व्यंग्य साहित्य खाद्य सुरक्षा के बसते July 4, 2013 / July 4, 2013 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment बगल में तीन तीन बसते दबाये चोखी लामा फटे थैले सा मुंह लटकाए चले आ रहे थे। हमें मसखरी सूझी ..और पूछ बैठे ..अरे चोखी मियां ये बच्चों के बसते उठाये इस उम्र में कौन से स्कूल जा रहे हो। हमारी मसखरी चोखी मियां को नागवार गुजरी ! उत्तराखंड के बादल की भांति बिफर पड़े …मियां पैसे वाले हो […] Read more » खाद्य सुरक्षा के बसते
व्यंग्य साहित्य साला मैं तो साहेब (प्रेस फोटोग्राफर) बन गया June 28, 2013 by प्रमोद भार्गव | 1 Comment on साला मैं तो साहेब (प्रेस फोटोग्राफर) बन गया मैं सलाह देना चाहूँगा कि यदि आप थोड़ा बहुत साक्षर और बेरोजगार हों और समाज में एक शिक्षित एवं सम्मानित व्यक्ति की तरह जीवन जीना चाहते हों तो देर मत कीजिए जल्द ही किसी अखबार का प्रेस रिपोर्टर बन जाइए। बस आप की हर इच्छा पूरी होती रहेगी। क्योंकि मीडिया/प्रेस रिपोर्टर्स की समाज के हर […] Read more » साला मैं तो साहेब (प्रेस फोटोग्राफर) बन गया
व्यंग्य साहित्य वे देख रहे हैं June 26, 2013 by विजय कुमार | 2 Comments on वे देख रहे हैं कल शर्मा जी के घर गया, तो वहां असम के वन विभाग में कार्यरत उनके एक पुराने मित्र वर्मा जी भी मिले, जो अपने 12 वर्षीय बेटे के साथ आये हुए थे। बेटे का पूरा नाम तो मनमोहन था; पर वर्मा जी उसे मन्नू कहकर बुला रहे थे। उन्होंने बताया कि वे अपने बेटे को […] Read more » वे देख रहे हैं
व्यंग्य साहित्य रजनी कान्त बर्खास्त : रजनी कान्त का कार्यभार नरेंद्र को सौंपा गया June 25, 2013 / July 19, 2013 by अरुण कान्त शुक्ला | 37 Comments on रजनी कान्त बर्खास्त : रजनी कान्त का कार्यभार नरेंद्र को सौंपा गया ईश्वर ने रजनीकान्त को बर्खास्त कर दिया है| अब रजनीकांत वो सारे कार्य नहीं कर पायेगा, जो ईश्वर भी नहीं कर पाता था| केदार बाबा से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बता गया है की ईश्वर से भी नहीं बन पाने वाले कार्यों को करने के लिए अब भगवान जपो आन्दोलन के प्रचारमंत्री और गुजरात में […] Read more » रजनी कान्त बर्खास्त : रजनी कान्त का कार्यभार नरेंद्र को सौंपा गया
व्यंग्य साहित्य वरिष्ठ जाड़ का दर्द June 21, 2013 by जगमोहन ठाकन | 4 Comments on वरिष्ठ जाड़ का दर्द पिछले कुछ दिनों से ‘‘वरिष्ठ जाड़ ’’ की सन्सटीविटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी । ठण्डा खाओ तो दर्द,गर्म खाओ तो दर्द । इतनी भारी भरकम गर्मी में शरीर कहता है कि कुछ ठण्डा पिया जाये वर्ना डिहाइडरेसन का खतरा बढ़ जाता है । जीभ कहती है कि कुछ कूल-कूल हो जाये । पर […] Read more » वरिष्ठ जाड़ का दर्द
व्यंग्य साहित्य कवि और कल्पना June 18, 2013 by बीनू भटनागर | 2 Comments on कवि और कल्पना आजकल हर निर्माता अपनी सफल फिल्म के सीक्वल बनाने में लगा हुआ है। टी.वी. पर आने वाले रियलिटी शोज़ के तो हर साल नये सीज़न आते ही हैं। अब कुछ धारावाहिक भी नये सीज़न लेकर आ रहे हैं, तो मैंने सोचा कि इस प्रथा को लेखन में भी उतारा जाये, जो बात पहले कहने से […] Read more » कवि और कल्पना
व्यंग्य साहित्य देख लिया न दादू! June 15, 2013 / July 7, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment दादू! देख लिया न अपनी जिद का नतीजा ! अपनी तो फजीहत करवाई ही, हमारी भी बची खुची नाक कटवा कर रख दी। लुटिया डुबोते तो सुना था पर आपने तो लोटा ही डुबो दिया! अब देखो न, हमारे जैसे – कैसे परिवार का गांव में क्या मैसेज गया ! खैर, इज्जत तो हमारी पहले […] Read more » देख लिया न दादू!
व्यंग्य साहित्य भैंस की पूंछ -विजय कुमार June 11, 2013 / June 11, 2013 by विजय कुमार | 1 Comment on भैंस की पूंछ -विजय कुमार पिछले दिनों शर्मा जी के गांव में पूजा का आयोजन था। उनकी इच्छा थी कि मैं भी चलूं। यहां भी कुछ खास काम नहीं था, इसलिए उनके साथ चला गया। पूजा के बाद एक-दो दिन रुककर ग्राम्य जीवन का आनंद लिया। तीसरे दिन जब चलने लगा, तो सामने वाले घर में कुछ शोर-शराबा होता देखा। […] Read more »
व्यंग्य शहर में लगे ‘कर्फ्यू’ की वजह…? June 6, 2013 / June 6, 2013 by डॉ. भूपेंद्र सिंह गर्गवंशी | 1 Comment on शहर में लगे ‘कर्फ्यू’ की वजह…? शहर में ‘कर्फ्यू’ लग ही गया। ‘कर्फ्यू’ की अवधि में शहरवासियों का साँस लेना दूभर हो गया था। बूटो की खट खटाहट से शहर के वासिन्दे सहमे-सहमें मनहूस ‘कर्फ्यू’ से छुटकारा पाने की सोच रहे थे। शहर के ‘कर्फ्यू ग्रस्त’ इलाके में हर जाति/धर्म के लोग रहते हैं, सभी के लिए ‘कर्फ्यू’ कष्टकारी रहा, लेकिन […] Read more » शहर में लगे ‘कर्फ्यू’ की वजह...?
व्यंग्य साहित्य थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय का अपना स्टाइल June 5, 2013 / June 6, 2013 by डॉ. भूपेंद्र सिंह गर्गवंशी | Leave a Comment पुरानी बात है जिले के एक थाना क्षेत्र में चोरियों की बाढ़ आ गई थी। जिससे आम आदमी की नींद हराम हो गई थी। जिले के आला अफसरों से लेकर पुलिस महकमें के सूबे स्तरीय अधिकारी इसको लेकर काफी चिन्तित थे। यह उस समय की बात है जब सूबे के पुलिस महकमें का मुखिया आई.जी. […] Read more » थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय का अपना स्टाइल
व्यंग्य साहित्य सांप और सीढ़ी June 5, 2013 by विजय कुमार | Leave a Comment परसों शर्मा जी के घर गया था। वहां उनसे गपशप का सुख तो मिलता ही है, कभी-कभी शर्मा मैडम के हाथ की गरम चाय भी मिल जाती है; लेकिन परसों शर्मा मैडम घर में नहीं थीं, इसलिए चाय की इच्छा अधूरी रह गयी। तभी शर्मा जी ने बताया कि उनके पड़ोस में एक नये किरायेदार […] Read more » सांप और सीढ़ी
व्यंग्य आज मैं ऊपर, आसमां नीचे…… June 1, 2013 / June 1, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment आजकल अपने मुहल्ले में हर दूसरा जीव प्रदर्शनकारी हो गया है। लगता है मुहल्ले वालों ने जैसे सारे काम छोड़ प्रदर्शन करने का ठेका ले रखा हो। मेरे मुहल्ले का जीव देश के तमाम जीवों की तरह ऊपर से और किसी काम में पारंगत होकर आया हो या न, पर प्रदर्शन करने की कला और […] Read more » आज मैं ऊपर आसमां नीचे......