राजनीति क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’  विधेयक को लेकर सरकार असमंजस में है ?

क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’  विधेयक को लेकर सरकार असमंजस में है ?

रामस्वरूप रावतसरे      वन नेशन वन इलेक्शन बिल को संसद में पेश करने को लेकर सरकार असमंजस में है। पहले रिपोर्ट आई कि सरकार की…

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खान-पान समान पैदावार के साथ स्वास्थ्य जोखिम कम करेगी प्राकृतिक खेती

समान पैदावार के साथ स्वास्थ्य जोखिम कम करेगी प्राकृतिक खेती

किसानों की खाद की मांग को पूरा करने के लिए शहरी गीले कचरे से खाद बनाने को राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन में शामिल करें। विकेंद्रीकृत…

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आर्थिकी भारत में दान करने की प्रथा से गरीब वर्ग का होता है कल्याण

भारत में दान करने की प्रथा से गरीब वर्ग का होता है कल्याण

भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों में दान दक्षिणा की प्रथा का अलग ही महत्व है। भारत में विभिन्न त्यौहारों एवं महापुरुषों के जन्म दिवस पर मठों मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर समाज के सम्पन्न नागरिकों द्वारा दान करने की प्रथा अति प्राचीन एवं सामान्य प्रक्रिया है। गरीब वर्ग की मदद करना ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा माना जाता है। समाज में आपस में मिल बांटकर खाने पीने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है और यह प्रथा भारतीय समाज में बहुत आम है। परिवार में आई किसी भी खुशी की घटना को समाज में विभिन्न वर्गों के बीच आपस में बांटने की प्रथा भी भारत में ही पाई जाती है। इस उपलक्ष में कई बार तो बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं। जैसे जन्म दिवस मनाना, परिवार में शादी के समारोह के पश्चात समाज में नाते रिश्तेदारों, दोस्तों एवं मिलने वालों को विशेष आयोजनों में आमंत्रित करना, आदि बहुत ही सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत के विभिन्न मठों, मंदिरों, गुरुद्वारों एवं अन्य पूजा स्थलों पर प्रतिदिन 10 करोड़ से अधिक नागरिकों को प्रसादी के रूप में भोजन वितरित किया जाता है।       साथ ही, पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसमें निवासरत नागरिक, चाहे वह कितना भी गरीब से गरीब क्यों न हो, अपनी कमाई में से कुछ राशि का दान तो जरूर करता है। भारतीय शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अनुरूप, महर्षि दधीच ने तो, देवताओं को असुरों पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से, अपने शरीर को ही दान में दे दिया था, जिसे इतिहास में उच्चत्तम बलिदान की संज्ञा भी दी जाती है। आज के युग में जब अर्थ को अत्यधिक महत्व प्रदान किया जा रहा है, तब अधिक से अधिक धनराशि का दान करना ही शुभ कार्य माना जा रहा है। इस दृष्टि से वैश्विक स्तर पर नजर डालने पर ध्यान में आता है कि दुनिया में सबसे बड़े दानदाता के रूप में आज भारत के टाटा उद्योग समूह के श्री रतन टाटा का नाम सबसे ऊपर उभर कर सामने आता है। इस सूची में टाटा समूह के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में 8.29 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। इसी प्रकार, श्री रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने वर्ष 2021 तक 8.59 लाख करोड़ रुपए की राशि का महादान किया था। आप अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब वर्ग की सहायतार्थ दान में दे देते थे। श्री रतन टाटा केवल भारत स्थित संस्थानों को ही दान नहीं देते थे बल्कि वैश्विक स्तर पर समाज की भलाई के लिए कार्य कर रहे संस्थानों को भी दान की राशि उपलब्ध कराते थे। आपने वर्ष 2008 के महामंदी के दौरान अमेरिका स्थित कार्नेल विश्वविद्यालय को 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का दान प्रदान किया था। श्री रतन टाटा ने आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे छात्रों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जे. एन. टाटा एंडाउमेंट, सर रतन टाटा स्कॉलर्शिप एवं टाटा स्कॉलर्शिप की स्थापना कर दी थी। श्री रतन टाटा चूंकि अपनी कमाई का बहुत बड़ा भाग दान में दे देते थे, अतः उनका नाम कभी भी अमीरों की सूची में बहुत ऊपर उठकर नहीं आ पाया। इस सूची में आप सदैव नीचे ही बने रहे। श्री रतन टाटा जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में इतनी बड़ी राशि का दान किया था कि आज विश्व के 2766 अरबपतियों के पास इतनी सम्पत्ति भी नहीं है। यूं तो टाटा समूह ने भारत राष्ट्र के निर्माण में बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु कोरोना महामारी के खंडकाल में श्री रतन टाटा के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। जिस समय पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा था, उस समय श्री रतन टाटा ने न केवल भारत बल्कि विश्व के कई अन्य देशों को भी आर्थिक सहायता के साथ साथ वेंटिलेटर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट, मास्क और दस्ताने आदि सामग्री उपलब्ध कराई। श्री रतन टाटा के निर्देशन में टाटा समूह ने इस खंडकाल में 1000 से अधिक वेंटिलेटर और रेस्पिरेटर, 4 लाख पीपीई किट, 35 लाख मास्क और दास्ताने और 3.50 लाख परीक्षण किट चीन, दक्षिणी कोरिया आदि देशों से भी आयात के भारत में उपलब्ध कराए थे।  श्री रतन टाटा के पूर्वज पारसी समुदाय से थे और ईरान से आकर भारत में रच बस गए थे। श्री रतन टाटा ने न केवल भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों को अपने जीवन में उतारा, बल्कि इन संस्कारों का अपने पूरे जीवनकाल में अक्षरश: अनुपालन भी किया। इन्हीं संस्कारों के चलते श्री रतन टाटा को आज पूरे विश्व में सबसे बड़े दानदाता के रूप में जाना जा रहा है।     टाटा समूह का वर्णन तो यहां केवल उदाहरण के रूप में किया जा रहा है। अन्यथा, भारत में ऐसे कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति को ही ट्रस्ट के माध्यम से समाज के उत्थान एवं समाज की भलाई के लिए दान में दे दिया है। प्राचीन भारत में यह कार्य राजा महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा हैं। हिंदू सनातन संस्कृति के विभिन्न शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि ईश्वर ने जिसको सम्पन्न बनाया है, उसे समाज में गरीब वर्ग की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। यह सहायता गरीब वर्ग को सीधे ही उपलब्ध कराई जा सकती है अथवा ट्रस्ट की स्थापना कर भी गरीब वर्ग की मदद की जा सकती है। वर्तमान में तो निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर – कोरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) के सम्बंध में कानून की बना दिया गया है। जिन कम्पनियों की सम्पत्ति 500 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक व्यापार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक है, उन्हें इस कानून के अंतर्गत अपने वार्षिक शुद्ध लाभ के दो प्रतिशत की राशि का उपयोग समाज की भलाई के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं पर खर्च करना आवश्यक होता है। इन विभिन्न मदों पर खर्च की जाने वाली राशि का प्रतिवर्ष अंकेक्षण भी कराना होता है, ताकि यह जानकारी प्राप्त की जा सके राशि का सदुपयोग समाज की भलाई के लिए किया गया है एवं इस राशि का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग नहीं हुआ है।  भारत में गरीब वर्ग/परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में समाज में सम्पन्न वर्ग द्वारा किए जाने वाले दान आदि की राशि से भी बहुत मदद मिलती है। निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर) योजना के अंतर्गत चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का सीधा लाभ भी समाज के गरीब वर्ग को ही मिलता है। अतः विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां सरकार एवं समाज मिलकर गरीब वर्ग की भलाई हेतु कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। इसीलिए ही अब यह कहा जा रहा है कि हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार यदि वैश्विक स्तर पर होता है तो, इससे पूरे विश्व का ही कल्याण हो सकता है एवं बहुत सम्भव है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी का नाश होकर चहुं ओर खुशहाली फैलती दिखाई दे।                 प्रहलाद सबनानी 

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मनोरंजन गजब की इनर्जी और चार्म वाली एक्‍ट्रेस, श्रीलीला

गजब की इनर्जी और चार्म वाली एक्‍ट्रेस, श्रीलीला

सुभाष शिरढोनकर सुकुमार द्वारा निर्देशित ‘पुष्पा: द राइज़’ (2021) के सीक्वल ‘पुष्पा 2: द रूल’ (2024) के ‘किसिक…’ आइटम सॉन्ग में साउथ में अपने नाम का डंका बजाने वाली एक्‍ट्रेस श्रीलीला ने…

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राजनीति निरर्थक चर्चा से संविधान का अपमान हुआ

निरर्थक चर्चा से संविधान का अपमान हुआ

राजेश कुमार पासी लोकसभा में 13-14 दिसम्बर और राज्यसभा में 16-17 दिसम्बर को संविधान पर चर्चा हुई है । पक्ष-विपक्ष के सांसदों ने इस चर्चा…

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राजनीति अल्पसंख्यक के नाम पर राजनीति ज्यादा खतरनाक

अल्पसंख्यक के नाम पर राजनीति ज्यादा खतरनाक

अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस -18 दिसंबर 2024– ललित गर्ग – अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पहली बार 18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के…

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राजनीति घरेलू विवाद से दहेज़ के झूठे मामलों में उलझते पुरुष

घरेलू विवाद से दहेज़ के झूठे मामलों में उलझते पुरुष

जब वैवाहिक कलह के कारण घरेलू विवाद उत्पन्न होते हैं, तो अक्सर पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की कोशिश की जाती है।…

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शख्सियत जाकिर हुसैन के निधन से शून्य हुई तबले की थाप

जाकिर हुसैन के निधन से शून्य हुई तबले की थाप

– ललित गर्ग – दुनियाभर में शास्त्रीय संगीत में भारत को अलग पहचान दिलाने वाले उस्ताद और मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन अब हमारे बीच…

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कला-संस्कृति मंदिरों की नगरी भुवनेश्वर

मंदिरों की नगरी भुवनेश्वर

डा. विनोद बब्बर  गत दिवस अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अधिवेशन में भाग लेने के लिए ओडिया की राजधानी भुवनेश्वर जाने का अवसर मिला। पूर्व…

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राजनीति हताश-निराश विपक्ष को ममता से आस क्यों

हताश-निराश विपक्ष को ममता से आस क्यों

राजेश कुमार पासी कभी-कभी हम ऐसी समस्या से घिर जाते हैं जिससे निकलने का कोई अच्छा रास्ता नहीं सूझता तो हम हताश होकर एक नए रास्ते पर…

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खान-पान डिब्बा बंद भोजन संस्कृति में हो रहा इजाफा।

डिब्बा बंद भोजन संस्कृति में हो रहा इजाफा।

पहले की तुलना में आज हमारी जीवनशैली बहुत बदल गई है। सच तो यह है कि आज हम आपा-धापी और दौड़-धूप भरी जिंदगी जी रहे…

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आर्थिकी सांस्कृतिक संगठनों के नेतृत्व में स्वच्छता अभियान को दी जा सकती है गति

सांस्कृतिक संगठनों के नेतृत्व में स्वच्छता अभियान को दी जा सकती है गति

आज पूरे देश के विभिन्न नगरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इन नगरों में प्रतिदिन सैकड़ों/हजारों टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसे इन नगरों की नगर पालिकाओं/नगर निगमों द्वारा एकत्र किया जाता है। कचरे की मुख्य श्रेणियों में जैविक अपशिष्ट, प्लास्टिक, कागज, धातु और कांच शामिल रहते हैं। कुछ नगरों में संग्रहण के पश्चात, कचरे को प्रसंस्करण संयंत्रों में भेजा जाता है, परंतु कुछ नगरों में नागरिकों की भागीदारी और कचरे के उचित निपटान की कमी एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। इस प्रकार देश के विभिन्न नगरों में कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या के रूप में विद्यमान है। भारत में कचरे का मुख्य निपटान लैंडफिल साइटों पर किया जाता है, लेकिन यहां कचरे की सॉर्टिंग का अभाव है। अधिकांश कचरे को बिना छांटे सीधे लैंडफिल में डाला जाता है, जिससे पुनर्चक्रण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसके अलावा, लैंडफिल साइट्स पर कचरे का उचित प्रबंधन नहीं किया जाता और इसका प्रदूषण मिट्टी और जल स्रोतों तक फैलता है। कुछ नगरों में कई कॉलोनियों में सीवेज का पानी खुले में बहाया जाता है। इससे जल स्रोतों का प्रदूषण होता है और जल जनित बीमारियों का खतरा बढ़ता है। खुले में सीवेज के निस्तारण से दुर्गंध और अस्वच्छ वातावरण भी उत्पन्न होता है, जिससे नागरिकों को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई नगरों में नागरिक अक्सर सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, पार्कों और धार्मिक स्थलों पर कचरा फेंक देते हैं। यह शहर की स्वच्छता को प्रभावित करता है और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाता है। खासकर धार्मिक आयोजनों और प्रसाद वितरण के बाद खुले में कचरा फैलाने की आदत अधिक देखी जाती है। इससे न केवल गंदगी फैलती है, बल्कि यह धार्मिक स्थलों की पवित्रता और स्थानीय पारिस्थितिकी को भी प्रभावित करता है। इसी प्रकार, कई नगरों में वायु प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ रही है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) कई बार 200 से 300 के बीच रहता है, जो “अस्वस्थ” श्रेणी में आता है। इसके कारणों में प्रमुख हैं: (1) औद्योगिक प्रदूषण – विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले वेस्ट पदार्थों का उचित निपटान नहीं होने के चलते विभिन्न उद्योग नगरों में प्रदूषण फैलाते हैं। (2) वाहनों से प्रदूषण – बढ़ते वाहनों की संख्या और पुराने वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। (3) धूल – सड़क निर्माण और निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल भी वायु प्रदूषण को बढ़ाती है, जो सांस के रोगों को जन्म देती है। आज भारत में विभिन्न नगरों में स्वच्छता की समस्याओं के हल में नागरिकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गई है। नागरिकों द्वारा खुले में कचरा फेंकने, जानवरों को खुले में खाना देने और धार्मिक आयोजनों में प्रदूषण फैलाने जैसी आदतें स्वच्छता की स्थिति को और अधिक खराब करती हैं। (1) सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकना – लोग अक्सर सड़कों, पार्कों और धार्मिक स्थलों पर कचरा छोड़ देते हैं। (2) जानवरों को खाना देना – नागरिकों द्वारा सड़क पर गायों और कुत्तों को खाना देना एक सामान्य प्रथा है, लेकिन इसके बाद कचरे का सही निपटान नहीं किया जाता। पन्नियां भी यदा-कदा फेंक दी जाती हैं। (3) धार्मिक आयोजनों में प्रदूषण – धार्मिक स्थानों पर पूजा सामग्री और प्रसाद के पैकेट खुले में फेंके जाते हैं, जिससे स्वच्छता की स्थिति बिगड़ती है।इसमें भंडारे वाले स्थान प्रमुखता से हैं।  हालांकि भारत सरकार द्वारा स्वच्छता के लिए पूरे देश में ही अभियान चलाया जा रहा है, परंतु इस कार्य में विभिन्न सरकारी विभागों के अतिरिक्त समाज को भी अपनी भूमिका का निर्वहन गम्भीरता से करना होगा। यदि समाज और सरकार इस क्षेत्र में मिलकर कार्य करते हैं तो सफलता निश्चित ही मिलने जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छ भारत अभियान के तहत विभिन्न नगरों में कई प्रयास किए गए हैं। घर-घर शौचालय का निर्माण कराया गया है एवं कचरा संग्रहण की व्यवस्था की गई है इससे कुछ हद्द तक स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम सफल रहे हैं, लेकिन कचरे का निपटान और सार्वजनिक स्थलों की सफाई में अभी भी सुधार की बहुत अधिक गुंजाइश है। कुछ नगरों को तो स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत भी कई अतिरिक्त योजनाएं मिली हैं। इन योजनाओं में स्मार्ट कचरा प्रबंधन, स्मार्ट पार्किंग, और डिजिटल स्वच्छता निगरानी जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। इन कदमों से कचरे के प्रबंधन में सुधार और स्वच्छता बनाए रखने में मदद मिली है। कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में विभिन्न नगरों के सामने आ रही विभिन्न समस्याओं के हल हेतु समाज द्वारा दिए गए कई सुझावों पर अमल किया जाकर भी अपने अपने नगर में स्वच्छता के अभियान को सफल बनाया जा सकता है। विभिन्न नगरों को आज स्वच्छता के लिए 3R (Reduce, Reuse, Recycle) के सिद्धांत को अपनाने की महती आवश्यकता है। प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाना (Plastic Waste Roads) का कार्य बड़े स्तर पर हाथ में लिया जा सकता है। कचरे से ऊर्जा उत्पन्न करने (Waste-to-Energy Projects) के सम्बंध में विभिन्न प्राजेक्ट्स हाथ में लिए जा सकते हैं।  इको-फ्रेंडली शौचालयों (Eco-Friendly Toilets) का निर्माण भारी मात्रा में होना चाहिए। कचरे से धन उत्पन्न करने (Waste-to-Wealth) सम्बंधी योजनाओं को गति दी जा सकती है, इससे न केवल कचरा प्रबंधन में मदद मिलेगी बल्कि इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को भी गति मिलेगी। त्यौहारों के समय भारी मात्रा में बनाई जा रही भगवान की मूर्तियों का विसर्जन करते समय नगर स्तर पर स्वयसेवकों की टोलीयां बनाई जानी चाहिए जो विसर्जन सम्बंधित गतिविधियों पर अपनी पारखी नजर बनाए रखें ताकि भगवान की मूर्तियों का विसर्जन न केवल पूरे विधि विधान से सम्पन्न हो बल्कि इन मूर्तियों के अवशेष किसी भी प्रकार से कचरे का रूप न ले पायें, इसका ध्यान भी रखा जाना चाहिए।  अफ्रीकी देश रवांडा में, प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को एक घंटे के लिए पूरा देश अपने सभी कार्य रोककर सामूहिक सफाई में हिस्सा लेता है। इसे उमुगांडा कहा जाता है, और यह एक सामाजिक पहल है जिसका उद्देश्य न केवल स्वच्छता को बढ़ावा देना है, बल्कि समुदाय में एकजुटता और जिम्मेदारी की भावना को भी प्रोत्साहित करना है। इस एक घंटे के दौरान, नागरिक सार्वजनिक स्थानों, सड़कों और अन्य सामुदायिक क्षेत्रों को साफ करते हैं। यह पहल सरकार से लेकर स्कूलों के बच्चों तक सभी को शामिल करती है, और यह सामूहिक सफाई का एक बड़ा अभियान बन जाता है। उमुगांडा केवल स्वच्छता तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक एकता और सामूहिक प्रयास को बढ़ावा देने का एक तरीका है। भारत के विभिन्न नगरों में भी इस प्रकार की गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सकता है।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं विजयादशमी 2025 को 100 वर्ष का महान पर्व सम्पन्न होगा। संघ के स्वयंसेवक समाज में अपने विभिन्न सेवा कार्यों को समाज को साथ लेकर ही सम्पन्न करते रहे हैं। अतः इस शुभ अवसर पर, भारत के प्रत्येक जिले को, अपने स्थानीय स्तर पर समाज को विपरीत रूप से प्रभावित करती, समस्या को चिन्हित कर उसका निदान विजयादशमी 2025 तक करने का संकल्प लेकर उस समस्या को अभी से हल करने के प्रयास प्रारम्भ किए जा सकते हैं। किसी भी बड़ी समस्या को हल करने में यदि पूरा समाज ही जुड़ जाता है तो समस्या कितनी भी बड़ी एवं गम्भीर क्यों न हो, उसका समय पर निदान सम्भव हो सकता है। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक सांस्कृतिक संगठन होने के नाते, समाज को साथ लेकर पर्यावरण में सुधार हेतु विभिन्न नगरों में स्वच्च्ता अभियान को चलाने का लगातार प्रयास कर रहा है। इसी प्रकार, अन्य धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों को भी आगे आकर विभिन्न नगरों में इस प्रकार के अभियान चलाना चाहिए।  प्रहलाद सबनानी 

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