कला-संस्कृति गाय सर्वोत्तम उपकारी पशु होने सहित हमारी पूजनीय देवता भी है April 15, 2022 / April 15, 2022 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य परमात्मा ने इस सृष्टि को जीवात्माओं को कर्म करने व सुखों के भोग के लिए बनाया है। जीवात्मा का लक्ष्य अपवर्ग होता है। अपवर्ग मोक्ष वा मुक्ति को कहते हैं। दुःखों की पूर्ण निवृत्ति ही मोक्ष कहलाती है। यह मोक्ष मनुष्य योनि में जीवात्मा द्वारा वेदाध्ययन द्वारा ज्ञान प्राप्त कर एवं उसके अनुरूप आचरण करने से प्राप्त होता है। सांख्य दर्शन में महर्षि कपिल ने मोक्ष का सूक्ष्मता से विवेचन किया है जिससे यह ज्ञात होता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य वेद विहित सद्कर्मों अर्थात् ईश्वरोपासना, अग्निहोत्र यज्ञ एवं परोपकार आदि को करके जन्म व मरण के बन्धन वा दुःखों से छूटना छूटना है। जन्म व मरण रूपी आवागमन से अवकाश ही मोक्ष प्राप्ति है। मनुष्य को जीवित रहने के लिए भूमि, अन्न व जल सहित गोदुग्ध व फलों आदि मुख्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। गोदुग्ध हमें गाय से मिलता है। दूध व घृत आदि वैसे तो अनेक पशुओं से प्राप्त होते हैं परन्तु गाय के दूध के गुणों की तुलना अन्य किसी भी पशु से नहीं की जा सकती। गाय का दुग्ध मनुष्य के स्वास्थ्य, बल, बुद्धि, दीर्घायु आदि के लिए सर्वोत्तम साधन व आहार है। मनुष्य का शिशु अपने जीवन के आरम्भ में अपनी माता के दुग्ध पर निर्भर रहता है। माता के बाद उसका आहार यदि अन्य कहीं से मिलता है तो वह गाय का दुग्ध ही होता है। गाय का दूध भी लगभग मां के दूध के समान गुणकारी व हितकर होता है। भारत के सभी ऋषि, मुनि, योगी तथा विद्वान गोपालन किया करते थे और गाय का दूध, दधि, छाछ व घृत आदि का सेवन करते थे। गोदुग्ध से घृत भी बनाते थे और उससे अग्निहोत्र यज्ञ कर वायु व जल आदि की शुद्धि करते थे। इन सब कार्यों से वह स्वस्थ, सुखी व दीर्घायु होते थे। ईश्वर प्रदत्त वेद के सूक्ष्म व सर्वोपयोगी ज्ञान को प्राप्त होकर सृष्टि के सभी रहस्यों यहां तक की ईश्वर का साक्षात्कार करने में भी सफल होते थे और मृत्यु होने पर मोक्ष या श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर सुख व आनन्दयुक्त जीवन प्राप्त करते थे। गाय से हमें केवल दूध ही नहीं मिलता अपितु गाय नामी पशु हमारी अपनी माता के समान नाना प्रकार से हमारी सेवा करती है और साथ ही कुछ महीनों व वर्षों के अन्तराल पर हमें पुनः बछड़ी व बछड़े देकर प्रसन्न व सन्तुष्ट करती है। बछड़ी कुछ वर्ष में ही गाय बन जाती है और हम उसके भी दुग्ध, गोबर, गोमूत्र, गोचर्म (मरने के बाद) को प्राप्त कर अपने जीवन मे सुख प्राप्त करते हैं। गोबर न केवल ईधन है जिससे विद्युत उत्पादन, गुणकारी खाद, घर की लिपाई आदि में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी प्रकार से गोमूत्र भी एक महौषधि है। इससे कैंसर जैसे रोगों का सफल उपचार होता है। नेत्र ज्योति को बनाये रखने तथा नेत्र रोगों को दूर करने में भी यह रामबाण औषध के समान एक रसायन है। त्वचा के रोगों में भी गोमूत्र से लाभ होता है। आजकल पंतजलि आयुर्वेद द्वारा गोमूत्र को सस्ते मूल्य तथा आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध कराया जा रहा है जिसका लाखों लोग अमृत के समान प्रतिदिन सेवन करते हैं। गोमूत्र किटाणु नाशक होता है। इससे उदरस्थ कीड़े भी समाप्त हो जाते हैं। ऐसे और भी अनेक लाभ गोमूत्र से होते हैं। गाय के मर जाने पर उसका चर्म भी हमारे पैरों आदि की रक्षा करता है। गोचर्म के भी अनेक उपयोग हैं अतः हम जो जो लाभ गो माता से लेते जाते हैं उस-उस से हम गोमाता के ऋणी होते जाते हैं। हमारा भी कर्तव्य होता है कि हम भी गोमाता का, उससे हमें मिलने वाले लाभों के प्रति, प्रत्युपकार करें, उसका ऋण उतारें, उसको अच्छा चारा दें, उसकी खूब सेवा करें और उसके दुग्ध व गोमूत्र का पान करें जिससे हम स्वस्थ व दीर्घायु होकर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कर सकें। गाय से हमें सबसे अधिक लाभ गोदुग्ध से ही होता है। जो मनुष्य गोदुग्ध का सेवन अधिक करता है उसको अधिक अन्न की आवश्यकता नहीं होती। इससे अन्न की बचत होती है और देश के करोड़ो भूखे व निर्धन लोगों को अपनी भूख की निवृत्ति में सहायता मिल सकती है। यह रहस्य की बात है कि देश में जितनी अधिक गौंवे होंगी देश में गोदुग्ध, गोघृत व अन्न उतना ही अधिक सस्ता होगा जिससे निर्धन व देश के भूखे रहने वाले लोगों को लाभ होगा। अनुमान से ज्ञात होता है कि देश की लगभग 40 प्रतिशत से अधिक जनता निर्धन एवं अन्न संकट से त्रस्त रहती है। वर्तमान की केन्द्र में मोदी सरकार ने देश भर में निर्धन लोगों को निःशुल्क राशन देकर इस समय अन्न की समस्या पर विजय पाई है। हमने भी अपने जीवन में निर्धनता और परिवारों में अन्न संकट देखा है। ऐसी स्थिति में यदि किसी निर्धन व्यक्ति के पास एक गाय होती है और उसे कुछ पुरुषार्थ करने पर आस-पास से पशु-चारा मिल जाता है तो वह व उसका परिवार अन्न संकट एवं कुछ साध्य व असाध्य रोगों सहित असमय में मृत्यु का ग्रास बनने से बच जाता है। ऋषि दयानन्द ने गाय के दूध और अन्न के उत्पादन से संबंधित गणितीय रीति के अनुसार गणना कर बताया है कि एक गाय के जन्म भर के दूघ मात्र से 25,740 पच्चीस हजार सात सौ चालीस लोगों का एक समय का भोजन होता है अर्थात् इतनी संख्या में लोगों की भूख से तृप्ति होती है। स्वामी जी ने एक गाय की एक पीढ़ी अर्थात् उसके जीवन भर के कुल बछड़ी व बछड़ों से दूघ मात्र से एक बार के भोजन से कितने लोग तृप्त हो सकते हैं, इसकी गणना कर बताया है कि 1,54,440 लोग तृप्त व सन्तुष्ट होते हैं। वह बताते हैं कि एक गाय से जन्म में औसत 6 बछड़े होते हैं। उनके द्वारा खेतों की जुताई से लगभग 4800 मन अन्न उत्पन्न होता है। इससे कुल 2,56,000 हजार मनुष्य का भोजन से निर्वाह एक समय में हो सकता है। यदि एक गाय की एक पीढ़ी से कुल दूघ व अन्न से तृप्त होने वाले मनुष्यों को मिला कर देखें तो कुल 4,10,440 चार लाख दस हजार चार सौ चालीस मनुष्यों का पालन एक बार के भोजन से होता है। वह यह भी बताते हैं कि यदि एक गाय से उसके जीवन में उत्पन्न औसत 6 गायों वा बछड़ियों से उत्पन्न दूध व बछड़ों-बैलों से अन्न की गणना की जाये तो असंख्य मनुष्यों का पालन हो सकता है। इसके विपरीत यदि एक गाय को मार कर खाया जाये तो उसके मांस से एक समय में केवल अस्सी मनुष्य ही पेट भर कर सन्तुष्ट हो सकते है। निष्कर्ष में ऋषि दयानन्द जी कहते हैं कि ‘देखो! तुच्छ लाभ के लिए लाखों प्राणियों को मार कर असंख्य मनुष्यों को हानि करना महापाप क्यों नहीं?’ गायों से इतने लाभ मिलने पर भी यदि कोई व्यक्ति व समूह गाय की हत्या करता व करवाता है और मांस खाता है व उसे प्रचारित व समर्थन आदि करता है तो वह ज्ञान व बुद्धि से हीन ही कहा जा सकता है। गाय सही अर्थों में देवता है जो न केवल हमें अपितु सृष्टि के आरम्भ से हमारे पूर्वजों का पालन करती आ रही है और प्रलय काल तक हमारी सन्तानों का भी पालन करती रहेगी। गाय से होने वाले इन लाभों के कारण निश्चय ही वह एक साधारण नहीं अपितु सबसे महत्वपूर्ण वा प्रमुख देवता है। हम गोमाता को नमन करते हैं। हमें गोमाता पृथिवी माता के समान महत्वपूर्ण अनुभव होती है। वेद ने तो भूमि, गाय और वेद को माता कह कर उसका स्तुतिगान किया ही है। गोकरूणानिधि नामक अपनी लघु पुस्तक की भूमिका में लिखे ऋषि दयानन्द जी के कुछ शब्द लिख कर हम इस लेख को विराम देते हैं। वह कहते हैं ‘सृष्टि में ऐसा कौन मनुष्य होगा जो सुख और दुःख को स्वयं न मानता हो? क्या ऐसा कोई भी मनुष्य है कि जिसके गले को काटे वा रक्षा करे, वह दुःख और सुख को अनुभव न करे? जब सबको लाभ और सुख ही में प्रसन्नता है, तब विना अपराध किसी प्राणी का प्राण वियोग करके अपना पोषण करना सत्पुरुषों के सामने निन्द्य कर्म क्यों न होवे? सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर इस सृष्टि में मनुष्यों के आत्माओं में अपनी दया और न्याय को प्रकाशित करे कि जिससे ये सब दया और न्याययुक्त होकर सर्वदा सर्वोपकारक काम करें और स्वार्थपन से पक्षपातयुक्त होकर कृपापात्र गाय आदि पशुओं का विनाश न करें कि जिससे दुग्ध आदि पदार्थों और खेती आदि क्रिया की सिद्धि से युक्त होकर सब मनुष्य आनन्द में रहें।’ Read more » Cow Best Benevolent Animal BeingIncluding Our WorshipGodAlso गाय सर्वोत्तम उपकारी पशु
कला-संस्कृति महावीर है आत्म-क्रांति के वीर महापुरुष April 10, 2022 / April 10, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग – महावीर का संपूर्ण जीवन स्व और पर के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इसलिए महावीर बनना जीवन की सार्थकता का प्रतीक है। महावीर बनने का अर्थ है स्वस्थ जीवन जीना, रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना। प्रत्येक वर्ष हम भगवान महावीर की […] Read more » Mahavir is a heroic great man of self-revolution. महावीर
कला-संस्कृति लेख रामनवमी एवं आर्यसमाज-स्थापना-दिवस सनातन वैदिक धर्मियों के दो महनीय पर्व April 10, 2022 / April 10, 2022 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्यआज दिनांक 10 अप्रैल, 2022 को दो महनीय पर्व रामनवमी एवं आर्यसमाज स्थापना दिवस हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम वैदिक धर्म एवं संस्कृति के आदर्श महान् पुरुष, रक्षक एवं प्रहरी हैं। उनका जीवन सभी मनुष्यों व संसार के लिए प्ररेक एवं अनुकरणीय है। वाल्मीकि रामायण के अनुरूप उनका जीवन सब मनुष्यों के अध्ययन […] Read more » Ramnavami and Aryasamaj-foundation day two great festivals of the eternal Vedic righteous रामनवमी एवं आर्यसमाज-स्थापना-दिवस
कला-संस्कृति लेख श्रीराम हैं सुशासन एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रेरक April 6, 2022 / April 6, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment श्रीरामनवमी-10 अप्रैल 2022 पर विशेष ललित गर्ग- हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनःर्स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। श्रीरामचन्द्रजी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी […] Read more » श्रीरामनवमी-10 अप्रैल 2022
कला-संस्कृति नव सम्वत् पर संस्कृति का सादर वन्दन करें April 4, 2022 / April 4, 2022 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीयनवरात्र हवन के झोंके, सुरभित करते जनमन को।है शक्तिपूत भारत, समरस हो जनमन में ॥नव सम्वत् पर संस्कृति का, सादर वन्दन करते हैं।हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनन्दन करते हैं॥ 2 अप्रैल से विक्रम सम्वत् 2079 का प्रारम्भ हो गया है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच […] Read more » Salute the culture on the new era नव सम्वत् पर संस्कृति का सादर वन्दन करें
कला-संस्कृति नारी के अखंड सौभाग्य का पर्व है गणगौर April 2, 2022 / April 2, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग- राजस्थान की उत्सव संस्कृति जहां समृद्ध है वहीं उसमें जीवन के रंग, कला, शौर्य, पराक्रम एवं बलिदान की भावना देखने को मिलती है। यहां का सिरमौर पर्व है गणगौर। इस पर्व में राजस्थान की बहुरंगी संस्कृति, शौर्य और भावों का एक साथ मिलन देखने को मिलता है। एक से बढ़कर एक अद्भुत […] Read more » Gangaur is the festival of unbroken good fortune of women. गणगौर
कला-संस्कृति हिन्दू नववर्ष- गौरवशाली भारतीय संस्कृति के परिचायक का पर्व April 2, 2022 / April 2, 2022 by दीपक कुमार त्यागी | Leave a Comment दीपक कुमार त्यागी दुनिया में “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत को मानने वाले सबसे प्राचीन गौरवशाली सनातन धर्म व संस्कृति का आम जनमानस के बीच अपना एक बेहद महत्वपूर्ण और विशेष सम्मानजनक स्थान हमेशा से रहा है। आज के दिखावे वाले व्यवसायिक दौर में जब पैसे व बाजार की ताकत के बलबूते दुनिया में पश्चिमी सभ्यता […] Read more » a festival that reflects the glorious Indian culture Hindu new year भारतीय संस्कृति के परिचायक का पर्व हिन्दू नववर्ष
कला-संस्कृति विक्रम सम्वत् के प्रवर्तक हैं सम्राट विक्रमादित्य April 2, 2022 / April 2, 2022 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment श्रीराम तिवारीस्वाधीन भारत में संविधान स्वीकार करते समय राष्ट्र गान एवं राष्ट्र ध्वज के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर दो सम्वत् अंगीकार किये गये हैं. पहला ईस्वी सम्वत् और दूसरा शक सम्वत्। ये दोनों ही सम्वत् भारत आक्रांताओं और उसे पराधीन बनाने वाली शक्तियों द्वारा प्रवर्तित किये गये हैं. जहाँ तक ईस्वी सम्वत् का प्रश्न है […] Read more » Emperor Vikramaditya is the originator of Vikram Samvat विक्रम सम्वत् के प्रवर्तक हैं सम्राट विक्रमादित्य सम्राट विक्रमादित्य
कला-संस्कृति भारतीय नववर्ष: हमारा गौरव, हमारी पहचान April 1, 2022 / April 1, 2022 by डॉ. पवन सिंह मलिक | Leave a Comment डॉ. पवन सिंह भारतीय नववर्ष हमारी संस्कृति व सभ्यता का स्वर्णिम दिन है. यह दिन भारतीय गरिमा में निहित अध्यात्म व विज्ञान पर गर्व करने का अवसर है. जिस भारत भूमि पर हमारा जन्म हुआ, जहां हम रहते हैं, जिससे हम जुड़े हैं उसके प्रति हमारे अंदर अपनत्व व गर्व का भाव होना ही चाहिए. भारतीय नववर्ष, इसे नव संवत्सर भी कह सकते हैं. इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था और सभी देवताओं ने सृष्टि के संचालन का दायित्व संभाला था. यह भारतीय या हिंदू रीति से नववर्ष का शुभारंभ है. यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रथमा को मनाया जाता है. जब पूरा विश्व एक जनवरी को नए वर्ष का आरंभ मानता है और भारत में भी 31 दिसंबर की रात को बारह बजे नए वर्ष का जश्न मनाया जाता है, उस मदहोशी में अपने देश की विस्मृत परंपरा को बनाए रखना अँधेरी रात में दिया जलाने के समान है. लेकिन जागरूक भारतीय समाज के प्रयासों से पिछले कई दशकों से इस परंपरा को कायम रखने में सज्जन शक्ति अपने-अपने स्थान पर लगी हुई है. यदि जापान अपनी परंपरागत तिथि अनुसार अपना नववर्ष ‘याबुरी’ मना सकता है. म्यांमार अप्रैल माह के मध्य में अपना नववर्ष ‘तिजान’ मना सकता है. ईरान मार्च माह में अपना नववर्ष ‘नौरोज’ मना सकता है. चीन चंद्रमा […] Read more » Indian New Year: Our Pride Our Identity our indian culture भारतीय नववर्ष
कला-संस्कृति भगवान झूलेलाल का अवतरण हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु हुआ था April 1, 2022 / April 1, 2022 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment जैसा कि सर्वविदित है कि प्राचीन भारत का इतिहास बहुत वैभवशाली रहा है। भारत माता को सही मायने में “सोने की चिड़िया” कहा जाता था एवं इस संदर्भ में भारत की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई थी। इसके चलते भारत माता को लूटने और इसकी धरा पर कब्जा करने के उद्देश्य से पश्चिम के […] Read more » Lord Jhulelal was incarnated to protect Hindu religion. भगवान झूलेलाल हिन्दू धर्म की रक्षा
कला-संस्कृति मनोरंजन रोगनाशक, ग्रहदोष निवारक, पवित्र रक्तपुष्पक पलाश March 25, 2022 / March 25, 2022 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment -अशोक “प्रवृद्ध” झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, छतीसगढ़ आदि प्रदेशों सहित सम्पूर्ण भारत के जंगल इन दिनों पलाश के पेड़ों में लदे लाल- लाल रक्ताक्ष फूलों से पुष्पित हो रहे हैं। वसंत काल में वायु के झोंकों से हिलती हुई पलाश की शाखाएँ वन की ज्वाला के समान लग रहीं हैं और इनसे ढकी हुई धरती […] Read more » Curative holy blood purifier Palash planetary repellent पलाश
कला-संस्कृति पर्यावरण हमारे आँगना आओ ओरी गौरैया March 22, 2022 / March 22, 2022 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment गौरैया हमारी प्राकृतिक सहचरी है। कभी वह हमारे आँगन और नीम के पेड़ के नीचे फुदकती और बिखेरे गए चावल या अनाज के दाने को चुगती। कभी प्यारी गौरैया घर की दीवार पर लगे आईने पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती दिख जाती है। लेकिन बदलते वक्त के साथ गौरैया का बयां बेहद कम दिखाई […] Read more » 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस Sparrow Conservation Day Sparrow Conservation Day on March 20 हमारे आँगना आओ ओरी गौरैया