
बहन जी को गुस्सा क्यों आता है?
Updated: December 27, 2011
उत्तर प्रदेश में ‘बलात्कार राजनीति’ एक नए मोड़ पर आ गई है। मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी की विवादित…
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The True Beauty : द ट्रुथ इज ब्यूटी
Updated: December 27, 2011
The True Beauty: ब्यूटी शब्द यानि सुन्दरता यानि आकर्षण से भरा हुवा शब्द.यह वो जादूई (तिलिस्म) शब्द है जिसे सुनते ही इंसान के दिमाग में…
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शहादत व्यर्थ नहीं जायेगी ……..मगर कैसे?
Updated: December 27, 2011
दर्जनों सुरक्षाबल समेत जांबाज पुलिस अधिकारी स्व.विनोद चौबे की शहादत पर सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ मर्माहत है। अफसोस कि शोक की इस घड़ी में प्रदेश अकेला है,…
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व्यंग्य : यार, लौट आओ!! – डॉ. अशोक गौतम
Updated: December 27, 2011
इस इश्तहार के माध्यम से सर्व साधारण को एक बार फिर सूचित किया जाता है कि हमारे मुहल्ले का पिछले कई महीनों से गुम हुआ…
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पहचान – एक संघर्ष : Pehchaan – Ek Sangharsh
Updated: December 27, 2011
जब से इस धरती पर चाहे इंसान हो या जानवर आया है वह अपनी पहचान के लिए हमेशा संघर्ष करता रहा है .अगर हम पुराण…
Read moreव्यंग्य/ बिन जूते सब सून/ अशोक गौतम
Updated: December 27, 2011
विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा हो तो गुजरता रहे भाई साहब! मुझे विश्व की आर्थिक मंदी से कोई लेना देना नहीं। विश्व…
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चुंबन की आवाज़ और चांटा !
Updated: December 27, 2011
मुशर्रफ, मनमोहन, ऐश्वर्या राय और सोनिया एक ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं। ट्रेन एक सुरंग से निकलती है ट्रेन में अंधेरा हो जाता है।…
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मनमोहन को चिठ्ठी
Updated: December 27, 2011
आजकल भारतीय बाज़ार में जाली नोटों का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है । जिधर देखिये उधर से जाली नोट इस कदर घुसा आ रहा…
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एक गुज़ारिश करुं खुदा से, तेरा नाम ना मैं भुला सकूँ !
Updated: December 27, 2011
काश ये दूरियाँ कम हो जाएं तुम्हारे पलकों पर मैं छा सकूं कोई जो मुझे अपना समझता है उसी का हूँ अहसास दिला सकूँ जो…
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मोहब्बत की करम से यूं ही सांस- सांस जीते हैं
Updated: December 27, 2011
हर खुशी में गम का पहलू तलाश जीते हैं हर नये गम से खुशी तलाश जीते हैं आहु को तुम्हारे नाम के आंसू अजीज़ थे…
Read moreगाँव तथा गाय को आवश्यकता सुरक्षा की
Updated: December 27, 2011
प्राचीन काल से गाय तथा गाँव इन्हीं दो शब्दों के इर्द-गिर्द भारतीय दर्शन भ्रमण करता रहा है। जिसके बिना भारतीय सभ्यता की परिकल्पना भी नहीं…
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हम जान बुझ कर फिसल गये
Updated: December 27, 2011
सभी मिट्टी के घरौंदे टूट गये हाथों से हाथ जब छुट गये तैरने लगे सपने बिखर के नैनों से जो सावन फ़ूट गये तरस गये…
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