कविता बेबसी May 23, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- योगेन्द्र और प्रशांत को हटा मानो बाधायें हो गईं दूर, साथ में रह गये बस, कहने वाले जी हुज़ूर। फ़र्जी डिग्री के किस्से को, जैसे तैसे रफ़ा दफ़ा किया, एक सिक्किम से ले आया, नकली डिग्री और सपूत। मैंने जनता को स्टिंग सिखाया, पर वो भी मुझ पर ही आज़माया, मियां की जूती […] Read more » Featured कविता बेबसी
कविता मुक्ति May 21, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- वो ज़िन्दा ही कब थी, जो आज मर गई, सांसों का सिलसिला था, बस, जो चल रहा था। आज वो मरी नहीं है, मुक्त हो गई। घाव जितने थे उसके तन पे, कई गुना होंगे मन पे, मन के घावों का कोई, हिसाब कैसे रखे। वो झेलती रही, बयालिस साल तक पीड़ा, मुक्ति […] Read more » Featured कविता मुक्ति
कविता ऐसे इतिहास को बदल डालो May 21, 2015 by नरेश भारतीय | Leave a Comment -नरेश भारतीय- युग बदल रहा है बदल रही है सोच आने लगी है अंतत: होश विस्मरण नहीं अब राष्ट्रवीरों का सम्मान, अभिवादन, सादर नमन अब सिर्फ और सिर्फ अपनों का… सिकंदर को ग्रेट कहा तुमने अकबर को भी महान बना डाला अपने प्रताप को ठुकराया ! परकीयों को लाड़ दुलार दिया आक्रांताओं को कन्धों पर […] Read more » Featured ऐसे इतिहास को बदल डालो कविता
कविता दिल का अनोखा रिश्ता May 14, 2015 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment – लक्ष्मी जयसवाल अग्रवाल– सांस दर सांस मुझे याद आते हो तुम ज़िन्दगी के मेरे सुनहरे पल आज भी जाने अनजाने क्यों सजा जाते हो तुम मेरी ज़िन्दगी की इक ख्वाहिश थे तुम आज भी मेरे दिल की राहों में बसकर मेरे हर ख्वाब को सजा जाते हो तुम न जाने कब से तुमसे नाता जुड़ा है मेरा कि अब तो तन्हाइयों […] Read more » Featured कविता दिल कविता दिल का अनोखा रिश्ता
कविता मां का आंचल May 9, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 2 Comments on मां का आंचल -रवि विनोद श्रीवास्तव- मेरी ये कविता मदर्स डे पर संसार की सभी माओं को समर्पित। बचपन में तेरे आंचल में सोया, लोरी सुनाई जब भी रोया। चलता था घुटनो पर जब, बजती थी तेरी ताली तब। हल्की सी आवाज पर मेरी, न्योछावर कर देती थी खुशी। चलने की कोशिश में गिरा। जब पैर अपनी खड़ा […] Read more » Featured कविता मां का आंचल मां पर कविता
कविता “मां तू कितनी प्यारी है“ May 7, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on “मां तू कितनी प्यारी है“ -आलोक ‘असरदार’- बंद किये ख्वाबों के पलके, मैं तेरे जीवन में आया आँख खुली तो सबसे पहले माँ मैंने तुझको ही पाया तेरे गोद में मैंने अपना बचपन हँसकर खेला है मुझे लगाकर सीने से हर दुःख को तूने झेला है मेरे जीवन के बगिया की तू फुलवारी है, माँ तू कितनी प्यारी है माँ […] Read more » “मां तू कितनी प्यारी है“ Featured मां मां पर कविता
कविता मजदूर की व्यथा May 2, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- करता हूँ मेहनत जीतोड़ , सब कहते मुझको मजदूर। धनी हूँ मैं परिश्रम का , पर हालत से हूँ मजबूर। बसाए मैंने शहर कई , कितनी ही बनाई मीनारें। किस्मत ही अपनी बना न सका , मिलीं राह में दीवारें। नेता के भाषण में रहता , सरकारी कागज़ में रहता। क़ानून […] Read more » Featured मजदूर मजदूर की व्यथा
कविता मजदूर May 1, 2015 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment 1 मई मजदूर दिवस पर विशेष भले ही तन पर कपडे कम हैं नगे पैर, न भूख की चिंता ,न प्यास की फिर भी कमर ताने खडे हैं सुबह से शाम कर रहे काम इन्हे कहाॅ चैन है , ये तो मस्त हैं काम में ब्यस्त हैं दो -जून की रोटी के लिए बचपन से […] Read more » मजदूर मजदूर दिवस पर मजदूर दिवस पर विशेष
कविता पचास के उस पार April 29, 2015 / April 29, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- माना कि यौवन के वो पल, खो गये कुछ उलझनों में, मैं वही हूं तुम वही हो, फिर न क्यों जी लें कभी, उन्माद के वो क्षण। तुम मेंरे हो शांत सागर लक्ष्य मेंरा , मैं नदी बहती हुई तुमसे मिली थी, बांहे फैला दो मै तो अब भी वही हूं। तुम हो […] Read more » Featured कविता पचास के उस पार यौवन कविता
कविता विविधा हमें पार जाना ही है April 26, 2015 / April 26, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- नाव भँवरों की बाहों में है फंस गयी , उस पार पर हमको जाना ही है। घिर गए हैं तूफ़ान में गर तो क्या , पार पाने जा जज़्बा दिखाना ही है। अँधियारा है घना बुझ रहे हैं दिये , हैं खड़ी मुश्किलें सामने मुँह किये। रास्तों में जो काँटे पड़े हों […] Read more » Featured कविता जीवन कविता हमें पार जाना ही है
कविता राजनीति व्यंग्य नेता चालीसा April 22, 2015 / April 22, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 1 Comment on नेता चालीसा -रवि श्रीवास्तव- जय जय भारत देश के नेता तुम्हरी चालाकी से न कोई जीता तुम हो देश के भाग्य विधाता , देश को लूटना तुमको आता तुम्हरे हाथ में देश की सत्ता मिलता है सरकारी भत्ता महंगाई के तुम हो दाता,, इसके सिवा और कुछ भी न आता घोटाले पर करते घोटाला , छिनो गरीबों के मुंह का […] Read more » Featured नेता चालीसा. राजनीतिक व्यंग्य राजनीतिक कविता व्यंग्य
कविता विविधा माँ April 22, 2015 / April 22, 2015 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment -कुलदीप प्रजापति- जब से जन्मा हूँ माँ मैं तेरे द्वार पर, सारी दुनिया की मुझको ख़ुशी मिल गई। जब से खेला हूँ माँ मैं तेरी गोद में, स्वर्ग भू से भी बढ़कर जमीं मिल गई। तेरे आँचल से पी है जो बूंदें सभी, आज दूध की धाराएं अमृत बनी, जो मिले शब्द बचपन तुझसे […] Read more » Featured मां मां कविता