विश्ववार्ता शख्सियत आधुनिक भारत के शिल्पी थे सरदार पटेल October 31, 2019 / October 31, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment सरदार वल्लभभाई पटेल की 144वीं जन्मजयन्ती, 31 अक्टूबर, 2019-ललित गर्ग –भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन एवं आजादी के बाद आधुनिक भारत को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण, ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। भारत […] Read more »
शख्सियत ऐसे थे सरदार पटेल October 31, 2019 / October 31, 2019 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment सरदार पटेल जयंती (31 अक्तूबर) पर विशेष – श्वेता गोयल 31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में एक किसान परिवार में जन्मे सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री और पहले उप-प्रधानमंत्री थे। उन्होंने गांधी जी के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनके जीवन से जुड़े अनेक […] Read more » Sardar Patel सरदार पटेल
राजनीति शख्सियत समाज हिन्दूराष्ट्र स्वप्न द्रष्टा : बंदा वीर बैरागी October 26, 2019 / October 26, 2019 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अध्याय — 7 ” मैं तो आपका ही बंदा हूँ “ रंग चढ़ा उस देश का मस्ती का चढ़ा नूर ।रब की मस्ती छा गई क्लेश भए सब दूर ।। लक्ष्मण देव से माधोदास बने बैरागी अब किसी दूसरे संसार में रहने लगे थे । इस संसार के भौतिक ऐश्वर्य अब उन्होंने त्याग दिए थे […] Read more »
राजनीति शख्सियत एकीकृत भारत की प्रबल आवाज़ थे ‘सीमांत गाँधी ‘ October 17, 2019 / October 17, 2019 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी भारतवर्ष में आज़ादी के 72 वर्षों बाद आज एक बार फिर भारत के हिन्दू राष्ट्र होने और 1947 में मुहम्मद अली जिन्नाह की मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तुत ‘द्वि राष्ट्’ के सिद्धांत को अमल में लाए जाने की बात पुरज़ोर तरीक़े से की जाने लगी है। इस विभाजनकारी राजनैतिक वातावरण के मध्य एक बार फिर स्वतंत्रता आंदोलन के उन महान नेताओं को याद किया जाना ज़रूरी हो गया है जो जिन्नाह के धर्म आधारित द्वि राष्ट्र के सिद्धांत के विरुद्ध एकीकृत भारत अथवा अविभाजित भारत की अवधारणा के अलम्बरदार थे। निश्चित रूप से उन महापुरुषों में जहाँ पहला नाम महात्मा गाँधी का था वहीँ भारत के पश्चिमी भाग से दूसरा नाम ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ां का भी था। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ां का जन्म 6 फ़रवरी 1890 को चरसद्दा, ख़ईबर, पख़्तूनख़्वा,पेशावर जो कि वर्तमान में पाकिस्तान क्षेत्र का हिस्सा है,में हुआ था। पख़्तूनी पठान परिवार के ग़फ़्फ़ार ख़ां पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ते थे,हर समय पाक-ो-पाकीज़ा रहते थे तथा क़ुरान शरीफ़ का नियमित अध्ययन भी करते थे। उनकी इसी सच्ची धार्मिक प्रवृति ने ही उन्हें सच्चा मानव प्रेमी,सच्चा देशभक्त तथा अहिंसा का पालन करने वाला बना दिया था। जबकि स्वभावतः पठान क़ौम की गिनती मार्शल व लड़ाकू क़ौमों में की जाती है। परन्तु ग़फ़्फ़ार ख़ां ने हमेशा सत्य व अहिंसा का परचम बुलंद रखा। महात्मा गाँधी से उनकी घनिष्ठ मित्रता का आधार ही दोनों की वैचारिक एकता ही थी। दोनों ही नेता अथवा महापुरुष अंग्रेज़ों से अहिंसक तरीक़े से लड़ाई लड़ने के पक्षधर थे यानि सत्य-अहिंसा ही दोनों का सर्वप्रिय ‘शस्त्र’ था। और दूसरे यह की दोनों ही नेता धर्म के नाम पर भारत के विभाजन के प्रबल विरोधी थे।अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान ने जिन्नाह की ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था और जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की मांग को स्वीकार कर लिया तो ग़फ़्फ़ार ख़ां ने दुख भरे लहजे में कहा था कि – ‘आपने तो हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया है। जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज़ भारत को विभाजित करने की अपनी चाल में कामयाब हो ही जाएंगे तब उन्होंने ‘ जून 1947 में पख़्तूनी स्वयंसेवी संगठन खुदाई ख़िदमतगार की ओर से एक ‘बन्नू रेजोल्यूशन’ पेश किया जिसमें मांग की गई कि पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने के बजाय पख़तूनों के लिए अलग देश पख़तूनिस्तान बनाया जाए। हालांकि अंग्रेज़ों ने उनकी इस मांग को ख़ारिज कर दिया। इसी से ज़ाहिर होता है कि वे धर्म के नाम पर पाकिस्तान के गठन के कितने विरोधी थे। ग़फ़्फ़ार ख़ां को सीमांत गाँधी,फ़्रंटियर गांधी,बादशाह ख़ान और बाचा ख़ान जैसे कई नामों से याद किया गया। उनके नाम के साथ गांधी शब्द केवल इसलिए लगाया गया क्योंकि वे न केवल गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे बल्कि वे अपने जीवन में स्वयं गाँधी को ही आत्मसात भी करते थे। कहा जा सकता है कि वे गाँधी को केवल मानते ही नहीं बल्कि जीते भी थे। वर्ष 1987 में पहली बार भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राप्त करने वाले शख़्स ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान,ही थे। बादशाह ख़ानहालाँकि दस्तावेज़ी तौर पर पाकिस्तानी नागरिक ज़रूर थे लेकिन भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से इसीलिए नवाज़ा क्योंकि वे इसके वास्तविक हक़दार थे। दस्तावेज़ों में ग़ैर-हिंदुस्तानी होने के बावजूद वे दिल ो जान से सच्चे हिंदुस्तानी थे।अंग्रेज़ी हुकूमत महात्मा गांधीको ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को एक साथ नहीं देखना चाहती थी। इसी साज़िश के तहत अंग्रेज़ों ने ग़फ़्फ़ार ख़ान पर झूठे मुक़दमे लगाकर उन्हें कई बार जेल भेजने की साज़िशें कीं। परन्तु वे इतने लोकप्रिय थे कि अदालत में उनके विरुद्ध पेश होने के लिए कभी कोई गवाह न मिलता।1929 में ग़फ़्फ़ार ख़ां ने अपने चंद सहयोगियों को साथ लेकर एक संगठन तैय्यार किया जिसका नाम था खुदाई ख़िदमतगार। ’खुदाई ख़िदमतगारका अर्थ है ईश्वर की रची गई सृष्टि का सेवादार। खुदाई ख़िदमतगार भी गाँधी जी की ही तरह अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता और एकता के लिएअहिंसात्मक रूप से आंदोलनरत थे।दरअसल अंग्रेज़ हिंसक होने वाले स्वतंत्रता संबंधी आन्दोलनों को तो अपनी ताक़त से कुचल देते थे परन्तु वे सत्याग्रह,भूख हड़ताल,असहयोग जैसे शांतप्रिय व अहिंसक आन्दोलनों से घबरा जाते थे। सेवाग्राम में एक कार्यक्रम में 16 जुलाई, 1940 को महात्मा गांधी ने कहा था – ‘ख़ान साहब पठान हैं. पठानों के लिए तो कहा जा सकता है कि वे तलवार-बंदूक़ साथ ही लेकर जन्म लेते हैं….पठानों में दुश्मनी निकालने का रिवाज इतना कठोर है कि यदि किसी एक परिजन का ख़ून हुआ हो तो उसका बदला लेना अनिवार्य हो जाता है. एक बार बदला लिया कि फिर दूसरे पक्ष को उस ख़ून का बदला लेना पड़ता है. इस प्रकार बदला पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिलता है और बैर का अंत ही नहीं आता. यह हुई हिंसा की पराकाष्ठा, साथ ही हिंसा का दिवालियापन. क्योंकि इस प्रकार बदला लेते-लेते परिवारों का नाश हो जाता था।’ ख़ान साहब ने पठानों का ऐसा नाश होते देखा. इसलिए उन्होंने समझ लिया कि पठानों का उद्धार अहिंसा में ही है. उन्होंने सोचा ‘अगर मैं अपने लोगों को सिखा सकूं कि हमें ख़ून का बदला बिल्कुल नहीं लेना है, बल्कि ख़ून को भूल जाना है, तो बैर की यह परंपरा समाप्त हो जाएगी और हम जीवित रह सकेंगे.’ यह सौदा नक़द का था. उनके अनुयायियों ने उसे अंगीकार किया, और आज ऐसे ख़िदमतगार देखने में आते हैं जो बदला लेना भूल गए हैं. इसे कहते हैं बहादुर की अहिंसा या सच्ची अहिंसा.’। लेकिन इन सबके बावज़ूद ब्रिटिश सरकार पठानों से ही सबसे ज़्यादा भय खाती थी। ख़ुदाई ख़िदमतगार जैसे अहिंसक संगठनों पर भी अंग्रेज़ों ने कई बार क़हर बरपाया। ग़फ़्फ़ार ख़ान को अंग्रेज़ हमेशा संदेह की दृष्टि से देखते रहे. लेकिन 1939 में म्यूरियल लेस्टर नाम की एक ब्रिटिश शांतिवादी ने जब फ़्रंटियर का दौरा किया, तो वह बादशाह ख़ान के अहिंसक व्यक्तित्व से इस क़द्र प्रभावित हो गईं कि उन्होंने महात्मा गांधी को चिट्ठी में लिखा-‘ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को अब भली-भांति जान लेने के बाद मैं ऐसा महसूस करती हूं कि जहां तक दुनिया भर में अद्भुत व्यक्तियों से मिलने का सवाल है, इस तरह का सौभाग्य मुझे अपने जीवन में शायद कोई और नहीं मिलने वाला है. वे ‘न्यू टेस्टामेंट’ की सौम्यता से युक्त, ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के राजकुमार हैं. वे कितने भगवत्परायण हैं! आपने उनसे हमारा परिचय कराया, इसके लिए मैं आपकी आभारी हूं.’ बाद में इस पत्र के हवाले से बादशाह ख़ान के प्रति ब्रिटिश हुकूमत के नज़रिए की आलोचना करते हुए 28 जनवरी, 1939 के ‘हरिजन’ में महात्मा गांधी ने लिखा – ‘…फिर भी अंग्रेज़ अधिकारियों के लिए इस व्यक्ति का कोई उपयोग नहीं है. वे इससे डरते हैं और इस पर अविश्वास करते हैं. यह अविश्वास वैसे मुझे बुरा न लगता, पर इससे प्रगति में बाधा पड़ती है. इससे भारत और इंग्लैंड की हानि होती है और इस तरह विश्व की भी होती है।’ दंगों के दौरान बिहार में जब गांधी घूम-घूमकर शांति स्थापित करने के प्रयासों में लगे थे, उस समय भी बादशाह ख़ान छाया की तरह गाँधी के साथ रहा करते थे। पटना में 12 मार्च, 1947 को एक सभा में गांधी ने ख़ान साहब की ओर इशारा करते हुए कहा- ‘बादशाह ख़ान मेरे पीछे बैठे हैं. वे तबीयत से फ़क़ीर हैं, लेकिन लोग उन्हें मुहब्बत से बादशाह कहते हैं, क्योंकि वे सरहद के लोगों के दिलों पर अपनी मुहब्बत से हुकूमत करते हैं. वे उस कौम में पैदा हुए हैं जिसमें तलवार का जवाब तलवार से देने का रिवाज है. जहां ख़ानदानी लड़ाई और बदले का सिलसिला कई पुश्तों तक चलता है. लेकिन बादशाह ख़ान अहिंसा में पूरा विश्वास रखते हैं. मैंने उनसे पूछा कि आप तो तलवार के धनी हैं, आप यहां कैसे आए? उन्होंने बताया कि हमने देखा हम अहिंसा के ज़रिए ही अपने मुल्क को आज़ाद करा सकते हैं. और अगर पठानों ने ख़ून का बदला ख़ून की पॉलिसी को न छोड़ा और अहिंसा को न अपनाया तो वे ख़ुद आपस में लड़कर तबाह हो जाएंगे. जब उन्होंने अहिंसा की राह अपनाई, तब उन्होंने अनुभव किया कि पठान जनजातियों के जीवन में एक प्रकार का परिवर्तन हो रहा है।’बादशाह ख़ान का जीवन आतंकवाद व हिंसा में लिप्त उन मुसलमानों के लिए भी एक आदर्श है और उन हिंदूवादियों के लिए भी जो द्विराष्ट् के जिन्नाह के सिद्धांत के आधार पर समूचे भारतीय मुसलमानों पर सवाल खड़ा करते हैं। ‘बादशाह ख़ान,अबुल कलम आज़ाद,रफ़ी अहमद क़िदवई,तय्यब जी,आसिफ़ अली,मोहम्मद यूनुस,ज़ाकिर हुसैन,जैसे सैकड़ों वरिष्ठ मुस्लिम नेता थे जो पाकिस्तान के गठन का विरोध व संयुक्त भारत की कल्पना करते थे मगर अंग्रेज़ों ने कट्टरपंथियों के विचारों का साथ देकर बांटो और राज करो की अपनी चिर परिचित नीति अपनाकर भारत का विभाजन करा दिया। सीमान्त गाँधी किसी धर्म के नहीं बल्कि मानवता के सच्चे हितैषी व नायक थे और एकीकृत भारत की प्रबल आवाज़ भी थे। Read more » ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ां सीमांत गाँधी
राजनीति शख्सियत समाज हिंदूराष्ट्र स्वप्नद्रष्टा : बंदा वीर बैरागी October 16, 2019 / October 16, 2019 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अध्याय —– 5 बंदा वीर बैरागी के जन्म काल की परिस्थितियां आदि शंकराचार्य नित्य प्रति की भांति स्नान के लिए गंगा की ओर उस दिन भी जा रहे थे। रास्ते में एक चांडाल अपने चार कुत्तों के साथ उनका मार्ग घेरे हुए खड़ा था । उस चांडाल को देखते ही शंकराचार्य ने दूर से ही […] Read more » Banda veer bairagi बंदा वीर बैरागी
महत्वपूर्ण लेख राजनीति शख्सियत हिंदू राष्ट्र स्वप्नदृष्टा : बंदा वीर बैरागी October 14, 2019 / October 14, 2019 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अध्याय —- 4 गुरु गोविंद सिंह जी और उनके सुपुत्रों का बलिदान पंजाब में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के काल में ही हमारे चरितनायक बंदा वीर बैरागी जी का उद्भव हुआ । यही वह काल था जब परिस्थितियों ने एक संन्यासी को भी राष्ट्र के कार्य के लिए उठा लिया और उससे […] Read more » बंदा वीर बैरागी
राजनीति शख्सियत महान कलाम तुझे सलाम October 14, 2019 / October 14, 2019 by सज्जाद हैदर | Leave a Comment भारत के इतिहास में सोने के अक्षरों में अंकित एक ऐसा व्यक्ति जन्म लेता है जोकि बेहद गरीब परिवार में अपनी आँखें खोलता है जिसे दो जून की रोटी भी खाने को नसीब नहीं होती। इस विक्राल परिस्थिति में जन्मे हुए बच्चे ने संघर्ष करना शुरू किया और कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक […] Read more » Kalam कलाम
शख्सियत समाज दृढ़ और सौम्य राजनेता: राजमाता विजयाराजे सिंधिया October 12, 2019 / October 12, 2019 by विवेक कुमार पाठक | Leave a Comment राजमाता विजयाराजे सिंधिया की 100वीं जयंती पर स्मरण आलेख विवेक कुमार पाठक राष्ट्रवादी विचारधारा से लेकर जनसंघ से जन्मी और राजमाता द्वारा पाली पोसी गई भारतीय जनता पार्टी के लिए राजमाता विजयाराजे सिंधिया कितनी आदरणीय बुजुर्ग हैं ये पिछले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में देश ने देखा। मौजूदा सक्रिय राजनीति में भाजपा शीर्षस्थ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी […] Read more » राजमाता विजयाराजे सिंधिया
राजनीति शख्सियत पत्रकारिता के रूप में पं. दीनदयाल उपाध्याय September 24, 2019 / September 24, 2019 by लोकेन्द्र सिंह राजपूत | Leave a Comment – लोकेन्द्र सिंह पंडित दीनदयाल उपाध्याय बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। सादगी से जीवन जीने वाले इस महापुरुष में राजनीतिज्ञ, संगठन शिल्पी, कुशल वक्ता, समाज चिंतक, अर्थचिंतक, शिक्षाविद्, लेखक और पत्रकार सहित कई प्रतिभाएं समाहित थी। ऐसी प्रतिभाएं कम ही होती हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय के राजनीतिक व्यक्तित्व को सब भली प्रकार जानते हैं। उन्होंने जनसंघ का कुशल नेतृत्व किया, उसके लिए सिद्धाँत […] Read more » पं. दीनदयाल उपाध्याय
महत्वपूर्ण लेख शख्सियत समाज भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन प्रणेता : आचार्य विनोबा भावे September 9, 2019 / September 9, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग-जब-जब मानवता विनाश की ओर बढ़ती चली जाती है, नैतिक मूल्य अपनी पहचान खोते जाते हैं, समाज में पारस्परिक संघर्ष की स्थितियां बनती हैं, समस्याओं से मानव मन कराह उठता है, तब-तब कोई न कोई महापुरुष अपने दिव्य कर्तव्य, मानवतावादी सोच, चिन्मयी पुरुषार्थ और तेजोमय शौर्य से मानव-मानव की चेतना को झंकृत कर जन-जागरण […] Read more » aacharya vinoba bhave भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन प्रणेता
शख्सियत शाबाश रानू ! बंगभूमि की जादुई आवाज़ की कशिश में डूबी दुनिया September 4, 2019 / September 4, 2019 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल किस्मत को गढ़ना बेहद मुश्किल है। जिंदगी में कभी-कभी आपकी लाख कोशिश मुकाम नहीं दिला पाती। लेकिन कभी मंजिल आराम से मिल जाती है। उसके लिए कोई अतिरक्त प्रयास भी नहीं करने पड़ते। ऐसा भी होता है जब किस्मत को गढ़ने […] Read more » Ranu Mondal रानू रानू मंडल
राजनीति शख्सियत समाज गांव को उन्नत, खुशहाल बनाने में जुटे हुए हैं आर.के.सिन्हा June 10, 2019 by मुरली मनोहर श्रीवास्तव | Leave a Comment मुरली मनोहर श्रीवास्तव पटना से महज 55 किलोमीटर दक्षिण कोइलवर पुल से पार करते ही एक गांव है बहियारा। इस इलाके के लोग 1934 में सोन नदी में आयी भयंकर बाढ़ से त्रस्त इस इलाके से बड़े पैमाने पर पलायन कर गए। रह गई तो इस इलाके में भूखमरी, गरीबी और दर्द की आग में […] Read more » R K Sinha आर.के.सिन्हा उद्योगपति सह राज्यसभा सांसद आर.के.सिन्हा