व्यंग्य गणतंत्र दिवस पर स्वर्णिम अध्याय लिखने की तैयारी में शांति-संयम का गठजोड़… January 24, 2021 / January 24, 2021 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार ‘नवीन’ ‘एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति!’ अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा। आप भी सोच रहे होंगे कि इतनी बड़ी बात आज किस सन्दर्भ में लिखी जा रही है। नहीं समझे। अरे, भलेमानुषों। 26 जनवरी को स्वर्णिम इतिहास […] Read more » गणतंत्र दिवस
व्यंग्य सियासत के ब्रांडिंग चेहरों का मौसम January 11, 2021 / January 11, 2021 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल पादुका यानी जूता संस्कृति हमारे संस्कार में बेहद गहरी पैठ बना चुका है। यह अतिशयोक्ति नहीँ होगी कि मानव के अभ्युदय के साथ ही सम्भवतः पादुकाओं का आविर्भाव हुआ होगा। आजकल पादुकाऐं भी ब्रांडेड आने लगी हैं। कुछ दशक पूर्व सिर्फ एक […] Read more » पादुका यानी जूता संस्कृति ब्रांडिंग की महत्वता
व्यंग्य स्वाद अपरंपार December 24, 2020 / December 24, 2020 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment हास्य और गाम्भीर्यता की अनूठी रार, गजब… ‘पोली’ और ‘पोली का यार’ सुशील कुमार ‘नवीन ‘ किसी रिपोर्टर ने हरियाणा के रामल से पूछा कि आप लोग बार-बार कहते सुनाई देते हो कि भई, स्वाद आग्या। ये स्वाद क्या बला है और ये आता कहां से है। रामल ने कहा-चल मेरे साथ।आगे-आगे रामल और पीछे-पीछे […] Read more » पोली पोली का यार स्वाद अपरंपार
मनोरंजन व्यंग्य ज़ुकाम December 21, 2020 / December 21, 2020 by बीनू भटनागर | Leave a Comment 2020 में सबसे ज़्यादा भाव ज़ुकाम के बढ़े हैं जिसका शुमार कभी बीमारियों में भी नहीं था। कहा जाता था दवा खाए तो भी और दवा न खाए तो भी ज़ुकाम पाँच दिन में ठीक हो ही जाता है।ऐसा नहीं है कि ज़ुकाम कष्टदायक नहीं होता… बहुत कष्ट देता है नाक से पानी के झरने […] Read more » Cold ज़ुकाम
व्यंग्य कृषि कानूनों की वामपंथी व्याख्या December 20, 2020 / December 20, 2020 by डॉ.रामकिशोर उपाध्याय | Leave a Comment प्रातःकाल लाल झंडा उठाए द्रुत गति से दौड़ते हुए, वामपंथी यूनियन के नेता जी को देख एक युवक ने पूछा, नेताजी कहाँ दौड़े जा रहे हो ? नेताजी ने कहा, धरना देने, चलो आप भी चलो | युवक ने पूछा क्यों ? वे बोले, अपने खेत नहीं बचाने क्या | युवक बोला, जरा ठहरो विस्तार […] Read more » Leftist interpretation of agricultural laws
राजनीति व्यंग्य दीदी के अंगने में भाजपा का क्या काम है December 11, 2020 / December 11, 2020 by नवेन्दु उन्मेष | Leave a Comment नवेन्दु उन्मेष कोलकाता की सड़कों पर भाजपा के लोग अकसर एक फिल्मी गीत गाते हुए मिलतेहैं-एक बंगला बने न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा, सोने का बंगला, चंदन काजंगला, अति सुंदर प्यारा-प्यारा। वहीं दीदी के कार्यकर्ता गाते हैं किमेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। अब मुसीबत यह है कि एक दल के लोगवहां एक बंगला […] Read more » bjp in bengal दीदी के अंगने में भाजपा
व्यंग्य आंदोलन में ‘उत्सव’ जैसा रसास्वादन, पिज्जा-बर्गर, चाय-कॉफी सब हाजिर December 10, 2020 / December 10, 2020 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार’नवीन’ खाने को पिज्जा, लच्छा परांठा, तंदूरी नान,तवा नान, चिल्ला, डोसा वो सब हैं, जो मसालेदार खाने वालों को चाहिए। देसी चटखारे के लिए मक्के की रोटी, सरसों का साग, दाल तड़का, कढ़ी,चावल, राजमा जितना चाहो उतना छक लो। मीठे में देसी घी का हलवा, गर्म जलेबी, लड्डू, बूंदी तो हैं ही। हरियाणवीं तड़का […] Read more » food in kisan andolan kisan andolan tea-coffee all present सहयोग का लंगर
व्यंग्य बेशर्मी के लिए नशा बहुत जरूरी है जनाब… November 23, 2020 / November 23, 2020 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार ‘नवीन’ आप भी सोच रहे होंगे कि भला ये भी कोई बात है कि बेशर्मी के लिए नशा बहुत जरूरी है। क्या इसके बिना बेशर्म नहीं हुआ जा सकता। इसके बिना भी तो पता नहीं हम कितनी बार बेशर्म हो हुए हैं। हमारे सामने न जाने कितनी बार अबला से छेड़छाड़ हुई है […] Read more » बेशर्मी के लिए नशा
लेख व्यंग्य सोसल साइट्स और वसुधैव कुटुबंकम की अवधारणा November 22, 2020 / November 22, 2020 by डा. प्रदीप श्याम रंजन | Leave a Comment विज्ञान और तकनीकी विकास के इस युग में कई आविष्कारों ने हमारे दैनिक जीवन में आवष्यक या अनावश्यक ढंग से घुसपैठ की है । कुछ ने लाभ पहुंचाए हैं तो कुछ ने नुकसान । कुछ के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता (रिसर्च चल रही है) । सोसल साइटस को हम ससम्मान ‘कुछ नहीं […] Read more » concept of Vasudhaiva Kutubankam Social sites सोसल साइट्स सोसल साइट्स और वसुधैव कुटुबंकम
व्यंग्य अबकै ही तो आई खुशियों वाली दिवाली November 17, 2020 / November 17, 2020 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार ‘नवीन’ गांव के पूर्व मुखिया बसेशर लाल और उनकी पत्नी राधा के कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे। शहर जा बसे दोनों बेटे अपने परिवार के साथ गांव में आ रहे हैं। वो भो एक-दो दिन के लिए नहीं। जब तक लोकडाउन और कोरोना महामारी से राहत नहीं मिलेगी, वो यहीं रहेंगे। छोटे […] Read more » खुशियों वाली दिवाली
व्यंग्य ठाडे कै सब यार, बोदे सदा ए खावैं मार November 11, 2020 / November 11, 2020 by सुशील कुमार नवीन | Leave a Comment सुशील कुमार ‘नवीन’ प्रकृति का नियम है हर बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। जंगल में वही शेर राजा कहलाएगा,जिसके आने भर की आहट से दूसरे शेर रास्ता बदल लेते हों। गली में वही कुत्ते सरदार होते हैं जो दूसरे कुत्तों के मुंह से रोटी छीनने का मादा रखते हों । और तो और […] Read more » ठाडे कै सब यार बोदे सदा ए खावैं मार
व्यंग्य लोकतंत्र की चुनावी दीवाली November 4, 2020 / November 4, 2020 by नवेन्दु उन्मेष | Leave a Comment नवेन्दु उन्मेष लोकतंत्र में मतदाता ही चुनाव में दीपावली मनाते हैं। मतदाता ही लोकतंत्रके दीये जलाते हैं और मतदाता ही लोकतंत्र के दीये बझाते भी हैंै।जिस दल या नेता का दीया मतदाता जलाते देते हैं उसके घर पर दीपावली मनतीहै और जिसके घर के दीये मतदाता बुझा देते हैं उसके घर पर बीरानी छा जातीहैं।चुनाव […] Read more » Electoral Diwali of democracy लोकतंत्र की चुनावी दीवाली