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    जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है : स्वामीयज्ञमुनि

    -मनमोहन कुमार आर्य

                   स्वामी यज्ञमुनि जी ने श्रोताओं को स्मरण कराते हुए कहा कि ऋषि दयानन्द ने कहा है कि हम सर्वदा आनन्द में रहें। उन्होंने पूछा कि कौन सर्वदा आनन्द में रहता है? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा मनुष्य की आत्मा में अपने सर्वान्तर्यामी स्वरूप से विद्यमान है। वह सभी मनुष्यों को सद्कर्म करने पर उनकी आत्मा में सुख आनन्द प्रदान करता है तथा बुरे कर्म करने पर भय, शंका लज्जा को उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा इससे ईश्वर का हमारी आत्मा के भीतर विद्यमान होना सिद्ध होता है। उन्होंने आगे कहा कि कुटिलाता एवं पाप कर्मो को अपने जीवन से हटाने वालों को परमात्मा आनन्द देता है। विद्वान स्वामी यज्ञमुनि जी ने बताया कि परमात्मा की उपासना वही मनुष्य कर सकता है जिसके भीतर पाप तथा कुटिलतायुक्त कर्म वा आचरण न हों। स्वामी जी ने ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का अध्ययन कर उनकी कही सभी बातों को मानने की प्ररेणा की। स्वामी जी महाराज ने ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य का स्वाध्याय करने की प्रेरणा भी सभी श्रोताओं को की। उपदेश की समाप्ति पर स्वामी जी का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम में स्थानीय आर्य लेखक श्री मनमोहन आर्य का उनके लेखन कार्य के लिए आश्रम की ओर से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने प्रेम व स्नेह से युक्त वचनों में श्री आर्य का परिचय दिया। मंच पर उपस्थित सभी विद्वानों ने अपनी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद भी हम, मनमोहन आर्य को प्रदान किये। हम इस सम्मान के लिए आश्रम एवं सभी विद्वानों के हृदय से आभारी हैं। हम विनम्रतापूर्वक सबका धन्यवाद करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि यह आश्रम वर्तमान एवं भविष्य में उन्नति करते हुए उन्नति एवं वेदप्रचार के नये कीर्तिमान स्थापित करे। कार्यक्रम में चण्डीगढ़ से ऋषिभक्त श्री सुशील भाटिया जी भी पधारे हुए हैं। वह कार्यक्रम को सफल कराने के लिए अपनी सेवायें दे रहे हैं। फेसबुक पर आश्रम की गतिविधियों के चित्र एवं वीडियो प्रस्तुत कर वह आश्रम के आयोजनों का आर्यजनता में अपनी पूरी वेदप्रचार की भावना से कार्य कर रहे हैं। हमें भी उनका स्नेह सदैव मिलता है। हम उनका भी आभार व्यक्त करते हैं। आश्रम के सभी अधिकारियों एवं सदस्यों सहित आश्रम के उत्सव में पधारे सभी बन्धुओं का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। हम आश्रम के उत्सव की सफलता की सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

    अधिकांश भारतीय ग्लोबल वार्मिंग पर चिंतित, करते हैं प्रधानमंत्री मोदी के मिशन लाइफ का समर्थन


    येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और सीवोटर इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग के बारे में चिंतित है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण सरकारी उपायों का समर्थन करता है। “भारतीय मानस में जलवायु परिवर्तन 2023” शीर्षक वाली रिपोर्ट, इस विषय पर जनता के सीमित ज्ञान के बावजूद, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के बारे में भारतीय जनता के बीच गहरी जागरूकता और चिंता को उजागर करती है।

    मुख्य निष्कर्ष:

    – ग्लोबल वार्मिंग के बारे में चिंता: 91% भारतीय ग्लोबल वार्मिंग के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं, जबकि 59% “बहुत चिंतित” हैं।

    – जागरूकता स्तर: जहां केवल 10% भारतीय ग्लोबल वार्मिंग के बारे में “बहुत कुछ” जानने का दावा करते हैं, वहीं संक्षिप्त विवरण दिए जाने के बाद 78% जनता इसके होने को स्वीकार करते हैं।

    – अनुमानित कारण: 52% का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों से प्रेरित है, जबकि 38% का मानना है कि इसके लिए प्राकृतिक पर्यावरणीय परिवर्तन जिम्मेदार हैं।

    – स्थानीय प्रभाव: अधिकांश लोग महत्वपूर्ण स्थानीय प्रभावों को समझते हैं, जिनमें से 71% ग्लोबल वार्मिंग को अपने स्थानीय मौसम में बदलाव से और 76% मानसून पैटर्न में बदलाव से जोड़ते हैं।

    इस संदर्भ में येल विश्वविद्यालय के डॉ. एंथनी लीसेरोविट्ज़ ने भारत में बढ़ती जागरूकता और चिंता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रिकॉर्ड स्तर की गर्मी और गंभीर बाढ़ जैसे जलवायु प्रभावों के बारे में देशवासी जलवायु परिवर्तन को प्रत्यक्ष तौर पर अनुभव कर रहे हैं।

    सरकारी कार्रवाई के लिए जनता का समर्थन:

    – ‘नेट जीरो’ प्रतिबद्धता: 86% उत्तरदाता साल 2070 तक ‘नेट जीरो’ कार्बन उत्सर्जन हासिल करने के भारत सरकार के लक्ष्य का समर्थन करते हैं। यह प्रतिबद्धता जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है और विश्व मंच पर भारत की भूमिका को दर्शाती है।

    – कोयले का उपयोग: 67% सहमत हैं कि एक टिकाऊ भविष्य के लिए कोयले का उपयोग कम करना आवश्यक है, और 84% कोयला ऊर्जा से सौर और पवन जैसे रिन्यूबल ऊर्जा स्रोतों का रुख करने के पक्ष में हैं।

    – आर्थिक विकास: 74% का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने की कार्रवाइयों से या तो आर्थिक विकास और रोजगार सृजन (51%) को बढ़ावा मिलेगा या इसका तटस्थ प्रभाव (23%) होगा।

    कार्य करने की इच्छा:

    – रिन्यूबल ऊर्जा: 61% भारतीय रिन्यूबल ऊर्जा स्रोतों के बढ़ते उपयोग की वकालत करते हैं, जबकि केवल 14% फ़ोस्सिल फ्यूल के उपयोग के विस्तार का समर्थन करते हैं।

    – व्यक्तिगत प्रतिबद्धता: 75% ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल उपकरणों और इलेक्ट्रिक वाहनों में निवेश करने के इच्छुक हैं।

    – व्यवहार परिवर्तन: वैश्विक पर्यावरण आंदोलन के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के अनुरूप, अधिकांश (79%) भारतीय महत्वपूर्ण जीवनशैली में बदलाव अपनाने, अपने सामाजिक दायरे (78%) को प्रभावित करने और सार्वजनिक रूप से पर्यावरण-अनुकूल व्यवहार (71%) प्रदर्शित करने के लिए तैयार हैं।.

    क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. जगदीश ठाकर ने स्वच्छ ऊर्जा और 2070 के ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य के लिए मजबूत सार्वजनिक समर्थन पर ध्यान दिया, जो स्थायी कार्यों को आगे बढ़ाने की सामूहिक इच्छा को दर्शाता है।

    ये सभी निष्कर्ष सितंबर और अक्टूबर 2023 के बीच 2,178 भारतीय वयस्कों के राष्ट्रीय प्रतिनिधि टेलीफोन सर्वेक्षण पर आधारित हैं।

    यह व्यापक सर्वेक्षण जलवायु परिवर्तन के संबंध में भारतीय जनता द्वारा महसूस की गई तात्कालिकता और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सार्थक कार्यों में समर्थन और साथ देने की उनकी तत्परता को दिखाता है।

    खपरैल मकानों से कंक्रीट भवनो में गुम होता इंसान!

                              – आत्‍माराम यादव पीव

                    खपरैल शब्द आते ही एक ऐसे कमरे-मकान का स्वरूप हमारे सामने आ जाता है जो हमारी मोलिक सांस्कृतिक धरोहर है जिसे देश के ग्रामों ओर शहरों से उजाड़ा जा रहा है ओर पर्यटन स्थलों पर  हमारी मूल विरासत कि दुहाई देकर इन खपरैल मकानों को सहेजा जा रहा है। दो दशक पूर्व से बीती शताब्दियों का किस्सा सभी के जेहन में है जहा इन खपरा अर्थात खपरैल मकानो में आपका, मेरा जन्म हुआ,  हमारा लालन पोषण,  गोदी, झूला से घुटने चलाई, गिरकर खड़े होने जैसी यादों के साथ चिमनी, लालटेन, दीये के प्रकाश में पढ़ाई की शुरुआत सहित घर के बाहर आँगन ओर आँगन में तुलसीधारा की परिक्रमा से जुड़ा है। जो खपरैल मकानों के इर्द-गिर्द ही पला बड़ा हुआ है। खपरैल की मुड़ैर पर फंसी हमारी पतंग या गिल्ली डंडा खेलते समय गिल्ली मगरी पर गिरती थी तब वे जब तक नहीं निकलती थी जब घर में रोटी बनाती अम्मा, काकी, बुआ, मौसी, नानी की फटकार या बाहर बैठी दादी की प्यार भरी डपट  “तुमाओं राम भलो करें सबई खपरा फौर दवे” मिल जाती थी।

            देश के अनेक प्रदेशों में भाषा बोली की भिन्नता रही हो किन्तु सभी के खपरैल मकान में रोजमर्या के इस्तेमाल के लिए एक कमरे के कोने में चकिया, चूल्हे के पास पिंडी, सिकोली टिकोली, धान कूटने का मूसल शोभा बढ़ाते थे। बढ़ती आधुनिकता जीवन शैली में हम खपरैल के संरक्षण की बात भी नहीं कह सकते अब ये सभी सामग्री संग्रहालयों में संभाल कर रखने वाली होती जा रही है ओर ग्रामीण परिवेश ने अपनी मौलिकता को बदलकर शहरी परिवेश में ढाल लिया है जिससे अब पर्यावरण के साथ खेती के कम होने से कंक्रीट मकानों में आदमी गुम होने लगा है जिस हेतु जनजाग्रति आवश्यक है।

           मानव जीवन के बौद्धिक स्तहर पर विकास के प्रादुर्भाव की सोच का मूलमंत्र झोपड़ी रही है ओर झोपड़ी में निश्चिंतता से अपनी संस्कृति ओर परम्पराओ को अपने पूर्ण स्वाभिमान को जीने वाले सीधे सादे वनवासी, ग्रामवासी ओर शहरी रहे है। गत कुछ वर्षों में देश-प्रदेश की सरकारें ने कच्चे मकानों, झोपड़ियों से मुक्त कर क्रांकिट के भवनो का सपना दिखाकर इन लोगों को इनकी मौलिकता ओर गर्व करने वाली संस्कृति से वंचित कर इनके मूल साधनों ओर संसाधनों को छीन चुकी है। सरकारों ने मिट्टी के बने कच्चे मकानों की दीवारों को तोड़कर पहले इन्हे इनकी मिट्टी से अलग किया जिसमें इनकी आत्मा का निवास था फिर झोपड़ी में रहने वालों को धूल, पानी अंधड़ तूफान का भय से घाँसफूस से बनी झोपड़ी उड़ जाने का डर बताकर आधुनिक मकान दिये। यही नहीं मिट्टी के बने देशी कबेलू के मकान ओर अंदर कमरों की देशी बनावट इनके सुख को हजारगुणा कर इन्हे पर्यावरण से सुरक्षा के कवच उपलब्ध कराती थी वही इनके उपलब्ध  स्व साधन जहा ये अपने मकानों के आसपास प्राकृतिक हवा पानी की व्यवस्था हेतु नीम, पीपल, इमली आदि के पेड़ ये लोग अपने घरों ओर गाँव में लगाते थे से इन्हे वंचित कर इन पेड़ पोधों को कटवाकर प्रकृति से कोसों दूर कर कंक्रीट के भवनों में इन लोगों को गुम कर दिया है। 

                     बड़े-बड़े पूंजीपति या सरकार आज भी अंग्रेजों के समय के अंगेजी खपरेल वाले मकानों में सरकारी ऑफिस बनाए है या उन्हे रेस्ट हाउस, सर्किट हाउस के रूप में साज सज्जा कर इस्तेमाल कर प्रकृति का पूरा आनंद उठा रहे है पर मजे की बात है जिन लोगों के मिट्टी के मकान ओर देशी खपरैल वाले मकानों पर इन्हे गौरब था वे ही इन अँग्रेजी मकानो में ठहरने की सोच भी नहीं सकते फिर यहा रहना उनके लिए सपना भर है। आज सरकार देश के हर गाँव, जंगल, शहर ओर महानगर में झुग्गी झोपड़ी ओर मकानो मे रहने वालो को गरीब मानकर उसे पक्का मकान बनाकर गरीबी से मुक्त कर रहे है जिसमें कई प्रदेशों में इन योजनाओं का नाम ^मुखमंत्री आवास ओर प्रधानमंत्री आवास^ योजना का लाभ देकर यह साबित करना चाहते है की तुम कोई मामूली या आम आदमी नही हो प्रधानमंत्री आवास ओर मुख्यमंत्री आवास में रहने वाले हो, यानि तुम कोई प्रधानमंत्री ओर मुख्यमंत्री से कम नहीं हो ? गरीब पक्का कांक्रीट का भवन पाकर फूला नहीं समाता किन्तु जैसे ही उसमें रहना शुरू करता है तो पता चलता है की वह अन्य सरकारी योजनाओं से वंचित हो गया क्योकि वह अब एक छोटा सा क़ैदख़ानानुमा भवन निर्माण कराकर अमीर हो गया है।

                    भारत कृषि प्रधान देश रहा है, और अगर देश के पूंजीपतिओ की बुरी नीयत इन किसानों के ग्रामीण क्षेत्रों की कृषिभूमि पर पड़ी तो कुछ साल ओर यह देश कृषि प्रधान रह सकेगा वरना शहरी क्षेत्रो के आसपास चारों सीमाओ में खरपतवार की तरह उगने वाली कांक्रीट की बहुमंजिला इमारतों का महाजाल बिछाकर इन पूंजीपतिओ द्वारा पैसा छापने की टकसाल लगाकर भूमियो को हथियाने का सिलसिला नही थमेगा। शहरी विकास प्राधिकरण, नजूल ओर लोकनिर्माण से लेकर नगरपालिकाए, एसडीएम आदि के कार्यालय सारे नियमो-कानूनों को ताक पर रखकर इन्हे अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने में दो घर आगे होते है। शहरी चमक-दमक में धन शक्ति से पूर्ण ग्रामीण परिवार शहर में स्थान बनाकर, शहरीकरणको विकसित कर ग्राम्य जीवन को उपेक्षित भाव रख गांवों से पलायन कर रहे हैं। उन्हें जन्मभूमि कर्मभूमि ग्राम्य जीवन में  ‘गंवारता’ का बोध होने लगा है, यही कारण है कि शहर की कंक्रीट कालोनियों में इनका मन भा गया है ओर इन्हे गाँव के खपरैल मकानों से कोफ्त हो गई है तभी शहर कि संस्कृति में ये लोग अपने को आधुनिक समझने लगे है जो पर्यावरण संतुलन के लिए घातक है।

                    समझने वाली बात है कि सांस्कृतिक रूप से तो जीवन ओर मृत्यु हमारी लोक परम्पराओं, संस्कृति और भारतीय संस्कारों से ही जन्मता है, पलता है और बड़ा होकर भारतीय पहचान को स्थापित करता है। लोगों के रहने, पहनने, खाने-पीने सभी में लोक संस्कृति की पृथक-पृधक सभ्यता रही है, जो उनकी मौलिकता और सभ्य पहचान होती है। देश, भाषा, रूप, स्वरूप, संगीत, साहित्य, खानपान व जीवन की सभी प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय सुविधाओं के साथ सद्‌भाव और सन्मार्ग से जोड़ने का सवाल अब इस बदलाब के बाद खड़ा होने लगा है जिसमे अपनी जमीन से अपनी मातृभूमि से पृथक होने वाली पीढ़ी इस अंधी दौड़ में संस्कारों को दमित करती जा रही है। यही कारण है कि पहले जहा खपरैल मकान को छाने-छाबने कि बात होती थी तब ग्राम के बड़े व्यक्ति भी सिद्धस्थ होने पर मदद के रूप में दिन भर यह काम करते थे ताकि बरसात में इनके काम किए मकान कि मगरी से लेकर नीचे तक कोई पानी का टपका शेष नही रहता था किन्तु अब हमने ऐसे हालात निर्मित कर लिए है जिसके समक्ष मानवीय मूल्य अर्थहीन हो गए है ओर व्यकित का आपसी प्रेम व अपनापन निजी स्वार्थ कि बलि चढ़ गया है तभी बिना मूल्य लिए कोई मदद के लिए आगे नहीं आता है।  

            पर्यावरण के लिए असंतुलन कि बात के परिणाम कोई देखना नहीं चाहता है हा बतौर सजा के भुगत रहा है ओर उसे अपनी मौज मान ली है। जिन्हे कबेलुनुमा कच्चे खपरैल मकानों, टीन की चादरों से घर में आग उगलते आवासों व झोपड़ियों से मुक्त कर देश में सरकारों आम नागरिकों को झुग्गी झोपड़ी ओर खपरैल मकानों से वंचित कर उनके सपने छीन रही है, वही सरकारे पैसा कमाने के लिए, बड़े पूंजीपतिओ को आकर्षित करने के लिए जंगलो में, नदियो किनारे, आदि पर्यटनस्थलो पर प्रकृति कि गोद में पूर्ण हँसती खेलती पवन के अठखेलियों का आनंद लेने के लिए वही खपरैल मकान में चाँदनी रात में ठहरने का लोभ देती है ओर खपरैल मकानों से कमाई कर लोगों के जीवन को सुहाना बनाने कि प्रतिस्पर्धा करती है, अगर सरकार इनकी जगह किसी गाँव में इन खपरैल मकानों में ग्रामीणो के साथ पेइंगगेस्ट के रूप मे योजनाए लाती तो अनेक गाँव जी उठते, अनेक ग्रामीण अपने खपरैल मकानों के सुख को देश दुनिया के बड़े लोगो से सांझा कर रोजगार के पर्याप्त अवसर भी प्राप्त कर सकते थे ओर अपने खपरैल मकानो को सुरक्षित ओर संरक्षित रख सकते थे, पर क्या कीजिएगा वे बेरोजगार है ओर पूंजीपति के रोजगार में इजाफा हुआ है।

           यही कारण है ग्रामों से मजदूरी  रोजगार पाने के लिए शहरों कि ओर पलायन थमने का नाम नही ले रहा है। हर शहर में कोई जयस्त्म्भ, कोई चौक, कोई पुलिया, कोई बाजार अवश्य मिल जाएगा जहा ग्रामीण ही नही अपितु शहरी मजदूर काम के तलाश में सुबह घर से निकलता है ओर उस मजदूर मंडी में अपने को साबित करना होता है वरना लोग इतने चतुर चालक है जो युवा मजदूरों को पहले चुनते है ताकि उनकी ताकत का पूरा शोषण दुगुना काम कराकर प्राप्त कर ले। अधेड़ बूढ़े मजदूरों को काम के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है, आखिर मुख्यमंत्री –प्रधानमंत्री आवास मे रहने की कुछ तो कीमत चुकानी होगी। यही मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री आवास में रहने वाले मजदूर हर गाँव,शहर महानगरों में एक से एक अत्याधुनिक भवनों के विकसित स्वरूप गगन चूमते अट्टालिकाओं एवं एवं आधुनिक शैली के फाइबर के भवन मनुष्य की सुविधाओं के लिये निर्माण करते आ रहे है। मिट्टी से चूना, चूना से सीमेंट, सीमेंट से कंक्रीट और अब लोहा सीमेंट से 50 मंजिला भवन हमारे विकासशील होने के प्रमाण दे रहे हैं। देखा जाये तो सुनहरे भविष्य की मान्यताओं में यह सुविधा आवश्यक भी मानी जाती है, परन्तु आधुनिक संरचनाओं ने हमारे तन-मन-धन को गिरवी रख लिया है और हम पाश्चात्य सभ्यता के ऋणी हो गए हैं। जिसका भुगतान हमें ही नहीं आने वाली पीढ़ी को भी चक्रवर्ती ब्याज के साथ चुकाने को तैयार रहना चाहिए।

    आत्माराम यादव पीव 

    अकेलेपन की दुनिया में

    अकेलेपन की दुनिया में
    आनंद नहीं होता
    अकेलेपन की दुनिया
    बिखर जाती है क्षण भर में ही
    अकेलेपन की दुनिया
    हमें चिंतन का स्वाद देता है
    अकेलेपन की दुनिया
    चिर आनंद देता है
    अकेलेपन की दुनिया में
    स्फूर्ति नहीं होती
    अकेलेपन की दुनिया
    मजबूत नहीं होती
    टिकाऊ नहीं भी होती हैं-
    अकेलेपन की दुनिया
    माँजती है
    हमारे भीतर के संघर्ष
    और संस्कार को ।
    अकेलेपन की दुनिया
    बनाती भी है
    और बिगाडती भी है हमें
    अकेलेपन की दुनिया
    खुले में छोड़ देती है furs
    सांस लेने के लिए हमें
    तैरने के लिए हवाओं में
    और
    विभिन्न तनाव भरे विचारों में
    अकेलेपन की दुनिया
    बार-बार हमें बदलती है हमें
    प्रेरित करती है आगे बढ़ने के लिए
    अकेलेपन की दुनिया
    जूझता सिखाती है !
    अकेलेपन की दुनिया
    शरारत भरी नजरों से
    हमें देखती रहती है
    हमारे काम करने की शक्ति
    और साहसिकता को
    फिर यह हमें
    सरलता से काम करने के लिए
    वह हमें तौलती है रह – रह कर
    हमारे भीतर के
    साहस, प्रयत्न और सौंदर्य को
    अकेलेपन की दुनिया हमें
    अकेले छोड़ देती है
    अपने विचारों के साथ
    जहां हर पल
    मेरे भीतर के विचारों का
    एक रेला लगातार
    आता – जाता रहता है
    और
    मुझे भीतर से हिलाता है
    सागर में हिलोर होने की तरह ।
    और
    हमारी विचारधारा
    और वैचारिक संस्कृति
    और संघर्ष का नूतन अविरल प्रवाह
    और फिर
    इसके आसपास
    और चारों ओर ढूंढ़ रहा होता है
    सृष्टि की असंबलित परंपराएं
    यह सृष्टि जो
    हमारे भीतर फैली हुई रहती है
    एक नए जीवन – सत्य के साथ ।

    • पंडित विनय कुमार

    सैंकड़ों मंदिरों का पुनर्धार कराने वाली महारानी थी अहिल्याबाई होलकर

    अरब देशों से भारत आए आक्रांता शुरू में तो केवल भारत में लूट खसोट करने के उद्देश्य से ही आए थे, क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि भारत सोने की चिड़िया है एवं यहां के नागरिकों के पास स्वर्ण के अपार भंडार मौजूद हैं। परंतु, यहां आकर छोटे छोटे राज्यों में आपसी तालमेल एवं संगठन का अभाव देखकर उनका मन ललचाया और उन्होंने यहीं के राजाओं में आपसी फूट डालकर उन्हें आपस में लड़वाकर अपने राज्य को स्थापित करने का प्रयास प्रारम्भ किया। अन्यथा, आक्रांता तो संख्या में बहुत कम ही थे, उनका साथ दिया भारत के ही छोटे छोटे राज्यों ने। भारत के कुछ राज्यों पर अपनी सत्ता स्थापित करने के बाद तो आक्रांताओं की हिम्मत बढ़ गई और फिर उन्होंने भारत की भोली भाली जनता पर अपना दबाव बनाना शुरू किया कि या तो वे अपना धर्म परिवर्तित कर इस्लाम मतपंथ को अपना लें अथवा मरने के लिए तैयार हो जाएं। कई मुस्लिम राजाओं ने तो हिंदू सनातन संस्कृति पर भी आघात किया और हजारों की संख्या में मठ मंदिरों में तोड़ फोड़ कर इन मठ मंदिरों को भारी नुक्सान पहुंचाया। हिंदू सनातन संस्कृति पर कायम भारतीय जनता, आक्रांताओं के जुल्म, वर्ष 712 ईसवी से लेकर 1750 ईसवी तक, लगभग 1000 वर्षों तक झेलती रही। लाखों मंदिरों के साथ ही, मथुरा, वाराणसी, अयोध्या, सोमनाथ आदि मंदिर, जो हजारों वर्षों से भारतीय जनता की आस्था के केंद्र रहे हैं, इन मंदिरों को भी नहीं छोड़ा गया एवं इन मंदिरों में तोड़फोड़ कर इन मंदिरों पर अथवा इनके पास सटे हुए क्षेत्र में मस्जिद बना दी गई ताकि हिंदू सनातन संस्कृति पर सीधे आघात किया जा सके एवं हिंदू सनातन संस्कृति के अनुयायियों के आत्मबल को तोड़ा जा सके जिससे वे इस्लाम मतपंथ को अपना लें। 

    परंतु, भारत भूमि पर समय समय पर कई महान विभूतियों ने भी जन्म लिया है और अपने सदकार्यों से इस पावन धरा को पवित्र किया है। ऐसी ही एक महान विभूति थीं अहिल्याबाई होलकर, जिन्होंने आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए एवं नष्ट किए गए मंदिरों के उद्धार का कार्य बहुत बड़े स्तर पर किया था। अहिल्याबाई होलकर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड़ स्थित चौंढी गांव में 31 मई 1725 को हुआ था। उनके पिता का नाम मानकोजी शिंदे था, जो मराठा साम्राज्य में पाटिल के पद पर कार्यरत थे। अहिल्याबाई का विवाह मालवा में होलकर राज्य के संस्थापक मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। वर्ष 1745 में अहिल्याबाई के बेटे मालेराव का जन्म हुआ। इसके करीब 3 साल बाद बेटी मुक्ताबाई ने जन्म लिया। रानी अहिल्याबाई का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनकी शादी के कुछ वर्ष बाद ही 1754 में उनके पति खांडेराव का भरतपुर (राजस्थान) के समीप कुम्हेर में युद्ध के दौरान निधन हो गया। वर्ष 1766 में ससुर मल्हारराव भी चल बसे। इसी बीच रानी ने अपने एकमात्र बेटे मालेराव को भी खो दिया। अंततः अहिल्याबाई को राज्य का शासन अपने हाथों में लेना पड़ा। अपनों को खोने और शुरुआती जीवन के संघर्ष के बाद भी रानी ने बड़ी कुशलता से राजकाज संभाल लिया। कुशल कूटनीति के दम पर उन्होंने न सिर्फ विरोधियों को पस्त किया बल्कि जीवनपर्यत्न सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में जुटी रहीं।

    अहिल्याबाई ने देशभर में कई प्रसिद्ध तीर्थस्थलों पर मंदिरों, घाटों, कुओं और बावड़ियों का निर्माण कराया। साथ ही, उन्होंने सडकों का निर्माण करवाया, अन्न क्षेत्र खुलवाये, प्याऊ बनवाये और वैदिक शास्त्रों के चिन्तन-मनन व प्रवचन के लिए मन्दिरों में विद्वानों की नियुक्ति भी की। रानी अहिल्याबाई ने बड़ी संख्या में धार्मिक स्थलों के निर्माण कराए। आपने सोमनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, जिसे 1024 में गजनी के महमूद ने नष्ट कर दिया था। साथ ही सोमनाथ मंदिर के मुख्य मंदिर के आस-पास सिंहद्वार और दालानों का निर्माण करवाया। अहिल्याबाई ने हरिद्वार स्थित कुशावर्त घाट का जीर्णोंधार कराकर उसे पक्के घाट में परिवर्तित कराया। उन्होंने इसी स्थान के समीप दत्तात्रेय भगवान का मंदिर भी स्थापित कराया। पिंडदान के लिए भी एक उचित स्थान का निर्माण करवाया। वाराणसी में सुप्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट का निर्माण करवाया। राजघाट और अस्सी संगम के मध्य विश्वनाथ जी का सुनहरा मंदिर है। यह मंदिर 51 फुट ऊंचा और पत्थर का बना हुआ है। मंदिर के पश्चिम में गुंबजदार जगमोहन और इसके पश्चिम में दंडपाणीश्वर का पूर्व मुखी शिखरदार मंदिर है। इन मंदिरों का निर्माण अहिल्याबाई ने ही करवाया था। वाराणसी में ही अहिल्याबाई होल्कर ने अहिल्याबाई घाट तथा उसके समीप एक बड़ा महल बनवाया। महान संत रामानन्द के घाट के समीप उन्होंने दीपहजारा स्तंभ बनवाया। उन्होंने बहुत से कच्चे घाटों का जीर्णोद्धार कराया, जिसमें से शीतलाघाट प्रमुख है। इस प्राचीन नगर में महारानी ने हनुमान जी के भी एक मंदिर का निर्माण करवाया। काशी के समीप ही तुलसीघाट के नजदीक लोलार्ककुंड के चारों ओर कीमती पत्थरों से जीर्णोद्धार करवाया। इस कुंड का उल्लेख महाभारत और स्कन्दपुराण में भी मिलता हैं।

    इसी प्रकार बद्रीनाथ और केदारनाथ में भी धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। सन 1818 में कैप्टन स्टुअर्ट नाम का एक व्यक्ति हिमालय की यात्रा पर गया। वहां केदारनाथ के मार्ग पर तीन हजार फुट की ऊंचाई पर अहिल्याबाई द्वारा निर्मित एक पक्की धर्मशाला उसने देखी थी।  बद्रीनाथ में तीर्थयात्रियों और साधुओं के लिए सदावर्त यानी हमेशा अन्न बांटने का व्रत लिया था। हिंदू धर्म में गंगाजी का व गंगाजल का बड़ा महत्व है। पूरे देश में स्थापित तीर्थस्थान भारत की एकात्मकता व राष्ट्रीयता के परिचायक हैं। भारत के तीर्थों में गंगाजल पहुंचाने की श्रेष्ठ व्यवस्था द्वारा अहिल्याबाई ने धार्मिकता के साथ-साथ राष्ट्रीय एकात्मकता की प्राचीन परंपरा को नवजीवन दिया था।

    अयोध्या, उज्जैन और नासिक में भगवान राम के मंदिर का निर्माण किया। उज्जैन में उन्होंने चिंतामणि गणपति के मंदिर का भी निर्माण करवाया। एलोरा, महाराष्ट्र में वर्ष 1780 के आस-पास घृणेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। अहिल्याबाई को महेश्वर बहुत प्रिय था। उन्होंने यहां कई प्राचीन मंदिरों, घाटों आदि का जीर्णोद्धार कराया। इसके अलावा, कई नये मंदिर, घाट व मकान बनवाए। उन्होंने महेश्वर में अक्षय तृतीया के शुभ दिन घाट पर भगवान परशुराम का मंदिर बनवाया। जगन्नाथपुरी मंदिर को दान और आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम सहित महाराष्ट्र में परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग का भी कायाकल्प करवाया। 

    आपके शासनकाल में ग्रीष्म ऋतु में कई स्थानों पर प्याऊ का प्रबंध होता था व ठंड में गरीबों को कंबल बांटे जाते थे। इन सारे कार्यो के लिए कई कर्मचारी नियुक्त थे। आपकी सैन्य प्रतिभा के अनेक प्रमाण अभिलेखों में उपलब्ध हैं। उनकी सफल कूटनीति का साक्ष्य यह है कि विशाल सैन्य बल से सज्ज आक्रमण की नीयत से आए राघोबा को उन्होंने अकेले पालकी में बैठकर उनसे मिलने आने के लिए उसे विवश कर दिया था। डाकुओं और भीलों को उन्होंने समाज की मुख्य धारा में लाने का यत्न किया तथा समाज के उपेक्षित लोगों की सेवा को उन्होंने ईश्वर की सेवा माना। उनकी व्यावसायिक दूरदृष्टि का उदाहरण महेश्वर का वह वस्त्रोद्योग है जहां आज भी सैकड़ों बुनकरों को आजीविका मिलती है तथा यहां की साड़ियां विश्वप्रसिद्ध हैं। वे अद्भुत दृष्टि सम्पन्न विदुषी थीं।

    अहिल्याबाई होलकर परम शिव भक्त थी। उनकी राजाज्ञाओं पर ‘श्री शंकर आज्ञा’ लिखा रहता था। श्री काशीनाथ त्रिवेदी जी कहते है कि “उनका [अहिल्याबाई] मत था कि सत्ता मेरी नहीं, सम्पत्ति भी मेरी नहीं जो कुछ है भगवान का है और उसके प्रतिनिधि स्वरूप समाज का है।“ इस प्रकार उन्होंने समाज को भगवान का प्रतिनिधि माना और उसी को अपनी समूची सम्पदा सौंप दी। वह अपने समय में ही इतनी श्रद्धास्पद बनीं कि समाज ने उन्हें अवतार मान लिया। 8 मार्च 1787 के ‘बंगाल गजट’ ने यह लिखा कि देवी अहिल्या की मूर्ति भी सर्वसामान्य द्वारा देवी रूप से प्रतिष्ठित व पूजित की जाएगी।

    महारानी अहिल्याबाई की पहचान एक विनम्र एवं उदार शासक के रुप में थी। उनके ह्रदय में जरूरमदों, गरीबों और असहाय व्यक्ति के लिए दया और परोपकार की भावना भरी हुई थी। उन्होंने समाज सेवा के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था। अहिल्याबाई हमेशा अपनी प्रजा और गरीबों की भलाई के बारे में सोचती रहती थी, इसके साथ ही वे गरीबों और निर्धनों की संभव मद्द के लिए हमेशा तत्पर रहती थी। उन्होंने समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति पर भी खासा काम किया और उनके लिए उस वक्त बनाए गए कानून में बदलाव भी किया था। अहिल्याबाई के मराठा प्रांत का शासन संभालने से पहले यह कानून था कि, अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसका पुत्र न हो, तो उसकी पूरी संपत्ति सरकारी खजाना या फिर राजकोष में जमा कर दी जाती थी, लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून को बदलकर विधवा महिला को अपनी पति की संपत्ति लेने का हकदार बनाया। इसके अलावा उन्होंने महिला शिक्षा पर भी खासा जोर दिया। अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलने के बाद जिस तरह महारानी अहिल्याबाई ने अपनी अदम्य नारी शक्ति का इस्तेमाल किया था, वो काफी प्रशंसनीय है। अहिल्याबाई कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। अहिल्यादेवी ने 13 अगस्त 1795 को अपनी अंतिम सांस ली। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने अपने कर्मों से खुद को अमर बना लिया। जिस तरह से वह सभी तरह की कठिनाइयों से गुजरीं, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। 

    प्रहलाद सबनानी

    होली भजन

    (तर्ज- होली खेले रघुवीरा)

    होली खेलै गिरधारी (बनवारी) बृज में, (होली खेलै गिरधारी-2)
    होली खेले गिरधारी (बनवारी) बृज में……….

    बरसाने की गोपियाँ (सखियाँ) सारी, भर-भर ये मारे पिचकारी
    और नाचै दै दै तारी, होली खेलै…………

    सब ग्वालो का टोला लायौ, ऐसौ यानै रंगु बरसायौ
    हुरदंग मचरहयो भारी, होली खेलै………

    राधाजू ने युक्ति विचारी, घेर लयौ है श्याम बिहारी
    वाकी सूरत दई बिगारी, होली खेलै……..

    नन्दों भईया अरज लगावै, माखन मिश्री को भोग लगावे
    दर्शन दो बनवारी, होली खेलै………..

    अस्त्र के रूप में लात का चिंतन !

    आत्माराम यादव पीव

           आज लात मारना आम बात हो गई है ओर लात का प्रयोग एक अस्त्र की तरह हो रहा है ओर चारों युगों कि बात कि जाए तो सबसे पहले भृगु जी द्वारा विष्णु की छाती पर लात मारने का प्रसंग हो या लंकाधिपति रावण द्वारा अपने भाई विभीषण को लात मारने का, ये सभी युगांतकारी अस्त्र के रूप में लात का प्रयोग करने में अग्रणी रहे है। धर्म हमारे जीवन का अविच्छिन्न अंग है ओर हम सभी धर्म के साथ ही पैदा होते है, धर्म को जीते है ओर धर्म के साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते है। धर्म के बिना सभी का जीवन अधूरा तथा संकटग्रस्त है अगर धर्म को हमारे जीवन से पृथक कर दिया जाय तो हम मनुष्य से ओर मनुष्यता से गिर जाएँगे फिर पशु आदि प्राणियों में ओर हममे कोई भेद नहीं रहेगा। मनुष्य जब पैदा होता है उस समय अन्य प्राणियों की तरह प्राकृत व असंस्कृत रूप  में ही पैदा होता है। फिर उस में संस्कार किये जाते हैं तब वह संस्कारवान बनता है। यह सरकार मनुष्य के दोषों को दूर कर उसे गुणवान बनाता है। परंतु आज का गुणवान आधुनिक समाज मानवीय संवेदनाओं को कुचलकर आधुनिक समय में  मानवीय भावनात्मक की सीमाओं का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है वह शर्मनाक है।

     पूर्व युगों की कुछ घटनाओं ओर आज की घटनाओ में लात मारने के प्रसंग पर बात करना चाहूँगा जिसमें पाश्चात संस्कृति की होड ने भारत के प्रत्येक घर परिवार ओर खूनी रिश्ते के भाइयो, माता पिता ओर बहनो के बीच परिवार के ही सदस्य एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए संबंधो की कभी न खत्म होने वाली दीवार खड़ी कर गधे के स्वभाव की तरह लात मार खून के नाते तोड़ने पर आमादा दिखाई देंगे या यह सब कुछ कर चुके होंगे। घर में एक बेटा हो या पाँच या अधिक सभी नैतिक मूल्यों के ह्रास के कारण घर के बुजुर्गों का अपमान कर रहे है ओर समाज मुकदृष्टा बना है। होगा किन्तु जब आज प्रत्येक घर, परिवार काम, क्रोध ओर लोभ के वशीभूत अपनी अपनी मर्यादाए लांघ चुका हो ओर छोटे भाई ओर उसका परिवार बड़े भाई के चरणस्पर्श ओर आशीर्वाद प्राप्त करने को भूलकर लात मारने लग जाये तो हमारा यह धर्म मृत ही माना जाएगा भले दुनिया को ढिखावे के लिए लात मारने वाले भाई बगुला भगत बन सुबह शाम घंटो मंदिरो में आरती भजन करे, तीर्थों की यात्रा कर अपने सनातनी होने का प्रमाण दे ओर घर में माता से या पिता या अपने छोटे भाई बहन या बड़ों से बोलचाल बंद करे तो उनका यह सारा आयोजन व्यर्थ ठकोसला ही तो होगा जो कोई पुण्यदायी नहीं बनने वाला।   जनता इस समय धर्मविमुख होकर अपने को धर्मसंगत क्यों मानती है इन कारणों कि गवेषणा की जाय तो यह सत्य प्रतीत होगा कि आज मनुष्य समाज प्रत्येक आचरण को भीड़ ओर दिखावे का अंग मानकर आँख बंद कर विश्वास कर लेना ज्यादा उचित समझता  है किन्तु किसी यथार्थ तथ्य वस्तु को विज्ञान व तर्क की कसौटी पर कस कर देखने में अब उसकी रुचि नहीं रही है।

     हम लात कि बात कर रहे है ओर मैंने रामचरित मानस में कुछ प्रसंग पढ़े है  जो मेरी चेतना में भ्रमण करते  है । पहला प्रसंग कि जिस समय भरत शत्रुघन अपने मामा के घर से अयोध्या आकार अपना सर्वस्य नष्ट होना मानकर दुखित ओर कैकई पर नाराज है तब उसकी दासी मंथरा सजधज कर आती है तब पहली बार रघुवंश कि मर्यादा का उल्लंघन देखने को मिला जब शत्रुघन ने मंथरा के कूबड़ में लात मारी देखे – हुमगि लात तकि कूबर मारा। परि मुँह भर महि करत पुकारा ॥ भावार्थ:-मंथरा को (सजी) देखकर शत्रुघ्नजी क्रोध में भर गए। मानो जलती हुई आग को घी की आहुति मिल गई हो। उन्होंने जोर से तककर कूबड़ पर एक लात जमा दी। वह चिल्लाती हुई मुँह के बल जमीन पर गिर पड़ी॥2॥ शत्रुघन के द्वारा लात मारने ओर भरत के द्वारा लात मारने के प्रसंग धर्म आध्यात्म के गगनचुंभी प्रयोग है जिसमे पात्रों का चरित्र भी प्रगट होता है ओर जीवन  आदर्श, धर्म के दर्शन और दृष्टिकोण के बदलने में लात का अनुपम सम्पर्क और सहयोग रहा है। तुलसीदासजी ने भी चित्रकूट में राम को राज्याभिषेक के लिए मनाने आए भरत के अनमोल शब्द को युगांतकारी अस्त्र लात का स्वरूप दे दिया जहां सभी ने लात अस्त्र को साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी- छत्रि जाति रघुकुल जनमु राम अनुग जगु जान। लातहुँ मारें चढ़ति सिर नीच को धूरि समान॥229॥ नगे पाँव चलने वाल भरत कि लात से धरा कि धूल कण उड़कर ऊपर नीचे हो रहे हो तब निश्चित ही यहा शब्दों में उच्च भावों के लात ओर धूल को गौरवान्वित किया है, इस तरह कि धूल पर पड़ने वाली लात किसे धन्य नहीं करेगी। जबकि इसके भाव में भरत के सद्गुणों कि खुसबु महक रही है जो कहते है कि मैं क्षत्रिय जाति, रघुकुल में जन्म और फिर मैं श्री रामजी (आप) का अनुगामी (सेवक) हूँ, यह जगत्‌ जानता है। (फिर भला कैसे सहा जाए?) धूल के समान नीच कौन है, परन्तु वह भी लात मारने पर सिर ही चढ़ती है॥

           लात किसी कि भी हो सकती है, आपकी या मेरी। प्रसिद्ध महर्षि ओर ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु जी  ने छीर सागर में शेषनाग कि सैया पर विश्राम कर रहे तीनों लोको के स्वामी भगवान श्रीहरि विष्णु को जो लात मारी उस समय उनकी पत्नी जगत माता महादेवी लक्ष्मी उनके पद चाप रही थी, किन्तु भृगु जी ने किसी मर्यादा को न मानकर अमर्यादित कारी किया तब विष्णु जी नाराज नही हुये ओर सहज मुस्कुराके लात मारने वाले ऋषि से प्रश्न कि मुनिदेव आपके चरणों में चोट तो नहीं आई, मेरी कठोर छाती के कारण चोट लग सकती है।  विष्णु जी कि छाती पर महादेवी लक्ष्मी कि मौजूदगी में मारी लात कि परिकल्पना आप विष्णु कि जगह खुद को रखकर कर सकते है। संभवतया आप रहे होते हो लात मारने वाले के खानदान का नाश किए बिना आप चैन से नहीं बैठ सकते थे। पर आज भी विष्णु जी कि छाती पर लात के प्रहार के बाद किसने क्या खोया, क्या पाया पता नही चल सका किंतु आश्चर्य तो देखिये कि रहीम जी कहते है – का रहीम हरि को गयौ, जो भृगु मारी लात ? अर्थात् जो भृगु ने लात मारी उससे हरि का क्या गया आज तक पता नहीं चला। लात खुद मारने में शामिल होने से कर्ता है कर्म करने वाली क्रिया करने वाली, सारे विशेषण लात के लिए है।  अगर शरीर में आत्मा कि तरह लात कि आत्मा होती तो क्या लात कि आत्मा यह सब करके खुद को क्षमा कर सकती थी, शायद कदापि नहीं। लात का प्रयोग हमारी विचारधारा में क्रान्ति ला सकता है परंतु लात का प्रयोग कभी भी सुंदरतम नही हो सकता है।

           रामचरित मानस में तुलसी ने लात से मोक्ष प्राप्ति का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत कर ऋषि गौतम के श्राप से पत्थर कि शिला बन चुकी अहिल्या का प्रसंग रखा है जिसमे कहा जाता है कि स्वयं श्री राम को जब अहिल्या के तारने की समस्या का सामना करना पड़ा तो उन्होंने इसी माध्यम का अर्थात लात का आश्रय ग्रहण किया।चेतनापुंज लात के स्पर्श  होते ही जड़ अहिल्या हिलने डोलने, बतलाने वाली चेतन अहिल्या बन गई। पत्थर बनी जड़ता मानवता में परिवर्तित हो गई। एक अन्य मामला लंकाधिपति रावण का है जिसने अपने छोटे भाई विभीषण को देशद्रोही होने का लांछन लगाकर देश निकाला का दंड दिया किन्तु मामले कि सुनवाई किए बिना अपनी लात मारके भगा दिया जिसकी पुष्टि  तुलसीदास करते हुये लिखते है -‘तात-लात रावण मोहि मारा। यहा मजेदार प्रसंग अंगद का भी है जिसने प्रभु श्री राम की आन रखने के लिए रावण को चुनोती दी की वे उसका पैर जमी से उठाने में सफल हो जाते है तो वह सीता को हार जाएगा। गोस्वामी जी लिखते है-तेहि अंगद कह लात उठाई ,गहि पद पटको भूमि भवाई। ओर उनके पैर को कोई भी महावीर ठिगा न सका। लात-जिसे पैर, पाँव,  पद, चरण तथा टाँग आदि अनेक रूपों से यथा स्थान जरूरत अनुसार पुकारा गया है, न सिर्फ हमारी देह का ही बल्कि हमारी संस्कृति का ही अविच्छिन्न अंग रहा है। जरूरत है लातों को पहचाने ओर लातों की उपेक्षा न कर उसके प्रगतिशीलता के गुण को स्वीकारे जो लातों के द्वारा ही अनिवर्चनीय रूप से प्रतिनिधित्व करके लात ही प्रगति ओर जीवन का केंद्र है, अगर लात न हो तो यह जद प्राणी बनकर रह जाये।

            अगर आपको लात मारने, लात चलाने जैसे गुण मे महारथ हासिल है ओर आप अपनी लातों का प्रयोग अपने घर परिवार के छोटे बड़े, बीमार-कमजोर बुजुर्ग माता पिता भाई, बहन आदि रिशतेदारों के हकों पर, बेईमानी से डाँका डाल अपनी लातों की सत्ता चलाना चाहते है तो कीजिएगा किन्तु परिणामो के लिए तैयार भी रहिएगा। ध्यान रखिए -लातों के प्रयोग का लोभ तो बड़े-बड़े साधकों द्वारा भी संवरण नहीं किया जा सका है किन्तु अगर आप घर परिवार या सम्मिलित परिवार के बुजुर्ग की खुशियो को छिनकर उन्हे  बन्धनों में जकड़े हुये है तो अपने इन प्रयोगों का प्रभाव निश्चित रूप से अपनी वृद्धावस्था में आपके सामने आने वाला है। हा अगर अपनी आत्मा में निखार लाकर लात के अनुचित संकेतों का परित्याग कर देंगे तो आपकी चेतना आपको मानवीय प्रकाश से भर देगी। इस प्रकार की लात फिर लात न रहेगी वह चरण बन जाएगी, पूजनीय चरण ,निर्णय आपको करना है की आप क्या बनना चाहते है।

    क्यों सुने समाज के ताने?

    श्रुति
    कन्यालीकोट, उत्तराखंड

    क्यों सुने समाज के ताने?
    लड़ झगड़ कर बढ़ते आगे,
    जहां लड़के भी कुछ न पाएं,
    लड़कियां बढ़ती जाएं आगे,
    शिक्षा है उम्मीद की चाह,
    जिसने दिखाई एक नई राह,
    काम न आते घर के ताने,
    शिक्षा बने अनमोल तराने,


    लड़कों से कम मत आंको,
    लड़की की महत्ता को जानो,
    संघर्ष कर पढ़ाया खुद को,
    जीवन में आगे बढ़ाया खुद को,
    अंत में दुनिया उसकी लोहा माने,फिर क्यों सुने वह समाज के ताने?

    माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग 

    (मातृ दिवस 12 मई 2024 पर विशेष आलेख)

    आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दर्शाता है, वह माँ ही होती है पीड़ा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मां के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।

    ‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।  रामायण में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है।

    दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है।

    लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं। 

    वकालत की शुरुआत ओर वकील की पैदाइश कब हुई ? 

                            आत्माराम यादव पीव

            जगत के सभी धर्म शास्त्र, पुराण ओर वेद उपनिषद आदि में कही भी लेशमात्र अधिवक्ता,वकील, एडवोकट, बैरिस्टरनाम नाम के किसी भी प्राणी का उल्लेख नहीं है। देववाणी संस्कृत, देवनागरी लिपि हिन्दी व उनकी वर्णमाला के स्वरों-व्यंजनों ओर व्याकरण में भी इस विचित्र प्राणी का उल्लेख नहीं है। अपने पूर्व जन्म के कुकर्मों से ओर आप सभी के दुर्भाग्य से मैं पत्रकार लेखक बन बैठा हूँ, इसलिए पत्रकार लेखक कि परंपरा का निर्वाह करते हुये में तांकाझांकी कर गड़े हुए मुर्दे ही नहीं उखड़ता हूँ बल्कि जिस सत्य को रामनाम सत्य कहकर आप अग्नि के हवाले कर आए हो उसकी राख़ का सूक्ष्म निरीक्षण तब करता हूँ जब कपालक्रिया के बाद आप इतमीनान से घर जा चुके होते हो। आप मुझे निकृष्ट योनि का मान सकते है, मानिए पर मैं आप सभी कि जीवन के सूक्ष्मतम संदर्भ को पकड़ने हेतु अपने सूत्रों का जाल बिछाना तब तक बंद नही करूंगा जब तक में उसके परिणाम तक न पहुच जाऊ, अगर मेरे सामने समाज के काले कोटधारी अधिवक्ता के भारत जैसे देश मे प्रथमबार अस्तित्व में आने का पता लगाना है कि यहा वकील कब पैदा हुए तो मैं यह पता करूंगा जरूर भले ही देशभर के सारे फुयुज से लेकर 444 वोल्टेज रखने वाले ये अधिवक्ता-वकील मिलकर मेरे दिमाग की बत्ती गुल करने पर आमादा हो जाये मैं सब सहने को तैयार हूँ।

                सतयुग, त्रेता  ओर द्वापर युग कि आयु लाखों साल है यानि इन तीनों युगो में लाखों साल तक कई चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनका एकछत्र राज्य पूरी पृथ्वी पर रहा है किन्तु उनके राजदरवारों में न्यायालयों में कभी कोई अधिवक्ता, वकील, या एडवोकट के पैरवी करने का एक भी उदाहरण नही है। रामराज में एक भी व्यक्ति न तो अन्याय का शिकार हुआ ओर न ही प्रताड़ित हुआ। परिणामस्वरूप राम कि अदालत में अयोध्या राज्य के एक भी व्यक्ति का मामला दर्ज नही हुआ। रघुकुल के जितने राजा हुए राम तक उनके आगे पीछे सभी के राज दरबार या न्यायालय में न तो कमवक्ता न ही अधिकवक्ता कि जरूरत पडी जिससे स्पष्ट है कि इन युगों में अधिवक्ता नही थे। हा वाल्मीक जी ने रामराज में उनकी अदालत में दो मामले आने का जिक्र किया है किन्तु वह मामला प्रजा का नहीं बल्कि प्रजा से दुखी एक कुत्ते का रहा है वही एक गीध ओर कबूतर का रहा है, जिनकी भाषा किसी अधिवक्ता को पता नहीं थी जिसमें राम ने उनकी भाषा को समझा ओर सुनकर निर्णय दिया जो आज कि न्यायपालिका के लिए संभव नही। इन युगों में सम्राटों , चक्रवर्ती सम्राटों ओर छुटपुट राजाओं के राजे रजवाडों के दरबार में वादी प्रतिवादी के वादानुवाद के साक्षों में आज की तरह तर्क कुतर्क कि जलेबी ओर चांसनी का रस बनाने बिगाड़ने वाले अधिवक्ताओं का कोई सरोकार नही था।

           देश में अंग्रेजों के आने के पहले तक भारत देश की आत्मा के भीतर शिशु रूप में यह विचित्र बाहुवली प्राणी जिसे बाद में अधिवक्ता वकील एडवोकट आदि संबोधित किया गया है कुलबुला रहा था। अंग्रेज़ आए तो पहले अँग्रेजी लाये, अँग्रेजी में यहा के राजाओं के सामने प्रार्थना लाये, राजाओं से प्रार्थना कर व्यापार की अनुमति ली ओर राजाओ को आपस में लड़ाकर खुद सरकार बन गए। देश हमारा, धरती हमारी पर राज्यों की कमजोरी से हम अंग्रेजों के गुलाम हो गए। गुलामों पर अँग्रेजी कानून थोप दिया गया। कानून की पैरवी एडवोकट कर सकता है, पीड़ितों का पक्ष रख सकता है, गुलाम देश के अनेक लोग बैरिस्टर यानि एडवोकट की पढ़ाई करने इंगलेंड व अन्य देश  गए , डिग्री ली ओर देश में अंगेजी में बैरिस्टर, उर्दू में वकील ओर हिन्दी में अधिवक्ता का जन्म हुआ। गुलाम देश में मी लार्ड  का कक्ष तैयार हो गया, कोर्टरूम तैयार हो गया मी लार्ड ऊंचे आसान पर बैरिस्टर उसके नीचे खड़े, दोनों ओर कटघरे में एक ओर फरियादी, गवाह, एक ओर आरोपी तथा मी लार्ड की टीम कक्ष में सुसज्जित हो गई। अँग्रेजी शासन में वकालत एक पेशे के रूप में स्वच्छंद व्यवसाय के रूप मे विकसित हुआ ओर अपनी बुद्धि के दम पर जीत हासिल कर उन्नति करने वालों की एक नई पौध तैयार होती गई जो अब भी इसी परंपरा पर चल रही है। ये लोग असल में कोई भी मुद्दा हो, किसी भी प्रकार का जटिल मामला हो, उसमे उलझाने ओर सुलझाने में चाणक्य के समान माने गए है।

           मनुष्य चार पैरों वाला पशु है जिसने पीछे के दो पैरो से चलना सीख लिया है ओर आगे के दो पैरों को वह हाथ कहने लगा है यह ज्ञान मुझे एक वकील से मिला जिससे मैं बिलकुल भी क्न्फ़ुज नहीं हुआ ओर अपने मस्तिष्क को आदेश दिया कि इस तार्किक विषमताओ में समता की भी विविधताओं से ओत प्रोत सिर्फ एक वकील ही हो सकता है किसी भी मनोदशा मे हो उसकी बुद्धि से नहीं टकराया जा सकता है। देश की प्रथम महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी का जिक्र करना चाहूँगा जिसने 1899 में मुंबई ओर इलाहाबाद से एलएलबी प्ररीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु फारसी समुदाय से आने वाली इस प्रथम महिला वकील के साथ भेदभाव कर बैरिस्टर की मान्यता नही दी गई। उल्टे गुजरात के पंचमहल अदालत में पैरवी करने पहुंची तब झूले पर बैठे वहाँ के सनकी राजा ने घोषणा की कि उसने केस जीत लिया है, इस आधार पर कि उसका कुत्ता उस महिला वकील को पसंद करता है. यह सब अँग्रेजी हुकूमत के गुलाम राजा के कान उमेढ़्कर करना देश की सारी नारी जाति का अपमान था किन्तु समूचे देश की महिलाए इस अपमान को पी गई । फारसी समुदाय न के बराबर था इसलिए इस अन्याय को दमित कर दिया गया।

    सच को झूठ ओर झूठ को सच सावित कर विजयश्री हासिल करने वाले बेबाकी अधिक,अनुचित  बोलने वाले तथा शब्दों को नाप तौलकर मतलब के ही सार्थक कम शब्दों को बोलने वाले शब्दस्पेशलिष्ट वकीलों की खोज खबर ली जाए तब यह मामला शर्मनाक रहा था जिसका पालन नही किए जाने से देश की प्रथम अधिवक्ता को प्रतिबंध के साथ अपमान झेलना पड़ा, परिणामस्वरूप उन्होने अपने कर्तव्य का पालन करते हुये 600 से अधिक महिलाओं को न्याय दिलाकर उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी ओर बाल विवाह और सती प्रथा के उन्मूलन की भी इकलौती वकील के रूप में ख्याति पाई। यह अलग बात थी की उन्हे देश में सदैव सम्मान से वंचित होना पड़ता था तब वे विदेश में बस गई ओर वही वकालत करते हुये और 6 जुलाई 1954 को मैनर हाउस के नॉर्थम्बरलैंड हाउस में उनकी मृत्यु हो गई।

    आत्माराम यादव पीव

    भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024  में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे  60 प्रतिशत का योगदान

    वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है। 

    भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना बन रही है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं। 

    आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार तेज वृद्धि आंकी जा रही है, जिससे भारत के वित्तीय संसाधनों पर दबाव कम हो रहा है और भारत पूंजीगत खर्चों के साथ ही गरीब वर्ग के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के लिए वित्त की व्यवस्था आसानी से कर पा रहा है। केंद्र सरकार के बजट में न केवल वित्तीय घाटा कम हो रहा है बल्कि आने वाले समय में केंद्र सरकार को अपने सामान्य खर्च चलाने के लिए ऋण लेने की आवश्यकता भी कम पड़ने लगेगी। दूसरे, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत लगातार स्थिर बनी हुई है, जिससे विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास भी बढ़ रहा है और भारत में विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ता जा रहा है। तीसरे, भारत में मुद्रा स्फीति पर भी तुलनात्मक रूप से नियंत्रण पाने में सफलता मिली है। अन्य देश अभी भी मुद्रा स्फीति की समस्या से जूझ रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र में उक्त कारकों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावनाएं बनी रहेंगी। इसके ठीक विपरीत, जापान एवं जर्मनी की आर्थिक विकास दर या तो मंदी के दौर से गुजर रहीं हैं अथवा विकास दर बहुत कम अर्थात एक-दो प्रतिशत से भी कम बनी हुई है।     

    भारत के स्टील उद्योग, सिमेंट उद्योग एवं ऑटोमोबाइल निर्माण के क्षेत्र ने 10 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल कर ली है। डिजिटल आधारभूत ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में तो भारत विश्व गुरु बन गया है और इससे आज भारत में 13400 करोड़ से अधिक के डिजिटल व्यवहार हो रहे हैं जो पूरे विश्व के डिजिटल व्यवहारों का 46 प्रतिशत है। जन-धन योजना के अंतर्गत खोले गए 50 करोड़ से अधिक बैंक खातों में आज 2.32 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा हो चुकी है, जो देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे रही है। वर्ष 2013-14 से वर्ष 2022-23 के दौरान मुद्रा स्फीति की औसत दर 5 प्रतिशत की रही है जो वर्ष 2003-04 से वर्ष 2013-14 के दौरान औसत 8.2 प्रतिशत की रही थी। मुद्रा स्फीति कम रहने का सीधा लाभ देश के गरीब वर्ग को मिलता है। 

    साथ ही, अब तो आर्थिक विकास के साथ ही भारत में रोजगार के भी पर्याप्त अवसर निर्मित होने लगे हैं। स्कोच नामक संस्थान द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि भारत में वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के दौरान 51.4 करोड़ व्यक्ति वर्ष के नए रोजगार निर्मित हुए हैं। इसमें केंद्र सरकार द्वारा किये गए सीधे प्रयासों के चलते 19.79 करोड़ व्यक्ति वर्ष के रोजगार के अवसर भी शामिल हैं। शेष 31.61 करोड़ व्यक्ति वर्ष रोजगार के अवसर अपने व्यवसाय प्रारम्भ करने के उद्देश्य से बैंकों से लिए गए ऋण के चलते निर्मित हुए हैं। स्कोच नामक संस्थान द्वारा उक्त प्रतिवेदन 80 संस्थानों पर की गई रिसर्च (केस स्टडी) के आधार पर जारी किया गया है। सूक्ष्म एवं लघु स्तर के ऋण लेने वाले व्यक्तियों ने रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित किए हैं। इस प्रतिवेदन के अनुसार औसतन प्रत्येक सूक्ष्म संस्थान 6.6 रोजगार के नए अवसर निर्मित करता है।  

    अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक के बाद अब मूडीज ने भी भारत में आर्थिक विकास के संदर्भ में बताया है कि आने वाले कुछ वर्षों तक भारत की आर्थिक विकास दर विश्व में सबसे अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावना बनी रहेगी। इस प्रकार, एक के बाद एक विभिन्न वैश्विक आर्थिक संस्थान भारत में आर्थिक विकास दर के मामले में अपने अनुमानों को लगातार सुधारते/बढ़ाते जा रहे हैं। इस प्रकार, आगे आने वाले समय में भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान भी लगातार बढ़ता जाएगा और सम्भव है कि कालचक्र में ऐसा परिवर्तन हो कि भारत एक बार पुनः वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक योगदान को 32 प्रतिशत के स्तर तक वापिस ले जाने में सफल हो।    

    प्रहलाद सबनानी 

    यादगार होगी स्मृति ईरानी की जीत!

    शिव शरण त्रिपाठी
     कभी कांग्रेस की खानदानी सीट मानी जाने वाली अमेठी से 2019 में पहले भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हारना और अब 2024 में राहुल गांधी का पलायन करना नि:संदेह यह बताने को काफ ी है कि राहुल गांधी स्मृति ईरानी से टक्कर लेने का साहस नहीं दिखा सके। अलवक्त्ता कांग्रेस ने राहुल गांधी की बजाय अर्से तक गांधी परिवार के अमेठी, रायबरेली में चुनाव प्रबन्धक एवं वफ ादार सिपहसालार रहे किशोरी लाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारकर प्रत्यक्ष: यह जताने की कोशिश की हैं कि गांधी परिवार अमेठी से अपने पुराने रिश्ते को बरकरार रखना चाहता है।
    कांग्रेस के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि चूंकि राहुल गांधी पड़ोस की गांधी परिवार की खानदानी सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं सो किशोरी लाल शर्मा को इसका लाभ मिलना तय है। यही नहीं चूंकि उत्तर प्रदेश में इंडि गठबंधन के तहत रायबरेली व अमेठी सीट कांग्रेस के खाते में गई अतएवं दोनो ही सीटों पर गठबंधन की प्रमुख भागीदार सपा के वोटों का लाभ मिलना तय है।
    कांग्रेस के रणनीतिकार भले ही अपनी रणनीति से संतुष्ट हो। भले ही गांधी परिवार अपनी साख बचाने की  कोई भी दलील दे पर सच्चाई यही है कि राहुल गांधी ने अमेठी सीट से चुनाव लड़ना कतई उचित नहीं समझा। उन्हे परिवार की 2019 में अपनी हारी खानदानी सीट अमेठी से मम्मी श्रीमती सोनिया गांधी की जीती रायबरेली कहीं ज्यादा सुरक्षित लगी।
    जहां तक अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी के मुकाबले में किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारने की बात है तो उनके उतारने से अमेठी में न तो कोई उत्साह की लहर है न तो उन्हे अमेठी हाथोहाथ लेने को तैयार है। समर्पित कांग्रेसजनों और पदाधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं के अलावा न तो कोई बड़ा कांग्रेसी नेता उनके पक्ष में दिखाई दे रहा है और न ही उन्हे गांधी परिवार से कोई विशेष तरजीह दी जा रही है। यदि ऐसा न होता तो श्री शर्मा के नामांकन के मौके पर प्रियंका गांधी वडेरा अवश्य मौजूद रहती। जबकि वह पड़ोस में यानी रायबरेली में अपने भाई राहुल के नामांकन के अवसर पर जोश-ओ-खरोश के साथ उपस्थित थी।  यह मान लिया जाये कि भाई के नाते प्रियंका की प्राथमिकता राहुल गांधी थे तो भी प्रियका के रार्बट वडेरा तो उपस्थित रह ही सकते थे।
    जहां तक इंडि गठबंधन के प्रमुख दल सपा व अन्य के कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन मिलने का सवाल है, हालात बता रहे हैं कि सपा समर्थक खासकर यादव समाज के लोगों का रूझान कांग्रेस प्रत्याशी की तुलना में भाजपा प्रत्याशी की ओर कहीं ज्यादा है।
    जिस तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ० मोहन यादव, स्मृति ईरानी के जुलूस से लेकर नामांकन पत्र दाखिल करने के मौके पर उपस्थित रहे और उन्होने पड़ोस के सुल्तानपुर में अपनी सुसराल बताकर अपने को यहां का दामाद बताकर अपना हक जताया। उससे भी यादव विरादरी का अधिकाधिक वोट श्रीमती ईरानी को मिलना ही मिलना है।
    यहां यह भी कम गौरतलब नहीं है कि अमेठी के जिन दो सीटों पर सपा विधायकों का कब्जा है उनमें से एक गौरीगंज के सपा विधायक सपा से लगभग प्रत्यक्ष भी न भी सही अप्रत्यक्ष रूप से नाता तोड़ चुके हैं। उनका पूरा परिवार हाल ही में भाजपा में शामिल हो चुका है।
    ज्ञात रहे सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह गौरीगंज सीट से लगातार तीन बार चुनाव जीतकर एक रिकार्ड बना चुके हंै। उनका इस सीट के मतदाताओं पर काफ ी अच्छा प्रभाव माना जाता है। ऐसे में उनके समर्थकों का अधिकाधिक वोट कांग्रेस के श्री शर्मा की बजाय भाजपा की श्रीमती ईरानी को मिलना तय माना जा रहा है।
    सपा की दूसरी विधान सभा सीट अमेठी पर भी ऐसा ही नजारा दिखने को मिल रहा है। यहां से सपा विधायिका महाराजी देवी का बेटा और बेटी सहित पूरा कुनबा ही श्रीमती ईरानी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने में जुटा हुआ है। ज्ञातव्य है महाराजी देवी के पति गायत्री प्रजापति भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते एक अर्से से जेल में बंद है और उन्हे लगता है कि भाजपा की शरण में जाने से उनके पति व परिवार को राहत मिल सकती है।
    महाराजी देवी प्रजापति ओबीसी से आती हैं और उनकी बिरादरी कुम्हारों के अलावा उनके खास समर्थक मानी जाने वाली जातियों मौर्य, नाई आदि का भी भरपूर समर्थन भाजपा प्रत्याशियों को मिलना तय माना जा रहा है।
    जानकार सूत्रों का कहना है कि यहां पर यह भी कम काबिलेगौर नहीं है कि जब 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी को सपा-बसपा गठबंधन का पूरा समर्थन प्राप्त था तब भी भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी को ओबीसी के 70  फ ीसदी मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था और कुर्मी तथा कौरी जाति का तो 80 फ ीसदी से अधिक समर्थन मिला था।
    भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में एक और महत्वपूर्ण बात यह बतायी जा रही है और वो है बसपा का सपा से अलग होकर स्वतंत्र चुनाव लड़ना। समझा जा रहा है कि ओबीसी जाति के रवि प्रकाश मौर्य भाजपा व कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि यह तथ्य भी सामने आ रहा है कि बसपा के चलते मुस्लिम व दलित वोटों में बंटवारा तय है। जिसका खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा।
    राम मंदिर बनने के बाद से दलित परिवारों का ज्यादा से ज्यादा समर्थन भाजपा को मिलना सुनिश्चित है। जहां तक मुस्लिम मतों का सवाल है कुछ हद तक मुस्लिम महिलाओं का वोट भी भाजपा प्रत्याशी के खाते में जा सकता है।
    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्मृति ईरानी के समर्थन में अब तक दो-दो बार रैलिया करने से उदासीन मतदाताओं मेें जोश देखने को मिल रहा है।
    उपरोक्त तमाम तथ्यों, हालातों के अलावा स्मृति ईरानी का अमेठी के लोगों के बीच रहकर उनके सुख दुख में शामिल होना और क्षेत्र के उतरोत्तर विकास के लिये हर संभव प्रयास करना उनकी जीत को और पुख्ता बनाता है।
    अब तो यहां तक दावे किये जाने लगे हंै कि इस बार भाजपा प्रत्याशी स्मृति कम से कम दो लाख वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी  लाल शर्मा को पराजित करने में सफ ल होगी।