कहानी साहित्य लव इन मलेशिया January 2, 2016 by आर. सिंह | Leave a Comment मलेशिया के दो राज्य सबसेअधिक रूढ़िवादी माने जाते हैं.एक तो टेरेंगानु और दूसरा पेनांग मलेशिया में यही दो राज्य हैं, जहाँ साप्ताहिक छुट्टियां शुक्रवार और शनिवार को होती हैं,नहीं तो पूरे मलेशिया में सप्ताहांत शनिवार और रविवार के रूप में प्रचलित है.टेरेंगानु राज्य की राजधानी टेरेंगानु है,और पेनांग की क्वांटन, पर यह प्रेम कहानी तो […] Read more » Featured love in Malaysia लव इन मलेशिया
कहानी साहित्य खुशी December 26, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment मेरे घर के पास ही रविवार को पटरी बाजार लगता है। मैं अपनी जरूरत का अधिकांश सामान वहीं से खरीदने की कोशिश करता हूं। वहां से न मिले, तो फिर किसी छोटी दुकान को प्राथमिकता देता हूं। हो सकता है आप इसे सस्ते-महंगे या और किसी कसौटी पर परखें; पर इसके पीछे एक घटना है। […] Read more » Featured खुशी
कहानी साहित्य प्रदूषण मुक्ति December 24, 2015 / December 24, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment मैं सुबह और शाम को तो घूमता ही हूं; पर सर्दियों में कई बार समय मिलने पर दिन में भी पार्क में चला जाता हूं। वहां खुली धूप से कमर की अच्छी सिकाई के साथ ही कई लोगों से भेंट भी हो जाती है। छुट्टी हो, तो बच्चे भी वहां खेलते मिल जाते हैं। उन्हें […] Read more » प्रदूषण मुक्ति
कहानी साहित्य प्रतीक December 21, 2015 / December 21, 2015 by विजय कुमार | 2 Comments on प्रतीक रामलाल और श्यामलाल सगे भाई थे; पर बीच में तीन बहिनों के कारण दोनों में दस साल का अंतर था। अब तो दोनों दादा और नाना बनकर सत्तर पार कर चुके हैं; फिर भी श्यामलाल जी अपने बड़े भाई का पितातुल्य आदर करते हैं। घरेलू जरूरतों के चलते रामलाल जी जल्दी ही पिताजी के साथ […] Read more » Featured प्रतीक
कहानी जरूरत December 15, 2015 by विजय कुमार | 1 Comment on जरूरत शराब को प्रायः सभी जगह बुरा माना जाता है; पर क्या यह किसी की जरूरत भी हो सकती है ? शायद हां, शायद नहीं। अब तक तो मैं इसे खराब ही नहीं, बहुत खराब समझता था; पर कल जग्गू ने मुझे इसके दूसरे पक्ष पर सोचने को मजबूर कर दिया। जग्गू यानि जगमोहन हमारे मोहल्ले […] Read more » जरूरत
कहानी बच्चों का पन्ना साइकिल December 13, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment राजू कई दिन से साइकिल सीखने की जिद कर रहा था। उसके साथ के कई लड़के साइकिल चलाते थे; पर उसके घर वालों को लगता था कि वह अभी छोटा है, इसलिए चोट खा जाएगा। अतः वे हिचकिचा रहे थे। यों तो घर में एक साइकिल थी, जिसे पिताजी चलाते थे; पर वह बड़ी थी। […] Read more » साइकिल
कहानी समाज ब्रह्मभोज December 7, 2015 by विजय कुमार | 4 Comments on ब्रह्मभोज पिताजी ने यों तो दोनों भाइयों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी; पर छोटा भाई कुछ खास नहीं पढ़ सका और पिताजी के साथ ही गांव में खेतीबाड़ी और दुकान देखने लगे। बड़ा पढ़ने में तेज निकला। उसने प्रथम श्रेणी में एम.ए. किया और फिर दिल्ली में एक डिग्री कॉलिज में उसे […] Read more » ब्रह्मभोज
कहानी साहित्य जिंदगी के रंग November 25, 2015 by आर. सिंह | Leave a Comment समापन क़िस्त [इस कहानी के प्रथम अंश में हमने देखा कि किस तरह विनय राजनीति में आया और किस तरह छः महीने के अंदर स्वतन्त्र उम्मीदवार से फिर एक पार्टी और फिर दूसरी पार्टी में शामिल हुआ.अब आगे देखते हैं जिंदगी क्या रंग बदलती है.] विनय की कहानी को आगे बढ़ाने के पहले मैं आपलोगों […] Read more » जिंदगी के रंग
कहानी साहित्य जिंदगी के रंग November 4, 2015 by आर. सिंह | 1 Comment on जिंदगी के रंग कुछ बातें ऐसी होती हैं जो याद रह जाती हैं.कुछ ऐसी बातें भी होती हैं,जिन्हे याद रखना पड़ता है.यह घटनाक्रम उन बातों में से है,जो याद रह जाती हैं. ________________ विनय से मेरा मिलना इतिफाक या संयोग ही था,पर घटनाक्रम कुछ ऐसा रहा कि वह मेरे नजदीक आता गया और आता ही गया.बात बहुत पुरानी […] Read more » Featured जिंदगी के रंग
कहानी कहानी – वत्सला October 31, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment मंगलवार को साप्ताहिक बाजार बंदी के कारण कुछ फुर्सत रहती है। कल भी मंगलवार था। शाम को मैं अपनी पत्नी राधा के साथ चाय पी रहा था कि देहरादून से शिबू का फोन आ गया। – कैसे हो भाई.. ? – भगवान की दया है। – एक शुभ समाचार है। तुम्हारी सोनचिरैया के पर निकल […] Read more » Featured कहानी वत्सला
कहानी बच्चों का पन्ना यह कैसी मित्रता October 12, 2015 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment गणेशी के खेत में बने तीन कमरों के घर में चिंकू चूहे ने अपना निवास बना लिया था |घर के ठीक सामने दो ढाई सौ फुट की दूरी पर एक नीली नदी बहती थी |नदी थी तो पहाड़ी परन्तु मार्च महीने तक उसमें भरपूर पानी रहता था |बरसात में तो पानी खेत की मेढ तक […] Read more » Featured
कहानी कहानी- कर्ज़ा October 10, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment रवि श्रीवास्तव लहराती फसल कितना सुकून देती है। रमेश अपने बेटे से कहता हुआ खेत को देख रहा था। हर तरफ से घूम कर अपनी फसल को देखा। मन में सोच रहा कि भगवान तेरा शुक्रिया कैसे अदा करूं। तभी पीछे से एक आवाज आती है। अरे रमेश क्या बात है, आज अपने बेटे को […] Read more » कहानी- कर्ज़ा