पर्व - त्यौहार लेख होली पर्व सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है March 25, 2024 / March 27, 2024 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment होली पर्व सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है होली पर्व भारत में धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला प्राचीन पर्व है। होली पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली पर्व भारत में परंपरागत रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पूजा की होली मनाई जाती है। इस दिन होलिका दहन होता है। इस दिन गोबर के उपलों या लकड़ियों से भारत में जगह-जगह होली रखी जाती है। सभी लोग प्राचीन परंपराओं के अनुसार होली को पूजते हैं, और रात में होलिका दहन होता है। जलती हुई होली के चारों और लोग परिक्रमा करते हैं और अपने लिये और अपनों के लिए मनौतियां मांगते हैं। उत्तर भारत में होलिका दहन के दिन जलती हुई होली में गेहूं की बाल को भूनकर खाने की परम्परा है। होली के दूसरे दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपद़ा को धुलेंडी यानी कि खेलने वाली होली मनाई जाती है। धुलेंडी के दिन लोग एक दूसरे को सुबह उठकर गुलाल लगाने जाते हैं। इस दिन छोटे अपने बड़ों से गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, और पारम्परिक रूप से होली मनाते हैं। इस दिन घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। धुलेंडी के दिन भारत देश के गली मोहल्लों में ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और नाच-कूद किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि होली के दिन लोग अपने गले-शिकवे और आपसी कटुता भूल कर एक दूसरे से गले मिलते हैं और पुनः दोस्त बन जाते हैं। रंगों से होली खेलने और नाचने-गाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग नहा-धोकर थोड़ा विश्राम करने के पश्चात् नए कपडे पहनकर सांझ में एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। लोग अपनी कटुता भुलाकर गले मिलते हैं और एक दूसरे को होली पर पारम्परिक रूप से बनायी जाने वाली गुजिया और अन्य मिठाइयां खिलाते हैं। अगर ब्रज की बात की जाए तो ब्रज में होली पर्व की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से हो जाती है। वसंत पंचमी के दिन ब्रज के सभी मंदिरों और चैक-चैराहों पर होलिका दहन के स्थान पर होली का प्रतीक एक लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया जाता है और लगातार 45 दिनों तक ब्रज के सभी प्राचीन मंदिरों में प्रतिदिन होली के प्राचीन गीत गए जाते हैं। ब्रज की महारानी राधा जी के गांव बरसाने में होली से आठ दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन लड्डू मार होली से इस प्राचीन पर्व की शुरुआत होती है। इसके बाद फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन से लठमार होली की शुरुआत होती है जो कि होली का त्यौहार खत्म होने तक लगातार चलती है। पूरे विश्व भर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में (हुरियारिनें) महिलाएं पुरुषों (हुरियारों) के पीछे अपनी लाठी लेकर भागती हैं और लाठी से मारती हैं। हुरियारे खुद को ढाल से बचाते हैं। इस लठमार होली को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। यह होली राधा रानी के गाँव बरसाने और श्रीकृष्ण जी के गांव नंदगांव के लोगों के बीच में होती है। बरसाने और नंदगांव गांवों के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है। होली पर्व पूरे देश में परंपरा, हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है। होली पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली पर्व हमारे देश में उपस्थित बहुसांस्कृतिक समाज के जीवंत रंगों का प्रतीक है। होली पर्व देश में हमारी संस्कृति और सभ्यता के मूल सहिष्णुता और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है। इस पर्व को सभी लोगों को शांति, सौहार्द और भाईचारे की भावना से मनाना चाहिए। देश के सभी नागरिकों को इस दिन साम्प्रदायिक भावना से ऊपर उठकर अपने गले-शिकवे और कटुता का परित्याग कर बहुलवाद की भावना से अपने आप को रंगना चाहिये, जिससे कि देश में शांति, सौहार्द, समृद्धि और खुशहाली कायम हो सके। Read more » होली
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख महाशिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व March 5, 2024 / March 5, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय पर्व एवं त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान हैं। ये केवल हर्ष एवं उल्लास का माध्यम नहीं हैं, अपितु यह भारतीय संस्कृति के संवाहक भी हैं। इनके माध्यम से ही हमें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि भी संस्कृति के संवाहक का ऐसा ही एक बड़ा त्योहार […] Read more » Cultural and scientific importance of Mahashivratri महाशिवरात्रि
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख विश्व का एक अनूठा त्यौहार है मर्यादा महोत्सव February 16, 2024 / February 16, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment मर्यादा महोत्सव 14, 15 एवं 16 फरवरी 2024 पर विशेष-ः ललित गर्ग:-जीवन का पड़ाव चाहे संसार हो या संन्यास, सीमा, संयम एवं मर्यादा जरूरी है। मर्यादा जीवन का पर्याय है। धरती, अंबर, समन्दर, सूरज, चांद-सितारें, व्यक्ति, धर्म एवं समाज सब अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं। जब भी उनकी मर्यादा एवं सीमा टूटती है, प्रकृति प्रलय […] Read more » मर्यादा महोत्सव विश्व का एक अनूठा त्यौहार है मर्यादा महोत्सव
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार स्वागत करें ज्ञान एवं सौभाग्यरूपी उजालों का February 13, 2024 / February 13, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment बसंत पंचमी- 14 फरवरी, 2024-ललित गर्ग – मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा त्योहार है बसंत पंचमी, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। बसंत पंचमी […] Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख वर्त-त्यौहार संतों की ऋतु है बसंत February 12, 2024 / February 12, 2024 by डॉ शंकर सुवन सिंह | Leave a Comment डॉ. शंकर सुवन सिंह बसंत ऋतु नवीनता का प्रतीक है। नवीनता उल्लास को जन्म देती है। उल्लास सुख समृद्धि का द्योतक है। सुख शांति का वास ज्ञान में है। इस ऋतु में प्रकृति अपना नया रूप दिखती है। बसंत पंचमी ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती का अवतरण […] Read more » Spring is the season of saints
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे December 20, 2023 / December 20, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment यह एक एतिहासिक तथ्य है कि प्रभु श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने के उद्देश्य से अपनी सेना वनवासियों एवं वानरों की सहायता से ही बनाई थी। केवट, छबरी, आदि के उद्धार सम्बंधी कहानियां तो हम सब जानते हैं। परंतु, जब वे 14 वर्षों के वनवास पर थे तो इतने लम्बे अर्से तक वनवास करते करते वे स्वयं भी एक तरह से वनवासी बन गए थे। इन 14 वर्षों के दौरान, वनवासियों ने ही प्रभु श्री राम की सेवा सुषुर्शा की थी एवं प्रभु श्री राम भी इनके स्नेह, प्रेम एवं श्रद्धा से बहुत अभिभूत थे। इसी तरह की कई कहानियां इतिहास के गर्भ में छिपी हैं। यह भी एक कटु सत्य है एवं इतिहास इसका गवाह है कि हमारे ऋषि मुनि भी वनवासियों के बीच रहकर ही तपस्या करते रहे हैं। अतः भारत में ऋषि, मुनि, अवतार पुरुष, आदि वनवासियों, जनजातीय समाज के अधिक निकट रहते आए हैं। इस प्रकार, हमारी परम्पराएं, मान्यताएं एवं सोच एक ही है। जनजातीय समाज भी भारत का अभिन्न एवं अति महत्वपूर्ण अंग है। आज भी भारत में वनवासी मूल रूप में प्रभु श्री राम की प्रतिमूर्ति ही नजर आते हैं। दिल से एकदम सच्चे, धीर गम्भीर, भोले भाले होते हैं। यह प्रभु श्री राम की उन पर कृपा ही है कि वे आज भी सतयुग में कही गई बातों का पालन करते हैं। परंतु, कई बार ईसाई मशीनरियों एवं कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों द्वारा वनवासियों को उनके मूल स्वभाव से भटकाकर लोभी, लालची एवं रावण का वंशज बताया जाता है। रावण स्वयं तो वनवासी कभी रहे ही नहीं थे एवं वे श्री लंका के एक बुद्धिमान राजा थे। इस बात का वर्णन जैन रामायण में भी मिलता है। अब प्रशन्न यह उठता है कि जब रावण स्वयं एक ब्राह्मण था तो वह वंचित वर्ग का मसीहा या पूर्वज कैसे हो सकता है? जैन रामायण की तरह गोंडी रामायण भी रावण को पुलत्स वंशी ब्राह्मण मानती है, न कि आदिवासियों का पूर्वज, कुछ गोंड पुजारी रावण को अपना गुरु भाई भी मानते हैं, चूंकि पुलत्स ऋषि ने उनके पूर्वजों को भी दीक्षा दी थी। इस तरह के तथ्य भी इतिहास में मिलते हैं कि रावण अपने समय का एक बहुत बड़ा शिव भक्त एवं प्रकांड विद्वान था। रावण जब मृत्यु शैया पर लेटा था तब प्रभु श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था कि रावण अब मृत्यु के निकट है एवं प्रकांड विद्वान है अतः उनसे उनके इस अंतिम समय में कुछ शिक्षा ले लो। तब लक्ष्मण रावण के सिर की तरफ खड़े होकर शिक्षा लेने पहुंचे थे तो लक्ष्मण को कहा गया था कि शिक्षा लेना है तो रावण के पैरों की तरफ आना होगा। तब लक्ष्मण, रावण के पैरों के पास आकर खड़े हुए तब जाकर रावण ने लक्ष्मण को अपने अंतिम समय में शिक्षा प्रदान की थी। अतः रावण अपने समय का एक प्रकांड पंडित था। भारतीय संस्कृति पर पूर्व में भी इस प्रकार के हमले किए जाते रहे हैं। भारत में समाज को आपस में बांटने के कुत्सित प्रयास कोई नया नहीं हैं। एक बार तो रामायण एवं महाभारत आदि एतिहासिक ग्रंथों को भी अप्रामाणिक बनाने के कुत्सित प्रयास हो चुके हैं। वर्ष 2007 में तो केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के मातहत भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने एक हलफनामा (शपथ पत्र) दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वाल्मीकीय रामायण और गोस्वामी तुलसीदासजी कृत श्रीरामचरितमानस प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन इनके पात्रों को एतिहासिक रूप से रिकार्ड नहीं माना जा सकता है, जो कि निर्विवाद रूप से इनके पात्रों का अस्तित्व सिद्ध करता हो या फिर घटनाओं का होना सिद्ध करता हो। ये बातें कितनी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह कहना कि प्रभु श्री राम और रामायण के पात्र (राम, भरत, लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण, सुग्रीव और रावण, आदि) एतिहासिक रूप से प्रामाणिक सिद्ध नहीं होते, एक प्रकार से भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात ही था। हालांकि भारतीय जनमानस के आंदोलित होने पर उस समय की भारत सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ था और उसने अपने शपथ पत्र (हलफनामे) को न्यायालय से वापस मांग लिया था। विभिन्न देशों में वहां की स्थानीय भाषाओं में पाए जाने वाले ग्रंथों एवं विदेशों तक में किए गए कई शोध पत्रों के माध्यम से भी यह सिद्ध होता है कि प्रभु श्री राम 14 वर्ष तक वनवासी बनकर ही वनों में निवास किए थे। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रभु श्रीराम भी अपने वनवास के दौरान वनवासियों के बीच रहते हुए एक तरह से वनवासी ही बन गए थे। साथ ही, वनों में निवासरत समुदायों ने सहज ही उन्हें अपने से जुड़ा माना और प्रभु श्री राम उनके लिए देव तुल्य होकर उनमें एक तरह से रच बस गए थे। कई वनवासी एवं जनजाति समाजों ने तो अपनी रामायण ही रच डाली है। जिस प्रकार, गोंडी रामायण, जो रामायण को अपने दृष्टिकोण से देखती है, हजारों सालों से गोंडी व पंडवानी वनों में रहने वाले जनजाति समाजों की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रही है। गुजरात के आदिवासियों में “डांगी रामायण” तथा वहां के भीलों में “भलोडी रामायण” का प्रचलन है। साथ ही, हृदय स्पर्शी लोक गीतों पर आधारित लोक रामायण भी गुजरात में राम कथा की पावन परम्परा को दर्शाती है। इसके साथ ही, विदेशों में भी वहां की भाषाओं में लिखी गई रामायण बहुत प्रसिद्ध है। आज प्रभु श्री राम की कथा भारतीय सीमाओं को लांघकर विश्व पटल पर पहुंच गई है और निरंतर वहां अपनी उपयोगिता, महत्ता और गरिमा की दस्तक देती आ रही है। आज यह कथा विश्व की विभिन्न भाषाओं में स्थान, विचार, काल, परिस्थिति आदि में अंतर होने के बावजूद भी अनेक रूपों में, विधाओं में और प्रकारों में लिखी हुई मिलती है। यथा, थाईलेंड में प्रचलित रामायण का नाम “रामकिचेन” है। जिसका अर्थ है राम की कीर्ति। कम्बोडिया की रामायण “रामकेर” नाम से प्रसिद्ध है। लाओस में “फालक फालाम” और “फोमचक्र” नाम से दो रामायण प्रचलित हैं। मलेशिया यद्यपि मुस्लिम राष्ट्र है, परंतु वहां भी “हिकायत सिरीरामा” नामक रामायण प्रचलित है, जिसका तात्पर्य है श्री राम की कथा। इंडोनेशिया की रामायण का नाम “ककविन रामायण” है, जिसके रचनाकार महाकवि ककविन हैं। नेपाल में “भानुभक्त रामायण” और फिलीपीन में “महरादिया लावना” नामक रामायण प्रचलित है। इतना ही नहीं, प्रभु श्री राम को मिस्र (संयुक्त अरब गणराज्य) जैसे मुस्लिम राष्ट्र और रूस जैसे कम्युनिस्ट राष्ट्र में भी लोकनायक के रूप में स्वीकार किया गया है। इन सभी रामायण में भी प्रभु श्री राम के वनवास में बिताए गए 14 वर्षों के वनवास का विस्तार से वर्णन किया गया है। भारतीय साहित्य की विशिष्टताओं और गहनता से प्रभावित होकर तथा भारतीय धर्म की व्यापकता एवं व्यावहारिकता से प्रेरित होकर समय समय पर चीन, जापान आदि एशिया के विभिन्न देशों से ही नहीं, यूरोप में पुर्तगाल, स्पेन, इटली, फ्रान्स, ब्रिटेन आदि देशों से भी अनेक यात्री, धर्म प्रचारक, व्यापारी, साहित्यकार आदि यहां आते रहे हैं। इन लोगों ने भारत की विभिन्न विशिष्टताओं और विशेषताओं के उल्लेख के साथ साथ भारत की बहुप्रचलित श्रीराम कथा के सम्बंध में भी बहुत कुछ लिखा है। यही नहीं, विदेशों से आए कई विद्वानों जहां इस संदर्भ में स्वतंत्र रूप से मौलिक ग्रंथ लिखे हैं, वहीं कई ने इस कथा से सम्बंधित “रामचरितमानस” आदि विभिन्न ग्रंथों के अनुवाद भी अपनी भाषाओं में किए हैं और कई ने तो इस विषय में शोध ग्रंथ भी तैयार किए हैं। भारत के वनवासियों के तो रोम रोम में प्रभु श्री राम बसे हैं। उन्हें प्रभु श्रीराम से अलग ही नहीं किया जा सकता है। यह सोचना भी हास्यास्पद लगता है। प्रभु श्री राम की जड़ें आदिवासियों में बहुत गहरे तक जुड़ी हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि विदेशी मशीनरियों के कुत्सित प्रयासों को विफल करते हुए भारतीय संस्कृति पर हमें गर्व करना होगा। धर्मप्राण भारत सारे विश्व में एक अद्भुत दिव्य देश है। इसकी बराबरी का कोई देश नहीं है क्योंकि भारत में ही प्रभु श्रीराम एवं श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। हमारे भारतवर्ष में भगवान स्वयं आए हैं एवं एक बार नहीं अनेक बार आए हैं। हमारे यहां गंगा जैसी पावन नदी है एवं हिमालय जैसा दिव्य पर्वत है। ऐसे भाग्यशाली कहां हैं अन्य देशों के लोग। प्रहलाद सबनानी Read more » प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख भगवत गीता कोरा ग्रंथ, शास्त्र ही नहीं, जीवन-दर्शन है December 20, 2023 / December 20, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment गीता जयंती 22 दिसम्बर 2023-ः ललित गर्ग:- श्रीमद् भगवद गीता या गीता, कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध की शुरुआत से पहले भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच होने वाला संवाद है। मान्यता के अनुसार, जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, उस दिन को ही गीता की जन्मतिथि मानते हुए गीता जयंती मनाई जाती […] Read more » Geeta Jayanti गीता जयंती
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख राम कथा और महर्षि वाल्मीकि : दशगुरु परम्परा तक की यात्रा December 15, 2023 / December 15, 2023 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | Leave a Comment – डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री १. सप्त सिन्धु क्षेत्र में राम कथा का अँकुर और महर्षि वाल्मीकि- जब भी राम कथा की बात आएगी तो महर्षि वाल्मीकि की बात भी साथ ही आएगी […] Read more » Journey to Dashguru Parampara Ram Katha and Maharishi Valmiki
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख वर्त-त्यौहार देवउठनी एकादशी पर पूर्वजों के नाम पर दीपदान की परंपरा November 21, 2023 / November 21, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आज पूरी दुनिया में तरक्की के नाम पर लोग कम्यूटर और मोबाइल को अपनी अंगुलियों में नचाते हुये दुनिया को अपनी मुटठी में मानते है जबकि वे भारतीय संस्कार, परम्पराओं, धर्म और रिश्तों से कोसों दूर हो गये है। एक समय था जब गॉवों में बसने वाले हमारे पूर्वज सहज,सरल और आत्मीयता को अपनी जमा पूंजी मानते […] Read more » देवउठनी एकादशी
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार सीता, लक्ष्मण, भरत ओर राम के प्राणों के रक्षक-महावीर हनुमान November 17, 2023 / November 17, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित्र मानस रामायण में महावीर हनुमान के अनेक स्वरूप के दर्शन होते है। जहॉ मारूति, आंजनेय,बजरंगवली, महावीर,हनुमान जैसे अनेक नामों से वे विख्यात हुये वही शिवजी के 11 वें रूद्र का अवतार होने से वे सबसे बलवान और बुद्धिमान भी है और उनके पराक्रम एवं चार्तुय से ही सुग्रीव, माता […] Read more » भरत ओर राम के प्राणों के रक्षक-महावीर हनुमान लक्ष्मण सीता
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख वर्त-त्यौहार छठ: आस्था एवं उत्साह का लोकपर्व November 17, 2023 / November 17, 2023 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment छठ पूजा (17-20 नवम्बर) पर विशेष– योगेश कुमार गोयल आस्था और निष्ठा का अनुपम लोकपर्व ‘छठ’ उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला सूर्योपासना का महापर्व है। यह पर्व सूर्य, उनकी पत्नी उषा तथा प्रत्यूषा, प्रकृति, जल, वायु और सूर्य की बहन छठी मैया को समर्पित […] Read more » छठ पूजा छठ पूजा (17-20 नवम्बर)
आलोचना कला-संस्कृति पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार दिवाली का बदला स्वरूप November 14, 2023 / November 14, 2023 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment दिवाली के शुभ अवसर पर हमारे देश में रोशनी, मिठाईयां, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की बात करने की परंपरा है लेकिन विडंबना ये है कि आज के दौर में दिवाली के मायने पूरी तरह बदल गये हैं। दिवाली का बदला स्वरूप अब खुशियों के बजाय प्रदूषण और जाम की चिंता लेकर आता है। दिवाली की सांस्कृतिक परंपराएँ लुप्त […] Read more » Revenge form of Diwali