व्यंग्य गाजर मूली के साथ धनिया मिर्ची फ्री March 3, 2017 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment गली में कई दिनों बाद नत्थू सब्जी वाले की आवाज़ सुनाई दी । देखा तो सामने नत्थू ही अपनी गधा-रेहड़ी पर सब्जी लादे आवाज़ लगा रहा है । मैंने पूछा – अरे नत्थू ! सब कुशल तो है ? कहीं चले गए थे क्या ? नहीं साहब , हम कहाँ जा सकते हैं । बस […] Read more » गाजर मूली के साथ धनिया मिर्ची फ्री
व्यंग्य साहित्य मूर्ख परंपरा और समर्पित मूर्ख February 28, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment मैं बचपन से मूर्ख रहा हूँ पर कभी इस पर गर्व नहीं किया, करता भी क्यों आखिर, गर्व मनुष्य द्वारा स्वअर्जित चीज़ों पर किया जाना चाहिए, प्रकृतिप्रदत्त वस्तुओ पर कैसा गुमान, वो तो आपके पूर्व जन्म में किये गए कर्मो का ही फल होता है, जो कभी बासी नहीं होता है। प्रकृति के इस “फल” […] Read more » मूर्ख परंपरा समर्पित मूर्ख
व्यंग्य साहित्य मैं जब भ्रष्ट हुआ February 24, 2017 / February 24, 2017 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment वीरेन्द्र परमार मेरी नियुक्ति जब एक कमाऊ विभाग में हुई तो परिवार के लोगों और सगे – संबंधियों को आशा थी कि मैं शीघ्रातिशीघ्र भ्रष्ट बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़ जाऊंगा लेकिन आशा के विपरीत जब मैं एक दशक तक भ्रष्ट नहीं हुआ तो सभी ने एक स्वर से मुझे कुल कलंक घोषित कर […] Read more » Featured भ्रष्ट भ्रष्ट होना एक राष्ट्रीय उत्सव भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार मुक्त समाज
व्यंग्य खट्ठा-मीठा : भाभी से होलियाना छेड़छाड़ February 23, 2017 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment ऐसे दीवाने देवरों को देखकर भाभी डर गयीं। भैया से शिकायत करने की धमकी दी। इस पर देवर और भी अधिक हो-हल्ला करने लगे। ‘भाभी, हम भैया से नहीं डरते। अगर भैया डाँटेंगे, तो उनको भी गुलाल लगा देंगे। पर हम भाभी से होली जरूर खेलेंगे।’ भाभी जानती थी कि ससुर जी से भी शिकायत करने का कोई लाभ नहीं होगा। वे तो ज्यादा से ज्यादा यही कहेंगे कि ‘लड़के हैं, लड़कों से गलतियाँ हो जाती हैं।’ Read more » भाभी भाभी से होलियाना छेड़छाड़ होलियाना छेड़छाड़
व्यंग्य साहित्य आईपीएल, मनोरंजन और भारतीय दर्शन February 22, 2017 / February 22, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment आईपीएल की बोली लग चुकी है, खिलाडी बिक चुके है, बस अब खेल का बिकना बाकी है। मज़मा लग चुका हैै, खिलाडी मुजरा करने को तैयार है। बाज़ारीकरण के इस दौर में “आई-पिल” और “आईपीएल” दोनों का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है क्योंकि दोनों ही कम समय में “सुरक्षित” मनोरंजन सुनिश्चित करते है। विकासशील […] Read more » Featured आईपीएल भारतीय दर्शन मनोरंजन
व्यंग्य “लांच” होने से ज़्यादा रूचि “लंच” करने में February 18, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment इसरो ने अंतरिक्ष में 104 उपग्रह एक साथ छोड़कर उन्हें सफलतापूर्वक अपनी कक्षा में स्थापित कर दिया है,ये पूरे देश के लिए तो गर्व की बात है ही लेकिन मेरे लिए यह गर्व के साथ -साथ प्रेरणास्पद बात भी है क्योंकि बचपन में अपने मम्मी-पापा के कई असफल प्रयासों के बाद भी मैं अपनी स्कूल […] Read more »
व्यंग्य नये इसरो की तलाश February 18, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इन दिनों हर कोई ‘इसरो’ के गुण गा रहा है। सचमुच उसने काम ही ऐसा किया है। दुनिया में आज तक कोई देश एक साथ 104 उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित नहीं कर सका है। जो लोग वैज्ञानिक सफलता के नाम पर सुबह उठते ही अमरीका और रात में सोने से पहले रूस की माला जपते हैं, […] Read more » नये इसरो की तलाश
व्यंग्य साहित्य नेता जी के साथ एक दिन February 15, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment ये चुनाव के दिन हैं। जिसे देखो अपनी प्रशंसा और दूसरे की बुराई करने में दिन-रात एक कर रहा है। नेता लोग दूसरे की सबसे अधिक आलोचना जिस मुद्दे पर करते हैं, वह है भ्रष्टाचार। लेकिन चुनाव जीतते ही अधिकांश लोग उसी काम में लग जाते हैं, जिसकी आलोचना कर वे चुनाव जीतते हैं। कई […] Read more » Featured नेता जी के साथ एक दिन
व्यंग्य मफलर के मौसम में रेनकोट February 13, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment मफलर के मौसम में रेनकोट के चर्चे है। कपड़ो का उपयोग उनकी प्रवृति के हिसाब से अब किसी मौसम विशेष तक सीमित नहीं रह गया हैै वो अपनी सीमाए लांघकर हर मौसम में “सर्जिकल- स्ट्राइक” कर अपनी निर्भरता और उपयोगिता का लौहा मनवा रहे है। यह उल्लेखनीय है की ये लोहा , “लौहपुरुष” के मार्गदर्शक […] Read more » मफलर रेनकोट
व्यंग्य साहित्य वाद, विवाद और विकासवाद February 10, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment सिरदर्द के अनेक कारण होते हैं। कुछ आतंरिक होते हैं, तो कुछ बाहरी। पर मेरे सिरदर्द का एक कारण हमारे पड़ोस में रहने वाला एक चंचल और बुद्धिमान बालक चिंटू भी है। उसके मेरे घर आने का मतलब ही सिरदर्द है। कल शाम को मैं टी.वी. पर समाचार सुन रहा था कि वह आ धमका। […] Read more » Featured पूंजीवाद वाद विकासवाद विवाद विवाद और विकासवाद समाजवाद
राजनीति व्यंग्य मैं वोट जरूर दूंगा February 8, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment चुनाव के दिन जैसे-जैसे पास आ रहे हैं, हर कोई उसके रंग में रंगा दिख रहा है। किसी ने छत पर अपनी मनपंसद पार्टी का झंडा लगाया है, तो किसी ने सीने पर उसका बिल्ला। कुछ लोगों ने साइकिल, स्कूटर और कार पर ही अपने प्रिय प्रत्याशी को चिपका लिया है। पान की दुकान हो […] Read more » Featured मैं वोट जरूर दूंगा वोट वोट दूंगा
व्यंग्य साहित्य आलू और पनीर (सेल्वम्) February 7, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment दुनिया की हर भाषा में लोकजीवन में प्रचलित प्रतीकों और मुहावरों का बड़ा महत्व है। फल-सब्जी, पशु-पक्षी और व्यवहार या परम्पराओं से जुड़ी बातें साहित्य की हर विधा को समृद्ध करती दिखती हैं। अब आप आलू को ही लें। यह हर सब्जी में फिट हो जाता है। इससे नमकीन और मीठे, दोनों तरह के व्यंजन […] Read more » Featured आलू और पनीर (सेल्वम्)