व्यंग्य व्यंग्य बाण : मिलावट के लिए खेद है June 13, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment –विजय कुमार- गरमी में इन्सान तो क्या, पेड़–पौधे और पशु–पक्षियों का भी बुरा हाल हो जाता है। शर्मा जी भी इसके अपवाद नहीं हैं। कल सुबह पार्क में आये, तो हाथ के अखबार को हिलाते हुए जोर–जोर से चिल्ला रहे थे, ‘‘देखो…देखो…। क्या जमाना आ गया है ?’’ इतना कहकर वे जोर–जोर से हांफने लगे। […] Read more » Featured मिलावट मिलावट के लिए खेद है व्यंग्य
व्यंग्य प्रमाणित करता हूं कि मैं आम आदमी हूं…! June 2, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- कहते हैं गंगा कभी अपने पास कुछ नहीं रखती। जो कुछ भी उसे अर्पण किया जाता है वह उसे वापस कर देती है। राजनीति भी शायद एसी ही गंगा हो चुकी है। सत्ता में रहते हुए राजनेता इसमें जो कुछ प्रवाहित करते हैं कालचक्र उसे वह उसी रूप में वापस कर देता […] Read more » Featured आम आदमी प्रमाणित करता हूं कि मैं आम आदमी हूं व्यंग्य
व्यंग्य केले.. ले लो, संतरे.. ले लो! May 30, 2015 / May 30, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम- वह इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का मजनू फिर अपनी प्रेमिका के कूचे से आहत हो आते ही मेरे गले लग फूट- फूट कर रोता हुए बोला,‘ दोस्त! मैं इस गली से ऊब गया हूं। इस गली में मेरा अब कोई नहीं। मैं बस अब आत्महत्या करना चाहता हूं। बिना दर्द का कोई […] Read more » केले.. ले लो व्यंग्य संतरे.. ले लो! हास्य. featured
आर्थिकी व्यंग्य पोटली में रुपया May 29, 2015 by अमित राजपूत | Leave a Comment -अमित राजपूत- आज जहां पैसों को पानी की तरह बहाया जा रहा है, उसके पर्दे की वो प्रथा समाप्त हो गयी जिसके रहते लोग पैसों से कभी साध्य की तरह व्यवहार नहीं करते थे, आज भिखारी भी एक का सिक्का स्वाभिमान में वापस कर देता है। आज के समय में जहां किसी दुकान से कुछ […] Read more » Featured पोटली में रुपया महंगाई पर व्यंग्य व्यंग्य
व्यंग्य ढम-ढम बजाएंगे May 28, 2015 / May 28, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- इन दिनों गर्मी काफी पड़ रही है। कल शाम छींटे पड़ने से मौसम कुछ हल्का हुआ, तो मैं शर्मा जी के घर चला गया। वहां वे छुट्टियों में आयी अपनी नाती गुंजन को कहानी सुना रहे थे। एक गांव में मन्नू नामक लड़का रहता था। जब वह पांच साल का हुआ, तो पढ़ने […] Read more » Featured गर्मी गर्मी पर व्यंग्य़ ढम-ढम बजाएंगे
व्यंग्य काश…! दादी ने शहर की कहानी सुनाई होती May 27, 2015 by कन्हैया कुमार झा | Leave a Comment काश…! दादी ने शहर की कहानी सुनाई होती लोग कहते हैं फिल्में समाज का दर्पण होती हैं मतलब समाज मे जो कुछ घटित होता है, समाज की जो भी असलियत है, जितनी संवेदना है , जैसी भी अवधारना है, फिल्में ठीक वैसी ही परोसती हैं । कभी-कभी तो हर आदमी की कहानी ही फिल्मी लगती […] Read more » काश...! दादी ने शहर की कहानी सुनाई होती: नानी विदेशनीति व्यंग सरकार
व्यंग्य यमराज एडमिट हैं May 19, 2015 / May 19, 2015 by अशोक गौतम | 1 Comment on यमराज एडमिट हैं -अशोक गौतम- मुहल्ले को ताजी सब्जी उधार- सुधार दे खुद पत्तों से रोटी खाने वाला रामदीन कमेटी के जमादार को रोज- रोज नाली के ऊपर सब्जी की दुकान लगाने के एवज में दो- दो किलो सब्जी दे तंग आ गया तो उसने यमराज से गुहार लगाई,‘ हे यमराज महाराज! या तो मुझे इस देस से […] Read more » Featured यमराज यमराज एडमिट हैं यमराज पर व्यंग्य सामाजिक व्यंग्य
विविधा व्यंग्य ‘गब्बर इज़ बैक’ एन्ड ही इज मोर डैंजर May 14, 2015 / May 14, 2015 by जावेद अनीस | Leave a Comment -जावेद अनीस- शोले फिल्म के ओरिजिनल क्लाइमैक्स में ठाकुर द्वारा गब्बर को मारते हुए दिखाया गया था जिसे बाद में सेंसर बोर्ड की दखल के बाद बदलना पड़ा, सेंसर बोर्ड नहीं चाहता था कि फिल्म में ठाकुर का किरदार कानून को अपने हाथ में ले। लगभग चालीस साल बाद आयी “गब्बर इज बेक” केक्लाइमैक्स में […] Read more » 'गब्बर इज़ बैक' एन्ड ही इज मोर डैंजर Featured अक्षय कुमार गब्बर इज़ बैक
मीडिया व्यंग्य उबाऊ होता ‘दाऊद – पुराण’…! May 12, 2015 / May 12, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- अपना बचपन फिल्मी पर्दो पर डाकुओं की जीवन लीला देखते हुए बीता। तब कुछ डाकू अच्छे भी होते थे, तो कुछ बुरे भी। किसी के बारे में बताया जाता कि फलां डाकू है तो काफी नेक, लेकिन परिस्थितियों ने उसे हाथों में बंदूक थामने को मजबूर कर दिया। कुछ डाकू जन्मजात दुष्ट […] Read more » Featured उबाऊ होता 'दाऊद - पुराण'...! दाउद दाउद इब्राहिम
कला-संस्कृति व्यंग्य ये कार्टून बोलता है ! May 7, 2015 / May 7, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -गर्वित बंसल- रात्रि को सोने से पहले फेसबुक अकाउंट की हलचल का जायजा लेते हुए अचनाक से दृष्टि एक कार्टून पर पड़ी ! लगा कि ये कार्टून कुछ बता रहा है, कुछ बोल रहा है! कार्टून का बारीकी से जायजा लेते हुए समझ आया कि यह तो आज़ाद हिंदुस्तान की उस तथाकथित महान परम्परा का बखान कर […] Read more » Featured ये कार्टून बोलता है ! राजनीतिक व्यंग्य व्यंग्य सोनिया गांधी
मीडिया व्यंग्य विश्वास के चक्कर में लोगो की टक्कर May 6, 2015 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | Leave a Comment -दीपक शर्मा “आज़ाद”- ना ना ना भाई विश्वास करो वो साहब निर्दोष है, एकदम शरीफ की जात है। आपको मालूम नहीं क्या उनके पास देश की एकमात्र साफ़, स्वच्छ पार्टी का सर्टिफिकेट भी है। फिर आप कैसे उनको झूठा बोल सकते हो। देखा नहीं वो देश की राजनीतिक स्थिति को बदलने के लिए कितना प्रयास […] Read more » Featured न्यूज चैनल्स मीडिया मीडिया पर व्यंग्य विश्वास के चक्कर में लोगो की टक्कर
विविधा व्यंग्य अफवाहें हैं अफवाहों का क्या… May 4, 2015 / May 5, 2015 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | 2 Comments on अफवाहें हैं अफवाहों का क्या… अफवाहे है अफवाहों का क्या… कभी कभी कुछ कहा हुआ इतना फ़ैल जाता है कि उसके आगे फैला हुआ रायता भी कम लगने लगता है। मुझे अक्सर लगता है कि आखिर वे कौन लोग है जो इस तरह से बातों को इधर से उधर फैला कर अच्छे-खासे दिमाग की भुजिया बनाने पर तुले रहते है। […] Read more » Featured rumours अफवाह अफवाहे है अफवाहों का क्या... अफवाहों का क्या...