कविता साहित्य मानसिक पतन September 5, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment उपहास और उलाहना समाज में साथ दौड़ते रहते हैं, जैसे कोई पतंगा भोजन की तलाश में भागता है। एक चौराहे के मानिंद मानता है समग्र शक्ति को, जहाँ कल्पित जिंदगी का नाम गुजर भर जाना है। शहर की भाषा में आधी आबादी एक गहरा तंज है, आदमी स्त्री को गहरे चिंतन में भी शक से […] Read more » मानसिक पतन
कविता साहित्य कागजों पर अहसास लिखता हूँ। August 31, 2016 by आकाश कुमार राय | Leave a Comment ना कवि, ना लेखक, ना ही इतिहासकार हूँ… जीवन है अबूझ पहेली, उसके कुछ पल लिखता हूँ.. ना लिखता हूँ शायरी.. ना दोहों की करता बातें.. गुजरे उम्र का.. कागजों पर अहसास लिखता हूँ। यादों के मर्म की बस.. कुछ बात लिखता हूँ.. कुछ उलझे हुए से अपने हालात लिखता हूँ.. जीवन उलझा जिनमें वो […] Read more » कागजों पर अहसास लिखता हूँ।
कविता साहित्य प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा है………. August 28, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment अर्पण जैन ‘अविचल’ स्त्री की देह तालाब-सी है, बिल्कुल ठहरी हुई सी उसमे नदी के मानिंद वेग और चंचलता कुछ नहीं फिर भी पुरुष उस तालाब में ही प्रेम खोजता है, सत्य है क़ि खोज की भाषा भी सिमट-सी गई हैं वेग का आवरण भी कभी कुंठा के आलोक में तो कभी पाश्चात्य के स्वर […] Read more » Featured प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा है
कविता साहित्य सलामती की दुआ मै करती रहूँगी August 18, 2016 by शालिनी तिवारी | Leave a Comment तुम्हारी कलाइयों में रक्षा की राखी, बरस दर बरस मैं बाँधती रहूँगी, दिल में उमंगे और चेहरे पर खुँशियाँ, हर एक पल मै सजाती रहूँगी, कभी तुम न तन्हा स्वयं को समझना, कदम से कदम मैं मिलाती रहूँगी, तुम हर इक दिन आगे बढ़ते ही रहना, सलामती की दुआ मै करती रहूँगी । खुदा ने […] Read more » Featured सलामती की दुआ मै करती रहूँगी
कविता साहित्य मुझको अब सहना आता है………. August 16, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment मुझको अब सहना आता है इतनी पीड़ा सहने पर अब, ईश्ववर भी याद नहीं आता, जितनी पीड़ा देनी है दे दे वो, मुझको अब सहना आता है। पीड़ा आज गई घर अपने, फिर आऊंगी वादा करके। हर आहट पर लगता है कहीं पीड़ा वापिस आने का संकेत तो नहीं ………….. इतनी पीड़ा सहकर अब रोज़ […] Read more » मुझको अब सहना आता है
कविता साहित्य अधूरी है आज़ादी August 15, 2016 by नरेश भारतीय | Leave a Comment नरेश भारतीय अधूरी क्यों है अभी भी यह आज़ादी? विभाजन को स्वीकार करने की मजबूरी क्या थी? जो कट कर अलग हुए क्या ख़ुश रहे? जो मारकाट से आहत हुए किसके दुश्मन थे? साम्प्रदायिक हत्याओं की भेंट चढ़ती गई आज़ादी सरहद के उस पार जो आज होता दिख रहा विध्वंस और विनाश के कगार पर […] Read more » Featured poem on Independence Day अधूरी है आज़ादी आजादी
कविता साहित्य आजादी पर गर्व हमें है August 15, 2016 by शालिनी तिवारी | Leave a Comment आजादी पर गर्व हमें है और सदा तक बना रहेगा, जिन लोगों ने कुर्वानी दी उनका नाम अमर रहेगा, पर अन्तिम जन को आजादी कब तक मिल पाएगी ? दुपहरिया में मजदूरों की मेहनत कब रंग लाएगी ? उनकी सोच बदल जाए तो सच्ची आजादी होगी, भुखमरी पर पाबन्दी ही सच्ची खुशहाली होगी, झुग्गी झोपड़ियों […] Read more » poem on Independence Day आजादी आजादी पर गर्व हमें है
कविता साहित्य विश्वास- विश्वशान्ति का August 12, 2016 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment हर दिशा से शान्ति की पुरवाइयाँ बहें । विश्व है परिवार सबका,यही जन जन कहें । प्रेम का जल द्वेष की ज्वाला बुझाए । विश्वप्रेम की प्रतिपल ज्योति जगाए।। हिंसा तो बस प्रतिहिंसा को है बढ़ा रही । जग को है भयभीत और अशान्त कर रही ।। है विश्वास यही मन में ,एक दिवस वह […] Read more » Featured poem on Independence Day विश्वास- विश्वशान्ति का
कविता साहित्य कौन…… July 28, 2016 / July 30, 2016 by आकाश कुमार राय | Leave a Comment चुप-चाप खड़े हैं हम दोनों, सवाल यही कि बोले कौन ? बीच हमारे घोर खामोशी, चुप्पी के कान मरोड़े कौन ? सर-सर बह रही हवाएं, कानों से मफलर खोले कौन ? शब्द फंसे सब मुख के अंदर, सन्नाटे को तोड़े कौन ? कटुता इतनी भरी है हममें, मिसरी सी बातें घोले कौन ? लाख मानू […] Read more » कौन
कविता साहित्य तन्हाई July 27, 2016 by चारु शिखा | Leave a Comment तन्हाई छोड़ देती हूँ सिलवटे अब ठीक नहीं करती, मन सुकून चाहता , जो शायद मिल पाना मुश्किल, मुस्कान भी झूठी लगती, अच्छी थी कच्ची मिट्टी की मुस्कान, वक्त के साथ, सोच बदल गयीं। पर हकीकत कुछ और हैं. सहारा नहीं साथ की दरकार हैं, अब उसकी भी नहीं आस है, ढूंढती नजरें पर सब […] Read more » तन्हाई
कविता साहित्य वक्त July 20, 2016 / July 20, 2016 by चारु शिखा | Leave a Comment वक्त ने वक्त के साथ बहुत कुछ सिखा दिया वक्त ने “चलना” सिखा दिया वक्त ने “मुस्कुराना”सिखा दिया वक्त ने “आसूओं” को छुपा ना सिखा दिया वक्त ने हर “जख्म” को भरना सिखा दिया वक्त -वक्त की बात है…. कभी “तितली” की तरह मंडराना, कभी “भवरें”की तरह गंजन । कभी “बेले” की तरह महकती थी […] Read more » वक्त
कविता साहित्य कविता : खुशियाँ July 5, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment ये चंद घड़िया ही तो है, जो हमें अनगिनत खुशियाँ देती हैं। छोटी-छोटी बातें ही हमें यादगार पल देती है । चलती तेज हवाए देती हमे मंजिल का पता वक्त चला जा रहा उम्मीद का सहारा दिए । अपनों को खुश देखना , यही आस लगा तुम चलो या हम चले “दोनों” रास्ते पर […] Read more » खुशियाँ