व्यंग्य अभी थोड़ा बिजी हूँ! January 26, 2018 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अमित शर्मा (CA) मैं अक्सर व्यस्त रहता हूँ। यह मेरी आसाधारण प्रतिभा ही है कि व्यस्त रहते हुए भी मैं फेसबुक, वाट्सएप और कई लोगो के दिल में बिना किराए और रेंट एग्रीमेंट के रह लेता हूँ। व्यस्तता के प्रकोप से पीड़ित होने के बावजूद भी, मैं एक अच्छे सेवक की तरह भोजन और नींद […] Read more » busy Featured व्यस्त
व्यंग्य साहित्य राजनीति के ये ब्वायज क्लब …!! January 9, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कहीं जन्म – कहीं मृत्यु की तर्ज पर देश के दक्षिण में जब एक बूढ़े अभिनेता की राजनैतिक महात्वाकांक्षा हिलोरे मार रही थी, उसी दौरान देश की राजधानी के एक राजनैतिक दल में राज्यसभा की सदस्यता को लेकर महाभारत ही छिड़ा हुआ था। विभिन्न तरह के आंदोलनों में ओजस्वी भाषण देने वाले […] Read more » Featured राजनीति
व्यंग्य भ्रष्टाचार, हमारा मूलभूत अधिकार January 7, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment बुजुर्गों का कहना है कि बेटे कब बड़े और बेटियां कब जवान हो जाती हैं, इसका पता ही नहीं लगता। यही हाल हमारे महान भारत देश का है। कब, किस दिशा में हम कितना आगे बढ़ जाएंगे, कहना कठिन है। भारत में आजादी के बाद से ही उच्च शिक्षा पर बहुत जोर दिया गया है। […] Read more » Corruption Featured Our Basic Rights
व्यंग्य एक पाती लालू भाई के नाम January 7, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment प्रिय लालू भाई, जय राम जी की। आगे राम जी की कृपा से हम इस कड़कड़ाती ठंढ में भी ठीकठाक हैं और उम्मीद करते हैं कि आप भी हज़ारीबाग के ओपेन जेल में राजी-खुशी होंगे। अब तो बिहार और झारखंड का सभी जेलवा आपको घरे जैसा लगता होगा। इस बार आपकी पूरी मंडली आपके साथ […] Read more » Featured fodder scam letter in the name of lalu yadav एक पाती लालू भाई के नाम
व्यंग्य साहित्य कांग्रेसी संस्कृति के नये अध्याय January 1, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment डा. रामधारी सिंह ‘दिनकर’भारत के एक महान साहित्यकार थे। उनकी एक कालजयी पुस्तक है ‘संस्कृति के चार अध्याय’। चार मोटे खंडों वाली इस पुस्तक को पढ़ना और फिर समझना एक बड़ा काम है। जिन्होंने इस पुस्तक से साक्षात्कार किया है, वही इसे जान सकते हैं। लेकिन पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में संस्कृति का एक नया […] Read more » Congress Congress culture culture New chapters of Congress कांग्रेसी संस्कृति
व्यंग्य साहित्य जूता जासूस December 29, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment किसी जमाने में एक शायर हुआ करते थे अकबर इलाहबादी। पेशे से तो वे न्यायाधीश थे; पर उनकी प्रसिद्धि उनकी चुटीली शायरी से अधिक हुई। उनका एक प्रसिद्ध शेर है – जूता बाटा ने बनाया, मैंने इक मजमूं लिखा मेरा मजमूं चल न पाया और जूता चल गया।। अब प्रश्न उठता है कि आज जूते […] Read more » Featured जूता जूता जासूस
व्यंग्य साहित्य स्वास्थ्य की माँगे खैर, करे सुबह की सैर December 23, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment पृथ्वी, बिना किसी बुलावे के या भुलावे के निरंतर सूर्य के चक्कर लगाती है। हालाँकि अभी तक यह सिद्ध नहीं हो पाया है कि निरंतर चक्कर लगाने के पीछे ,पृथ्वी की सूर्य के प्रति दीवानगी है या केवल स्वास्थ्य संबधी जागरूकता। वैज्ञानिक, अपने ज्ञान को ललकारते हुए बताते है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती […] Read more » करे सुबह की सैर स्वास्थ्य की माँगे खैर
व्यंग्य साहित्य वे बीच में खड़े हैं December 20, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment गुजरात के चुनाव आखिरकार सम्पन्न हो ही गये। दो महीने से बड़ा शोर था उनका। उस शोर में बेचारे हिमाचल प्रदेश को तो लोग भूल ही गये। बात ही कुछ ऐसी थी। परिणाम देख-सुनकर शर्मा जी बहुत उदास हैं। – ये ठीक नहीं हुआ वर्मा। – क्यों, जो भी हुआ, जनता ने किया है। क्या […] Read more » Featured बीच मणिशंकर अय्यर
व्यंग्य बड़े – बड़ों की शादी और बीमारी …!! December 19, 2017 / December 19, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा पता नहीं तब अपोलो या एम्स जैसे अस्पताल थे या नहीं, लेकिन बचपन में अखबारों में किसी किसी चर्चित हस्ती खास कर राजनेता के इलाज के लिए विदेश जाने की खबर पढ़ कर मैं आश्चर्यचकित रह जाता था। अखबारों में अक्सर किसी न किसी बूढ़े व बीमार राजनेता की बीमारी की खबर […] Read more » शादी
व्यंग्य छपना है तुझे रचना के लिए December 15, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अमित शर्मा (CA) किसी लेखक के लिए छपना उतना ही ज़रूरी और स्वाभाविक है जितना कि किसी राजनैतिक पार्टी का टिकट वितरण में धांधली करना। बिना छपे किसी लेखक का वही मूल्य होता है जो मूल्य “श्रीलंका” में “श्री” का या फिर पाकिस्तान में लोकतंत्र का है। किसी भी लेखक के लिए उसकी रचना, जिगर […] Read more » रचना
व्यंग्य साहित्य मानहानि का मुकदमा December 12, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment कल शाम शर्मा जी के घर गया, तो पता लगा कि वे किसी बड़े वकील के पास गये हैं। सज्जन व्यक्ति से मिलने थाने से कोई आ जाए या फिर उसे ही वकील के पास जाना पड़े, तो इसे भले लोगों की बिरादरी में अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए मैं चिंता में पड़ गया और […] Read more » Featured मानहानि
व्यंग्य साहित्य हमारा लोकतंत्र और बेचारे गधे December 10, 2017 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल सुबह सो कर उठा तो मेरी नज़र अचानक टी टेबल पर पड़े अख़बार के ताजे अंक पर जा टिकी । जिस पर मोटे – मोटे अक्षरों में लिखा था ” गधों की हड़ताल” अख़बार के सम्पादक जी कि कृपा से यह खबर फ्रंट पेज की लीड स्टोरी बनी थी। स्वर्णाक्षरों में कई […] Read more » Featured लोकतंत्र