कविता रंग नहीं होली के रंगों में March 15, 2014 by हिमकर श्याम | 2 Comments on रंग नहीं होली के रंगों में -हिमकर श्याम- फिर बौरायी मंजरियों के बीच कोयल कूकी, दिल में एक टीस उठी पागल भोरें मंडराने लगे, अधखिली कलियों के अधरों पर पलाश फूटे या आग किसी मन में, चूड़ी की है खनक कहीं, कहीं थिरकन है अंगों में, ढोल-मंजीरों की थाप गूंजती है कानों में मौसम हो गया है अधीर, बिखर गये चहूं […] Read more » Poem on Holi रंग नहीं होली के रंगों में
व्यंग्य घुटन का मौसम March 15, 2014 / March 15, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- मौसम विज्ञानियों की बात यदि मानें, तो दुनिया भर में मुख्यत: तीन मौसम होते हैं। सर्दी, गर्मी और वर्षा। जहां तक भारत की बात है, तो यहां षड्ऋतु में वसंत, शिशिर और हेमंत भी शामिल हैं। हमारे कुछ मित्रों का कहना है कि दक्षिण भारत में गर्मी और बहुत अधिक गर्मी तथा पहाड़ों […] Read more » satire on leaders घुटन का मौसम
व्यंग्य चुनावी मौसम बड़ा सुहाना लगे March 15, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नजमून नवी खान- प्रकति के बनाये हूये तीन मौसम हमें मिले जिन्हें हम सर्दी, गर्मी और बरसात के नाम से जानते हैं, इनके अलावा हम इंसानों ने भी एक मौसम बनाया है जिसे हम सभी चुनावी मौसम के नाम से जानते हैं। ये सबसे सुहाना मौसम होता है जिसमें ना कोई छोटा है ना कोई […] Read more » satire on electoral system and leaders चुनावी मौसम बड़ा सुहाना लगे
कविता भोलाराम का प्रजातंत्र March 13, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- जब पवित्र पावक मनमोहक दिन चुनाव का आता है भोलाराम निकलकर घर से वोट डालने जाता है| किसे चुने या किसे वोट दें नहीं समझ वह पाता है सौ का नोट उसे जो देता वह उसका हो जाता है| दो दिन पहले तक चुनाव के लोग कई घर आते हैं लालच देकर हाथ […] Read more » poem on reality of democracy भोलाराम का प्रजातंत्र
व्यंग्य योग्य उम्मीदवार March 13, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- चुनाव सिर पर थे और योग्य उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी थी। सभी राजनैतिक दल एक दूसरे को पटकनी देने के जुगाड़ में थे। किसी भी तरह चुनाव में बढ़त बनायें और सत्ता हथियाएं, मात्र यही एक सूत्रीय कार्यक्रम सबके पास था। बहुमत मिल जाये तो फिर क्या कहने हैं। […] Read more » satire on election candidates योग्य उम्मीदवार
कविता मीठी वाणी March 13, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- छत पर आकर बैठा कौवा, कांव-कांव चिल्लाया| मुन्नी को यह स्वर ना भाया, पत्थर मार भगाया| तभी वहां पर कोयल आई, कुहू कुहू चिल्लाई| उसकी प्यारी प्यारी बोली, मुनिया के मन भाई| मुन्नी बोली प्यारी कोयल, रहो हमारे घर में| शक्कर से भी ज्यादा मीठा, स्वाद तुम्हारे स्वर में| मीठी बोली वाणी वाले, […] Read more » poem on speaking मीठी वाणी
महत्वपूर्ण लेख साहित्य हिन्दू राजा वीर राय का मौन स्मारक है-आसाम की धरती March 12, 2014 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment आसाम-अर्थात पूर्वी भारत का अंतिम छोर। जी हां, ये वही पुराना कामरूप है जहां कभी सूर्य सबसे पहले आकर अपनी किरणें बिखेरता था, आज यह सौभाग्य चाहे अरूणांचल प्रदेश को मिल रहा है, पर हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज का अरूणांचल प्रदेश भी पुराने आसाम का ही एक भाग है। पूर्व दिशा प्रकाश […] Read more » हिन्दू राजा वीर राय
व्यंग्य टिकट खत्म! प्रचार शुरू March 9, 2014 by अशोक गौतम | 1 Comment on टिकट खत्म! प्रचार शुरू बड़े दिनों से उनकी पार्टी की चौखट पर मेरे जैसे कर्इ गधे अपने कार्यकर्ताओं के साथ टिकट के लिए पड़े थे। एक लिस्ट में नहीं तो दूसरी लिस्ट में ही सही। मुझे लग रहा था कि कम से कम मेरा नाम आ ही जाएगा। और बस एक बार लिस्ट में नाम पड़ गया तो समझो […] Read more » टिकट खत्म! प्रचार शुरू
कविता फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है! March 6, 2014 by अश्वनी कुमार | Leave a Comment अश्विनी कुमार हर कदम पर मुझे दबाने का प्रयास किया जा रहा है फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है! सुरक्षित महसूस नहीं करती हूँ मैं इस सभ्य समाज में फिर भी मुझे स्त्री होने का गर्व है! मुझे इस पुरुष प्रधान समाज में उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है फिर भी मुझे […] Read more »
महत्वपूर्ण लेख साहित्य श्रीमद भागवत गीता में मोक्ष संन्यास योग March 4, 2014 by बी एन गोयल | 2 Comments on श्रीमद भागवत गीता में मोक्ष संन्यास योग बी एन गोयल गीता के अंतिम अध्याय का नाम है – मोक्ष सन्यास योग। भारतीय चिंतन में मानव जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना अथवा आवागमन के चक्र से मुक्ति माना गया है। स्वामी शिवानंद ने गीता की अपनी व्याख्या में अँग्रेज़ी में इसे – The Yoga of Liberation by Renunciation अर्थात त्याग द्वारा […] Read more » मोक्ष संन्यास योग
व्यंग्य हिंदी साहित्य का अखाड़ा March 2, 2014 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on हिंदी साहित्य का अखाड़ा ::: भाग एक::: बहुत समय पहले की बात है। मुझे एक पागल कुत्ते ने काटा और मैंने हिंदी साहित्यकार बनने का फैसला कर लिया। ये दूसरी बार था कि मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा था और मैं अपनी ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ कोई महत्वपूर्ण फैसला कर रहा था। पहली बार जब एक महादुष्ट पागल […] Read more » हिंदी साहित्य का अखाड़ा
महत्वपूर्ण लेख साहित्य बुन्देलखण्ड की वीरभूमि के सपूत आल्हा-ऊदल March 2, 2014 / March 2, 2014 by राकेश कुमार आर्य | 1 Comment on बुन्देलखण्ड की वीरभूमि के सपूत आल्हा-ऊदल भारत की पवित्र भूमि के लिए बड़ा सुंदर गीत गाया जाता है :- मेरे देश की धरती सोना उगले.. उगले हीरे मोती…मेरे देश की धरती………….. मैं समझता हूं भारत मां के लिए जिस कवि के हृदय में भी ये भाव मचले होंगे और उन्होंने जब कुछ शब्दों का रूप लिया होगा तो वह कवि भी […] Read more » बुन्देलखण्ड की वीरभूमि के सपूत आल्हा-ऊदल