व्यंग्य स्वच्छंदजी बोले November 21, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम हम जैसों को तो नरक की न जिंदे जी चिंता होती है न मरने के बाद, क्योंकि हमें पता होता है कि हमें हर समय ही भोगना है पर अपने शहर के कम्युनिटी हाल में शहर के धनाढयों द्वारा मरने के बाद नरक से मुकित हेतु कराए जा रहे सप्ताह के चौथे दिन […] Read more »
व्यंग्य कवि और कल्पना November 5, 2012 / November 5, 2012 by बीनू भटनागर | 4 Comments on कवि और कल्पना कविता भी क्या चीज़ है कल्पना की उड़ान कवि को किसी दूसरी ही दुनियाँ मे पंहुचा देती है। एक कवि की दुनियाँ और एक उस व्यक्ति की दुनियाँ। यह इंसान कभी भी एक दुनियाँ से निकल कर दूसरी दुनियाँ मे ऐसे आता जाता रहता है जैसे कोई एक कमरे से दूसरे कमरे मे जाता हो। […] Read more » कवि और कल्पना
व्यंग्य व्यंग्य/ शाहों वाले संकट मोचक October 29, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम अब देखो न भैया! आम आदमी हैं तो कुछ बने या न पर उल्लू तो बनेंगे ही! इहां आम आदमी जिंदगी में कुछ बने या न बने पर मुआ कम से कम उल्लू होकर तो देह त्यागता ही है। हम तो जन्म से मरण तक उल्लू बनाने वालों की राह फटी आंखों से […] Read more »
व्यंग्य जय हो बाजार की! October 26, 2012 / October 26, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment डिस्काउंटों से भरे बाजारों , अखबारों में अखबारों से बड़े छपे विज्ञापनों को देख अब मुझे भीतर ही भीतर अहसास हो गया है कि हे राम ! तुम बनवास काट, घर के भेदी से लंका ढहवा अयोध्या की ओर लखन, सीता सहित कूच कर गए हो। और हम खालिस मध्यमवर्गीय तुम्हारे आने की खुषी में […] Read more » satire by Ashok Gautam
टॉप स्टोरी व्यंग्य नौकरी के नौ सिद्धान्त – अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र October 25, 2012 / October 25, 2012 by विपिन किशोर सिन्हा | 6 Comments on नौकरी के नौ सिद्धान्त – अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र विपिन किशोर सिन्हा प्रिय खेमका जी, हमेशा खुश रहिए। दिनांक १६ अक्टुबर के पहले न मैं आपको जानता था और न आप मुझे। लेकिन अब तो मैं ही क्या सारा हिन्दुस्तान आपको जान गया है। मुझे जानने की आपको कोई जरुरत नहीं। वैसे भी नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे किसी भी अधिकारी को अपने से […] Read more » नौकरी के नौ सिद्धान्त
व्यंग्य टांगें और कामयाबी October 24, 2012 / October 24, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव पांव छूना हमारी संस्कृति के प्राण हैं। और पांव छूना और छुलवाना हमारी सनातन-शाश्वत सांस्कृतिक गतिविधि है। पद,प्रमोशन, पुरस्कार,प्रतिष्ठा नाना प्रकार की उपलब्धियां हमें पांव छूने से ही प्राप्त होती हैं। सैंकड़ों टाटा और बाय-बाय पर एक अदद पांव छूना हज़ार गुना भारी पड़ता है। आज के जीवन-संग्राम में जो चरण स्पर्श […] Read more »
व्यंग्य उल्लुं शरणं गच्छामि.. October 19, 2012 / October 19, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on उल्लुं शरणं गच्छामि.. सुरेश नीरव दिवाली फटाफट अमीर होने का तत्काल-सेवा रिजर्वेशन काउंटर है। जो हर साल खुलता है। और जहां हर साल धन की धनक और खनक पर भांगड़ा करने की अदम्य लालसा लिए नोटाभिलाषी भक्तगण चीन में बनी लक्ष्मी मैया की मूर्ति के आगे अपनी स्वदेशी श्रद्धा की आउटसोर्सिंग के जरिए मनुष्य से धनपशु होने का […] Read more »
व्यंग्य कब पिलाओगे October 19, 2012 / October 19, 2012 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार ”राघव” ” सैयाँ भए कोतवाल अब डर कहे का” ऐसी कहावते अब पुरानी हो गयी हैं इसी को ध्यान में रखकर शीर्षस्थ लोग नई कहावते गढ़ने लगे हैं | ” सैयाँ जब सरकार मतलब पूरा भ्रष्टाचार ” कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की धर्म पत्नी ने इसे चरितार्थ किया है | करें भी क्यों […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : हाथ मिलाएं, पर ध्यान से October 19, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार लगता है कि अखबार वालों के पास छापने के लिए विषयों की कमी हो गयी है, इसलिए वे न जाने कहां-कहां से लाकर ऊल जलूल बातें त्यौहार के मौसम में पाठकों को परोस देते हैं। शर्मा जी कल बहुत दिन बाद मिले, तो मैंने उत्साहपूर्वक हाथ आगे बढ़ाते हुए उन्हें दीपावली की बधाई […] Read more »
व्यंग्य न्यू तोता-मेना लव स्टोरी October 19, 2012 / October 19, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment शहरीकरण के सीमेंटवन में बेवक्त चल बसे संबंधों का सांय-सांय करता श्मशानी सन्नाटा और इस सन्नाटे में मुद्रास्फीति के नाखूनों पर विदेशी-निवेश की नेलपॉलिश लगाए बैठी मिस मंहगाई अपने प्रेमी के इंतजार में बैठी समय काटने के लिए अपने ही नाथून चबा रही है। अचानक ट्रेफिक जाम के चक्रब्यूह को पार कर के छलांग लगाता […] Read more »
व्यंग्य रामलीलाएं और भव्य कवि सम्मेलन October 17, 2012 / October 17, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment सुरेश नीरव भारत एक लीला प्रधान देश है। वर्षभर यहां किसिम-किसिम के विविधभारती जलसे होते ही रहते हैं। इसलिए ही इसे भारतवर्ष भी कहा जाता है। जलसे… राजनैतिक आंदोलनों से लेकर भगवती जागरण तक। देश एक लीलाएं अनेक। भक्तजनों ने अभी-अभी गणपति बब्बा मोरिया को सीऑफ किया है कि रामलीला के तंबू-बंबू गढ़ने शुरु हो […] Read more » भव्य कवि सम्मेलन रामलीलाएं
व्यंग्य कल आ जाइये October 6, 2012 / October 6, 2012 by बीनू भटनागर | 5 Comments on कल आ जाइये एक सौ बीस करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश मे अगर कमी है तो बस आदमी की। विचित्र विडम्बना है, कि जिस देश की जनसंख्या इतनी अधिक है, लाखों लोग बेरोज़गार इधर उधर भटक रहे है वहाँ हर जगह यही सुनने को मिलता है आदमी नहीं हैं.. आपका काम हो जायेगा..बस कल आ जाइये या […] Read more » कल आ जाइये