुट मोटी बर्फ की चादर में लिपट गयी इसमें 1400 आदमी को मौत से करीब 30 घन्टे तक जूझना पड़ा। ब्रिटेन के यार्कशायर में एक पब में सात लोग फंसे रहे, वहां पर 16 फुट मोटी बर्फ से पब के सभी खिड़की और दरवाजे बन्द हो गये। ब्रिटेन में आज तक बर्फ गिरने का सिलसिला जारी है। साइप्रस माउन्टेन पर आयोजित होने वाले अर्न्तराष्ट्रीय स्नोबोर्डिंग खेलों का आयोजन बर्फ की कमी के कारण निरस्त करना पड़ा जिसके कारण लगभग 20 हजार टिकट को रद्द करने पड़े थे। आयोजकों को काफी नुकसान झेलना पड़ा। यह खेल भी पर्यावरण प्रदूषण की भेंट चढ गया।
वैश्विक स्तर पर हो रहे हिमपात, बर्फीले तुफान धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहे है और इस तरीके से विभिन्न देश आर्थिक नुकसान को दिन प्रतिदिन महसूस कर रहे है। मैक्सिको स्थित कानकुन सम्मेलन में 194 देशों के मंत्री शामिल होकर केवल एक कोश ही बनाने पर ही राजी हो पाये लेकिन को कोश कहां से आये इसपर सहमति नहीं बना पायी। कोपेनहेगेन और कानकुन जैसे सम्मेलनों के आयोजक देश जब तक दृढ निश्चयी भाव से और एक मत होकर गम्भीर चिन्तन के साथ, सहयोग भाव से काम नहीं करते तब तक वैश्विक ताप पर नियंत्रण, कार्बन की मात्रा पर्यावरण से नियंत्रित करने की बात पूरी नहीं हो सकती।
ध्रुव प्रदेश की सिकुड़ती हुई बर्फ निश्चय ही अन्य स्थानों पर बर्फ का जमाव कभी भी कर सकती है। बढ़ती हुई वैश्विक ताप पहाड़ों पर बर्फ को पिघला रही है और बढ़ता प्रदुषण ताप के घटने पर भी पहाड़ों पर बर्फ को जमने नहीं दे रहा है। ध्रुव प्रदेशों की पिघलती हुई बर्फ समुद्री जलस्तर को ऊपर बढ़ा रही है और जिससे समुद्र तटीय शहर डूबने की दिशा में लगातार अग्रसर है। वहीं इससे हटकर जो इलाके बर्फ से सदैव दूर रहते थे वो इलाके भी धीरे धीरे बर्फबारी की चपेट में आते जा रहे है जिनसे सामान्य जन जीवन अस्त सा हो रहा है और विभिन्न राष्ट्रों को इसके चलते आर्थिक हानि हो रही है जो उन देशों की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रही है।
हमारे द्वारा नित पर्यावरण के साथ किया जाने वाला खेलवाड़ हमें कभी बाढ़ तो कभी गर्मी तो कभी ठंडक से मार रही है। ऐसे में भारत में प्रचलित कहावत कि ” दैव न मारै खुद मरे ” अर्थात हमारी विकास की नीतियों की खामिंया ही हमसे हमारी धरती को हिमयुग की ओर भेजने और हमसे छीनने की कोशिश कर रही है और हम असहाय से एक दूसरे का मुह देखते नजर आ रहे है।
देश की सबसे ताकतवर महिला श्रीमती सोनिया गांधी को सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस द्वारा राजमाता के रूप में देखा जाता है। श्रीमती सोनिया गांधी महिला हैं, पर महिला आरक्षण विधेयक वे पिछले छः से अधिक सालों में पारित नहीं करवा सकीं हैं। राजमाता की रियासत अर्थात लोकसभा के हाल बेहाल हैं। राजमाता के संसदीय क्षेत्र में प्राईमरी स्तर पर शिक्षकों की जबर्दस्त कमी है, पर राजमाता हैं कि अपनी रियाया की ओर देखने की जहमत ही नहीं उठा रही है। आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो रायबरेली जिले में विद्यालयों में तीन लाख चालीस हजार 274 विद्यार्थी पंजीकृत हैं, जिनमें से प्राईमरी स्तर पर दो लाख 59 हजार 130 का आंकड़ा है। अगर देखा जाए तो सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में प्राथमिक स्तर पर दो हजार दो सौ 39 और माध्यमिक स्तर पर एक हजार 143 शिक्षकों की कमी है। एक तरफ कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कर दिया गया है, वहीं दूसरी और इस सरकार की चाबी अघोषित तौर पर अपने हाथों में रखने वाली श्रीमति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का यह हाल है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजनाएं और कानून सूदूर ग्रामीण अंचलों में किस तरह अमली जामा पहन रहे होंगे।
राजा, राडिया, कलमाड़ी बने भ्रष्टाचारियों के आईकान
लगता है संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में एक प्रतिस्पर्धा चल रही है, वह है कि कौन कितना अधिक भ्रष्टाचार कर सकता है। जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को घोलकर पी जाओ, कोई कुछ भी कहने वाला नहीं है। देश की पुलिस हो या दूसरी जांच एजेंसियां सब के सब आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर ध्रतराष्ट्र के मानिंद बैठे हैं। हिन्दुस्तान की तो छोडिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरेश कलमाड़ी, नीरा राडिया, ए.राजा जैसे लोगों ने धूम मचा रखी है। सभी हत्प्रभ हैं कि आखिर भारत गणराज्य में यह क्या हो रहा है, सरेआम भ्रष्टाचार, घपले, घोटाले फिर भी इसमें लिप्त लोग मिस्टर क्लीन बने बैठे हैं। अब तो इंटरनेशनल लेबल पर कहा जाने लगा है कि एक हजार करोड़ का भ्रष्टाचार मतलब कलमाड़ी, दस हजार करोड़ रूपए का हुआ तो नीरा राडिया और अगर एक लाख करोड़ के उपर गया तो उसे ए.राजा के नाम से ही पुकारा जाए तो बेहतर होगा। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस इससे ज्यादा दुर्दिन आम हिन्दुस्तानी को और क्या दिखाएगी!
थर्ड ग्रेड की है मध्य प्रदेश की झांकी
गणतंत्र दिवस परेड में मध्य प्रदेश द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली बिना आकर्षण वाली है, जिसके बल बूते एमपी इस परेड में अव्वल की बजाए फिसड्डी ही बना रहेगा। दिल्ली के छावनी इलाके में बन रही इस झांकी को जिस तरीके से बनाया जा रहा है, उससे इस बात में संशय ही लग रहा है कि इसे कोई पुरूस्कार मिल सके। बाघ प्रिंट पर आधारित इस झांकी में विदिशा जिले की शाल भंजिका की प्रतिमा को अगर छोड़ दिया जाए तो शेष में कुछ भी एसा नहीं प्रतीत हो रहा है, जो दर्शकों को बांधे रखे। झांकी की तैयारियों को देखकर लगता है मानो अफसरान ने बला टालने के उद्देश्य से किसी अनाड़ी कलाकार को इसे तैयार करने के काम में लगा दिया है। इस तरह बेरौनक और आकर्षण विहीन झांकी के माध्यम से मध्य प्रदेश सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है, यह बात तो एमपी के नौकरशाह और जनसेवक ही जाने पर यह तय है कि इस तरह की झांकियों से सूबे की नाक उंची होने के बजाए सूबा उपहास का ही पात्र बनकर रह जाएगा।
ज्योतिषी नहीं राजनेता हैं मनमोहन
मंत्रीमण्डल के बहुचर्चित किन्तु नीरस फेरबदल के उपरांत वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने मंहगाई के मामले में अप्रत्याशित जवाब देते हुए कहा कि वे ज्योतिषी नहीं हैं, कि बता सकें कि मंहगाई कब कम होगी, वैसे उन्होंने भरोसा दिलाया कि मार्च तक महंगाई काबू में आ जाएगी। वजीरे आजम की हैसियत से बोलते वक्त डॉ.मनमोहन सिंह यह भूल जाते हैं कि वे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं, अर्थशास्त्र के गणित को वे बेहतर समझते हैं। सारी स्थितियां परिस्थितियां उनके सामने हैं। सहयोगी दल यहां तक कि कांग्रेस के मंत्री भी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं। मनमोहन क्या करें? वे भी तो पिछले सदन के भरोसे ही हैं। कठोर कदम उठाते हैं तो सरकार गिरने का डर, नहीं उठाते हैं तो मंत्री और सहयोगी दल कालर पकड़ने पर आमदा हैं। मनमोहन यह बात भी भूल गए कि उन्होंने पिछले साल आरंभ में कहा था कि मंहगाई अक्टूबर तक काबू में आ जाएगी। फिर क्या हुआ मनमोहन जी, आप भी वालीवुड के चर्चित चलचित्र ‘दामिनी‘ की तरह ‘‘तारीख पर तारीख‘ ही दिए जा रहे हैं। देश की जनता की कमर मंहगाई से टूट रही है, आपके मंत्री शरद पवार कहते हैं कि मंहगाई है कहां? अरे आप या पवार साहेब एकाध मर्तबा बाजार जाएं और वहां खीसे से पैसा निकालकर कुछ खरीदें तब तो ‘आटे दाल का भाव‘ पता चलेगा।
राहुल की जमानत पर छूटे मोईली
केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली की बिदाई तय थी। आश्चर्यजनक तरीके से उनकी कुर्सी बच गई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह उनसे आजिज आ चुके थे। अब लोग पतासाजी में लगे हैं कि आखिर क्या कारण था कि माईली बच गए। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त मोईली के दमाद आनंद इनके अघोषित जमानतदार बने जो राहुल गांधी के बचपन के अंतरंग मित्र हैं। फेरबदल के दो घंटे पहले तक संशय बरकरार रहा। कांग्रेस आलाकमान भी मोईली के आंध्र के कारनामों से नाखुश हैं, वे भी उनकी रूखसती की हिमायती थीं। फेरबदल के दो घंटे पहले मोईली को दस जनपथ का बुलावा आया। वहां प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तब तक मोईली की बिदाई का सारा ताना बाना बुन चुके थे। सूत्र बताते हैं कि इसके पहले कि प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी कोई फैसला ले पाते, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने फच्चर फसा दिया, और मोईली के तारणहार बनकर उभरे। सूत्रों ने बताया कि मोईली का कद और पद दोनों ही बचाए रखने में वीरप्पा माईली के दमाद आनंद अदकोली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मोईली ने भी आनंद के माध्यम से राहुल को साधा और हो गए अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब।
इस नौटंकी का क्या मतलब हुआ जैन साहेब
केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन पिछले दिनों लखनउ में रिक्शे पर चले और उनके पीछे पीछे उनकी सुरक्षा में चल रहा स्कार्ट चलता रहा। दरअसल यूपी की निजाम मायावती ने एक फरमान जारी किया है कि अगर कोई केंद्रीय मंत्री अपने निजी या पार्टी के काम से उत्तर प्रदेश आता है तो उसे राजकीय अतिथि का दर्जा नहीं दिया जाएगा, न उसे सरकारी वाहन मिलेगा और न ही सरकारी खर्च पर रूकने खाने की व्यवस्था ही की जाएगी। इस व्यवस्था के लागू होने के साथ ही मंत्री जतिन प्रसाद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति के अध्यक्ष पी.एल.पूनिया को भी अपनी जेबें हल्की करनी पड़ी थीं, पर उन्होंने तो बवाल नहीं काटा। प्रदीप जैन का यह आडंबर समझ से परे है, क्योंकि वे अपनी पार्टी के काम से लखनउ गए थे। बतौर सांसद रेल में उनका किराया नहीं लगा, जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें कम से कम एक टेक्सी ही कर लेना था। मगर अगर जैन एसा करते तो मीडिया की सुर्खियां कैसे बटोर पाते। मायावती का कदम एकदम न्यायसंगत है, आप सरकारी खर्चे पर अपनी पार्टी कैसे मजबूत कर सकते हैं, आखिर वह पैसा जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का जो ठहरा।
हाईटेक भ्रष्टाचार हुआ है कामन वेल्थ में
कामन वेल्थ गेम्स को भ्रष्टाचार का महाकुंभ कहा जाने लगा है। इसके शिकंजे में आते ही आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने चिंघाड़ा कि वे अकेले नहीं हैं इस दलदल में। कलमाड़ी ने परोक्ष तौर पर कह दिया था कि हमाम में बड़े बड़े निर्वस्त्र खड़े हुए हैं। सीबीआई ने जांच चालू की, नेताओं की सांसें थमी हुईं हैं। इसमें ज्यादा कुछ निकलकर आने की उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि यह सर्वदलीय भ्रष्टाचार का नायाब नमूना था। चंद दिनों में लोग इसके बारे में भूल जाएंगे और फिर फाईलें धूल खाती फिरंेगी। वैसे सूत्रों ने बताया कि सीबीआई ने अब तक इस महाघोटाले में 154 ईमेल को खंगाला है। बताते हैं कि ईमेल के माध्यम से ही ठेकेदारों से सौदेबाजी होती थी, फिर उस हिसाब से ही बजट बनाकर पास करवा लिया जाता था। सूत्र बताते हैं लगभग पांच दर्जन ईमेल आयोजन समिति और ठेकेदारांे के बीच हुई सांठगांठ की ओर इशारा कर रहे हैं। इनमें से कुछ मेल क्विंस बेटन से संबंधित भी हैं।
राहुल की गणेश परिक्रमा में जुटे जोगी
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का जलजला एक बार फिर बढ़ सकता है। जोगी आजकल राहुल गांधी को प्रसन्न करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेसियों की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी अपने अपने हिसाब से रोड़ मेप तैयार करने में जुटा हुआ है, ताकि कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र दस जनपथ का आर्शीवाद उसे मिल सके। इसी तारतम्य में अजीत जोगी द्वारा राहुल बिग्रेड के प्रचार प्रसार का जिम्मा अपने कांधों पर ले रखा है। अजीत जोगी द्वारा राहुल बिग्रेड की शाख देश के हर सूबे में खुलवाई जा रही है। इसके जरिए कमजोर तबके के लोगों की मदद, अन्न, वस्त्र वितरण के साथ ही साथ कांग्रेस शासित राज्यों और केंद्र सरकार की विकासोन्मुखी योजनाओं की जानकारियां देने का काम प्रमुख तौर पर किया जाएगा। कांग्रेस के अंदरखाने में यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि राहुल बिग्रेड के नाम पर कांग्रेस की राजनीति में हाशिए पर ला दिए गए अजीत जोगी हर राज्य में अपने समर्थकों की खासी फौज खड़ी करने की तैयारी में हैं, ताकि आने वाले समय में वे कांग्रेस के आला नेताओं के साथ बारगेनिंग करने की स्थिति में आ जाएं।
फिर उलझे बाबा रामदेव!
बाबा रामदेव और विवादों का चोली दामन का साथ है। न बाबा बयान बाजी छोड़ते हैं, और न ही विवाद उनका दामन। योग गुरू बाबा रामदेव ने जगन्नाथ पुरी में मंदिर में सबके प्रवेश की वकालत कर डाली। फिर क्या था पुरी में मच गया धमाल। लोगों ने बाबा के खिलाफ जमकर नारेबाजी की, बाबा रामदेव के पुतले फूंके यहां तक कि उनकी गिरफ्तारी की मांग तक कर डाली। लोगों का कहना है कि मंदिर में प्रवेश के मसले पर निर्णय लेने का अधिकार पुरी के शंकराचार्य को है, न कि योग गुरू बाबा रामदेव को। गौरतलब है कि इस मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है। स्वाभिमान पार्टी के जरिए देश की सत्ता हथियाने के लिए लालायित बाबा रामदेव राजनीति में अभी कच्चे खिलाड़ी हैं। किस वक्तव्य का क्या असर होगा इस बात से वे अनजान हैं, साथ ही बाबा के पास राजनैतिक समझ बूझ वाले कुशल प्रबंधक और रणनीतिकारों की कमी है, जिससे वे आए दिन उल जलूल बयानबाजी कर मीडिया की सुर्खियां अवश्य ही बटोर लेते हैं, पर ये सारी बातें बाबा रामदेव के खाते में उनकी लोकप्रियता में इजाफा तो कतई नहीं कर रही हैं।
दुर्लभ जीवों की तस्करी कर रही हैं कार्गो विमान कंपनियां
एक तरफ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा वन्य जीवों को बचाए रखने के लिए अनेक मंत्रियों से दो दो हाथ किए जा रहे हैं वहीं दूसरी और पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल और वर्तमान वायलर रवि के नेतृत्व वाला नागरिक उड्डयन मंत्रालय इस बात से अनजान है कि देश के कार्गाे विमान संचालकों द्वारा इनके माध्यम से दुर्लभ वन्य जीवों की तस्करी की जा रही है। मध्य प्रदेश काडर की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी एवं वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की निदेशक रीना मित्रा कहती हैं कि वन्य जीवों की तस्करी करने वाली दो कार्गाे एयरलाईंस के बारें में जांच जारी है, जब तक शक यकीन में नहीं बदल जाता तब तक इनके नाम उजागर नहीं किए जा सकते। वन एवं पर्यावरण मंत्री को जैसे ही इस बात की भनक लगी, उन्होंने तत्काल ही इस मामले को नागरिक उड्डयन मंत्री के समक्ष रखने का मन बना लिया है, अब देखना यह है कि फेरबदल के बाद जयराम रमेश की पहली भिडंत वायलर रवि से किस तरह और किस स्तर पर होती है।
भाजपा के गांधी ने पीछे छोड़ा युवराज को
भले ही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भाजपा के वरूण गांधी से उमर में दस साल बड़े हों पर एक मामले में राहुल गांधी को वरूण गांधी ने मात दे दी है, और वह है शादी का मसला। 19 जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी की शादी की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हो सकी है, पर दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के वरूण गांधी शादी की तैयारियां सप्तपुरियों में से एक पवित्र नगरी वाराणसी के हनुमान घाट पर कांची मठ में आरंभ हो गई हैं। सूत्रों का कहना है कि मेनका गांधी की तमन्ना है कि यह विवाह शास्त्रोक्त विधि से संपन्न हो एवं इसके साक्षी बनें स्वयं कांची कामकोटी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती। काशी में विवाह के उपरांत दिल्ली में एक प्रीतिभोज का आयोजन भी किया जाने वाला है। राहुल गांधी को महिमा मण्डित करने के कारण भले ही उनका ग्लेमर सर चढ़कर बोल रहा हो, किन्तु देश की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि वरूण की शादी में उनकी ताई सोनिया, बहन प्रियंका वढ़ेरा और बड़े भाई ‘‘कुंवारे जेठ‘ राहुल गांधी शामिल होते हैं या नहीं!
पुच्छल तारा
देश के वजीरे आजम ने आखिरकार अपने उन्नीस माह पुराने मंत्रीमण्डल को मथ दिया है। इस मंथन के बाद जो निकलकर आया है वह विष है या अमृत यह तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा हुआ है। आज के समय में मनमोहन सिंह मजाक का विषय बने हुए हैं। मध्य प्रदेश के दमोह से शुभी ने एक ईमेल भेजा है, शुभी लिखती हैं कि एक बूढ़े पहलवान ने दावा किया कि आज भी उनके अंदर उतनी ही ताकत है, जितनी कि जवानी में थी। लोगों ने पूछा कैसे भई? पहलवान बोला -‘‘वो बड़ा पत्थर देख रहे हो न, में उसे जवानी में भी नहीं उठा पाता था, और आज भी नहीं उठा पाता हूं। इसी तर्ज पर मनमोहन सिंह ने मंत्रीमण्डल फेरबदल के बाद सोचा होगा कि वे आज भी उतने ही ताकतवर हैं जितने कि चंद साल पहले थे। वे आज भी कड़े फैसले नहीं ले सके और चंद साल पहले भी कड़े फैसले नहीं ले पाए थे।
गण उठ, महंगाई का रोना छोड़। महंगाई का रोना बहुत रो लिया। पहले मां बच्चे को रोने से पहले खुद दूध देती थी। तब देश में लोकतंत्र नहीं था। अब समय बदल गया है। बच्चा रोता है तो भी मां उसे दूध देने के लिए सौ नखरे करती है। मां और तंत्र को अब बच्चे से अधिक अपनी फिगर का ख्याल है। उसे बच्चे से अधिक प्यारी अपनी फिगर है। अब रोते बच्चे को दूध पिलाने के दिन गए। अब रोते गण को लोरी सुना सुलाने के दिन गए। आज मां के पास बच्चे को दूध पिलाने का ही काम नहीं। और भी सैंकड़ों काम हैं। अत: हे गण! अब रोने का नया ढंग ढूंढ। सच कहना गण! एक ही तरह का रोना रोकर तुम बोर नहीं होते क्या? देख, तंत्र तेरा एक ही तरह का राग सुन सुनकर थक गया है। जो तू मुझसे पूछे तो मैं दिल पर हाथ रख कर कहूं कि मैं तो एक ही तरह का रोना रोकर दो मिनट से अधिक नहीं चल पाता। बहुत बोर हो जाता हूं। इसलिए रोने के रोज नए आयाम तलाशता हूं ताकि लोग मेरे रोने को पुराना रोना कह दुत्कार न दें। एक ही तरह का रोना रोज-रोज रोने का क्या लाभ! रोज नया रोने से रोने में ताजगी और आकर्षण दोनों बने रहते हैं। नहीं पता तो जमाने से सीख। जिस रोने में आकर्षण नहीं उसे आज की डेट में मुआ भी नहीं उठाता। और फिर तंत्र तो ठहरा तंत्र!!
देख, मां! तेरा एमए बेटा रिक्षा चलाकर आने वाला है। बेचारा पता नहीं दिन भर कहां-कहां भटका होगा? खेतों से उखड़ने का एक यही तो मजा है। उसके स्वागत के लिए चूल्हा जला। चूल्हे का मन रखने के लिए चूल्हा जला। चाहे कुछ मत पका। तंत्र का आदेश है कि हर घर में हर वक्त चूल्हा जले। भले ही उस पर कुछ न पके। तंत्र को चूल्हे से धुआं उठना पसंद है। इसलिए मन से उठता धुआं रोक पर उसका मन रखने के लिए चूल्हे से धुआं उठने दे। रसोई से धुआं न उठा तो तंत्र जुर्माना लगाएगा। रसोई से धुआं न उठा तो तंत्र जेल भिजवाएगा। देगची की इज्जत का ध्यान कर। तवे को और मत जला। उसे चूल्हे के सिर पर बैठ जलने दे।
देख गण! तुम तंत्र पर बेबुनियाद आरोप लगाते फिरते हो कि तंत्र को तुम्हारी फिक्र नहीं? अरे बाबा! तंत्र तुम्हारी फिक्र ही तो करता रहता है आठ पहर चौबीस घंटे। वह तुम्हारी फिक्र में ही सोता है और रात भर तुम्हारी फिक्र में ही पलटियां खा सुबह तुम्हारी फिक्र में ही जाग जाता है। अगर तंत्र तुम्हारी फिक्र न करे तो दूसरे दिन बिन काम हो जाए। अरे बावले! तंत्र को अपने से अधिक तो तुम्हारी चिंता रहती है। कल वह मुझसे कसम खा कह रहा था।
सुन गण! हर चीज का निरंतर बढ़ते रहना विकास का सूचक है। स्थिरता मौत की निशानी है। तू भी गतिशील बन। देख, देश में हर चीज आगे बढ़ रही है। तेरी उम्र भी तो निरंतर बढ़ रही है! वह रूक सकती तो तंत्र बहादुर महंगाई को भी रोक लेगा। देश में रिश्वत खोरी, बेराजगारी, लूटमार निरंतर बढ़ रहे हैं। मजा आ रहा है। देश में मिलावट, आत्महत्याएं, बलात्कार दु्रतगति से बढ़ रहे हैं। सत युग बढ़ कर द्वापर हो गया। द्वापर आगे बढ़ा तो त्रेता हो गया। त्रेता आगे बढ़ा तो कलियुग हो गया। वन माफिया आगे बढ़ रहा है। भू माफिया आगे बढ़ रहा है। देख तो सांसदों के वेतन झटके में कितने आगे बढ़ गए! ऐसे में मेरी समझ में तेरी एक बात नहीं आती कि तू महंगाई को आगे बढ़ने क्यों नहीं दे रहा है गण! आखिर तेरी महंगाई से दुश्मनी है क्या! तुझे नहीं लगता कि सभी की तरह महंगाई भी फूले-फले? देश में सभी को आगे बढ़ने का अधिकार है। देश में भय, भूख, भ्रष्टाचार सब तो आगे बढ़ रहे हैं। आगे नहीं बढ़ रही है तो बस तेरी सोच! इसलिए हे गण तू भी अपनी सोच को आगे बढ़ा। चल, मजे से गणतंत्र दिवस का सीधा प्रसारण टांगों पर टांगें रखे देख। भूख प्यास की परवाह मत कर! वैसे आगे की बात कहूं गण! रोज- रोज रोटी खाकर कौन अमर हो लिया? योगा कर। भूख पर विजय प्राप्त कर। विजयी बन! तेजस्वी बन!
विश्वप्रसिद्ध पिरामिडों,ममियों और विश्व सुंदरी नेफरीतीती और क्लियोपेट्रा के देश इजिप्त के लिए 11जनवरी2011 को गल्फ एअर लाइंस की फ्लाइट से हम लोग बेहरीन के लिए दिल्ली से सुबह 5.30 बजे की फ्लाइट से रवाना हुए। इजिप्त की राजधानी केरों पहुंचने के लिए बेहरीन से दूसरी फ्लाइट लेनी होती है। जोकि पूरे चार घंटे बाद मिलती है। यहां का समय भारत के समय से पूरे तीन घंटे पीछे चलता है। बेहरीन के हवाई अड्डे पर उतरे तो वहां भारतीय चेहरों की बहुतायत देखने को मिली। यूं तो फ्लाइट में ही हमारे साथ जो लोग सफर कर रहे थे उससे हमें कुछ-कुछ अंदाजा लग गया था कि बेहरीन के निर्माण में मजदूर और इंजीनियर भारत के ही हैं। और फिर वहां जब ड्यूटी फ्री शॉप्स में जाकर खरीदारी की तो वहां के सेल्समैन ये जानकर कि हम भारत से आए हैं हम से हिंदी में ही बात करने लगे। एअरपोर्ट पर उड़ानों की सूचना अरबी,इंगलिश और हिंदी भाषा में दी जा रही थी इससे सिद्ध हो गया कि शेखों के पास भले ही पेट्रोल के कुएं हों मगर बेहरीन की ज़िंदगी के धागों का संचालन हिंदुस्तानियों के ही हाथ में है। और हिंदुस्तान के दफ्तरों में भले ही हिंदी को हिंदुस्तानी अधिकारी दोयम दर्जे का मानकर अपनी टिप्पणी अंग्रेजी में देते हों मगर बेहरीन में हिंदी की ठसक पूरी है। बेहरीन में वनस्पति बहुत कम है। हरियाली के मामले में बेहरीन का दिल्ली से कोई मुकाबला नहीं। यहां के बाशिंदे भारतीयों-जैसे ही नाक-नक्श और कद-काठी के ही हैं। जब तक बोलते नहीं पता नहीं चलता कि कि ये भारतीय हैं या बेहरीनी। दो घंटे बेहरीन में गुजारकर हम लोग दूसरी उड़ान से इजिप्त की राजधानी केरो के लिए रवाना हुए। और तीन घंटे की उड़ान के बाद केरो एअरपोर्ट पर उतरे। यहां का मौसम खुशगवार था और तापक्रम 13 डिग्री सेल्सियस था। दिल्ली की ठिठुरती सर्दी से घबड़ाए लोग जितनें ऊनी कपड़े लेकर आए थे वे कुछ जरूरत से ज्यादा साबित हुए। एअरपोर्ट से 11 किमी दूर गीजा शहर की होटल होराइजन में हमें ठहराया गया। यह इजिप्त की बेहतरीन होटलों में एक है। रास्तेभर उड़ती धूल और सड़कों पर फैली पोलीथिन थैलियों और बीड़ी-सिगरेट के ठोंठों को देखकर यकीन हो गया कि मिश्र की सभ्यता पर भारतीय सभ्यता की बड़ी गहरी छाप है। और नील नदी तथा गंगा नदी के बीच पोलीथिन का कूड़ा एक सांस्कृतिक सेतु है। नेहरू और नासिर की निकटता शायद इन्हीं समानताओं के कारण उपजी होगी। और निर्गुट देशों के संगठन का विचार इसी रमणीक माहौल को देखकर ही इन महापुरुषों के दिलों में अंकुरित हुआ होगा।
दिल्ली के सरकारी क्वाटरों के उखड़े प्लास्टर और काई खाई पुताई से सबक लेकर इजिप्तवासियों ने मकान पर प्लास्टर न कराने का समझदारीपूर्ण संकल्प ले लिया है। यहां मकान के बाहर सिर्फ ईंटें होती हैं।प्लास्टर नहीं होता। पुताई नहीं होती। दिल्ली की तरह मेट्रो यहां भी चलती है।लाइट और सड़कों के मामले में इजिप्त दिल्ली से आगे है। पिरामिड और ममियोंवाले इस देश की राजधानी केरों में एक अदद ग्रेवसिटी भी है। यानी कि कब्रों का शहर। जहां सिर्फ मुर्दे आराम फरमाते हैं। इनकी कब्रें मकान की शक्ल में हैं। जिसमें खिड़की और दरवाजे तक हैं। छत पर पानी की टंकी भी रखी हुईं हैं। और इन कब्रीले मकानों पर प्लास्टर ही नहीं पुताई भी की हुई है। मुर्दों के रखरखाव का ऐसा जलवा किसी दूसरे देश को नसीब नहीं। कब्रों की ऐसी शान-शौकत देखकर हर शरीफ आदमी का मरने को मन ललचा जाता होगा। ऐसा मेरा मानना है। यहां का म्यूजियम भी ममीप्रधान संग्राहलय है। हजारों साल से सुरक्षित रखी ममियां दर्शकों को हतप्रभ करती हैं। मन में प्रश्न उछलता है, इन निर्जीव शरीरों को देखकर कि अपना सामान छोड़ कर कहां चले गए हैं ये लोग। क्या ये वापस आंएंगे अपना सामान लेनें। हमारे यहां के सरकारी खजाने में किसी की अगर एक लुटिया भी जमा हो जाए तो उसे छुड़ाने में उसकी लुटिया ही डूब जाए। मगर इस मामले में इजिप्त के लोग बेहद शरीफ हैं। वो बिना शिनाख्त किए ही तड़ से किसी भी रूह को उसका सामान वापस लौटा देंगे। शायद इसी डर के कारण इनके मालिक अभी तक आए भी नहीं हैं। आंएंगे भी नहीं। मगर इंतजार भी एक इम्तहान होता है। और बार-बार इस इम्तहान में फेल होने के बाद भी इस मुल्क के लोग फिर-फिर इस इम्तहान में बैठ जाते हैं। और फिर हारकर खुद उनके मालिकों के पास पहुंच जाते हैं तकाज़ा करने। कि भैया अपना माल तो उठा लाओ। सब आस्था का सवाल है। गीजा में कुछ पिरामिड हैं मगर असली पिरामिड जो दुनिया के सात आश्चर्यों में शुमार हैं वे गीजा से 19 कि.मी. दूर सकारा में बने हैं। इन पिरामिडों की तलहटी में भी शाही ताबूतों में जन्नत नशीन बादशाहों के जिस्म आराम फरमा रहे हैं। इजिप्त के सर्वाधिक चर्चित 19 वर्षीय सम्राट तूतन खातून भी शुमार हैं। तमाम खोजों के बाद पता चला कि इतना बहादुर सम्राट सिर्फ 19 साल में मलेरिया के कारण जिंदगी से हार गया। एक साला मच्छर कब से आदमी के पीछे पड़ा है। उसे ममी बनाने के लिए। ममीकरण की केमिस्ट्री भी बड़ी अजीब है। हमारे गाइड ने हमें बताया कि ममीकरण के लिए पहले मृतक शरीर को बायीं तरफ से काटकर उसके गुर्दे,जिगर और दिल को निकालकर बाहर फेंक दिया जाता है।। फिर नाक में कील घुसेड़कर खोपड़ी की हड्डी में छेद कर के दिमाग को भी खरोंचकर बाहर फेंक दिया जाता है। फिर पूरे शरीर में सुइयां घुसेड़ कर शरीर का सारा खून भी निकाल दिया जाता है। इस प्रकार सड़नेवाली सारी चीजों को शरीर से निकाल दिया जाता है। इसके बाद मृतक शरीर को नमक के घोल में 40 दिन के लिए रख दिया जाता है। चालीस दिन बाद इस शरीर को नमक के घोल से बाहर निकालकर 30 दिन के लिए धूप में रखा जाता है। तीस दिन बाद फिर इस शरीर पर लहसुन,प्याज के रस और मसालों का लेप कर के तेज इत्र से भिगो दिया जाता है ताकि सारी दुर्गंध दूर हो जाए। ममियों के बाद बात करते हैं-पिरामिडों की। पिरामिडों में सबसे पहला पिरामिड सम्राट जोसर ने बनवाया। जिसे बनाने में पूरे बीस साल लगे। इजिप्त का हर किसान साल के पांच महीने इसके बनाने में लगाता था। सम्राट जोसर की कल्पना को अंजाम दिया उनके इंजीनियर मुस्तबा ने। इस पिरामिड में छह पट्टियां हैं। कहते हैं कि खोजकर्ताओं को इसकी तलहटी में 14000 खाली जार मिले थे। जो पड़ोस के किसी राजा ने फैरो को बतौर तोहफे भेंट किए थे। इससे लगा ही एक दूसरा पिरामिड है जो सम्राट जोसर के बेटे ने बनवाया था। पिता की इज्त के कारण उसने इस पिरामिड का आकार पिताजी के पिरामिड से जानबूझकर छोटा रखा था। इसके साथ ही एक और सबसे छोटा पिरामिड बना हुआ है। यहीं कुछ दूरी पर बना है-टूंब ऑफ लवर..यानीकि प्रेमी का मकबरा। जोकि साढ़े बासठ मीटर ऊंचा और अठ्ठाइस मीटर गहरा है। फैरो यहां के सम्राट की पदवी हुआ करती थी। इन्हीं मे एक फैरो था-एकीनातो। विश्वसुंदरी नेफरीतीती इसी फैरो की पत्नी थी। नेफरीतीती का इजिप्तियन में भाषा में मतलब होता है-सुंदर स्त्री आ रही है। सुराहीदार लंबी गर्दनवाली नेफरीतीती इजिप्त की पहचान और शान है। तमाम ऐतकिहासिक धरोहरों को संजोए केरो में दिल्ली की तरह मेट्रो भी चलती है। गीजा से एलेक्जेंड्रीया जाते हुए बीच में एक इंडियन लेडी पैलेस भी बना है। कौन थी वह भारतीय महिला इसका पता किसी को नहीं है। पर महल पूरी आन-बान शान के साथ आज भी मौजूद है।
ईसा से 300 साल पहले इजिप्त में ग्रीक आए। अलेक्जेंडर ने आकर फैरों की सल्तनत खत्म कर दी। और बसाया एलेक्जेंड्रिया। एक नया राज्य। लुक्सर को बनाया अपनी राजधानी। गीजा से एलेक्जेंड्रिया 290 किमी दूर है। बस से यहां तक आने में हमें पूरे चार घंटे लगे। रास्तेभर केले,अंगूर,आम,खजूर,आलू,बेंगन और ब्रोकली के खेत मन को लुभाते रहे। भूमध्यसागर की बांहों में तैरता एलेक्जेंड्रिया ग्रीक शिल्प से बना खूबसूरत शहर है। समुद्रतल इतना ऊंचा है लगता है अभी अभी किनारों को तोड़करप समुद्र सारे शहर को अपनी जद में ले लेगा। सन 1414 मे एलेक्जेंडर ने यहां अपना किला बनवाया था। और समुद्र किनारे ही बनाए थे अपने लाइट हाउस। इस शहर की खासियत यह है कि यहां जब चाहे बारिश हो जाती है। इसलिए यहां की सड़कें हमेशा पानी में में डूबी रहती हैं। गीली तो हमेशा ही रहती हैं। यह शहर मछली के आकृति का है। इसलिए इसे राबूदा भी कहा जाता रहा है। राबूदा का अर्थ है-मछलीनुमा स्थान। इस शहर के भीतर होरीजेंटल और वर्टिकल गलियां हैं। जो शहर के जिस्म में नाड़ियों की तरह फैली हुई हैं। इस शहर में बना है एक मकबरा-कैटैकौब मकबरा। इस टूंब में 92 सीढ़ियां हैं। दिलचस्प बात ये कि इस मकबरे की खोज सन 1900 में एक बंदर ने की थी। होता क्या था कि वहां जो भी बंदर जाकर उछलता उसकी टांग जमीन में फंस जाती। लोगों को ताज्जुब हुआ। वहां खुदाई की गई और उसका नतीजा रहा ये मकबरा। इतना विशाल मकबरा जमीन के दामन में छिपा मिला। इस मकबरे में भी सौंकड़ों जारों का जखीरा मिला था। कहा जाता है कि ग्रीक लोग जार में ही खाना खाते थे और एक बार जिस जार में वो खाना खा लेते थे उसे दुबारा उपयोग में नहीं लाते थे। इसलिए इतने जार यहां इकट्ठा हो गए। ग्रीक लोग इस मकबरे में रहते भी थे। इन ग्रीक लोगों ने इस भूमिगत मकबरे की दीवारों में सुरंगें बना रखी थीं, जिसमें कि वे शव दफनाया करते थे। इस तरह यह एक किस्म का सामुदायिक मकबरा है। एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि ग्रीक और रोमन में कभी युद्ध नहीं हुए क्योंकि ग्रीकों ने इजिप्शियन भगवानों का कभी अपमान नहीं किया। उस वक्त इजिप्त में 300 भगवान थे। रोमनों ने जब यहां कब्जा किया तो उन्होंने इन भगवानों को अस्वीकृत कर दिया और क्रिश्चियन धर्म का प्रचार करने लगे। इस कारण लोगों में असंतोष व्याप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप यहां इस्लाम धर्म अस्तित्त्व में आ गया। जो अभी तक है। वैसे रोमन राज्य की निशानी के बतौर यहां आज भी विशाल रोमन थिएटर मौजूद है। इस प्रेक्षाग्रह में एक साथ पांच हजार दर्शक बैठ सकते थे। और खासियत यह कि ईको सिस्सटम ऐसा कि बिना माइक के सारे लोग भाषण सुन सकें। आगे चलकर एक और स्मारक है-मौंबनी स्तंभ। अब वक्त बदलता है। जिसकी ताकीद करती है-मुहम्मद फरीद की प्रतिमा। इस बहादुर आदमी ने तुर्क और रोमनों से इजिप्त को आजाद कराया था। थोड़ा और आगे चलकर है- सम्राट इब्राहिम की मूर्ति। जो इजिप्तवासियों के शौर्य का प्रतीक हैं। दिल्ली के इंडिया गेट की ही तरह यहां भी इजराय़ल-इजिप्त युद्ध के दौरान शहीद सैनिकों की स्मृति में एक स्मारक बना हुआ है। नालंदा और तक्षशिला की टक्कर पर यहां भी है -एलक्जैंड्रिया लाइब्रेरी। जहां रखीं हैं लाखों दुर्लभ पुस्तकें। आगे है रेड सी। इस लाल सागर और भूमध्यसागर को जोड़ने का बीड़ा उठाया था-फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट नें। जो बाद में स्वेज नहर के रूप में आज भी हमारे सामने है। एलेक्जेंड्रिया में ट्रामें भी चलती हैं। एक उल्लेखनीय बात और…पूरे इजिप्ट में ट्रैफिक भारत से उलट दांयीं और चलता है।
हमारी संस्कृति में भोजपत्र बहुत महत्वपूर्ण है। इजिप्ट में वैसे ही महत्वपूर्ण है- पपाइरस। इसमें सुंदर कलात्मक कृतियां उकेरकर यहां पर्यटकों को रिझाया जाता है। पपाइरस केले के तने-जैसा रेशेदार-गूदेदार स्तंभ होता है। जिसमेंकि पिरामनिड की आकृति कुदरतन बनी होती है। इसलिए इजिप्शयन इसे भोजपत्र की तरह पवित्र मानते हैं। ये इसके रेशों को पीट-पीटकर कमरे की दीवार तक बड़ा कर लेते हैं और उस पर कलाकृतियां बनाते हैं। कुछ कलाकृतियां मैं भी खरीद कर लाया हूं। तन्नूरा और वेली नृत्य पर थिरकता इजिप्ट सूती कपड़ों और मलमल के लिए मशहूर है। खलीली स्ट्रीट और मुबेको मॉल यहां खरीदारी के मशहूर ठिकानें हैं। भारत की हिंदी फिल्में यहां खूब लगाव से देखी जाती हैं। इसलिए यहां के व्यापारी भारतीयों को देखकर..इंडिया…इंडिया.. अमिताभ बच्चन…शाहरुख खान और करिश्माकपूर के जुमले उछालने लगते हैं। इजिप्त में भारत के राजदूत के. स्वामीनाथन ने हमें अपनी मुलाकात में बताया कि यहां 4000 हिंदुस्तानी वैद्य रूप से रह रहे हैं। और भारत का यहां की अर्थव्यवस्था में 2.5 मिलियन डॉलर का निवेश है। पेट्रोकेमिकल,,डाबर, एशिया पेंट्स, और आदित्य बिड़ला ग्रुप ने यहां के बाजार पर अपने दस्तखत कर दिये हैं। भारतीय भोजनों से लैस यहां तमाम शाकाहारी होटलें भी हैं। शाकाहारी खाने को यहां जैन-मील्स कहा जाता है। इजिप्ट मे बिना प्याज-लहसुन के भी शाकाहारी भोजन मिल सकता है यह विचित्र किंतु सत्य किस्म की एक सुखद हकीकत है। इन सारे अदभुत अनुभवों को दिल में समेटे जब भी कोई भारतीय इजिप्ट से भारत लौटता है तो उसकी यादों की किताब में एक पन्ने का इजाफा और हो जाता है जिस पर लिखा होता है-इजिप्ट। पिरामिडों की तरह स्थाई यादों का प्रतीक- इजिप्ट।
10, 11, 12 फरवरी को होने वाले माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ की तैयारियाँ जोर पकड़ चुकी हैं। कुंभ स्थल पर मीडिया सेंटर भी कायम किया गया है। मीडिया कव्हरेज के लिए संचार की जरूरी सुविधाएं इस सेंटर पर जुटाई जा रही है। माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ समिति ने कुंभ स्थल में एक उपयुक्त स्थान पर मीडिया सेंटर भी स्तापित किया है। इसके लिए पर्याप्त आकार का एक पृथक कक्ष बनाया गया है। मीडिया सेंटर पर सूचना संप्रेषण संचार की वाजिब और जरूरी सहूलियतें जुटाई जा रही है।
कुम्भ मेले के कवरेज हेतु आने वाले पत्रकारों को समाचार प्रेषण में कोई असुविधा ना हो इसके लिए माँ नर्मदा सामाजिक कुम्भ समिति ने मेले में स्थापित मीडिया सेंन्टर को आधुनिक उपकरण से सुसज्जीत करने के साथ ही यहॉ पर सभी आवश्यक व्यवस्थाऐं सुनिश्चित की है।
पहली बार कुम्भ मेला में मीडियाकर्मियों के लिये बड़े पैमाने पर व्यवस्थाएं की जा रही हैं। मंडला के कुम्भ स्थल के निकट 24 घंटे खुला मीडिया सेंटर बनाया गया है, जहाँ मुफ्त उपलब्ध ब्रॉडबैंड इन्टरनेट कनेक्शन, फैक्स, कलर तथा ब्लैक एंड व्हाइट फोटोस्टेट मशीनें और स्कैनर्स, अति आधुनिक रिकार्डिंग, नॉन लीनियर एडिटिंग और सैटलाइट अपलिंकिंग की सुविधायुक्त स्टूडियो, वाहनों की मुफ्त पार्किंग, पत्रकारों हेतु मुफ्त रिहाइश तथा अत्यंत किफायती दामों पर नाश्ता, भोजन, चाय, काफी तथा पेय पदार्थ की व्यवस्था की गई है।
आगामी 10, 11 एवं 12 फरवरी 2011 को मध्यप्रदेश का पहला महाकुंभ पतित पावनी मॉ नर्मदा के पावन तट पर मंडला में होने जा रहा है। माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ की कल्पना राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता को बल प्रदान करेगी। अनेक उददेश्यों से सामाजिक महाकुंभ के लिये मॉ रेवा के तट पर बसा मंडला चिन्हित किया गया है। मंडला जिले का अपना धार्मिक महत्व तो हैं ही इसका ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं हैं।
प्रकृति से गहरा लगाव रखने वाली इस क्षेत्र की बहुल्यता वाली जनजातियां विकास के वह आयाम तय नहीं कर पाई है, जो किया जाना चाहिए था। इन्हें विकास की मुख्य धारा से जोडने के लिये भी यह सामाजिक कुंभ सहायक सिद्ध होगा। अब तक भोले-भाले आदिवासी समाज को दिग्भ्रमित कर,उनकी भावनाओं का शोषण किया जाता रहा है। जिस पर अंकुश लगाने के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा अभियान चलाया जा रहा है।
वर्ष 2011 के फरवरी माह की 10, 11 और 12 तारीख को आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में तीस लाख से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है जो प्रदेश सहित देश-विदेश के विभिन्न कोनों से धर्म नगरी मंडला में आकर मॉ नर्मदा का दर्शन लाभ ले पुण्य सलिला मॉ नर्मदा में स्नान कर महाकुंभ में शामिल होकर पुण्य लाभ अर्जित करेंगे। महाकुंभ में आने वाली श्रद्धालुओं की विशाल संख्या को व्यवस्था प्रदान करने के लिये मां नर्मदा सामाजिक कुंभ की आयोजन समिति हर बिन्दु पर विचार कर व्यवस्थायें जुटाने में लगी हुई है। पिछले समय में गुजरात प्रांत में सम्पन्न हुआ सबरी महाकुंभ बेहतर परिणामकारी रहा है और उसी की प्रेरणा से मध्यप्रदेश में मां नर्मदा के तट पर बसे मंडला जिले में भी सामाजिक कुंभ का आयोजन हो रहा है।
धार्मिक महत्व
पुण्य सलिला मां नर्मदा के पावन तट पर स्थित मंडला धार्मिक महत्व वाली नगरी है। मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से कुछ ही दूरी पर स्थित और जबलपुर संभाग से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर यह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाली नगरी मंडला आदि शंकराचार्य के गुरू गौद्पादाचार्य की तपोभूमि कहलाती है। यहीं पर मंडन मिश्र जैसे विद्वान रहते थे। मंडला उनकी जन्म भूमि और कर्म भूमि रही है। आदि शंकराचार्य ने इसी स्थान पर मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ किया था। नर्मदा का महत्व गंगा से कम नहीं है, यहां तक की गंगा दशहरा के दिन मान्यता है कि गंगा नर्मदा मे डुबकी लगाने आती है। नर्मदा का जल औषधीय गुणों से भरपूर माना गया है। अन्य पवित्र नदियों में स्नान का महत्व बताया गया है, जबकि नर्मदा के दर्शन और स्मरण मात्र से पापों का क्षय होने की बात धार्मिक ग्रंथ कहते है।
मंडला का ऐतिहासिक महत्व
गौंडवाना की महारानी दुर्गावती, शहीद शंकर शाह, रघुनाथ शाह की वीरता वाली मंडला की भूमि स्वतंत्रता को अक्षुण बनाये रखने के लिये अपनी कुर्बानियों के लिये जाना जाता है। यहां मुगल बादशाहो ने आदिवासियों के रण कौशल के समक्ष हमेशा घुटने टेके हैं। स्वतंत्रता की मशाल हमेशा जागृत रखने वाला यह क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना लोहा मनवाते रहा है। इतिहास में इस क्षेत्र का अपना अलग ही महत्व है। वीरता के साथ ही इस क्षेत्र की जनता सीधी-सादी, भोली-भाली रही है। जिसे लड़कर जीतना असान नहीं था उसे छल कपट पूर्वक सेवा के नाम पर गुमराह किया जाता रहा है। इस क्षेत्र मे धर्मान्तरण कर उन्हें गुमराह किया गया। और उन्हे राष्ट्र की मुख्य धारा से काटने का कुचक्र किया गया। आजादी के पूर्व भी ऐसे कुचक्रों के विरोध में आवाज उठती रही है।
मंडला में सामाजिक कुभ आयोजित करने का यह भी एक कारण है इस क्षेत्र में ईसाई मिशनरियां बडे पैमाने पर कार्य कर रही है। धर्मान्तरण के अतिरिक्त आदिवासी समाज के साथ घिनौना षड्यंत्र भी हो रहा है। आज हजारों की संख्या में आदिवासी अंचलो से युवतियां गायब हुई है, जिनकी कोई खोज खबर भी नहीं है। पिछले वर्षो मे इस प्रकार की घटनाऐं अखबारों की सुर्खिया भी बनी थी। आदिवासी समाज को देश की विभिन्न संस्कृतियों से परिचित कराना और देश के अनेक हिस्सों को इस क्षेत्र के इतिहास, धार्मिक महत्व एवं प्रकृति के लगाव के साथ जीवन यापन करने वाली भोली-भाली जनता को उनकी संस्कृति से परिचय कराने का भी मां नर्मदा सामाजिक कुं भ मण्डला का आयोजन एक उद्देश माना जा रहा है।
मध्य प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत उजाड़ और बीहड़ वनक्षेत्रों की बंजर भूमि पर वैकल्पिक ऊर्जा ईंधन या बायो फ्यूल उत्पादन के लिए जेट्रोफा की खेती करने का काम बड़ी जोर शोर के साथ शुरू किया गया था लेकिन अधिकारियों की करतुतों के कारण जेट्रोफा तो नहीं उग पाया,बल्कि उसकी जगह भ्रष्टाचार जरूर उगा और बड़ी तेजी से पनप भी। मनरेगा की गोद में पैदा हुआ भ्रष्टाचार का पौधा अब बट वृक्ष हो गया है और इसमें आधा दर्जन से अधिक आईएएस अधिकारियों को अपनी चपेट में ले लिया है।
राजीव गांधी गलत थे जो उन्होंने यह कहा कि विकास के लिए ऊपर से जो पैसा आता है उसका 10 पैसा ही नीचे पहुंचता है. मप्र के अधिकारी यह साबित कर रहे हैं कि रूपये में दस पैसा नहीं बल्कि 25 पैसा नीचे पहुंचता है. आज राजीव गांधी जिन्दा होते और अपनी ही पार्टी की महत्वाकांक्षी परियोजना नरेगा के तहत पैसे की बंदरबाद देखते तो निश्चित रूप से वे अपना जुमला ठीक करते. लेकिन रूकिये, एक दिक्कत है. यह जो 25 पैसा नीचे तक जा रहा है वह तथाकथित विकास का पैसा नहीं है. यह सीधे तौर पर ग्रामीण लोगों के आर्थिक उत्थान के लिए खोजा गया जादुई फार्मूले का पैसा है. यह उस महान विचार से निकला पैसा है जो कहता है कि ग्रामीण इलाकों में अगर रोजगार हो तो शहर की ओर पलायन कम होगा और ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत किया जा सकेगा. लेकिन जब इस महान विचार पर अमल की बारी आयी तो सूखे के दिनों में मप्र में सड़कें खुदवाने का काम सबसे ज्यादा किया गया. अपनी ही खेत में विकास का हल चलाने के लिए भी पैसा दिया गया. कागज पूरा किया गया. बही-खाते बनाये गये और जितना पैसा लोगों को बांटा गया उसका तीन गुना अपने पास रख अधिकारियों ने अपना विकास सुनिश्चित कर लिया.
वैसे देखा जाए तो महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना जब से मप्र में लागू हुई है उसमें भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार हुआ है,लेकिन सबसे अनोखा भ्रष्टाचार हुआ सीधी में। सीधी जिले में तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह और सीईओ चंद्रशेखर बोरकर ने वहां लगाए गए जैट्रोफा के पौधों को तेजी से बढ़ाने के नाम पर ढाई करोड़ के इंजेक्शन लगवा दिए। जब इस मामले की जांच कराई गई तो पूरी योजना केवल कागजों पर ही मिली। इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह और सीईओ चंद्रशेखर बोरकर को दोषी बनाया गया है। इनके अलावा मनरेगा में भिंड के कलेक्टर एस.एस. अली, भिंड के सीईओ आर.पी. भारती, टीकमगढ़ के कलेक्टर के.पी. राही व एम.सी. वर्मा, छतरपुर के सीईओ एस.सी. शर्मा, (सभी तत्कालीन) ने करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया है। इन अफसरों के भ्रष्टाचार और गड़बडिय़ों की शिकायत पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग (मप्र रोजगार गारंटी परिषद) तक पहुंची। यहां तक कि विधानसभा में भी इन अफसरों की गड़बडिय़ों को लेकर सवाल उठाए गए और ध्यानाकर्षण लगा। जनप्रतिनिधियों ने इन अफसरों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की, लेकिन इतनी उठापटक के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उल्लेखनीय है 2005 में जब केन्द्र सरकार की बहुप्रतीक्षित मनरेगा योजना मध्यप्रदेश में लागू हुई तब से ही इस दुधारू याजना का दोहन करने के लिए अधिकारी अपनी पसंद की जगह पाने में जुट गए। शरूआत हुई पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव वसीम अख्तर से। इसके पीछे जो कहानी उभरकर सामने आई है उसके अनुसार श्री अख्तर जब ग्वालियर में कलेक्टर थे उस दौरान उनकी और भाजपा के नेता नरेन्द्र सिंह तोमर की दोस्ती हो गई। समय के बदलाव के साथ मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और नरेन्द्र सिंह तोमर को ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। मंत्री बनते ही केन्द्र से आई नरेगा योजना की कमान वसीम अख्तर को दिलाने के लिए श्री तोमर ने सरकार से पहल की और श्री अख्तर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव बना दिए गए। बताते है इसके पीछे शिवराज सिंह चौहान की भी सहमति थी क्योंकि विदिशा में कलेक्टरी के दौरान से ही दोनों के अच्छे संबंध है और इसका लाभ उन्हें मिला भी। उनके कार्यकाल के दौरान सीधी में लगभग सौ करोड़ के भ्रष्टाचार का मामला भी प्रकाश में आया था जिसकी जांच 2007-08 में 8 सहायक इंजीनियरों और 32 अन्य इंजीनियरों ने की थी जहां प्लांटेशन, सड़क निर्माण आदि में व्यापक भ्रष्टाचार बताया गया था बावजूद इसके मामला दबा हुआ है।
मनरेगा में भ्रष्टाचार की कहानी शुरू होती है सीधी जिले से। सीधी जिले में वर्ष 2005-06, 2006-07 और 2007-08 में राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में भारी भ्रष्टाचार हुआ था। वर्ष 2006-07 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत सीधी जिले में ग्राम पंचायतों के माध्यम से 255.87 करोड़ की लागत के 32 हजार 299 कार्य संपादित कराए गए थे। लेकिन जिला सीधी में 155 कार्य बिना प्रशासकीय एवं तकनीकी स्वीकृति के शुरू करा दिए गए। वहीं 38.48 लाख के 41 कार्य ऐसे हो गए, जो कार्यस्थल के निरीक्षण के बाद सत्यापित नहीं हो सके। ऐसे कई और काम कराए गए, जिनमें बाद में वसूली योग्य राशि की जानकारी सामने आई। उसी दौरान सुखबीर सिंह के खिलाफ जिले में जेट्रोफा पौधरोपण का कार्य अवैध कंपनियों से कराने का आरोप है। इस पर जांच भी की गई और अभी उनका प्रकरण चल रहा है। सिंह ने जेट्रोफा बीज की सप्लाई, पौधों की खाद, कीटनाशक दवाओं और ग्रोथ हार्मोन्स के छिड़काव का काम एकमात्र फर्म ओम सांई बायोटेक, रीवा से कराया और भुगतान स्व-सहायता समूहों से करवाया। जबकि कंपनी के पास न तो टिन नं. है और न ही रासायनिक दवा बेचने का पंजीयन। जानकारी के अनुसार तत्कालीन सीधी कलेक्टर सुखवीर सिंह और मुख्य कार्यपालन अधिकारी चंद्रशेखर बोरकर ने ज्योट्रफा वनस्पति जिससे की बायोडीजल उत्पादन के लिए पूरे विश्व में शोध कार्य चल रहा था। इन दो अधिकारियों ने स्वयं निर्णय लेकर इनको कतिपय हार्मोंस के नाम से उत्पादन बढ़ाने हेतु इंजेक्शन आदि डलवाने की व्यवस्था कराई। जिसमें लगभग 18 से 20 करोड़ का व्यय दर्शाया। जांच के बाद पता चला कि उक्त राशि मजदूरों की मजदूरी थी जिसे नरेगा के तहत काम करने पर उन्हें मिलता। इस पर एक जांच समिति गठित की गई थी, जिसकी जांच रिपोर्ट भी शासन को सौंपी जा चुकी है। यह जांच रिपोर्ट सामान्य प्रशासन विभाग के पास है।
सामान्य प्रशासन विभाग इन अफसरों के बचाव के लिए यह तर्क दे रहा है कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने उन्हें इन कलेक्टरों व सीईओ की गड़बडिय़ों को लेकर कोई जानकारी नहीं दी है। जीएडी का कहना है कि उन्हें सीधी के तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह और तत्कालीन सीईओ चंद्रशेखर बोरकर के संबंध में ही जानकारी मिली है इसीलिए हमने इन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। जीएडी का यह भी तर्क है कि हमने इन दोनों अफसरों पर कार्रवाई के लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को प्राप्त सबूतों को एक तय प्रोफार्मा में मांगा है, लेकिन विभाग उपलब्ध ही नहीं करवा रहा है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग (रोजगार गारंटी योजना परिषद) का कहना है कि इन तमाम अधिकारियों के खिलाफ प्राप्त शिकायतों, जांचों और प्राप्त सबूत जीएडी को उपलब्ध करवा दिए हैं। जिन पर कार्रवाई करना जीएडी का काम है। इन अफसरों के संबंध में रोजगार गारंटी योजना परिषद स्तर पर किसी तरह की कार्रवाई लंबित नहीं है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को सीधी के तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह और तत्कालीन सीईओ चंद्रशेखर बोरकर के संबंध में जीएडी से बार-बार चि_ियां मिल रही हैं, लेकिन उनका जवाब अब तक नहीं दिया गया है।
एस.एस. अली पर भिंड जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में नियम विरुद्ध क्रय संबंधित गड़बड़ी के आरोप हैं। इसकी जांच के लिए 24 जुलाई 2009 को जांच दल गठित किया गया था। जांच के दौरान प्रथम दृष्टया पाया गया कि वित्तीय अनियमितताएं हुई हैं। प्रशासकीय अनुमोदन के बाद अली के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव/ आरोप पत्र सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव को भेजा गया। अब यहां पर आगे की कार्रवाई अटकी हुई है। के.पी. राही पर भी टीकमगढ़ जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में नियम विरुद्ध क्रय संबंधित गड़बड़ी के आरोप हैं। इसलिए उनके खिलाफ विभाग ने 6 नवंबर 2009 को अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव प्रशासकीय अनुमोदन पश्चात सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा था, जहां सिर्फ खानापूर्ति की गई। इसके बावजूद अब तक न तो इस बारे में कोई कार्रवाई होती दिख रही है और न ही किसी भी तरह की हलचल। हर कोई इसे दबाने में जुटा है।
सूत्रों के अनुसार पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा कराई गई जांच में टीकमगढ़ में नरेगा के तहत आई राशि में से करीब 40 लाख रुपए तथा भिंड में करीब 30 लाख रुपए की खरीदी की बात सामने आई है। कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ ने अपने स्तर पर स्थानीय जरूरतों के आधार पर दरियों सहित अन्य सामान की खरीदी मनमाने दामों कर ली। जिला प्रशासन की जिम्मेदारी मॉनीटरिंग की है लेकिन इसके विपरीत दोनों जिलों में कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ की मंजूरी से खरीदी कर ली गई।
यही नहीं अधिकारियों की मिली भगत का ही परीणाम है औद्योगिक उपक्रमों ने भी सरकार को चूना लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। प्रदेश में वैकल्पिक ऊर्जा ईंधन या बायो फ्यूल उत्पादन के लिए उजाड़ और बीहड़ वनक्षेत्रों में रतनजोत (जेट्रोफा) की खेती करने के लिए कई औद्योगिक उपक्रमों ने राज्य सरकार से बड़े-बड़े वायदे किए थे और राज्य सरकार ने उन पर भरोसा भी कर लिया था, लेकिन किसी भी उपक्रम ने रतनजोत का एक पौधा भी लगाने का काम नहीं किया है. मध्य प्रदेश सरकार ने बायो डीजल उत्पादन की महत्वाकांक्षी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए आठ बड़ी औद्योगिक कंपनियों से लगभग 40000 करोड़ रुपयों के मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेडिंग अर्थात सहमति पत्र प्राप्त किए थे. सरकार ने इन कंपनियों को राज्य के वनक्षेत्रों में खाली पड़ी भूमि और उजाड़ वनक्षेत्र जेट्रोफा की खेती के लिए रियायती दर पर आवंटित भी कर दी थी. लगभग आठ हजार हेक्टेयर से ज़्यादा वनभूमि इन कपंनियों को इसलिए दी गई थी, ताकि वे अपने वायदे के अनुसार रतनजोत (जेट्रोफा) की खेती कर सकें और उसका उपयोग बायो डीजल बनाने में करें, लेकिन वनभूमि लेने के बाद किसी ने भी उस पर न तो खेती शुरू की है और न ही बायो डीजल उत्पादन के लिए प्लांट लगाने के लिए कोई तैयारी शुरू की है. इससे लगता है कि राज्य में पूंजी निवेश और औद्योगिक विकास के राज्य सरकार के सभी प्रयास केवल कागज़़ी कार्यवाही तक सिमटकर रह गए हैं.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) प्रदेश के सात दागी आईएएस व डिप्टी कलेक्टर रैंक के अफसरों को बचाने में जुटा है। राज्य शासन के इस रवैए से नाराज होकर मनरेगा की शिकायत दिल्ली में केंद्र सरकार के समक्ष की है। 50 पेज की इस रिपोर्ट में मनरेगा हुए भ्रष्टाचार को लेकर शिकायत की गई है। प्रदेश के सात जिलों में गरीब जनता के रोजगार के लिए आए करोड़ो रुपयों को मनमाने तरीके से लुटाने वाले 7 अफसर शान से घूम रहे हैं। महीनों पहले इनके भ्रष्टाचार की शिकायत को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और मप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद ने भी सही पाया। दोनों ने सबूतों के साथ मामला सामान्य प्रशासन विभाग को कार्रवाई के लिए सौंपा लेकिन वह एड़ी-चोटी का जोर लगाकर इसे दबाने में लगा हुआ है। इसके लिए उसने कार्यवाही का लिखने वाले विभागों को इतने पत्र लिखे कि मामला पेचीदा हो गया। इधर दोनों विभागों में भी अफसर आते जाते रहे और इन्होंने भी कार्यवाही के लिए ठोस जवाब नहीं दिए। अब मामला दबाने के लिए जीएडी के अफसर राज्य सूचना आयोग से भी टकराव के लिए तैयार है।
सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग अलका उपाध्याय को भ्रष्ट कलेक्टरों और सीईओ (आईएएस) पर कार्रवाई करना है, लेकिन चूंकि ये खुद भी आईएएस हंै, इसलिए इन पर कार्रवाई करने के बजाय इन्हें बचाने में लगी हुई हैं। मप्र राज्य सूचना आयोग को भी इन्होंने बार-बार झूठी जानकारी दी और गुमराह किया। जब सूचना आयोग ने इन्हें कड़े शब्दों में जानकारी देने के लिए लिखा तो इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर करने के संबंध में सूचना आयोग को पत्र लिख दिया। इस पर सूचना आयोग ने एक बार फिर कड़े शब्दों में पत्र लिखा कि चूंकि आयोग खुद एक सिविल कोर्ट है, अत: इसके निर्णय को कहीं चुनौती नहीं दी जा सकती। आयोग के इस पत्र से जीएडी के पैर तले जमीन खिसक गई। लेकिन इस बार फिर एक पत्र लिखा गया है, जिसके अनुसार जीएडी, हाईकोर्ट में सूचना आयोग के निर्णय को चुनौती देने के लिए जनहित याचिका दायर करने जा रहा है। इसके लिए एक कमेटी भी गठित कर दी गई है। विभाग के प्रमुख सचिव व विकास आयुक्त आर. परशुराम, सचिव अजय तिर्की और मप्र राज्य रोजगार गारंटी परिषद के सीईओ शिव शेखर शुक्ला, सभी आईएएस हैं। इन्हें जीएडी की सचिव अलका उपाध्याय और अन्य अफसरों ने सीधी के तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह और सीईओ चंद्रशेखर बोरकर के बारे में तय प्रोफार्मा में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए करीब 15 चि_ियां लिखीं, लेकिन आर. परशुराम, अजय तिर्की व रोजगार गारंटी के सीईओ ने इनके जवाब देने तक की भी जेहमत नहीं उठाई। जीएडी के पत्राचार से परेशान होकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अजय तिर्की को रोजगार गारंटी परिषद को अर्ध -शासकीय पत्र लिखना पड़ा। अजय तिर्की के अर्धशासकीय पत्र का भी जवाब नहीं मिला है। यानी जीएडी, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और रोजगार गारंटी परिषद सभी की मिलीभगत से गरीब और बेसहारा जनता के नाम पर केंद्र से आवंटित करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
उल्लेखनीय है कि भोपाल में आईएएस दंपत्ति के यहां पड़े छापे के बाद लोकायुक्त सक्रिय हो गया है. उसकी सक्रियता का असर यह है कि एक बार फिर प्रदेश के तमाम आईएएस के भ्रष्टाचार की फाइलों के पन्ने पलटे जाने लगे हैं. इन फाइलों में सतना कलेक्टर सुखबीर सिंह सहित तीस आईएएस अफसरों पर जांच की कार्यवाही अब तेज होगी. पता तो यह भी चला है कि सतना कलेक्टर कि फाइल पर चर्चा होनी है. जिन आईएएस अफसरों पर लोकायुक्त की जांच चल रही है उन अफसरों पर बेईमानी, सरकार को धोखा देने जैसे इल्जाम हैं। इनमें से अधिकांश अफसर तो मंत्रियों की पसंद के हैं। लोकायुक्त जांच के दायरे में आबकारी आयुक्त अरुण कुमार पांडे, प्रभात पाराशर आयुक्त जबलपुर, मनीष श्रीवास्तव कलेक्टर सागर, लोक निर्माण विभाग के सचिव मोहम्मद सुलेमान हैं तो विवेक अग्रवाल और एसके मिश्रा, जो कि मुख्यमंत्री के सचिवालय में कार्यरत हैं, भी जांच के घेरे में हैं।
रोजगार गारंटी योजना में सीधी के कलेक्टर रहे सुखवीर सिंह, संजय गोयल, डिंडोरी कलेक्टर चंद्रशेखर बोरकर, छिंदवाड़ा कलेक्टर, निकुंज श्रीवास्तव, भिंड कलेक्टर विवेक पोरवाल सहित अन्य जांच के घेरे में हैं। मनीष श्रीवास्तव, जिलाध्यक्ष जिला शिवपुरी पर त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक परीक्षा के प्रश्न-पत्र की छपाई में घोटाले का आरोप है। अरुण कुमार पांडे पर अधिकारियों की मिलीभगत से दो करोड़ रुपए का ठेकेदार को लाभ देने का आरोप है।
फिलहाल तो मप्र सरकार और दूसरे संकटों में उलझी हुई है इसलिए उससे यह उम्मीद करना कि वह नरेगा जैसे छोटे-मोटे मामले में कोई खास रूचि लेगी, ठीक नहीं लगता. यह बहस किनारे रख दें कि नरेगा से जिस गांव के इन्फ्रास्ट्रकर को विकसित करने की बात की जा रही है उसे उसकी जरूरत है भी या नहीं. हम मान लेते हैं कि नरेगा गांव में नयी बयार लेकर पहुंचा है. लेकिन इस बयार में क्या कुछ गुल खिल रहे हैं इसे तो जानना ही चाहिए।
कभी दिन ढलते ही तबलों की थाप और घुंघरुओं की खनक से गूंजने वाला इलाके आज शांत पड़े हैं। अब यहां के कोठों पर तहज़ीब और कला के क़द्रदान नहीं, बल्कि शरीर पर नजऱ रखने वाले ही अधिक आते हैं। आज़ादी मिलने के पहले और उसके बाद के कुछ वर्षों तक सराय में नृत्य एवं संगीत की स्वस्थ परंपरा जीवित थी और क़द्रदान भी बरकऱार थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस जगह का नाम देह व्यापार के अड्डों में शामिल हो गया। अब इन स्थलों पर साज नहीं सजते बल्कि जिस्म का बाजार सजता है।
भराग रागिनी की थीम पर थिरकने वाली नर्तकियां अब रोजी-रोटी के लिये तरस रही हैं। पारंपरिक नृत्यों के न तो कद्रदान रहे और न हीं पुराने ठुमकों पर रिझाने वाले लोग। नतीजन समय के साथ-साथ अब इन नर्तकियों का नृत्य डीजे और डिस्को में बदल गया है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। मजबूरन इन्हें देह व्यापार का सहारा लेकर जीना पड़ रहा है। अपनी विकल्पहीन दुनिया में परंपराओं को तोडऩे का तरीका नर्तकियां नहीं ढूंढ पा रही है। इनके बच्चे पहचान के संकट में फंसे हैं। बच्चों को पहचान छिपाकर पढाई करनी पड़ती है। मुजफ्फरपुर के चर्तुभुज स्थान के अलावे सीतामढी, सहरसा, पूर्णिया समेत राज्य के 25 रेडलाईट एरिया की तस्वीर तकरीबन एक जैसी ही है। यहां लगभग 2 लाख से ज्यादा महिलायें जिस्मफरोसी के धंधे से उबर नहीं पा रही हैं। सिर्फ मुजफ्फरपुर में इनकी संख्या 5 हजार से ज्यादा है। यहां जिस्मफरोसी का बेहतर अड्डा माना जाता है। गया के बीचो-बीच बसे सराय मुहल्ले की पहचान अब धूमिल पड़ गई है।
यहां की गलियों में कभी फिटिन पर सवार रईसों, नवाबों और राजा-रजवाड़ों की लाइन लगी रहती थी, लेकिन अब न वे रईस हैं, न रक्क़ासा और न ही कहीं वह पुरानी रौनक ही दिखाई देती है। नज़्म और नज़ाकत के क़द्रदान भी अब कहीं नजऱ नहीं आते। समय बदला तो सूरत बदली और फिर सोच भी बदल गई। आज सराय को शहर की बदनाम बस्ती के तौर पर जाना जाता है। तवायफ़ों की जगह वेश्याओं ने ले ली है। आज जिस्मफ़रोशी का धंधा यहां खुलेआम चलता है। नए-पुराने मकान और उन मकानों की बालकनी एवं झरोखों से वे हर आने-जाने वालों की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखती हैं। हर शख्स उन्हें अपने जिस्म का खरीदार लगता है, जिससे चंद पैसे मिलने की उम्मीद जगती है। इस उम्मीद में वे मुस्कराती हैं, लोगों को रिझाती हैं। संभव है, उनकी मुस्कान से लोग रीझ भी जाते हों, लेकिन, जब आप उनके चेहरे के पीछे छिपे दर्द को जानेंगे तो आपके क़दमों तले ज़मीन सरकती सी महसूस होगी।
गया के इस सराय मुहल्ले का अपना एक इतिहास और गौरवशाली अतीत है। बताया जाता है कि वर्ष 1587 से 1594 के बीच राजा मान सिंह ने इस इलाक़े की बुनियाद डाली थी और अपने सिपहसालारों के मनोरंजन के लिए यहां तवायफ़ों को बसाया था। कभी यहां नृत्य, गीत और संगीत की शानदार महफ़िलें सजा करती थीं। तब सराय की गिनती शहर के खास मोहल्लों में की जाती थी। सुर और सौंदर्य की सरिता में सराबोर होने शौक़ीन रईसजादे यहां अपनी शामें बिताने आया करते थे। सूरज ढलते ही यहां की फिज़ां में बेला और गुलाब की खुशबू तैरने लगती थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ यहां की रौनक अतीत की गर्द में दफन हो गई। सराय आज देह की मंडी में बदल गया है। कभी रईस घरानों के लड़के यहां के कोठों पर तहज़ीब और अदब सीखने आते थे। लेकिन, अब यहां सिर्फ और सिर्फ हवस मिटाने वालों की ही भीड़ उमड़ती है। यह वही सराय मोहल्ला है, जहां प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, छप्पन छुरी एवं सिद्धेश्वरी बाई जैसी उम्दा कलाकारों की महफ़िलें सजा करती थीं। इसी शहर में जद्दन बाई ने नरगिस को जन्म दिया था। कला के प्रति जब यहां उपेक्षा का भाव देखने को मिला तो वह मुंबई चली गईं। अस्सी वर्षीय सिद्धेश्वरी बाई कहती हैं कि अब यहां के कोठों पर तहज़ीब और कला के क़द्रदान नहीं, बल्कि शरीर पर नजऱ रखने वाले ही अधिक आते हैं। आज़ादी मिलने के पहले और उसके बाद के कुछ वर्षों तक सराय में नृत्य एवं संगीत की स्वस्थ परंपरा जीवित थी और क़द्रदान भी बरकऱार थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस जगह का नाम देह व्यापार के अड्डों में शामिल हो गया।
हालांकि सराय की कई तवायफ़ों ने शादी-विवाह एवं अन्य अवसरों के माध्यम से अपनी पुरानी परंपरा क़ायम रखने की भरसक कोशिश की, लेकिन रईसों, नवाबों, ज़मींदारों और बाहुबलियों ने उन्हें रखैल बनने पर मजबूर कर दिया। बीसवीं सदी के आते-आते नक्सलियों के फरमान के कारण शादी-विवाह और बारात में जाने की परंपरा भी खत्म हो गई। ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद रोज़ी-रोटी की चिंता ने तवायफ़ों को मध्यमवर्गीय समाज के बीच लाकर खड़ा कर दिया। नाच-गाने की आड़ में वे देह व्यापार के धंधे में लिप्त हो गईं। गया के रेड लाइट एरिया में आज दो-ढाई सौ लड़कियां-औरतें देह व्यापार के धंधे में मन-बेमन से शामिल हैं। यह बात स्थानीय पुलिस खुद स्वीकार करती है। देह व्यापार के धंधे में पुलिस की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बस्ती कोतवाली थाना से महज़ कुछ ही दूरी पर स्थित है। गया में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट भी सक्रिय है, लेकिन इस धंधे से लड़कियों को निकालने और उन्हें पुनर्वासित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। पिछले पांच सालों के दौरान यहां कई बार छापामारी की गई, जिनमें कई लड़कियां पकड़ी गईं, लेकिन वे पुलिस को चकमा देकर फरार हो गईं। जानकार बताते हैं कि एक संगठित गिरोह बेबस और गरीब परिवारों की महिलाओं एवं लड़कियों को बहला-फुसलाकर यहां लाता है और उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर करता है। यहां बंगाल, नेपाल और सीमावर्ती क्षेत्रों से भगा कर लाई गई लड़कियों की संख्या ज़्यादा है। कई बार तो देह व्यापार में लिप्त महिलाएं और लड़कियां पकड़े जाने के बाद खुद सवाल करने लगती हैं कि सभ्य समाज में उन्हें आ़खिर कौन स्वीकार करेगा?
समाज की मुख्यधारा से इन्हें जोडऩे की कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी है। इस धंधे में लिप्त महिलाओं का कहना है कि पहले के जमाने में तवायफों के नृत्य पर लोग हजारों लुटा देते थे, पर अब लोग केवल जिस्म की बात कहते हैं। इनका कहना है कि शरीर देखने वालों की संख्या ज्यादा है। मजबूरी को समझने वाला कोई नहीं। सूबे के रेडलाईट एरिया की तस्वीर और तकदीर बदलने के प्रयास में लगी एक स्वयंसेवी संस्था बामाशक्ति वाहिनी की संचालिका मधु का कहना है कि तवायफों को अगर रोजगार मिल जाये तो इनकी तस्वीर बदल जायेगी। राज्य के नेताओं की निष्क्रियता के कारण रेडलाईट एरिया के विकास के लिये बनी करोड़ो रुपये की योजना दिल्ली वापस चली गई। वहीं परचम नामक संस्था के सचिव नसिमा हार नहीं मानी और ठंढे बस्तों में पड़ी इन फाइलों की गरमाहट देकर इस एरिया के विकास के लिये कोशिश में हैं।
गौरतलब है कि तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक दीपीका सुरी और पुलिस उपमहानिरीक्षक गुप्तेश्वर पाण्डेय ने चर्तुभुज स्थान स्थित तवायफों के विकास के लिये कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये थे। एएसपी और डीआईजी ने अपने कार्यकाल के दौरान इन इलाकों में बाजार लगाकर तवायफों को व्यवसाय के प्रति जागरुक किया था, वहीं डीआईजी पाण्डेय ने इनके बच्चों को स्वयं स्कूल तक पहुँचाया था। परन्तु इन दोनों के तबादले के साथ ही फिर से यह मंडी तवायफ मंडी के रूप में बदल गई और खुलेआम जिस्मफरोसी का धंधा चलने लगा। इधर, गुप्तेश्वर पाण्डेय को मुजफ्फरपुर का आईजी बनाये जाने पर इन नर्तकियों को अपनी तकदीर बदलने की आस जगी है। इस बावत पूछे जाने पर आईजी पाण्डेय ने बताया कि देह व्यापार का धंधा छोटे से बड़े स्तर तक विशाल रैकेट के रूप में फैला हुआ है जिसके लिये जन जागरण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर के नर्तकियों के लिये पुन: एक टीम गठित कर अभियान चलाकर इनकी तकदीर और तस्वीर बदलने का प्रयास शीघ्र शुरू किया जायेगा वहीं इनके बच्चों को स्कूल तक भेजने की पूरी व्यवस्था की जायेगी।
देश की सबसे प्राचीनतम नदी नर्मदा का जल तेजी से जहरीला होता जा रहा है। अगर यही स्थिति रही तो मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा अगले 10-12 सालों में पूरी तरह जहरीली हो जाएगी और इसके आसपास के शहरों-गांवों में बीमारियों का कहर फैल जाएगा। हाल ही मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से नर्मदा के जल की शुध्दता जांचने के लिए किए गए एक परीक्षण में पता चला है कि नर्मदा तेजी से मैली हो रही है। तमाम शोध और अध्ययन बताते हैं कि नर्मदा को लेकर बनी योजनाओं से दूरगामी परिणाम सकारात्मक नहीं होंगे। भयंकर परिणामों के बावजूद नर्मदा समग्र अभियान वाली हमारी सरकार नर्मदा जल में जहर घोलने की तैयारी क्यों कर रही है? यह विडंबना ही कही जाएगी कि मध्यप्रदेश की जीवनरेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी जिसके पानी का भरपूर दोहन करने के लिए नर्मदा घाटी परियोजना के तहत 3000 से भी ज्यादा छोटे-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। वहीं एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार नर्मदा नदी के तट पर बसे नगरों और बड़े गांवों के पास के लगभग 100 नाले नर्मदा नदी में मिलते हैं और इन नालों में प्रदूषित जल के साथ-साथ शहर का गंदा पानी भी बहकर नदी में मिल जाता है। इससे नर्मदा जल प्रदूषित हो रहा है। नगरपालिकाओं और नगर निगमों द्वारा गंदे नालों के ज़रिए दूषित जल नर्मदा में बहाने पर सरकार रोक नहीं लगा पाई है और न ही आज तक नगरीय संस्थाओं के लिए दूषित जल के अपवाह की कोई योजना बना पाई है। राज्य के 16 जि़ले ऐसे हैं जिनके गंदे नालों का प्रदूषित पानी नर्मदा में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहा है। राज्य के 16 जि़ले ऐसे हैं जिनके गंदे नालों का प्रदूषित पानी नर्मदा में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहा है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र के कटाव से भी नर्मदा में प्रदूषण बढ़ रहा है। कुल मिलाकर नर्मदा में 102 नालों का गंदा पानी और ठोस मल पदार्थ रोज़ बहाया जाता है, जिससे अनेक स्थानों पर नर्मदाजल खतरनाक रूप से प्रदूषित हो रहा है।
प्रचलित मान्यता यह है कि यमुना का पानी सात दिनों में, गंगा का पानी छूने से, पर नर्मदा का पानी तो देखने भर से पवित्र कर देता है। साथ ही जितने मंदिर व तीर्थ स्थान नर्मदा किनारे हैं उतने भारत में किसी दूसरी नदी के किनारे नहीं है। लोगों का मानना है कि नर्मदा की करीब ढाई हजार किलोमीटर की समूची परिक्रमा करने से चारों धाम की तीर्थयात्रा का फल मिल जाता है। परिक्रमा में करीब साढ़े सात साल लगते हैं। जाहिर है कि लोगों की परंपराओं और धार्मिक विश्वासों में रची-बसी इस नदी का महत्व कितना है। लेकिन दुर्भाग्य से जंगल तस्करों, बाक्साइट खदानों और हमारी विकास की भूख से यह वादी इतनी खोखली और बंजर हो चुकी है कि आने वाले दिनों में उसमें नर्मदा को धारण करने का साम्र्थय ही नहीं बचेगा। इसकी शुरुआत नर्मदा के मैलेपन से हो चुकी है।
सरकार का जल संसाधन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल नदी जल में प्रदूषण की जांच करता है और प्रदूषण स्तर के आंकड़े कागज़़ों में दर्ज कर लेता है, लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए सरकार कोई भी गंभीर उपाय नहीं कर रही है। सरकारी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरकंटक और ओंकारेश्वर सहित कई स्थानों पर नर्मदा जल का स्तर क्षारीयता पानी में क्लोराईड और घुलनशील कार्बनडाईऑक्साइड का आंकलन करने से कई स्थानों पर जल घातक रूप से प्रदूषित पाया गया। भारतीय मानक संस्थान ने पेयजल में पीएच 6.5 से 8.5 तक का स्तर तय किया है, लेकिन अमरकंटक से दाहोद तक नर्मदा में पीएच स्तर 9.02 तक दर्ज किया गया है। इससे स्पष्ट है कि नर्मदाजल पीने योग्य नहीं है और इस प्रदूषित जल को पीने से नर्मदा क्षेत्र में गऱीब और ग्रामीणों में पेट से संबंधित कई प्रकार की बीमारियां फैल रही है, इसे सरकारी स्वास्थ्य विभाग भी स्वीकार करता है। जनसंख्या बढऩे, कृषि तथा उद्योग की गतिविधियों के विकास और विस्तार से जल स्त्रोतों पर भारी दबाव पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि नर्मदा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में बहती हैं लेकिन नदी का 87 प्रतिशत जल प्रवाह मध्यप्रदेश में होने से, इस नदी को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है. आधुनिक विकास प्रक्रिया में मनुष्य ने अपने थोड़े से लाभ के लिए जल , वायु और पृथ्वी के साथ अनुचित छेड़-छाड़ कर इन प्राकृतिक संसाधनों को जो क्षति पहुंचाई है, इसके दुष्प्रभाव मनुष्य ही नहीं बल्कि जड़ चेतन जीव वनस्पतियों को भोगना पड़ रहा है. नर्मदा तट पर बसे गांव, छोटे-बड़े शहरों, छोटे-बड़े औद्योगिक उपक्रमों और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से की जाने वाली खेती के कारण उदगम से सागर विलय तक नर्मदा प्रदूषित हो गई है और नर्मदा तट पर तथा नदी की अपवाह क्षेत्र में वनों की कमी के कारण आज नर्मदा में जल स्तर भी 20 वर्ष पहले की तुलना में घट गया है.
ऐसे में नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई है, लेकिन मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारें औद्योगिक और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नर्मदा की पवित्रता बहाल करने में ज़्यादा रुचि नहीं ले रहे है.नर्मदा का उदगम स्थल अमरकंटक भी शहर के विस्तार और पर्यटकों के आवागमन के कारण नर्मदा जल प्रदूषण का शिकार हो गया है. इसके बाद, शहडोल , बालाघाट, मण्डला, शिवनी, डिण्डोरी, कटनी, जबल पुर, दामोह, सागर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल , होशंगाबाद, हरदा, रायसेन, सीहोर, खण्डवा, इन्दौर, देवास, खरगोन, धार, झाबुआ और बड़वानी जिलों से गुजरती हुई नर्मदा महाराष्ट्र और गुजरात की ओर बहती है, लेकिन इन सभी जिलों में नर्मदा को प्रदूषित करने वाले मानव निर्मित सभी कारण मौजूद है. अमलाई पेपर मिल शहडोल, अनेक शहरों के मानव मल और दूषित जल का अपवाह, नर्मदा को प्रदूषित करता है. सरकार ने औद्योगीकरण के लि ए बिना सोचे समझे जो निति बनाई उससे भी नर्मदा जल में प्रदूषण बड़ा है, होशंगाबाद में भारत सरकार के सुरक्षा क़ागज़ कारखाने बड़वानी में शराब कारखानें, से उन पवित्र स्थानों पर नर्मदा जल गंभीर रूप से प्रदूषित हुआ है. गर्मी में अपने उदगम से लेकर, मण्डला, जबल पुर, बरमान घाट, होशंगाबाद, महेश्वर, ओंकारेश्वर, बड़वानी आदि स्थानों पर प्रदूषण विषेषज्ञों ने नर्मदा जल में घातक वेक्टेरिया और विषैले जीवाणु पाए जाने की ओर राज सरकार का ध्यान आकर्षित किया है.
इन सब के बावजुद अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक करीब 18 थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी है। जबलपुर से होशंगाबाद तक पांच पावर प्लांट को सरकारों ने मंजूरी दे दी है। इनमें सिवनी जिले के चुटका गांव में बनने वाला प्रदेश का पहला परमाणु बिजली घर भी शामिल है। यह बरगी बांध के कैचमेंट एरिया में है। परमाणु ऊर्जा का मुख्य केंद्र रहा अमेरिका अब परमाणु कचरे का निष्पादन नहीं कर पा रहा है। इसके बावजूद भारत में इन परियोजनाओं से निकलने वाले परमाणु कचरे की निष्पादन की बात सरकारें नहीं कर रही हैं। इन परियोजनाओं के लिए नर्मदा का पानी देने का करार हुआ है। नरसिंहपुर के पास लगने वाले पावर प्लांट की जद में आने वाली जमीन एशिया की सर्वोत्तम दलहन उत्पादक है। कोल पावर प्लांट के दुष्परिणामों का अंदाजा सारणी के आसपास जंगल और तवा नदी के नष्ट होने से लगाया जा सकता है। दो हजार हैक्टेयर में बनने वाले चुटका परमाणु पावर प्लांट की जद में 36 गांव आएंगे। इनमें से फिलहाल चुटका, कुंडा, भालीबाड़ा, पाठा और टाडीघाट गांव को हटाने की तैयारी है। निर्माण एजेंसी न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन और स्थानीय प्रशासन इस बाबत नोटिस दे चुका है। 1400 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर वाले इस प्लांट में 100 क्यूसेक पानी लगेगा। एक अनुमान के मुताबिक चुटका परमाणु पावर प्लांट में जितना पानी लगेगा, उससे हजारों हैक्टेयर खेती की सिंचाई की जा सकती है। परमाणु बिजली के संयंत्र के ईंधन के रूप में यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी रेडियोधर्मिता के दुष्परिणाम जन, जानवर, जल, जंगल और जमीन को स्थायी रूप से भुगतने पड़ते हैं। इसका अंदाजा रावतभाटा परमाणु संयंत्र की अध्ययन रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।
जानकारों के मुताबिक परमाणु कचरे की उम्र 2.5 लाख वर्ष है। इसे नष्ट करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाए तो भी यह 600 वर्ष तक बना रहता है। इस दौरान भूजल प्रदूषित करता है। चुटका में प्लांट बनने से नर्मदा व सहायक नदियों के प्रदूषित होने की आशंका है। इतना ही नहीं, भूकंप की आशंका भी बढ़ जाती है। वहीं, चुटका में निर्माण एजेंसी अपनी आवासीय कॉलोनी प्लांट से करीब 14 किलोमीटर दूर बना रही है। प्लांट के लिए भूमि सर्वे और भूअर्जन की कोशिश जारी है, लेकिन आदिवासी और मछुआरे हटने को तैयार नहीं हैं। दरअसल ये सभी बरगी से विस्थापित हैं। हालांकि कंपनी के इंजीनियर करीब 40 फीट गहरा होल करके यहां की मिट्टी और पत्थरों का अध्ययन कर चुके हैं।
राजस्थान में चंबल नदी पर बने 220 मेगावाट के रावतभाटा परमाणु बिजली घर के 20 साल बाद आसपास के गांवों की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक परमाणु बिजली घर से होने वाले प्रदूषण के घातक परिणाम लोगों को भुगतने पड़ रहे हैं। संपूर्ण क्रांति विद्यालय बेड़छी, सूरत की इस रिपोर्ट के मुताबिक आसपास के गांवों में जन्मजात विकलांगता के मामले बढ़े हैं। प्रजनन क्षमता प्रभावित होने से निसंतान युगलों की संख्या बढ़ी है। हड्डी का कैंसर, मृत और विकलांग नवजात, गर्भपात और प्रथम दिवसीय नवजात की मौत के मामले तेजी से बढ़े हैं। वहीं लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हुई है। जन्म और मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर सामने आया कि यहां औसत आयु करीब 12 वर्ष कम हो गई है। लंबे अर्से का बुखार, असाध्य त्वचा रोग, आंखों के रोग, कमजोरी और पाचन संबंधी गड़बडिय़ां भी बढ़ी हैं। इन 20 वर्षों में बारिश के दिनों में हवा में सबसे अधिक प्रदूषण छोड़ा गया। इससे इन गांवों का पानी भी काफी प्रदूषित हो गया है। 220 मेगावाट केे प्लांट से 20 सालों में यह स्थिति बनी है, जो 1400 मेगावाट के चुटका प्लांट से करीब 10 साल में निर्मित हो जाएगी। एक अन्य अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियां जितना दावा करती हैं उतना उत्पादन किसी भी पावर प्लांट से नहीं हुआ है। वहीं, इस दावे के मुताबिक जंगल और कृषि भूमि स्थायी रूप से नष्ट की जा चुकी होती है। रिपोर्ट के मुताबिक 1000 मेगावाट तक की परियोजनाओं की निगरानी केंद्र और राज्य सरकारें नहीं करती है, जिससे ये गड़बडिय़ां और बढ़ जाती हैं। उक्त अध्ययन से जुड़ी पर्यावरणविद संघमित्रा देसाई का कहना है कि परमाणु बिजली घरों में यूरेनियम और भारी पानी के इस्तेमाल से ट्रीसीयम (ट्रीटीयम) निलकता है। यह हाईड्रोजन का रूप है। यह खाली होता है तो उड़कर हवा में मिल जाता है। पानी के साथ होने पर जल प्रदूषित करता है। मानव शरीर इसे हाइड्रोजन के रूप में ही लेते हैं। इसका अधिकांश हिस्सा यूरिन के जरिए निकल जाता है, लेकिन जब यह किसी सेल में फंस जाता है तो कई घातक बीमारियां हो जाती हैं। रेडियो एक्टिविटी से पेड़ों को नुकसान होता है। परमाणु कचरे को नष्ट करना मुश्किल काम है। यह हजारों वर्ष तक बना रहता है। अमेरिका इस समस्या से जूझ रहा है।
थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से पानी इतना प्रदूषित हो जाएगा कि इसे मवेशी भी नहीं पी सकेंगे। 500 मेगावाट के सारणी स्थित सतपुड़ा थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से तवा नदी का पानी इसी तरह प्रदूषित हो चुका है। इसमें नहाने पर लोगों की चमड़ी जलती है और त्वचा रोग हो जाते हैं। इसकी राख के निस्तारण के लिए हाल ही हजारों पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई, जबकि पहले से नष्ट किए गए जंगल की भरपाई नहीं की जा सकी है। इतने दुष्परिणामों के सामने आने के बावजूद मध्यप्रदेश में देवी स्वरूप नर्मदा के किनारे थर्मल कोल पावर प्लांट की अनुमति देना जनहित में नहीं है। नर्मदा में लाखों लोग डुबकी लगाकर पुण्य का अनुभव करते हैं। उनकी रूह भी इस पानी में नहाने के नाम से कांप उठेगी। राख से नर्मदा की गहराई पर भी असर होगा। वहीं गंगा के जहरीले होने के कारण सरकार ने हाल ही में यह निर्णय लिया है कि इसके किनारे अब ऐसा कोई निर्माण नहीं किया जाएगा, तो नर्मदा की चिंता क्यों नहीं की जा रही है?
नर्मदा के किनारे चार थर्मल पावर प्लांट को भी मंजूरी मिली है। सिवनी जिले की घनसौर तहसील के गांव झाबुआ में बनने वाले प्लांट की क्षमता 600 मेगावॉट होगी। निर्माण एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक इसमें प्रतिघंटा छह सौ टन कोयले की खपत होगी, जिससे 150 टन राख प्रतिघंटा निकलेगी, जबकि हकीकत यह है कि कोयले से 40 प्र्रतिशत राख निकलती है। इस तरह करीब 250 टन राख प्रतिघंटा निकलेगी। इसका निस्तारण जंगल और नर्मदा किनारे किया जाएगा, जिससे पर्यावरणीय संकट पैदा होना तय है। दूसरा कोल पावर प्लांट नरसिंहपुर जिले के गाडरवाड़ा तहसील के तूमड़ा गांव में एनटीपीसी द्वारा बनाया जाएगा। 3200 मेगावॉट क्षमता के इस प्लांट से नौ गांवों के किसानों की जमीन पर संकट है। इसके लिए करीब चार हजार हैक्टेयर जमीन ली जानी है, जबकि पास ही तेंदूखेड़ा ब्लाक में करीब 4500 एकड़ सरकारी जमीन खाली पड़ी है। इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। इस प्लांट की जद में आने वाले गांवों की जमीन एशिया में सबसे अच्छी दलहन उत्पादक है। तीसरा 1200 मेगावॉट क्षमता का थर्मल कोल पावर प्लांट जबलपुर जिले के शहपुरा भिटोनी में बनाया जाना है। इसका निर्माण एमपीईवी द्वारा किया जाएगा। इसका सर्वे किया जा चुका है। इसकी जद में करीब 800 किसानों की जमीन आ रही है। चौथा थर्मल पावर प्लांट नरसिंहपुर जिले के झासीघाट में मैसर्स टुडे एनर्जी द्वारा 5400 करोड़ की लागत से किया जाएगा। 1200 मेगावॉट क्षमता वाले इस प्लांट के लिए 100 एकड़ जमीन की जरूरत है। इसमें से करीब 700 एकड़ जमीन सरकारी है। करीब 75 लोगों की 300 एकड़ जमीन ली जा चुकी है। इसका निर्माण 2014 तक पूरा किया जाना है। इनके लिए विदेशों से कोयला मंगाने की तैयारी की जा रही है।
थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख आसपास की हजारों एकड़ जमीन की उत्पादन क्षमता को नष्ट कर देगी। अब तक कई अध्ययनों में इस बात का खुलासा हो चुका है। सारणी स्थित सतपुड़ा पावर प्लांट से निकलने वाली राख से हजारों पेड़ नष्ट और तवा का पानी प्रदूषित हो गया है। अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब नर्मदा नदी भारत की सबसे अभिशप्त नदी बनकर रह जाएगी।
क्या मध्यप्रदेश, आतंकियों के स्लीपिंग सेल पनाहगाह बनता जा रहा है? भोपाल में पकड़े गए दो कश्मीरी आतंकियों व सिमी समेत अन्य आतंकी संगठनों की गतिविधियों को तो देखकर तो ऐसा ही लगता हैं। संगठनों से जुड़े लोग भले ही मध्य प्रदेश में वारदात को अंजाम न देते हों, लेकिन वे आराम करने या फरारी काटने के लिए मध्य प्रदेश को महफूज जगह जरूर मानते हैं। राज्य का पुलिस महकमा अब उन लोगों की तलाश में जुट गया है, जो इन आतंकियों को शरण देते हैं।
भोपाल पुलिस ने 1 जनवरी को शाहजहांनी पार्क तलैया से आतंकवादी शौकत अहमद हकीम और मेहराजउद्दीन शेरगुजरी को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। दोनों आतंकवादी जम्मू-कश्मीर के बांदीपुर जिले के रहने वाले हैं, जो हूजी संगठन से जुड़े हैं, उनके खिलाफ देशद्रोह जैसे आरोप लगने की जानकारी दी जा रही है। दोनों युवक हुर्रियत कांफ्रेंस के सक्रिय कार्यकर्ता है। जम्मू-कश्मीर में पथराव की घटना के बाद पुलिस द्वारा दबिश दिए जाने के बाद फरारी काटने की गरज से भोपाल में डेरा डाले हुए थे। दोनों जमात की आड़ लेकर तालीम के लिए अलग-अलग मदरसों व मस्जिदों में घूम रहे थे। वैसे भी भोपाल प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्यों की शरणस्थली के रूप में खासा चर्चित हो चुका है। पुलिस ने अहमदाबाद बम धमाके के आरोपी इरफान करेली को जुलाई 09 में भोपाल के करोद इलाके से पकड़ा था। इंदौर में पकड़ में आया सफदर नागौरी लंबे समय तक भोपाल के कोहेफिजा इलाके में रह चुका है। हाल ही में शेख मुनीर को भोपाल पुलिस ने पकड़ा है।
बताया जाता है कि इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह एवं सतवंत सिंह ने भोपाल में ही शिक्षा ग्रहण की थी। इसके अलावा गुलशन कुमार के शूटर अनिल शर्मा उर्फ अब्दुल्ला की लाश अंग्रेजन के बंगला, भोपाल में मिली थी। इसी तरह लेडी डान अर्चना शर्मा ने भोपाल के एक कॉलेज में पढ़ाई की और उसका भोपाल आना-जाना लगातार जारी रहा। सीबीआई ने पुराने भोपाल से लश्कर-ए-तोयबा के सदस्य आसिफ को गिरफ्तार किया था। दिलावर खान को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। भोपाल पुलिस ने 2004 में आईएएस एजेंट साजिद मुनीर को पकड़ा था। इसके अलावा 2005 में सिमी का प्रमुख इमरान भोपाल में पकड़ा गया था। पुलिस रिकार्ड के अनुसार दाऊद का शूटर बाबी और उसके साथी को भोपाल रेलवे स्टेशन के पास एक होटल से पकड़ा गया था। वे दिल्ली से जेल तोड़कर भागे थे। इसके अलावा नवंबर में 11 कैदी न्यायालय परिसर से भाग गए थे।
सूत्रों का कहना है कि भोपाल में कई बड़ी वारदातों की योजना बनाने के लिए उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान से अपराधी आकर शरण लेते हैं और वारदात को अंजाम देने में लग जाते हैं। आतंकी संगठनों से जुड़े लोग भले ही मप्र में वारदात को अंजाम न देते हों, लेकिन वे आराम करने या फरारी काटने के लिए मप्र को महफूज जगह जरूर मानते हैं। राज्य का पुलिस महकमा अब उन लोगों की तलाश में जुट गया है, जो इन आतंकियों को शरण देते हैं। भोपाल के अलावा मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से प्रतिबंधित संगठन इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ इंडिया का गढ़ बना हुआ है। यही कारण है कि इंदौर के अलावा उज्जैन, धार, खंडवा, बुरहानपुर, शाजापुर में इस संगठन से जुड़े लोगों की गतिविधिया सामने आती रहती हैं। सिमी के सरगना सफदर नागौरी सहित 13 लोगों की इंदौर के निकट एक साथ गिरफ्तारी कर इनके पास से चौंकाने वाले दस्तावेज जब्त किए जा चुके हैं। पुलिस को यह सुराग भी लगा था कि इंदौर के समीप चोरल के जंगल में सिमी के लोगों द्वारा युवाओं को प्रशिक्षण भी दिया जाता रहा है। उज्जैन और शाजापुर में कई युवा सिमी के लिए काम करने के आरोप मे पकड़े जा चुके हैं। बताया जाता है कि सिमी के सरगना ने यहा के कई युवाओं को जेहाद के नाम पर भड़काने का काम किया है। सिमी से जुड़े लोगों ने ही आतंकवाद निरोधक दस्ते में काम कर चुके एक आरक्षक सहित तीन लोगों की खंडवा में गोली मारकर हत्या की थी। पुलिस इस हत्याकांड को अंजाम देने वालों को अब तक नहीं पकड़ पाई है।
मालवा क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से प्रतिबंधित संगठन इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ इंडिया का गढ़ बना हुआ है। यही कारण है कि इंदौर के अलावा उज्जैन, धार, खंडवा, बुरहानपुर, शाजापुर में इस संगठन से जुड़े लोगों की गतिविधियां सामने आती रहती हैं। सिमी के सरगना सफदर नागौरी सहित 13 लोगों की इंदौर के निकट एक साथ गिरफ्तारी कर इनके पास से चौंकाने वाले दस्तावेज जब्त किए जा चुके हैं। पुलिस को यह सुराग भी लगा था कि इंदौर के समीप चोरल के जंगल में सिमी के लोगों द्वारा युवाओं को प्रशिक्षण भी दिया जाता रहा है। उज्जैन और शाजापुर में कई युवा सिमी के लिए काम करने के आरोप मे पकड़े जा चुके हैं। बताया जाता है कि सिमी के सरगना ने यहा के कई युवाओं को जेहाद के नाम पर भड़काने का काम किया है। सिमी से जुड़े लोगों ने ही आतंकवाद निरोधक दस्ते में काम कर चुके एक आरक्षक सहित तीन लोगों की खंडवा में गोली मारकर हत्या की थी। पुलिस इस हत्याकांड को अंजाम देने वालों को अब तक नहीं पकड़ पाई है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का गठन 25 अप्रैल 1977 को यूपी के अलीगढ़ में हुआ। इसके फाउंडर प्रेजिडेंट मोहम्मद अहमदुल्ला सिद्दीकी थे। मानव जीवन को पवित्र कुरान के हिसाब से चलाना, इस्लाम का प्रसार और इस्लाम की खातिर जिहाद करना सिमी का मूल विचार है। सिमी पर प्रतिबंध लगने से पहले तक शाहिद बदर फलाह इसके नैशनल प्रेजिडेंट और सफदर नागौरी सेक्रेटरी थे। 28 सितंबर 2001 को पुलिस ने फलाह को दिल्ली के जाकिर नगर इलाके से गिरफ्तार किया। माना जा रहा है कि फिलहाल सिमी नागौरी के नेतृत्व में गुपचुप तरीके से अपनी गतिविधियां चला रहा है। सिमी को वल्र्ड असेंबली ऑफ मुस्लिम यूथ से आर्थिक मदद मिलती है। इसके कुवैत में इंटरनैशनल इस्लामिक फेडरेशन ऑफ स्टूडेंट्स से भी करीबी संबंध हैं। इसके अलावा पाकिस्तान से भी इन्हें मदद मिलती है। सिमी के तार जमात-ए-इस्लामी की पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल यूनिट से भी जुड़े हैं। सिमी पर हिज्बुल मुजाहिदीन से भी संबंधों के आरोप हैं और आईएसआई से भी इसके रिश्ते माने जाते हैं। सिमी के नेताओं के लश्कर-ए-तैबा और जैश-ए-मोहम्मद से भी नजदीकी रिश्ते हैं। सिमी के करीब 400 फुल टाइम काडर और 20 हजार सामान्य सदस्य हैं। 30 साल की उम्र तक के स्टूडंट सिमी के सदस्य बन सकते हैं। इससे ज्यादा उम्र हो जाने पर वह संगठन से रिटायर हो जाते हैं।
दरअसल, सिमी ने जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा के तौर पर काम करना शुरू किया था। सिमी और जमात का साथ वर्ष 1981 तक ही रह सका जब सिमी के कार्यकर्ताओं ने भारत दौरे पर आए फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा (पीएलओ) नेता यासिर अराफात के खिलाफ नई दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया और काले झंडे दिखाए। सिमी कार्यकर्ताओं ने अराफात को पश्चिमी देशों का पि_ू बताया जबकि जमात के बड़े नेताओं ने अराफात को फिलिस्तीन के हक की लड़ाई लडऩे वाला योद्धा बताया। इस संगठन का मिशन है देश को पश्चिमी सभ्यता के असर से मुक्त कर मुस्लिम समुदाय में परिवर्तित करना, जहां इस्लाम के कायदे-कानून के मुताबिक लोग अपनी जिंदगी बिताएं। इस संगठन को भारत के साथ अमेरिका भी आतंकवादी संगठन मानता है। हालांकि अगस्त 2008 में एक विशेष ट्रिब्यूनल ने भारत में सिमी से पाबंदी हटा दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस संगठन पर फिर से पाबंदी लगाने के आदेश जारी किए।
सिमी पर प्रतिबंध लगने से पहले तक शाहिद बदर फलाह इसके नेशनल प्रेसिडेंट और सफदर नागौरी जनरल सेके्रटरी थे। 28 सितंबर 2001 को पुलिस ने फलाह को दिल्ली के जाकिर नगर इलाके से गिरफ्तार किया। माना जा रहा है कि फिलहाल सिमी नागौरी के नेतृत्व में गुपचुप तरीके से अपनी गतिविधियां चला रहा है। नागौरी और उसके 10 साथियों को 26 मार्च 2008 को उसके गृहनगर उज्जैन के समीप इंदौर से गिरफ्तार किया गया। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक सिमी के ट्रेनिंग कैम्प झारखंड, केरल, कर्नाटक और कुछ अन्य राज्यों में चल रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक सिमी को बेहद खूंखार आतंकवादी संगठन अल कायदा से भी मदद मिलती रही है।