राजनीति जानिए, ग्रेटर इजरायल प्लान क्या है? इसको अमेरिकी समर्थन क्यों हासिल है? ग्रेटर इंडिया प्लान से इसका क्या रिश्ता है?

जानिए, ग्रेटर इजरायल प्लान क्या है? इसको अमेरिकी समर्थन क्यों हासिल है? ग्रेटर इंडिया प्लान से इसका क्या रिश्ता है?

कमलेश पांडेय क्या आपको पता है कि19वीं सदी में यहूदीवाद (जायोनिज्म) आंदोलन की आधारशिला रखने वाले थियोडोर हर्जेल ने एक ऐसे यहूदी देश की अवधारणा…

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राजनीति बांग्लादेश में हिंदुओं और उनके मंदिरों से आखिर किस बात का बदला?

बांग्लादेश में हिंदुओं और उनके मंदिरों से आखिर किस बात का बदला?

अमरपाल सिंह वर्मा चार महीने पहले बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ जो गुस्सा था, वह हसीना सरकार के अपदस्थ होने के बाद…

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लेख भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता।

भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता।

विभिन्न शैक्षिक सुधारों और नीतियों के बावजूद, भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली को बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत की स्कूली शिक्षा…

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लेख इलैक्ट्रिक व्हीकल के ई-कचरे का निपटान एक बड़ी चुनौती

इलैक्ट्रिक व्हीकल के ई-कचरे का निपटान एक बड़ी चुनौती

सुनील कुमार महला पर्यावरण प्रदूषण आज के समय में एक बहुत ही गंभीर और बड़ी समस्या है। इस समस्या से निजात पाने के लिए या यूं कहें कि पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से सरकार पिछले कुछ समय से देश में इलेक्ट्रोनिक वाहन (ईवी) को लगातार बढ़ावा दे रही है। इसी क्रम में हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कई प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माताओं ने ‘ईवी तकनीक’ में भारी निवेश किया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज इलेक्ट्रिक वाहन (ई.वी.) उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, और इसका बहुत बड़ा कारण पेट्रोल की कीमतों की स्थिति, तथा वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की चिंताएं हैं। आज आम व खास दोनों का ही रूझान भी इलेक्ट्रिक वाहन की खरीद की ओर लगातार बढ़ा है क्यों कि एक तो इन वाहनों पर सब्सिडी मिल जाती है, दूसरे छोटे वाहनों का आरटीओ में रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत भी नहीं पड़ती है या इनका रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य नहीं है। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2022 में भारत के आधे से अधिक तिपहिया पंजीकरण इलेक्ट्रिक वाहन थे जो ईवी अपनाने की दिशा में एक उल्लेखनीय बदलाव को दर्शाता है। वर्तमान में हमारी सरकारें देश में बड़े शहरों में ई-चार्जिंग स्टेशनों को भी बढ़ावा देने की ध्यान दे रही है और अनेक शहरों में तो इनकी शुरूआत भी हो चुकी है। बहरहाल, यह ठीक है कि इलैक्ट्रिक वाहनों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाने और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला कर सकने की अभूतपूर्व क्षमताएं है और ये तेल आयात को भी कम करने में मदद करते हैं और ऊर्जा विविधता लाने में भी योगदान करते हैं, कांपैक्ट डिजाइन के कारण शहरों में भीड़भाड़ कम करने में भी मदद करते हैं, लेकिन बावजूद इसके इलैक्ट्रिक वाहनों से हमारे पर्यावरण,हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर कहीं न कहीं विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।  वास्तव में आज इतनी अधिक संख्या में देश की मांग के अनुरूप ईवी बैटरी उत्पादन से हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।इससे धरती पर जैव-विविधता की हानि, वायु प्रदूषण और मीठे पानी की आपूर्ति में कमी जैसे प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक नई कारों की बिक्री का 52% हिस्सा पूरी तरह से इलेक्ट्रिक होगा। इलैक्ट्रिक वाहन बड़ी बैटरियों से चलते हैं, और मुख्य चिन्ता यह है कि चार्जिंग के अलावा, इलैक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) उत्पादन से भी कार्बन उत्सर्जन होता है। आंकड़े बताते हैं कि 43 किलोवाट-घंटे की औसत क्षमता के साथ, केवल एक ईवी बैटरी का उत्पादन करने से लगभग उतना ही कार्बन उत्सर्जन होता है जितना कि एक गैसोलीन कार को लगभग 50,000 मील चलाने से होता है। बैटरियों में पाये जाने वाले लिथियम और निकल भी कार्बन पदचिह्न में योगदान करते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि बैटरी निर्माण प्रक्रियाओं का पर्यावरण पर काफी प्रभाव पड़ता है। दरअसल, ईवी की लिथियम-आयन बैटरी के घटकों को खनन करना पड़ता है और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बैटरियों को आसानी से रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, जो दुनिया भर में बढ़ती ई-कचरे की समस्या को बढ़ाता है। अतः कहना ग़लत नहीं होगा कि इलैक्ट्रिक वाहनों में भी अपशिष्ट की समस्या एक बड़ी समस्या है जो मनुष्य के लिए एक चुनौती है। यह ठीक है कि लिथियम-आयन बैटरियां हमारी अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन उनका अपशिष्ट इतना होता है कि जीवाश्म ईंधन पर उनका कोई विशेष फायदा नजर नहीं आता है। एक आंकड़े के अनुसार लिथियम-आयन अपशिष्ट की यह संख्या वर्ष 2030 तक लगभग 3.2 मिलियन टन तक पहुँच जाने की संभावनाएं हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक ई-कचरा मॉनिटर 2020 के अनुसार, भारत, जो पहले से ही एक बड़ी ई-कचरे की समस्या से जूझ रहा है, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कचरा उत्पादक है। सरकार की इलैक्ट्रिक वाहनों की पहल पर्यावरण के लिहाज से ठीक है लेकिन इलैक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों का अनुचित तरीके से निपटान भारत में ई-कचरे की बढ़ती समस्या में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जिससे ईवी(इलैक्ट्रिक व्हीकल) क्रांति के साथ-साथ पर्यावरणीय चिंताएँ भी बढ़ सकती हैं। हमें जरूरत इस बात की है कि हम ई-कचरे के निपटान की दिशा में भी उचित एवं सकारात्मक कदम उठायें‌। सुनील कुमार महला

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राजनीति बहुमत की इच्छा से आखिर क्यों नहीं चलेगा देश? कोई समझाएगा जनमानस को!

बहुमत की इच्छा से आखिर क्यों नहीं चलेगा देश? कोई समझाएगा जनमानस को!

कमलेश पांडेय कहते हैं कि जो राजा या शासन पद्धति जनभावनाओं को नहीं समझ पाते हैं, रणनीतिक रूप से अकस्मात गोलबंद किए हुए उग्र लोगों के…

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टेलिविज़न वेब सीरीज’चिट्टा वे’ से वापसी कर रही हैं दलजीत कौर

वेब सीरीज’चिट्टा वे’ से वापसी कर रही हैं दलजीत कौर

सुभाष शिरढोनकर   ‘कुलवधु’ और ‘इस प्यार को क्या नाम दूं’ जैसे धारावाहिकों में लोकप्रिय किरदार निभाने वाली टीवी की पॉपुलर एक्ट्रेस दलजीत कौर आखिरी बार टीवी शो ‘ससुराल…

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पर्यावरण ऊर्जा का अपव्यय धरती और हम सबके लिए हानिकारक

ऊर्जा का अपव्यय धरती और हम सबके लिए हानिकारक

14 दिसंबर ऊर्जा संरक्षण दिवस हर कोई जानता है कि पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग दिन- प्रतिदिन बढ़ रही है और वातावरण में अपने विभिन्न प्रकार के…

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पर्यावरण विकास लक्ष्यों को पर्यावरणीय उद्देश्यों के साथ जोड़ना अत्यन्त आवश्यक

विकास लक्ष्यों को पर्यावरणीय उद्देश्यों के साथ जोड़ना अत्यन्त आवश्यक

हम पाते हैं कि सामाजिक लक्ष्यों का पीछा करना, आम तौर पर, उच्च पर्यावरणीय प्रभावों से जुड़ा होता है। हालाँकि, देशों के बीच बातचीत बहुत…

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कला-संस्कृति हर समस्या का समाधान है गीता

हर समस्या का समाधान है गीता

डा. विनोद बब्बर  विश्व के श्रेष्ठ ज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित गीता महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है। किन्तु इसका प्रभाव भारत ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में है। विश्व की अधिकांश प्रमुख भाषाओं के साहित्य को प्रभावित करने वाली गीता के महत्व को इसी बात से जाना जा सकता है कि श्रीकृष्ण जैसे प्रबंध शास्त्री का सर्वाेत्तम शोध-ग्रंथ है। कारागार में जन्म से एक ग्वालो के बीच पलने वाले श्रीकृष्ण ने अपने प्रबंधन कौशल के बल पर ही सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र को संगठित करने में सफलता हासिल की। यह श्रीकृष्ण का प्रबंधन कौशल ही था कि कंस के राज्य में रहते हुए भी समस्त संसाधनों के बल पर कंस की शक्ति को कमजोर करते रहे। बिना गद्दी पर बैठे महाभारत जैसे युद्ध के सूत्रधार बने। हम कृष्ण को एक विचारक व प्रबंध शास्त्री  मानते हुए अपने कर्तव्यों का निर्धारण करें ताकि हम किसी भी प्रकार किंकर्तव्यविमूढ़ न हों। त्यजेद् एकं कुलंस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेद्।ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे  पृथ्वी  त्यजेद्।।अर्थात हमें कुल या परिवार के हित के लिए अपने हित का त्याग करने, ग्राम के हित के लिए कुल के हित का त्याग करने व जनपद के हित के लिए ग्राम के हित का त्याग करने व आत्मा अर्थात समस्त प्राणी-मात्र के हित के लिए पृथ्वी का त्याग करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।वर्तमान को ज्ञान और प्रबंधन का युग माना जाता है। प्रबंधन की न्यूनता, अव्यवस्था, भ्रम, बर्बादी, अपव्यय, विलंब ध्वंस तथा हताशा को जन्म देती है। सफल प्रबंधन हेतु मानव, धन, पदार्थ, उपकरण आदि संसाधनों का उपस्थित परिस्थितियों तथा वातावरण में सर्वाेत्तम संभव उपयोग किया जाना अनिवार्य है। किसी प्रबंधन योजना में मनुष्य सर्वप्रथम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक होता है। अतः, मानव प्रबंधन को सर्वाेत्तम रणनीति माना जाता है।वैज्ञानिक, सूचना प्रोद्यौगिकी, सेवा ही नहीं, आध्यात्मिक क्षेत्र में ज्ञान और उसके प्रसार के नित्य नये साधन सामने आ रहे हैं। परंतु बढ़ती भौतिक सुविधाओं के बावजूद जीवन लगातार बहुआयामी व जटिल से जटिलतर होता जा रहा है। कहीं भी शान्ति एवं संतुष्टि दिखाई नहीं देती। कारण प्रबंधन की अनुपस्थिति अथवा कमजोर प्रबंधन। प्रबंधन केवल बाहरी ही नहीं आतंरिक भी। हम प्रबंधन को आधुनिकता की देन माना जाता हैं जबकि राम और कृष्ण साहित्य प्रबंधन के श्रेष्ठ स्रोत हैं। आवश्यकता है इस तथ्य कोे जानने और व्यवहार में लाने की कि स्नेह और सद्भाव की बांसुरी से काम चलाने की हरसंभव कोशिश करो। और मजबूरी में बांसुरी को छोड़ ‘बांस’ भी घुमाना पड़े तो उसके लिए भी स्वयं को सक्षम बनाओं।जनसामान्य गीता को धार्मिक, आध्यात्मिक ग्रंथ मानता है। अधिकांश घरों में गीता तो है पर अलमारी की शोभा बढ़ाने के लिए।  पढ़ी बहुत कम जाती है। जितना पढ़ी जाती है, समझी उससे भी कम जाती है। जितनी समझी जाती है आचरण में उससे भी कम दिखाई देती है। इसीलिए किसी शोकसभा में पंडित जी को ‘आत्मा की अमरता और संसार की नश्वरता’ पर गीता के  श्लोक बोलते देख अक्सर यह मान लिया जाता हैं कि गीता शोक को दूर भगाने वाला ग्रन्थ है। जबकि योगीराज श्रीकृष्ण ‘क्लैव्यं मा स्म गमः’ (कायरता और दुर्बलता का त्याग करा)े का उदघोष करते हुए आत्मविश्वास जगाते हैं कि  ‘क्षुद्रं हृदय दौर्बल्यं त्यक्त्वोतिष्ठ परंतप’ (हृदय में व्याप्त तुच्छ दुर्बलता को त्यागे बिना सफलता संभव नहीं है) वास्तविक में गीता केवल धार्मिक ग्रन्थ मात्र नहीं, बल्कि कालजयी प्रबंधन ग्रन्थ हैं। जिसकी उपादेयता आचरण में ढालने पर ही सिद्ध हो सकती है।आज के युग में हर क्षेत्र में प्रबंधन का महत्व बढ़ता जा रहा है। सामान्यतः प्रबंधन व्यवसाय से ही जोड़ा जाता है परंतु जीवन का भी प्रबंधन किया जाना चाहिए। जीवन प्रबंधन का विशद ज्ञान देने वाले समसामयिक प्रबंधक व युग प्रवर्तक प्रबंधशास्त्री श्रीकृष्ण को रासलीला तक सीमित कर स्वयं को ज्ञान से वंचित करने जैसा है। हालांकि गीता पर दुनिया भर के विद्वानों ने टीका लिखी है। यह गीता की विशेषता है कि सभी को उसमें कुछ विशिष्ट प्राप्त होता है। यदि हम महाभारत के महानायक द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को दिये संदेश के निहितार्थ को सीमित अर्थो में ग्रहण करते हैं तो हम अप्रतिम ज्ञान से स्वयं को पृथक करने के अतिरिक्त कुछ और नहीं करते।अनुभव साक्षी हैं कि हम अपनी क्षमताओं का सम्पूर्णता के साथ सदुपयोग नहीं कर पाते। वास्तव में कोई भी अवतार अपने समय की विसंगतियों को दूर करने के लिए ही आते हैं जैसाकि गीता के चतुर्थ अध्याय के 7वें और 8वें श्लोक में योगीराज श्रीकृष्ण उद्घोष करते हैं-यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। (हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ) मैंनेजमेंट अर्थात् प्रबंधन की दृष्टि से कहे तो, ‘जब -जब मेरे मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी, मैं उपलब्ध रहूंगा।’परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ) यहां इसका अर्थ यह भी है, ‘व्यवस्था की बाधाओं को हटाने और उसे सुचारु बनाने के लिए मैं हर समय उपलब्ध हूं।’श्रीराम और श्रीकृष्ण हमारे दोनों महानायकों की एक समान विशेषता है कि वे अपने विरोधी से सुलह-समझौते की आखिरी कोशिश करते  हैं। लेकिन रावण की तरह ही दुर्याेधन भी न माना। मात्र पांच गांव देकर सारा विवाद खत्म करने की बजाय दुर्याेधन श्रीकृष्ण को ही बन्दी बनाने की तैयारी करने लगा।  श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनो अपने विरोधी के गुणों का सम्मान भी करते हैं। श्रीराम ने लक्ष्मण को रावण से सीखने के लिए प्रेरित किया तो श्रीकृष्ण लगातार पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और अंगराज कर्ण के गुणों के प्रशंसक रहे। अच्छा काम करने के लिए हमें अपने दुर्बल अहं को दूर करना होगा। कृष्ण कहते हैं -मित्र, शत्रु, उदासीन, मध्यस्थ, ईर्ष्यालु, पुण्यात्मा और पापात्मा -इन सभी के लिए जिसकी समबुद्धि हो, उसे उत्तम मानना चाहिए। हमें दोनों तरह के लोग मिलेंगे, शायद पापात्मा ज्यादा मिलें, पर जो नापसंद हैं, उनसे नफरत करने की जगह उनके प्रति समबुद्धि रखने से बेहतर काम किया जा सकेगा।शायद ही किसी के मन में संदेह हो कि श्रीराम हनुमान से और श्रीकृष्ण अर्जुन से बेहतर कर सकते थे। परंतु दोनांे ने ही उन्हें तथा कुछ अन्यों को प्रेरित किया। आखिर यही तो प्रबंधन है। प्रबंधन की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा के अनुसार ज्व हमज ूवता कवदम इल वजीमते पे बंससमक उंदमहउमदज. कई लोग प्रबंधन से जुड़े होने के बावजूद परिस्थिति के अनुसार व्यवहार नहीं करते। वे हर समय अपने ही प्रभाव में होते हैं। परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करना, अपनी भूमिका को समझना और सामने वाले से कोई काम निकलवाना। ये प्रबंधन (मैनेजमेंट) के गुर (खास नुस्खे) हैं, जो हर व्यक्ति नहीं जानता।‘मैं’ एक हूं लेकिन परिस्थिति के अनुसार ‘मेरी’ भूमिकाएं बदलती रहती है, ‘मुझे’ अपनी भूमिका के अनुसार व्यवहार सीखना चाहिए। गीता प्रमाण है कि अर्जुन के मन में अनेक प्रकार की शंकाएं थीं। अनेकानेक प्रश्न थे। एक योग्य प्रबंधक अपने अधीनस्थों की शंकाओं का निराकरण किये बिना अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण एक श्रेष्ठ प्रबंधक, शिक्षक की तरह  इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। उन्होंने अर्जुन को समझाया- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।। अर्थात् तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल पर नहीं। अनेक बार ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि कार्य करने वाले योजना के सफल होने में संदेह जताते हैं। ऐसी स्थिति में योग्य प्रबंधक हर जिम्मेवारी अपने ऊपर लेते हुए कहता है, ‘तुम घबराओ मत। हर तरह के तनाव और शंकाओं को त्याग कर, जैसे मैं कहता हूं वैसा करो। मैं सब संभाल लूंगा।’ गीता के 18 वें अध्याय के 66 वें श्लोक में यही बात कही गई है-सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम व्रज।अहम् त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।एक अन्य श्लोक में कहा गया , ‘तू अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।’ यहां एक बात विशेष ध्यान देने की है कि धर्म का अर्थ कर्तव्य है। परिस्थितियों द्वारा सौंपे गए कर्तव्य का शुद्ध अंतकरण से पालन करना धर्म है न कि केवल कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों जाने को धर्म मानना। यथा विद्यार्थी का धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का धर्म और कर्म है देश की रक्षा करना। एक पिता का धर्म अपनी संतान को योग्य बनाना। एक पुत्र का धर्म अपने पूर्वजों की कीर्ति बढाना। आदि आदि।गीताकार कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है। उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में उससे ज्यादा हानि उठाते हैं। विपरीत  परिणामों की आशंका के कारण जिम्मेदारी से भागना मूर्खता है। अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए।महाभारत के महानायक ने गीता के रूप में जो प्रबंधन का शास्त्र हमें सौंपा है उससे हमें अनन्त सूत्र मिलने हैं जिनमें दो अति महत्वपूर्ण हैं- एक- श्रेष्ठ पुरुष (उच्चाधिकारी) अपने पद व गरिमा के अनुसार व्यवहार करे तो सामान्यजन (अधीनस्थ कर्मचारी अथवा कार्यकर्ता) उसी का अनुसरण करते हैं। यदि वे अनुशासित रहते हुुए मेहनत और निष्ठा से काम करे तो संस्था का उच्च शिखर को स्पर्श तय है। विपरीत आचरण पर उसे डूबने से बचाया नहीं जा सकता। दूसरा- प्रतिस्पर्धा के दौर में कुछ चतुर लोग अपना काम तो निकालने के लिए अपने साथियों को हतोत्साहित करते हैं। लेकिन प्रबंधन की दृष्टि से अनुकरणीय और अभिनन्दनीय वही है जो वर्तमान में दूसरो का प्रेरणा स्रोत होते हुए भविष्य का उदाहरण रूपी उज्ज्वल नक्षत्र बनता है। गत दिवस गीता प्राकट्य नगरी कुरुक्षेत्र में अपने एक सप्ताह के प्रवास के दौरान विदेशी यात्रियों के दल से संवाद हुआ। उन्होंने पूछा, ‘गीता क्यों जरूरी है?’ तो मैंने उनसे पश्चिमी देशों में तेजी से बढ़ रहे अवसाद और अवसाद के कारण वहां करोड़ो डालर/ यूरो की दवाओं का व्यापार होने की चर्चा करते हुए कहा, ‘आपके देशों में परीक्षा अथवा प्रेम में असफलता पर आत्महत्या के मामले भी बहुत होते हैं क्योंकि वहां प्रतिकूल परिस्थितियों को सहज स्वीकार करने का अभ्यास नहीं है। जबकि गीता ने हमें सिखाया है कि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। यदि किसी कारण से कर्म फल आपेक्षा से कम अथवा शून्य हो तो भी हम बहुत विचलित नहीं होते। आंसू पोंछ कर आगे बढ़ना हमारे डीएनए में हैं जो हमें गीता ने सिखाया है। आज गीता प्राकट्य स्थली पर आप चिंतन-मनन करें कि आपको एक ‘गीता’ चाहिए या हजारों अस्पताल और टनों अवसाद की दवाएं चाहिए।’ कहना न होगा, दुनिया भर के लोग भारतीय संस्कृति के उन्नायक हमारे देवालयों का महत्व जानकर अभिभूत हो ‘हरे कृष्णा, हरे रामा’ गाते- झूमते दिखाई देते है। डा. विनोद बब्बर 

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महिला-जगत आत्मनिर्भर और सशक्त बन रहीं हैं देश की महिलाएं।

आत्मनिर्भर और सशक्त बन रहीं हैं देश की महिलाएं।

 सुनील कुमार महला प्राचीन काल से ही महिलाओं का स्थान भारत में बहुत ही महत्वपूर्ण व अहम रहा है। महिला को ही सृष्टि रचना का मूल आधार कहा गया है। महिलाएं, हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक अंग है क्योंकि विश्व की आधी जनसंख्या तकरीबन महिलाओं की ही है। डॉ. अंबेडकर ने एक बार यह बात कही थी कि यदि किसी समाज की प्रगति के बारे में सही-सही जानना है तो उस समाज की स्त्रियों की स्थिति के बारे में जानो। कोई समाज कितना मजबूत हो सकता है, इसका अंदाजा इस बात से इसलिए लगाया जा सकता है क्योंकि स्त्रियाँ किसी भी समाज की आधी आबादी हैं। बिना इन्हें साथ लिए कोई भी समाज अपनी संपूर्णता में बेहतर नहीं कर सकता है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि भारतीय समाज में आज महिलाओं को लगातार सशक्त बनाने की दिशा में अनेक कदम उठाए जा रहे हैं क्योंकि यह बात हम सभी जानते हैं कि जब भारत की नारी सशक्त होगी तभी परिवार सशक्त होगा, परिवार के बाद समाज और समाज के बाद देश सशक्त होगा। इस संबंध में हाल ही में(11 दिसंबर को) हरियाणा के पानीपत के कम्युनिटी सेंट्रल हाल में महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भारत के  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीमा सखी योजना का आगाज किया है। उल्लेखनीय है कि एलआईसी बीमा सखी योजना 18 से 70 साल की महिलाओं(दसवीं पास) के लिए है। इसमें महिलाओं को पहले तीन साल की ट्रेनिंग दी जाएगी और इस ट्रेनिंग पीरियड के दौरान महिलाओं को कुछ पैसे( दो लाख रुपए से अधिक) भी मिलेंगे। उल्लेखनीय है कि इसमें पहले साल 7 हजार, दूसरे साल 6 हजार और तीसरे साल 5 हजार रुपये महीना मिलेंगे। इसमें बोनस कमीशन शामिल नहीं है। इसके लिए शर्त रहेगी कि महिलाएं जो भी पॉलिसी बेचेंगी, उनमें से 65 फीसदी अगले साल के आखिर तक सक्रिय (इन-फोर्स) रहनी चाहिए। इस योजना के तहत दसवीं पास महिलाएं पहले साल हर महीने कम से कम दो और साल में 24 पालिसी बेचेंगी। उन्हें बोनस के अलावा कमिशन के तौर पर 48 हजार रुपये वार्षिक मिलेंगे यानी एक पालिसी के लिए 4 हजार रुपये। सबसे अच्छी बात यह है कि ट्रेनिंग के बाद महिलाएं एलआईसी बीमा एजेंट के रूप में काम कर सकेंगी। इतना ही नहीं इस योजना के तहत, बीए पास बीमा सखियों को विकास अधिकारी यानी डेवलेपमेंट ऑफिसर बनने का मौका भी मिल सकता है। वास्तव में, इस योजना के तहत महिलाएं अपने इलाके की महिलाओं को बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। इस योजना का मुख्य और अहम् मकसद देश की महिलाओं को आत्मनिर्भर व आर्थिक रूप से सक्षम बनाना है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि महाराष्ट्र में ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिण योजना’ 1 जुलाई 2024 से चल रही है। इसके तहत पात्र महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह दिए जा रहे है। इधर मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना के बारे में कौन नहीं जानता। कहना ग़लत नहीं होगा कि इस योजना के वृहद स्वरूप ने प्रदेश की महिलाओं के समग्र सशक्तिकरण में महती भूमिका निभाई है। इस योजना से न केवल महिलाओं ने अपनी छोटी-छोटी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया है बल्कि योजना का लाभ प्राप्त करने के लिये महिलाएं बैंकिंग प्रणाली से सीधे परिचित हुई हैं। इससे परिवार के निर्णयों में भी उनकी भूमिका बड़ी है और सामाजिक रूप से महिलाओं के सम्मान में वृद्धि हुई है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत भी वर्ष 22 जनवरी 2015 में हरियाणा के पानीपत से ही हुई थी। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विकसित भारत के चार स्तम्भ(गरीब , युवा, किसान और महिला) मानते हैं, और महिला सशक्तिकरण उनमें से एक है। आज देश में नारी समानता पर लगातार काम हो रहा है और देश की महिलाएं लगातार सशक्त हो रहीं हैं। आज राजनीति में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के मकसद से ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ लाया गया है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हरियाणा में पांच लाख लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य दिया है। एक अन्य अभियान नमो ड्रोन दीदी का है, जिसमें स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन पायलटों का मुफ्त प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आज महिला शिक्षा, महिला रोजगार पर लगातार जोर दिया जा रहा है। महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री उज्जवला योजना है।इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर गृहणियों को रसोई गैस सिलेंडर उपलब्ध कराया जा रहा है। इतना ही नहीं ,महिला सशक्तिकरण की दिशा में ही देश में 10 अक्टूबर 2019 से सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना भी चलाई जा रही है जिसके तहत 100 फीसदी तक अस्पतालों या प्रशिक्षित नर्सों की निगरानी में महिलाओं के प्रसव को किया जाता है. ताकि प्रसव के दौरान मां और उसके बच्चे के स्वास्थ्य की उचित देखभाल की जा सके। सुकन्या समृद्धि योजना, फ्री सिलाई मशीन योजना और महिला शक्ति केंद्र योजना अन्य योजनाएं हैं जो लगातार महिलाओं को आर्थिक रूप आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। सुनील कुमार महला

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लेख अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और अधिकार: साझा मानवता और मूलभूत मूल्यों की रक्षा

अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और अधिकार: साझा मानवता और मूलभूत मूल्यों की रक्षा

गजेंद्र सिंह कापीसा प्रांत में महिला मेडिकल छात्रों के आंसू तालिबान शासन के इस्लामी फ़रमान के तहत अफगान महिलाओं की गंभीर वास्तविकता को दर्शाते हैं।…

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राजनीति इंडिया गठबंधन की रार से कांग्रेस से ज्यादा क्षेत्रीय दलों को होगा नुकसान

इंडिया गठबंधन की रार से कांग्रेस से ज्यादा क्षेत्रीय दलों को होगा नुकसान

कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया गठबंधन’ में नेतृत्व के सवाल पर जो मौजूदा चिल्ल-पों मची हुई है और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व पर एक बार फिर से जो सवाल उठाए जा रहे हैं, उससे न तो तृणमूल कांग्रेस नेत्री व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राजनीतिक भला होने वाला है और न ही उनकी सुर में सुर मिलाने वाले एनसीपी शरद पवार के शरद पवार-सुप्रिया सुले, शिवसेना यूबीटी के उद्धव ठाकरे-आदित्य ठाकरे, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव-रामगोपाल यादव या आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल आदि जैसे नेताओं का। हां, इससे कांग्रेस आई की उस सियासी साख को धक्का अवश्य लगेगा, जो कि बमुश्किल उसने राहुल गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव 2024 के बाद हासिल कर पाई है।  राजनीतिक मामलों के जानकारों का स्पष्ट कहना है कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा की हार जरूर मायने रखती है क्योंकि यह जीती हुई बाजी हारने के जैसा है लेकिन सिर्फ इसको लेकर ही इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस से छीन लेना कोई राजनीतिक बुद्धिमानी का काम प्रतीत नहीं होता है। शायद कांग्रेस भी इसे नहीं मानेगी और किसी भी राष्ट्रीय दल को क्षेत्रीय दलों के सामने घुटने भी नहीं टेकने चाहिए, यदि सत्ता प्राप्ति के लिए संख्या बल का खेल नहीं हो तो! बीजेपी भी यही करती है और अपने गठबंधन सहयोगियों को उनकी वाजिब औकात में रखती है। तीसरे-चौथे मोर्चे की विफलता के पीछे भी तो अनुशासनहीनता या अतिशय महत्वाकांक्षा का खेल ही तो था, जिसे बहुधा राजनीतिक रोग समझा जाता है। बता दें कि तृणमूल कांग्रेस नेता कल्याण बनर्जी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद तुरंत कहा था कि कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक को अपने अहंकार को अलग रखना चाहिए और ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन के नेता के रूप में मान्यता देनी चाहिए। इसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में इंडिया ब्लॉक के खराब प्रदर्शन पर असंतोष जाहिर किया और संकेत दिया कि अगर मौका मिला तो वह इंडिया ब्लॉक की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ने यहां तक कहा कि वह बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में अपनी भूमिका जारी रखते हुए भी विपक्षी मोर्चे को चलाने की दोहरी जिम्मेदारी संभाल सकती हैं। एक टीवी चैनल से बात करते हुए ममता बनर्जी ने कहा, ‘मैंने इंडिया ब्लॉक का गठन किया था, अब मोर्चा का नेतृत्व करने वालों पर इसका प्रबंधन करने की जिम्मेदारी है। अगर वे इसे नहीं चला सकते तो मैं क्या कर सकती हूं? मैं सिर्फ इतना कहूंगी कि सभी को साथ लेकर चलना होगा।‘ वहीं, यह पूछे जाने पर कि एक मजबूत भाजपा विरोधी ताकत के रूप में अपनी साख के बावजूद वह इंडिया ब्लॉक की कमान क्यों नहीं संभाल रही हैं? तो इस पर बनर्जी ने कहा, “अगर मौका मिला तो मैं इसके सुचारू संचालन को सुनिश्चित करूंगी।” उन्होंने कहा, “मैं बंगाल से बाहर नहीं जाना चाहती लेकिन मैं इसे यहीं से चला सकती हूं।” बता दें कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए गठित इंडिया (INDIA) ब्लॉक में दो दर्जन से अधिक विपक्षी दल शामिल हैं हालांकि आंतरिक मतभेदों और आपसी तालमेल की कमी की वजह से इसकी कई बार आलोचना भी होती रही है। इसी वजह से इसके प्रमुख सूत्रधार रहे जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना पाला बदल लिया और भाजपा के खेमे में चले गए। वो भी इंडिया गठबंधन के संयोजक का पद पाना चाहते थे जो लालू प्रसाद के परोक्ष विरोध के चलते सम्भव नहीं हो पाया। ऐसे में संभव है कि ममता भी एकबार फिर से तीसरे मोर्चे को मजबूत करने की पहल करें और नीतीश की तरह ही इंडिया गठबंधन को टा-टा, बाय-बाय कर दें। उल्लेखनीय है कि ममता बनर्जी का यह बयान उनकी पार्टी सांसद कल्याण बनर्जी द्वारा कांग्रेस और अन्य इंडिया ब्लॉक सहयोगियों को लेकर दिए बयान के बाद सामने आया है। तब कल्याण बनर्जी ने कहा था कि कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक को अपने अहंकार को अलग रखना चाहिए और ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन के नेता के रूप में मान्यता देनी चाहिए। आपको बता दें कि बीजेपी ने जहां महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन करते हुए रिकॉर्ड संख्या में सीटें हासिल कीं तो वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन को भारी जीत मिली जबकि इंडिया ब्लॉक ने सिर्फ झारखंड में जेएमएम के शानदार प्रदर्शन की बदौलत मजबूत वापसी की। कहने का तात्पर्य यह है कि कांग्रेस ने अपनी हार का सिलसिला जारी रखा और हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया और झारखंड में सत्तारूढ़ जेएमएम के जूनियर पार्टनर के रूप में सामने आई और विपक्षी ब्लॉक में इसकी भूमिका और भी कम हो गई क्योंकि अन्य सहयोगियों ने इससे बेहतर प्रदर्शन किया। वहीं, दूसरी ओर हाल ही में हुए उपचुनावों में भाजपा को हराकर टीएमसी की जीत ने पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभुत्व को मजबूत किया है, जबकि विपक्षी अभियान आरजी कर मेडिकल कॉलेज विरोध जैसे विवादों पर केंद्रित थे। सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे, उसके सहयोगी सीपीआई (एमएल) लिबरेशन और कांग्रेस, जो इंडिया ब्लॉक में राष्ट्रीय स्तर पर टीएमसी के सहयोगी हैं, सभी को बड़ी असफलताओं का सामना करना पड़ा और उनके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई जबकि कांग्रेस इंडिया ब्लॉक की सबसे बड़ी पार्टी है जिसे अक्सर गठबंधन का वास्तविक नेता माना जाता है। यही वजह है कि टीएमसी ने लगातार ममता बनर्जी को गठबंधन की बागडोर संभालने की वकालत की है। यह ठीक है कि तृणमूल कांग्रेस नेत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में लगातार भाजपा को सियासी चोट पहुंचा रही हैं और सदैव उस पर भारी प्रतीत हो रही हैं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह राष्ट्रीय नेत्री बन गईं और उनका चेहरा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के चेहरे से ज्यादा सर्वस्वीकार्य हो गया, वो भी अखिल भारतीय स्तर पर? चाहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शरद पवार के प्रमुख और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार हों या उनकी सियासी वारिस सांसद सुप्रिया सुले, शिवसेना यूबीटी के प्रमुख और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे हों या उनके राजनीतिक वारिस आदित्य ठाकरे, समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हों या राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव या आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों या उन जैसे इंडिया गठबंधन के कोई अन्य नेतागण, किसी का चेहरा राष्ट्रीय स्तर पर उतना सर्वस्वीकार्य नहीं हो सकता है जितना कि राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी, लोकसभा सांसद प्रियंका गांधी या लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी  का है, इसलिए समकालीन बयानबाजी से इंडिया गठबंधन और उसमें शामिल सभी दलों को ही क्षति होगी, यह उन्हें समझना होगा। वैसे भी भारतीय मतदाताओं के बीच कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन, राजद-सपा-झामुमो नीत महागठबंधन, शिवसेना यूबीटी-एनसीपी शरद पवार नीत महाविकास अघाड़ी के अलावा तीसरे या चौथे मोर्चे में शामिल रहे क्षेत्रीय दलों की साख अच्छी नहीं है। जनता पार्टी, जनता दल और संयुक्त मोर्चे की कई गठबंधन सरकारों को असमय गिराने का आरोप जहां कांग्रेस पर लगता आया है, वहीं तीसरे मोर्चे और चौथे मोर्चे के बारे में तो राजनीतिक अवधारणा यही है कि इन्हें केंद्र में सरकार चलाना ही नहीं आता और इसमें शामिल दल भले ही अपने-अपने राज्यों में सफल रहे हों लेकिन सुशासन स्थापित करने और भ्रष्टाचार रोकने में अकसर विफल रहे हैं जिससे ब्रेक के बाद मतदाता इन्हें खारिज कर देते हैं। इनकी इसी कमजोरी का राजनीतिक फायदा भाजपा को मिला जबकि ये लोग उसे राजनीतिक अछूत तक करार दे चुके हैं।  बता दें कि 1990 के दशक में कोई भी दल पहले भाजपा से गठबंधन करने से सिर्फ इसलिए डरता था कि कहीं उसका मुस्लिम वोट छिटक न जाए लेकिन अपने राष्ट्रवादी और हिंदुत्व के अग्रगामी विचारों के साथ-साथ बीजेपी ने सुशासन, विकास और गठबंधन सरकार चलाने की योग्यता को साबित करके भारतीय मतदाताओं का दिल एक नहीं, बल्कि कई बार जीत लिया और कांग्रेस के अधिकांश पुराने सियासी रिकॉर्ड को मोदी 3.0 सरकार ने ध्वस्त कर दिया है जिसके बाद उसकी लोकप्रियता एक बार फिर से उफान पर है।  वहीं, लोकसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन खासकर कांग्रेस-सपा गठजोड़ से उसे जो धक्का लगा, उसकी भरपाई उसने हरियाणा-महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों से कर लिया है। लोकसभा चुनाव 2024 में भी भाजपा ने आरएसएस की उपेक्षा की कीमत चुकाई थी अन्यथा आज वह अपने गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर नहीं रहती। लेकिन अब उसके इशारे पर जिस तरह से इंडिया गठबंधन में अंतर्कलह मची हुई है, उससे आम चुनाव 2029 में भी उसका निष्कंटक राज बरकरार रहने के आसार हैं। यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस बीजेपी से काफी पीछे चली जाएगी, जिसकी भरपाई वो शायद ही कभी कर पाए। वैसे भी भारतीय राजनीति में गठबंधन धर्म का पालन करने का रिकॉर्ड कांग्रेस और तीसरे-चौथे मोर्चा से बेहतर भाजपा का है। इसलिए वह दिन-प्रतिदिन मजबूत होती गई और कांग्रेस या तीसरे-चौथे मोर्चे के दल कमजोर दर कमजोर। बहरहाल, कांग्रेस नेतृत्व की बुद्धिमानी इसी में है कि वह तीसरे-चौथे मोर्चे में शामिल रहे क्षेत्रीय दलों, यूपीए या महागठबंधन और महाविकास अघाड़ी सहयोगियों को हर हाल में अपने साथ तब तक जोड़े रखे, जब तक कि लोकसभा में उसका आंकड़ा 300 के पार न चला जाए।  राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि तृणमूल कांग्रेस की नेत्री ममता बनर्जी हों, या एनसीपी शरद पवार के शरद पवार या शिवसेना यूबीटी के उद्धव ठाकरे, ये लोग कभी न कभी भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सदस्य या उसके परोक्ष शुभचिंतक रह चुके हैं, इसलिए कांग्रेस विरोधी इनकी बयानबाजी का मकसद भाजपा को खुश रखना है और इसी बहाने कांग्रेस पर दवाब बनाए रखना। वहीं, उत्तरप्रदेश में सपा नेता रामगोपाल यादव जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कस रहे हैं, वह यूपी विधानसभा उपचुनाव 2024 में कांग्रेस की उपेक्षा के बाद मिली शर्मनाक हार की खुन्नस है। यदि अखिलेश यादव ने रामगोपाल यादव को काबू में नहीं किया तो 2022 की तरह 2027 में भी सपा के सपने नहीं पूरे होने वाले।  रही बात इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की तो ममता बनर्जी को आगे रखकर चाहे कांग्रेस पर जितना भी दबाव बना लिया जाए लेकिन राहुल की कांग्रेस अपनी मस्त सियासी चाल चलती है बिना सियासी नफा-नुकसान के। इसे इंडिया गठबंधन में शामिल दलों को समझना होगा अन्यथा पश्चिम बंगाल के अलावा कहीं उनका कोई भविष्य नहीं होगा। चाहे जम्मू कश्मीर हो या झारखंड, यदि क्रमशः नेशनल कांफ्रेंस और झारखंड मुक्ति मोर्चा नीत इंडिया गठबंधन सत्ता में आई है तो सिर्फ कांग्रेस व नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की वजह से, अन्यथा लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी की 80 में 37 सीट कांग्रेस के सहयोग से जीतने वाली सपा, कांग्रेस की कथित छत्रछाया से हटते ही यूपी विधानसभा चुनाव में 9 में से महज 2 सीट ही निकाल पाई। यदि उसने कांग्रेस का सम्मान किया होता तो इतनी फजीहत नहीं होती।  कुछ यही हाल आप का होगा दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में जो अभी कांग्रेस को हल्के में लेकर चल रही है। बिहार में कांग्रेस को कम तवज्जो देकर राजद नेता तेजस्वी यादव अपनी भद्द पिटवा ही रहे हैं। इसलिए किस नेता ने कांग्रेस या राहुल गांधी के खिलाफ क्या कहा, उनकी बातों को यहां पर मैं नहीं दुहराना चाहता  बल्कि सिर्फ यह सलाह देना चाहता हूं कि भारतीय राजनीति में यदि क्षेत्रीय दलों को प्रासंगिक बने रहना है तो कांग्रेस या भाजपा को साधकर चलें अन्यथा सियासी दुर्भाग्य आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। सब ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल नहीं हो सकते!

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