पर्यावरण लेख दिल्ली हो सकती है पूरी तरह से रिन्यूबल एनेर्जी पर निर्भर, अगर… October 8, 2022 / October 8, 2022 by निशान्त | Leave a Comment रिन्यूएबल एनर्जी नामक पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक लेख से इस बात की प्रबल संभावना जाहिर हुई है कि दिल्ली वर्ष 2050 तक जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाकर 100% अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता का लक्ष्य हासिल कर सकती है। अपनी तरह के इस पहले शोध में दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय महानगर में 100% अक्षय ऊर्जा प्रणालियों […] Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख महाकाल लोक : आस्था और आध्यात्म का नवीन प्रकल्प October 8, 2022 / October 8, 2022 by मनोज कुमार | Leave a Comment मनोज कुमारमहाकाल को साक्षी बनाकर, उनके समक्ष नतमस्तक होकर सरकार जब खड़ी होती है तो महाकाल का आशीष बरसने लगता है. राज्य के विकास के विकास के रास्ते खुद ब खुद खुलने लगते हैं. महाकाल लोक भी महाकाल के आशीष से आरंभ हो रहा है. बोलचाल में जब हम एक और एक ग्यारह बोलते हैं […] Read more » Mahakal Lok
लेख 5G और गांव में नेटवर्क की समस्या October 7, 2022 / October 7, 2022 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment बबली सोरागी कपकोट, उत्तराखंड भारत भले ही आज 5G नेटवर्क की तरफ तेजी से कदम बढ़ रहा हो, लेकिन देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लोगों को मामूली नेटवर्क तक उपलब्ध नहीं हो पाता है. उन्हें इंटरनेट स्पीड मिलना तो दूर की बात है, अपनों से फोन पर भी बात करने के लिए गांव से कई किमी दूर […] Read more » 5G and network problems in the village
लेख समाज पेशा अध्यापन का मनोवृत्ति राक्षसीय ? October 6, 2022 / October 6, 2022 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी स्कूली शिक्षा ग्रहण करने वाला लगभग प्रत्येक भारतवासी संत कबीर के उन दोहों से भली भांति परिचित है जो हमें गुरु के रुतबे व उनके महत्व से परिचित कराते हैं। संत कबीर का सबसे प्रसिद्ध व प्रचलित दोहा ‘गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय’।। अर्थात […] Read more » Attitude of teaching profession demonic? पेशा अध्यापन का मनोवृत्ति राक्षसीय
लेख तनाव से मुक्ति का मंत्र है मुस्कान October 6, 2022 / October 6, 2022 by डॉ शंकर सुवन सिंह | Leave a Comment डॉ. शंकर सुवन सिंह दया शब्द को कई नामों से जाना जाता हैं जैसे करुणा, सहानुभूति, अनुकंपा, कृपा, रहम, आदि। परिस्थिति जन्य की गई सेवा दया कहलाती है। मनोस्थिति जन्य की गई सेवा करुणा कहलाती है। करुणा स्वभाव गत होती है। जिस इंसान में करुणा है उसके लिए बाहर की कोई भी परिस्थिति उस पर […] Read more » Smile is the mantra to get rid of stress मुस्कान राष्ट्रीय क्षमा और खुशी दिवस
लेख कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते; क्षमा ताकतवर की विशेषता है October 6, 2022 / October 6, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment राष्ट्रीय क्षमा और खुशी दिवस – 7 अक्टूबर सामाजिक जीवन तभी संभव है जब हम बात करें, चर्चा करें और एक-दूसरे की छोटी-छोटी गलतियों को क्षमा करें। क्षमा के लिए एक आवश्यक मूल्य इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य के लिए सम्मान है। आतंकवादी गतिविधियां, उग्रवाद, नक्सलवाद, सांप्रदायिक दंगे आदि खुद को बदले की कार्रवाई के रूप […] Read more » The weak can never forgive; Forgiveness is the attribute of the strong राष्ट्रीय क्षमा और खुशी दिवस
कला-संस्कृति लेख वर्त-त्यौहार बुराइयों से संघर्ष का प्रतीक पर्व है दशहरा October 5, 2022 / October 6, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग –नवरात्रि के बाद आने वाला दशहरा का पर्व हिन्दुओं का बेहद ही खास पर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व बुराइयों से संघर्ष का प्रतीक पर्व है, यह पर्व देश की सांस्कृतिक चेतना […] Read more » Dussehra दशहरा
लेख पूजा पंडाल में मौत का खेल क्यों? October 3, 2022 / October 10, 2022 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल उत्तर प्रदेश के जनपद भदोही के औराई में पूजा पंडाल में रविवार की रात में लगी आग ने बहुत कुछ सवाल खड़ा किया है। निश्चित रूप से हम धर्म की आड़ में सुरक्षा और संरक्षा से आंखें मूंद लेते हैं। यह पीड़ा […] Read more » Why the game of death in the puja pandal? पूजा पंडाल में मौत
लेख भारतीय पर्यटन उद्योग में आ रही है रोजगार के नए अवसरों की बहार October 1, 2022 / October 1, 2022 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment अभी हाल ही में जारी की गई सीधी नियुक्ति मंच हायरेक्ट की 'जॉब इंडेक्स रिपोर्ट' के अनुसार, जून 2022 से अगस्त 2022 के तीन महीनों के दौरान टूर एंड ट्रेवल उद्योग में नए रोजगार के अवसरों में जोरदार तेजी देखी गई है, जो भारत के लिए रोजगार की दृष्टि से बहुत अच्छा संकेत माना जा सकता है। दरअसल कोविड महामारी के दौर का असर कम होने के बाद अन्य उद्योगों के साथ ही पर्यटन उद्योग भी अब तेजी से वापिस पटरी पर आ गया है। भारत में वित्त वर्ष 2022-23 के जून-अगस्त 2022 की अवधि के दौरान यात्रा और पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसरों में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। Read more » New job opportunities in Indian tourism industry भारतीय पर्यटन उद्योग भारतीय पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसर
लेख वीर शिवाजी का एतिहासिक पत्र महाराजा जयसिंह के नाम October 1, 2022 / October 1, 2022 by विनोद कुमार सर्वोदय | Leave a Comment हे सरदारों के सरदार ! राजाओं के राजा तथा भारत उद्यान की क्यारियों के माली व्यवस्थापक। हे रामचन्द्रजी के ह्रदय के चैतन्य अंश! तुमसे क्षत्रियों की ग्रीवा गौरव से ऊँची है l तुमसे बाबर वंश की राज्य लक्ष्मी अधिक प्रबल हो रही है। तुम्हारा भाग्य तुम्हारा सहायक है। भाग्य के युवक और बुद्धि के बूढ़े […] Read more » Historical letter of Veer Shivaji to Maharaja Jai Singh वीर शिवाजी का एतिहासिक पत्र महाराजा जयसिंह के नाम
लेख साहित्य हिन्दी कवि सम्मेलन की स्वर्णिम शताब्दी October 1, 2022 / October 1, 2022 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment · डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ हर दिन त्योहार, हर दिन पर्वों के आनंद का उल्लास, पर्वों की परम्परा में आनंद की खोज और उसी खोज से अर्जित सुख में भारत भारती की आराधना करते हुए प्रसन्न रहने का भाव इस राष्ट्र को सांस्कृतिक समन्वयक के साथ-साथ उत्सवधर्मी भी बनाता है। भारत उत्सव और उल्लास का राष्ट्र है, इसकी राष्ट्रीय गरिमा का कारक भी यहाँ की उत्सवधर्मी संस्कृति है और इसी उत्सवधर्मिता के चलते भारत ने अपने सांस्कृतिक वैभव की स्थापना की है। उत्सवों का अर्थ ही भारतीय संस्कृति है क्योंकि विभिन्न पर्वों और त्योहारों के माध्यम से जनभागीदारी और ईश्वरीय शक्ति के प्रति आभार के ज्ञापन की भारतीय परम्परा ने ही भारतीय संस्कृति को विभिन्नता में एकता की द्योतक और सर्वसमावेशी संस्कृति बनाया है। पुराने ज़माने में भारतीय जीवन शैली के अनुसार मनोरंजन के साधन प्रायः कम ही थे। टीवी, मोबाइल जैसी व्यवस्था न होने के कारण भारतीय अपना मनोरंजन खेलकुद, व्यायामशाला व चौपाल की चर्चाओं इत्यादि से ही कर पाते थे। इन्हीं मनोरंजन के न्यूनतम साधनों के बीच उल्लास को बनाए रखने में हिन्दी कविता का भी महनीय योगदान रहा है। पहले के ज़माने में ऐसे कालखण्ड में हिन्दी साहित्य और कविता ने जनता को साहित्य उत्सव, गोष्ठियों आदि के माध्यम से जोड़े रखा और लोगों का आपसी मेलमिलाप भी अनवरत रहा। इसी बीच कविता के गोष्ठी स्वरूप में परिवर्तन आया, जिसने कविता को मंचीयता का नाम दिया। कवि सम्मेलन से पहले कवि गोष्ठियाँ हुआ करती थीं, जहाँ कुछ कवि कमरे, बगीचे आदि में बैठ रचना–पाठ किया करते थे। समय के साथ कवि गोष्ठी व्यापक स्तर पर होने लगी, जिसमें पूरा गाँव या कहें आस-पास के गाँव के लोग भी श्रवण लाभ लेने ऐसे आयोजनों में आने लगे, जिसे कवि सम्मेलन कहा जाने लगा। या यूँ कहें कि कविता के आनंद का जनसमर्थन, वाचिक परम्परा के माध्यम से कविता का गायन और उससे निर्मित उत्साह को कवि सम्मेलन नाम दिया गया। हिन्दी कवि सम्मेलनों का समृद्ध इतिहास रहा है, इसने हिन्दी भाषा के सौंदर्य और प्रसार में अभिवृद्धि की है। जिस तरह से हिन्दी सिनेमा ने वैश्विक रूप से हिन्दी भाषा को आम जनमानस से जोड़ने और भारत की संस्कृति विरासत को समझने में अपना अमूल्य योगदान दिया है, उसी तरह हिन्दी कवि सम्मेलनों की भूमिका भी जनता को भाषा से और भाषा को भारतीयता से जोड़ने की रही है। कवि सम्मेलन के इतिहास की बात करें तो यह उत्तर प्रदेश के कानपुर से आरंभ होता है। भारत का पहला कवि सम्मेलन साल 1923 गयाप्रसाद ‘सनेही’ जी ने कानपुर में आयोजित करवाया था। इसमें 27 कवियों ने भाग लिया। इसके बाद कवि सम्मेलन की परंपरा देश-दुनिया में चल निकली। आज अमेरिका, कनाडा, दुबई जैसे लगभग ढाई दर्जन देशों में हिन्दी कवि सम्मेलन बड़े चाव से सुने जाते हैं। सनेही जी की अध्यक्षता में पूरे देश में सैंकड़ो कवि सम्मेलन हुए। उनके संरक्षण में कवियों ने खुलकर मंच पर देश की आज़ादी के लिए योगदान दिया। जहाँ तक कवि गोष्ठियों की बात है तो वर्ष 1870 में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता वर्धनी संस्था बनाई। यही पहली कवि गोष्ठी कहलाई। ‘सनेही जी’ (1883-1972) उन्नाव के हड़हा के रहने वाले थे। वे हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के द्विवेदी युगीन साहित्यकार थे। वे उन्नाव टाउन स्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत थे। 1921 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के आह्वान पर उन्होंने अध्यापकीय कार्य छोड़ दिया। वे आज़ादी की लड़ाई में कवि सम्मेलन के माध्यम से पूरी तरह से जुड़ गए। इससे पहले वे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जी के अनुरोध पर कानपुर आकर रहने लगे। इसके बाद उनका अधिकांश जीवन कानपुर में बीता। उनके साप्ताहिक पत्र ‘प्रताप’ में भी कविताएं लिखीं। नौकरी के दौरान उन्होंने त्रिशूल, तरंगी व अलमस्त के उपनामों से तमाम रचनाएं लिखीं। उन्होंने अपना निजी प्रेस खोलकर काव्य संबंधी मासिक पत्र ‘सुकवि’ का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने हिन्दी के सैंकड़ो कवि दिए। उन्होंने कानपुर निवास के दौरान देश भर में सैंकड़ो कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता की। उनकी अध्यक्षता में कलकत्ता में हुए कवि सम्मेलन में रवींद्र नाथ टैगोर ने भी काव्यपाठ किया था। कवि सम्मेलन की ऐतिहासिक यात्रा में पहले मानदेय या पारितोषिक तय करने की परंपरा नहीं थी। उस दौर में आयोजक द्वारा दिए गए बंद मुट्ठी में पत्र-पुष्प को कविगण सहर्ष स्वीकार कर लेते थे। मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह ’दिनकर’, जय शंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’, गिरिजाकुमार माथुर, सोहनलाल द्विवेदी, रमई काका, हरिवंश राय बच्चन जैसी विभूतियों ने इसी प्रकार काव्य पाठ किया। बताते हैं एक बार एक बड़े कवि ने अस्वस्थ होने के कारण कवि सम्मेलन में उपस्थित होने में असमर्थता जता दी। तब आयोजकों के दबाव डालने पर वह मनमर्ज़ी के मानदेय पर उपस्थित होने पर सहमत हो गए, तब से मानदेय की परंपरा शुरू हो गई। वैसे तो कवि सम्मेलनों का आयोजन प्रायः मनोरंजन के लिए किया जाता था, किन्तु उसी दौर में भारत अपनी आज़ादी के लिए भी संघर्षशील था, ऐसे कालखण्ड में कवियों से प्रेम, शृंगार अथवा चोली-दामन या रोली, पायल के गीत ही नहीं सुने जाते थे, उस दौर में कवियों ने अपने ओजधर्मा गीतों और कविताओं से राष्ट्र जागरण का कार्य भी किया।कविता की वाचिक परम्परा के प्रचलन में आने से हिन्दी कवि सम्मेलन भी उदयमान रहे। आज़ादी के नायकों ने कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी राष्ट्र जागरण का कार्य किया, अंग्रेज़ी हुक़ूमत के विरुद्ध भारतीयजनों को जागृत किया, अग्निधर्मा कवियों ने जनता में जोश और स्वाभिमान के मंत्र फूंके, उन राष्ट्रधर्मा गीतों और कविताओं से बच्चा-बच्चा प्रभावित होने लगा। भारत में, सन् 1947 में भारतीय स्वतंत्रता से लेकर सन् 1980 के दशक की शुरुआत तक की अवधि कवि सम्मेलन के लिए एक सुनहरा चरण था। 1980 के दशक के मध्य से 1990 के दशक के अंत तक, भारतीय आबादी और विशेष रूप से इसके युवा बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से पीड़ित थे। इसने कवि सम्मेलन पर अपना असर डाला, जैसा कि टेलीविज़न और इंटरनेट जैसे मनोरंजन के नए तरीकों के साथ-साथ भारतीय सिनेमा रिलीज़ की मात्रा में भी हुआ। मात्रा और गुणवत्ता दोनों के मामले में कवि सम्मेलनों ने भारतीय संस्कृति में अपना स्थान खोना शुरू कर दिया था। इसका मुख्य कारण यह था कि विभिन्न समस्याओं से घिरे युवा दोबारा कवि-सम्मेलन की ओर नहीं लौटे। साथ ही, उन दिनों भीड़ में जमने वाले उत्कृष्ट कवियों की कमी थी। लेकिन नई सहस्त्राब्दी के आरम्भ होते ही इंटरनेटयुगीन युवा पीढ़ी, जोकि अपना अधिकांश समय इंटरनेट पर गुज़ार देती है, वह कवि सम्मेलन को पसन्द करने लगी। इसी युग में काव्य को कई कवियों ने सहजता और सरलता से आम जनमानस की भाषा में लिखकर उसे किताबों से निकालकर मंचों पर सजा दिया। 2000 से लेकर 2010 तक का काल हिन्दी कवि सम्मेलन का दूसरा स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है। श्रोताओं की तेज़ी से बढ़ती हुई संख्या, गुणवत्ता वाले कवियों का आगमन और सबसे बढ़के, युवाओं का इस कला से वापस जुड़ना इस बात की पुष्टि करता है। पारम्परिक रूप से कवि सम्मेलन सामाजिक कार्यक्रमों, सरकारी कार्यक्रमों, निजी कार्यक्रमों और गिने–चुने कॉर्पोरेट उत्सवों तक सीमित थे। लेकिन इक्कीसवीं शताब्दी के आरम्भ में शैक्षिक संस्थाओं में इसकी बढ़ती संख्या प्रभावित करने वाली है। जिन शैक्षिक संस्थाओं में कवि-सम्मेलन होते हैं, उनमें आईआईटी, आईआईएम, एन आई टी, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन और अन्य संस्थान शामिल हैं। उपरोक्त सूचनाएं इस बात की तरफ़ इशारा करती हैं कि कवि सम्मेलनों का रूप बदल रहा है, परन्तु इसी दौर में साहित्यिक शुचिता का वो हश्र भी हुआ कि भारत की संस्कृति में एक हवा बाज़ारवादी और विज्ञापनवादी संस्कृति की भी घुस गई, जिसने स्ट्रीक को भोग्य समझा और उसी के साथ चुहल करने को साहित्य का नाम देकर काव्य से परिवारों को तोड़ दिया। 2010 से 2019 तक तो इसके स्तर में गज़ब का बदलाव आया। चुटुकुलेबाज़ों और द्विअर्थी संवाद करने वाले नोकझोंक करने वाले कवियों ने इस कवि सम्मेलन परम्परा को स्टैंडअप कॉमेडी या कहें परिवार के संग बैठ-सुनने का लायक भी नहीं छोड़ा। वैसे इसी दौर में सिनेमा और ओटीटी का भी दूषित रूप सबने देखा। माँ, बहन की गालियाँ तक ओटीटी के माध्यम से घुसने लग गईं। उसी तरह, कवि सम्मेलन भी भला कैसे अप्रभावित रह पाते! इसके बाद सन् 2020 से कोरोना वायरस ने विश्व को ही अपनी गिरफ्त में ले लिया तो प्रभाव स्वरूप विश्वबन्दी का दौर आ गया। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कवि सम्मेलन थमने लगे। लोगों की भीड़ जुटने पर पाबंदी होने से कवि सम्मेलनों में श्रोताओं की भीड़ की समस्या खड़ी हो गई। बावजूद इसके शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पुनः शुचिता की बानगी देखी जा रही है। कवि सम्मेलन के आरंभ से अब तक की सौ साला यात्रा में कवियों की श्रमसाध्य तपस्या ने इस कवि सम्मेलन परम्परा को अक्षुण्ण बनाया और यहाँ तक कि उस परम्परा को देश ही नहीं अपितु विश्वभर में प्रसारित–प्रचारित भी किया। कवि सम्मेलन को जनप्रिय बनाने में देश के बड़े हिन्दी कवियों का योगदान भी अतुलनीय रहा, जिनमें से कुछ आज हमारे बीच नहीं हैं, जैसे सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’, महादेवी वर्मा, पद्मभूषण गोपाल दास नीरज, कैलाश गौतम, डॉ. उर्मिलेश, शैल चतुर्वेदी, प्रदीप चौबे, अल्हड़ बीकानेरी, ओम प्रकाश आदित्य, काका हाथरसी, निर्भय हाथरसी, बाल कवि बैरागी, हुल्लड़ मुरादाबादी, चन्द्रसेन विराट, डॉ. कुँअर बेचैन, माया गोविंद आदि और कुछ वर्तमान के कवि जैसे सत्यनारायण सत्तन गुरुजी, पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा, पद्मश्री अशोक चक्रधर, डॉ. कुमार विश्वास, डॉ. हरिओम पंवार, डॉ राजीव शर्मा, डॉ. गोविंद व्यास, संतोष आनंद, शैलेष लोढ़ा, डॉ. दिनेश रघुवंशी, डॉ. सरिता शर्मा, डॉ. कीर्ति काले, डॉ. सुमन दुबे, डॉ. शिव ओम अंबर, डॉ. विष्णु सक्सेना, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे, पद्मश्री डॉ. सुनील जोगी, शशिकान्त यादव, दिनेश दिग्गज, अशोक नागर, जगदीश सोलंकी, डॉ. प्रेरणा ठाकरे, चिराग़ जैन, बलवंत बल्लू, गजेंद्र सोलंकी, अतुल ज्वाला, डॉ. कविता ’किरण’, अर्जुन सिसौदिया, अनामिका अम्बर, अशोक चारण, अंकिता सिंह सहित युवा पीढ़ी में शम्भू शिखर, चेतन चर्चित, अमन अक्षर, अमित शर्मा, राम भदावर, अमित मौलिक, गौरव साक्षी, कमल आग्नेय जैसे सैंकड़ो कवि तक अपनी कविता के माध्यम से निरंतर शताब्दी को महोत्सवता प्रदान कर रहे हैं। इसी कवि सम्मेलन परम्परा ने हिन्दी सिनेमा को ख़्यात गीतकार दिए। हिन्दी के कवियों ने फ़िल्मी गीतकार के रूप में ख़ूब ख़्याति प्राप्ति की। कवि गोपाल दास नीरज, संतोष आनंद, प्रदीप, शैलेंद्र, विश्वेश्वर शर्मा, इंद्रजीत तुलसी, बालकवि बैरागी, माया गोविंद, प्रभा ठाकुर, वीनू महेंद्र, सुनील जोगी जैसे कई कवियों ने बॉलीवुड को गीत देकर समृद्ध बनाया। केपी सक्सेना ने फ़िल्म लगान, जोधा अकबर, हलचल, स्वदेश जैसी सुपरहिट फिल्मों में संवाद लेखन का काम किया। डॉ. सुरेश अवस्थी ने डीडी वन, टू टीवी चैनलों में प्रसारित कई धारावाहिकों की पटकथा, संवाद व शीर्षक गीत लिखे। अशोक चक्रधर ने पानीपत जैसी ऐतिहासिक फ़िल्म में संवाद लिखे। यह भी हिन्दी कविता का अर्जित है, जिसमें कवियों की महनीय भूमिका रही है। इस फ़िल्मी दुनिया में आज भी कई कवि अपने गीतों और संवाद के माध्यम से कविता की परंपरा को अक्षुण्ण रख रहे हैं। इसी तरह, हिन्दी कवि सम्मेलन ने विदेशों में भी अपना अस्तित्व बनाया। अमेरिका में हिन्दी साहित्य समिति द्वारा, इंग्लैंड में भारतीय संस्कृति परिषद् द्वारा, ऑस्ट्रेलिया, इस्ताम्बुल, बैंकॉक, कनाडा, मॉरीशस, केन्या, इंडोनेशिया, मलेशिया, दुबई जैसे तीन दर्जन देशों में हिन्दी कवि सम्मेलनों का आयोजन आज भी हो रहा है। यह हिन्दी कवि सम्मेलन का प्रभाव भी है कि इस बहाने विश्वभर में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार हो रहा है। जिस तरह हिन्दी फ़िल्मों के माध्यम से भाषागत विस्तार की इमारत खड़ी हुई, उसी तरह कवि सम्मेलनों के माध्यम से गूगल हैड क्वाटर, सिलिकॉन वैली व फेसबुक मुख्यालय जैसे विश्व के दिग्गज संस्थानों में हिन्दी कविता का महोत्सव आयोजित किया जाता है। विश्व के पचास से अधिक विश्वविद्यालयों में कवि सम्मेलन इत्यादि आयोजित किए जाते हैं और भारत के कवि वहाँ जाकर हिन्दी कविता का पक्ष रखते हैं। आज हिन्दी कवि सम्मेलन परम्परा अपने सौ साल के सफ़र के रोमांच से गर्वित है क्योंकि जनमानस के अवसाद को कम करने में भी कवि सम्मेलनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कोरोनो जैसी भीषण विभीषिका के दौरान ऑनलाइन कवि सम्मेलनों ने लाखों लोगों को अवसादग्रस्त होने से बचाया, यह भी सामर्थ्य हिन्दी कविता में रहा, यह दुनिया ने देखा। और निश्चित तौर पर हिन्दी शब्द संसार की इस ताक़त से समाज बख़ूबी परिचित है। हिन्दी कवि सम्मेलन इस वर्ष अपने यशस्वी शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस शताब्दी वर्ष को जनमानस में स्थापित करने के लिए कवि सम्मेलन समिति सहित मातृभाषा उन्नयन संस्थान इत्यादि भी प्रयासरत है। विभिन्न साहित्य अकादमियों के साथ मिलकर नगर-नगर कविता का उत्सव होगा। कवियों के दीवान का वितरण, भाषण, व्याख्यान, काव्य उत्सव, कवि सम्मेलन इत्यादि आयोजित किए जाएंगे ताकि देश और दुनिया के लोग इस शताब्दी वर्ष के साक्षी बने। हिन्दी कवि सम्मेलन की यह दिग्विजय यात्रा अनंत तक अनवरत जारी रहे और जनमानस भी कविता के लिए विनीतभाव से कार्यरत रहे। श्रोताओं को उनकी मानसिक ख़ुराक मिलती रहे। कवि सम्मेलन शताब्दी वर्ष के दौरान मातृभाषा उन्नयन संस्थान देश के प्रत्येक राज्य में कविता का उत्सव और सम्मान समारोह आयोजित करेगा, जिससे भी जनता में कवि सम्मेलन के प्रति जागरुकता बढ़ेगी और कवि सम्मेलनों में भी शुचिता लौटेगी। इस समय यह कालखण्ड पीढ़ियों तक अमर रहे, इस दिशा में भी सैंकड़ो कार्य किए जा रहे हैं। देश के हज़ारों विद्यालय, महाविद्यालय, साहित्यिक संस्थाएं, कवि सम्मेलनों के आयोजक के साथ जुड़कर हिन्दी कवि सम्मेलन का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा हैं। यह अभूतपूर्व कार्य जब देशभर में होता दिखाई देगा, तब यकीन जानना हिन्दी कवियों के असाध्य श्रमबल का सुखद परिणाम होगा और इसी तरह हिन्दी कवि सम्मेलन की अनंत यात्रा भी यश अर्जित करेगी। डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ Read more » Hindi kavi sammelan हिन्दी कवि सम्मेलन
लेख समाज वृद्ध क्यों है इतने कुंठित एवं उपेक्षित? October 1, 2022 / October 1, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment अन्तर्राष्ट्रीय वृद्ध नागरिक दिवस- 1 अक्टूबर 2022 पर विशेष– ललित गर्ग –दुनिया में वरिष्ठ नागरिकों, वृद्धों एवं प्रौढ़ों के साथ होने वाले अन्याय, उपेक्षा और दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 01 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे भिन्न-भिन्न-नामों से जाना जाता है जैसे- ‘अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग […] Read more » Why is the old man so frustrated and neglected अन्तर्राष्ट्रीय वृद्ध नागरिक दिवस