कला-संस्कृति दफन हो जाये ऐसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता March 12, 2010 / December 24, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 6 Comments on दफन हो जाये ऐसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मकबूल फिदा हुसैन को लेकर फिर चर्चा है। कतर की नागरिकता लेने के बाद उनके पक्ष में तकरीरें की जा रही है। प्रगतिशील और भारतीय आस्थाओं के विरोधी एक बार फिर लामबंद, सक्रिय और आक्रामक हैं। हुसैन की करतूतों के कारण भारत में उनका काफी विरोध हुआ। भारत में कानून की हालत यह है कि […] Read more » Fida Hussain अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मकबूल फिदा हुसैन
कला-संस्कृति हुसैन की बिल्ली थैले से बाहर निकली March 9, 2010 / December 24, 2011 by अम्बा चरण वशिष्ठ | 6 Comments on हुसैन की बिल्ली थैले से बाहर निकली बिल्ली तो अब थैले से बाहर आ ही गई। यह कहावत विख्यात चित्रकार मुहम्मद फिदा हुसैन पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। साथ ही उनकी पोल भी खुल गई है। भारत की नागरिकता त्याग कर खाडी देश कतर की नागरिकता ग्रहण कर अपने आप को सम्मानित महसूस कर उन्होंने भी सैकुलरवाद, उदारवाद तथा जनतन्त्र के […] Read more » MF Hussain एफ एम हुसैन मकबूल फिदा हुसैन
कला-संस्कृति कला के जरिए कंडोम के प्रयोग पर जोर March 9, 2010 / December 24, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment हमारे समाज में सेक्स को वर्जित माना जाता है और शारारिक जरुरतों की अवहेलना की जाती है। दरअसल जीवन को संपूर्णता में जीने की कोशिश कोई नहीं करना चाहता। यौन कार्यकलापों को अश्लीलता की श्रेणी में रखा जाता है। इसका मूल कारण है हमारी सभ्यता और संस्कृति, जो हमें उन्मुक्त एवं स्वछंद होने से रोकती […] Read more » Condom कंडोम कला
कला-संस्कृति मकबूल फिदा हुसैन के पलायन को लेकर उठे प्रश्न March 8, 2010 / December 24, 2011 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | 10 Comments on मकबूल फिदा हुसैन के पलायन को लेकर उठे प्रश्न मकबूल फिदा हुसैन ने 95 साल की उम्र में भारत की नागरिकता छोडकर कतर देश की नागरिकता स्वीकार कर ली है। वे जाने माने चित्रकार हैं और उनके चित्र लाखों में बिकते हैं। जो चीज लाखों में बिकती है वो सैकडों में ही चर्चित होती है। आम आदमी से उसका कोई ताल्लुक नहीं होता। लेकिन […] Read more » MF Hussain मकबूल फिदा हुसैन
कला-संस्कृति लोकतंत्र में निर्जन एकांत नहीं होता मकबूल फिदा हुसैन March 4, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on लोकतंत्र में निर्जन एकांत नहीं होता मकबूल फिदा हुसैन एफ एम हुसैन साहब बहुत बड़े चित्रकार हैं,भारतीय चित्रकला परंपरा में उनका गौरवपूर्ण स्थान है। भारतीय कला के उन्होंने अनेक नए मानक बनाए और तोड़े है। उनकी कला में भारत की आत्मा निवास करती है। कलाकार के रंगों के साथ उसके देश का अभिन्न संबंध होता है। उनकी कला का धर्मनिरपेक्ष आयाम भारतीय कलाकारों, बुद्धिजीवियों […] Read more » MF Hussain एफ एम हुसैन फिदा हुसैन भारतीय चित्रकला
कला-संस्कृति सभ्य मन की अनग अभिव्यक्ति है होली – जयप्रकाश सिंह February 28, 2010 / December 24, 2011 by जयप्रकाश सिंह | 7 Comments on सभ्य मन की अनग अभिव्यक्ति है होली – जयप्रकाश सिंह भारतीय मनीषीयों ने ईवर की अनुभूति ‘रसो वै सः’ के रुप में की है । चरम अनुभति को रसमय माना है । यही मनीषी ईवर को सिच्चदानंद भी कहता है । यानी भारतीय मानस के लिए ईवर और आनंद की अनुभूतियां अलग अलग नहीं हैं । होली भारतीय चित द्वारा इसी रस की स्वीकृति और अभिव्यक्ति है । […] Read more » Holi जयप्रकाश सिंह होली
कला-संस्कृति प्रदर्शनी में दिखी लोकतंत्र की झलक February 4, 2010 / December 25, 2011 by लिमटी खरे | Leave a Comment लोस अध्यक्ष मीरा कुमार ने किया उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने बुधवार को भोपाल में देश के संसदीय इतिहास पर आधारित प्रदर्शनी का उद्धाटन किया। इस मौके पर राज्यसभा के उपाध्यक्ष के. रहमान, विधानसभा के अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी, उपाघ्यक्ष हरवंश सिंह सहित विभिन्न राज्यों से आए पीठासीन अधिकारी उपस्थित थे। भारत की विधानसभाओं के […] Read more » Meera Kumar प्रदर्शनी मीरा कुमार
कला-संस्कृति ऊर्जावान, विवेकवान युवा भारत के लिए आओ करें सूर्य नमस्कार January 11, 2010 / December 25, 2011 by पंकज व्यास | 1 Comment on ऊर्जावान, विवेकवान युवा भारत के लिए आओ करें सूर्य नमस्कार 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती मनाई जाती है। स्वामी विवेकानंद को कौन नहीं जानता? उनके बारे में, उनके व्यक्ति के बारे में हर भारतीय भलीभांति परिचित होगा। सब जानते हैं कि किस तरह स्वामी विवेकानंद ने अपने विवेक से, अपनी मेधा से पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का परचम फहराया। भारत से लेकर शिकांगो सम्मेलन […] Read more » Swamy Vivekanand स्वामी विवेकानंद
कला-संस्कृति अपसंस्कृति और उपभोक्तावाद के प्रवक्ता January 8, 2010 / January 8, 2010 by संजय द्विवेदी | 2 Comments on अपसंस्कृति और उपभोक्तावाद के प्रवक्ता “और आज छीनने आए हैं वे हमसे हमारी भाषा यानी हमसे हमारा रूप जिसे हमारी भाषा ने गढ़ा है और जो इस जंगल में इतना विकृत हो चुका है कि जल्दी पहचान में नहीं आता” हिंदी के प्रख्यात कवि स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ये पंक्तियां किन्हीं दूसरे संदर्भों पर लिखी गई हैं, लेकिन वह […] Read more » अपसंस्कृति उपभोक्तावाद
कला-संस्कृति कला समीक्षा: और अब मोहतरमा January 7, 2010 / December 25, 2011 by निधि सक्सेना | 6 Comments on कला समीक्षा: और अब मोहतरमा स्त्री केंद्रित चित्र, पुरुष चित्रकार और स्त्री कलाकार की समीक्षा-दृष्टि कला किसके लिए! इसके हज़ारों जवाब हैं, लेकिन मुकम्मल कोई नहीं, शायद इसीलिए ये सवाल अब तक मौजूं है। क्या कला इंसान के लिए, उसकी तक़लीफ़ बयां करने के लिए है? या रसना-नयन तृप्ति के लिए है…विलास का साधन है…? कला को लेकर विमर्श की […] Read more » Kala Review अडिग कला समीक्षा
कला-संस्कृति रोमांच का स्थल सिनेमाघर January 1, 2010 / December 25, 2011 by ब्रजेश कुमार झा | 1 Comment on रोमांच का स्थल सिनेमाघर दिल्ली में कभी मोती सिनेमाघर का जलवा था। यह चांदनी चौक इलाके में स्थित है। पुराने लोग बताते हैं कि यह राजधानी के पुराने सिनेमाघरों में से एक है। शायद सबसे पुराना। सिनेमाघरों पर दृश्य-श्रव्य माध्यम से सराय/सीएसडीएस में शोध कर चुकीं नंदिता रमण ने कहा, “किरीट देशाई ने सन् 1938 में एक पुराने थिएटर […] Read more » Cinema house सिनेमाघर
कला-संस्कृति रीगल सिनेमाघर : ओपेरा हाउस से सिनेमाघर तक December 19, 2009 / December 25, 2011 by ब्रजेश कुमार झा | 2 Comments on रीगल सिनेमाघर : ओपेरा हाउस से सिनेमाघर तक फिजूल की बात लग सकती है ! पर ताज्जुब न हो, कई बार ऐसा होता है कि सिनेमाघर आपको उस शहर की ठीक-ठीक उम्र बतला दे। अब दिल्ली के कनॉट प्लेस में आबाद रीगल सिनेमाघर को ही लें। यह इमारत सन् 1920 में तैयार हुई थी। इसकी काया वास्तुकार वाल्टर जॉर्ज की दिमागी उपज है। […] Read more » Cinema hall सिनेमाघर