कविता नववर्ष का अभिनन्दन January 3, 2020 / January 3, 2020 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment Read more » नववर्ष का अभिनन्दन
कविता कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष January 2, 2020 / January 2, 2020 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment शिक्षा से रहे ना कोई वंचित संग सभी के व्यवहार उचित रहे ना किसी से कोई कर्ष कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष भले भरत को दिलवा दो सिंहासन किंतु राम भी वन ना जायें सीता संग सबको समान समझो सहर्ष कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष मिलें पुत्रियों को उनके अधिकार पर ना हों […] Read more » नूतन वर्ष
कविता क्यों हुये डाक्टर लुटेरा एक समान January 2, 2020 / January 2, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment ओ नाच जमूरे छमा-छम, सुना बात पते की एकदम हाथपैर में हड़कन होती है, सर में गोले फूटे धमा-धम आं छी जुकाम हुआ या सीने में दर्द करे धड़ाधड़क, छींकें गरजे तोपों सी या खून नसों में फुदकें फुदकफुदक मेरा जमूरा बतायेगा, क्यों डाक्टर लूटेरा नहीं किसी से कम सुन मेरे प्यारे सुकुमार जमूरे तेरी […] Read more » doctors have become looters क्यों हुये डाक्टर लुटेरा एक समान डाक्टर लुटेरा एक समान
कविता काल व्यूह से लड़ना होगा ! December 31, 2019 / December 31, 2019 by आलोक पाण्डेय | Leave a Comment यह पुण्य भूमि है ऋषियों की,जहां अभूतपूर्व वीरता त्याग की धारखंडित भारत आज खंड खंड ,दे रही चुनौती कर सहर्ष स्वीकार !दग्ध ज्वाल विकराल फैला,कर विस्तीर्ण विराट दिगंत पुकार,पुण्य भूमि से नीले वितान तकशत्रु दल में हो हा-हाकार !सभ्यता-संस्कृति प्रशस्त बिन्दु खातिर ,हर क्षण धधकती हो असिधार ,दृढ़ बलवती स्नायु भुजदंड अभय हो ,हाथों में […] Read more » काल व्यूह से लड़ना होगा !
कविता कब होगी सुख की भोर December 31, 2019 / December 31, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment कह रहे है माता-पिता अब जीवन कितना बाकी है कब तक धड़केगा यह दिल और कितनी साॅसें बाकी है। बेटा बहू पोता नहीं आते ममता से धड़के छाती है। बेटे से बतियाना कब होगा मुश्किल से कटती दिन-राती है। पोते को कंठ लगाने की यह प्यास अभी तक बाकी है। घर अपने बहू क्यों नहीं […] Read more » कब होगी सुख की भोर
कविता ये पत्रकार बड़े है December 31, 2019 / December 31, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment शहर में इनकी खूब चर्चा है अतिक्रमण हटाने वाली टीम के अधिकारियों से चलता खर्चा है। ये शौकीनमिजाज है सभी जगह खबू चरते-फिरते है सांडों को इनपर नाज है। ये सरकारों से बड़े है इनका नाम खूब चलता है ये सरदार बड़े है। ये जो तंबूओं से तने बने है नौकर इनके पढ़े लिखे है […] Read more » ये पत्रकार बड़े है
कविता हम जो छले, छलते ही गये December 30, 2019 / December 30, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment 15 अगस्त की वह सुबह तो आयी थी जब विदेशी आंक्रान्ताओं से हमें शेष भारत की बागड़ोर मिली हम गुलाम थे, आजाद हुये आजादी के समय भी हम छले गये थे आज भी हम अपनों के हाथों छले जा रहे है। भले आज हम आजादी में साॅसे ले रहे है पर यह कैसी आधी अधूरी […] Read more » छलते ही गये हम जो छले
कविता संघातों में सदा अविचल होना ! December 30, 2019 / December 30, 2019 by आलोक पाण्डेय | Leave a Comment तुम वीरता के दृढ़ प्रतिमान , कभी नहीं धीरज खोना ! कंटक राहें हों दुर्निवार , न भयभीत कहीं रुकना-झुकना ! तुम वीर प्रहरी पुण्यभूमि के , अनंत शक्ति संवाहक होना ; तूफान मिले विस्फोट मिले , अडिग अटल अविचल होना । तुम सभ्यता के पुरातन दृढ़ स्तम्भ , अनन्त संस्कृतियों के ,चिर-संवाहक होना ; […] Read more » संघातों में सदा अविचल होना
कविता विनय December 30, 2019 / December 30, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment ईश्वर ! तुमने हमे दिया है सुंदर सा एक शरीर स्वस्थ सभी अंग दिए है ये अपनी जागीर हमको दो आँखे दी तुमने देख-भाल कर बढ़े चले कान दिए हैं सुने मधुर हम अच्छाई को सुने-गुने दो है हाथ दिए हमको हम, काम हजारो कर लेंगे दो पैरो के बल चलकर हम नए-नए पथ खोलेगे […] Read more » विनय
कविता सबसे लम्बी रात का सुपना नया… December 24, 2019 / December 24, 2019 by अरुण तिवारी | Leave a Comment अरुण तिवारी सबसे लम्बी रात का सुपना नया देह अनुपम बन उजाला कर गया। रम गया, रचता गया रमते-रमते रच गया वह कंडीलों को दूर ठिठकी दृष्टि थी जो पता उसका लिख गया सबसे लम्बी रात का सुपना नया… रमता जोगी, बहता पानी रच गया कुछ पूर्णिमा सी कुछ हिमालय सा रचा औ हैं रची […] Read more » सबसे लम्बी रात का सुपना नया
कविता संविधान बचाने निकले हैं ? December 21, 2019 / December 21, 2019 by मुकेश चन्द्र मिश्र | Leave a Comment वो देश बचाने निकले हैं और उसे ही फूँक रहे हैं, बहुसंख्यक आबादी के मुंह पर सीधे ही थूक रहे हैं। कैब वैब बकवास बात है ताकत सिर्फ दिखाना है, मोदी से नफरत मे ये अपना ही घर लूट रहे हैं॥ सन सैंतालिस मे ऐसा ही मंजर सबने देखा था। पर उस दौर मे […] Read more » CAB modi shah on nrc and cab NRC संविधान बचाने निकले हैं ?
कविता बन्धुवर अब तो आ जा गांव ! December 19, 2019 / December 19, 2019 by आलोक पाण्डेय | Leave a Comment खोद रहे नित रेत माफिया नदिया की सब रेती चर डाले हरियाली सारी धरती की सब खेती । आम-पीपल-नीम-बरगद काट ले गए, लग रहे बबूल पर दांव बन्धुवर अब तो आ जा गांव ! समरसता अब खो चुकी धर्म खतरे में घट रहा स्वदेशी घुट रही घर में समाज देश भी बंट रहा । भाई […] Read more » Brother now come to the village! बन्धुवर अब तो आ जा गांव !