विधि-कानून शख्सियत चुनौतियों से भरा होगा जस्टिस बोबड़े का कार्यकाल November 19, 2019 / November 19, 2019 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment योगेश कुमार गोयल जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। वे भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। स्थापित परम्परा के अनुरूप न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने अपनी विदाई से कुछ दिनों पहले ही अपने उत्तराधिकारी के रूप में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज न्यायमूर्ति बोबड़े की नियुक्ति […] Read more » Justice Sharad Arvind Bobde जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े न्यायमूर्ति बोबड़े
लेख शख्सियत समाज ….और जिंदगी की आखिरी जंग हार गए गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह November 18, 2019 / November 18, 2019 by मुरली मनोहर श्रीवास्तव | Leave a Comment – मुरली मनोहर श्रीवास्तव दुनिया में गणित के बूते अपनी पहचान कायम करने वाले महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह आज ज़िन्दगी की जंग आखिरकार हार गए। वृहस्पतिवार की सुबह इन्होंने पटना के पीएमसीएच में आखिरी सांसें ली। कभी इस गणितज्ञ ने आइंस्टीन के सिद्धांत को भी चुनौती दे दी थी। बिहार के भोजपुर जिले […] Read more » mathematician vashishth narayan singh गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह
शख्सियत समाज बिरसा मुंडा हैं आदिवासी तेजस्विता का सफरनामा November 15, 2019 / November 15, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment बिरसा मुंडा की 145वीं जन्म जयन्ती- 15 नवम्बर 2019– ललित गर्ग- किसी महापुरुष के कार्यों, अवदानों एवं जीवन का मूल्यांकन इस बात से होता है कि उन्होंने राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं का समाधान किस सीमा तक किया, कितने कठोर संघर्षों से लोहा लिया। बिरसा मुंडा भी ऐसे ही एक युगांतरकारी शख्सियत थे, जिन्होंने आदिवासी जनजीवन […] Read more » birsa munda बिरसा मुंडा
शख्सियत समाज गुरू नानक की महिमा November 12, 2019 / November 12, 2019 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment 550वीं गुरू नानक जयंती (12 नवम्बर) पर विशेष – योगेश कुमार गोयल सिखों के प्रथम गुरू नानक देव से एक बार किसी ने पूछा कि गुरू के दर्शन करने से क्या लाभ होता है? गुरू नानक ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया कि इसी रास्ते पर चले जाओ और रास्ते में तुम्हें सबसे पहले जो […] Read more » Guru nanak Gurunanak birthday gurunanak on 550 birthday गुरू नानक
राजनीति शख्सियत समाज दत्तोपंत ठेंगड़ी: प्रखर, प्रचंड किंतु संवेदनशील मजदूर नेता November 11, 2019 / November 11, 2019 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment कभी हुआ करता था कि मजदूर संगठन की बात घोर पूंजीपति विरोध से ही प्रारंभ हुआ करती थी। रोजगार देने वाले व रोजगार प्राप्त करने वाले मे सौहाद्र, समन्वय व संतोष की न तो कामना की जाये और न ही आशा की जाये, यही कार्ल मार्क्स के मजदूरों को दिये गए संदेश का अर्थ था। कम्युनिस्टों के […] Read more » dattopant Thengri दत्तोपंत ठेंगड़ी
शख्सियत समाज लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल, सरदार पटेल कैसे बने October 31, 2019 / October 31, 2019 by भरत जोशी | Leave a Comment 31 अक्टूबर को सरदार पटेल जयंती पर विशेष, 19 वीं शताब्दी के मध्य भारत में अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति की प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही थी, इसी काल में 1875 में स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना कर भारत में सर्वप्रथम स्वराज की मांग का नारा बुलंद किया। इसी समय 31 अक्टूबर 1875 […] Read more » Ballabh bhai Patel ironman patel Sardar Patel वल्लभभाई
विश्ववार्ता शख्सियत आधुनिक भारत के शिल्पी थे सरदार पटेल October 31, 2019 / October 31, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment सरदार वल्लभभाई पटेल की 144वीं जन्मजयन्ती, 31 अक्टूबर, 2019-ललित गर्ग –भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन एवं आजादी के बाद आधुनिक भारत को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण, ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। भारत […] Read more »
शख्सियत ऐसे थे सरदार पटेल October 31, 2019 / October 31, 2019 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment सरदार पटेल जयंती (31 अक्तूबर) पर विशेष – श्वेता गोयल 31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में एक किसान परिवार में जन्मे सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री और पहले उप-प्रधानमंत्री थे। उन्होंने गांधी जी के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनके जीवन से जुड़े अनेक […] Read more » Sardar Patel सरदार पटेल
राजनीति शख्सियत समाज हिन्दूराष्ट्र स्वप्न द्रष्टा : बंदा वीर बैरागी October 26, 2019 / October 26, 2019 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अध्याय — 7 ” मैं तो आपका ही बंदा हूँ “ रंग चढ़ा उस देश का मस्ती का चढ़ा नूर ।रब की मस्ती छा गई क्लेश भए सब दूर ।। लक्ष्मण देव से माधोदास बने बैरागी अब किसी दूसरे संसार में रहने लगे थे । इस संसार के भौतिक ऐश्वर्य अब उन्होंने त्याग दिए थे […] Read more »
राजनीति शख्सियत एकीकृत भारत की प्रबल आवाज़ थे ‘सीमांत गाँधी ‘ October 17, 2019 / October 17, 2019 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी भारतवर्ष में आज़ादी के 72 वर्षों बाद आज एक बार फिर भारत के हिन्दू राष्ट्र होने और 1947 में मुहम्मद अली जिन्नाह की मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तुत ‘द्वि राष्ट्’ के सिद्धांत को अमल में लाए जाने की बात पुरज़ोर तरीक़े से की जाने लगी है। इस विभाजनकारी राजनैतिक वातावरण के मध्य एक बार फिर स्वतंत्रता आंदोलन के उन महान नेताओं को याद किया जाना ज़रूरी हो गया है जो जिन्नाह के धर्म आधारित द्वि राष्ट्र के सिद्धांत के विरुद्ध एकीकृत भारत अथवा अविभाजित भारत की अवधारणा के अलम्बरदार थे। निश्चित रूप से उन महापुरुषों में जहाँ पहला नाम महात्मा गाँधी का था वहीँ भारत के पश्चिमी भाग से दूसरा नाम ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ां का भी था। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ां का जन्म 6 फ़रवरी 1890 को चरसद्दा, ख़ईबर, पख़्तूनख़्वा,पेशावर जो कि वर्तमान में पाकिस्तान क्षेत्र का हिस्सा है,में हुआ था। पख़्तूनी पठान परिवार के ग़फ़्फ़ार ख़ां पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ते थे,हर समय पाक-ो-पाकीज़ा रहते थे तथा क़ुरान शरीफ़ का नियमित अध्ययन भी करते थे। उनकी इसी सच्ची धार्मिक प्रवृति ने ही उन्हें सच्चा मानव प्रेमी,सच्चा देशभक्त तथा अहिंसा का पालन करने वाला बना दिया था। जबकि स्वभावतः पठान क़ौम की गिनती मार्शल व लड़ाकू क़ौमों में की जाती है। परन्तु ग़फ़्फ़ार ख़ां ने हमेशा सत्य व अहिंसा का परचम बुलंद रखा। महात्मा गाँधी से उनकी घनिष्ठ मित्रता का आधार ही दोनों की वैचारिक एकता ही थी। दोनों ही नेता अथवा महापुरुष अंग्रेज़ों से अहिंसक तरीक़े से लड़ाई लड़ने के पक्षधर थे यानि सत्य-अहिंसा ही दोनों का सर्वप्रिय ‘शस्त्र’ था। और दूसरे यह की दोनों ही नेता धर्म के नाम पर भारत के विभाजन के प्रबल विरोधी थे।अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान ने जिन्नाह की ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था और जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की मांग को स्वीकार कर लिया तो ग़फ़्फ़ार ख़ां ने दुख भरे लहजे में कहा था कि – ‘आपने तो हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है। जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज़ भारत को विभाजित करने की अपनी चाल में कामयाब हो ही जाएंगे तब उन्होंने ‘ जून 1947 में पख़्तूनी स्वयंसेवी संगठन खुदाई ख़िदमतगार की ओर से एक ‘बन्नू रेजोल्यूशन’ पेश किया जिसमें मांग की गई कि पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने के बजाय पख़तूनों के लिए अलग देश पख़तूनिस्तान बनाया जाए। हालांकि अंग्रेज़ों ने उनकी इस मांग को ख़ारिज कर दिया। इसी से ज़ाहिर होता है कि वे धर्म के नाम पर पाकिस्तान के गठन के कितने विरोधी थे। ग़फ़्फ़ार ख़ां को सीमांत गाँधी,फ़्रंटियर गांधी,बादशाह ख़ान और बाचा ख़ान जैसे कई नामों से याद किया गया। उनके नाम के साथ गांधी शब्द केवल इसलिए लगाया गया क्योंकि वे न केवल गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे बल्कि वे अपने जीवन में स्वयं गाँधी को ही आत्मसात भी करते थे। कहा जा सकता है कि वे गाँधी को केवल मानते ही नहीं बल्कि जीते भी थे। वर्ष 1987 में पहली बार भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राप्त करने वाले शख़्स ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान,ही थे। बादशाह ख़ानहालाँकि दस्तावेज़ी तौर पर पाकिस्तानी नागरिक ज़रूर थे लेकिन भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से इसीलिए नवाज़ा क्योंकि वे इसके वास्तविक हक़दार थे। दस्तावेज़ों में ग़ैर-हिंदुस्तानी होने के बावजूद वे दिल ो जान से सच्चे हिंदुस्तानी थे।अंग्रेज़ी हुकूमत महात्मा गांधीको ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को एक साथ नहीं देखना चाहती थी। इसी साज़िश के तहत अंग्रेज़ों ने ग़फ़्फ़ार ख़ान पर झूठे मुक़दमे लगाकर उन्हें कई बार जेल भेजने की साज़िशें कीं। परन्तु वे इतने लोकप्रिय थे कि अदालत में उनके विरुद्ध पेश होने के लिए कभी कोई गवाह न मिलता।1929 में ग़फ़्फ़ार ख़ां ने अपने चंद सहयोगियों को साथ लेकर एक संगठन तैय्यार किया जिसका नाम था खुदाई ख़िदमतगार। ’खुदाई ख़िदमतगारका अर्थ है ईश्वर की रची गई सृष्टि का सेवादार। खुदाई ख़िदमतगार भी गाँधी जी की ही तरह अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता और एकता के लिएअहिंसात्मक रूप से आंदोलनरत थे।दरअसल अंग्रेज़ हिंसक होने वाले स्वतंत्रता संबंधी आन्दोलनों को तो अपनी ताक़त से कुचल देते थे परन्तु वे सत्याग्रह,भूख हड़ताल,असहयोग जैसे शांतप्रिय व अहिंसक आन्दोलनों से घबरा जाते थे। सेवाग्राम में एक कार्यक्रम में 16 जुलाई, 1940 को महात्मा गांधी ने कहा था – ‘ख़ान साहब पठान हैं. पठानों के लिए तो कहा जा सकता है कि वे तलवार-बंदूक़ साथ ही लेकर जन्म लेते हैं….पठानों में दुश्मनी निकालने का रिवाज इतना कठोर है कि यदि किसी एक परिजन का ख़ून हुआ हो तो उसका बदला लेना अनिवार्य हो जाता है. एक बार बदला लिया कि फिर दूसरे पक्ष को उस ख़ून का बदला लेना पड़ता है. इस प्रकार बदला पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिलता है और बैर का अंत ही नहीं आता. यह हुई हिंसा की पराकाष्ठा, साथ ही हिंसा का दिवालियापन. क्योंकि इस प्रकार बदला लेते-लेते परिवारों का नाश हो जाता था।’ ख़ान साहब ने पठानों का ऐसा नाश होते देखा. इसलिए उन्होंने समझ लिया कि पठानों का उद्धार अहिंसा में ही है. उन्होंने सोचा ‘अगर मैं अपने लोगों को सिखा सकूं कि हमें ख़ून का बदला बिल्कुल नहीं लेना है, बल्कि ख़ून को भूल जाना है, तो बैर की यह परंपरा समाप्त हो जाएगी और हम जीवित रह सकेंगे.’ यह सौदा नक़द का था. उनके अनुयायियों ने उसे अंगीकार किया, और आज ऐसे ख़िदमतगार देखने में आते हैं जो बदला लेना भूल गए हैं. इसे कहते हैं बहादुर की अहिंसा या सच्ची अहिंसा.’। लेकिन इन सबके बावज़ूद ब्रिटिश सरकार पठानों से ही सबसे ज़्यादा भय खाती थी। ख़ुदाई ख़िदमतगार जैसे अहिंसक संगठनों पर भी अंग्रेज़ों ने कई बार क़हर बरपाया। ग़फ़्फ़ार ख़ान को अंग्रेज़ हमेशा संदेह की दृष्टि से देखते रहे. लेकिन 1939 में म्यूरियल लेस्टर नाम की एक ब्रिटिश शांतिवादी ने जब फ़्रंटियर का दौरा किया, तो वह बादशाह ख़ान के अहिंसक व्यक्तित्व से इस क़द्र प्रभावित हो गईं कि उन्होंने महात्मा गांधी को चिट्ठी में लिखा-‘ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को अब भली-भांति जान लेने के बाद मैं ऐसा महसूस करती हूं कि जहां तक दुनिया भर में अद्भुत व्यक्तियों से मिलने का सवाल है, इस तरह का सौभाग्य मुझे अपने जीवन में शायद कोई और नहीं मिलने वाला है. वे ‘न्यू टेस्टामेंट’ की सौम्यता से युक्त, ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के राजकुमार हैं. वे कितने भगवत्परायण हैं! आपने उनसे हमारा परिचय कराया, इसके लिए मैं आपकी आभारी हूं.’ बाद में इस पत्र के हवाले से बादशाह ख़ान के प्रति ब्रिटिश हुकूमत के नज़रिए की आलोचना करते हुए 28 जनवरी, 1939 के ‘हरिजन’ में महात्मा गांधी ने लिखा – ‘…फिर भी अंग्रेज़ अधिकारियों के लिए इस व्यक्ति का कोई उपयोग नहीं है. वे इससे डरते हैं और इस पर अविश्वास करते हैं. यह अविश्वास वैसे मुझे बुरा न लगता, पर इससे प्रगति में बाधा पड़ती है. इससे भारत और इंग्लैंड की हानि होती है और इस तरह विश्व की भी होती है।’ दंगों के दौरान बिहार में जब गांधी घूम-घूमकर शांति स्थापित करने के प्रयासों में लगे थे, उस समय भी बादशाह ख़ान छाया की तरह गाँधी के साथ रहा करते थे। पटना में 12 मार्च, 1947 को एक सभा में गांधी ने ख़ान साहब की ओर इशारा करते हुए कहा- ‘बादशाह ख़ान मेरे पीछे बैठे हैं. वे तबीयत से फ़क़ीर हैं, लेकिन लोग उन्हें मुहब्बत से बादशाह कहते हैं, क्योंकि वे सरहद के लोगों के दिलों पर अपनी मुहब्बत से हुकूमत करते हैं. वे उस कौम में पैदा हुए हैं जिसमें तलवार का जवाब तलवार से देने का रिवाज है. जहां ख़ानदानी लड़ाई और बदले का सिलसिला कई पुश्तों तक चलता है. लेकिन बादशाह ख़ान अहिंसा में पूरा विश्वास रखते हैं. मैंने उनसे पूछा कि आप तो तलवार के धनी हैं, आप यहां कैसे आए? उन्होंने बताया कि हमने देखा हम अहिंसा के ज़रिए ही अपने मुल्क को आज़ाद करा सकते हैं. और अगर पठानों ने ख़ून का बदला ख़ून की पॉलिसी को न छोड़ा और अहिंसा को न अपनाया तो वे ख़ुद आपस में लड़कर तबाह हो जाएंगे. जब उन्होंने अहिंसा की राह अपनाई, तब उन्होंने अनुभव किया कि पठान जनजातियों के जीवन में एक प्रकार का परिवर्तन हो रहा है।’बादशाह ख़ान का जीवन आतंकवाद व हिंसा में लिप्त उन मुसलमानों के लिए भी एक आदर्श है और उन हिंदूवादियों के लिए भी जो द्विराष्ट् के जिन्नाह के सिद्धांत के आधार पर समूचे भारतीय मुसलमानों पर सवाल खड़ा करते हैं। ‘बादशाह ख़ान,अबुल कलम आज़ाद,रफ़ी अहमद क़िदवई,तय्यब जी,आसिफ़ अली,मोहम्मद यूनुस,ज़ाकिर हुसैन,जैसे सैकड़ों वरिष्ठ मुस्लिम नेता थे जो पाकिस्तान के गठन का विरोध व संयुक्त भारत की कल्पना करते थे मगर अंग्रेज़ों ने कट्टरपंथियों के विचारों का साथ देकर बांटो और राज करो की अपनी चिर परिचित नीति अपनाकर भारत का विभाजन करा दिया। सीमान्त गाँधी किसी धर्म के नहीं बल्कि मानवता के सच्चे हितैषी व नायक थे और एकीकृत भारत की प्रबल आवाज़ भी थे। Read more » ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ां सीमांत गाँधी
राजनीति शख्सियत समाज हिंदूराष्ट्र स्वप्नद्रष्टा : बंदा वीर बैरागी October 16, 2019 / October 16, 2019 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अध्याय —– 5 बंदा वीर बैरागी के जन्म काल की परिस्थितियां आदि शंकराचार्य नित्य प्रति की भांति स्नान के लिए गंगा की ओर उस दिन भी जा रहे थे। रास्ते में एक चांडाल अपने चार कुत्तों के साथ उनका मार्ग घेरे हुए खड़ा था । उस चांडाल को देखते ही शंकराचार्य ने दूर से ही […] Read more » Banda veer bairagi बंदा वीर बैरागी
महत्वपूर्ण लेख राजनीति शख्सियत हिंदू राष्ट्र स्वप्नदृष्टा : बंदा वीर बैरागी October 14, 2019 / October 14, 2019 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अध्याय —- 4 गुरु गोविंद सिंह जी और उनके सुपुत्रों का बलिदान पंजाब में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के काल में ही हमारे चरितनायक बंदा वीर बैरागी जी का उद्भव हुआ । यही वह काल था जब परिस्थितियों ने एक संन्यासी को भी राष्ट्र के कार्य के लिए उठा लिया और उससे […] Read more » बंदा वीर बैरागी