आलोचना असमानता की आजादी का जश्न! August 7, 2011 / December 7, 2011 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 5 Comments on असमानता की आजादी का जश्न! डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ 15 अगस्त, 2011 को हम आजादी की 65वीं सालगिरह मनाने जा रहे भारत में कौन कितना-कितना और किस-किस बात के लिये आजाद है? यह बात अब आम व्यक्ति भी समझने लगा है| इसके बावजूद भी हम बड़े फक्र से देशभर में आजादी का जश्न मनाते हैं| हर वर्ष आजादी के जश्न […] Read more » independence आजादी आजादी का जश्न
आलोचना पुस्तक समीक्षा ‘हेलो बस्तर’ को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं July 30, 2011 / December 7, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment कौशलेन्द्र “हेलो बस्तर” [राहुल पंडिता की पुस्तक पर एक विमर्श] ‘हैलो बस्तर’ की एकांगी समीक्षा की है राजीव रंजन प्रसाद ने सत्य का गला घोट दिया है राहुल पंडिता ने १- भूमकाल से माओवादी संघर्ष की तुलना नहीं की जा सकती. दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क है. दोनों के उद्देश्यों में फर्क है. दोनों के […] Read more » hello bastar नक्सलाद बस्तर माओवाद हेलो बस्तर
आलोचना पुस्तक समीक्षा सत्य का गला घोट दिया है राहुल पंडिता ने July 28, 2011 / December 8, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment हाल ही में बस्तर के आदिवासियों की समस्याओं और यहां चल रहे माओवादी आंदोलन पर राहुल पंडिता की पुस्तक ‘हेलो बस्तर’ प्रकाशित हुई है। राजीव रंजन प्रसाद ने इसकी समीक्षा लिखी और यह सर्वप्रथम प्रवक्ता डॉट कॉम पर प्रकाशित हुई। इस समीक्षा पर 10 टिप्पणियां आईं। सारगर्भित। एक टिप्पणीकार को छोड़कर शेष सभी ने राजीव […] Read more » Bastar बस्तर माओवाद राहुल पंडिता हेलो बस्तर
आलोचना पुस्तक समीक्षा ‘हैलो बस्तर’ की एकांगी समीक्षा की है राजीव रंजन प्रसाद ने July 28, 2011 / December 8, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on ‘हैलो बस्तर’ की एकांगी समीक्षा की है राजीव रंजन प्रसाद ने ए.के. पंकज हाल ही में बस्तर के आदिवासियों की समस्याओं और यहां चल रहे माओवादी आंदोलन पर राहुल पंडिता की पुस्तक ‘हेलो बस्तर’ प्रकाशित हुई है। राजीव रंजन प्रसाद ने इसकी समीक्षा लिखी और यह सर्वप्रथम प्रवक्ता डॉट कॉम पर प्रकाशित हुई। इस समीक्षा पर ए. के. पंकज ने टिप्पणी लिखकर इसे एकांगी करार दिया है। हम […] Read more » hello bastar हैलो बस्तर
आलोचना हिन्दी बुर्जुआ के सांस्कृतिक खेल July 24, 2011 / December 8, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on हिन्दी बुर्जुआ के सांस्कृतिक खेल जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी बुर्जुआवर्ग का हिन्दीभाषा और साहित्य से तीन-तेरह का संबंध है। हिन्दीभाषी बुर्जुआवर्ग में आत्मत्याग की भावना कम है। उसमें दौलत,शानो-शौकत और सामाजिक हैसियत का अहंकार है। वह प्रत्येक काम के लिए दूसरों पर निर्भर है।दूसरों के अनुकरण में गर्व महसूस करता है। दूसरों के अनुग्रह को सम्मान समझता है।वाक्चातुर्य से भाव-विह्वल हो […] Read more » cultural सांस्कृतिक
आलोचना हिन्दी में संवाद का अंत July 18, 2011 / December 8, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on हिन्दी में संवाद का अंत जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी के इस देश में दो रूप हैं एक संवैधानिक है जिसके तहत हिन्दी कुछ राज्यों में प्रधानभाषा है तो कुछ राज्यों अल्पसंख्यक भाषा है। जहां वह अल्पसंख्यकों की भाषा है वहां हिन्दीभाषी सांस्कृतिक अल्पसंख्यक हैं। इससे हमारे राष्ट्र-राज्य के ढ़ांचे को कोई चुनौती नहीं है। इस परिधि के बाहर दूसरी ओर हिन्दी […] Read more » hindi संवाद हिंदी
आलोचना हिन्दी की देह है फोटो, प्राण है संगीत July 18, 2011 / December 8, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी हिन्दी भाषा में अहंकार का भाव नहीं है। नायक नहीं हैं। यह ऐसी भाषा है जो प्रकृति से उदार है। हिन्दी न तो राष्ट्रभाषा है न मातृभाषा है और न पितृभाषा बल्कि वातावरण या परिवेश की भाषा है। भारतीय समाज में संचार और संबंध की स्वाभाविक भाषा है,जीवन में इसे दूसरी प्रकृति कहते […] Read more » hindi हिंदी
आलोचना धर्म-अध्यात्म पाखण्डी गुरूओं की लगी हैं मंडी… May 27, 2011 / December 12, 2011 by पण्डित परन्तप प्रेमशंकर | Leave a Comment पण्डित परन्तप प्रेमशंकर बंदउ गुरुपद पदुम परागा…… गुरू महिमा – आषाढ शुक्ल पूर्णिमा को व्यास पूर्णमा कहते हैं । भगवान के ज्ञानावतार श्री द्वैपायन कृष्णने वेद का व्यास एवं अनेक पुराणादि की रचनाद्वारा सनातन वैदिक संस्कृतिको अनुपम योगदान दिया हैं । विद्वद्गण तो मानते हैं कि व्यासोच्छिष्ठं जगत्सर्वं । संस्कृतिकी अनन्त सेवाको सन्मानित करनेके लिए […] Read more » Renegade गुरूओंकी पाखण्डी
आलोचना वरिष्ट होने की बीमारी May 25, 2011 / December 12, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | 1 Comment on वरिष्ट होने की बीमारी बडे होने का अहसास इन्सान को जरूर होना चाहिये किन्तु लोग बडा कहे तब ही आदमी का बडप्पन अच्छा लगता है खुद अपने मुॅह मिॅया मिटठू बनने से सिर्फ जग हसॉई के सिवा कुछ नही मिलता। आज कल हमारे शहर में अर्जी फर्जी कवि, शायर, और कुछ पत्रकार इस रोग से पीड़ित होने के कारण […] Read more » Old वरिष्ट होने की बीमारी
आलोचना उ.प्र: गिरती साख हिन्दी संस्थान की May 7, 2011 / December 13, 2011 by संजय सक्सेना | 6 Comments on उ.प्र: गिरती साख हिन्दी संस्थान की संजय सक्सेना उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का नाम जहन में आते ही कई पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान दिलाने वाला हिन्दी संस्थान आजकल ‘बेकारी’ के दौर से गुजर रहा है। बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब साहित्यिक केन्द्रों की स्थापना,छात्र-छात्राओं को शोध कार्यो […] Read more » uttar pradesh उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
आलोचना पुलिस टेनिंग स्कूल में सेक्स ट्रेनिंग May 1, 2011 / December 13, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | 1 Comment on पुलिस टेनिंग स्कूल में सेक्स ट्रेनिंग महाराष्ट्र के कोल्हापुर में पुलिस टेनिंग स्कूल में महिला कांस्टेबल यौन शौषण। पुलिस टेनिंग स्कूल में महिला कांस्टेबल यौन उत्पीड़न की इस घटना ने देश भर में तूफान मचाने के साथ साथ उन तमाम घरो में बवाल मचा दिया जिन घरो की बहू बेटिया कोल्हापुर के पुलिस टेनिंग स्कूल में महिला कांस्टेबल की टेनिंग ले […] Read more » Police Traning
आलोचना मीडिया संचार क्रांति और तुलसीदास April 14, 2011 / December 14, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी आज यह बात बार-बार उठायी जा रही है कि आम लोगों में पढ़ने की आदत घट रही है। सवाल उठता है क्या तुलसीदास आज कम पढ़े जा रहे हैं ? क्या ‘रामचरितमानस’ कम बिक रहा है ? तुलसीदास आज भी सबसे ज्यादा पढ़े,सुने और देखे जा रहे हैं। सवाल उठता है पढ़ने की […] Read more » Tulsidas तुलसीदास